इमाम हुसैन अलैहिस सलाम

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इमाम हुसैन अलैहिस सलाम
शियों के तीसरे इमाम
ज़रीह ए इमाम हुसैन (अ)
ज़रीह ए इमाम हुसैन (अ)
नामहुसैन बिन अली
उपाधिअबा अब्दिल्लाह
चरित्रशियों के तीसरे इमाम
जन्मदिन3 शाबान वर्ष 4 हिजरी
इमामत की अवधिलगभग 11 वर्ष (50 हिजरी से 61 हिजरी के आरम्भ तक)
शहादत10 मुहर्रम (आशूरा) वर्ष 61 हिजरी
दफ़्न स्थानकर्बला
जीवन स्थानमदीना, कूफ़ा
उपनामसय्यदुश शोहदा, सारल्लाह, क़तीलल अबरात
पिताइमाम अली (अ)
माताहज़रत फ़ातिमा ज़हरा (स)
जीवन साथीरुबाब, लैला, उम्मे इस्हाक़, शहरबानो (विवादित)
संतानइमाम सज्जाद, अली अकबर, अली असग़र, सकीना,फ़ातिमा, जाफ़र
आयु57 वर्ष
शियों के इमाम
अमीरुल मोमिनीन (उपनाम) . इमाम हसन मुज्तबा . इमाम हुसैन (अ) . इमाम सज्जाद . इमाम बाक़िर . इमाम सादिक़ . इमाम काज़िम . इमाम रज़ा . इमाम जवाद . इमाम हादी . इमाम हसन अस्करी . इमाम महदी


हुसैन बिन अली बिन अबी तालिब (अ) (अरबी: الإمام الحسين بن علي بن أبي طالب عليه السلام) (4.61 हिजरी), जो शियों में इमाम हुसैन (अ), अबा अब्दिल्लाह और सय्यदुश शोहदा के नाम से भी प्रसिद्ध हैं, शियों के तीसरे इमाम हैं जिन्हे 10 मुहर्रम (आशूरा के दिन) कर्बला के मैदान में शहीद किया गया। आप इमाम अली (अ) और हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (स) के दूसरे बेटे और पैग़ंबर (स) के नवासे हैं। आपने अपने भाई के बाद लगभग 11 साल तक इमामत के पद को संभाला।

शिया और सुन्नी ऐतेहासिक स्रोत के अनुसार पैग़ंबर (स) ने आपके जन्म के समय आपकी शहादत की घोषणा की और आपका नाम हुसैन रखा। पैगंबर (स) हसनैन (इमाम हसन (अ) व इमाम हुसैन (अ)) से बहुत प्रेम करते थे। और इनसे प्रेम करने कि सलाह देते थे। आप (अ) असहाबे केसा में से एक हैं, मुबाहेला में भी उपस्थित थे और पैगंबर (स) के अहले बैत (अ) में से हैं जिनके सम्मान में आय ए ततहीर नाज़िल हुई है। इमाम (अ) के गुणों (फ़ज़ीलत) से संबंधित अनेक रिवायात पैगंबर (स) से वर्णित हुई हैं जैसे: हसन और हुसैन स्वर्ग के जवानों के सरदार हैं और हुसैन मार्ग दर्शन (हिदायत) के दीपक (चिराग़) और निजात की कश्ती हैं।

पैगंबर (स) के स्वर्गवास के बाद के तीस वर्षों में आपके जीवन के बारे में बहुत कम जानकारी उपलब्ध हैं। आप अमीरुल मोमिनीन (अ) के शासक काल (ख़िलाफ़त) में उनके साथ थे और उस काल के युद्धों में आपने भाग लिया। इमाम हसन (अ) के शासक काल में आप उनके साथ रहे और इमाम हसन (अ) की मुआविया से सुलह का समर्थन किया। इमाम हसन (अ) की शहादत से मुआविया की मृत्यु तक उसी वचन पर बाक़ी रहे और कूफ़ा के कुछ शियों ने जब आपको बनी उमय्या के ख़िलाफ़ आंदोलन और शियों का नेतृत्व संभालने का अनुरोध किया तो उन्होंने उन्हें मुआविया की मृत्यु तक धैर्य रखने की सलाह दी। हुसैन बिन अली (अ) की इमामत और मुआविया का शासक दोनो का समय एक था। कुछ ऐतेहासिक स्रोतों से यह जानकारी मिलती है कि आपके मुआविया के कुछ कार्यों पर कड़ी कारवाई की है। ख़ास तौर से हुज्र इब्ने अदी की हत्या पर मुआविया को फटकार भरा पत्र लिखा और जब यज़ीद को उत्तराधिकारी बनाया तो आपने उसकी बयअत से इंकार किया मुआविया और कुछ अन्य लोगों से इस कार्य की निंदा की और यज़ीद को अयोग्य व्यक्ति घोषित किया और पद (ख़िलाफ़त) का योग्य ख़ुद को घोषित किया। मेना में इमाम हुसैन (अ) का ख़ुतबा भी बनी उमय्या के ख़िलाफ़ आपके राजनीतिक रूख को समझाता है। इसके बावजूद मुआविया तीनों ख़लिफ़ाओं की तरह ज़ाहिरी तौर पर इमाम हुसैन (अ) का सम्मान करता था।

मुआविया की मृत्यु के बाद इमाम हुसैन (अ) ने यज़ीद की बयअत को शरीअत के विपरीत घोषित किया और यज़ीद की बयअत ना करने पर यज़ीद की तरफ़ से हत्या की धमकी मिलने पर 28 रजब 60 हिजरी को मदीना से मक्का गए। मक्का में चार महीने रहे और इसी दौरान कूफ़ा के लोगों की तरफ़ से शासन संभालने के लिए लिखे गए अनेक पत्रों के कारण मुस्लिम इब्ने अक़ील (अ) को कूफ़ा भेजा। मुस्लिम इब्ने अक़ील (अ) की तरफ़ से कूफ़ा वालों के समर्थन के बाद, 8 ज़िल हिज्जा को कूफ़ा वालों की बेवफ़ाई और मुस्लिम की शहादत का समाचार सुनने से पहले कूफ़ा की तरफ़ रवाना हुए।

जब कूफ़ा के गवर्नर इब्ने ज़ियाद को इमाम हुसैन (अ) की यात्रा की ख़बर मिली तो उसने आप की तरफ़ एक सेना भेजी और हुर इब्ने यज़ीद के सैनिकों ने जब इमाम (अ) का रास्ता रोका तो मजबूर होकर आपने कर्बला की तरफ़ यात्रा की। आशूर के दिन इमाम (अ) और उमरे साद की सेना के बीच युद्ध हुआ जिस में इमाम हुसैन (अ) और आपके साथीयों में 72 लोग शहीद हुए और शहादत के बाद इमाम सज्जाद (अ) जो उस समय बीमार थे, समेत महिलाओं और बच्चों को बंदी बना कर कूफ़ा और शाम ले गए। इमाम (अ) और उनके साथियों के जनाज़े 11 या 13 मुहर्रम को बनी असद क़बीले के कुछ लोगों ने कर्बला मे दफ़्न किये।

इमाम हुसैन (अ) की मदीना से कर्बला की यात्रा के अनेक सिद्धांत पाए जाते हैं: एक सिद्धांत के अनुसार आप हुकूमत स्थापित करना चाहते थे जबकि कुछ का मानना है कि यह यात्रा केवल अपनी जान बचाने के लिए थी। हुसैन बिन अली (अ) की शहादत का मुसलमानों, विशेषकर शियों पर बहुत प्रभाव पड़ा और वह कई आंदोलनों के लिए एक आदर्श बन गई। अपने इमामों की पैरवी करते हुए शिया इमाम हुसैन के लिए शोक (अज़ादारी) का आयोजन करते हैं और विशेष रूप से मुहर्रम और सफ़र के महीनों के दौरान उनका शोक मनाते हैं। मासूमीन (अ) की रिवायात में इमाम हुसैन (अ) की तीर्थयात्रा पर ज़ोर दिया गया है। और उनका रौज़ा शियों के लिए तीर्थस्थल है।

जिस तरह हुसैन इब्ने अली (अ) का शियों में तीसरे इमाम और सय्यदुश शोहदा होने के रूप में बड़ा स्थान (मक़ाम) है। इसी तरह, अहले सुन्नत भी पैगंबर (स) की हदीसों में वर्णित उनके गुणों (फ़ज़ीलतों) और यज़ीद से मुक़ाबले में उनकी दृढ़ता (इस्तेक़ामत) और आंदोलन के कारण, आपका सम्मान करते हैं। इमाम हुसैन के कथनों और कार्यों का संग्रह, हदीसों, प्रार्थनाओं, पत्रों, कविताओं और उपदेशों के रूप में, मौसूआ कलेमातिल इमामिल हुसैन और मुसनद अल इमाम अश शहीद जैसी पुस्तकों में संकलित किया गया है, और इसके अलावा, आपके व्यक्तित्व और जीवन पर, विश्वकोश (Encyclopedia), जीवनियां, मक़तल और विश्लेषणात्मक इतिहास के रूप में बहुत सी रचनाएं लिखी गई हैं।

मक़ाम व मंज़िलत

इमाम हुसैन (अ) के जीवन का कालक्रम
3 या 5 शाबान जन्म[१]
4 हिजरी
7 हिजरी असहाबे केसा[२] के लिए आय ए ततहीर का नुज़ूल
24 ज़िलहज्जा 9 हिजरी मुबाहेला[३] में उपस्थिति
ज़िलहज्जा 35 हिजरी इमाम अली (अ)[४] की बैअत के बाद लोगों के लिए उपदेश दिया
जमादी अल आख़िर 36 हिजरी जमल[५] के युद्ध में उपस्थिति
सफ़र 37 हिजरी सिफ़्फ़ीन[६] के युद्ध में उपस्थिति
सफ़र 38 हिजरी नहरवान[७] के युद्ध में उपस्थिति
41 हिजरी कूफ़ा से मदीना[८] वापसी
28 सफ़र 50 हिजरी इमाम हसन (अ)[९] की शहादत व इमाम हुसैन (अ) की इमामत का आरम्भ
51, 52 या 53[१०] हिजरी हुज्र बिन अदि और उनके साथीयों की हत्या के लिए मुआविया को एक विरोध पत्र लिखना
58 हिजरी मेना[११] में उपदेश
26 रजब 60 हिजरी यज़ीद[१२] की बैअत के लिए दारुल अमारा में बुलाना
28 रजब 60 हिजरी मदीना से मक्का[१३] की ओर निकलना
3 शाबान 60 हिजरी मक्का[१४] में आगमन
10 से 14 रमज़ान 60 हिजरी कूफ़ीयों[१५] से पत्रों का प्राप्त करना
15 रमज़ान 60 हिजरी मुस्लिम को अपना प्रतिनिधि बनाकर कूफ़ा[१६] भेजा
8 जिलहज्जा 60 हिजरी मक्का से कूफ़ा[१७] की ओर निकलना
2 मुहर्रम 61 हिजरी कर्बला[१८] में आगमन
9 मुहर्रम 61 हिजरी उमर साद का युद्ध की घोषणा और इमाम (अ)[१९] का समय मांगना
10 मुहर्रम 61 हिजरी आशूरा की घटना और इमाम हुसैन और उनके साथीयों की शहादत[२०]

हुसैन बिन अली (अ) शियों के तीसरे इमाम, शियों के पहले इमाम के बेटे और पैग़म्बरे इस्लाम (स) के नवासे हैं।[२१] इस्लामिक स्रोतों में इनके गुणों (फ़ज़ीलत) से संबंधित अनेक हदीसें वर्णित हैं और शिया इमाम (अ) के विशेष स्थान के क़ायल हैं, इमाम हुसैन (अ) का अहले सुन्नत के यहाँ भी विशेष स्थान है।

हदीस और ऐतिहासिक स्रोतों में

शिया और सुन्नी रिवायत के अनुसार हुसैन बिन अली (अ) असहाबे केसा में से एक थे।[२२] मुबाहेले में भी आप भागीदार थे[२३] और अपने भाई के साथ आय ए मुबाहेला में अबनाअना (ابناءَنا) के मिसदाक़ हैं।[२४] इसी प्रकार आय ए ततहीर जो अहले बैत (अ) के सम्मान में नाज़िल हुई[२५] उसमें भी आप भागीदार हैं। इमाम हसन (अ) की शहादत के पश्चात भले ही बनी हाशिम में बहुत से लोग इमाम हुसैन (अ) से आयु में बड़े थे लेकिन आप सबसे शरीफ़ थे: याक़ूबी के नक़्ल के अनुसार मुआविया ने इमाम हसन (अ) का शहादत के बाद इब्ने अब्बास से कहा: आप अपनी क़ौम में सबसे बड़े हैं तो इब्ने अब्बास ने उत्तर में कहा: जब तक हुसैन जीवित हैं मैं बुज़ुर्ग नही हूं।[२६] इसी तरह बनी हाशिम में बहुत बैठक हुईं सारी बैठकों में हुसैन बिन अली को योग्य माना गया।[२७] वर्णित किया गया है कि अम्र बिन आस का मानना था कि आसमान वाले ज़मीन वालों में से सब से अधिक प्रेम इमाम हुसैन (अ) से करते हैं।[२८]

शिया सभ्यता और संस्कृति में

वर्ष 61 हिजरी में आशूरा के दिन आपकी शहादत कारण बनी के आपकी शख़्सियत शियों और यहां तक कि गैर-शियों की नज़रों में हक़ तलबी, वीरता और शहादत का उदाहरण बन गई।[२९] इस घटना ने कम से कम इस तथ्य के संदर्भ में कि यह पैगंबर (स) के खानदान का पहला अपमान और खुला हमला था, इस ने शिया इतिहास और संस्कृति पर एक गहरा निशान छोड़ा,[३०] और इमाम हुसैन (अ) का यह क़याम (आंदोलन), अत्याचार के खिलाफ़ एक आंदोलन, तलवार पर खून की जीत, अच्छे कार्य की तरफ़ बुलाना और बुराई के निषेध, (अम्र बिल मारूफ़नही अनिल मुनकर) और बलिदान का प्रतीक है।[३१] इमाम हुसैन (अ) की शहादत का प्रभाव ऐसा था कि कुछ लोगों ने सोचा कि शिया धर्म का गठन उनकी शहादत के बाद हुआ।[३२] इस्लाम के पूरे इतिहास में, जितने भी आंदोलन हुए है इमाम हुसैन (अ) के आंदोलन के आधार पर और ला सारातिल हुसैन (یا لثارات الحسین) के नारों के साथ हुए हैं।[३३]

मुहर्रम और सफ़र के महीनों, का शिया संस्कृति में एक विशेष स्थान है और विशेष रूप से तासुआ (9 मुहर्रम ), आशूरा और अरबाईन हुसैनी के दिनों में इस अवसर को मनाने के लिए विभिन्न अनुष्ठान आयोजित किए जाते हैं।[३४] शिया धर्मगुरुओं और बुज़ुर्ग़ाने दीन का अनुसरण करते हुए पानी पीते समय इमाम हुसैन (अ) की प्यास को याद करते हैं और उन्हें सलाम करते हैं।[३५]

अहले सुन्नत की दृष्टि में

सुन्नियों की विश्वसनीय पुस्तकों में इमाम हुसैन (अ) के गुणों के बारे में कई हदीसों का वर्णन किया गया है।[३६] गुणों (फ़ज़ीलत) की रिवायत के अलावा, अल्लाह की मार्ग पर अपनी जान व माल का बलिदान, कारण बना कि मुसलमानों की मान्यताएं भी आपके प्रति मज़बूत हो गई हैं।[३७]

इमाम हुसैन (अ) के आंदोलन (क़याम) से संबंधित अहले सुन्नत के यहां दो मत पाए जाते हैं: एक समूह इसे महत्वहीन मानता है, जबकि दूसरा समूह इसकी प्रशंसा और महिमा करता है। विरोधियों में से एक अबू बकर इब्ने अरबी है, जो इमाम हुसैन (अ) के आंदोलन को महत्वहीन मानते हुए कहता है कि लोग पैग़म्बर (स) की हदीस (जो लोग उम्मत में फूट (इख़्तिलाफ़) फैलाते हैं उनसे युद्ध करने के बारे में) सुन कर हुसैन (अ) से युद्ध करने गए।[३८] इब्ने तैमिया भी कहता है कि हुसैन बिन अली (अ) ने केवल स्थिति में सुधार नही किया, बल्कि बुराई और भ्रष्टाचार को भी जन्म दिया।[३९]

इब्ने ख़्लदून ने इब्ने अरबी की बातों की काट करते हुए कहा है कि ज़ालिम और अत्याचारियों से लड़ने के लिए न्यायपूर्ण (आदिल) इमाम का होना अनिवार्य है और हुसैन (अ) अपने ज़माने के न्यायपूर्ण व्यक्ति थे और इस युद्ध के योग्य थे।[४०] एक अन्य स्थान पर कहते हैं कि: जब यज़ीद का अपराध (फ़िस्क़) प्रकट हो गया तो हुसैन (अ) ने उसके ख़िलाफ़ आंदोलन को ख़ुद पर अनिवार्य जाना क्योंकि वह खुद को इस कार्य के योग्य समझते थे।[४१] आलूसी ने रूहुल मानी में इब्ने अरबी पर बद दुआ करते हुए इस बात को झूठ और सब से बड़ी तोहमत मानी है।[४२]

अब्बास महमूद अक़्क़ाद ने अपनी किताब अबूश शोहदा अल हुसैन बिन अली में लिखा है: यज़ीद के शासक में हालात इस स्थान पर पहुँच गए थे कि शहादत के अलावा कोई उपाय नही था।[४३] और उसका मानना है कि ऐसे आंदोलन वही लोग कर सकते हैं जिनका जन्म ही ऐसे कार्य के लिए हुआ है उनके आंदोलन और उनके कार्य की तुलना दूसरों से नहीं करनी चाहिए क्योंकि इनकी सोच और समझ दूसरों से विपरीत होती है।[४४] अहले सुन्नत लेखक ताहा हुसैन का कहना है कि हुसैन (अ) का यज़ीद की बैअत से इंकार का कारण दुश्मनी और ज़िद नहीं थी वह जानते थे कि अगर यज़ीद की बैअत कि तो वे अपने विवेक और दीन के साथ विश्वासघात करेंगे क्योंकि यज़ीद की बैअत उनकी निगाह में पाप था।[४५] उमर फ़रोख कहता है कि ज़ुल्म और अत्याचार के ख़िलाफ़ खामोश होना किसी भी परिस्थिति मे जाएज़ नहीं है और आज के मुस्लमानों की आवश्यकता है कि हमारे बीच एक हुसैनी आंदोलन हो और हमें सही मार्ग की रक्षा करने के लिए हमारा मार्गदर्शन करें।[४६]

यज़ीद पर इमाम हुसैन (अ) के हत्यारे होने के नाते लानत करने के संबंधित अहले सुन्नत में दो मत पाए जाते हैं और अहले सुन्नत के अनेक विद्वान यज़ीद पर लानत को सही मानते हैं बल्कि यज़ीद पर लानत को वाजिब मानते हैं।

नाम, वंश, उपाधि, उपनाम

शिया और सुन्नी किताबों में वर्णित है कि पैग़म्बर (स) ने आपका नाम हुसैन (अ) रखा।[४७] हदीसों के अनुसार यह नामकरण अल्लाह के आदेश पर था।[४८] हसन और हुसैन के नाम इस्लाम से पहले अरब में प्रचलित नहीं थे।[४९] शब्बर और शूबैर (या शब्बीर)[५०] हज़रत हारून के बच्चो के नाम थे।[५१]

इस के अलावा भी इस नाम को रखने के और भी कारण बताए गए हैं जैसे: इमाम अली (अ) ने शुरू में आपका नाम हर्ब या जाफ़र रखा परन्तु पैगंबर (स) ने आपके लिए हुसैन नाम चुना।[५२] कुछ ने इसको गढ़ी हुई बात कहते हुए इसके ख़िफ़ाल दलीलें पेश की हैं।[५३]

इमाम हुसैन (अ), इमाम अली (अ) व हज़रत फ़ातिमा (स) के बेटे और हज़रत मुहम्मद (स) के नवासे हैं, आप क़बील ए क़ुरैश के बनी हाशिम वंश से हैं। इमाम हसन मुज्तबा (अ) हज़रत अब्बास (अ) और मुहम्मद हनफ़िया आप के भाई और हज़रत ज़ैनब (स) और उम्मे कुलसूम आपकी बहनें हैं।[५४]

इमाम हुसैन (अ) की उपाधि अबू अब्दिल्लाह है।[५५] अबू अली, अबू शोहदा, अबुल अहरार, अबुल मुजाहेदीन भी आपकी उपाधियाँ हैं।[५६]

हुसैन बिन अली (अ) के बहुत सारे उपनाम हैं जिनमें अधिकांश उपनाम आप और आपके भाई इमाम हसन (अ) के बीच सामान्य हैं जैसे: सय्यदे शबाबे अहलिल जन्नत,आप के कुछ उपनान निम्नलिखित है: ज़की, तय्यब, वफ़ी, सय्यद, मुबारक नाफ़े, अद्दलील अला ज़ातिल्लाह, अत्ताबे ले मर्ज़ातिल्लाह,[५७] इब्ने तलहा शाफ़ेई ने (ज़की) उपनाम को दूसरे उपनामों से ज़्यादा प्रसिद्ध और (सय्यद ए शबाबे अहलिल जन्ना) के उपनाम को सब से अहम क़रार दिया है।[५८]

कुछ हदीसों में आपको शहीद या सय्यदुश शोहदा के उपनाम से याद किया गया है।[५९] सारल्लाह और क़तीलुल अबरात के उपनाम भी कुछ ज़ियारत ग्रंथों में वर्णित किये गए हैं।[६०]

पैगंबर (स) की एक हदीस जिसे शिया और अहले सुन्नत के अधिकांश स्रोतों में नक़्ल किया है इस में (हुसैन सिब्तुम मिनल असबात) वर्णित हुआ है[६१] इस हदीस में सिब्त का अर्थ वही है जैसे क़ुरआन की कुछ आयतों में वर्णित हुआ है। हदीस और आयात में सिब्त का अर्थ इमाम और वह पवित्र व्यक्ति है जिसे अल्लाह ने चुना (इंतेख़ाब) है और वो अम्बिया के वंश से है।[६२]

जीवनी

रसूले ख़ुदा (स) ने फ़रमाया:

हुसैनो मिन्नी व अना मिनहो अहब्बल्लाहो मन अहब्बा हुसैना (अनुवाद: हुसैन मुझ से है और मैं हुसैन से हूँ, जो हुसैन से प्रेम करेगा अल्लाह उससे प्रेम करेगा।)

अंसाबुल अशराफ़,खंड 3, पृष्ठ 142, तबक़ातुल कुबरा, खंड 10, पृष्ठ 385

हुसैन बिन अली (अ) का मदीना में हुआ। प्रसिद्ध मत के अनुसार आपका जन्म वर्ष 4 हिजरी में हुआ।[६३] कुछ अन्य के अनुसार आपका जन्म वर्ष 3 हिजरी में हुआ।[६४]

प्रसिद्ध मत के अनुसार आपका जन्म 3 शाबान को हुआ[६५] परन्तू शेख़ मुफ़ीद ने अपनी किताब अल इरशाद में आपकी जन्म तिथि 5 शाबान लिखी है।[६६]

शिया और सुन्नी स्रोतों में वर्णित हुआ है कि आपके जन्म के समय पैग़ंबर (स) रोए थे और आपकी शहादत का सूचना दी।[६७] किताब अल काफ़ी की एक हदीस के अनुसार हुसैन (अ) ने अपनी माँ या किसी अन्य महिला का दूध नहीं पिया।[६८]

कहा गया है कि उम्मुल फ़ज़्ल, अब्बास बिन अब्दुल मुत्तलिब की पत्नी ने ख़्वाब देखा कि पैगंबर (स) के बदन से मांस का एक टुकड़ा उस (उम्मुल फ़ज़्ल) की गोद में रखा गया। पैगंबर (स) ने ख़्वाब की ताबीर बताई कि फ़ातिमा के यहाँ एक पुत्र का जन्म होगा और तुम उसकी दाया होगी। जब इमाम हुसैन (अ) का जन्म हुआ तो उम्मुल फ़ज़्ल ने दूध पिलाने की ज़िम्मेदारी ली।[६९] कुछ स्रोतों में अब्दुल्लाह बिन यक़तर की माँ का नाम भी इमाम हुसैन (अ) की दाया में लिखा गया है। लेकिन इमाम हुसैन (अ) ने इन दोनों में से किसी महिला का दूध नहीं पिया।[७०]

अहले सुन्नत के बात स्रोतों में आया है कि पैग़ंबर (स) अपने परिवार में सब से अधिक प्रेम हसन (अ) और हुसैन (अ) से करते थे।[७१] और प्रेम इनता अधिक था कि अगर कभी मस्जिद में उपदेश (ख़ुतबा) देते समय हसन और हुसैन मस्जिद में आ जाते तो पैगंबर (स) उपदेश को अधूरा छोड़ देते और मिम्बर से उतर कर उन्हें गोद ले लेते थे।[७२] पैगंबर (स) से वर्णित है कि आपने फ़रमाया कि इन दोनों के प्रेम ने मुझे दूसरी किसी के प्रेम से बेनेयाज़ कर दिया।[७३]

हुसैन (अ) बाक़ी असहाबे केसा के साथ मुबाहेला की घटना में भी भागीदार थे[७४] और पैगंबर (स) के स्वर्गवास के समय आपकी आयु 7 वर्ष थी। इसीलिए आपको असहाब के सबसे निचले हिस्से (तब्क़े) में गिना गया है।[७५]

हरम ए इमाम हुसैन (अ) में लिखी पैगंबर (स) की हदीस

तीन ख़लिफ़ाओं के शासक काल में

इमाम हुसैन (अ) ने अपने जीवन के तक़रीबन 25 वर्ष तीन ख़लिफ़ाओं (अबू बक्र, उमर, उस्मान) के शासक में गुज़ारे। हालाँकि, इस अवधि के दौरान शियों के तीसरे इमाम के जीवन के विवरण के बारे में अधिक जानकारी नहीं है, जो कि इमाम अली (अ) और उनके बच्चों के राजनीतिक अलगाव के कारण हो सकता है।[७६]

नक़्ल हुआ है कि उमर के शासक के शुरुआत में, एक दिन इमाम हुसैन (अ) ने मस्जिद में प्रवेश किया देखा कि उमर पैग़म्बर (स) के मिम्बर से उपदेश दे रहे हैं, इमाम हुसैन (अ) ने उमर से कहा: मेरे पिता के मिम्बर से नीचे उतरो और अपने पिता के मिम्बर पर बैठो, उमर ने उत्तर दिया मेरे पिता के पास मिम्बर नहीं था।[७७] ऐतिहासिक स्रोतों में वर्णित है कि द्वितीय ख़लीफ़ा इमाम हुसैन (अ) का बहुत सम्मान करते थे।[७८]

उस्मान के शासक काल में जब अबूज़र को रबज़ा की ओर निर्वासित किया तो लोगों को मना किया कि कोई उनकी सहायता न करे, इमाम हुसैन (अ) ने अपने पिता और अपने भाई और कुछ अन्य लोगों के साथ मिलकर ख़लीफ़ा के आदेश का उल्लंघन करते हुए उनकी सहायता की।[७९]

अहले सुन्नत स्रोतों में वर्णित किया गया है कि इमाम हसन (अ) और इमाम हुसैन (अ) ने अफ़्रीकिया युद्ध 26 हिजरी[८०] और तबरिस्तान युद्ध 29 हिजरी या 30 हिजरी[८१] में योगदान दिया है। परन्तु ऐसे किसी भी युद्ध में हसनैन (अ) के सहयोग को शिया स्रोतों में वर्णित नहीं किया गया है। बहुत से ऐतिहासिक स्रोतों ने वर्णित किया है कि इस तरह का युद्ध नही हुआ बल्कि युद्ध के बदले समझौता हो गया था।[८२]

हसनैन के इन युद्धों में सहयोग देने के बारे में जो समाचार वर्णन किये गए है उस समाचार के सर्मथक और विरोधी पाए जाते हैं: जैसे जाफ़र मुर्तज़ा आमोली ने इस हदीस के वर्णन के मार्ग (सनद) पर और हदीस के सारांश पर विरोध किया है और युद्ध के तरीक़ो से इमामो के मुख़ालिफ़ होने को, और सिफ़्फ़ीन के युद्ध में हसनैन को आज्ञा न देने को, दलील बनाते हुए, इस समाचार को गढ़ा हुआ समाचार घोषित करते हैं।[८३]

इमाम सादिक़ (अ):

जो पानी पीकर हुसैन और उनके परिवार को याद करे और उनके क़ातिलों पर लानत करे तो खुदा उसके लिए एक लाख नेकियां लिखता है और उसके लाख गुनाहों को मिटा देता है और उसका मक़ाम को एक लाख गुना ऊंचा कर देता है और क़यामत के दिन वह मुतमइन दिल के साथ महशूर होगा।

कुलैनी, अल काफ़ी, 1407 हिजरी, खंड 6, पृष्ठ 391, इब्ने क़ुलवैह, कामिल अल ज़ेयारात, 1356 शम्सी, पृष्ठ 106

कुछ ऐतिहासिक समाचारों के अनुसार, उस्मान के शासक के अंतिम समय कुछ लोगों ने उस्मान के विरोध में आंदोलन किया और उस्मान की हत्या करने के लिए उस्मान के घर की ओर बढ़े हाँलाकि इमाम हसन (अ) और इमाम हुसैन (अ) उस्मान के काम से ख़ुश नहीं थे, लेकिन इमाम अली (अ) के आदेश पर उस्मान के घर की रक्षा की।[८४] इस समाचार का समर्थक और विरोधी दोनो ने वर्णन किया है।[८५] सय्यद जाफ़र मुर्तज़ा कहते हैं कि ऐतिहासिक प्रमाणों के आधार पर जैसा कि इमाम अली (अ) का उस्मान के कार्यों का विरोधी होना, और इस रिवायत के विरोध में कई रिवायत का पाया जाना, को दलील बनाते हुए हसनैन का उस्मान के घर की रक्षा करने को रद्द करते हैं।[८६]सय्यद मुर्तज़ा, इमाम अली के आदेश अनुसार हसनैन का उस्मान के घर की रक्षा करने हेतू, भेजे जाने का, विरोध करते हुए कहते हैं कि उस्मान के घर जाने का कारण, उस्मान के परिवार तक भोजन पहुचाना था। उस्मान के शासक (ख़िलाफ़त) की रक्षा नहीं थी क्योंकि उस्मान अपने कार्यों के कारण शासक का योग्य नहीं था बल्कि उस्मान से शासक (ख़िलाफ़त) छिनना अनिवार्य था।[८७]

इमाम अली (अ) के शासन काल में

कुछ समाचार के अनुसार, लोगों का इमाम अली (अ) की बैअत करने के पश्चात इमाम हुसैन (अ) ने उपदेश दिया।[८८] जमल के युद्ध में इमाम अली (अ) के बाऐं ओर की सेना के कमांडर थे।[८९] सिफ़्फ़ीन के युद्ध में लोगों को युद्ध के प्रति प्रेरिण करने के लिए उपदेश दिया।[९०] कुछ स्रोतों के अनुसार इमाम अली (अ) के दाऐं ओर के सेना के कमांडर थे।[९१] वर्णन किया गया है कि सिफ़्फ़ीन के युद्ध में शामीयों की सेना से पानी छिनने के कार्य में भी भागीदार थे। जिसके पश्चात इमाम अली (अ) ने कहा था कि यह पहली विजय थी जो इमाम हुसैन (अ) की बरकत के कारण मिली।[९२] सिफ़्फ़ीन के युद्ध से सम्बंधित समाचार के अनुसार, इमाम अली (अ) हसनैन को युद्ध पर नहीं भेजना चाहते थे और इसका कारण पैगंबर (स) के वंश की रक्षा थी।[९३] कुछ स्रोतों में वर्णन के अनुसार, इमाम हुसैन (अ) नहरवान के युद्ध में भी भागीदार थे।[९४]

बहुत से स्रोतों में वर्णन किया गया है कि इमाम हुसैन (अ) इमाम अली (अ) की शहादत के समय उनके पास थे।[९५] और इमाम अली (अ) के कफ़न और दफ़्न के कार्यक्रम में भी उपस्थित थे।[९६] परन्तु किताबे अल काफ़ी व अन्साबुल अशराफ़ में वर्णित हदीसों के अनुसार इमाम हुसैन (अ) अपने पिता के ज़ख़्मी होने के समय उपस्थित नहीं थे बल्कि आप आपने पिता (इमाम अली (अ)) के आदेश पर किसी कार्य के कारण मदाएन गऐ हुए थे और पत्र के माध्यम से इस घटना से आगाह हुए और कूफ़ा वापस पलट आऐ।[९७]

इमाम हसन (अ) के शासन काल में

ऐतिहासिक स्रोतों में इमाम हुसैन (अ) का अपने भाई के प्रति विनम्रता और सम्मान से सम्बंधित समाचार को वर्णित किया गया है। नक़्ल हुआ है कि अगर किसी सभा में इमाम हसन (अ) उपस्थित होते थे तो वह अपने भाई के सम्मान में कुछ नहीं बोलते थे।[९८] इमाम अली (अ) की शहादत के बाद ख़्वारिज में से कुछ, शामीयों से युद्ध का आग्रह कर रहे थे। उन्होंने इमाम हसन (अ) की बैअत नहीं की बल्कि इमाम हुसैन (अ) के पास आऐ ताकि इमाम हुसैन (अ) की बैअत करें, परन्तु इमाम हुसैन (अ) ने कहा: (मैं ख़ुदा की शरण लेता हूँ जब तक हसन जीवित हैं आप सबकी बैअत स्वीकार नहीं करूंगा।)[९९]

इमाम हसन (अ) और मुआविया की सुलह की घटना में, विरोधी शियों के विपरीत अपने भाई से सहमत थे।[१००] और नक़्ल हुआ है कि आपने कहा कि: इमाम हसन (अ) मेरे भी इमाम हैं।[१०१] कुछ समाचारों के अनुसार इमाम हसन (अ) और मुआविया के सुलह होने के पश्चात, इमाम हसन (अ) के तरह इमाम हुसैन (अ) ने भी मुआविया की बैअत की[१०२] यहाँ तक कि इमाम हसन (अ) की शहादत के पश्चात भी आप अपने वचन पर बाक़ी रहे।[१०३] इसके विपरीत कुछ ऐसे समाचार भी हैं जिनमें वर्णन हुआ है कि इमाम हुसैन (अ) ने बैअत नहीं की थी।[१०४] क़ुछ स्रोतों में वर्णित समाचार के अनुसार इमाम हुसैन (अ) इस सुलह से असंतुष्ट थे और इमाम हसन (अ) को सौगंध भी दी थी कि मुआविया के झूठ को न मानें।[१०५] कुछ मोहक़्क़ेक़ीन ने इस समाचार को अन्य हदीसों के असंगत माना है[१०६] जैसे: वो शिया लोग जो सुलह के विरोधी थे जमा हुए और इमाम हुसैन (अ) से मुआविया पर हमला करने को कहा तो इमाम हुसैन (अ) ने उन्हें उत्तर दिया कि " हम ने वचन दिया है और हम अपना वचन नहीं तोड़ेंगे।[१०७] अन्य रिवायत में वर्णित है कि इमाम ने कहा: जब तक मुआविया जीवित है धैर्य रखो जब उसकी मृत्यु हो जाएगी तो विचार करेंगे।[१०८] यहाँ तक कि शियों ने इमाम हसन (अ) की शहादत के बाद भी इमाम हुसैन (अ) को आंदोलन करने को कहा लेकिन इमाम हुसैन (अ) ने मुआविया के जीवित रहने तक हर आंदोलन से मना कर दिया।[१०९] इमाम हुसैन (अ) सन् 41 हिजरी में (मुआविया और इमाम हसन (अ) की सुलह के बाद) अपने भाई के साथ कूफ़ा से मदीना पलट आऐ।[११०]

पत्नियां और बच्चे

इमाम हुसैन (अ) के बच्चों की संख़्या के मारे में भिन्न मत पाए जाते हैं: कुछ स्रोतों में इनकी संख्या चार बेटे और 2 बेटीयाँ,[१११] कुछ अन्य ने छह बेटे और तीन बेटीयाँ लिखी हैं।[११२]

पत्नी वंश बच्चे विवरण
शहर बानो सासानी बादशाह यज़दगुर्द की बेटी इमाम सज्जाद (अ) शियों के चौथे इमाम समकालीन शोधकर्ताओं को शहर बानो की वंशावली पर संदेह है।[११३] कुछ स्रोतों में, उन्हें सिंदिया, ग़ज़ाला और शाह ज़नान के रूप में जाना जाता है।
रूबाब अम्र अल क़ैस बिन अदि की बेटी सुकैना व अब्दुल्लाह[११४] रूबाब कर्बला में उपस्थित थी और क़ैदीयों के साथ शाम गई.[११५] अधिकांश स्रोतों में वर्णित है कि अब्दुल्लाह शहादत के समय शिशु थे[११६] और समकालीन शिया उन्हें अली असग़र के नाम से जानते हैं।
लैला अबी मुर्रा बिन उर्वा बिन मसऊद सक़फ़ी की बेटी[११७] अली अकबर (अ)[११८] अली अकबर कर्बला की घटना में शहीद हुए[११९]
उम्मे इस्हाक़ उम्मे इस्हाक़ फ़ातिमा इमाम हुसैन (अ) की बड़ी बेटी [१२०] उम्मे इस्हाक़ इमाम हसन मुज्तबा की पत्नी थी और इमाम हसन (अ) की शहादत के बाद इमाम हुसैन से विवाह किया[१२१]
सुलाफ़ा या मलूमा[१२२] क़ुज़ाआ क़बीले से जाफ़र[१२३] इमाम के जीवनकाल में जाफ़र की मृत्यु हो गई और कोई वंशज नहीं रहा[१२४]

लोबाबुल अंसाब[१२५] किताब में छठी शताब्दी के स्रोतों से वर्णन किया गया है कि रुक़य्या नाम की बेटी, और किताब कामिल बहाई सातवीं शताब्दी के स्रोतों से वर्णन किया गया है कि इमाम हुसैन (अ) की चार साल की बेटी थी जिसकी मृत्यु शाम में हुई।[१२६] इसी तरह कुछ अन्य स्रोतों में, अली असग़र, शहर बानों के बेटे, मुहम्मद, रुबाब के बेटे, और ज़ैनब को भी इमाम हुसैन (अ) के बच्चों में स्वीकारा गया है।[१२७] इब्ने तलहा शाफ़ेई ने अपनी किताब मतालिब अस सऊल फ़ी मनाक़िबे आले रसूल में इमाम हुसैन (अ) के बच्चों की संख्या दस बताई है।[१२८]

इमामत का दाैर

हुसैन बिन अली (अ) की इमामत की शुरुआत मुआविया के शासन के दस वर्ष सामान्य थी। मुआविया ने इमाम हसन (अ) से सुलह करने के बाद 41 हिजरी[१२९] में शासन संभाला और उमवी खिलाफ़त की स्थापना की। सुन्नी सूत्रों ने उसे एक चतुर और सहिष्णु व्यक्ति कहा है।[१३०] वह ज़ाहिरन तो दीन का दिखावा करता था और यहां तक ​​​​कि अपने खिलाफ़त को स्थापित करने के लिए कुछ धार्मिक सिद्धांतों का इस्तेमाल किया, और इस तथ्य के बावजूद कि उसने बल और राजनीतिक चालों का उपयोग करके सत्ता पर कब्ज़ा कर लिया[१३१] अपनी ख़िलाफ़त को, ईश्वर की ओर से दी हुई खिलाफ़त और ईश्वर का निर्णय मातना था।[१३२] मुआविया ने खुद को सीरिया के लोगों के सामने, पैगंबर के अनुयायी, ईश्वर के नेक बंदों, और धर्म और उसके नियमों के रक्षकों में से एक के रूप में पेश किया।[१३३] ऐतिहासिक स्रोतों में यह कहा गया है कि मुआविया ने खिलाफ़त को एक राजशाही में बदल दिया[१३४] और उसने खुले तौर पर कहा कि उसे लोगों की धार्मिकता से कोई लेना-देना नहीं है।[१३५]

मुआविया के शासन के दौरान अनेक मुद्दों में से एक, कुछ लोगों के बीच शिया विश्वासों (एतेक़ादात) का अस्तित्व था, खासकर इराक़ में। शिया मुआविया के दुश्मन थे, ठीक वैसे ही जैसे ख़्वारिज भी उसके दुश्मन थे, लेकिन खारिजियों के पास शियों के जैसे ज़्यादा लोकप्रिय आधार नहीं थे, शियों को इमाम अली (अ) और अहले बैत के प्रभाव के कारण मज़बूत समर्थन प्राप्त था। इसलिए, मुआविया और उसके एजेंटों ने शिया आंदोलन से या तो एक समझौता पद्धति या गंभीर सख्ती के साथ निपटा। मुआविया के सबसे महत्वपूर्ण तरीकों में से एक लोगों के बीच इमाम अली (अ) के लिए नफ़रत पैदा करना था, इस हद तक कि मुआविया के दौर में इमाम अली (अ) को कोसना और बुरा भला कहा जाता था और यह पारंपरिक तरीके से उमय्या के दौर में जारी रहा।[१३६]

अपनी सत्ता की नींव मज़बूत करने के बाद, मुआविया ने शियों पर दमन और दबाव की नीति शुरू की और अपने एजेंटों को अली (अ) के प्रेमियों के नाम दीवान से हटाने और बैतुल माल से उनकी आय काटने को कहा और उनकी हर बात और को स्वीकार करने से मना किया।[१३७] इसी तरह लोगों को भी धमकाया और डराया जो इमाम अली (अ) के गुणों (फ़जाएल)का ब्यान करते थे, इस हद तक कि कथाकारों (मुहद्देसीन) ने इमाम अली (अ) को "कुरैश का एक आदमी" और "पैगंबर के साथियों में से एक" और "अबू ज़ैनब" के रूप में संदर्भित किया।[१३८]

इमामत की दलीलें

50 हिजरी में अपने भाई की शहादत के बाद, इमाम हुसैन (अ) इमाम बने और 61 हिजरी की शुरुआत तक शियों के इमाम थे।[१३९] शिया विद्वानों ने इमामों की इमामत को साबित करने के लिए सामान्य दलीलें प्रस्तुत की है,[१४०] इसके अलावा शिया विद्वानों ने विशेष दलीलों से प्रत्येक इमाम के इमामत के लिए भी तर्क दिया है। शेख़ मुफ़ीद ने अपनी किताब अल इरशाद में हुसैन बिन अली (अ) के इमामत की कुछ हदीसों का उल्लेख किया है।[१४१] जैसे पैगंबर (स) ने फ़रमाया: (اِبنای هذانِ امامان قاما او قَعَدا) इब्नाइ हाज़ाने इमामाने क़ामा अव क़ादा ( अनुवाद: मेरे दोनों बच्चे (हसन व हुसैन) इमाम हैं चाहे खडे हो या बैठे हों)। इसी तरह इमाम अली (अ) ने अपनी शहादत के समय इमाम हसन (अ) की इमामत के बाद इमाम हुसैन (अ) की इमामत की ताकीद की,[१४२] और इसी तरह इमाम हसन (अ) ने अपने शहादत के समय, मुहम्मद बिन हनफ़िया को, अपने बाद इमाम हुसैन (अ) के इमाम हुने की ख़बर दी।[१४३] शेख़ मुफ़ीद ने इन हदीसों के माध्यम से इमाम हुसैन (अ) की इमामत को साबित और निश्चित (कतई) माना है। उनके अनुसार, इमाम हुसैन (अ) का बा तक़वा होना और इमाम हसन (अ)की सुलह मेंं किये वादे के कारण, मुआविया की मृत्यु तक लोगों को अपने पास आमंत्रित नहीं किया, लेकिन मुआविया की मृत्यु के बाद, उन्होंने अपना मक़ाम और अपनी जाएगाह उन लोगों के लिए जो आगाह नहीं थे, उन्होंने स्पष्ट की।[१४४]

सूत्रों में कहा गया है कि 60 हिजरी में मदीना छोड़ने से पहले, इमाम हुसैन (अ) ने अपनी कुछ वसीयत और इमामत की जमा राशि का कुछ हिस्सा पैग़ंबर (स) की पत्नी उम्मे सलमा के पास छोड़ दी थी[१४५] और कुछ हिस्सा अपनी शहादत से पहले मुहर्रम के महीने में सन् 61 हिजरी में अपनी सबसे बड़ी बेटी फ़ातिमा[१४६] को दिया ताकि वह उन्हें इमाम सज्जाद (अ) के हवाले कर दें।

इमाम हसन (अ) की सुलह का पालन

मुआविया के शासनकाल के दौरान, इमाम हुसैन (अ) उस सुलह के प्रति वफ़ादार रहे[१४७] जो उनके भाई ने मुआविया के साथ की थी। और कुछ शियों के पत्र के जवाब में, जिन्होंने उनके नेतृत्व को स्वीकार करते हुए उमय्या के खिलाफ़ उठने की घोषणा की, इमाम ने उनके उत्तर में लिखा: मेरा राय ऐसी नहीं है। जब तक मुआविया ज़िंदा है ऐसा कोई क़दम न उठाऐं और अपने घरों में छिपे रहें और ऐसे काम करने से बचे जिससे शक हो। यदि वह मर जाता है और मैं जीवित रहता हूं, तो मैं अपनी राय तुम्हें लिखूंगा।[१४८]

मुआविया की कार्यों के खिलाफ मोर्चा संभालना

हालांकि इमाम हुसैन (अ) ने मुआविया के शासनकाल में उसके खिलाफ़ कुछ नहीं किया, लेकिन एक इतिहासकार रसूल जाफ़रियान के अनुसार, इमाम (अ) और मुआविया के बीच के सम्बंध और उनके बीच हुई बातचीत से पता चलता है कि इमाम हुसैन (अ) राजनीतिक रूप से, उन्होंने मुआविया की निश्चित वैधता (मशरुईयत कतई) को स्वीकार नहीं किया और इसे प्रस्तुत (तस्लीम) नहीं किया।[१४९] हुसैन बिन अली (अ) और मुआविया के बीच जिन अनगिनत पत्रों का आदान-प्रदान हुआ, उनमें से एक हैं। बहर हाल, ऐतिहासिक समाचारों से यह प्रतीत होता है कि मुआविया भी तीन ख़लीफ़ाओं की तरह, बाहरी तौर पर हुसैन बिन अली (अ) का सम्मान करता था और उन्हें महान मानता था।[१५०] और उसने अपने एजेंटों को आदेश दिया था कि रसूलुल्लाह (स) के बेटे की रुकावट न बनें और उनका अपमान करने से बचें।[१५१] मुआविया ने अपने बेटे यज़ीद को वसीयत के दौरान हुसैन (अ) के मक़ाम व मंजिलत पर भी ज़ोर दिया और उन्हें लोगों के बीच सबसे लोकप्रिय व्यक्ति माना[१५२] और उसने हुसैन (अ) के हारने पर उन्हें बख्शने का आदेश दिया, क्योंकि उसका बड़ा अधिकार (हक़) है।[१५३]

  • इमाम अली (अ) के साथियों के मारे जाने का विरोध

मुआविया का हुज्र बिन अदि, अम्र बिन हुमुक़ खाेज़ाई और अब्दुल्लाह बिन यहया हज़रमी जैसे लोगों को क़त्ल करवाना उन मामलों में से है जिसके कारण इमाम हुसैन (अ) का कड़ा विरोध हुआ।[१५४] और कई स्रोतों की रिपोर्टों के अनुसार, इमाम (अ) ने मुआविया को एक पत्र लिखा और इमाम अली (अ) के साथियों की हत्या की निंदा की, और मुआविया के कुछ अनुचित कार्यों को सूचीबद्ध करते हुए, उन्होंने उनकी आलोचना की और कहा: "मैं अपने लिए और अपने धर्म के लिए तुम्हारे साथ युद्ध (जिहाद) से बेहतर कुछ नहीं जानता" और इसी पत्र में लिखते हैं:"मैं इस उम्मत पर सब से बड़ा फ़ितना तेरा शासन (हुकूमत) है"[१५५]

यह भी वर्णित है कि जब हज यात्रा के दौरान मुआविया,[१५६] इमाम हुसैन (अ) से मिला, तो उनसे इमाम (अ) कहा: क्या तुमने सुना है कि हमने हुज्र और उसके साथियों और तुम्हारे पिता के शियों के साथ क्या किया? इमाम (अ) ने कहा: क्या किया? मुआविया ने कहा: हमने उन्हें मार डाला, उन्हें ढक दिया, उन पर नमाज़ पढ़ी और उन्हें दफ़्न कर दिया, हुसैन बिन अली (अ) ने कहा: लेकिन अगर हम तुम्हारे साथियों को क़त्ल कर दें, तो हम उन्हें कफ़न नहीं देगें, हम उन पर नमाज़ नहीं पढ़ेगें, और हम उन्हें दफ़्न भी नहीं करेंगे।[१५७]

  • यज़ीद को अपना उत्तराधिकारी बनाने पर आपत्ति

56 हिजरी में, सुलह समझौते के प्रावधानों के खिलाफ़ (किसी को युवराज और उत्तराधिकारी के रूप में नियुक्त नहीं करने के बारे में), मुआविया ने लोगों को अपने उत्तराधिकारी के रूप में यज़ीद के प्रति निष्ठा (बैअत) की शपथ लेने के लिए बुलाया।[१५८] लेकिन इमाम हुसैन (अ) सहित कुछ हस्तियों ने निष्ठा (बैअत) की शपथ लेने से इनकार कर दिया।[१५९] मुआविया मदीना गया ताकि इस शहर के बुज़ुर्गों को यज़ीद की हुकूमत और उत्तराधिकारी का हामी और तरफ़दार बना सके।[१६०] इमाम हुसैन (अ) ने उस सभा में मुआविया की निंदा की जिसमें मुआविया, इब्ने अब्बास और कुछ दरबारी और उमय्या परिवार मौजूद थे, और यज़ीद के स्वभाव का हवाला देते हुए, उन्होंने मुआविया को अपने उत्तराधिकारी की कोशिश करने से चेतावनी दी और अपनी मक़ाम और अधिकार (हक़) पर ज़ोर देते हुए, उन्होंने मुआविया के यज़ीद की बैअत और दोस्ती के तर्कों का खंडन किया।[१६१]

इसके अलावा, एक अन्य सभा में जहां आम जनता मौजूद थी, इमाम हुसैन (अ) ने यज़ीद की योग्यता के बारे में मुआविया के शब्दों के जवाब में खुद को व्यक्तिगत और पारिवारिक लेहाज़ से ख़ुद को खिलाफ़त के अधिक योग्य माना और यज़ीद को एक शराबी और हवा व हवस के पुजारी व्यक्ति के रूप में पेश किया।[१६२]

  • मेना में इमाम हुसैन का उपदेश
मूल लेख: मेना में इमाम हुसैन (अ) का उपेदश

मुआविया की मृत्यु से दो साल पहले सन् 58 हिजरी में, इमाम हुसैन (अ) ने मेना में एक विरोध उपदेश दिया।[१६३] इस समय, शियों पर मुआविया का दबाव अपने चरम पर पहुंच गया था।[१६४] इमाम हुसैन (अ) ने ٖइस उपदेश में अमीरुल मोमेनिन (अ) और अहले बैत (अ) की महानता (फ़ज़ीलतों) की गणना करते हुए और अम्र बिल मारूफ़ व नहीं अज़ मुन्कर और इस इस्लामी कर्तव्य के महत्व पर ज़ोर देते हुए, विद्वानों के कर्तव्य और अत्याचारियों के खिलाफ़ खड़े होने की ज़रूरत और विद्वानों की चुप्पी अत्याचारियों के खिलाफ़, के बारे में बयान किया।

यज़ीद के ख़िलाफ़त की प्रतिक्रिया

15 रजब 60 हिजरी को मुआविया की मृत्यु के बाद, यज़ीद सत्ता में आया[१६५] और कुछ रईसों से जिन्होंने उसकी बैअत नहीं की थी जिनमें इमाम हुसैन (अ) भी थे, इससे ज़ोर व ज़बरदस्ती से बैअत लेने को कहा।[१६६] लेकिन हुसैन (अ) ने निष्ठा की प्रतिज्ञा करने से इनकार कर दिया।[१६७] और अपने परिवार और साथियों के साथ 28 रजब को मदीना से मक्का के लिए रवाना हुए।[१६८] मक्का में, मक्का और उमरा तीर्थयात्रियों द्वारा उनका स्वागत किया गया था।[१६९] और वह इस शहर में चार महीने से अधिक समय तक रहे[१७०] (शाबान की तीसरी तारीख से लेकर ज़िल-हिज्जा की 8वीं तारीख तक)।इस समय के दौरान, कूफ़ा के शिया, जिन्हें अपने तीसरे इमाम (अ) के बैअत न करने के बारे में ख़बर मिल चुकी थी, इमाम (अ) को पत्र लिखा और उन्हें कूफ़ा आने के लिए आमंत्रित किया।[१७१] कूफ़ा के लोगों की सहानुभूति और उनके आह्वान की गंभीरता सुनिश्चित करने के लिए, हुसैन बिन अली (अ) ने मुस्लिम बिन अक़ील को वहाँँ के हालात से बा ख़बर करने के लिए कूफ़ा भेजा। लोगों के स्वागत और निष्ठा को देखने के बाद, मुस्लिम ने इमाम हुसैन (अ) को कूफ़ा बुलाया,[१७२] इमाम हुसैन (अ) अपने परिवार और साथियों के साथ, ज़िल हिज्जा की 8 तारीख को मक्का से कूफ़ा के लिए रवाना हुए।[१७३]

कुछ समाचार के अनुसार, इमाम हुसैन (अ) को मक्का में उन्हें मारने की साज़िश के अस्तित्व के बारे में पता चला तो इमाम (अ) मक्का की पवित्रता को बनाए रखने के लिए इस शहर को छोड़कर इराक़ चले गए।[१७४]

कर्बला की घटना

मूल लेख़: कर्बला की घटना
इमाम हुसैन (अ) ने फ़रमाया:

व अलल इस्लामे अस सलाम इज़ क़द बोलेअतिल उम्मतो बेराइन मिस्ला यज़ीद( अनुवाद: अगर उम्मत पर यज़ीद जैसा शासक हुकूमत करने लगे, तो इस्लाम का फ़ातिहा पढ़ा जा चुका है।)

इब्ने आसम कूफ़ी, अल फ़ोतूह, खंड 5, पृष्ठ 17

कर्बला की घटना, जिसके कारण हुसैन बिन अली (अ) और उनके साथियों की शहादत हुई, उनकी जीवनी का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है। कुछ समाचार के अनुसार, इमाम हुसैन (अ) को इराक़ जाने से पहले उनकी शहादत के बारे में पता था। यह घटना तब हुई जब उन्होंने यज़ीद के प्रति निष्ठा (बैअत) से इनकार कर दिया। हुसैन (अ) अपने परिवार और दोस्तों के साथ कूफ़ियों के निमंत्रण पर इस शहर में आए थे। ज़ू हस्म नामक क्षेत्र में, इमाम हुसैन (अ) का हुर बिन यज़ीद रियाही की सेना से सामना हुआ और उन्हेंं अपनी दिशा बदलनी पड़ी।[१७५]

अधिकांश स्रोतों के अनुसार, इमाम हुसैन (अ) दूसरी मुहर्रम को कर्बला पहुंचे,[१७६] और अगले दिन, उमर बिन साद की कमान के तहत कूफ़ा के लोगों में से 4,000 लोगों की एक सेना ने कर्बला में प्रवेश किया।[१७७] ऐतिहासिक रिपोर्टों के अनुसार, हुसैन बिन अली (अ) और उमरे साद के बीच कई बार बातचीत हुई थी।[१७८] लेकिन इब्ने ज़ियाद, या तो इमाम हुसैन (अ) यज़ीद की बैअत चाहता था या युद्ध।[१७९]

तासुआ (9 मुहर्रम) की शाम को उमर साद की सेना युद्ध के लिए तैयार थी लेकिन इमाम हुसैन (अ) ने उस रात ईश्वर से प्रार्थना (इबादत) करने के लिए विश्राम लिया।[१८०] आशूरा की रात को, इमाम (अ) ने अपने साथियों से बात की और उनसे बैअत (निष्ठा) उठा ली और उन्हें जाने को कहा। लेकिन उन्होंने इमाम (अ) की वफ़ादारी और समर्थन पर ज़ोर दिया।[१८१]

आशूरा की सुबह युद्ध शुरू हुआ और दोपहर तक हुसैन (अ) के कई साथी शहीद हो गए।[१८२] युद्ध के दौरान, कूफ़ा सेना के कमांडरों में से एक, हुर बिन यज़ीद, इमाम हुसैन (अ) के सेना में शामिल हो गए।[१८३] साथियों के मारे जाने के बाद इमाम (अ) के रिश्तेदार मैदान में गए, उनमें सबसे पहले अली अकबर थे[१८४] और वह भी एक के बाद एक शहीद होते गए। फिर हुसैन बिन अली (अ) ख़ुद मैदान में गए और 10 मुहर्रम की शाम को शहीद हो गए, और शिम्र बिन ज़िल जौशन[१८५] और एक नक़्ल के अनुसार सेनान बिन अनस[१८६] ने इमाम(अ) के सर को क़लम किया। हुसैन बिन अली (अ) के सर को उसी दिन इब्ने ज़ियाद के पास भेजा गया था।[१८७]

उमरे साद ने इब्ने ज़ियाद के आदेश के निष्पादन में, कुछ घोड़ों को हुसैन (अ) के शरीर पर दौड़ाने और उनकी हड्डियों को कुचलने का आदेश दिया।[१८८] महिलाओं, बच्चों और इमाम सज्जाद (अ) जो उन दिनों बीमार थे, को बंदी बना लिया गया और कूफ़ा और फिर शाम भेज दिया गया।[१८९] इमाम हुसैन (अ) और उनके 72 साथियों[१९०] के शरीर को 11 वीं[१९१] या 13 वीं मुहर्रम को बनी असद के एक समूह द्वारा और एक नक़्ल के अनुसार इमाम सज्जाद (अ) की उपस्थिति में शहादत के एक ही स्थान पर दफ़नाया गया था।[१९२]

दृष्टिकोण और निहितार्थ

मूल लेख: इमाम हुसैन (अ) का क़याम

इमाम हुसैन (अ) के मदीना से मक्का और वहां से कूफ़ा जाने और कर्बला में उमर साद की सेना के साथ युद्ध के बारे में अलग-अलग विचार हैं। मुहम्मद इसफंदियारी के अनुसार, सबसे प्रसिद्ध मत यह है कि आंदोलन से हुसैन बिन अली का लक्ष्य शहादत था। इस मत के कई समर्थक हैं, जिनमें लुतफ़ुल्लाह साफी, मुर्तज़ा मुतह्हरी, सय्यद मोहसिन अमीन और अली शरियती[१९३] शामिल हैं। एक अन्य दृष्टिकोण के आधार पर, इमाम हुसैन (अ) सरकार बनाने के लिए आंदोलन किया। सैय्यद मुर्तज़ा[१९४] और सालेही नजफ़ाबादी, ने किताब शहीदे जावेद में इसी दृष्टिकोण का वर्णन किया है।[१९५] सेहती सर्दरुदी के अनुसार, शेख़ मुफ़ीद, शेख़ तूसी, सय्यद इब्ने ताउस और अल्लामा मजलिसी जैसे विद्वान इस दृष्टिकोण के विरोधी हैं।[१९६] अन्य, जैसे शेख़ अली पनाह इश्तेहारदी, ने शियों के तीसरे इमाम (अ) के इस कार्य को न आंदोलन कहा है और न युद्ध, बल्कि केवल जान बचाना माना है।[१९७]

इमाम हुसैन (अ) के विद्रोह ने कई समूहों को जागृत किया और उनकी शहादत के तुरंत बाद, क्रांतिकारी और विरोध आंदोलन शुरू हुए और कई वर्षों तक जारी रहे। पहला विरोध अब्दुल्ला बिन अफ़ीफ़[१९८] का इब्ने ज़ियाद के साथ टकराव था। तव्वाबीन का आंदोलन, मुख़्तार का आंदोलन, ज़ैद बिन अली का आंदोलन और यहिया बिन ज़ैद का आंदोलन भी उनमें से एक है। इसके अलावा, उमावियों के खिलाफ़ अबू मुस्लिम ख़ोरासानी के नेतृत्व में काले कपड़े पहने लोगों का आंदोलन और इस आंदोलन में या ला सारातिल हुसैन (अ) के नारे का भी इस्तेमाल किया गया था।[१९९] इस आंदोलन के कारण उमावियों का पतन हुआ। ईरान की इस्लामी क्रांति भी इमाम हुसैन (अ) के आंदोलन से प्रेरित थी और इमाम ख़ुमैनी के अनुसार, "अगर यह शोक सभा और उपदेश नहीं होते तो हमारा देश नहीं जीता होता, सभी इमाम हुसैन (अ) के परचम के नीचे खड़े हुए और आंदोलन किया।[२००]" सार्वजनिक संस्कृति के क्षेत्र में, मुसलमान और यहां तक ​​कि अन्य धर्मों के अनुयायी भी हुसैन बिन अली (अ) को बलिदान, गैर-उत्पीड़न, स्वतंत्रता, मूल्यों की रक्षा और सही मांग के प्रतीक और मॉडल के रूप में मानते हैं।[२०१]

महानता व विशेषताऐं

  • ज़ाहिरी औसाफ़

अधिकांश हदीसी, ऐतिहासिक और रेजाली स्रोतों में, पैग़म्बर (स) और इमाम हुसैन (अ) की समानता का उल्लेख किया गया है[२०२] और एक नक़्ल के अनुसार उन्हें पैग़ंबर (स) से सबसे अधिक समान व्यक्ति माना जाता है।[२०३] और इमाम हुसैन (अ) के बारे में कहा गया है कि ख़ज़ का लेबास और अम्मामा पहनते थे[२०४] और अपने बालों और दाढ़ी पर ख़ेज़ाब भी करते थे।[२०५]

हरम ए इमाम हुसैन (अ) के एक द्वार पर लिखा (अस्सलामो अलैका या सय्यद शबाबे अहलिल जन्ना)
  • पैगंबर (स) की ज़बानी

पैगंबर (स) की कई रिवायत इमाम हुसैन (अ) की फ़ज़ीलत में नक़्ल हुई हैं जैसे:

  • हसन और हुसैन स्वर्ग के जवानों के सरदार हैं।[२०६]
  • आकाश के दाहिनी ओर लिखा है "हुसैन मार्गदर्शन के दीपक औेर मुक्ति के जहाज़ है"।
  • हुसैन मुझ से है और मैं हुसैन से हूं।[२०७]
  • जिसने इन दोनों (हसन और हुसैन) से मुहब्बत की उसने मुझ से मुहब्बत की और जो इन दोनों से दुश्मनी रखता है वह मुझसे दुश्मनी रखता है।[२०८]
  • शहादत की भविष्यवाणी

हुसैन बिन अली (अ) की शहादत की भविष्यवाणी के बारे में कई रिवायत पाई जाती हैं।[२०९] जैसे पैगंबर (स) से वर्णित हदीसे लौह में इसका उल्लेख है। ख़ुदा ने हुसैन को शहादत से नवाज़ा और उन्हें बेहतरीन शहीद बनाया।[२१०] अल्लामा मजलिसी ने बिहारुल अनवार किताब के खंड 44 के अध्याय 30 में, वर्णन किया है कि अल्लाह ने हज़रत आदम, हज़रत नूह, हज़रत इब्राहिम, हज़रत ज़करिया और हज़रत मुहम्मद (स) सहित अपने कुछ नबियों को हुसैन (अ) की शहादत की खबर दी। और इन अम्बिया ने इमाम हुसैन (अ) पर गिरया भी किया।[२११] यह भी वर्णित है कि अमीरुल मोमेनीन (अ) सिफ़्फ़ीन के रास्ते में, जब वह कर्बला पहुंचे, तो उन्होंने अपनी उंगली से एक जगह की ओर इशारा किया और कहा: यह वह जगह है जहां उनका (इमाम हुसैन (अ)) का खून बहाया जाएगा।[२१२] शेख़ सदूक़ ने अपनी किताब अमाली में वर्णन किया है कि हज़रत ने कर्बला की भूमि की कुछ मिट्टी ली और उसे सूंघा और कहा: तुम एक अद्भुत मिट्टी हो, और तुम्हारे समूह बिना गिनती के स्वर्ग में प्रवेश करेंगे।[२१३]

  • चमत्कार (एजाज़ व करामात)

कुछ रिवायतों में, इमाम हुसैन (अ) की विशिष्ट विशेषताओं को सूचीबद्ध किया गया है, जैसे कि यह तथ्य कि उन्होंने पैग़ंबर (स) की उंगली से चमत्कारिक रूप से दूध पिया[२१४] और फ़ितरुस नाम के टूटे पंख वाले फ़रिश्ते को उनके आशीर्वाद से निजात मिली। उसके बाद, फ़ितरुस को तीर्थयात्रियों को सलाम पहुंचाने का कार्य सौंपा गया।[२१५] हदीसों में यह भी उल्लेख किया गया है कि ईश्वर ने हुसैन (अ) की तुर्बत में शेफ़ा और उनकी क़ब्र के पास (क़ुब्बे के नीचे) की हुई दुआ का क़बूल होना क़रार दिया है।[२१६] ख़्साइस ए हुसैनिया किताब में इमाम हुसैन (अ) की 300 विशेषताओं को सूचीबद्ध किया है।[२१७]

  • नैतिक विशेषताएं

वह ग़रीबों के साथ बैठा करते और उनके निमंत्रण को स्वीकार किया करते और उनके साथ खाया खाते और उन्हें अपने घर बुलाया करते और जो भी घर में होता उन्हें दे दिया करते।[२१८] एक दिन किसी ज़रूरतमंद ने उनसे मदद मांगी। इमाम नमाज़ पढ़ रहे थे इमाम ने नमाज़ जल्दी ख़त्म की और जो कुछ उनके पास था उसे दे दिया।[२१९]

इमाम (अ) अपने ग़ुलामों और कनीज़ों को उनके अच्छे व्यवहार के बदले में मुक्त (आज़ाद) कर देते थे। ऐसा कहा गया है कि उन्होंने एक ग़ुलाम कनीज़ को मुक्त (आज़ाद) किया, जिसे मुआविया ने बहुत सारी संपत्ति और कपड़ों के साथ उपहार के रूप में भेजा था, जिसके बदले उसने (कनीज़) ने क़ुरआन की आयतें और दुनिया के अंत और मनुष्यों की मृत्यु के बारे में एक कविता पढ़ीं, तो इमाम (अ) ने उसे धन दे कर मुक्त कर दिया।[२२०] इसी तरह, एक दिन एक कनीज़ ने उन्हें फूलों का गुलदस्ता भेंट किया। आप ने उस कनीज़ को मुक्त कर दिया। लोगों ने कहा कि आपने उसे सिर्फ फूलों के गुलदस्ते के बदले मुक्त किया? इमाम हुसैन (अ) ने आयत का हवाला देते हुए कहा: «و اذا حیّیتم بتحیّة فحیّوا بأحسن منها أو ردّوها»[२२१] अनुवाद: जब तुम्हें नमस्कार (अच्छा कार्य) किया जाए तो उससे अच्छा उत्तर दो। या (कम से कम) उसी तरह उत्तर दो। उन्होंने कहा: अल्लाह ने हमें इस तरह शिष्टाचार (अदब) सिखाया है।[२२२] इमाम हुसैन (अ) बहुत दयावान थे और अपनी उदारता के लिए जाने जाते थे।[२२३] लेकिन लोगों की सहायता में, इमाम हसन (अ) के सम्मान की खातिर कोशिश करते अपने भाई की तुलना में दूसरों की थोड़ी कम मदद करें।[२२४] सूत्रों में बताया गया है कि वह 25 बार पैदल ही हज पर गए थे।[२२५]

शोक और तीर्थ

मूल लेख: मुहर्रम की अज़ादारी

शिया (और कभी-कभी ग़ैर-शिया) मुहर्रम के महीने में इमाम हुसैन (अ) और कर्बला के शहीदों का शोक मनाते हैं। शियों के यहां इस शोक के लिए अनुष्ठान हैं, जिनमें से सबसे आम नौहा पढ़ना, मातम करना, ताज़िया उठाना, शबीह बनाना, और ज़ियारतें पढ़ना जैसे ज़ियारते आशूरा, ज़ियारते वारेसा और ज़ियारत नाहिया मुक़द्देसा का अकेले और सामूहिक तौर से पढ़ना।[२२६] आशूरा के बाद से ही इमाम हुसैन (अ) के लिए शोक मनाना शुरू हो गया था।[२२७] एक रिवायत के अनुसार शाम में कर्बला के बंदियों ने बनी हाशिम की महिलाओं ने काले कपड़े पहन कर कई दिनों तक शोक मनाया।[२२८] शिया सरकारों के सत्ता में आने के बाद और शियों से दबाव हटा लिए जाने के बाद शोक आधिकारिक हो गया।[२२९]

ऐतिहासिक और हदीस समाचार के अनुसार, शिया इमामों ने हुसैन बिन अली (अ) के शोक में शोक और रोने को विशेष महत्व दिया है और शियों को ऐसा करने और आशूरा के शोक के कार्य के हमेशा करने पर ज़ोर दिया है।[२३०]

  • ज़ियारते इमाम हुसैन (अ)
मूल लेख: ज़ियारते इमाम हुसैन (अ)

मासूमीन की हदीसों में इमाम हुसैन (अ) की ज़ियारत पर बहुत ज़ोर दिया गया है और इसे सर्वोच्च और सबसे पुण्य कार्यों में से एक माना जाता है[२३१] और हदीसों के एक समूह के अनुसार, इसका पुण्य (सवाब) हज और उमराह के बराबर है।[२३२]

ज़ियारतों की व्यापक पुस्तकों में, कई पूर्ण तीर्थ (ज़ियारते मुतलेका) जो किसी भी समय पढ़ी जा सकती हैं[२३३] और कई विशेष ज़ियारत जो विशिष्ट समय पर पढ़ी जाती हैं।[२३४] इमाम हुसैन (अ) के लिए एकत्र की गई हैं। ज़ियारते आशूरा , ज़ियारते वारिसा, ज़ियारत नाहिया मुक़द्देसा, इन ज़ियारतों में सब से प्रसिद्ध हैं।

अरबाईने हुसैनी

मूल लेख: अरबईने हुसैनी, ज़ियारते अरबईन, अरबाईन की यात्रा

इमाम हुसैन (अ) की शहादत के चालीस दिन बाद, अरबाईने हुसैनी या अरबाईन दिवस कहा जाता है, बहुत सारे शिया, इमाम हुसैन (अ) की ज़ियारत के लिए उनके हरम जाते हैं। ऐतिहासिक नक़्ल के अनुसार जाबिर बिन अब्दुल्लाह अंसारी, इस दिन इमाम हुसैन (अ) की क़ब्र पर जाने वाले पहले तीर्थयात्री थे।[२३५] किताब लोहूफ़ के अनुसार, कर्बला के क़ैदी भी उसी वर्ष 61 हिजरी में सीरिया से मदीना वापस जाने के रास्ते में अरबाईन के दिन कर्बला के शहीदों की ज़ियारत के लिए गए थे।[२३६]

शिया, अरबाईन की यात्रा की विशेष सिफ़ारिश के कारण, विशेष रूप से इराक़ के निवासी हर साल अलग-अलग स्थानों से कर्बला आते हैं। यह यात्रा, जो अक्सर पैदल की जाती है, दुनिया के सबसे भीड़भाड़ वाले मार्चों में से एक है। समाचार सूत्रों के अनुसार, 2018 में। इस समारोह में 18 मिलियन से अधिक तीर्थयात्रियों ने भाग लिया।[२३७]

रौज़ा व हाएरे हुसैनी

मुल लेख: हाएरे हुसैनी

इमाम हुसैन (अ) के हरम के क्षेत्र को हाएरे हुसैनी कहा जाता है। हाएर के क्षेत्र की विशेष फ़ज़ीलत और फ़िक़ही अहकाम हैं, और यात्री इसमें अपनी नमाज़ पूरी पढ़ सकते हैं।[२३८] हाएर के सटीक क्षेत्र के बारे में कई मत पाए जाते हैं, कहते हैं कि न्यूनतम क्षेत्र इमाम हुसैन (अ) की क़ब्र से 11 मीटर की त्रिज्या वाला क्षेत्र है, जो फ़जीलत का उच्चतम स्तर है।[२३९]

हरम ए इमाम हुसैन (अ) के गुंबद पर लगा लाल परचम ख़ून ख़्वाही की निशानी

[२४०]

  • इमाम हुसैन (अ) का रौज़ा
मूल लेख: इमाम हुसैन (अ) का रौज़ा, इमाम हुसैन (अ) के रौज़ा का विनाश

उपलब्ध समाचार के अनुसार, हुसैन बिन अली (अ) के हरम की पहली इमारत मुख़्तार सक़फ़ी के समय और उनके आदेश से बनाई गई थी, और उस तिथि से अब तक कई बार हरम की इमारत का नवीनीकरण और विस्तार किया गया है।[२४१] कुछ अब्बासी[२४२] और वहाबी[२४३] ख़लीफ़ाओं के हाथों इमाम हुसैन (अ) की दरगाह को कई बार नष्ट किया गया। उन्हीं में से एक मुतवक्किल अब्बासी है जिस ने हायर की ज़मीन को जोतने और मकबरे पर पानी बंद करने का आदेश दिया।[२४४]

इमाम हुसैन (अ) की आध्यात्मिक विरासत

कई हदीसी और ऐतिहासिक स्रोतों में, हुसैन बिन अली (अ) की आध्यात्मिक विरासत को जैसे उनके कथन, दुआओँ, पत्रों, कविताओं, उपदेशों और उनकी वसीयत को वर्णित किया गया है। इन सभी को अज़ीज़ुल्लाह अतारदी द्वारा लिखी गई किताब मुसनद अल इमाम अल शहीद और मौसूआ कलेमातिल इमाम अल-हुसैन किताब में वर्णित किया गया है।

कथन: मुआविया के शासनकाल के दौरान राजनीतिक परिस्थितियों के कारण, इमाम हुसैन (अ) से बहुत रिवायत नक़्ल नहीं हुई हैं[२४५] थे और इमाम (अ) द्वारा सुनाए गए अधिकांश कथन उनकी मदीना से कर्बला की यात्रा के दौरान थे।[२४६] अल्लामा तेहरानी का मानना ​​है कि उमय्यों के दबाव के कारण लोग इमाम हसन और इमाम हुसैन (अ) के पास कम आया करते थे या यह कि उनके द्वारा नक़्ल रिवायात सूत्रधार के डर और भय के कारण खो गए और अगली पीढ़ियों तक प्रसारित नहीं हो पाए।[२४७] इस्लामी स्रोतों में तीसरे इमाम के जो शब्द (कथन) मिलते हैं वह एतेक़ाद, अहकाम, अख़्लाक़ जैसे विषयों पर आधारित हैं।[२४८]

दुआ: मुसनद अल-इमाम अल-शहीद किताब में आपसे लगभग 20 दुआएँ और मुनाजात वर्णित हुई हैं। इन प्रार्थनाओं में सबसे प्रसिद्ध अरफ़े की दुआ है, जो अराफ़े के दिन अरफ़ात के रेगिस्तान में पढ़ी जाती थी।[२४९]

कविताएं: कविताओं का श्रेय इमाम हुसैन (अ) को दिया गया है। मोहम्मद सादिक़ करबासी ने इन कविताओं को "दीवान अल-इमाम अल-हुसैन" पुस्तक में दो खंडों में एकत्र किया और एक वृत्तचित्र और साहित्यिक दृष्टिकोण से उनकी जांच की।[२५०]

उपदेश और वसीयत: कुछ स्रोतों में, मेना[२५१] में इमाम हुसैन (अ) के उपदेश और आशूरा[२५२] के दिन के उपदेश और साथ ही उनके भाई मुहम्मद हनफ़िया को उनकी लिखित वसीयत, जिसमें उन्होंने अपने आंदोलन के उद्देश्य की व्याख्या की है,[२५३] का वर्णन किया गया है।

पत्र: मकातिब अल-आइम्मा पुस्तक में हुसैन बिन अली (अ) के 27 पत्र को एकत्र किए गए हैं।[२५४] इनमें से कुछ पत्र मुआविया को संबोधित हैं और दूसरा भाग अलग-अलग लोगों को और विभिन्न विषयों पर संबोधित किया गया है।

कुछ प्रसिद्ध कहावतें

  • यदि आपका कोई धर्म नहीं है और आप क़यामत के दिन से नहीं डरते हैं, तो इस दुनिया में आज़ाद हो जाइए।[२५५]
  • अपमान के साथ जीवन की तुलना में गरिमा के साथ मृत्यु बेहतर है।[२५६]
  • लोग दुनिया के ग़ुलाम हैं और उनका धर्म ज़बानी है। जब तक जीवन उनकी इच्छा के अनुसार है, तब तक वह धर्म का पालन करते हैं, लेकिन जब उनकी परीक्षा होती है, तो धार्मिक लोग कम होते हैं।[२५७]
  • मैं नशे, भ्रष्टाचार और अत्याचार के कारण नहीं बल्कि अपने पूर्वज मुहम्मद (स) के राष्ट्र (उम्मत) को सुधारने के लिए खड़ा हुआ। मैं भलाई का हुक्म देना चाहता हूँ और बुराई से रोकना चाहता हूँ।[२५८]
  • लोगों को आपकी ज़रूरत परमेश्वर के आशीषों (नेअमतों) में से एक हैं; उन आशीषों से न थकें और नाराज़ न हों वरना आशीष (नेअमत) दण्ड (निक़मत) में बदल जाती हैं।[२५९]
  • जो कोई परमेश्वर की अवज्ञा करके कुछ प्राप्त करना चाहता है, वह शीघ्र ही वह खो देगा जिसकी वह आशा करता है और जिस से वह डरता है, उसमें फँस जाएगा।[२६०]

मोनोग्राफ़

मूल लेख: आशूरा अध्ययन

हुसैन बिन अली (अ) के व्यक्तित्व और जीवन के बारे में विश्वकोश, जीवनी, मृत्युलेख (मक़तल) और विश्लेषणात्मक इतिहास के रूप में लिखे गए हैं, चालीस से अधिक पुस्तकों और लेखों और विषयों पर जिन्हें "किताब शनासी इमाम हुसैन" के रुप मेंं पेश किया गया है।[२६१] जैसे "किताब शनासी इख्तेसासी इमाम हुसैन" सहित, 1428 कार्यों को प्रकाशन विनिर्देशों के साथ नामित किया गया है।[२६२] आग़ा बुज़ुर्ग़ तेहरानी ने अल-ज़रीया किताब में इस बारे में 985 पुस्तकों को भी पेश किया।[२६३]

मुसनद अल-इमाम अल-शहीद जिसमें इमाम हुसैन (अ) के कथनों का संग्रह है।

इस क्षेत्र में कुछ सबसे महत्वपूर्ण कार्य हैं:

विश्वकोश:

  • मोहम्मद रय शहरी द्वारा लिखित दानिश नामे इमाम हुसैन, 14 खंडों में।
  • मोहम्मद सादिक़ करबासी द्वारा लिखित दाएरतुल मआरिफ़ अल हुसैनिया, 2008 तक। 90 खंड प्रकाशित हो चुके हैं।[२६४]
  • फरहंगे आशूरा जवाद मुहद्दसी द्वारा लिखित।

जीवनी:

  • हयात अल इमाम अल-हुसैन 3 खंडों में बाक़िर शरीफ़ क़र्शी द्वारा लिखित।
  • इब्ने अदीम द्वारा लिखित किताब इमाम अल-हुसैन (अ) का अनुवाद (मृत्यु 660 हिजरी) एक खंड में। यह पुस्तक दस-खंडों के संग्रह "बग़िया अल-तालिब फी तारिख़ हलब" का एक अंश है जिसे अब्दुल अज़ीज़ तबातबाई द्वारा संकलित और प्रकाशित किया गया था।
  • इब्ने साद की किताब "अल-तबक़ात अल-कुब्रा" में इमाम हुसैन से संबंधित खंड, जो "तर्जुमा इमाम हुसैन व मक़तलोहु" नामक एक स्वतंत्र पुस्तक में प्रकाशित हुआ था।
  • इब्ने असाकिर द्वारा "तारीख़ मदीना दमिश्क़" पुस्तक में इमाम हुसैन से संबंधित खंड, जिसे स्वतंत्र रूप से " तर्जुमा इमाम अल-हुसैन मिन तारीख़ मदीना दमिश्क़ " शीर्षक के तहत प्रकाशित किया गया था।
  • सैय्यद हाशिम रसूली महल्लाती द्वारा ज़िन्दगानी इमाम हुसैन।

मक़तल:

कोई भी लिखित समाचार जिसमें इतिहास के किसी प्रमुख व्यक्ति की हत्या या शहादत की जानकारी हो, उसे मक़तल कहते हैं।[२६५] शियों के तीसरे इमाम के बारे में अरबी में लिखा गया पहला मक़्तल अबू मख़नफ़ द्वारा रचित मक़्तले अल-हुसैन है, जिसे दूसरी शताब्दी में लिखा गया था।[२६६] इमाम हुसैन (अ) के बारे में लिखा गया अन्य मक़तल:

ऐतिहासिक-विश्लेषणात्मक:

  • सय्यद जाफ़र शहीदी द्वारा लिखित पस अज़ पंजाह साल।
  • सालेही नजफाबादी द्वारा लिखित शहीदे जावेद।
  • मुर्तज़ा मुतह्हरी द्वारा हमासा ए हुसैनी।
  • मुहम्मद इब्राहीम आयती द्वारा लिखित बर्रसी तारीख़े आशूरा।

लेख:

हुसैन बिन अली (अ) के व्यक्तित्व और जीवन के बारे में कई लेख लिखे गए हैं। उनमें से कुछ हिस्से को एकत्र किया गया इसे दो पुस्तकों में (मजमूए मक़ालात कुंगरे मिल्ली हमासा ए हुसैनी) और (दरसात व बोहूस मोतमिर अल इमाम अल हुसैन) के रुप में प्रकाशित किया गया है।

संबंधित लेख

फ़ुटनोट

  1. शेख़ तूसी, मिस्बाहुल मुतहज्जद, 1411 हिजरी, पृष्ठ 826। मुफ़ीद, अल-इरशाद, 1413 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 27।
  2. यूसुफ़ी ग़र्वी, मौसुअतुत तारीख़ अल इस्लामी, 1417, खंड 3, पृष्ठ 130।
  3. अल-मुफ़ीद, अल-इरशद, 1413 हिजरी, खंड 1, पीपी. 166-171। इब्ने शहर आशूब, 1376 हिजरी, खंड 3, पृष्ठ 144।
  4. मजलिसी, बिहारुल अनवार, 1363, खंड 10, पृष्ठ 121।
  5. ज़हबी, तारीखिल -इस्लाम व वफियाति मशाहीर वल आलाम, 1409 हिजरी, खंड 3, पृष्ठ 485।
  6. इब्ने शहर आशोब, अल-मनाक़िब, 1379 हिजरी, खंड 3, पृष्ठ 168।
  7. इब्ने अब्दुल बर, अल-इस्तियाब फी मारेफ़तिल असहाब, 1412 हिजरी, खंड 3, पृष्ठ 939।
  8. तबरी, तारीख अल-उम्म व अल-मुलूक, 1387 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 165।
  9. तबरसी, ताजुल मवालीद, 1422 हिजरी, पृष्ठ 82।
  10. तबरी, तारीख़े तबरी, 2007, खंड 5, पृष्ठ 253: वर्ष 51; याकूबी, तारीख़े याकूबी, दार सादिर, खंड 2, पृष्ठ 231: वर्ष 52; मसऊदी, मुरुजुज़ ज़हब, 1409, खंड 3, पृष्ठ 188: वर्ष 53।
  11. इब्ने शोबा हरानी, तोहफ़ुल ओक़ूल, 1404, पृष्ठ 68।
  12. तबरी, तारीख अल-उम्म व अल-मुलूक, 1387, खंड 5, पृष्ठ 339।
  13. बालाज़री, अंसाबुल अशराफ, 1417, खंड 3, पृष्ठ 160; शेख़ मुफ़ीद, अल-इरशद, 1413, खंड 2, पृष्ठ 34।
  14. तबरी, तारीख़ अल उम्म व अल मुलूक, 1387, खंड 5, पृष्ठ 381।
  15. सिब्ते इब्ने जौज़ी, तज़केरतुल ख़वास, 1418, पृष्ठ 220।
  16. मसऊदी, मुरुजुज़ ज़हब, 1409, खंड 3, पृष्ठ 54।
  17. शेख़ मुफ़ीद, अल-इरशाद, 1413, खंड 2, पृष्ठ 66।
  18. शेख़ मुफ़ीद, अल-इरशाद, 1413, खंड 2, पृष्ठ 84।
  19. शेख़ मुफीद, अल-इरशाद, 1413, खंड 2, पीपी। 90-91।
  20. शेख़ मुफ़ीद, अल-इरशाद, 1413, खंड 2, पीपी 112-95।
  21. शेख़ मुफ़ीद, अल-इरशाद, 1413 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 27।
  22. देखें: कुलैनी, अल-काफ़ी, 1362, खंड 1, पृष्ठ 287; मुस्लिम, सहीह मुस्लिम, 1423 हिजरी, खंड 15, पृष्ठ 190।
  23. शेख़ मुफ़ीद, अल-इरशाद, 1413, खंड 1, पृष्ठ 168।
  24. ज़मखशरी, अल-कश्शाफ़, 1415 हिजरी, आले-इमरान की आयत 61 के तहत; फ़ख़्रे राज़ी, अल-तफ़सीर अल-कबीर, 1405 हिजरी, सूरह आले-इमरान की आयत 61 के तहत।
  25. अहमद बिन हंबल, मुसनद अहमद, दार सादिर, खंड 1, पृष्ठ 331; इब्ने कसीर, तफ़सीर अल-क़ुरआन, 1419 हिजरी, खंड 3, पृष्ठ 799; शौकानी, फतहुल क़दीर, आलम अल-कुतुब, खंड 4, पृष्ठ 279।
  26. याक़ूबी, तारीख़े अल-याक़ूबी, दार सादिर, खंड 2, पृष्ठ 226; इब्ने साद, अल तबक़ातिल कुबरा, 1418, खंड 10, पृष्ठ 363।
  27. इब्ने साद, अल तबक़ातिल कुबरा, 1418, खंड 10, पीपी 414-416।
  28. इब्ने साद, अल तबक़ातिल कुबरा, 1418, खंड 10, पृष्ठ 395; इब्ने अबी शैबा, अल-मुस्न्नफ़, 1409 हिजरी, खंड 7, पृष्ठ 269।
  29. हाज मनोचेहरी, "हुसैन (अ), इमाम", पृष्ठ 681।
  30. हाज मनोचेहरी, "हुसैन (अ), इमाम", पृष्ठ 686।
  31. मुहद्दसी, फरहंगे आशूरा, 2014, पृष्ठ 372।
  32. होैज़ा और विश्वविद्यालय के अनुसंधान संस्थान का तारीख विभाग, तारीख़े तशिअ, 1390, पृष्ठ 21।
  33. हाज मनोचेहरी, "हुसैन (अ), इमाम", पृष्ठ 687।
  34. हाज मनोचेहरी, "हुसैन (अ), इमाम", पी. 689.
  35. हाज मनोचेहरी, "हुसैन (अ), इमाम", पी. 681; मुहद्दसी, फरहंगे आशूरा, 2014, पृष्ठ 508।
  36. मुस्लिम, सहीह मुस्लिम, 1423 हिजरी, खंड 15, पृष्ठ 190; इब्ने साद, अल तबक़ातुल कुबरा, 1418, खंड 10, पीपी। 410-376; बलाज़री, अंसाबुल-अशराफ़, 1417 हिजरी, खंड 3, पृष्ठ 7; इब्ने कसीर, तफ़सीर अल-क़ु्रआन, 1419 हिजरी, खंड 3, पृष्ठ 799; यह भी देखें: हुसैनी शाहरूदी, "इमाम हुसैन (अ) और अशूरा सुन्नियों के दृष्टिकोण से"; अय्यूब, "सुन्नियों की हदीसों में इमाम हुसैन (अ) के फज़ाएल,।
  37. अय्यूब, "सुन्नियों की हदीसों में इमाम हुसैन (अ) के फज़ाएल।
  38. अबू बक्र बिन अरबी, अल-अवासिम मिनल-क़वासिम, अल-मकतब अल-सलफिया, पृष्ठ 232।
  39. इब्ने तैमिया, मिन्हाजुस सुन्ना अल-नबविया, 1406 हिजरी, खंड 4, पीपी. 531-530।
  40. इब्नेे ख़ल्दून, तारीखे इब्ने ख़ल्दून, दार अह्या अल-तोरास अल-अरबी, खंड 1, पृष्ठ 217।
  41. इब्ने ख़ल्दून, तारीख़ इब्ने ख़ल्दून, दार अह्या अल-तोरास अल-अरबी, खंड 1, पृष्ठ 216।
  42. आलूसी, रूहुल मआनी, 1415 हिजरी, खंड 13, पृष्ठ 228।
  43. अक़्क़ाद, अबुश-शोहदा, 1429 हिजरी, पृष्ठ 207।
  44. अक़्क़ाद, अबुल शोहदा, 1429 हिजरी, पृष्ठ 141।
  45. ताहा हुसैन, अली व बनूह, दारुल मआरिफ़, पृष्ठ 239।
  46. फ़रोख़, "तजदीद फ़िल मुस्लेमीन ला फ़िल इस्लाम", दार अल-किताब अल-अरबी, पृष्ठ 152।
  47. शेख़ मुफ़ीद, अल-इरशाद, 1413 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 27; अहमद इब्ने हंबल, अल-मुसनद, दार सादिर, खंड 1, पेज 98, 118.
  48. इब्ने शहर आशोब, अल-मनाक़िब, 1379 हिजरी, खंड 3, पृष्ठ 397; इब्ने साद, अल-तबक़ातुल कुबरा, खंड 10, पृष्ठ 244।
  49. इब्ने साद, अल-तबक़ातुल कुबरा, 1968, खंड 6, पृष्ठ 357; इब्ने असीर, असदुल ग़ाबा, बेरूत, खंड 2, पृष्ठ 10।
  50. इब्ने मंज़ूर, लेसानुल अरब, 1414 हिजरी, खंड 4, पृष्ठ 393; ज़ुबैदी, ताजुल-ऊरुस, 1414 हिजरी, खंड 7, पृष्ठ 4।
  51. इब्ने असाकिर, तारीख़े मदीना दमिश्क, 1415 हिजरी, खंड 13, पृष्ठ 171।
  52. इब्ने साद, तबक़ातुल कुबरा, 1418 हिजरी, खंड 10, पेज 244-239; मजलिसी, बिहारुल अनवार, 1363, खंड 39, पृष्ठ 63।
  53. मोहम्मदी रय शहरी, दानिश नामे इमाम हुसैन, 1388, खंड 1, पीपी 194-195।
  54. शेख़ मुफ़ीद, अल-इरशाद, 1414 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 27।
  55. शेख़ मुफीद, अल-इरशाद, 1413 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 27; इब्ने अबी शैबा, अल-मुसन्नफ़, 1409 हिजरी, खंड 8, पृष्ठ 65; इब्ने क़ुतैबा, अल-मआरिफ़, 1960, खंड 1, पृष्ठ 213।
  56. मुहद्दसी, फरहंगे आशूरा, 1393, पृष्ठ 39।
  57. इब्ने अबी सलज, तारीखे अल आइम्मा, 1406 हिजरी, पृष्ठ 28; इब्ने तल्हा शाफ़ेई, मतालिब अस सउल, 1402 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 374; इमाम हुसैन (अ) की उपाधियों की सूची के लिए देखें: इब्ने शहर आशोब, मनाक़िब आले अबी तालिब, 2005, खंड 4, पृष्ठ 86।
  58. इब्ने शहर आशोब, मनाक़िब आले अबी तालिब, 2005, खंड 4, पृष्ठ 86।
  59. देखें: हिमयरी, क़ुर्बुल असनाद, 1413 हिजरी, पीपी। 100-99; इब्ने क़ूलवैह, कामेलुज़ ज़ियारात, 1417 हिजरी, पीपी। 216-219; शेख़ तूसी, अमाली, 1414 हिजरी, पीपी। 49-50।
  60. इब्ने क़ूलवैह, कामेलुज़ ज़ियारात, 1356 हिजरी, पृष्ठ 176।
  61. बलाज़री, अंसाबुल अशराफ, 1417 हिजरी, खंड 3, पृष्ठ 142; शेख़ मुफ़ीद, अल-इरशाद, 1413 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 127; मिक़रीज़ी, इमताउल-अस्मा, 1420 हिजरी, खंड 6, पृष्ठ 19।
  62. मोहम्मदी रय शहरी, दानिश नामे इमाम हुसैन, 1388, खंड 1, पेज 474-477।
  63. याकूबी, तारीखे अल याक़ूबी, बेैरूत, खंड 2, पृष्ठ 246; डोलाबी, अल-ज़रिया अल-ताहिरा, 1407 हिजरी, पेज 102, 121; तबरी, तारीखे तबरी, 1962, खंड 2, पृष्ठ 555; शेख़ मुफ़ीद, अल-इरशाद, 1414 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 27।
  64. कुलैनी, अल-काफ़ी, 1365, खंड 1, पृष्ठ 463; शेख़ तूसी, तहज़ीबुल अहकाम, 1401 हिजरी, खंड 6, पृष्ठ 41; इब्ने अब्दुल बर, अल-इस्तियाब, 1412 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 392।
  65. इब्ने अल-मशहदी, अल-मज़ार [अल-कबीर], 1419 हिजरी, पृष्ठ 397; शेख़ तूसी, मिस्बाहुल मुतहज्जद, 1411 हिजरी, पीपी। 826, 828; सय्यद बिन ताउस, इकबालुल आमाल, 1367, पीपी। 689-690।
  66. शेख़ मुफ़ीद, अल-इरशाद, 1413 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 27।
  67. शेख़ मुफ़ीद, अल-इरशाद, 1413 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 129; मिक़रीज़ी, इमता उल-अस्मा, 1420 हिजरी, खंड 12, पृष्ठ 237; इब्ने कसीर, अल-बेदाया व अल-नेहाया, दार अल-फ़िक्र, खंड 6, पृष्ठ 230।
  68. कूलैनी, अल-काफ़ी, 1362, खंड 1, पृष्ठ 465।
  69. शेख़ मुफ़ीद, अल-इरशाद, 1413 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 129; मिक़रीज़ी, इमता उल-अस्मा, 1420 हिजरी, खंड 12, पृष्ठ 237; इब्ने कसीर, अल-बेदाया व अल-नेहाया, दार अल-फ़िक्र, खंड 6, पृष्ठ 230।
  70. समावी, अबसारुल ऐन, 1419 हिजरी, पृष्ठ.93।
  71. तिर्मिज़ी, सुनन तिर्मिज़ी, 1403 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 323।
  72. अहमद इब्ने हंबल, अल-मुसनद, बेैरूत, खंड 5, पृष्ठ 354; तिर्मिज़ी, सुनन तिर्मिज़ी, 1403 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 322; इब्ने हब्बान, साहिह, 1993, खंड 13, पृष्ठ 402; हाकिम निशापुरी, अल-मुस्तद्रक, 1406 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 287।
  73. इब्ने क़ूलवैह क़ुम्मी, कामेलुज़ ज़ियारात, 1356 हिजरी, पृष्ठ.50।
  74. इब्ने साद, अल तबक़ातुल कुबरा, 1968, खंड 6, पीपी. 406-407; शेख़ सदूक़, ओयून अख़बार अल-रजा, 1363, खंड 1, पृष्ठ 85; शेख़ मुफ़ीद, अल-इरशाद, 1413 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 168।
  75. इब्ने साद, अल तबक़ातुल कुबरा, 1418, खंड 10, पृष्ठ 369।
  76. मोहम्मदी रय शहरी, दानिश नामे इमाम हुसैन, 2008, खंड 2, पृष्ठ 325।
  77. इब्ने साद, अल तबक़ातुल कुबरा, 1418, खंड 10, पृष्ठ 394; ज़हबी, तारीख अल-इस्लाम, 1993, खंड 5, पृष्ठ 100; इब्ने शहर आशोब, मनाक़िब आले अबी तालिब, 1379, खंड 4, पृष्ठ 40; बग़दादी, बग़दाद का इतिहास, 1412 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 152।
  78. इब्ने असाकिर,तारीख़े मदीना दमिश्क, 1415 हिजरी, खंड 14, पृष्ठ 175; सिब्ते इब्ने जौज़ी, तज़किरतुल ख़वास, 1418 हिजरी, पीपी 211-212।
  79. कूलैनी, अल-काफ़ी, 1365, खंड 8, पीपी। 206-207; इब्ने अबी अल-हदीद, शरहे नहजुल बलाग़ा, 1385-1387 हिजरी, खंड 8, पीपी 253-254।
  80. इब्ने खलदून, अल-एबर, 1401 हिजरी, खंड 2, पीपी। 573-574।
  81. तबरी, तारीख तबरी, 1387 हिजरी। खंड 4, पृष्ठ 269।
  82. इब्ने कुतैबा, अल-मआरिफ़, 1992, पृष्ठ 568; बलाज़री, फतुहुल बलदान, 1988, पृष्ठ 326; मुक़द्दसी, अल-बदा व अल-तारीख, अल मकतबा अल सक़ाफ़ा अल दीनिया, खंड 5, पृष्ठ 198।
  83. जाफ़र मुर्तज़ा, अल हयात अल सियासिया लिल इमाम अल-हसन, दार अल-सीरा, पृष्ठ 158।
  84. इब्ने क़ुतैबा, अल-इमामा व अल-सियासा, 1410, खंड 1, पृष्ठ 59; बालाज़री, अंसाबुल अशराफ़, 1417 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 558।
  85. मोहम्मदी रय शहरी, दानिश नामे इमाम हुसैन, 2008, खंड 2, पीपी 331-332।
  86. जाफ़र मुर्तज़ा, सहीह मिन सिरतिल इमाम अली (अ), 2008, पृष्ठ 313।
  87. सय्यद मुर्तज़ा, अल-शाफ़ी फी अल-इमामात, 1410 हिजरी, खंड 4, पृष्ठ 242।
  88. मजलिसी, बिहारुल अनवार, 1363, खंड 10, पृष्ठ 121।
  89. शेख़ मुफ़ीद, अल-जमल, 1413, पृष्ठ 348; ज़हबी, तारीख़े इस्लाम, 1409 हिजरी, खंड 3, पृष्ठ 485।
  90. नस्र बिन मोज़ाहिम, वक्अतुस सिफ़्फ़ीन, 1382 हिजरी, पीपी। 114-115।
  91. इब्ने आअसम, अल-फ़ुतुह, 1411, खंड 3, पृष्ठ 24; इब्ने शहर आशोब, अल-मनाक़िब, 1379 हिजरी, खंड 3, पृष्ठ 168।
  92. मजलिसी, बिहारुल अनवार, 1363, खंड 44, पृष्ठ 266।
  93. अरबली, कश्फ़ुल ग़ुम्मा, 1421 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 569; नहजुल बलाग़ा, सुबही सालेही द्वारा शोध, उपदेश 207, पृष्ठ 323।
  94. इब्ने अब्दुल बर, अल-इस्तियाब, 1412 हिजरी, खंड 3, पृष्ठ 939।
  95. तबरी, तारिख अल-उम्म व अल-मुलूक, 1387 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 147।
  96. इब्ने क़ूतैबा, अल-इमामात व अल-सियासह, 1410, खंड 1, पृष्ठ 181; शेख़ मुफ़ीद, अल-इरशाद, 1414 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 25।
  97. कूलैनी, अल-काफ़ी, 1362, खंड 3, पृष्ठ 220; बालाज़री, अंसाबुल-अशराफ, 1417 हिजरी, खंड 2, पीपी। 497-498।
  98. कूलैनी, अल-काफ़ी, 1362, खंड 1, पृष्ठ 291; इब्ने शहर आशोब, अल-मनाक़िब, 1379 हिजरी, खंड 3, पृष्ठ 401।
  99. इब्ने क़ूतैबा दीनवरी, अल इमामत व अल-सियासत, 1410 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 184।
  100. दीनवरी, अल-अख़बार अल-तवाल, 1368, पृष्ठ 221।
  101. शेख़ तूसी, एख़तियार मारेफ़तुर रिजाल, (रिजाल कशी), 1348, पृष्ठ 110।
  102. शेख़ तूसी, एख़तियार मारेफ़तुर रिजाल (रिजाल कशी), 1348, पृष्ठ 110।
  103. शेख़ मुफ़ीद, अल-इरशाद, 1413 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 32।
  104. इब्ने आसम, अल-फ़ुतुह, 1411, खंड 4, पृष्ठ 292; इब्ने शहर आशोब, अल-मनाक़िब, 1379, खंड 4, पृष्ठ 35।
  105. तबरी, तारीख अल-उम्म व अल-मुलूक, 1387 हिजरी., खंड 5, पृष्ठ 160; इब्ने असाकर, तारीखे मदीना दमिश्क, 1415 हिजरी, खंड 13, पृष्ठ 267।
  106. जाफ़रयान, हयाते फ़िक्री व सियासी इमामाने शिया, 2013, पीपी। 157-158।
  107. दीनवरी, अल-अख़बारुत तवाल, 1368, पृष्ठ 220।
  108. बलाज़री, अंसाबुल अशराफ़, 1417 हिजरी, खंड 3, पृष्ठ 150।
  109. दैनवरी, अल-अख़बारुत तवाल, 1368, पीपी। 221-222।
  110. तबरी, तारीख अल-उम्म व अल-मुलूक, 1387 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 165; इब्ने जौज़ी, अल-मुंतज़म, 1992, खंड 5, पृष्ठ 184।
  111. मुसअब बिन अब्दुल्ला, किताब नसब कुरैश, 1953 ई., खंड 1, पीपी. 57-59; बुख़ारी, सिर अल-सिलसिला अल-अलविया, 1381 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 30; शेख़ मुफीद, अल-इरशाद, 1413 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 135।
  112. तबरी, दलाईलुल -इमामाह, 1408 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 74; इब्ने शहर आशोब, मनाकिब आले अबी तालिब, 1379 हिजरी, खंड 4, पृष्ठ 77; इब्ने तल्हा शाफ़ेई, मतालिब अल सऊल, 1402 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 69।
  113. देखें: मुतह्हरी, इस्लाम और ईरान की म्युचुअल सर्विसेज, 1380, पीपी। 131-133; शरिअती, तशीअ अलवी व तशीअ सफ़वी, 1377, पृष्ठ 91; देहखुदा, देहखुदा शब्दकोश, 1377, प...; शहीदी, ज़िन्दगानी अली इब्निल हुसैन (अ), 1365, पृष्ठ 12।
  114. इस्फ़ाहानी, मक़ातिल अल-तालेबीईन, 1405 हिजरी, पृष्ठ 59; शेख़ मुफीद, अल-इरशाद, 1413 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 135।
  115. इब्ने कसीर, अल-बेदाया व अल-नेहाया, 1408 हिजरी, खंड 8, पृष्ठ 229।
  116. मुसअब बिन अब्दुल्ला, किताब नसबे कुरैश, 1953, खंड 1, पृष्ठ 59; तबरी, तारीख अल-उम्म व अल-मुलुक, 1387 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 468; बोखारी, सिर अल-सिलसिला अल अलविया, 1381 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 30।
  117. मुसअब बिन अब्दुल्ला, किताब नसबे कुरैश, 1953, पृष्ठ 57; याक़ूबी, तारीख़ अल याक़ूबी, बेैरूत, खंड 2, पीपी. 246-247; तबरी, तारीख अल-उम्म व अल-मुलुक, 1387 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 446।
  118. मिक़रीज़ी, इमता अल-अस्मा, 1420 हिजरी, खंड 6, पृष्ठ 269।
  119. तबरी, तारीख अल-उम्म व अल-मुलुक, 1387 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 446; इस्फ़ाहानी, मक़ातिल अल-तालेबीईन, दार अल-मरफ़ा, पृष्ठ 80।
  120. इस्फ़ाहानी, किताब अल-अग़ानी, 2013, खंड 21, पृष्ठ 78।
  121. इस्फ़ाहानी, किताब अल-अग़ानी, 2013, खंड 21, पृष्ठ 78।
  122. सिब्ते इब्ने जौज़ी, तज़किरतुल खवास, 1401 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 249।
  123. मुसअब बिन अब्दुल्ला, किताब नसबे कुरैश, 1953, खंड 1, पृष्ठ 59; शेख़ मुफ़ीद, अल-इरशाद, 1413 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 135; बैहकी, लोबाब अल-अंसाब व अल-अलक़ाब, 1410 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 349; इब्ने शहर आशोब, मनाक़िबे आल अबी तालिब, 1379 हिजरी, खंड 4, पीपी 113 और 77।
  124. मुसअब बिन अब्दुल्ला, किताब नसबे कुरैश, 1953, खंड 1, पृष्ठ 59; शेख़ मुफीद, अल-इरशाद, 1413 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 135।
  125. इब्ने फंदक़, लबाबुल अंसाब, 1385, पृष्ठ 355।
  126. वाएज़ काशफ़ी, रौज़ा अल-शाेहदा, 2013, पी. 484।
  127. इब्ने शहर आशोब, मनाक़िब आले अबी तालिब, रसूली महल्लाती द्वारा शोध, खंड 4, पृष्ठ 109; तबरी, दलाएलुल इमामात , 1408 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 74।
  128. इब्ने तल्हा शाफ़ेई, मतालिब अल-सऊल, 1402 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 69।
  129. इब्ने असाकर, तारीखे मदीनी दमिश्क, 1415 हिजरी, खंड 13, पृष्ठ 262।
  130. इब्ने कसीर, अल-बेदाया व अल-नेहाया, दार अल-फ़िक्र, खंड 5, पृष्ठ 338; सुयूती, तारीख अल ख़ुलफ़ा, 1425 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 149।
  131. तकूष, दौलते उमवियान, 2009, पृष्ठ 19।
  132. तकूष, दौलते उमवियान, 2009, पृष्ठ 19, कांधलवी द्वारा उद्धृत, हयात अल-सहाबा, खंड 3, पृष्ठ 63।
  133. नस्र बिन मुज़ाहम, वक़आ सिफ़्फीन, 1403, पीपी। 31-32।
  134. इब्ने हजर अस्कलानी, अल-एसाबा, 1415, खंड 1, पृष्ठ 64; इब्ने कसीर, अल-बेदाया व अल-नेहाया, दार अल-फ़िक्र, खंड 6, पृष्ठ 220।
  135. शेख़ मुफ़ीद, अल-इरशाद, 1413, खंड 2, पृष्ठ 14; इब्ने कसीर, अल-बेदाया व अल-नेहाया, दार अल-फ़िक्र, खंड 8, पृष्ठ 131।
  136. तक़ूष,दौलते उम्वियान, 2009, पीपी। 28-29।
  137. तबरसी, अल-इहतेजाज, 1403 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 295।
  138. इब्ने शहर आशोब, अल-मनाक़िब, 1379, खंड 2, पृष्ठ 351।
  139. साबेरी, तारीख़े फ़ेरक़ ए इस्लाम, 2008, खंड 1, पृष्ठ 181।
  140. एक उदाहरण के रूप में देखें: शेख़ सदू़क़, अल-एतेकादात, 1414 हिजरी, पृष्ठ 104; इब्ने बाबवैह क़ुम्मी, अल इमामत व तब्सेरा, 1363, पृष्ठ 104।
  141. शेख़ मुफ़ीद, अल-इरशाद, 1414 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 30।
  142. कुलैनी, अल-काफ़ी, 1362, खंड 1, पृष्ठ 297।
  143. कुलैनी, अल-काफ़ी, 1362, खंड 1, पृष्ठ 301।
  144. शेख़ मुफ़ीद, अल-इरशाद, 1414 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 31।
  145. कुलैनी, अल-काफ़ी, 1362, खंड 1, पृष्ठ 304।
  146. कुलैनी, अल-काफ़ी, 1362, खंड 1, पृष्ठ 291।
  147. शेख़ मुफ़ीद, अल-इरशाद, 1413 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 32; इब्ने शहर आशोब, मनाकिब आल अबी तालिब, 1379 हिजरी, खंड 4, पृष्ठ 87।
  148. दीनवरी, अल-अख़बार अल-तवाल, 1368, पृष्ठ 222; बलाज़री, अंसाबुल अशराफ़, 1417 हिजरी, खंड 3, पृष्ठ 152।
  149. जाफरयान, हयाते फ़िक्री व सेयासी इमामाने शिया, 2001, पृष्ठ 175।
  150. ज़हबी, "सिर आलाम अन-नबला", 1993, खंड 3, पृष्ठ 291।
  151. दीनवरी, अल-अख़बार अल-तवाल, 1368, पृष्ठ 224; काश्शी, रिज़ल अल-काश्शी, 1348, पृष्ठ 48।
  152. इब्ने साद, अल-बकात अल-कुबरा, 1418, खंड 10, पृष्ठ 441; तबरी, तारीख अल-उम्म व अल-मुलूक, 2007, खंड 5, पृष्ठ 322; इब्ने आसम कूफी, अल-फ़ुतूह, 1991, खंड 4, पीपी 349-350।
  153. तबरी, तारीख अल-उम्म व अल-मुलूक, 1387, खंड 5, पृष्ठ 322।
  154. दीनवरी, अल-अख़बार अल-तवाल, 1368, पीपी। 224-225; बलाज़री, अंसाब अल-अशराफ, 1417 हिजरी, खंड 5, पीपी. 120 और 121; इब्ने कुतैबा, अल-इमामा व अल-सियासा, 1410 हिजरी, खंड 1, पीपी. 202-204।
  155. बलाज़री, अंसाब अल-अशराफ, 1417 हिजरी, खंड 5, पीपी. 121 और 122; इब्ने साद, तबक़ात अल-कुबरा, 418 हिजरी, खंड 10, पृष्ठ 440; शेख़ तूसी, इख़्तेयार मारेफ़त अल-रिजाल (रिजल कश्शी), 1348, पृष्ठ.50; ज़हबी, तारीख़े इस्लाम, 1409 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 6; इब्ने असाकर, तारीख्ने मदीना दमिश्क, 1415, खंड 14, पृष्ठ 206।
  156. तबरसी, अल-इहतेजाज, 1403 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 296।
  157. याक़ूबी, तारीख़ अल-याक़ूबी, दार अल सादिर, खंड 2, पृष्ठ 231; शेख़ तूसी, इख़्तेयार मारेफ़त अल-रिजाल (रिजल कश्शी), 1348, पृष्ठ 48; एरबली, कश्फ़ अल-ग़ुम्मा फ़ी मारेफ़त अल-आइम्मा, 1421, खंड 1, पृष्ठ 574।
  158. इब्ने कसीर, अल-बेदाया व अल-नेहाया, दार अल-फ़िक्र, खंड 8, पृष्ठ 79।
  159. http://ensani.ir/fa/article/45732/
  160. इब्ने क़ुतैबा, अल-इमामा व अल-सियासा, 1410, खंड 1, पृष्ठ 204।
  161. इब्ने क़ुतैबा, अल-इमामा व अल-सियासा, 1410, खंड 1, पीपी. 208-209।
  162. इब्ने क़ुतैबा, अल-इमामा व अल-सियासा, 1410, खंड 1, पृष्ठ 211।
  163. इब्ने शोबा हर्रानी, तोहफ़ुल ओक़ूल, 1404, पृष्ठ 68।
  164. इतिहासकारों का एक समूह, तारीख़े क़याम व मक़तल जामेअ सय्यदुश शोहदा, 2009, खंड 1, पृष्ठ 392।
  165. बलाज़री, अंसाब अल-अशराफ, 1417 हिजरी, खंड 3, पृष्ठ 155; शेख़ मुफ़ीद, अल-इरशाद, 2019, खंड 2, पृष्ठ 32।
  166. तबरी, तारीख अल-उमम व अल-मुलूक, 2007, खंड 5, पृष्ठ 338।
  167. अबू मख़नफ़, मक़तल अल-हुसैन, मतबअ अल इल्मिया, पृष्ठ 5; शेख़ मुफ़ीद, अल-इरशाद, 1413, खंड 2, पृष्ठ 33।
  168. बलाज़री, अंसाब अल-अशराफ़, 1417 हिजरी, खंड 3, पृष्ठ 160; शेख़ मुफ़ीद, अल-इरशाद, 1413, खंड 2, पृष्ठ 34।
  169. बलाज़री, अंसाब अल-अशराफ़, 1417 हिजरी, खंड 3, पृष्ठ 156; शेख़ मुफ़ीद, अल-इरशाद, 1413 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 36।
  170. शेख़ मुफ़ीद, अल-इरशाद, 1413 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 66।
  171. बलाज़री, अंसाब अल-अशराफ, 1417 हिजरी, खंड 3, पीपी. 157-159; शेख़ मुफ़ीद, अल-इरशाद, 1413 हिजरी, खंड 2, पीपी 36-38।
  172. शेख़ मुफ़ीद, अल-इरशाद, 1413 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 41।
  173. बलाजरी, अंसाब अल-अशराफ, 1417, खंड 3, पृष्ठ 160; शेख़ मुफ़ीद, अल-इरशाद, 1413 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 66।
  174. इब्ने साद, अल-तबाक़त अल-कुबारा, 1418, खंड 10, पृष्ठ 450; इब्न कथिर, अल-बदैया और अल-नाहिया, दार अल-फ़क्र, खंड 8, पीपी. 159 और 161।
  175. तबरी, तारीख़ अल उमम व अल मुलूक, 1387 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 408, इब्ने मस्कूये, तजारिब अल उमम, 1379, खंड 2, पृष्ठ 67; इब्ने असीर, अल-कामिल, 1965, खंड 4, पृष्ठ 51।
  176. इब्ने आसम अल-कूफी, अल-फ़ुतूह, 1991, खंड 5, पृष्ठ 83; तबरी, तारीख अल-उम्म व अल-मुलूक, 1387 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 409; शेख़ मुफ़ीद, अल-इरशाद, 1413 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 84; इब्ने मस्कूये, तजारिब अल उमम, 1379, खंड 2, पृष्ठ 68।
  177. दीनवरी, अल-अख़बार अल-तवाल, 1368, पृष्ठ 253; बलाज़री, अंसाब अल-अशराफ, खंड 3, पृष्ठ 176; तबरी, तारीख अल-उम्म व अल-मुलूक, 1387 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 409; इब्ने असीर, अल-कामिल, 1965, खंड 4, पृष्ठ 52।
  178. तबरी, तारीख अल-उम्म और अल-मुलूक, 1387 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 414; इब्ने मस्कूये, तजारिब अल उमम, 1379, खंड 2, पृष्ठ 71।
  179. बलाज़री, अंसाब अल-अशराफ, 1417 हिजरी, खंड 3, पृष्ठ 182; तबरी, तारीख अल-उम्म और अल-मुलूक, 1387 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 414; शेख़ मुफ़ीद, अल-इरशाद, 1413 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 88।
  180. तबरी, अल उमम व अल-मुलूक, 1387 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 417; शेख़ मुफ़ीद, अल-इरशाद, 1413 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 91।
  181. शेख़ मुफ़ीद, अल-इरशाद, 1413 हिजरी, खंड 2, पीपी। 91-94।
  182. तबरी, तारीख अल-उमम व अल-मुलूक, 1387 हिजरी, खंड 5, पीपी. 429-430।
  183. तबरी, तारीख़ अल उमम व अल-मुलूक, 1387 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 427; शेख़ मुफ़ीद, अल-इरशाद, 1413 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 99।
  184. तबरी, तारीख अल-उम्म व अल-मुलूक, 1387 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 446; अबुल फरज इस्फ़हानी, मक़ातिल अल-तालेबीईन, दार अल-मारेफ़ा, पृष्ठ 80।
  185. शेख़ मुफ़ीद, अल-इरशाद, 1413 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 112; ख्वारज़मी, मक़तल अल-हुसैन (अ), 1423 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 41; तबरसी, आलामुल वरा, 1390, खंड 1, पृष्ठ 469।
  186. तबरी, अल उमम व अल मुलूक, 1387, खंड 5, पीपी. 453-450; इब्ने साद, तबक़ात अल-कुबरा, 1968, खंड 6, पृष्ठ 441; अबुल फरज इस्फहानी, मकातिल अल-तालेबीईन, दार अल-मारफा, पृष्ठ 118; मसऊदी, मोरुजुज़ ज़हब, 1409 हिजरी, खंड 3, पृष्ठ 62।
  187. बलाज़री, अंसाब अल-अशराफ, 1417 हिजरी, खंड 3, पृष्ठ 411; तबारी, तारीख अल-उमम व अल-मुलूक, 1387 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 456।
  188. शेख़ मुफ़ीद, अल-इरशाद, 1413 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 113, बलाज़री, अंसाब अल-अशराफ, खंड 3, पृष्ठ 204; तबरी, अल उमम व अल-मुलूक, 1387 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 455; मसऊदी, मोरुजुज़ ज़हब, 1409 हिजरी, खंड 3, पृष्ठ 259।
  189. तबरी, अल उमम व अल-मुलूक, 1387 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 456।
  190. तबरी, अल उमम व अल-मुलूक, 2007, खंड 5, पृष्ठ 455।
  191. तबरी, अल उमम व अल-मुलूक, 1387 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 455।
  192. मुकर्रम, मक़तल अल-हुसैन, 1426 हिजरी, पीपी 335-336।
  193. इस्फंदयारी, आशूरा शनासी 1387, पी. 157।
  194. सैय्यद मुर्तज़ा, तन्ज़िह अल-अम्बिया, 1409 हिजरी, पीपी। 227-228।
  195. सालेही नजफाबादी, शहीदे जावेद, 2007, पीपी. 157-158।
  196. सेहती सर्दरूदी, आशूरा पज़ोहिश, 2005, पीपी। 296-299।
  197. इश्तेहार्दी, हफ़्त साले चेरा सदा दर आवुर्द?, 1391, पृष्ठ 154।
  198. तबरी, अल उमम व अल-मुलूक, 2007, खंड 5, पीपी. 458-459; शेख़ मुफ़ीद, अल-इरशाद, 1413 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 117।
  199. बलाज़री, अंसाब अल-अशराफ, 1417 हिजरी, खंड 9, पृष्ठ 317।
  200. खुमैनी, सहीफ़ा ए नूर, 1379, खंड 17, पृष्ठ 58।
  201. "फ़र्हंगे आशूरा फ़रा मुस्लमानी अस्त", वर्ल्ड इस्लामिक पीस फोरम वेबसाइट।
  202. बलाज़री, अंसाब अल-अशराफ, 1417 हिजरी, खंड 3, पीपी 142, 453; शेख़ मुफ़ीद, अल-इरशाद, 1413, खंड 2, पृष्ठ 27; तबरानी, अल-मोजम अल-कबीर, दार अल-नशर, खंड 3, पृष्ठ 95।
  203. अहमद बिन हनबल, अल-मुसनद, दार सादिर, खंड 3, पृष्ठ 261; तिर्मिज़ी, सुनन अल-तिर्मिज़ी, 1403 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 325।
  204. तबरानी, अल-मोजम अल-कबीर, दार अल-नशर, खंड 3, पृष्ठ 101।
  205. इब्ने साद, तबक़ात अल-कुबरा, 1418, खंड 6, पीपी. 422-419; इब्ने अबी शोबा, अल-मुस्नफ़, 1409 हिजरी, खंड 6, पृष्ठ 3 और 15।
  206. बलाज़री, अंसाब अल-अशराफ, 1417 हिजरी, खंड 3, पृष्ठ 7; शेख़ मुफ़ीद, अल-इरशाद, 1413, खंड 2, पृष्ठ 27।
  207. बलाज़री, अंसाब अल-अशराफ, 1417 हिजरी, खंड 3, पृष्ठ 142; इब्ने साद, तबक़ात अल-कुबरा, 1418 हिजरी, खंड 10, पृष्ठ 385।
  208. इब्ने साद, तबकात अल-कुबरा, 1418 हिजरी, खंड 10, पृष्ठ 266; इब्ने असाकर, तारीख मदीना दमिश्क , 1415 हिजरी, खंड 13, पीपी 198 और 199; एरबली, कशफ़ अल-ग़ुम्मा, 1421 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 602।
  209. रय शहरी, दानिश नामे इमाम हुसैन, 2008, खंड 3, पीपी.166-3.17।
  210. कुलैनी, अल-काफ़ी, 1362, खंड 1, पृष्ठ 528; शेख़ तूसी, अल-ग़ैबा, 1411, पृष्ठ 145।
  211. मजलिसी, बिहार अल-अनवार, 1363, खंड 44, पीपी 223-249।
  212. मिनकरी, वक्आ सिफ़्फ़ीन, 1403, पृष्ठ 142।
  213. शेख़ अल-सदूक़, अल-अमाली, 1417 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 199।
  214. कूलैनी, अल-काफ़ी, 1362, खंड 1, पृष्ठ 465।
  215. इब्ने कूलवैह, कामिल अल-ज़ियारात, 1356 हिजरी, पृष्ठ 66।
  216. इब्ने शहर आशोब, अल-मनाक़िब, 1379 हिजरी, खंड 4, पृष्ठ 82; मजलिसी, बिहार अल-अनवार, 1363, खंड 98, पृष्ठ 69।
  217. शुशत्री, अल-ख़साएस अल-हुसैनिया, शरीफ़ रज़ी, पृष्ठ 200।
  218. इब्ने साद, तबकात अल-कुबरा, 1418 हिजरी, खंड 10, पृष्ठ 411; इब्ने असाकर, तारीख मदीना दमिश्क, 1415 हिजरी, खंड 14, पृष्ठ 181।
  219. इब्ने असाकर, तारीख़ मदीना दमिश्क़, 1415 हिजरी, खंड 14, पृष्ठ 185।
  220. इब्ने असाकर, तारीख मदीना दमिश्क, 1415 हिजरी, खंड 70, पीपी। 196-197; इन्हें भी देखें: इब्ने हज़्म, अल-मुहल्ला, दार अल-फ़िक्र, खंड 8, पृष्ठ 515; एरबली, कशफ़ अल-ग़ुम्मा, 1426 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 476।
  221. सूर ए निसा, आयत 86.
  222. एरबली, कश्फ़ अल-ग़ुम्मा, 1421 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 575।
  223. मोहम्मदी रय शहरी, दानिश नामा इमाम हुसैन, 1388, खंड 2, पीपी 114-118।
  224. शेख़ सदूक़, अल-खेसाल, 1403 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 135।
  225. इब्ने साद, तबकात अल-कुबरा, 1418, खंड 10, पृष्ठ 401; इब्ने अब्दुल बर्, अल-इस्तियाब, 1412 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 397।
  226. देखें: "मुहर्रम का शोक दक्षिण पूर्व एशियाई देशों में मनाया जाता है", अबना समाचार एजेंसी; "मुहर्रम के महीने में ईरान के विभिन्न शहरों के लोगों के रीति-रिवाज", बैतूतह वेबसाइट।
  227. बलाज़री, अंसाब अल-अशराफ़, 1417 हिजरी, खंड 3, पृष्ठ 206।
  228. मजलिसी, बिहार अल-अनवार, 1363, खंड 45, पृष्ठ 196।
  229. अईनवंद, सुन्नत व मंक़बत ख़्वानी, 1386, पीपी. 65-66, इब्ने कसीर, अल-बेदाया व अल-नेहाया द्वारा उद्धृत, खंड 11, पृष्ठ 183; इब्ने जौज़ी, अल-मुंतज़म, 1992, खंड 7, पृष्ठ 15।
  230. मजलिसी, बिहार अल-अनवार, 1363, खंड 44, अध्याय 34, पीपी 278-296।
  231. इमाम हादी संस्थान (अ), जामेअ ज़ियारात अल-मासूमीन, 2009, खंड 3, पृष्ठ 69-36।
  232. इब्ने क़ूलवैह, कामिल अल-ज़ियारात, 1356, पीपी। 158-161।
  233. मोहम्मदी रय शहरी, दानिश नामा ए इमाम हुसैन, 1388, खंड 12, पीपी 256-452।
  234. "ज़ियारत हाए मख़सूस इमाम हुसैन", पाएगाह इत्तेला रसानी हौज़ा..
  235. शेख़ तूसी, मिस्बाह अल-मुतहज्जद, 1411, पृष्ठ 787।
  236. इब्ने ताऊस, अल लोहूफ़, 1414 हिजरी, पृष्ठ 225।
  237. ख़बर गुज़ारी जमहूरी इस्लामी "अरबीन तीर्थयात्रियों के आंकड़े इस वर्ष 18 मिलियन से अधिक हो गए"।
  238. तबातबाई यज़्दी, अल-उर्वा अल-वुस्क़ा, 1404 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 164।
  239. कुलीदार, तारीखे कर्बला व हायर अल-हुसैन (अ), 1376, पीपी। 51-52 और 58-60।
  240. "रम्ज़ व राज़ आन परचमे सुर्ख़", मरकज़ मिल्ली पासुखगोइ बे सवालात दीनी वेबसाइट।
  241. अल तोअमा, कर्बला व हरम हाए मुतह्हर, मशर, पीपी. 112-89।
  242. अबुल फरज इस्फ़हानी, मक़ातिल अल-तालेबीईन, दराल अल-मारेफा, पृष्ठ 477।
  243. लेखकों का एक समूह, निगाही नौ बे जिरयाने कर्बला, 2007, पी. 425।
  244. शेख़ तूसी, अल-अमाली, 1414 हिजरी, पृष्ठ 327; इब्ने शहर आशोब, अल-मनाक़िब, 1379, खंड 2, पृष्ठ 211।
  245. मोहम्मदी रय शहरी, दानिश नामे इमाम हुसैन, 1388, खंड 13, पीपी 13-14।
  246. नजमी, सुख़नान हुसैन बिन अली अज़ मदीना ता कर्बला, 1378, पृष्ठ 7।
  247. तेहरानी, सय्यद मोहम्मद हुसैन, लोमात अल हुसैन 1402 हिजरी, पी.3।
  248. बाकिरुल उलूम इंस्टीट्यूट ऑफ रिसर्च, मौसूआ कलेमात अल इमाम अल-हुसैन, 1416 हिजरी, मुक़द्दमा, पृष्ठ ज़े।
  249. मजलिसी, बिहार अल-अनवार, 1363, खंड 95, पृष्ठ 214।
  250. करबासी, दाएरा अल मआरिफ़ अल हुसैनिया, दीवान अल-इमाम अल-हुसैन, 2001। सी 1 और 2।
  251. इब्ने शोबा, तोहफ़ अल-उकूल, 1404 हिजरी, पीपी। 237-240।
  252. मुफ़ीद, अल-इरशाद, 1413, खंड 2, पीपी 97-98।
  253. ख़्वारज़मी, मकतल अल-हुसैन, 1423, खंड 1, पृष्ठ 273।
  254. मियांजी, मकातीब अल आइम्मा, 1426 हिजरी, खंड 3, पीपी 156-83।
  255. एरबली, कशफ़ अल-ग़ुम्मा फी मारेफ़ा अल-इमाम, 1421 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 592।
  256. इब्ने शहर आशोब, अल-मनाक़िब, 1379, खंड 4, पृष्ठ 68।
  257. इब्ने शोबा, तोहफ़ा अल-उक़ूल, 1404, पृष्ठ 245।
  258. ख़्वारज़मी, मक़तल अल-हुसैन, 1423 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 273।
  259. एरबली, कशफ़ अल-ग़ुम्मा फी मारेफ़ा अल-इमाम, 1421 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 573।
  260. इब्ने शोबा, तोहफ़ा अल-उक़ूल, 1404, पृष्ठ 248।
  261. इस्फंदयारी, "किताब शनासी, किताब शनासी हाए इमाम हुसैन", पृष्ठ 41।
  262. सफ़र अलीपुर, किताब शनासी इख़्तेसासी इमाम हुसैन, 2001, पृष्ठ 255।
  263. इस्फंदयारी, "किताब शनासी, किताब शनासी हाए इमाम हुसैन", 1380, पी. 491।
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स्रोत

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  • इब्ने हजर अस्कलानी, अल-एसाबा फ़ी तमीज़़ अल-सहाबा, बेैरूत, दार अल-कुतुब अल-इल्मिया, 1415 हिजरी।
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  • ज़मानी, अहमद, हक़ाएक़ पिनहान, पज़ोहिश दर ज़िन्देगानी सेयासी इमाम हसन मुज्तबा, क़ुम, इंतेशारात दफ़्तरे तब्लीग़ात इस्लामी, तीसरा संस्करण, 1380 शम्सी।
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  • सय्यद बिन तावस, अली बिन मूसा, अल-मलहूफ़ अला क़तली अल-तफ़ूफ़, क़ुम, उसवा, 1414 हिजरी।
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  • सय्यद मुर्तज़ा, अली बिन हुसैन, अल-शाफी फ़ी अल-इमामा, क़ुम, इस्माईलियान संस्थान, दूसरा संस्करण, 1410 हिजरी।
  • सय्यद मुर्तज़ा, अली बिन हुसैन, तन्ज़िह अल-अम्बिया, बैरूत, दार अल-अज़वा, दूसरा संस्करण, 1409 हिजरी।
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  • शरिअती अली, तशीई अलवी व तशीई सफ़वी, तेहरान, चापख़श, 1377।
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  • शहीदी, सय्यद जाफ़र, तारीख़े तहलीली इस्लाम, तेहरान, मरकज़ नशर दानिशगाही, 2013।
  • शहीदी, सय्यद जाफ़र, ज़िन्दगानी अली अल हुसैन, तेहरान, दफ़्तरे नशर फंरहंग, 1365 शम्सी।
  • शेख़ सदूक़, मुहम्मद बिन अली बिन बाबवैह, अल-एतेक़ादात अल-इमामिया, क़ुम, कुंंगरे शेख़ मुफ़ीद, दूसरा संस्करण, 1414 हिजरी।
  • शेख़ सदूक़, मुहम्मद बिन अली बिन बाबवैह, अल-ख़ेसाल, क़ुम, जामेअ मुदर्रेसीन, 1403 हिजरी।
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  • शेख़ सदूक़, मुहम्मद बिन अली बिन बाबवैह, कमाल अल-दीन व तमाम अल-नेमा, तेहरान, इस्लामिया, दूसरा संस्करण, 1395 शम्सी।
  • शेख़ तूसी, मुहम्मद बिन हसन, अल-ग़ैबा, क़ुम, दार अल-मारीफ़ा अल-इस्लामिया, 1411 हिजरी।
  • शेख़ तूसी, मुहम्मद बिन हसन, अल-अमाली, क़ुम, दार अल-सक़ाफ़ा, 1414 हिजरी।
  • शेख़ तूसी, मुहम्मद बिन हसन, तहज़ीब अल-अहकाम, हसन मूसवी खुरसान द्वारा प्रकाशित, बैरूत, 1401 हिजरी।
  • शेख़ तूसी, मुहम्मद बिन हसन, मिस्बाह अल-मुताहज्जद, बैरूत, फ़िक़ह अल-शिया संस्थान, 1411 हिजरी।
  • शेख़ मुफ़ीद, अल-इरशाद फ़ी मारेफ़ा होजाजिल्लाह अला अल एबाद, क़ुम, कुंगरे शेख़ मुफ़ीद, 1413 हिजरी।
  • शेख़ मुफ़ीद, मुहम्मद बिन नोमान, अल-इरशाद फ़ी मारेफ़ा होजाजिल्लाह अला अल एबाद, बैरूत, 1414 हिजरी।
  • शेख़ मुफ़ीद, मुहम्मद बिन नोमान, अल-मुक़नआ, क़ुम, कुंगरे शेख़ मुफ़ीद, 1413 हिजरी।
  • शेख़ मुफ़ीद, मुहम्मद बिन नोमान, मसार अल-शिया, क़ुम, कुंगरे शेख़ मुफ़ीद, 1413 हिजरी।
  • शेख़ मुफ़़ीद, मुहम्मद बिन नोमान, अल जमल व अल नुसरा ले सय्यद अल इतरा फ़ी हर्ब अल बसरा, क़ुम, कुंगरे शेख़ मुफ़ीद, 1413 हिजरी।
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  • साबरी, हुसैन, तारीख़े फ़ेरक़ इस्लामी फ़ेरक़ शिया व फ़िरक़ा हाए मंसूब बे आन, तेहरान, सेमत, पांचवां संस्करण, 2008।
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  • तबरानी, सुलेमान बिन अहमद, अल-मोजम अल-कबीर, शोध: हम्दी अब्दुल मजीद अल-सल्फी, बैरूत, दार अहया अल-तोरास अल-अरबी, बी.ता।
  • तबरानी, सुलेमान बिन अहमद, अल-मोजम अल-कबीर, क़ाहिरा, दार अल-नशर, इब्ने तैमिया लाइब्रेरी, दूसरा संस्करण, बी ता।
  • तबरसी, अहमद बिन अली, अल-इहतेजाज अला अहलिल-लोजाज, मशहद, मुर्तज़ा, 1403।
  • तबरसी, अहमद बिन अली, अल-इहतेजाज अला अहलिल लोजाज, नजफ़, मोहम्मद बाक़िर मूसवी खुरसान द्वारा प्रकाशित, 1386 हिजरी।
  • तबरसी, फ़ज़ल बिन हसन, आलाम अल वरा बे आलाम अल होदा, तेहरान, इस्लामिया, 1390 हिजरी।
  • तबरी, मुहम्मद बिन जोरैर, तारीख़े अल उम्म व अल मुलूक, बैरूत, दार अल-तोरास, दूसरा संस्करण, 1387 हिजरी।
  • तकूश, मोहम्मद सोहेल, दौलते उमवियान, हुज्जतुल्लाह जुदकी द्वारा अनुवादित, क़ुम, पज़ोहिशगाह हौज़ा व दानिशगाह, पांचवां संस्करण, 2009।
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  • आलमज़ादेह, हादी, "अव्वलीन मक़तल मकतूब, मक़तल अबू मख़नफ़, करब व बला वेबसाइट, तारीख़े बाज़दीद: 7 अप्रैल, 2019।
  • आमोली, जाफ़र मुर्तज़ा, अल हयात अल सियासा लिल इमाम हसन, बैरूत, दार अल-सिरा, बी ता।
  • आमोली, मुहम्मद बिन मक्की (पहला शहीद), अल-दोरूस अल-शरिया फ़ी फ़िक़ह अल-इमामिया, क़ुम, जामेअ मुदर्रेसीन, 1417 हिजरी।
  • अक्काद, अब्बास महमूद, अबुल-शोहदा अल-हुसैन बिन अली, तेहरान, अल-मजमा अल-आलमी लित्तक़रीब, दूसरा संस्करण, 1429 हिजरी।
  • फख़रे राज़ी, मुहम्मद बिन उमर, अल-तफ़सीर अल-कबीर, बैरूत, दार अल-फ़िक्र, 1405 हिजरी।
  • फ़रूख़, उमर, तजदीद फ़ी अल मुस्लेमीन ला फ़िल इस्लाम, बैरूत, दार अल-किताब अल-अरबी, बी ता।
  • क़ाज़ी तबताबाई, सय्यद मोहम्मद अली, शोध दरबारे अव्वल अरबाईन हज़रत सय्यदुश शोहदा (अ), क़ुम, बुनियाद इल्मी व फ़र्हंगी शहीद आयतुल्लाह क़ाज़ी तबातबाई, 1368 शम्सी।
  • काश्फी सब्ज़वारी, मुल्ला हुसैन, रौज़ा तुश शोहदा, क़ुम, नवेदे इस्लाम, 2013।
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