सब्बो अली

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सब्बो अली (अरबीःسَبُّ علي ) सब्बो अली का अर्थ है इमाम अली (अ) को अपशब्द कहना और उन पर लानत भेजना, जिसे मुआविया बिन अबी सुफ़ियान ने प्रचलित किया था। बनी उमय्या के शासक और उनके अनुयायी सरकारी रूप से मिम्बर पर इमाम अली (अ) को अपशब्द कहते और लानत करते थे। यह प्रथा लगभग साठ वर्षों तक जारी रही और अंततः उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ द्वारा इस पर प्रतिबंध लगा दिया गया। हालाँकि, इमाम अली ने अपने सहाबीयो (साथियों) को मुआविया को अपशब्द कहने से रोक दिया।

मुआविया बिन अबी सुफ़ियान, मरवान बिन हकम, मुग़ैरा बिन शैबा और हज्जाज बिन यूसुफ सक़फ़ी उमय्या काल के उन शासकों में से थे जो इमाम अली (अ) पर मिम्बर से लानत करते थे, अतिया बिन साद को इमाम अली (अ) को अपशब्द कहने से परहेज करने के लिए हज्जाज बिन यूसुफ के आदेश से दंडित किया गया था।

कुछ शिया विद्वानों ने इमाम अली (अ) को अपशब्द कहने और लानत करना नासेबीवाद माना है।

परिभाषा

इसका भी अध्ययन करे: लानत

"सब्ब" का अर्थ है अपशब्द कहना।[१] इब्ने असीर ने मनुष्यों द्वारा की गई "लानत" को अपशब्द कहने की श्रेणी मे रखा है।[२] कुछ ने लानत का अर्थ अपशब्द कहना या निष्कासन भी माना है।[३] कुछ ने लानत और अपशब्द के बीच अंतर भी माना है। जिसमे अपशब्द का अर्थ है भद्दे शब्द कहना और लानत का अर्थ है ईश्वर की दया से मुंह मोड़ना।[४]

इमाम बाक़िर (अ) इमाम सज्जाद (अ) से रिवायत करते हैं कि उन्होंने इमाम अली (अ) को अपशब्द कहने के कारण अपनी एक पत्नी को तलाक दे दिया था[५] कुछ लोगों ने इस कथन से यह निष्कर्ष निकाला है कि अली बिन अबी तालिब (अ) को अपशब्द कहना नासेबीवाद है।[६] जाफ़र सुब्हानी ने मुआविया द्वारा अली बिन अबी तालिब (अ) के अपमान की नींव को मुसलमानो के बीच नासेवीवाद के प्रसार की उत्पत्ति और शुरुआत माना।[७]

शिया न्यायविदों ने अली (अ) का अपमान करने वाले व्यक्ति को महदूर अल-दम माना है।[८]

इतिहास

बनी उमय्या द्वारा इमाम अली (अ) को अपशब्द कहने की शुरुआत उनके जीवनकाल से ही बताई गई है; मुआविया के साथ इमाम हसन (अ) के शांति समझौते की शर्तों में से एक शर्त यह थी कि अली बिन अबी तालिब (अ) को मिंबर से अपशब्द नहीं कहे जाने चाहिए।[९] इमाम अली (अ) के फज़ाइल का हवाला देने से मना करने वाला सामान्य आदेश, उनके बारे में वर्णन करने का निषेध, उन्हें अच्छाई के साथ याद करने का निषेध, और अली के नाम पर बच्चों का नाम रखने का निषेध, उनके दुश्मनों द्वारा लागू किए गए अन्य उपायों में से हैं।[१०]

उस्मान की हत्या के बाद, उनके समर्थकों ने उन्हें इमाम अली (अ) के प्रति निष्ठा की प्रतिज्ञा की अवज्ञा करने के लिए उस्मान का हत्यारा बताया। इस टकराव को बनाए रखने के लिए, मुआविया ने इमाम अली (अ) को अपशब्द कहने और उन पर लानत करने का आदेश दिया[११] मरवान ने इमाम सज्जाद (अ) को संबोधित किया और कहा: उस्मान की घेराबंदी के दौरान, अली (अ) की तरह किसी ने भी उसका बचाव नहीं किया। इमाम ने कहा: फिर तुम मिंबर से उनका (इमाम अली) का इतना अपमान क्यों करते हो? मरवान ने उत्तर दिया: इन अपमानों के बिना हमारी सरकार बाक़ी नहीं रह सकती।[१२] ज़मखशरी के अनुसार, उमय्या काल के दौरान, मुआविया द्वारा स्थापित परंपरा के बाद इमाम अली (अ) को 70 हजार मिंबरो से अपशब्द कहे जाते थे।[१३]

इमाम अली (अ) को अपशब्द कहने की प्रथा लगभग 60 सालो तक जारी रही उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ (101-99 हिजरी) के खिलाफत में पहुंचने के बाद उसने अपने सभी राज्यपालों को इस प्रथा को रोकने का आदेश दिया। 8वीं शताब्दी के इतिहासकार इब्ने खल्दुन के अनुसार उमय्या लगातार अली (अ) पर लानत करते थे, जब तक कि उमर इब्ने अब्दुल अजीज ने सभी इस्लामी क्षेत्रों को एक पत्र नहीं लिखा और इसे रोकने का आदेश जारी नहीं किया।[१४]

उम्मे सलमा की एक रिवायत के अनुसार, पैग़म्बर (स) की ओर से, इमाम अली (अ) को अपशब्द कहने वाले स्वयं को अपशब्द कहने वाले के समान माना जाता है, और अन्य संस्करणों में, यह भगवान को अपशब्द कहने के समान है।[१५] बिहार अल-अनवार में अल्लामा मजलिसी ने, उम्मे सलमा से संबंधित वर्णन के अलावा, इस संबंध में अन्य हदीसों का भी वर्णन किया है।[१६]

मुआविया

मुआविया द्वारा इमाम अली का अपमान करने और उनपर लानत करने का मामला सामने आया हैं; चौथी हिजरी के इतिहासकार, तबरी के वर्णन के अनुसार, मुआविया ने, जब हिजरत के 41वें वर्ष में मुग़ैरा बिन शैयबा को कूफ़ा का राज्यपाल बनाया, तो उससे अली बिन अबी तालिब (अ) को अपशब्द कहने और लानत करने और उस्मान की महिमा करने पर जोर देने के लिए कहा।[१७] उसने (मुआविया) मुग़ैरा बिन शैयबा को अली के साथियों (सहाबीयो) को निर्वासित करने की भी सलाह दी।[१८]

मुआविया ने नख़ीला में इमाम हसन (अ) के साथ शांति समझौते के बाद लोगों से निष्ठा की शपथ भी ली और अपने उपदेश में उसने इमाम अली (अ) और इमाम हसन (अ) को अपशब्द कहे।[१९]

मरवान बिन हकम

सुन्नी इतिहासकार ज़हबी ने अपनी इतिहास की पुस्तक में जो उल्लेख किया है, उसके अनुसार, मरवान बिन हकम 41 हिजरी में मदीना का शासक बना और अपने शासन के छह वर्षों के दौरान, वह हर शुक्रवार को मिंबर से अली (अ) को अपशब्द कहता था। मरवान के बाद सईद बिन आस दो साल तक गवर्नर रहा लेकिन वह अली बिन अबी तालिब (अ) को अपशब्द नही कहता था। सईद बिन आस के बाद, मरवान फिर से शासक बन गया और अली (अ) को फिर से अपशब्द कहना शुरू किया।[२०]

मुग़ैरा बिन शैयबा

तीसरी शताब्दी हिजरी के इतिहासकार बलाज़ुरी का मानना है कि मुआविया की ओर से नौ वर्षों तक कूफ़ा के गवर्नर रहे मुग़ैरा बिन शैयबा की विशेषता यह थी कि उसने लगातार अली बिन अबी तालिब (अ) की निंदा की और उनका अपमान किया।[२१]

हज्जाज बिन यूसुफ

इब्ने अबिल हदीद ने नहज अल-बलाग़ा के विवरण में जो उल्लेख किया है, उसके अनुसार, हज्जाज बिन यूसुफ ने इमाम अली (अ) को अपशब्द कहने के अलावा, दूसरों को ऐसा करने का आदेश दिया और इससे प्रसन्न होता था;[२२]] एक आदमी ने उससे कहा कि मेरे परिवार ने मेरे साथ अन्याय किया है और मेरा नाम अली रखा है, इसलिए मेरा नाम बदल दो और मुझे जीने के लिए कुछ दे दो, क्योंकि मैं गरीब हूं। हज्जाज ने कहा, तुमने जो कुछ दस्तावेजात तुमने प्रस्तुत किए है मैंने तुम्हारा नाम यह रखा और यह काम तुम को सौंपा।[२३]

अन्य कथनों में, हज्जाज बिन यूसुफ ने सब्बो अली को एक प्रशंसनीय चरित्र माना है[२४], और अतिया बिन साद बिन जुनादा कूफी की जीवनी में, यह कहा गया है कि हज्जाज ने उनसे अली बिन अबी तालिब को अपशब्द कहने के लिए कहा, अन्यथा 400 कोड़े खाने होंगे, लेकिन आतिया ने अपशब्द कहने से इनकार कर दिया और 400 कोड़े खाए और बाल और दाढ़ी भी मूंड दी गई।[२५]

इमाम अली का सब्बो मुआविया से विरोध

मुआविया ने इमाम अली (अ) को मिंबर से अपशब्द कहने और लानत करने का आदेश उसी समय जारी किया, जब सिफ़्फ़ीन की लड़ाई में अली इब्ने अबी तालिब (अ) ने मुआविया पर लानत करने और उसे अपशब्द कहने का विरोध किया था।[२६] जब इमाम अली (अ) की सेना में से हुज्र बिन अदी और अम्र बिन हमिक़ ने मुआविया और सीरिया के लोगों को अपशब्द कहे, तो इमाम (अ) ने उन्हें ऐसा करने से मना किया, और इस सवाल के जवाब में कि क्या हम हक पर नहीं हैं, इमाम (अ) ने फ़रमाया कि हम हक़ पर हैं, लेकिन मै लानत करने और अपशब्द कहने वाले से कतराता हूं। इमाम अली (अ) ने उनसे यह भी कहा कि ईश्वर से हमारे और उनके खून की रक्षा करने तथा हमारे और उनके बीच शांति लाने और उन्हें गुमराह होने से बचाने के लिए दुआ करो, ताकि जो कोई भी सच्चाई नहीं जानता, वह इसे जान ले, और जो कोई भी झूठ पर जोर देता है, वह ऐसा करना बंद कर दे।[२७]

संबंधित लेख

फ़ुटनोट

  1. तुरैही, मजमा अल बयान, 1375 शम्सी, भाग 2, पेज 80
  2. इब्ने असी जिज़री, अल नेहाया, 1367 शम्सी, भाग 4, पेज 255
  3. बस्तानी, फ़रहंग अबजदी, 1375 शम्सी, पेज 756
  4. फ़खअली, मजमूआ गुफ्तेमानहाए मज़ाहिब इस्लामी, 1383 शम्सी, पेज 299
  5. तूसी, तहज़ीब अल अहकाम, 1407 हिजरी, भाग 7, पेज 303
  6. बलक़ान आबादी, शवाहिदे नस्बे दर आसारे बुख़ारी, पेज 79
  7. सुब्हानी, गुज़ेदेह सीमाए अकाइद शिया, 1389 शम्सी, पेज 22
  8. मुग़नेया, फ़िक़्ह अल इमाम अल सादिक़ (अ), 1421 हिजरी, भाग 6, पेज 278
  9. तबरसी, एलाम उल वरा, 1390 हिजरी, पेज 206
  10. देखेः मुहम्मदी रैय शहरी, दानिश नामा अमीर अल मोमेनीन, 1428 हिजरी, पेज 475-483
  11. देखः जमशैदीहा वा दिगरान, प्रोपगंडा बनी उमय्या अलैहे ख़ानदाने पयामबर (अ), पेज 15-18; कौसरी, बर रसी रीशेहाए तारीख़ी नासेबीगिरी, पेज 96-100
  12. ज़हबी, तारीख अल इस्लाम, 1409 हिजरी, भाग 3, पेज 461
  13. ज़मख़शरी, रबीअ अल अबरार, 1412 हिजरी, भाग 2, पेज 186
  14. इब्ने ख़लदून, तारीख इब्ने खलदून, 1408 हिजरी, भाग 3, पेज 94
  15. सय्यद इब्ने ताऊस, बना अल मकालतिल फ़ातेमीया, 1411 हिजरी, पेज 212; इब्ने असाकिर, तारीख मदीना दमिश्क, 1417 हिजरी, भाग 42, पेज 533
  16. देखेः अल्लामा मजिलसी, बिहार उल अनवार, 1403 हिजरी, भाग 39, पेज 311-330
  17. तबरी, तारीख अल तबरी, 1378 हिजरी, भाग 5, पेज 253
  18. तबरी, तारीख अल तबरी, 1378 हिजरी, भाग 5, पेज 253; ज़हबी, तारीख अल इस्लाम, 1409 हिजरी, भाग 5, पेज 231
  19. अल हुसैनी अल मूसवी अल हाएरी अल कर्की, तस्लीयातुल मजालिस वा ज़ीनातुल मजालिस, 1418 हिजरी, भाग 2, पेज 51-52; अबुल फ़रज इस्फहानी, मकातिल अल तालेबीन, 1419 हिजरी, भाग 5, पेज 231
  20. ज़हबी, तारीख अल इस्लाम, 1409 हिजरी, भाग 5, पेज 231
  21. बलाजुरी, अंसाब अल अशराफ़, 1400 हिजरी, भाग 5, पेज 243
  22. इब्ने अबिल हदीद, शहर नहज अल बलाग़ा, 1404 हिजरी, भाग 4, पेज 58
  23. इब्ने अबिल हदीद, शहर नहज अल बलाग़ा, 1404 हिजरी, भाग 4, पेज 58
  24. अस्करी, तरजुमा मआलिम अल मदरसतैन, 1386 शम्सी, भाग 1, पेज 415-416
  25. इब्ने साद, अल तबक़ात अल कुबरा, 1410 हिजरी, भाग 6, पेज 305
  26. दैनूरी, अल अखबार अल तुवल, 1368 शम्सी, पेज 165
  27. दैनूरी, अल अखबार अल तुवल, 1368 शम्सी, पेज 165

स्रोत

  • इब्ने असीर जिज़्री, मुबारक बिन मुहम्मद, अल नेहाया फ़ी ग़रीब अल हदीस वल असर, मोहक़्क़िकः मुसाहाह, तनाही, महमूद, मुहम्मद, क़ुम, मोअस्सेसा मतबूआती इस्माईलीयान, 1367 शम्सी
  • इब्ने ख़लदून, अब्दुर रहमान बिन मुहम्मद, दीवान, अल मुबतदा वल खबर फ़ी तारीख अल अरब वल बरबर वा मन आसाराहुम मन ज़ू अल शान अल अकबर, (तारीख इब्ने खलदून), तहक़ीक खलील शहादत, बैरूत, दार अल फ़िक्र, दूसरा संस्करण 1408 हिजरी
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  • बलख़ी, मक़ातिल बिन सुलैमान, तफ़सीर मक़ातिल बिन सुलैमान, तहक़ीक शहाता, अब्दुल्लाह महमूद, बैरूत, दार एहया अल तुरास, पहला संस्करण, 1423 हिजरी
  • बलक़ानबादी, हसन, शवाहिदे नस्ब दर आसारे बुख़ारी, मुकद्दमाः नजमुद्दीन तब्सी
  • जमशैदीहा गुलाम रज़ा, रूहानी मुहम्मद रज़ा, अलमुल हुदा सय्यद अब्दुर रसूल, प्रोपगंडा बनी उमय्या अलैहे ख़ानदाने पयामबर (स), दर फ़सलनामा शिया शनासी, सातवां साल, क्रमांक 35, पाईज़ 1390 शम्सी
  • अल हुसैनी अल मूसवी अल हाएरी अल कर्की, मुहम्मद बिन अबी तालिब, तस्लीयातुल मजालिस वा ज़ीनातुल मजालिस, अल मोसूम बेमकतल अल हुसैन अलैहिस सलाम, तहक़ीक, फारस हसून करीम, क़ुम, पासदारे इस्लाम, 1418 हिजरी
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  • ज़हबी, मुहम्मद बिन अहमद, तारीख अल इस्लाम, तहकीकः तदमरी, उमर अब्दुस सलाम, बैरूत, दार अल किताब अल अरबी, दूसरा संस्करण 1409 हिजरी
  • ज़मखशरी, महमूद बिन अम्र, रबी अल अबरार व नूसूस अल अखबार, बैरूत, मोअस्सेसा आलमी, 1412 हिजरी
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  • तबरसी, फ़ज़्ल बिन हसन, एलाम अल वरा बेआलम अल हुदा, तेहरान, दार अल कुतुब अल इस्लामीया, तीसरा संस्करण, 1390 हिजरी
  • तबरी, अबू जाफ़र मुहम्मद बिन ज़ुरैर, तारीख अल उमम वल मुलूक (तारीख तबरी), तहकीक इब्राहीम, मुहम्मद अबुल फ़ज़्ल, बैरूत, दार उल तुरास, दूसरा संस्करण, 1387 हिजरी
  • तुरैही, फ़ख़्रुद्दीन, मजमा अल बहरैन, तहकीक़ हुसैनी, सय्यद अहमद, तेहरान, किताब फ़रोशी मुर्तज़वी, तीसरा संस्करण, 1375 शम्सी
  • शेख़ तूसी, तहज़ीब अल अहकाम, मोहक्किक मूसवी खिरसान, हसन, तेहरान, दार उल कुतुब अल इस्लामीया, चौथा संस्करण 1407 हिजरी
  • अस्करी, मुर्तज़ा, तरजुमा मआलिम अल मदरासतैन, मुतरजिम मुहम्मद जवाद करमी, क़ुम, दानिशकदे उसूल अल दीन, 1386 शम्सी