हज़रत फ़ातिमा (स) के दफ़न के समय इमाम अली (अ) का कथन
हज़रत फ़ातिमा (स) के दफ़न के समय इमाम अली (अ) का कथन(फ़ारसीःسخنان امام علی(ع) هنگام خاکسپاری فاطمه(س)), फ़ातिमा के शोक में पैगंबर (स) से संबोधित इमाम अली (अ) का कथन जोकि नहज अल-बलागा मे आया हैं। इस कथन मे इमाम अली (अ) ने हज़रत फ़ातिमा (स) की शहादत पर अपने दुःख की गंभीरता और स्थायित्व के बारे में बात की और अपने स्वर्गवास के बाद की घटनाओं के बारे में फ़ातिमा (स) से पूछने के लिए कहा। नहज अल-बलाग़ा की व्याख्या करने वालो का मानना है कि हज़रत अली (अ) ने फ़दक पर क़ब्ज़ा, फ़ातिमा के घर पर हमला और मोहसिन के गर्भपात जैसी घटनाओं का उल्लेख सामान्य वाक्यांश "फ़ातिमा से पूछो" के साथ किया है। इसके अलावा, इस ख़ुत्बे के शब्दों से, अन्य व्याख्याएं की गई हैं, जैसे कि पैगंबर (स) की क़ब्र के पास फ़ातिमा को दफ़नाना।
इस कथन का उल्लेख शियो की हदीस की पुस्तको जैसे अल-काफ़ी और शेख तूसी की अल-अमाली और अहले सुन्नत की तज़केरा अल-ख़वास जैसी पुस्तको मे हुआ है।
पृष्ठ भूमि और महत्व
फ़ातिमा (स) को दफ़नाते समय पैगंबर को संबोधित इमाम अली (अ) के कथन को फ़ातिमा (स) के बिछड़ने पर इमाम अली (अ) के दुःख का संकेत और हज़रत फ़ातिमा (स) की महानता को व्यक्त करता है।[१] आयतुल्लाह मकारिम शिराज़ी के कथन अनुसार नहज अल-बलाग़ा मे यह कथन इस्लाम की शुरुआत के कुछ महत्वपूर्ण ऐतिहासिक तथ्य को अप्रत्यक्ष रूप से, लेकिन स्पष्ट और सार्थक रूप से दर्शाता है।[२]
नहज अल-बलाग़ा की व्याख्या करने वालो ने इस उपदेश के तहत, फ़दक की घटना, खिलाफत पर कब्ज़ा, फ़ातिमा (स) की कब्र को गुप्त रखने का कारण, उनकी शहादत का समय,[३] उनका जीवन काल[४] और फ़ातिमा (स) के उपनाम[५] जैसे मुद्दों को बयान किया है।
कंटेंट
फ़ातिमा (स) को दफ़नाने के समय पैगंबर (स) को संबोधित करते हुए इमाम अली (अ) का अपने दिल का दुख और फ़ातिमा (स) के बिछड़ने पर अपनी पीड़ा व्यक्त करना है।[६] इमाम अली (अ) ने हज़रत फ़ातिमा (स) की शहादत पर अपने दुःख की गंभीरता और उसकी स्थायित्व के बारे में बात की और भगवान से धैर्य तलब किया। इमाम अली (अ) ने पैगंबर (स) से अपने स्वर्गवास के बाद की घटनाओं के बारे में फ़ातिमा (स) से पूछने के लिए कहा। आप (अ) ने इस कथन मे फ़ातिमा (स) को अपने पास एक अमानत के रूप मे परिचित कराया जिसे अब पैगंबर (स) को लौटा रहे है।[७]
कंटेंट इंप्रेशन
इस उपदेश के अंतर्गत नहज अल-बलाग़ा की व्याख्या में टिप्पणीकारों ने कुछ बातें कही हैं, जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं:
- अली और फ़ातिमा के बीच अत्यधिक भावनात्मक संबंध: कुछ टिप्पणीकार "अम्मा हुज़नी फ़सरमदुन वा अम्मा लैली फेमुसाहदुन, अनुवादः लेकिन मेरा दुःख शाश्वत है और मेरी रात जागने मे कटती है " वाक्यांश को फ़ातिमा के बिछड़ने पर इमाम अली (अ) के दुःख की तीव्रता को इंगित करने और उन दोनों के बीच गहरे भावनात्मक और आध्यात्मिक संबंध को व्यक्त करने के लिए जानते है। आयतुल्लाह मकारिम शिराज़ी का मानना है कि हज़रत अली (अ) से संबंधित निम्नलिखित पंक्तियो में इसी बात का उल्लेख किया गया है।[८]
- फ़ातिमा की कब्र की पैगंबर की कब्र से निकटता: " «النَّازِلَةِ فِي جِوَارِكَ अन-नाज़ेलते फ़ी जेवारेका" वाक्यांश को कुछ टिप्पणीकार; इसे फ़ातिमा की क़ब्र की पैगंबर की कब्र से निकटता का संकेत मानते है।[९] आयतुल्लाह मकारिम शिराज़ी के अनुसार, यह वाक्यांश उन लोगों के सिद्धांत को मजबूत करता है जो इस बात को मानते हैं कि फ़ातिमा को उनके घर में दफनाया गया है।[१०]
- हज़रत फ़ातिमा पर ज़ुल्म: इब्ने मीसम बहरानी (मृत्यु: 679 या 699 हिजरी) के अनुसार, " فَأَحْفِهَا السُّؤَالَ फ़आहफ़िहा अल-सुवाल; अनुवादः उनसे खुलकर पूछें", वाक्यांश इस तथ्य को संदर्भित करता है कि हज़रत फ़ातिमा (स) पर ज़ुल्म हुआ था और अली (अ) ने इसके बारे में शिकायत की थी।[११] आयतुल्लाह मकारिम शिराज़ी ने भी कहा कि यह वाक्यांश सामान्य है और फ़ातिमा (स) के घर पर हमला, मोहसिन के गर्भपात और इमाम अली (अ) को अबू बक्र के प्रति निष्ठा की प्रतिज्ञा करने के लिए मस्जिद में ले जाने जैसी घटनाओं को संदर्भित करता है।[१२] फ़ैज़ अल-इस्लाम ने इस वाक्यांश के विवरण में फदक पर कब़्ज़ा, फ़ातिमा के अधिकारों को न पहचानने और उनकी पस्लीयो को तोड़ने का भी उल्लेख अपने अनुवाद मे किया है।[१३]
- फ़ातिमा पर ज़ुल्म करने मे सभी की भागीदारी: " بِتَضَافُرِ أُمَّتِکَ عَلَی هَضْمِهَا बेतज़ाफ़ोरे उम्मतेका अला हज़्मेहा, अनुवादःआपकी उम्मत ने फ़ातिमा पर अत्याचार करने मे हाथ मिला लिया था" वाक्यांश मे तज़ाफोरे शब्द आया है जिसका अर्थ हाथ मिलाना होता है, लेकिन चूंकि उम्मत के कुछ लोगो ने अपनी चुप्पी से इस कार्य की पुष्टि की, इसलिए इस कार्रवाई का श्रेय पूरी उम्मत को दिया गया है।[१४]
- फ़ातिमा की शहादत और पैगंबर की वफ़ात का आसपास होना: नहज अल-बलागा के कुछ टिप्पणीकारों ने कहा है कि "अल-सरिअते अल-ल्हाके बेका, अनुवादः वह तुरंत आपके साथ मिल गई" वाक्यांश फ़ातिमा की शहादत और पैगंबर की वफ़ात की निकटता को दर्शाता है।[१५] हालंकि, कुछ अन्य लोगों के अनुसार, यह वाक्यांश हज़रत फ़ातिमा की गंभीर पीड़ाओं का संदर्भ है, जिसके कारण वह कम उम्र में ही शहीद हो गईं थीं।[१६]
नहज अल-बलाग़ा के अलग अलग प्रिस्क्रिप्शन मे खुत्बा संख्या | |
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प्रिस्क्रिप्शन का नाम | खुत्बा संख्या |
अल मोजम अल मुफ़हरिस ले अल-फ़ाज़ नहज अल-बलाग़ा | 202 |
तस्हीह नहज अल-बलाग़ाः सुब्ही सालेह | 202 |
तरजुमा वा शरह नहज अल-बलाग़ाः फ़ैज़ अल इस्लाम | 193 |
मिस्बाह उल-सालेकीन इब्ने मीसम | 193 |
मिन्हाज अल-बराआ हबीबुल्लाह ख़ूई | 201 |
शरह नहज अल-बलाग़ाः मुल्ला सालेह क़ज़वीनी | 201 |
शरह नहज अल-बलाग़ा इब्ने अबिल हदीद | 195 |
शरह नजह अल-बलाग़ाः मुहम्मद अब्दोह | 195 |
तंबीह अल-ग़ाफ़ेलीन वा तज़केरा अल-आरेफ़ीनः मुल्ला फ़त्हुल्लाह काशानी | 230 |
फ़ी ज़ेलाल नहज अल-बलाग़ाः मुहम्मद जवाद मुग़नीया | 200[१७] |
कथन के दस्तावेज़
मसादिरो नहजे अल-बलागा वा असानीदोहू पुस्तक की समीक्षा के अनुसार, हज़रत फ़ातिमा (स) के दफ़न के समय पैग़म्बर (स) को संबोधित करते हुए इमाम अली (अ) के इस कथन का थोड़े अंतर के साथ इमाम हुसैन (अ) से मुहम्मद बिन याक़ूब कुलैनी (मृत्यु वर्ष 329 हिजरी) द्वारा लिखित किताब अल-काफ़ी मे[१८] इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) से मुहम्मद बिन जुरैर तबरी सग़ीर द्वारा लिखित दलाइल अल इमामा मे[१९] इमाम हुसैन (अ) से शेख तूसी ने अल आमाली (संकलन 458 हिजरी) मे[२०] और सिब्ते इब्ने जौज़ी हनफ़ी (मृत्यु वर्ष 654 हिजरी) द्वारा लिखित तज़केरा अल-ख्वास किताब मे[२१] उल्लेख किया गया है।[२२]
इसी प्रकार इस कथन का उल्लेख नहज अल-बलागा में भी किया गया है।[२३] नहज अल-बलागा के संस्करणों में उपदेश की संख्या भिन्न है।[२४]
मोनोग्राफ़ी
कमालुद्दीन इमादी सारवी ने नहज अल बलाग़ा के उपदेश 202 की व्याख्या मे हुज़न सरमद नामक किताब लिखी है। यह किताब 1383 शम्सी हिजरी में फ़िक्रत पब्लिशिंग हाउस द्वारा हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (स) की कब्र पर फरई सोगनामा अमीर अल-मोमिनीन अली (अ) शीर्षक के साथ प्रकाशित की गई थी।
पाठ और अनुवाद
अनुवाद | पाठ |
हज़रत ज़हरा (स) के शोक में पैगंबर (स) को संबोधन | |
यह इमाम अली (अ) के कथनो में से एक है, जिसे आप (अ) ने दुनिया की महिलाओं की नेता हज़रत फ़ातिमा (स) को दफ़नाते समय कहा था, जैसे कि आप (अ) पैगंबर (स) के साथ उनकी क़ब्र पर अपना दर्दे दिल बयान कर रहे थे: | وَ مِنْ كَلَامٍ لَهُ رُوِيَ عَنْهُ أَنَّهُ قَالَهُ عِنْدَ دَفْنِ سَيِّدَةِ النِّسَاءِ فَاطِمَةَ كَالْمُنَاجِي بِهِ رَسُولَ اللَّهِ عِنْدَ قَبْرِهِ: |
हे अल्लाह के रसूल, आप पर मेरा और आपकी बेटी का सलाम जोकि आपके पास आ गई और तुरंत आप से आ मिली। हे रसूले हक़, आपकी बेटी की दूरी के कारण मेरा धैर्य कम हो गया है, और मेरी ताकत ख़त्म हो गई है, सिवाय इसके कि यह आपके महान अलगाव में और फ़ातिमा की मुसीबत मे मेरे लिए सांत्वना का स्थान है; क्योंकि मैं ही वह था जिसने तुम्हें अपने हाथ से धरती के आलिंगन में रखा था, और जब तुम्हारी पवित्र आत्मा ने शरीर को छोड़ा था तो तुम्हारा सिर मेरी छाती पर था। हम अल्लाह से हैं और उसी की ओर लौट कर जाना है। सच तो यह है कि अमानत लौटा दी गई है और बंधक प्राप्त कर लिया गया। परन्तु मेरा दुःख अनन्त है, और मेरी रात जागने के समान है जब तक कि भगवान मेरे लिए वह स्थान न चुन ले जहाँ आप रहते हो। जल्द ही आपकी बेटी आपको अपने ऊपर जुल्म करने के लिए उम्मत की मिलीभगत के बारे में बताएगी, उनसे पूछने पर जोर दीजिए और उनसे हालात की खबर लीजिए, जबकि हमारे और आपके बीच ज्यादा दूरी नहीं हुई है और कोई समय आप की याद से खाली नहीं गया हैं, कि यह सब ज़ुल्म हमारे साथ हुआ। आप पर दोनों को सलाम; विदा करने वाले का सलाम, लालसा से आहत सलाम नही है। अगर आपकी क़ब्र से जाऊ तो कोई मलामत नही है, और अगर रहूं तो कोई बदगुमानी नही है जिसका अल्लाह ने धैर्य रखने वालो से वादा किया है। | السَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُولَ اللَّهِ عَنِّي وَ عَنِ ابْنَتِكَ النَّازِلَةِ فِي جِوَارِكَ وَ السَّرِيعَةِ اللَّحَاقِ بِكَ. قَلَّ يَا رَسُولَ اللَّهِ عَنْ صَفِيَّتِكَ صَبْرِي وَ رَقَ عَنْهَا تَجَلُّدِي، إِلَّا أَنَّ فِي التَّأَسِّي لِي بِعَظِيمِ فُرْقَتِكَ وَ فَادِحِ مُصِيبَتِكَ مَوْضِعَ تَعَزٍّ، فَلَقَدْ وَسَّدْتُكَ فِي مَلْحُودَةِ قَبْرِكَ وَ فَاضَتْ بَيْنَ نَحْرِي وَ صَدْرِي نَفْسُكَ، فَإِنَّا لِلَّهِ وَ إِنَّا إِلَيْهِ راجِعُونَ. فَلَقَدِ اسْتُرْجِعَتِ الْوَدِيعَةُ وَ أُخِذَتِ الرَّهِينَةُ، أَمَّا حُزْنِي فَسَرْمَدٌ وَ أَمَّا لَيْلِي فَمُسَهَّدٌ، إِلَى أَنْ يَخْتَارَ اللَّهُ لِي دَارَكَ الَّتِي أَنْتَ بِهَا مُقِيمٌ. وَ سَتُنَبِّئُكَ ابْنَتُكَ بِتَضَافُرِ أُمَّتِكَ عَلَى هَضْمِهَا، فَأَحْفِهَا السُّؤَالَ وَ اسْتَخْبِرْهَا الْحَالَ، هَذَا وَ لَمْ يَطُلِ الْعَهْدُ وَ لَمْ يَخْلُ مِنْكَ الذِّكْرُ. وَالسَّلَامُ عَلَيْكُمَا سَلَامَ مُوَدِّعٍ، لَا قَالٍ وَ لَا سَئِمٍ، فَإِنْ أَنْصَرِفْ فَلَا عَنْ مَلَالَةٍ، وَ إِنْ أُقِمْ فَلَا عَنْ سُوءِ ظَنٍّ بِمَا وَعَدَ اللَّهُ الصَّابِرِينَ. |
फ़ुटनोट
- ↑ मकारिम शिराज़ी, पयाम ए इमाम अमीर अल मोमीनीन, 1386 शम्सी, भाग 8, पेज 32
- ↑ मकारिम शिराज़ी, पयाम ए इमाम अमीर अल मोमीनीन, 1386 शम्सी, भाग 8, पेज 30
- ↑ मकारिम शिराज़ी, पयाम ए इमाम अमीर अल मोमीनीन, 1386 शम्सी, भाग 8, पेज 40-56
- ↑ ख़ूई, मिनहाज अल बराआ, 1358 शम्सी, भाग 13, पेज 10-11
- ↑ ख़ूई, मिनहाज अल बराआ, 1358 शम्सी, भाग 13, पेज 4-8
- ↑ मकारिम शिराज़ी, पयाम ए इमाम अमीर अल मोमीनीन, 1386 शम्सी, भाग 8, पेज 30
- ↑ देखेः सुब्ही सालेह, नहज अल बलागा, 1414 हिजरी, पेज 319
- ↑ मकारिम शिराज़ी, पयाम ए इमाम अमीर अल मोमीनीन, 1386 शम्सी, भाग 8 पेज 37
- ↑ ख़ूई, मिनहाज अल बराआ, 1358 शम्सी, भाग 13, पेज 8-9
- ↑ मकारिम शिराज़ी, पयाम ए इमाम अमीर अल मोमीनीन, 1386 शम्सी, भाग 8, पेज 32
- ↑ इब्ने मीसम, इख्तियार मिस्बाह अल सालेकीन, 1366 शम्सी, पेज 393
- ↑ मकारिम शिराज़ी, पयाम ए इमाम अमीर अल मोमीनीन, 1386 शम्सी, भाग 8, पेज 37-38
- ↑ फ़ैज़ अल इस्लाम, तरजुमा व शरह नहज अल बलागा, 1371 शम्सी, पेज 653
- ↑ मकारिम शिराज़ी, पयाम ए इमाम अमीर अल मोमीनीन, 1386 शम्सी, भाग 8, पेज 38
- ↑ ख़ूई, मिनहाज अल बराआ, 1358 शम्सी, भाग 13, पेज 9-10
- ↑ मकारिम शिराज़ी, पयाम ए इमाम अमीर अल मोमीनीन, 1386 शम्सी, भाग 8, पेज 33
- ↑ दश्ती वा मुहम्मदी, अल मोजम अल मुफहरिस लेअलफ़ाज़ नहज अल बलागा, 1357 शम्सी, पेज 513
- ↑ कुलैनी, अल काफ़ी, 1407 हिजरी, भाग 1, पेज 458
- ↑ तबरी, दलाइल अल इमामा, 1413 हिजरी, पेज 137
- ↑ तूसी, अल अमाली, 1414 हिजरी, पेज 109
- ↑ इब्ने जौज़ी, तज़केरा अल खवास, 1426 हिजरी, भाग 2, पेज 361
- ↑ हुसैनी खतीब, मसादिर नहज अल बलागा वा असानीदेह, 1985 ईस्वी, भाग 3, पेज 85-87
- ↑ सुब्ही सालेह, नहज अल बलागा, 1414 हिजरी, पेज 319; फ़ैज़ अल इस्लाम, तरजुमा वा शरह नजह अल बलागा, 1371 शम्सी, पेज 651; इब्ने अबिल हदीद, शरह नहज अल बलागा, 1404 हिजरी, भाग 10, पेज 265; अब्दोह, शरह नहज अल बलागा, मतबा अल इस्तक़ामा, पेज 182
- ↑ दश्ती वा मुहम्मदी, अल मोजम अल मुफहरिस लेअलफाज़ नहज अल बलागा, 1357 शम्सी, पेज 513
स्रोत
- नहज अल बलागा, संशोधन सुब्ही सालेह, क़ुम, दार अल हिजरा, 1414 हिजरी
- दीवान अल इमाम अली, शोधः अब्दुल मुनइम ख़फ़ाजी, दीवान अल इमाम अली, दार इब्ने ज़ैदून
- इब्ने अबिल हदीद, इज़्ज़ुद्दीन अबू हामिद, शरह नहज अल बलागा, क़ुम, किताब खाना उमूमी आयतुल्लाह मरअशी नजफ़ी, 1404 हिजरी
- इब्ने जौज़ी, युसूफ़ बिन क़ज़ाउग़ली, तज़केरा अल खवास मिन उम्मते बेज़िक्रे ख़साइस अल आइम्मा, क़ुम, अल मजमा अल आलमी लेअहले अल बैत अलैहेमुस सलाम, 1426 हिजरी
- इब्ने मीसम बहरानी, मीसम बिन अली, इख्तियार मिस्बाह अल सालेकीन, शरह नहज अल बलागा अल वसीत, शोधः मुहम्मद हादी अमीनी, मशहद, बुनयाद पुज़ूहिश हाए इस्लामी आसताने कुद्स रज़वी, 1366 शम्सी
- हुसैनी खतीब, सय्यद अब्दुज ज़हरा, मसादिर नहज अल बलागा वा असानीदेह, बैरूत, दार अल अज़वा, 1985 ईस्वी
- ख़ूई, अबुल क़ासिम, मिनहाज अल बराआ, तेहरान, मकतब अल इस्लामीया, 1358 शम्सी
- दश्ती, मुहम्मद वा काज़िम मुहम्मदी, अल मोजम अल मुफहरिस ले अल फ़ाज नहज अल बलागा, क़ुम, मोअस्सेसा फरहंगी तहक़ीक़ाती अमीर अल मोमीनीन, 1375 शम्सी
- तबरी आमोली सग़ीर, मुहम्मद बिन जुरैर बिन रुस्तम, दलाइल अल इमामा, क़ुम, बेसत, 1413 हिजरी
- अब्दोह, मुहम्मद, शरह नहज अल बलागा, क़ाहेरा, मतबा अल इस्तेकामा
- फ़ैज़ अल इस्लाम, अली नक़ी, तरजुमा वा शरह नहज अल बलागा, तेहरान, इनतेशारात फ़ैज़ अल इस्लाम, 1371 शम्सी
- कुलैनी, मुहम्मद बिन याक़ूब, अल काफी, तेहारन, दार अल कुतुब अल इस्लामीया, 1407 हिजरी
- मकारिम शिराज़ी, नासिर, पयाम ए इमाम अमीर अल मोमीनीन, दार अल कुतुब अल इस्लामीया, 1386 शम्सी