ख़ुतबा ग़र्रा

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ग़र्रा का उपदेश
विषयमृत्यु के बाद की घटनाएं, मनुष्य और उसके इतिहास का वर्णन, संसार के प्रति दिल देने की निंदा, धर्मपरायणता की सलाह देना और धर्मपरायण लोगों के लक्षण व्यक्त करना
किस से नक़्ल हुईइमाम अली (अ)
दस्तावेज़ की वैधताप्रामाणिक
शिया स्रोतनहजुल बलाग़ा, तोहफ़ अल-उक़ूल
सुन्नी स्रोतहिलयतुल औलिया और तबक़ात अल-अस्फ़िया

ग़र्रा का उपदेश (फ़ारसी: خطبه غراء), नहज अल-बलाग़ा के प्रसिद्ध उपदेशों में से एक है।[1] यह उपदेश अपनी वाक्पटुता और फ़साहत व बलाग़त के कारण ग़र्रा का उपदेश (अर्थात उज्ज्वल और चमकदार उपदेश) के रूप में जाना जाता है।[2] इब्न अबी अल-हदीद इसे इमाम अली (अ.स.) के चमत्कारों में से एक के रूप में मानते हैं। [3] सरल शब्दों वाले इस उपदेश में अधिकतर दृष्टांत, रूपक (बयान व बदीअ), उपमा और व्यंग्य जैसी अभिव्यंजक और नवीन सरणियों का प्रयोग किया गया है।[4] नहज अल-बलाग़ा के संकलनकर्ता सय्यद रज़ी का वर्णन है कि, इस उपदेश को सुनने के बाद, लोग डर के मारे कांपने लगे और आँसू बहाने लगे।[5]

इस उपदेश की मुख्य सामग्री चार विषय हैं: 1. मनुष्य और उसके इतिहास का वर्णन 2. संसार के प्रति दिल देने की निंदा 3. धर्मपरायणता की सलाह देना और धर्मपरायण लोगों के लक्षण व्यक्त करना 4. मृत्यु के पश्चात की घटनाओं का वर्णन| मनुष्य और उसके इतिहास से संबंधित विषय, जो इस उपदेश का सबसे महत्वपूर्ण विषय माना गया है, में मनुष्य की मृत्यु, उसे दिए गए आशीर्वाद, मनुष्य की उपेक्षा (ग़फ़लत), सांसारिक जीवन, मनुष्य का दुनिया से इबरत प्राप्त करना और उसका मिट जाने वाला होना जैसे मुद्दे शामिल हैं। [6] हिलया अल-औलिया और तबक़ात अल-असफ़िया में अबू नईम इस्फ़हानी के अनुसार, इमाम अली (अ.स.) ने यह उपदेश तब सुनाया था जब एक व्यक्ति का शव क़ब्र में रखा जा चुका था और उसके वाले परिवार रो और बिलख रहे थे।

मसादिरो नहज अल-बलाग़ा व असानिदोहु पुस्तक के लेखक सय्यद अब्दुल ज़हरा हुसैनी ख़तीब का मानना ​​है कि इस उपदेश को मान्य करने के लिए इसके दस्तावेज़ (सनद) की जांच करने की कोई आवश्यकता नहीं है; क्योंकि इस उपदेश के पाठ में इतनी वाक्पटुता और फ़साहत व बलाग़त है कि इसे मासूम इमामों के अलावा कोई भी व्यक्त नहीं कर सकता है। [8] नहज अल-बलाग़ा के अलावा, इस उपदेश के कुछ हिस्सों को तोहफ़ अल-उक़ूल, [9] और हिलयतुल औलिया और तबक़ात अल-अस्फ़िया [10] जैसी पुस्तकों में उद्धृत किया गया है। और रही हैं।[11]

अब्दुल ज़हरा हुसैनी ख़तीब के अनुसार, अल-इक़्द अल-फ़रीद [12] पुस्तक में इमाम के उपदेशों में से एक अन्य उपदेश को ग़लती से खुतबा ग़र्रा का नाम दिया गया है [13] जैसा कि तैसीर अल-मतालिब पुस्तक में भी, नहज अल-बलाग़ा के 185वें उपदेश को ख़ुतबा ग़र्रा कहा गया है। [14] सैय्यद सादिक़ मूसवी ने अपनी पुस्तक तमामो नहज-अल-बलाग़ा में नहज-उल-बलाग़ा के 237वें उपदेश को गर्रा के उपदेश का एक भाग माना है।[15]

इस उपदेश की क्रम संख्या नहज अल-बलाग़ा [16] के संस्करणों में भिन्न है।

संस्करण का नाम ख़ुतबा संख्या
अल-मोअजम अल-मुफ़हरिस ले अलफ़ाज़ नहज अल-बलाग़ा, सुबही सालेह 83
फ़ैज़ुल इस्लाम, हबीबुल्लाह ख़ूई, मुल्ला सालेह कज़विनी, इब्न अबी अल-हदीद 82
शरहे इब्न मीसम बहरानी 80
मुहम्मद अब्दोह 79
मुल्ला फ़तुल्लाह काशानी 84
फ़ी ज़ेलाल, मोहम्मद जवाद मुग़नीया 81

उपदेश का पाठ और अनुवाद