ख़ुतबा ग़र्रा

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ग़र्रा का उपदेश
विषयमृत्यु के बाद की घटनाएं, मनुष्य और उसके इतिहास का वर्णन, संसार के प्रति दिल देने की निंदा, धर्मपरायणता की सलाह देना और धर्मपरायण लोगों के लक्षण व्यक्त करना
किस से नक़्ल हुईइमाम अली (अ)
दस्तावेज़ की वैधताप्रामाणिक
शिया स्रोतनहजुल बलाग़ा, तोहफ़ अल-उक़ूल
सुन्नी स्रोतहिलयतुल औलिया और तबक़ात अल-अस्फ़िया

ग़र्रा का उपदेश (फ़ारसी: خطبه غراء), नहज अल-बलाग़ा के प्रसिद्ध उपदेशों में से एक है।[१] यह उपदेश अपनी वाक्पटुता और फ़साहत व बलाग़त के कारण ग़र्रा का उपदेश (अर्थात उज्ज्वल और चमकदार उपदेश) के रूप में जाना जाता है।[२] इब्न अबी अल-हदीद इसे इमाम अली (अ.स.) के चमत्कारों में से एक के रूप में मानते हैं।[३] सरल शब्दों वाले इस उपदेश में अधिकतर दृष्टांत, रूपक (बयान व बदीअ), उपमा और व्यंग्य जैसी अभिव्यंजक और नवीन सरणियों का प्रयोग किया गया है।[४] नहज अल-बलाग़ा के संकलनकर्ता सय्यद रज़ी का वर्णन है कि, इस उपदेश को सुनने के बाद, लोग डर के मारे कांपने लगे और आँसू बहाने लगे।[५]

इस उपदेश की मुख्य सामग्री चार विषय हैं: 1. मनुष्य और उसके इतिहास का वर्णन 2. संसार के प्रति दिल देने की निंदा 3. धर्मपरायणता की सलाह देना और धर्मपरायण लोगों के लक्षण व्यक्त करना 4. मृत्यु के पश्चात की घटनाओं का वर्णन| मनुष्य और उसके इतिहास से संबंधित विषय, जो इस उपदेश का सबसे महत्वपूर्ण विषय माना गया है, में मनुष्य की मृत्यु, उसे दिए गए आशीर्वाद, मनुष्य की उपेक्षा (ग़फ़लत), सांसारिक जीवन, मनुष्य का दुनिया से इबरत प्राप्त करना और उसका मिट जाने वाला होना जैसे मुद्दे शामिल हैं।[६] हिलया अल-औलिया और तबक़ात अल-असफ़िया में अबू नईम इस्फ़हानी के अनुसार, इमाम अली (अ.स.) ने यह उपदेश तब सुनाया था जब एक व्यक्ति का शव क़ब्र में रखा जा चुका था और उसके वाले परिवार रो और बिलख रहे थे।[७]

मसादिरो नहज अल-बलाग़ा व असानिदोहु पुस्तक के लेखक सय्यद अब्दुल ज़हरा हुसैनी ख़तीब का मानना ​​है कि इस उपदेश को मान्य करने के लिए इसके दस्तावेज़ (सनद) की जांच करने की कोई आवश्यकता नहीं है; क्योंकि इस उपदेश के पाठ में इतनी वाक्पटुता और फ़साहत व बलाग़त है कि इसे मासूम इमामों के अलावा कोई भी व्यक्त नहीं कर सकता है।[८] नहज अल-बलाग़ा के अलावा, इस उपदेश के कुछ हिस्सों को तोहफ़ अल-उक़ूल,[९] और हिलयतुल औलिया और तबक़ात अल-अस्फ़िया[१०] जैसी पुस्तकों में उद्धृत किया गया है। और रही हैं।[११]

अब्दुल ज़हरा हुसैनी ख़तीब के अनुसार, अल-इक़्द अल-फ़रीद[१२] पुस्तक में इमाम के उपदेशों में से एक अन्य उपदेश को ग़लती से खुतबा ग़र्रा का नाम दिया गया है।[१३] जैसा कि तैसीर अल-मतालिब पुस्तक में भी, नहज अल-बलाग़ा के 185वें उपदेश को ख़ुतबा ग़र्रा कहा गया है।[१४] सय्यद सादिक़ मूसवी ने अपनी पुस्तक तमामो नहज-अल-बलाग़ा में नहज-उल-बलाग़ा के 237वें उपदेश को गर्रा के उपदेश का एक भाग माना है।[१५]

इस उपदेश की क्रम संख्या नहज अल-बलाग़ा[१६] के संस्करणों में भिन्न है।

संस्करण का नाम ख़ुतबा संख्या
अल-मोअजम अल-मुफ़हरिस ले अलफ़ाज़ नहज अल-बलाग़ा, सुबही सालेह 83
फ़ैज़ुल इस्लाम, हबीबुल्लाह ख़ूई, मुल्ला सालेह कज़विनी, इब्न अबी अल-हदीद 82
शरहे इब्न मीसम बहरानी 80
मुहम्मद अब्दोह 79
मुल्ला फ़तुल्लाह काशानी 84
फ़ी ज़ेलाल, मोहम्मद जवाद मुग़नीया 81

उपदेश का पाठ और अनुवाद

ख़ुतबा मुत्तक़ीन का पाठ
हिंदी उच्चारण अनुवाद अरबी उच्चारण
اَلْحَمْدُ لِلهِ الَّذی عَلا بِحَوْلِهِ، وَ دَنا بِطَوْلِهِ، مانِحِ كُلِّ غَنیمَة وَ فَضْل، وَ كاشِفِ كُلِّ عَظیمَة وَ اَزْل.[۱۷]
اَحْمَدُهُ عَلی عَواطِفِ كَرَمِهِ، وَ سَوابِغِ نِعَمِهِ، وَ اُومِنُ بِهِ اَوَّلاً بادِیاً، وَ اَسْتَهْدیهِ قَریباً هادِیاً، وَ اَسْتَعینُهُ قاهِراً قادِراً وَ اَتَوَكَّلُ عَلَیهِ كافیاً ناصِراً.
وَ اَشْهَدُ اَنَّ مُحَمَّداً صَلَّی اللهُ عَلَیهِ وَ آلِهِ عَبْدُهُ وَ رَسُولُهُ، اَرْسَلَهُ لاِِنْفاذِ اَمْرِهِ، وَ اِنْهاءِ عُذْرِهِ، وَ تَقْدیمِ نُذُرِهِ.
اُوصیكُمْ عِبادَ اللهِ بِتَقْوَی اللهِ الَّذی ضَرَبَ لَكُمُ الْاَمْثالَ، وَ وَقَّتَ لَكُمُ الْاجالَ، وَاَلْبَسَكُمُ الرِّیاشَ، وَ اَرْفَعَ لَكُمُ الْمَعاشَ، وَ اَحاطَ بِكُمُ الْاحْصاءَ،
وَ اَرْصَدَ لَكُمُ الْجَزاءَ، وَ آثَرَكُمْ بِالنِّعَمِ السَّوابِغِ وَالرِّفَدِ الرَّوافِغِ، وَ اَنْذَرَكُمْ بِالْحُجَجِ الْبَوالِغِ، وَ اَحْصاكُمْ عَدَداً، وَ وَظَّفَ لَكُمْ مُدَداً فی قَرارِ خِبْرَةٍ وَ‌ دارِ عِبْرَةٍ،
اَنْتُمْ مُخْتَبَرُونَ فیها وَ مُحاسَبُونَ عَلَیها، فَاِنَّ الدُّنْیا رَنِقٌ مَشْرَبُها، رَدِغٌ مَشْرَعُها، یونِقُ مَنْظَرُها، وَ یوبِقُ مَخْبَرُها. غُرُورٌ حائِلٌ، وَ ضَوْءً آفِلٌ، وَ ظِلٌّ زائِلٌ، وَ سِنادٌ مائِلٌ.
حَتّی اِذا اَنِسَ نافِرُها، وَ اطْمَاَنَّ ناكِرُها، قَمَصَتْ بِاَرْجُلِها، وَ قَنَصَتْ بِاَحْبُلِها، وَ اَقْصَدَتْ بِاَسْهُمِها، وَ اَعْلَقَتِ الْمَرْءَ اَوْهاقَ الْمَنِیةِ،
قائِدَةً لَهُ اِلی ضَنْكِ الْمَضْجَعِ، وَ وَحْشَةِ الْمَرْجِعِ، وَ مُعاینَةِ الْمَحَلِّ، وَ ثَوابِ الْعَمَلِ.
وَ كَذلِكَ الْخَلَفُ یعْقُبُ السَّلَفَ، لاتُقْلِعُ الْمَنِیةُ اخْتِراماً، وَلایرْعَوِی الْباقُونَ اجْتِراماً، یحْتَذُونَ مِثالاً، وَ یمْضُونَ اَرْسالاً اِلی غایةِ الانْتِهاءِ، وَ صَیورِ الْفَناءِ.
حَتّی اِذا تَصَرَّمَتِ الْاُمُورُ، وَ تَقَضَّتِ الدُّهُورُ، وَ اَزِقَ النُّشُورُ، اَخْرَجَهُمْ مِنْ ضَرائِحِ الْقُبُورِ، وَ اَوْكارِ الطُّیورِ، وَ اَوْجِرَةِ السِّباعِ، وَ مَطارِحِ الْمَهالِكِ، سِراعاً اِلی اَمْرِهِ، مُهْطِعینَ اِلی مَعادِهِ،
رَعیلاً صُمُوتاً، قِیاماً صُفُوفاً، ینْفِذُهُمُ الْبَصَرُ، وَ یسْمِعُهُمُ الدَّاعی، عَلَیهِمْ لَبُوسُ الاِسْتِكانَةِ، وَ ضَرَعُ الاِسْتِسْلامِ وَ الذِّلَّةِ،
قَدْ ضَلَّتِ الْحِیلُ، وَ انْقَطَعَ الاَمَلُ، وَ هَوَتِ الاَفْئِدَةُ كاظِمَةً، وَخَشَعَتِ الْاصْواتُ مُهَینِمَةً، وَاَلْجَمَ الْعَرَقُ، وَ عَظُمَ الشَّفَقُ، وَ اُرْعِدَتِ الْاسْماعُ لِزَبْرَةِ الدّاعی اِلی فَصْلِ الْخِطابِ، وَ مُقایضَةِ الْجَزاءِ، وَ نَكالِ الْعِقابِ، وَ نَوالِ الثَّوابِ.
عِبادٌ مَخْلُوقُونَ اقْتِداراً، وَ مَرْبُوبُونَ اقْتِساراً، وَ مَقْبُوضُونَ احْتِضاراً، وَ مُضَمَّنُونَ اَجْداثاً، وَ كائِنُونَ رُفاتاً، وَ مَبْعُوثُونَ اَفْراداً، وَ مَدینُونَ جَزاءً، وَ مُمَیزُونَ حِساباً.
قَدْ اُمْهِلُوا فی طَلَبِ الْمَخْرَجِ، وَ هُدُوا سَبیلَ الْمَنْهَجِ، وَ عُمِّرُوا مَهَلَ الْمُسْتَعْتِبِ، وَ كُشِفَتْ عَنْهُمْ سُدَفُ الرِّیبِ، وَ خُلُّوا لِمِضْمارِ الْجِیادِ، وَ رَوِیةِ الْارْتِیادِ، وَ اَناةِ الْمُقْتَبِسِ الْمُرْتادِ فی مُدَّةِ الْاجَلِ وَ مُضْطَرَبِ الْمَهَلِ.
فَیا لَها اَمْثالاً صائِبَةً، وَ مَواعِظَ شافِیةً، لَوْ صادَفَتْ قُلُوباً زاكِیةً، وَ اَسْماعاً واعِیةً، وَ آراءً عازِمَةً، وَاَلْباباً حازِمَةً.
فَاتَّقُوا اللهَ تَقِیةَ مَنْ سَمِعَ فَخَشَعَ، وَ اقْتَرَفَ فَاعْتَرَفَ، وَ وَجِلَ فَعَمِلَ، وَ حاذَرَ فَبادَرَ، وَ اَیقَنَ فَاَحْسَنَ، وَ عُبِّرَ فَاعْتَبَرَ، وَ حُذِّرَ فَحَذِرَ، وَ زُجِرَ فَازْدَجَرَ، وَ اَجابَ فَاَنابَ، وَ رَجَعَ فَتابَ، وَ اقْتَدی فَاحْتَذی، وَ اُرِی فَرَأی.
فَاَسْرَعَ طالِباً، وَ نَجا هارِباً، فَاَفَادَ ذَخیرَةً، وَ اَطابَ سَریرَةً، وَ عَمَّرَ مَعاداً، وَ اسْتَظْهَرَ زاداً لِیوْمِ رَحیلِهِ، وَ وَجْهِ سَبیلِهِ، وَ حالِ حاجَتِهِ، وَ مَوْطِنِ فاقَتِهِ، وَ قَدَّمَ اَمامَهُ لِدارِ مُقامِهِ.
فَاتَّقُوا اللهَ عِبادَ اللهِ جِهَةَ ما خَلَقُكُمْ لَهُ، وَ احْذَرُوا مِنْهُ كُنْهَ ما حَذَّرَكُمْ مِنْ نَفْسِهِ، وَ اسْتَحِقُّوا مِنْهُ ما اَعَدَّ لَكُمْ بِالتَّنَجُّزِ لِصِدْقِ میعادِهِ، وَالْحَذَرِ مِنْ هَوْلِ مَعادِهِ.
سید رضی، بخش دیگری از این خطبه را چنین نقل می‌کند:

جَعَلَ لَكُمْ اَسْماعاً لِتَعِی ما عَناها، وَ اَبْصاراً لِتَجْلُوَ عَنْ عَشاها، وَ اَشْلاءً جامِعَةً لِاَعْضائِها، مُلائِمَةً لِاَحْنائِها، فی تَرْكیبِ صُوَرِها، وَ مُدَدِ عُمُرِها، بِاَبْدان قائِمَة بِاَرْفاقِها، وَ قُلُوب رائِدَة لِاَرْزاقِها، فی مُجَلِّلاتِ نِعَمِهِ، وَ مُوجِباتِ مِنَنِهِ، وَ حَواجِزِ عافِیتِهِ.

وَ قَدَّرَ لَكُمْ اَعْماراً سَتَرَها عَنْكُمْ، وَ خَلَّفَ لَكُمْ عِبَراً مِنْ آثارِ الْماضینَ قَبْلَكُمْ: مِنْ مُسْتَمْتَعِ خَلاقِهِمْ، وَ مُسْتَفْسَحِ خِناقِهِمْ،
اَرْهَقَتْهُمُ الْمَنایا دُونَ الْامالِ، وَ شَذَّبَهُمْ عَنْها تَخَرُّمُ الْاجالِ. لَمْ یمْهَدُوا فی سَلامَةِ الْابْدانِ، وَ لَمْ یعْتَبِرُوا فی اُنُفِ الْاوانِ.
فَهَلْ ینْتَظِرُ اَهْلُ بَضاضَةِ الشَّبابِ اِلاّ حَوانِی الْهَرَمِ؟ وَ اَهْلُ غَضارَةِ الصِّحَّةِ اِلاَّ نَوازِلَ السَّقَمِ؟ وَ اَهْلُ مُدَّةِ الْبَقاءِ اِلاّ آوِنَةَ الْفَناءِ؟
مَعَ قُرْبِ الزِّیالِ، وَ اُزُوفِ الْانْتِقالِ، وَ عَلَزِ الْقَلَقِ، وَ اَلَمِ الْمَضَضِ، وَ غُصَصِ الْجَرَضِ، وَ تَلَفُّتِ الْاسْتِغاثَةِ بِنُصْرَةِ الْحَفَدَةِ وَالْاقْرِباءِ وَ الْاعِزَّةِ وَ الْقُرَناءِ.
فَهَلْ دَفَعَتِ الْاقارِبُ؟ اَوْ نَفَعَتِ النَّواحِبُ؟ وَ قَدْ غُودِرَ فی مَحَلَّةِ الْامْواتِ رَهیناً، وَ فی ضیقِ الْمَضْجَعِ وَحیداً،
قَدْ هَتَكَتِ الْهَوامُّ جِلْدَتَهُ، وَ اَبْلَتِ النَّواهِكُ جِدَّتَهُ، وَ عَفَتِ الْعَواصِفُ آثارَهُ، وَ مَحَا الْحَدَثانُ مَعالِمَهُ، وَ صارَتِ الْاجْسادُ شَحِبَةً بَعْدَ بَضَّتِها، وَ الْعِظامُ نَخِرَةً بَعْدَ قُوَّتِها، وَ الْارْواحُ مُرْتَهَنَةً بِثِقَلِ اَعْبائِها، مُوقِنَةً بِغَیبِ اَنْبائِها، لاتُسْتَزادُ مِنْ صالِحِ عَمَلِها، وَ لاتُسْتَعْتَبُ مِنْ سَییءِ زَلَلِها.
اَوَلَسْتُمْ اَبْناءَ الْقَوْمِ وَ الْاباءَ؟ وَ اِخْوانَهُمْ وَ الْاقْرِباءَ؟ تَحْتَذُونَ اَمْثِلَتَهُمْ، وَ تَرْكَبُونَ قِدَّتَهُمْ، وَ تَطَؤُونَ جادَّتَهُمْ؟
فَالْقُلُوبُ قاسِیةٌ عَنْ حَظِّها، لاهِیةٌ عَنْ رُشْدِها، سالِكَةٌ فی غَیرِ مِضْمارِها، كَاَنَّ الْمَعْنِی سِواها، و كَاَنَّ الرُّشْدَ فی اِحْرازِ دُنْیاها.
وَ اعْلَمُوا اَنَّ مَجازَكُمْ عَلَی الصِّراطِ، وَ مَزالِقِ دَحْضِهِ، وَ اَهاویلِ زَلَلِهِ، وَ تاراتِ اَهْوالِهِ.
فَاتَّقُوا اللهَ عِبادَاللهِ تَقِیةَ ذِی لُبٍّ شَغَلَ التَّفَكُّرُ قَلْبَهُ، وَ اَنْصَبَ الْخَوْفُ بَدَنَهُ، وَ اَسْهَرَ التَّهَجُّدُ غِرارَ نَوْمِهِ، وَ اَظْمَاَ الرَّجاءُ هَواجِرَ یوْمِهِ، وَ ظَلَفَ الزُّهْدُ شَهَواتِهِ، وَ اَرْجَفَ الذِّكْرُ بِلِسانِهِ، وَ قَدَّمَ الْخَوْفَ لِاَمانِهِ،
وَ تَنَكَّبَ الْمَخالِجَ عَنْ وَضَحِ السَّبیلِ، وَ سَلَكَ اَقْصَدَ الْمَسالِكِ اِلَی النَّهْجِ الْمَطْلُوبِ، وَ لَمْ تَفْتِلْهُ فاتِلاتُ الْغُرُورِ، وَ لَمْ تَعْمَ عَلَیهِ مُشْتَبِهاتُ الْامُورِ، ظافِراً بِفَرْحَةِ الْبُشْری، وَ راحَةِ النُّعْمی، فی اَنْعَمِ نَوْمِهِ، وَ آمَنِ یوْمِهِ،
قَدْ عَبَرَ مَعْبَرَ الْعاجِلَةِ حَمیداً، وَ قَدَّمَ زادَ الْاجِلَةِ سَعیداً، وَ بادَرَ مِنْ وَجَل، وَ اَكْمَشَ فی مَهَل، وَ رَغِبَ فی طَلَب، وَ ذَهَبَ عَنْ هَرَب، وَ راقَبَ فی یوْمِهِ غَدَهُ، وَ نَظَرَ قَدَماً اَمامَهُ.
فَكَفی بِالْجَنَّةِ ثَواباً وَ نَوالاً، وَ كَفی بِالنّارِ عِقاباً وَ وَبالاً، وَ كَفی بِاللهِ مُنْتَقِماً وَ نَصیراً، وَ كَفی بِالْكِتابِ حَجیجاً وَ خَصیماً.
اُوصیكُمْ بِتَقْوَی اللهِ الَّذی اَعْذَرَ بِما اَنْذَرَ، وَ احْتَجَّ بِما نَهَجَ، وَ حَذَّرَكُمْ عَدُواًّ نَفَذَ فِی الصُّدُورِ خَفِیاً، وَ نَفَثَ فِی الْاذانِ نَجِیاً، فَاَضَلَّ وَ اَرْدی، وَ وَعَدَ فَمَنّی، وَ زَینَ سَیئاتِ الْجَرائِمِ، وَ هَوَّنَ مُوبِقاتِ الْعَظائِمِ،
حَتّی اِذَا اسْتَدْرَجَ قَرینَتَهُ، وَ اسْتَغْلَقَ رَهینَتَهُ، اَنْكَرَ ما زَینَ، وَ اسْتَعْظَمَ ماهَوَّنَ، وَ حَذَّرَ ما اَمَّنَ.
در بخش دیگری از خطبه امام در چگونگی آفرینش انسان می‌فرماید:

اَمْ هذَا الَّذی اَنْشَأَهُ فی ظُلُماتِ الْارْحامِ، وَ شُغُفِ الْاسْتارِ: نُطْفَةً دِهاقاً، وَ عَلَقَةً مُحاقاً، وَ جَنیناً وَ راضِعاً، وَ وَلیداً وَ یافِعاً.

ثُمَّ مَنَحَهُ قَلْباً حافِظاً، وَ لِساناً لافِظاً، وَ بَصَراً لاحِظاً، لِیفْهَمَ مُعْتَبِراً، وَ یقْصِرَ مُزْدَجِراً.
حَتّی اِذا قامَ اعْتِدالُهُ، وَ اسْتَوی مِثالُهُ، نَفَرَ مُسْتَكْبِراً، وَخَبَطَ سادِراً، ماتِحاً فی غَرْبِ هَواهُ، كادِحاً سَعْیاً لِدُنْیاهُ، فی لَذّاتِ طَرَبِهِ، وَ بَدَواتِ اَرَبِهِ، لایحْتَسِبُ رَزِیةً، وَلایخْشَعُ تَقِیةً،
فَماتَ فی فِتْنَتِهِ غَریراً، وَ عاشَ فی هَفْوَتِهِ یسیراً، لَمْ یفِدْ عِوَضاً، وَلَمْ یقْضِ مُفْتَرَضاً.
دَهِمَتْهُ فَجَعاتُ الْمَنِیةِ فی غُبَّرِ جِماحِهِ، وَ سَنَنِ مِراحِهِ، فَظَلَّ سادِراً، وَ باتَ ساهِراً، فی غَمَراتِ الْالامِ، وَ طَوارِقِ الْاوْجاعِ وَالْاسْقامِ، بَینَ اَخ شَقیق، وَ والِد شَفیق، وَ داعِیة بِالْوَیلِ جَزَعاً، وَلادِمَة لِلصَّدْرِ قَلَقاً،
وَالْمَرْءُ فی سَكْرَة مُلْهِیة، وَ غَمْرَة كارِثَة، وَ اَنَّة مُوجِعَة، وَ جَذْبَة مُكْرِبَة، وَ سَوْقَة مُتْعِبَة.
ثُمَّ اُدْرِجَ فی اَكْفانِهِ مُبْلِساً، وَ جُذِبَ مُنْقاداً سَلِساً،
ثُمَّ اُلْقِی عَلَی الْاعْوادِ، رَجیعَ وَصَب وَ نِضْوَ سَقَم، تَحْمِلُهُ حَفَدَةُ الْوِلْدانِ وَ حَشَدَةُ الْاخْوانِ، اِلی‌دار غُرْبَتِهِ، وَ مُنْقَطَعِ زَوْرَتِهِ.
حَتّی اِذَا انْصَرَفَ الْمُشَیعُ، وَ رَجَعَ الْمُتَفَجِّعُ، اُقْعِدَ فی حُفْرَتِهِ نَجِیاً لِبَهْتَةِ السُّؤالِ وَ عَثْرَةِ الْامْتِحانِ.
وَ اَعْظَمُ ما هُنالِكَ بَلِیةً نُزُولُ الْحَمیمِ، وَ تَصْلِیةُ الْجَحیمِ، وَ فَوْراتُ السَّعیرِ، وَ سَوْراتُ الزَّفیرِ.
لا فَتْرَةٌ مُریحَةٌ، وَ لادَعَةٌ مُزیحَةٌ، وَ لاقُوَّةٌ حاجِزَةٌ، وَ لامَوْتَةٌ ناجِزَةٌ، وَ لاسِنَةٌ مُسْلِیةٌ، بَینَ اَطْوارِ الْمَوْتاتِ، وَ عَذابِ السّاعاتِ.
اِنّا بِاللهِ عائِذُونَ. عِبادَ اللهِ! اَینَ الَّذینَ عُمِّرُوا فَنَعِمُوا، وَ عُلِّمُوا فَفَهِمُوا، وَ اُنْظِرُوا فَلَهَوْا، وَ سُلِّمُوا فَنَسُوا؟ اُمْهِلُوا طَویلاً، وَ مُنِحُوا جَمیلاً، وَ حُذِّرُوا اَلیماً، وَ وُعِدُوا جَسیماً؟!
اِحْذَرُوا الذُّنُوبَ الْمُوَرِّطَةَ، وَالْعُیوبَ الْمُسْخِطَةَ. اُولِی الْابْصارِ وَ الْاسْماعِ، وَالْعافِیةِ وَالْمَتاعِ! هَلْ مِنْ مَناصٍ اَوْخَلاصٍ؟ اَوْ مَعاذٍ اَوْ مَلاذٍ؟ اَوْ فِرار اَوْ مَحار اَمْ لا؟
فَاَنّی تُؤْفَكُونَ؟ اَمْ اَینَ تُصْرَفُونَ؟ اَمْ بِماذا تَغْتَرُّونَ، وَ اِنَّما حَظُّ اَحَدِكُمْ مِنَ الْارْضِ ذاتِ الطُّولِ وَ الْعَرْضِ قیدُ قَدِّهِ، مُتَعَفِّراً عَلی خَدِّهِ.
اَلْانَ عِبادَ اللهِ، وَ الْخِناقُ مُهْمَلٌ، وَالرُّوحُ مُرْسَلٌ فی فَینَةِ الْارْشادِ، وَ راحَةِ الْاجْسادِ، وَ باحَةِ الْاحْتِشادِ، وَ مَهَلِ الْبَقِیةِ، وَ اُنُفِ الْمَشِیةِ، وَ اِنْظارِ التَّوْبَةِ، وَ انْفِساحِ الْحَوْبَةِ، قَبْلَ الضَّنْكِ وَالْمَضیقِ، وَ الرَّوْعِ وَ الزُّهُوقِ، وَ قَبْلَ قُدُومِ الْغائِبِ الْمُنْتَظَرِ، وَ اَخْذَةِ الْعَزیزِ الْمُقْتَدِرِ.
* वर्णन किया गया है कि जब अमीरुल मोमिनीन (अलैहिस सलाम) ने यह उपदेश सुनाया, तो लोगों के शरीर कांपने लगे, आँसू बहने लगे और दिल चिंतित हो गए।[१७]

फ़ुटनोट

  1. हुसैनी खतीब, मसादिरे नहज अल-बलाग़ा, 1409 एएच, खंड 2, पृष्ठ 103।
  2. मकारिम शिराज़ी, पयामे इमाम अमीरुल मोमिनीन (अ), 2006, खंड 3, पृष्ठ 459।
  3. इब्न अबी अल-हदीद, नहज अल-बलाग़ा पर टिप्पणी, 1404 एएच, खंड 6, पृष्ठ 243।
  4. हुसैनी ख़तीब, मसादिरे नहज अल-बलाग़ा, 1409 एएच, खंड 2, पृष्ठ 104।
  5. नहज अल-बलाग़ा, सुबही सालेह द्वारा संपादित, 1414 एएच, उपदेश 83, पृष्ठ 114।
  6. अमीन नाजी, और ज़हरा अमिनी अरामकी, "ग़र्रा के उपदेश में चेतावनी और उपदेश की मूल बातों की जांच", पृष्ठ 81।
  7. इस्फ़हानी, हिलयतुल-अवलिया, दार उम्म अल-क़ुरा, खंड 1, पीपी. 77-78।
  8. हुसैनी खतीब, मसादिरो नहज अल-बलाग़ा, 1409 एएच, खंड 2, पृष्ठ 107।
  9. इब्न शबा हर्रानी, ​​तोहफ़ अल-उक़ूल, 1404 एएच, पृष्ठ 210।
  10. इस्फ़हानी, हिलया अल-अवलिया, दार उम्म अल-क़ुरा, खंड 1, पीपी. 77-78।
  11. इस उपदेश के अन्य स्रोतों को देखने के लिए, देखें: दशती, दस्तावेज़ और नहज अल-बलाग़ा के दस्तावेज़, 1378, पृष्ठ 137-138।
  12. देखें: इब्न अब्दो रब्बेह, अल-अक़द अल-फ़रीद, 1407 एएच, खंड 4, पृष्ठ 163।
  13. हुसैनी ख़तीब, नहज अल-बलाग़ा के स्रोत, 1409 एएच, खंड 2, पृष्ठ 107।
  14. हारूनी, तैसिर अल-मतालिब, 1422 एएच, पृष्ठ 273।
  15. मूसवी, तमामो नहज अल-बलाग़ा, 1426 एएच, खंड 2, पृष्ठ 367।
  16. दश्ती, और काज़िम मोहम्मदी, अल-मोअजम अल-मुफ़हरिस लिल अलफ़ाज़ नहज अल-बलाग़ा, 1375 शम्सी, पृष्ठ 509।
  17. अंसारियान, नहज अल-बलाग़ा का अनुवाद, 2006, पीपी. 156-168

स्रोत

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  • इब्न अब्दो रब्बेह, अहमद इब्न मुहम्मद, अल-अक़द अल-फ़रीद, बेरूत, दार अल-किताब अल-इल्मिया, 1407 एएच।
  • एस्फहानी, अहमद बिन अब्दुल्लाह, हिलया अल-अवलिया और तबक़ात अल-असफ़िया, क़ाहिरा, दार उम्म अल-क़ुरा, बी ता।
  • अमीन नाजी, मोहम्मद हादी, और ज़हरा अमिनी एर्मकी, "ग़र्रा धर्मोपदेश में चेतावनी और उपदेश की बुनियादी बातों पर शोध" https://www.noormags.ir/view/fa/articlepage/2049217, जर्नल ऑफ़ एथिकल रिसर्च, संख्या 52, ग्रीष्म 1402 शम्सी में।
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  • दश्ती, मोहम्मद, और काज़िम मोहम्मदी, अल-मोअजम अल-मुफ़हरिस लिल अलफ़ाज़ नहज अल-बलाग़ा, क़ुम, अमीरुल मोमिनीन (अ) सांस्कृतिक अनुसंधान संस्थान, 1375 शम्सी।
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  • हर्रानी, यह्या बिन सईद, तैसीर अल-मतालिब फ़ी अमाली अबी तालिब, सनआ, इमाम ज़ैद बिन अली अल-सक़ाफिया फाउंडेशन, 1422 एएच।