क़ाज़ी शोरैह को इमाम अली का पत्र

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क़ाज़ी शोरैह को इमाम अली का पत्र (अरबी: رسالة الإمام علي إلى شريح القاضي) इमाम अली (अ) का कूफ़ा के न्यायाधीश शोरैह बिन हारिस को एक फटकार वाला पत्र है, जिसमें शोरैह को एक महंगा घर खरीदने के लिए फटकार लगाई गई। इस पत्र में इमाम अली ने शोरैह को इस दुनिया की बेकार होने और पुनरुत्थान के हिसाब और किताब के बारे में उपदेश दिया है। साथ ही, एक सरकारी अधिकारी के रूप में, शोरैह से यह अपेक्षा की गई है कि वह कुलीन जीवन न जिए। इस पत्र को शासन के सिद्धांतों में से एक माना गया है, जिसके अनुसार शासक को गवर्नर के साथ निर्णायक व्यवहार करना चाहिए।

यह पत्र नहज उल बलाग़ा का तीसरा पत्र है। इसका उल्लेख अन्य पुस्तकों में भी किया गया है जैसे शेख़ सदूक़ की अमाली और शेख़ बहाई की किताब अरबईन और सुन्नियों की कुछ किताबों जैसे काज़ी क़ज़ाई (मृत्यु: 454 हिजरी) द्वारा दुस्तूर मआलिम अल हेकम और सिब्ते बिन जौज़ी द्वारा तज़्किरा अल ख्वास (मृत्यु: 654 हिजरी) में भी किया गया है।

महत्व एवं स्थिति

क़ाज़ी शोरैह को इमाम अली के पत्र की 5वीं शताब्दी की पांडुलिपि

शोरैह क़ाज़ी को इमाम अली के पत्र को सरकारी अधिकारियों के खिलाफ़ शासक की निर्णायकता के लिए एक दस्तावेज़ के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।[१] चूंकि शोरैह एक न्यायाधीश थे और आरोप के अधीन थे, इमाम (अ) को उनकी ओर से एक घर की खरीदना पसंद नहीं आया था।[२] शोरैह कूफ़ा के न्यायाधीश थे। उमर बिन ख़त्ताब ने उन्हें कूफ़ा का न्यायाधीश नियुक्त किया था।[३] वह उस्मान और इमाम अली (अ) की खिलाफ़त के दौरान इस पद बने रहे।[४] अल काफ़ी में वर्णित रिवायत के अनुसार, जब इमाम अली (अ) शोरैह को न्यायाधिश के लिए नियुक्त किया, उनके साथ एक शर्त रखी कि इमाम के साथ समन्वय के बिना किसी भी हुक्म को लागू नहीं करेंगे।[५]

शरहे नहज उल बलाग़ा में आयतुल्लाह मकारिम शिराज़ी के अनुसार, इमाम अली (अ) का शासनकाल उस्मान के खतरनाक काल और बैतुल माल के व्यापक विनाश के बाद था, जब इस्लामी समाज के प्रसिद्ध लोगों का एक समूह ग्लैमरस (शान और शौकत) जीवन की ओर मुड़ गया था।[६] इस कारण से, इमाम (अ) को यह उम्मीद नहीं थी कि उनकी ओर से नियुक्त न्यायाधीश एक कुलीन जीवन व्यतीत करेगा।[७] इस प्रवाह को रोकने के लिए, इमाम (अ) ने हमेशा अपने उपदेशों और पत्रों में भौतिक दुनिया और इसकी भ्रामक सजावट के बारे में चेतावनी दी थी, जो नहज उल बलाग़ा में एकत्र किए गए हैं।[८]

पत्र जारी करने का संदर्भ और सामग्री

क़ाज़ी शोरैह ने हज़रत अली (अ) के शासनकाल के दौरान 80 दीनार में एक महंगा घर खरीदा।[९] ख़बर सुनने और पुष्टि करने के बाद कि शोरैह ने घर खरीदा है, इमाम (अ) ने उसे बुलाया और उसे डांटा और चेतावनी दी कि जल्द ही मौत उसका पीछा करेगी, और उसे इस घर से बाहर निकाल देगी।[१०] इमाम (अ) ने शोरैह को सलाह दी कि घर की ख़रीद हराम माल से न हो, नहीं तो इस दुनिया में और आख़िरत में बहुत नुक़सान होगा।[११]

इमाम अली (अ) ने शोरैह के लिए दुनिया से लगाव न होने के बारे में एक आध्यात्मिक दस्तावेज़ लिखा और कहा कि अगर शोरैह को उस दस्तावेज़ की सामग्री पता होती, तो वह घर खरीदने पर एक भी दिरहम खर्च नहीं करता। उस दस्तावेज़ के अनुसार, यह घर चार आध्यात्मिक सीमाओं और दिशाओं की ओर ले जाता है, जो इस प्रकार हैं: पहली दिशा आपदाओं और विपत्तियों की, दूसरी दिशा कष्टों की, तीसरी दिशा विनाशकारी इच्छाओं की और चौथी दिशा गुमराह करने वाले शैतान की। इस घर का दरवाज़ा शैतान (चौथी दिशा) के लिए खुला है। ये सीमाएँ और निर्देश उन जोखिमों और चुनौतियों को व्यक्त करते हैं जो उस घर के खरीदार तक पहुँचेंगे।[१२]

इमाम (अ) ने शोरैह को अतीत और शक्तिशाली लोगों से सबक़ लेते हुए, जिनके शरीर मिट्टी के नीचे सड़ गए थे, क़यामत के दिन की गणना के लिए खुद को तैयार करने की चेतावनी दी।[१३] इस पत्र के अंतर्गत नहज उल बलाग़ा के कुछ विवरणों में, लापरवाही और घमंड से बचना,[१४] दुनिया के प्यार से सावधान रहना और हराम के माध्यम से सांसारिक धन प्राप्त करना और रिश्वत लेना[१५] जैसे बिंदुओं (अहकाम) का उल्लेख किया गया है।

स्रोत और दस्तावेज़

क़ाज़ी शोरैह को इमाम अली का पत्र, किताब अमाली शेख़ सदूक़ (मृत्यु: 381 हिजरी)[१६] में थोड़े अंतर के साथ[१७] और इसी तरह शेख बहाई (मृत्यु: 1031 हिजरी) ने किताब अरबईन में,[१८] सिब्ते बिन जौज़ी (मृत्यु: 654 हिजरी) ने तज़्किरा अल ख्वास में[१९] और क़ज़ाई (मृत्यु: 454 हिजरी) ने दुस्तूर मआलिम अल हेकम[२०] उन लोगों में से हैं जिन्होंने इमाम का पत्र कुछ अंतर के साथ वर्णित किया है।[२१] यह पत्र नहज उल बलाग़ा के विभिन्न संस्करणों में तीसरा पत्र है।[२२]

अल्लामा हसन ज़ादेह के अनुसार, क्योंकि शेख़ बहाई ने इस पत्र को महान शिक्षकों और कथावाचकों से वर्णित किया है, इसलिए इसके दस्तावेज़ में कोई समस्या या विवाद नहीं है।[२३]

पत्र का पाठ और अनुवाद

क़ाज़ी शोरैह को इमाम अली का पत्र अंसारियान अनुवाद पर आधारित
पत्र का हिन्दी उच्चारण अनुवाद पत्र का अरबी उच्चारण
मिन किताब लहु (अ) ले शोरैह बिन अल हारिस क़ाज़िया इमाम (अ) के पत्रों में से एक पत्र क़ाज़ी शोरैह के लिए من کتاب له(ع) لشريح بن الحارث قاضيه
रोवेया अन्ना शोरैह बिन अल हारिस क़ाज़िया अमीरिल मोमिनीन (अलैहिस सलाम) इश्तरा अला अहदेही दारन बे समानीना दीनारन फ़बलगहु ज़ालेका, फ़स्तदआ शोरैहन, यह कहा गया है कि शोरैह बिन हारिस, अमीर अल मोमिनीन (अ) के न्यायाधीश थे। हज़रत (अ) के शासनकाल के दौरान, उन्होंने अस्सी दीनार में एक घर खरीदा। इस योजना की खबर उन तक पहुंची, उन्होंने उसे बुलाया। رُوِيَ أَنَّ شُرَيْحَ بْنَ الْحَارِثِ قَاضِيَ أَمِيرِالْمُؤْمِنِينَ (علیه السلام) اشْتَرَى عَلَى عَهْدِهِ دَاراً بِثَمَانِينَ دِينَاراً فَبَلَغَهُ ذَلِكَ، فَاسْتَدْعَى شُرَيْحاً
व क़ाला लहु: बलग़नी अन्नका इब्तअता दारन बे समानीना दीनारन व कतब्ता लहा किताबन व अशहदता फ़ीहे शोहुदन फ़क़ाला लहु शोरैहुन क़द काना ज़ालेका या अमीर अल मोमिनीन (अ) और उन्होंने उस से कहा: मैं ने सुना है, कि तुम ने अस्सी दीनार में एक घर ख़रीदा है, और उसके लिए बैनामा लिखा है, और उसके लिए गवाह भी ले लिए हैं। उसने कहा: हां, ऐसा ही है, ए अमीर अल मोमिनीन (अ) (وَ قَالَ لَهُ: بَلَغَنِي أَنَّكَ ابْتَعْتَ دَاراً بِثَمَانِينَ دِينَاراً وَ كَتَبْتَ لَهَا كِتَاباً وَ أَشْهَدْتَ فِيهِ شُهُوداً فَقَالَ لَهُ شُرَيْحٌ قَدْ كَانَ ذَلِكَ يَا أَمِيرَالْمُؤْمِنِينَ(ع
क़ाला फ़नज़रा एलैहे नज़रल मुग़्ज़बे सुम्मा क़ाला लहु: या शोरैहु अमा इन्नहु सयअतीका मन ला यनज़ोरो फ़ी किताबेका वला यस्अलोका अन बय्येनतेका, हत्ता युख़्रेजका मिन्हा शाख़ेसन व युस्लेमका एला क़ब्रेका ख़ालेसन। हज़रत (अ) ने क्रोध से उसकी ओर देखा, फिर कहा: "जल्द ही, कोई तुम्हारे पास आएगा, मलक उल मौत, जो घर के दस्तावेज़ को नहीं देखता है, और उसके गवाह से नहीं पूछता है, यहाँ तक कि वह तुम्हें उस घर से बाहर नहीं निकाल देता है, और केवल तुम्हें कब्र के घर तक पहुँचाता है।" قَالَ فَنَظَرَ إِلَيْهِ نَظَرَ الْمُغْضَبِ ثُمَّ قَالَ لَهُ: يَا شُرَيْحُ أَمَا إِنَّهُ سَيَأْتِيكَ مَنْ لَا يَنْظُرُ فِي كِتَابِكَ وَ لَا يَسْأَلُكَ عَنْ بَيِّنَتِكَ، حَتَّى يُخْرِجَكَ مِنْهَا شَاخِصاً وَ يُسْلِمَكَ إِلَى قَبْرِكَ خَالِصاً
फ़न्ज़ुर या शोरैह ला तकूनो इब्तअता हाज़ेही अल दारा मिन ग़ैरे मालेका अव नक़द्ता अल समना मिन ग़ैरे हलालेका; फ़एज़ा अन्ता क़द ख़सिरता दार अल दुनिया व दार अल आख़िरते ऐ शोरैह, सावधान रहो कि इस घर को अपने पैसे के अलावा किसी और पैसे से मत खरीदो, या इसकी क़ीमत हलाल पैसे के अलावा किसी अन्य पैसे से मत दो, क्योंकि ऐसी हालत में तुमनें इस दुनिया और आख़िरत में नुक़सान उठाया है। فَانْظُرْ يَا شُرَيْحُ لَا تَكُونُ ابْتَعْتَ هَذِهِ الدَّارَ مِنْ غَيْرِ مَالِكَ أَوْ نَقَدْتَ الثَّمَنَ مِنْ غَيْرِ حَلَالِكَ؛ فَإِذَا أَنْتَ قَدْ خَسِرْتَ دَارَ الدُّنْيَا وَ دَارَ الْآخِرَةِ
अमा इन्नका लौ कुन्ता आतैतनी इन्दा शेराएका मश्तरैता लकतब्तो लका किताबन अला हाज़ेही अल नुस्ख़ते, फ़लम तर्ग़ब फ़ी शेराए हाज़ेही अल दारे (बिद्दिरहमे) बेदिरहमिन फ़मा फ़ौको। ध्यान रहे, यदि तुम घर खरीदने के समय मेरे पास आते तो मैं तुम्हारे लिए इस दस्तावेज़ जैसा दस्तावेज़ लिख देता कि तुम एक दिरहम में भी यह घर खरीदने को तैयार नहीं होते। أَمَا إِنَّكَ لَوْ كُنْتَ أَتَيْتَنِي عِنْدَ شِرَائِكَ مَا اشْتَرَيْتَ لَكَتَبْتُ لَكَ كِتَاباً عَلَى هَذِهِ النُّسْخَةِ، فَلَمْ تَرْغَبْ فِي شِرَاءِ هَذِهِ الدَّارِ [بِالدِّرْهَمِ] بِدِرْهَمٍ فَمَا فَوْقُ
वन नुस्ख़तो हाज़ेही हाज़ा मश्तरा अब्दुन ज़लीलुन मिन मय्येतिन क़द उज़्एजा लिर्रहीले इश्तरा मिन्हो दारन अल ग़ुरूरे मिन जानेबिल फ़ानीना व ख़ित्ततिल हालेकीना और वह दस्तावेज़ यह है: यह एक ऐसा घर है जिसे एक ग़ुलाम ने एक मृत व्यक्ति से खरीदा था, जिसे इस घर से दूसरे घर में जाने के लिए बाहर कर दिया गया था, उससे नश्वर लोगों से धोखेबाज घरों का एक घर, और अहले हलाकत (विनाश) की ज़मीन ख़रीदी। وَ النُّسْخَةُ هَذِهِ هَذَا مَا اشْتَرَى عَبْدٌ ذَلِيلٌ مِنْ مَيِّتٍ قَدْ أُزْعِجَ لِلرَّحِيلِ اشْتَرَى مِنْهُ دَاراً مِنْ دَارِ الْغُرُورِ مِنْ جَانِبِ الْفَانِينَ وَ خِطَّةِ الْهَالِكِينَ
व तज्मओ हाज़ेही अल दारा हुदूदुन अरबअतुन अल हद्दुल अव्वलो यन्तही एला दवाई अल आफ़ाते वल हद्दो अल सानी यन्तही एला दवाई अल मुसीबाते वल हद्दो अल सालेसो यन्तही एलल हवा अल मुर्दी वल हद्दो अल राबेओ यन्तही एलश शैताने अल मुग़्वी व फ़ीहे युशरओ बाबो हाज़ेही अल दारे इस घर की चार सीमाएँ और दिशाएँ हैं: पहली सीमा आपदाओं और मुसीबतों के लिए है, दूसरी सीमा पीड़ा के लिए है, तीसरी सीमा विनाशकारी इच्छाओं के लिए है, और चौथी सीमा गुमराह करने वाले शैतान के लिए है, और इस घर का दरवाज़ा इसी चौथी सीमा में खुलता है। وَ تَجْمَعُ هَذِهِ الدَّارَ حُدُودٌ أَرْبَعَةٌ الْحَدُّ الْأَوَّلُ يَنْتَهِي إِلَى دَوَاعِي الْآفَاتِ وَ الْحَدُّ الثَّانِي يَنْتَهِي إِلَى دَوَاعِي الْمُصِيبَاتِ وَ الْحَدُّ الثَّالِثُ يَنْتَهِي إِلَى الْهَوَى الْمُرْدِي وَ الْحَدُّ الرَّابِعُ يَنْتَهِي إِلَى الشَّيْطَانِ الْمُغْوِي وَ فِيهِ يُشْرَعُ بَابُ هَذِهِ الدَّارِ
इश्तरा हाज़ल मुग़्तर्रो बिल अमले मिन हाज़ल मुज़्अजे बिल अजले हाज़ेही अल दारा बिल ख़ुरूजे मिन इज़्ज़िल क़नाअते वद्दुख़ूले फ़ी ज़ुल्ले अल तलबे वज़्ज़राअते फ़मा अदरका हाज़ल मुश्तरी फ़ीमा इश्तरा मिन्हो मिन दरकिन फ़अला मुबल्बेले अज्सामिल मुलूके व सालेबे नुफ़ूसिल जबाबेरते व मुज़ीले मुल्किल फ़राएनते मिस्ले किस्रा व क़ैसरा व तुब्बइन व हिम्यरा इस खरीदार ने, इच्छा से बहक कर, इस घर को उस व्यक्ति से खरीदा, जिसकी मृत्यु के कारण उसे दुनिया छोड़नी पड़ी, संतुष्टि की गरिमा से बाहर होने और बदनामी और अपमान में प्रवेश करने की कीमत पर, और इस खरीदार को किसी भी तरह की क्षति हुई। उसने खरीदा, यह मलक उल मौत की ज़िम्मेदारी है, जो राजाओं के शरीरों को नष्ट कर देता है, और उनकी गर्दनों से जान ले लेता है, और ईरान और रोम और यमन और हिम्यर के राजाओं की तरह फिरौन के राज्य को नष्ट कर देता है। اشْتَرَى هَذَا الْمُغْتَرُّ بِالْأَمَلِ مِنْ هَذَا الْمُزْعَجِ بِالْأَجَلِ هَذِهِ الدَّارَ بِالْخُرُوجِ مِنْ عِزِّ الْقَنَاعَةِ وَ الدُّخُولِ فِي ذُلِّ الطَّلَبِ وَ الضَّرَاعَةِ فَمَا أَدْرَكَ هَذَا الْمُشْتَرِي فِيمَا اشْتَرَى مِنْهُ مِنْ دَرَكٍ فَعَلَى مُبَلْبِلِ أَجْسَامِ الْمُلُوكِ وَ سَالِبِ نُفُوسِ الْجَبَابِرَةِ وَ مُزِيلِ مُلْكِ الْفَرَاعِنَةِ مِثْلِ كِسْرَى وَ قَيْصَرَ وَ تُبَّعٍ وَ حِمْيَرَ
व मन जमअल माला अलल माले फ़अक्सरा व मन बना व शय्यदा व ज़ख़्रफ़ा व नज्जदा वद्दख़रा वअतक़दा व नज़रा बेज़अमेही लिल वलदे इश्ख़ासोहुम जमीअन एला मौक़ेफ़िल अर्ज़े वल हिसाबे व मौज़ेइस सवाबे वल एक़ाब और जिन लोगों ने धन में धन जोड़ा, और जिन्होंने बनाया और मज़बूत किया, और सजाया और संवारा, और बचाया और बच्चों की योजनाओं के संबंध में अपने विश्वासों और संदेहों पर ध्यान दिया, मलक उल मौत उन सभी को जाँच-पड़ताल और हिसाब-किताब के स्थान और वेतन और जुर्माने के स्थान पर भेज दे। وَ مَنْ جَمَعَ الْمَالَ عَلَى الْمَالِ فَأَكْثَرَ وَ مَنْ بَنَى وَ شَيَّدَ وَ زَخْرَفَ وَ نَجَّدَ وَ ادَّخَرَ وَ اعْتَقَدَ وَ نَظَرَ بِزَعْمِهِ لِلْوَلَدِ إِشْخَاصُهُمْ جَمِيعاً إِلَى مَوْقِفِ الْعَرْضِ وَ الْحِسَابِ وَ مَوْضِعِ الثَّوَابِ وَ الْعِقَاب
एज़ा वक़अल अम्रो बे फ़स्लिल क़ज़ाए (व ख़सेरा होनालेकल मुब्तेलूना) जब सत्य की आज्ञा सत्य और असत्य के बीच अंतर करने के लिए उतरती है, "वहां अपराधी को नुकसान पहुंचेगा।" (إِذَا وَقَعَ الْأَمْرُ بِفَصْلِ الْقَضَاءِ (وَ خَسِرَ هُنالِكَ الْمُبْطِلُونَ
शहेदा अला ज़ालेकल अक़्लो एज़ा ख़रजा मिन असरिल हवा व सलेमा मिन अलाएक़े अल दुनिया एक मन जो इच्छा की क़ैद से बाहर आ गया है और सांसारिक मोह-माया से मुक्त हो गया है, उसे इस दस्तावेज़ की गवाही देनी चाहिए।[२४] شَهِدَ عَلَى ذَلِكَ الْعَقْلُ إِذَا خَرَجَ مِنْ أَسْرِ الْهَوَى وَ سَلِمَ مِنْ عَلَائِقِ الدُّنْيَا

फ़ुटनोट

  1. मुहम्मदी रय शहरी, दानिशनामे अमीर अल मोमिनीन (अ) बर पाय ए क़ुरआन, हदीस व तारीख़, 1386 शम्सी, खंड 4, पृष्ठ 35।
  2. मकारिम शिराज़ी, पयामे इमाम अमीर अल मोमिनीन (अ), 1386 शम्सी, खंड 9, पृष्ठ 54।
  3. ज़हबी, सैर आलाम अल नबेला, 1405 हिजरी, खंड 4, पृष्ठ 102।
  4. इब्ने अबी अल हदीद, शरहे नहज उल बलाग़ा, क़ुम, खंड 14, पृष्ठ 29।
  5. कुलैनी, काफ़ी, 1407 हिजरी, खंड 7, पृष्ठ 407।
  6. मकारिम शिराज़ी, पयामे इमाम अमीर अल मोमिनीन (अ), 1386 शम्सी, खंड 9, पृष्ठ 54।
  7. "शरहे नामे 3", मुहम्मद नस्र इस्फ़हानी।
  8. मकारिम शिराज़ी, पयामे इमाम अमीर अल मोमिनीन (अ), 1386 शम्सी, खंड 9, पृष्ठ 54।
  9. मकारिम शिराज़ी, पयामे इमाम अमीर अल मोमिनीन (अ), 1386 शम्सी, खंड 9, पृष्ठ 42; लेखकों का एक समूह, दानिशनामे इमाम अली (अ), खंड 1, पृष्ठ 183।
  10. नहज उल बलाग़ा, तस्हीह सुब्ही सालेह, नामेह 3, पृष्ठ 549।
  11. नहज उल बलाग़ा, तस्हीह सुब्ही सालेह, नामेह 3, पृष्ठ 549।
  12. नहज उल बलाग़ा, तस्हीह सुब्ही सालेह, नामेह 3, पृष्ठ 549।
  13. नहज उल बलाग़ा, तस्हीह सुब्ही सालेह, नामेह 3, पृष्ठ 549।
  14. मकारिम शिराज़ी, पयामे इमाम अमीर अल मोमिनीन (अ), 1386 शम्सी, खंड 9, पृष्ठ 42।
  15. इब्ने मीसम, शरहे नहज उल बलाग़ा, 1362 शम्सी, खंड 4, पृष्ठ 344।
  16. शेख़ सदूक़, अमाली, 1376 शम्सी, पृष्ठ 311।
  17. हुसैनी ख़तीब, मसादिर नहज उल बलाग़ा व असानीदेह, 1367 शम्सी, खंड 3, पृष्ठ 188।
  18. शेख़ बहाई, अरबईन, 1431 हिजरी, पृष्ठ 226।
  19. इब्ने जौज़ी, तज़्किरा अल ख्वास, 1376 शम्सी, पृष्ठ 311।
  20. क़ज़ाई, दुस्तूर मआलिम अल हेकम, 1401 हिजरी, पृष्ठ 110।
  21. हुसैनी ख़तीब, मसादिर नहज उल बलाग़ा व असानीदेह, 1367 शम्सी, खंड 3, पृष्ठ 188; मकारिम शिराज़ी, पयामे इमाम अमीर अल मोमिनीन (अ), 1386 शम्सी, खंड 9, पृष्ठ 41।
  22. फ़ैज़ उल इस्लाम, तर्जुमा व शरहे नहज उल बलाग़ा, 1378 शम्सी, पृष्ठ 833; दश्ती, तर्जुमा नहज उल बलाग़ा, 1379 शम्सी, पृष्ठ 480; नहज उल बलाग़ा, तस्हीह सुब्ही सालेह, नामे 3, पृष्ठ 549; अब्देह, शरहे नहज उल बलाग़ा, क़ाहिरा, पृष्ठ 4; इब्ने अबी अल हदीद, शरहे नहज उल बलाग़ा, क़ुम, 14, पृष्ठ 27।
  23. हसन ज़ादेह आमोली, तक्मेला शरहे मिन्हाज अल बराअत फ़ी शरहे नहज उल बलाग़ा, 1364 शम्सी, खंड 17, पृष्ठ 108।
  24. अंसारियान, तर्जुमा नहज उल बलाग़ा, 1388 शम्सी, पृष्ठ 243-244।

स्रोत

  • इब्ने अबी अल हदीद, इज़्ज़ुद्दीन अबू हामिद, शरहे नहज उल बलाग़ा, मुहम्मद अबुल फ़ज़्ल इब्राहीम द्वारा संपादित, क़ुम, आयतुल्लाह मर्अशी नजफ़ी पब्लिक लाइब्रेरी, बिना तारीख़।
  • इब्ने जौज़ी, युसूफ बिन क़ज़ावग़ली, तज़्किरा अल ख्वास, क़ुम, अल शरीफ़ अल रज़ी, 1376 शम्सी।
  • इब्ने मोहज़्ज़ब, हुसैन बिन हसन, नुस्ख़ा नहज उल बलाग़ा, क़ुम, आयतुल्लाह अल मर्अशी अल नजफ़ी, 1406 हिजरी।
  • इब्ने मीसम, मीसम बिन अली, शरहे नहज उल बलाग़ा, बिना स्थान, नशरे अल किताब, दूसरा संस्करण, 1362 शम्सी।
  • अंसारियान, हुसैन, तर्जुमा नहज उल बलाग़ा, क़ुम, दार उल इरफ़ान, पहला संस्करण, 1388 शम्सी।
  • लेखकों का एक समूह, दानिशनामे इमाम अली (अ), बिना स्थान, बिना नाम, बिना तारीख़।
  • हसन ज़ादेह आमोली, हसन, तक्मेला शरहे मिन्हाज अल बराअत फ़ी शरहे नहज उल बलाग़ा, सय्यद इब्राहीम मियांजी द्वारा संशोधित, तेहरान, मक्तबा अल इस्लाम, चौथा संस्करण, 1364 शम्सी।
  • हुसैनी ख़तीब, सय्यद अब्दुल ज़हरा, मसादिर नहज उल बलाग़ा व असानीदेह, बेरूत, दार अल ज़हरा, चौथा संस्करण, 1367 शम्सी।
  • ख़ूई, इब्राहीम बिन हुसैन, अल दुर्र अल नजफ़िया, बिना स्थान, बिना नाम, बिना तारीख।
  • दश्ती, मुहम्मद, तर्जुमा नहज उल बलाग़ा, क़ुम, पारसियान, पहला संस्करण, 1379 शम्सी।
  • ज़हबी, शम्सुद्दीन, सैर आलाम अल नबेला, शोधकर्ताओं के एक समूह द्वारा एक शोध, बिना स्थान, मोअस्सास ए अल रेसाला, तीसरा संस्करण, 1405 हिजरी।
  • "शरहे नामेह 3", मुहम्मद नस्र इस्फ़हानी, प्रवेश की तारीख: 27 बेहमन 1391 शम्सी, देखे जाने की तारीख: 16 आबान 1403 शम्सी।
  • शेख़ बहाई, मुहम्मद बिन हुसैन, अरबईन, क़ुम, जमाअत अल उल्मा व अल मुदर्रेसीन फ़ी अल हौज़ा अल इल्मिया बेक़ुम अल मुक़द्दसा, तीसरा संस्करण, 1431 हिजरी।
  • शेख़ सदूक़, मुहम्मद बिन अली, अल अमाली, तेहरान, किताबची, छठा संस्करण, 1376 शम्सी।
  • शरीफ अल रज़ी, मुहम्मद बिन हुसैन, तस्हीह नहज उल बलाग़ा, सुधार: सुब्ही सालेह, क़ुम, दार उल हदीस, तीसरा संस्करण, 1426 हिजरी।
  • अब्देह, मुहम्मद, शरहे नहज उल बलाग़ा, क़ाहिरा, मतबआ अल इस्तिक़ामा, बिना तारीख़।
  • फ़ैज़ उल इस्लाम, सय्यद अली नक़ी, तर्जुमा व शरह नहज उल बलाग़ा, तेहरान, फ़ैज़ उल इस्लाम, 8वां संस्करण, 1378 शम्सी।
  • क़ज़ाई, मुहम्मद बिन सलामा, दुस्तूर मआलिम अल हेकम व मासूर मकारिम अल शीम मिन कलाम अमीर अल मोमिनीन अली बिन अबी तालिब (अ), बेरूत, दार अल किताब अल अरबी, 1401 हिजरी।
  • कुलैनी, मुहम्मद बिन याक़ूब, अल काफ़ी, संशोधित, अली अकबर ग़फ़्फ़ारी व मुहम्मद आखुंदी, तेहरान, दार उल कुतुब अल इस्लामिया, चौथा संस्करण, 1407 हिजरी।
  • मुहम्मदी रय शहरी, मुहम्मद, दानिशनामे अमीर अल मोमिनीन (अ) बर पाय ए कुरआन, हदीस व तारीख़, क़ुम, दार उल हदीस, पहला संस्करण, 1386 शम्सी।
  • मकारिम शिराज़ी, नासिर, पयामे इमाम अमीर अल मोमिनीन (अ), तेहरान, दार उल कुतुब अल इस्लामिया, पहला संस्करण, 1386 शम्सी।