आशूरा के दिन इमाम हुसैन का उपदेश
आशूरा के दिन इमाम हुसैन (अ) का उपदेश, 61 हिजरी में आशूरा के दिन इमाम हुसैन (अ) के शब्दों को संदर्भित करता है, जो उमर बिन साद की सेना को संबोधित करके दिया गया था। इस ख़ुत्बे में इमाम हुसैन (अ.स.) ने अपना परिचय दिया, उसके बाद उन्होंने कूफियों के निमंत्रण को अपने इराक़ आने का कारण बताया, और इब्ने साद की सेना में शामिल कुछ पत्र लेखकों का नाम लेकर उन्हें उनके निमंत्रण की याद दिलायी। और अपमान को स्वीकार न करने और यज़ीद बिन मुआविया के प्रति निष्ठा (बैअत) न करने पर ज़ोर दिया।
कर्बला की घटना के इतिहासकार अबू मख़नफ़ के अनुसार, पत्रों के लेखकों ने उनके निमंत्रण को अस्वीकार कर दिया। इसके अलावा, शिम्र बिन ज़िल-जौशन ने इमाम हुसैन (अ.स.) के भाषण को बाधित किया। मोहम्मद हादी यूसुफ़ी ग़रवी के अनुसार, शिम्र ने ऐसा इब्ने साद की सेना पर इमाम हुसैन के शब्दों के प्रभाव को रोकने के लिए किया था।
महत्व एवं स्थिति
इमाम हुसैन (अ.स.) का उपदेश शियों के तीसरे इमाम के शब्द हैं, जो उन्होने वर्ष 61 हिजरी में आशूरा के दिन उमर बिन साद की सेना (कूफ़ा में यज़ीद बिन मुआविया के गवर्नर ओबैदुल्लाह बिन ज़ियाद की सेना, जिसे इमाम हुसैन (अ.स.) से लड़ने के लिए कर्बला भेजा गया था।) के खिलाफ़ दिया गया था। इन शब्दों को शिया और सुन्नी स्रोतों में मतभेद के साथ वर्णित किया गया है। [१]
उपदेश सामग्री
इमाम हुसैन (अ.स.) ने उमर बिन साद के सैनिकों से चाहा कि वे उनकी बातें सुनें और युद्ध में जल्दबाजी न करें, ताकि वह उन्हें सलाह दे सकें। इसी तरह से उन्होने उनसे यह भी कहा कि उन्हें अपने कूफ़ा आने का कारण बताने का मौका दिया जाए, ताकि उन्हें किसी बात का संदेह न रहे। [२]
उसके बाद उन्होंने अपना परिचय दिया और इमाम अली (अ), पैग़म्बर (स), हमज़ा बिन अब्दुल मुत्तलिब और जाफ़र बिन अबी तालिब से अपनी वंशावली का उल्लेख किया। [३] इसके अलावा, उन्होने पैगंबर (स) की अपने और अपने भाई इमाम हसन (अ) के बारे में हदीस "हसन और हुसैन स्वर्ग के जवानों के सरदार हैं" को याद दिलाया और उनसे कहा कि यदि वे उनके शब्दों को स्वीकार नहीं करते हैं, तो जाबिर बिन अब्दुल्लाह अंसारी, अबू सईद ख़ुदरी, सहल बिन साद साएदी, ज़ैद बिन अरक़म और अनस बिन मलिक जैसे सहाबियों से पूछ सकते हैं जो उस समय जीवित थे। [४] फिर, यह बताते हुए कि वह पैगंबर (अ) के नवासे हैं, उन्होंने उमर साद की सेना से पूछा, "क्या मैंने आप में से किसी को क़त्ल किया है, या मैंने किसी की संपत्ति को हड़प किया है, या मैंने किसी को कोई चोट पहुंचाई है?" [५]
उसके बाद, उन्होंने कूफियों के पत्रों के लेखकों में शबस बिन रबीअ, हज्जार बिन अबजर, क़ैस बिन अश्अस और यज़ीद बिन हारिस को संबोधित करते हुए कहा, "क्या यह आप नहीं थे जिन्होंने मुझे लिखा और मुझे कूफ़ा में आमंत्रित किया?" [६]
उन्होंने अपना भाषण क़ुरआन की इस आयत إِنِّي عُذْتُ بِرَبِّي وَ رَبِّكُمْ أَنْ تَرْجُمُونِ [७] को पढ़ कर, जो पैग़म्बर मूसा (अ) की कहानी में फिरऔनियों की ज़िद को संदर्भित करती है, और इसी तरह से इस आयत بِرَبِّي وَ رَبِّكُمْ مِنْ كُلِّ مُتَكَبِّرٍ لا يُؤْمِنُ بِيَوْمِ الْحِسابِ»" [८] के साथ समाप्त किया। [९]
प्रतिक्रियाएं
अबू मखनफ़ के अनुसार, जब इमाम हुसैन (अ.स.) ने उमर साद की सेना से उनके कूफ़ा आने का कारण बताने के लिए उनकी बातें सुनने को कहा, तो कुछ महिलाएँ और बच्चे रोने लगे। इमाम हुसैन (अ.स.) ने हज़रत अब्बास (अ) और अली अकबर से उन्हें चुप कराने के लिए कहा और प्रसिद्ध वाक्य "«سَكِّتَاهُن فَلَعَمْرِي لَيَكْثُرَنَّ بُكَاؤُهُنَّ" उन्हें चुप कराओ, मैं भगवान की कसम खाता हूँ, उनके सामने अभी बहुत रोना बाकी है।" उन्होंने इसे यहीं व्यक्त किया था। [१०]
इसके अलावा, जब इमाम हुसैन (अ.स.) ने इब्ने साद के सैनिकों से कहा कि यदि वे उनके शब्दों को स्वीकार नहीं करते हैं तो वे जीवित सहाबियों इसका उल्लेख करें, तो शिम्र बिन ज़िल-जोशन चिल्लाया: वह एक शब्द में भगवान की पूजा करता है (इस तथ्य की ओर संकेत वह केवल ज़बान से भगवान की पूजा करते हैं) और नहीं जानते कि वह क्या कह रहे हैं? शिम्र के इस बात पर के परिणामस्वरूप हबीब बिन मज़ाहिर ने प्रतिक्रिया व्यक्त की, और शिम्र से कहा कि भगवान ने तेरे दिल पर मुहर लगा दी है। [११] इस्लामी इतिहास के शोधकर्ता मोहम्मद हादी यूसुफी ग़रवी के अनुसार, शिम्र ने अपने शब्दों से उमर साद की सेना पर इमाम (अ) की बात से पड़ने वाले प्रभाव को रोकने के लिए इमाम के भाषण को बाधित किया था। [१२]
पत्रों के लेखकों ने उन्हे निमंत्रण भेजने की बात को अस्वीकार कर दिया। [१३] इमाम हुसैन (अ.स.) के शब्दों के बाद, क़ैस बिन अश्अथ ने कहा: आप अपने चचेरे भाई (यज़ीद) के प्रति निष्ठा की प्रतिज्ञा क्यों नहीं कर लेते? इमाम हुसैन (अ.स.) ने कहा: «لا وَ اللهِ لَا أُعْطِيكُمْ بِيَدِي إِعْطَاءَ الذَّلِيلِ وَ لَا أَفِرُّ فِرَارَ الْعَبِيدِ؛ "नहीं, ख़ुदा की क़सम मैं अपना हाथ ज़लील इंसानों की तरह तुम्हारे हाथ में नहीं दूंगा, और मैं गुलामों की तरह फ़रार नही करूंगा।" [१४]
उपदेश का पाठ और अनुवाद
أَيُّهَا النَّاسُ اسْمَعُوا قَوْلِي وَ لَا تَعْجَلُوا حَتَّى أَعِظَكُمْ بِمَا يَحِقُّ لَكُمْ عَلَيَّ وَ حَتَّى أُعْذِرَ إِلَيْكُمْ فَإِنْ أَعْطَيْتُمُونِي النَّصَفَ كُنْتُمْ بِذَلِكَ أَسْعَدَ وَ إِنْ لَمْ تُعْطُونِي النَّصَفَ مِنْ أَنْفُسِكُمْ فَأَجْمِعُوا رَأْيَكُمْ ثُمَّ لا يَكُنْ أَمْرُكُمْ عَلَيْكُمْ غُمَّةً ثُمَّ اقْضُوا إِلَيَّ وَ لا تُنْظِرُونِ إِنَّ وَلِيِّيَ اللَّهُ الَّذِي نَزَّلَ الْكِتابَ وَ هُوَ يَتَوَلَّى الصَّالِحِينَ ثُمَّ حَمِدَ اللهَ وَ أَثْنَى عَلَيْهِ وَ ذَكَرَ اللهَ بِمَا هُوَ أَهْلُهُ وَ صَلَّى عَلَى النَّبِيِّ (ص) وَ عَلَى مَلَائِكَةِ اللهِ وَ أَنْبِيَائِهِ فَلَمْ يُسْمَعْ مُتَكَلِّمٌ قَطُّ قَبْلَهُ وَ لَا بَعْدَهُ أَبْلَغُ فِي مَنْطِقٍ مِنْهُ ثُمَّ قَالَ أَمَّا بَعْدُ فَانْسُبُونِي فَانْظُرُوا مَنْ أَنَا ثُمَّ ارْجِعُوا إِلَى أَنْفُسِكُمْ وَ عَاتِبُوهَا فَانْظُرُوا هَلْ يَصْلُحُ لَكُمْ قَتْلِي وَ انْتِهَاكُ حُرْمَتِي أَ لَسْتُ ابْنَ بِنْتِ نَبِيِّكُمْ وَ ابْنَ وَصِيِّهِ وَ ابْنِ عَمِّهِ وَ أَوَّلِ الْمُؤْمِنِينَ الْمُصَدِّقِ لِرَسُولِ اللهِ بِمَا جَاءَ بِهِ مِنْ عِنْدِ رَبِّهِ أَ وَ لَيْسَ حَمْزَةُ سَيِّدُ الشُّهَدَاءِ عَمِّي أَ وَ لَيْسَ جَعْفَرٌ الطَّيَّارُ فِي الْجَنَّةِ بِجِنَاحَيْنِ عَمِّي
أَ وَ لَمْ يَبْلُغْكُمْ مَا قَالَ رَسُولُ اللهِ لِي وَ لِأَخِي هَذَانِ سَيِّدَا شَبَابِ أَهْلِ الْجَنَّةِ فَإِنْ صَدَّقْتُمُونِي بِمَا أَقُولُ وَ هُوَ الْحَقُّ وَ اللهِ مَا تَعَمَّدْتُ كَذِباً مُنْذُ عَلِمْتُ أَنَّ اللهَ يَمْقُتُ عَلَيْهِ أَهْلَهُ وَ إِنْ كَذَّبْتُمُونِي فَإِنَّ فِيكُمْ مَنْ لَوْ سَأَلْتُمُوهُ عَنْ ذَلِكَ أَخْبَرَكُمْ سَلُوا جَابِرَ بْنَ عَبْدِ اللهِ الْأَنْصَارِيَّ وَ أَبَا سَعِيدٍ الْخُدْرِيَّ وَ سَهْلَ بْنَ سَعْدٍ السَّاعِدِيَّ وَ زَيْدَ بْنَ أَرْقَمَ وَ أَنَسَ بْنَ مَالِكٍ يُخْبِرُوكُمْ أَنَّهُمْ سَمِعُوا هَذِهِ الْمَقَالَةَ مِنْ رَسُولِ اللهِ ص لِي وَ لِأَخِي أَ مَا فِي هَذَا حَاجِزٌ لَكُمْ عَنْ سَفْكِ دَمِي
فَقَالَ لَهُ شِمْرُ بْنُ ذِي الْجَوْشَنِ هُوَ يَعْبُدُ اللهَ عَلى حَرْفٍ إِنْ كَانَ يَدْرِي مَا تَقَوَّلَ فَقَالَ لَهُ حَبِيبُ بْنُ مُظَاهِرٍ وَ اللَهِ إِنِّي لَأَرَاكَ تَعْبُدُ اللهَ عَلَى سَبْعِينَ حَرْفاً وَ أَنَا أَشْهَدُ أَنَّكَ صَادِقٌ مَا تَدْرِي مَا يَقُولُ قَدْ طَبَعَ اللهُ عَلَى قَلْبِكَ
ثُمَّ قَالَ لَهُمُ الْحُسَيْنُ ع فَإِنْ كُنْتُمْ فِي شَكٍّ مِنْ هَذَا أَ فَتَشُكُّونَ أَنِّي ابْنُ بِنْتِ نَبِيِّكُمْ فَوَ اللهِ مَا بَيْنَ الْمَشْرِقِ وَ الْمَغْرِبِ ابْنُ بِنْتِ نَبِيٍّ غَيْرِي فِيكُمْ وَ لَا فِي غَيْرِكُمْ وَيْحَكُمْ أَ تَطْلُبُونِّي بِقَتِيلٍ مِنْكُمْ قَتَلْتُهُ أَوْ مَالٍ لَكُمُ اسْتَهْلَكْتُهُ أَوْ بِقِصَاصِ جِرَاحَةٍ فَأَخَذُوا لَا يُكَلِّمُونَهُ
فَنَادَى يَا شَبَثَ بْنَ رِبْعِيٍّ يَا حَجَّارَ بْنَ أَبْجَرَ يَا قَيْسَ بْنَ الْأَشْعَثِ يَا يَزِيدَ بْنَ الْحَارِثِ أَ لَمْ تَكْتُبُوا إِلَيَّ أَنْ قَدْ أَيْنَعَتِ الثِّمَارُ وَ اخْضَرَّ الْجَنَابُ وَ إِنَّمَا تَقْدَمُ عَلَى جُنْدٍ لَكَ مُجَنَّدٍ
فَقَالَ لَهُ قَيْسُ بْنُ الْأَشْعَثِ مَا نَدْرِي مَا تَقُولُ وَ لَكِنِ انْزِلْ عَلَى حُكْمِ بَنِي عَمِّكَ فَإِنَّهُمْ لَمْ يُرُوكَ إِلَّا مَا تُحِبُّ فَقَالَ لَهُ الْحُسَيْنُ لَا وَ اللهِ لَا أُعْطِيكُمْ بِيَدِي إِعْطَاءَ الذَّلِيلِ وَ لَا أَفِرُّ فِرَارَ الْعَبِيدِ
ثُمَّ نَادَى يَا عِبَادَ اللهِ إِنِّي عُذْتُ بِرَبِّي وَ رَبِّكُمْ أَنْ تَرْجُمُونِ أَعُوذُ بِرَبِّي وَ رَبِّكُمْ مِنْ كُلِّ مُتَكَبِّرٍ لا يُؤْمِنُ بِيَوْمِ الْحِسابِ [१५]
ऐ लोगों, मेरी बात सुनो और जल्दी न करो, ताकि मुझ पर तुम्हारा क्या अधिकार है, उससे सचेत कर दूँ, और अपना उज़्र तुम्हारे सामने प्रकट कर दूँ। फिर अगर तुम मेरे बारे में इंसाफ़ से काम लोगे तो सफल हो जाओगे और अगर इंसाफ़ से काम नही लेते हो तो अच्छाी तरह से विचार कर लो ता कि तुम अपने काम से दुखी न हो फिर उसके बाद मेरे बारे में जो चाहो करो और मुझे मोहलत न दो। वास्तव में, मेरा संरक्षक वह ईश्वर है जिसने क़ुरआन उतारा और वह नेक लोगों का संरक्षक और मित्र है।
फिर उन्होंने प्रभु की स्तुति (हम्द व प्रशंसा) की, और जो कुछ ईश्वर के लिये उचित था उसका उल्लेख किया, और उसके बाद ईश्वर के पैग़म्बर (स) और उनके स्वर्गदूतों और दूतों को शुभकामनाएं भेजीं, और उनके पहले या उनके बाद किसी भी वक्ता ने इतने स्पष्ट और सरल शब्द नहीं सुने गए, फिर उन्होंने कहा: लेकिन फिर, मेरी वंशावली और नस्ल को मापो और देखो कि मैं कौन हूं, फिर होश में आओ और अपने आप को दोषी ठहराओ और देखो कि क्या मुझे मारना और मेरी पवित्रता का पर्दा चाक करना तुम्हारे लिये बेहतर है? क्या मैं आपके पैगंबर की बेटी का बेटा और उनके उत्तराधिकारी का बेटा नहीं हूं, जो ईश्वर के दूत के चचेरा भाई थे और पहले व्यक्ति जिन्होने ईश्वर के दूत (स), और जो वह अपने भगवान से लाये थे, को स्वीकार किया था? क्या हमज़ा सैय्यद अल-शोहदा मेरे चाचा नहीं हैं? क्या जाफ़र बिन अबी तालिब, जो दो पंखों से स्वर्ग में उड़ते हैं, मेरे चाचा नहीं हैं?
क्या आप तक यह बात नहीं पहुची है जो ईश्वर के दूत (स) ने मेरे और मेरे भाई के बारे में क्या कही है: कि ये दोनों युवक स्वर्ग के जवानों के सरदार हैं? तो यदि तुम मेरी बात की तसदीक़ करते हो, तो सच यही है, ख़ुदा की क़सम, जिस दिन से मैंने जाना है कि परमेश्वर झूठों से बैर रखता है, मैंने झूठ नहीं बोला, और यदि तुम मुझे झूठा ठहराते हो, तो तुम में से ऐसे लोग भी हैं, कि यदि तुम उन से पूछो, मैंने जो कहा उसके बारे में आपको सूचित करेंगे, जाबिर बिन अब्दुल्लाह अंसारी, अबू सईद ख़ुदरी, सहल बिन साद सायदी और ज़ैद बिन अरक़म और अनस बिन मालिक से पूछें कि वे आपको बताएं कि उन्होंने पैग़म्बर (स) की यह हदीस सुनी है। मेरे और मेरे भाई के बारे में। क्या ईश्वर के दूत (स) की यह बात तुम्हे मेरा खून बहाने से नहीं रोकती?
शिम्र बिन ज़िल-जोशन ने कहा: वह एक अक्षर से भगवान की पूजा करता है (इस तथ्य का संकेत है कि वह केवल अपनी जीभ से भगवान की पूजा करता है) और वह नहीं जानता है कि वह क्या कह रहा है। हबीब बिन मज़ाहिर ने उससे कहा: भगवान के द्वारा, मैं तुम्हें सत्तर अक्षरों के साथ भगवान की पूजा करते हुए देखता हूं, और मैं गवाही देता हूं कि तू सच कह रहा है, और तू नहीं जानता कि वह क्या कह रहे हैं, इसलिये कि भगवान ने तेरे दिल पर (सच्चाई स्वीकार करने से) मुहर लगा दी है।
तब हुसैन (अ) ने कहा: यदि तुम्हें इस कथन पर संदेह है, तो क्या तुम्हें इसमें भी संदेह है कि मैं तुम्हारे पैगंबर की बेटी का बेटा हूं? ईश्वर की शपथ, मेरे अलावा पूर्व और पश्चिम के बीच कोई नबी की बेटी का बेटा नहीं है, न तुम में न तुम्हारे अलावा किसी और के बीच में! तुम पर धिक्कार है, क्या मैंने तुममें से किसी को मार डाला है जिसके खून का बदला तुम मुझसे लेना चाहते हो? या मैंने तुमसे किसी का माल खाया हैं? या तुम मुझसे किसी चोट का बदला (क़ेसास) लेना चाहते हो?
उसके बाद, इमाम (अ) ने फ़रियाद बुलंद की: हे शब्स बिन रबीअ, और हेजार बिन अब्जर, और क़ैस बिन अश्अस, और यज़ीद बिन हारिस, क्या तुमने मुझे पत्र नहीं लिखा: कि फल पक गए हैं और बगीचे हरे हो गए हैं और आप मदद के लिए तैयार एक सेना के साथ यहां प्रवेश करेंगे?
क़ैस बिन अश्अस ने कहा: हम नहीं जानते कि आप क्या कह रहे हैं, लेकिन आप अपने चचेरे भाई के फैसले को मान लें, क्योंकि वे आपके बारे में कुछ भी नहीं करेंगे सिवाय इसके कि जो आप क्या चाहते हैं!?
हुसैन (अ), ने कहा: ईश्वर की क़सम न मैं ज़िल्लत के लिये अपना हाथ तुम्हारी ओर बढ़ाऊंगा और न ही ग़ुलामों की तरह फ़रार करूंगा, फिर उसके बाद इमाम ने कहा: हे भगवान के सेवकों, बेशक मैं अपने और आपके भगवान की शरण लूंगा ताकि मुझे कोई नुकसान न पहुंचे। मैं अपने और तुम्हारे प्रभु की शरण चाहता हूं कि तुमसे मुझे कोई नुकसान पहुंचे, मैं अपने परवरदिगार की पनाह चाहता हूँ हर उस अवज्ञाकारी से जो क़यामत के दंड में ईमान नहीं रखता। [१६]
दूसरा उपदेश
किताब बेहार अल-अनवार में अल्लामा मजलिसी ने मनाक़िब इब्ने शहर आशोब के हवाले से लिखा है कि आशूरा के दिन उमर बिन साद की सेना को संबोधित इमाम हुसैन (अ.स.) ने एक और उपदेश दिया है। [१७] इमाम (अ) ने अपने उपदेश में कहा: तुम मेरी बातों को नही सुन रहे हो क्योंकि तुम्हारे पेट निषिद्ध (हराम) धन से भरे हुए हैं और तुम्हारे दिलों पर क्रूरता की मुहर लगी हुई है।" इब्ने साद की सेना द्वारा इमाम की बातों को सुनने के लिये चुप न रहने की प्रतिक्रिया में, इस उपदेश में उनकी आलोचना की गई। [१८]
संबंधित लेख
फ़ुटनोट
- ↑ उदाहरण के लिए, देखें: शेख़ मुफीद, अल-इरशाद, 1413 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 96; तबरसी, आलाम अल वरा, 1390 हिजरी, पृष्ठ 241; शामी, अल-दुर अल-नज़ीम, 1420 हिजरी, पृष्ठ 552; सैय्यद इब्न तावुस, लुहूफ़, 1348, पृष्ठ 96; इब्न नमा हिल्ली, मुसीर अल-अहज़ान, 1406 हिजरी, पृष्ठ 54; तबरी, तारीख़ अल उम्म वल-मुलूक, 1387 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 425; इब्न असीर, अल-कामेि, 1385 हिजरी, खंड 4, पृष्ठ 61; इब्न जौज़ी, अल-मुंतज़िम, 1412 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 339; अबू मख़नफ़, वक्का अल-तफ़, 1417 हिजरी, पृष्ठ 206।
- ↑ शेख़ मुफ़ीद, अल-इरशाद, 1413 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 97।
- ↑ शेख़ मुफ़ीद, अल-इरशाद, 1413 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 97।
- ↑ शेख़ मुफ़ीद, अल-इरशाद, 1413 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 97।
- ↑ शेख़ मुफ़ीद, अल-इरशाद, 1413 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 98।
- ↑ शेख़ मुफ़ीद, अल-इरशाद, 1413 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 98।
- ↑ सूरह दुख़ान, आयत 20.
- ↑ सूरह मोमिन, आयत 27.
- ↑ शेख़ मुफ़ीद, अल-इरशाद, 1413 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 98।
- ↑ अबू मख़नफ़, वक्का अल-तफ़, 1417 हिजरी, पृष्ठ 206।
- ↑ शेख़ मुफ़ीद, अल-इरशाद, 1413 हिजरी, खंड 2, पृ. 97-98।
- ↑ यूसुफ़ी ग़रवी, अल-तारिख अल-इस्लामी विश्वकोश, 1417 हिजरी, खंड 6, पृष्ठ 15।
- ↑ अबू मख़नफ़, वक्का अल-तफ़, 1417 हिजरी, पृष्ठ 208।
- ↑ शेख़ मुफ़ीद, अल-इरशाद, 1413 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 98।
- ↑ शेख़ मुफ़ीद, अल-इरशाद, 1413 हिजरी, खंड 2, पृ. 97-98।
- ↑ शेख़ मोफीद, अल-इरशाद, रसूली महल्लाती द्वारा अनुवादित, तेहरान, खंड 2, पृष्ठ 100-101
- ↑ मजलिसी, बिहार अल-अनवार, 1403 हिजरी, खंड 45, पृष्ठ 9।
- ↑ मजलिसी, बिहार अल-अनवार, 1403 हिजरी, खंड 45, पृष्ठ 9।
स्रोत
- इब्न असीर, अली इब्न मुहम्मद, अल-कामिल फ़ि अल-तारिख, बेरूत, दार सादिर - दार बेरूत, 1385 हिजरी।
- इब्न जौज़ी, अब्द अल-रहमान बिन अली, अल-मुंतज़म फ़ी तारिख अल-उमम वल-मुलूक, मुहम्मद अब्द अल-कादर अत्ता और मुस्तफा अब्द अल-कादर अत्ता, बेरूत, दार अल-किताब अल-इल्मिया द्वारा शोध किया गया, पहला संस्करण, 1412 हिजरी।
- इब्न नमा हिल्ली, जाफ़र बिन मुहम्मद, मुसीर अल-अहज़ान, क़ुम, इमाम महदी स्कूल, तीसरा संस्करण, 1406 हिजरी।
- अबू मख़नफ़, लूत बिन यहया, वक्का अल-तफ़, मोहम्मद हादी यूसुफी ग़रावी द्वारा शोध किया गया।, क़ुम, अल-नशर अल-इस्लामी फाउंडेशन, तीसरा संस्करण, 1417 हिजरी।
- सैय्यद बिन तावूस, अली बिन मूसा, अल लुहूफ़ अला क़तला अल-तोफूफ़, फ़हरी ज़ंजानी द्वारा अनुवादित, तेहरान, जहाँ प्रकाशन, पहला संस्करण, 1348 शम्सी।
- शामी, यूसुफ बिन हातिम, अल-दार अल-नाजिम फाई मनाकिब अल-इमाम अल-हमीम, क़ुम, जामिया मोदर्रेसिन, पहला संस्करण, 1420 हिजरी।
- शेख़ मोफिद, मुहम्मद बिन मुहम्मद, अल-इरशाद फ़ी मारेफत हुज्जुल्ला अला अल-इबाद, क़ुम, शेख़ मोफिद कांग्रेस, पहला संस्करण, 1413 हिजरी।
- शेख मुफ़ीद, मोहम्मद बिन नु'मान, अल-इरशाद फ़ी मारेफ़त हुज्जुल्लाह अला अल-इबाद, सैय्यद हाशिम रसूली महल्लाती द्वारा अनुवादित, तेहरान, बी टा।
- तबरसी, फ़ज़्ल बिन हसन, आलाम अल-वरा, बे आलाम अल-हुदा द्वारा, तेहरान, इस्लामिया, तीसरा संस्करण, 1390 हिजरी।
- तबरी, मुहम्मद बिन जरीर, तारीख़ अल उम्म वल-मुलूक, मुहम्मद अबुल फज़्ल इब्राहिम द्वारा शोध, बेरूत, दार अल-तुरास, दूसरा संस्करण, 1387 हिजरी।
- अल्लामा मजलिसी, मुहम्मद बाकिर बिन मुहम्मद तकी, बिहार अल-अनवार, बेरूत, दार एहया अल-तुरास अल-अरबी, 1403 हिजरी।
- युसुफी ग़रवी, मोहम्मद हादी, अल-तारिख अल-इस्लामी विश्वकोश, क़ुम, इस्लामिक थॉट फ़ोरम, 1417 हिजरी।