देबल बिन अली ख़ुज़ाई

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देबल ख़ुज़ाई
शूश शहर में इस कब्र का श्रेय देबल ख़ुज़ाई को दिया जाता है
शूश शहर में इस कब्र का श्रेय देबल ख़ुज़ाई को दिया जाता है
पूरा नामदेबल बिन अली ख़ुज़ाई
उपनामदेबल
जन्म तिथिवर्ष 148 हिजरी
जन्म स्थानकूफ़ा
मृत्यु तिथिवर्ष 245 हिजरी
समाधि स्थलशूश (ईरान)
रवायत बयान करने की इजाज़तइमाम मूसा काज़िम (अ)इमाम अली रज़ा (अ)
संकलनदीवाने देबल, तबक़ात अल शोअरा
अन्यअहले-बैत (अ) की प्रशंसा और शोक में कई कविताओं की रचना करना, विशेष रूप से ताईया कविता


इमाम रज़ा (अ) के रौज़े में स्थापित राईयह शिलालेख का एक हिस्सा, जिसमें लिखा है: قَبْرَانِ فِي طُوسَ خَيْرُ النَّاسِ كُلِّهِمْ وَ قَبْرُ شَرِّهِمْ هَذَا مِنَ الْعِبَرِ مَا يَنْفَعُ الرِّجْسُ مِنْ قُرْبِ الزَّكِيِّ وَ لَا عَلَى الزَّكِيِّ بِقُرْبِ الرِّجْسِ مِنْ ضَرَر.

देबल बिन अली ख़ोज़ाई (148-245 हिजरी) कवियों और इमाम मूसा काज़िम (अ.स.) और इमाम अली रज़ा (अ.स.) के साथियों में से एक थे। वह ताईया कविता (अहले बैत (अ) की शान में क़सीदा) की रचना के लिए प्रसिद्ध हैं। उन्होंने मर्व में पहली बार इमाम रज़ा (अ.स.) के लिए यह क़सीदा पढ़ा, जिसे इमाम और शियों ने ख़ूब सराहा और पसंद किया।

देबल ने इमामों से कुछ हदीसें भी बयान की हैं, जिनमें से हम शिक़शेकिया उपदेश (ख़ुतबा शिक़शेक़िया) का उल्लेख कर सकते हैं। अपनी कविताओं में, देबल ने अहले-बैत (अ) के दुश्मनों पर व्यंग्य (बुराई) किया करते थे। बनी अब्बास शासकों में से एक की बुराई करने (हज्व) के लिए 245 हिजरी में उनकी हत्या कर दी गई और उन्हें शूश (ईरान) में दफ़्न किया गया।

परिचय एवं स्थिति

देअबल बिन अली ख़ुज़ाई हिजरी की दूसरी और तीसरी शताब्दी में अहले-बैत (अ) के कवियों और हदीस कथावाचकों में से एक थे।[१] ताईया क़सीदा, जो अहले-बैत (अ.स.) के इतिहास और उन पर हुए ज़ुल्मों के बारे में एक प्रसिद्ध कविता है, उनके द्वारा लिखी गई थी। उन्होंने मर्व में पहली बार इमाम रज़ा (अ.स.) के लिए यह क़सीदा पढ़ा और इमाम और शियों ने इसकी बहुत सराहना की।[२]

देबल ने अहले-बैत (अ.स.) की प्रशंसा और शोक में कई कविताएँ लिखीं हैं।[३] इमाम रज़ा (अ.स.) की शहादत की ख़बर सुनकर, उन्होंने अपने विलाप में इमाम के शोक में राईया मरसिया लिखा।[४] कुछ शोधकर्ताओं के अनुसार, देबल का शायरी में एक विशेष स्थान था।[५] "तबक़ात अल शोअरा" और उनकी कविताओं के दीवान उनकी कृतियों में से हैं।[६] आयान अल-शिया पुस्तक के लेखक सय्यद मोहसिन अमीन के अनुसार, उनकी कविताओं का दीवान 13वीं शताब्दी तक मौजूद था; लेकिन उसके बाद यह कुछ समय के लिए ग़ायब हो गया।[७] कुछ लेखकों ने उनकी कविताओं को इकट्ठा करने की कोशिश की है जो विभिन्न पुस्तकों में उद्धृत की गई थीं।[८]

देबल का नाम हसन, अब्दुर्रहमान या मुहम्मद बताया गया है; लेकिन उन्हें "देबल" के नाम से जाना जाता है।[९] उनका उपनाम अबू अली[१०] या अबू जाफ़र [११] है। उनका जन्म 148 हिजरी में हुआ था।[१२] देबल कूफ़ा से थे और वह विभिन्न शहरों की यात्रा किया करते थे।[१३] देबल की वंशावली यमनी जनजातियों में से एक ख़ोज़ाआ जनजाति से मिलती है।[१४] बुदैल बिन वरक़ा और उनके बेटे अब्दुल्लाह बिन बुदैल, देबल के दो पूर्वज, पैग़म्बर (स) के साथियों में थे।[१५] अब्दुल्लाह बिन बुदैल इमाम अली (अ) के साथियों में से भी थे, जिन्होंने खुज़ाआ क़बीले के साथ मिलकर मुआविया बिन अबी सुफियान के खिलाफ़ सिफ़्फ़ीन की लड़ाई लड़ी और शहीद हो गए थे[१६] बेशक, कुछ अन्य स्रोतों में अन्य लोगों ने उनके वंश को अलग तरीक़े से दर्ज किया है।[१७]

देबल के ताईया क़सीदे का कुछ हिस्सा। इस कविता में अंतिम के दो छंद इमाम रज़ा (अ.स.) द्वारा जोड़े गये हैं:
  • أَ فَاطِمُ لَوْ خِلْتِ الْحُسَيْنَ مُجَدَّلا * وَ قَدْ مَاتَ عَطْشَاناً بِشَطِّ فُرَات‏
  • إِذاً لَلَطَمْتِ الْخَدَّ فَاطِمُ عِنْدَه ‏ * وَ أَجْرَيْتِ دَمْعَ الْعَيْنِ فِي الْوَجَنَات‏
  • أَ فَاطِمُ قُومِي يَا ابْنَةَ الْخَيْرِ فَانْدُبِي * نُجُومُ سَمَاوَاتٍ بِأَرْضِ فَلَاة
  • قُبُورٌ بِكُوفَانَ وَ أُخْرَى بِطَيْبَة * وَ أُخْرَى بِفَخٍّ نَالَهَا صَلَوَات‏
  • وَ أُخْرَى بِأَرْضِ الْجَوْزَجَانِ مَحَلُّهَا * وَ قَبْرٌ بِبَاخَمْرَى لَدَى الْغُرُبَات‏
  • وَ قَبْرٌ بِبَغْدَادٍ لِنَفْسٍ زَكِيَّة * تَضَمَّنَهَا الرَّحْمَنُ فِي الْغُرُفَات‏
  • وَ قَبْرٌ بِطُوسٍ يَا لَهَا مِنْ مُصِيبَةٍ * أَلَحَّتْ عَلَى الْأَحْشَاءِ بِالزَّفَرَاتِ‏
  • إِلَى الْحَشْرِ حَتَّى يَبْعَثَ اللَّهُ قَائِماً * يُفَرِّجُ عَنَّا الْغَمَّ وَ الْكُرُبَات

(इरबली, कश्फ़ अल-ग़ुम्मा, 1381 हिजरी, खंड 2, पेज 318-327।)

हदीस का वर्णन

देबल इमाम मूसा काज़िम (अ) और इमाम अली रज़ा (अ) के साथियों में से एक थे। [१८] उन्होने इमाम मुहम्मद तक़ी (अ) का ज़माना भी देखा है।[१९] वह हदीस के उन कथावाचकों में से हैं जिन्होंने शिक़शेक़िया के उपदेश का उल्लेख किया है।[२०] शिया इमामों के साथियों के बीच उनका एक उच्च स्थान माना जाता है।[२१]

देबल ने सुफ़ियान-सौरी, मालिक बिन अनस (मालिकियों के नेता), सईद बिन सुफियान और मुहम्मद बिन इस्माइल जैसे लोगों से हदीस का वर्णन किया है।[२२] इसी तरह से, अली बिन अली बिन रज़ीन (देबल के भाई), मूसा बिन हम्माद यज़ीदी, अबा सल्त हेरवी और अली बिन हकीम उन लोगों में से एक हैं जिन्होंने देबल से हदीस का उल्लेख किया है।[२३]

स्वर्गवास

ईरान के शूश शहर में इस कब्र का श्रेय देबल ख़ुज़ाई को दिया जाता है

वर्ष 245 हिजरी में [२४] बनी अब्बास के शासकों में से एक का मज़ाक उड़ाने के कारण देबल की हत्या कर दी गई थी।[२५] कहा गया है कि उनकी ज़बान तेज़ थी और कोई भी ख़लीफ़ा या मंत्री उसके बुराई करने से सुरक्षित नहीं था और बहुत से लोग उनके द्वारा मज़ाक उड़ाये जान से डरते थे।[२६] इसके अलावा, रिपोर्ट में कहा गया है कि देबल अहले-बैत (अ) के प्रति प्रेम में ग्रसित (तअस्सुब रखते) थे[२७] और वह केवल अहल अल-बैत (अ.स.) के दुश्मनों पर व्यंग्य करते थे।[२८] वह ख़लीफाओं के बारे में उनके द्वारा किये गए व्यंग्यों के कारण हमेशा फ़रार की स्थिति में रहा करते थे। [२९]

कुछ शोधकर्ताओं ने संभावना व्यक्त की है कि मुतवक्किल अब्बासी के उपहास के कारण उनकी हत्या कर दी गई। क्योंकि मुतवक्किल के आदेश से इमाम हुसैन (अ.स.) की क़ब्र को नष्ट किये जाने के बाद देबल ने एक कविता में मुतवक्किल पर व्यंग्य किया और इमाम हुसैन (अ.स.) के लिये शोकगीत (मरसिया) लिखे।[३०] कुछ स्रोतों में उनकी मृत्यु के लिए अन्य स्थानों और समय का भी उल्लेख किया गया है।[३१] तफ़सीर रूह अल-जिनान के लेखक अबुल फ़ुतूह राज़ी की रिपोर्ट के अनुसार, अपने जीवन के अंतिम क्षणों में, देबल ने एकेश्वरवाद, नबूवत और इमाम अली (अ.स.) के संरक्षकता को स्वीकार करते हुए एक कविता लिखी।[३२] और वह कविता उनकी कब्र पर लिखी गई।[३३] देबल ने वसीयत की कि ताईया क़सीदे को उनकी क़ब्र में उनके साथ रखा जाये।[३४] देबल की क़ब्र ईरान के शहर शूश में स्थित है।[३५]

फ़ुटनोट

  1. कुलिज़ादेह अलियार, "मज़ारत अल-शिया दर क़सीद ए ताईया देबल ख़ुज़ाई", पृष्ठ 53।
  2. देखें: अमीनी, अल-ग़दीर, 1416 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 517-503।
  3. अमीनी, अल-ग़दीर, 1416 एएच, खंड 2, पृ. 538-540।
  4. शेख़ सदूक़, उयून अख़बार अल-रज़ा (अ), 1378 एएच, खंड 2, पृष्ठ 251।
  5. हम्द, "परिचय", दीवान देबल बिन अली अल-ख़ोजाई में, 1414 एएच, पृष्ठ 11।
  6. हम्वी, मोजम अल-उदबा, 1414 एएच, खंड 3, पृष्ठ 1287।
  7. अमीन, अयान अल-शिया, 1403 एएच, खंड 6, पृष्ठ 415।
  8. हम्द, "परिचय", दीवान देबल बिन अली अल-ख़ुजाई पुस्तक में, 1414 एएच, पृष्ठ 13।
  9. अमीन, आयान अल-शिया, 1403 एएच, खंड 6, पृष्ठ 401।
  10. अमीनी, अल-ग़दीर, 1416 एएच, खंड 2, पृष्ठ 524
  11. खतीब बगदादी, बगदाद का इतिहास, 1417 एएच, खंड 8, पृष्ठ 379
  12. नज्जाशी, रिजाल अल-नजाशी, 1418 एएच, पृष्ठ 277।
  13. हम्वी, मोजम अल-उदबा, 1414 एएच, खंड 3, पृष्ठ 1284।
  14. अल-अलामी, "परिचय", पुस्तक दीवान देबल अल-ख़ुजाई में, 1417 एएच, पृष्ठ 4।
  15. अमीनी, अल-ग़दीर, 1416 एएच, खंड 2, पृष्ठ 513।
  16. अमीनी, अल-ग़दीर, 1416 एएच, खंड 2, पृष्ठ 514-516।
  17. अबुल फ़रज़ इस्फ़हानी, अल-अग़ानी, 1415 एएच, खंड 20, पृष्ठ 294।
  18. इब्न शहर आशोब, मआलिम अल-उलामा, अल-मतबआ अल-हैदरियाह, पृष्ठ 151।
  19. अमीनी, अल-ग़दीर, 1416 एएच, खंड 2, पृष्ठ 527।
  20. देखें: शेख़ तूसी, अमाली, 1414 एएच, पृष्ठ 372।
  21. देखें: हिल्ली, ख़ुलासा अल-अक़वाल, 1417 एएच, पृष्ठ 144; अमीन, आयान अल-शिया, 1403 एएच, खंड 6, पृष्ठ 401।
  22. अमीनी, अल-ग़दीर, 1416 एएच, खंड 2, पृष्ठ 527-528।
  23. अमीनी, अल-ग़दीर, 1416 एएच, खंड 2, पृष्ठ 528-529।
  24. नज्जाशी, रिज़ल अल-नजाशी, 1418 एएच, पृष्ठ 277।
  25. अमीनी, अल-ग़दीर, 1416 एएच, खंड 2, पृष्ठ 542।
  26. अबुल फ़रज़ इस्फ़हानी, अल-अग़ानी, 1415 एएच, खंड 20, पृष्ठ 294।
  27. हेसरी, ज़ोहर अल-आदाब, 1417 एएच, खंड 1, पृष्ठ 99।
  28. अमीनी, अल-ग़दीर, 1416 एएच, खंड 2, पृष्ठ 522।
  29. अबुल फ़रज़ इस्फ़हानी, अल-अग़ानी, 1415 एएच, खंड 20, पृष्ठ 295।
  30. क़ुरबानी ज़रीन, "देबल ख़ुज़ाई", पी. 792; यह भी देखें: देबल अल-ख़ुजाई, देबल बिन अली अल-ख़ुजाई की कविता, 1403 एएच, पृ. 337-338।
  31. देखें: हमवी, मोजम अल-उदबा, 1414 एएच, खंड 3, पृष्ठ 1287; इब्न ख़लकान, वफ़यात अल-आयान, 1900, खंड 2, पृष्ठ 270; हम्वी, मोजम अल-बुलदान, 1399 एएच, खंड 3, पृष्ठ 160।
  32. अबुल-फ़ुतूह राज़ी, रौज़ अल-जेनान, 1408 एएच, खंड 4, पृष्ठ 229।
  33. देखें: शेख़ सदूक़, उयून अख़बार अल-रज़ा (अ), 1378 एएच, खंड 2, पृष्ठ 267।
  34. सद्र, ताासीस ऑफ अल-शिया ले उलूम अल-इस्लाम, अल-आलमी पब्लिशिंग हाउस, पी. 195.
  35. हिरज़ुद्दीन, मराक़िद अल-मआरिफ़, 1371, खंड 1, पृष्ठ 288।

स्रोत

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