मुतवक्किल अब्बासी
नाम | जाफ़र बिन मुतवक्किल |
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उपनाम | मुतवक्किल |
जन्म स्थान | वर्ष 207 हिजरी |
मृत्यु स्थान | वर्ष 247 हिजरी |
पिता | मोतसम अब्बासी |
बच्चे | मुंतसर, मोअतज़, मोअय्यद |
धर्म | इस्लाम, अहले हदीस |
दफ़न स्थान | माहोज़ा |
के लिए प्रसिद्ध | दसवां अब्बासी ख़लीफ़ा |
वंश | अब्बासी |
शासन की शुरुआत | वर्ष 232 हिजरी |
शासन का अंत | वर्ष 247 हिजरी |
के साथ समसामयिक | इमाम हादी (अ) |
गतिविधियाँ | इमाम हुसैन (अ) के मज़ार को नष्ट किया, इमाम हादी (अ) को सामर्रा में बुलाना |
अवशेष | सामर्रा की जामा मस्जिद |
उत्तराधिकारी | मुंतसर अब्बासी |
पूर्वाधिकारी | वासिक़ अब्बासी |
मुतवक्किल अब्बासी (207-247 हिजरी) (फ़ारसीःمُتَوکِّل عَبّاسی) दसवां अब्बासी ख़लीफ़ा था जो 232 हिजरी में सत्ता में आया और उसकी पूरी ख़िलाफ़त इमाम हादी (अ) की इमामत के साथ समवर्ती थी। वह एक नासेबी था जोकि अहले-बैत (अ) का अपमान करता और उनका मज़ाक उड़ाता था।
वर्ष 236 हिजरी में मुतवक्किल के आदेश से इमाम हुसैन (अ) के मज़ार को नष्ट किया गया और उस ज़मीन पर खेती की जाने लगी। इस कृत्य से जनता में विरोध उत्पन्न हुआ। इमाम अली नक़ी (अ) को लोगों की प्रवृत्ति और उनके कुछ भरोसेमंद नियुक्तियों की बदनामी के कारण 233 हिजरी में सामर्रा में बुलाया गया था, और अपने जीवन के अंत तक वहीं रहे। इतिहासकारों के अनुसार, मुतवक्किल ऊपरी तौर पर इमाम हादी (अ) का सम्मान करता था; परन्तु वह लगातार उन्हे अपमानित करता रहा और उनके विरुद्ध षड्यन्त्र रचता रहता था।
शोधकर्ताओं के अनुसार, मुतवक्किल के शासन के दौरान शियो को विभन्न कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। बहुत से लोग मारे गए या जेल में डाल दिए गए। साथ ही, मुतवक्किल के आदेश से अलवियों पर बहुत अधिक आर्थिक दबाव पड़ा।
वर्ष 234 हिजरी में, मुतवक्किल के आदेश से अहले-हदीस का धार्मिक धर्म सरकार का आधिकारिक धर्म बन गया, और ईश्वर को देखने की संभावना और क़ुरआन का मखलूक ना होना जैसी उनकी मान्यताओं को बढ़ावा दिया गया। मामून और मोतसम अब्बासी के विपरीत मुतवक्किल ने मोतज़ेला का विरोध किया और अहले ज़िम्मा पर सख्त कानून लगाए।
मुतवक्किल तुर्कों की मदद से सत्ता में आया था और कुछ शोधकर्ताओं के अनुसार, जब उसने पदभार संभाला, तो इस्लामी सरकार में तुर्की प्रभाव का युग शुरू हुआ। पहले तो उनके साथ अच्छे संबंध थे; लेकिन उनकी बढ़ती शक्ति को देखकर उसे खतरा महसूस हुआ और उसने उनका मुकाबला करना शुरू कर दिया। जैसे-जैसे तुर्क और मुतवक्किल के बीच दुश्मनी बढ़ती गई, दोनों ने एक-दूसरे के खिलाफ साजिशें रचीं, जब तक कि मुतावक्किल को उसके बेटे मुंतसर अब्बासी ने तुर्कों की मदद से मार नहीं डाला। उसकी मृत्यु के साथ, अब्बासी सरकार में गिरावट आई।
मुतवक्किल को महल और शानदार इमारतें बनाने का शौक था और उसने इस पर बहुत पैसा खर्च किया। सामर्रा की जामा मस्जिद उस समय की उसकी इमारतों के अवशेषों में से एक है।
संक्षिप्त परिचय
जाफ़र बिन मोतसिम जिसे मुतावक्किल अब्बासी के नाम से जाना जाता है, मोतसिम अब्बासी (शासनकाल: 218-227 हिजरी) का पुत्र और हारून अल-रशीद (शासनकाल: 193-170 हिजरी) का पोता है दसवां अब्बासी खलीफ़ा है।[१] उसका जन्म 207 हिजरी में हुआ था।[२] 227 हिजरी में अपने भाई अब्बासी ख़लीफ़ा वासिक़ द्वारा अमीर अल-हाज हो गया।[३] 232 हिजरी में वासिक़ की मृत्यु पश्चात, जाफ़र बिन मोतसिम 26 वर्ष की आयु में उसे तुर्की जनरलों और अब्बासी सरकार के बुजुर्गों द्वारा खिलाफत के लिए चुना गया, और अहमद बिन अबी दाऊद नामक दरबारियों में से एक के सुझाव पर, उसका नाम अल-मुतावक्किल अला अल्लाह रखा गया।[४]
इस्लाम के इतिहास में यह पहली बार था कि जब तुर्कों ने ख़लीफ़ा की नियुक्ति में हस्तक्षेप किया और जिसे वे चाहते थे उसे ख़लीफ़ा नियुक्त करने में सफल रहे।[५] इसी कारण से, कुछ लेखकों ने मुतावक्किल की ख़िलाफ़त को तुर्की प्रभाव के युग की शुरुआत जाना है;[६] मुतावक्किल का युग शुरू हुआ और 334 हिजरी तक जारी रहा।[७]
मुतावक्किल को एक खून का प्यासा और अत्याचारी ख़लीफ़ा, शराब पीने और पापपूर्ण सभाओं में भाग लेने में अग्रणी खलीफ़ा बताया जाता है।[८] इमाम अली (अ) की भविष्यवाणी के अनुसार, बनी अब्बास का दसवां ख़लीफ़ा यानी मुतावक्किल उनमें सबसे अधिक काफिर है।[९]
अहले-बैत (अ) से दुश्मनी
मुतावक्किल अब्बासी को पैगंबर (स) के अहले-बैत से बहुत नफरत थी, खासकर अली बिन अबी तालिब (अ) से।[१०] अबुल फ़रज इस्फ़हानी के अनुसार, मुतावक्किल अलवी परिवार के साथ दुर्व्यवहार करने में सभी अब्बासी ख़लीफ़ाओं से आगे था। इस हद तक कि उसने इमाम हुसैन (अ) की कब्र को नष्ट करा दिया।[११] उसने जिसे भी अली (अ) और अली के परिवार का दोस्त समझा, उसे मार डाला और उसकी संपत्ति जब्त कर ली।[१२]
8वीं शताब्दी के इतिहासकार ज़हबी के अनुसार, मुतावक्किल नासेबी था, और उसके नासेबी होने में कोई मतभेद नहीं है।[१३] वह अली बिन जहम, उमर बिन फ़राह और इब्ने उतरुजा जैसे अन्य नासेबीयो के साथ उठता बैठता था।[१४] जोकि इमाम अली (अ) के बारे में बहुत बुरा भला कहते थे।[१५] मुतावक्किल अब्बासी का एक नौकर था जो संवम को इमाम अली (अ) के समान बताकर इमाम अली (अ) का मज़ाक उड़ाता था।[१६]
पाँचवीं शताब्दी के इतिहासकार खतीब बग़दादी की रिवायत के अनुसार, नस्र बिन अली नाम के एक व्यक्ति ने मुतावक्किल को इमाम हसन (अ) और इमाम हुसैन (अ) के गुणों के बारे में एक हदीस सुनाई और मुतावक्किल ने यह सोचकर कि वह शिया है, उसे हज़ार कोड़े मारने का आदेश दिया।[१७] नस्र बिन अली पर कोड़े मारना तब तक जारी रखा जब तक कि नस्र के सुन्नी होने पर गवाही नहीं दी फिर मुतावक्किल ने कोड़े मारना बंद कर दिया।[१८]
इमाम हुसैन (अ) के मज़ार को नष्ट करना
- मुख्य लेख: इमाम हुसैन के हरम का विनाश
236 हिजरी में मुतावक्क्किल अब्बासी ने हुसैन बिन अली (अ) की कब्र को नष्ट करने का आदेश दिया।[१९] इसलिए, इसके आसपास के सभी स्मारक नष्ट कर दिए गए; लेकिन किसी ने भी इमाम हुसैन (अ) की कब्र को नष्ट करने की कार्रवाई नहीं की, फ़िर यहूदियों के एक समूह को कब्र को नष्ट करने का काम सौंपा गया।[२०] कब्रों को नष्ट करने के बाद, उन्होंने वहां पानी छोड़ दिया, जमीनों को जोत दिया, उन पर खेती की[२१] और तीर्थयात्रियों पर अत्याचार किया गया।[२२] कहा जाता है कि मुतावक्किल ने दो बार इमाम हुसैन (अ) के हरम को नष्ट कराया, पहली बार 233 हिजरी और दूसरी बार 236 हिजरी इस बीच मकबरे की मरम्मत की गई थी। दूसरा विनाश अधिक महत्वपूर्ण था।[२३]
इमाम हुसैन (अ) की क़ब्र के विनाश ने मुसलमानों को इस हद तक नाराज़ कर दिया; कि बग़दाद के लोगों ने मस्जिदों के दरवाज़ों और दीवारों पर मुतावक्किल के ख़िलाफ़ नारे लिखे और कवियों ने कविताएँ लिखकर उस पर व्यंग्य किया।[२४]
इमाम हादी को सामर्रा बुलाना
वर्ष 233 हिजरी में मुतावक्किल अब्बासी ने इमाम हादी (अ) को मदीना से सामर्रा जाने के लिए मजबूर किया।[२५] इमामिया न्यायविद और धर्मशास्त्री शेख़ मुफ़ीद मुतावक्किल की इस कार्रवाई को वर्ष 243 हिजरी से संबंधित मानते हैं।[२६] लेकिन इस्लामी इतिहास के शोधकर्ता रसूल जाफ़रयान इस तारीख को गलत मानते हैं।[२७] इसका कारण मदीना के गवर्नर अब्दुल्लाह बिन मुहम्मद[२८] और इमाम हादी (अ) के विरूद्ध ख़लीफ़ा द्वारा हरमैन के इमामे जमाअत के पद पर नियुक्त बुरैहा अब्बासी की बदनामी थी।[२९] और शियो के दसवें इमाम के लिए लोगो की इच्छा की भी ख़बरें थी।[३०]
मुतावक्किल को लिखे एक पत्र में, इमाम हादी (अ) ने अपने खिलाफ बदनामी को खारिज किया;[३१] लेकिन जवाब में मुतावक्किल ने सम्मानपूर्वक उन्हें सामरा की ओर बढ़ने के लिए कहा।[३२] मुतावक्किल के पत्र का पाठ काफ़ी और अल-इरशाद नामक पुस्तको में वर्णित है।[३३] इस आधार पर, यहया बिन हरसमा को मुतावक्किल अब्बासी द्वारा इमाम हादी (अ) को सामर्रा में स्थानांतरित करने के लिए नियुक्त किया गया था।[३४]
यहया बिन हरसमा से वर्णित है कि मुतावक्किल का आदेश सुनकर मदीना के लोग बहुत उत्तेजित हो गए, विलाप (गिरया वा ज़ारी) करने लगे, मदीना ने ऐसी स्थिति पहले कभी नहीं देखी थी।[३५]
सामर्रा में हज़रत हादी (अ) का स्पष्ट रूप से सम्मान किया जाता था, लेकिन मुतावक्किल इमाम के खिलाफ़ साजिश रचता रहाता था।[३६] ताकि लोगो की नज़रो मे इमाम की महानता को कम कर सके।[३७] मुतावक्किल लगातार इमाम को अपमानित करता था।[३८] सय्यद इब्ने ताऊस द्वारा मोहज अल दावात पुस्तक मे इसका उल्लेख किया गया है इन अपमानों में से एक के दौरान इमाम हादी (अ) ने दुआ ए मज़लूम बर ज़ालिम पढ़ी और उसके मात्र तीन दिन बाद ही मुतावक्किल की हत्या कर दी गई।[३९]
शियो की स्थिति
मुतावक्किल खुले रूप से शियो से शत्रुता रखता था और शियो का उपहास करने वाले लोगों को इनाम देता था।[४०] शियो से नफरत के कारण, उसने उन खलीफाओं को बुरा कहा जो शियो के प्रति उदार थे।[४१] मामून अब्बासी के शासनकाल मे वापस किया गया फदक़ मुतावक्किल ने उनसे छीन लिया।[४२]
मुतावक्किल ने कई शियो को कैद किया और बुहत से शियो को मार डाला।[४३] मुतावक्किल के आदेश पर, ज़ैद बिन अली के वंशजों में से एक, यहया बिन उमर को गिरफ्तार कर लिया गया और पीटा गया।[४४] इसी प्रकार दाई कबीर के नाम से प्रसिद्ध हसन बिन ज़ैद ने मुतावक्किल के शासनकाल मे तबरिस्तान और दैलम में शरण ली।[४५] मुतावक्किल के आदेश से अबी तालिब की वंशजो का मिस्र से निष्काशन कर दिया गया।[४६] अबुल फ़रज एस्फहानी के अनुसार, मुतावक्किल की खिलाफ़त के दौरान, अबी तालिब के वंशज तितर-बितर हो गए और गुप्त जीवन जीते थे[४७], उनमें से अहमद बिन ईसा बिन ज़ैद भी हैं जिनकी मृत्यु मुतावक्किल की खिलाफत के समय हो गई थी।[४८]
मुतवक्किल अब्बासी की ख़िलाफ़त के दौरान शियो की स्थिति इतनी खराब थी कि उनके पहले तीन खलीफाओं, मामून, मोतसिम और वासिक़ अब्बासी के दौरान उन्हें सापेक्ष स्वतंत्रता का आनंद मिला था।[४९] मुतावक्किल की शियो से महान शत्रुता के विपरीत कुछ शिया सरकारी दरबार में प्रवेश करने में सक्षम थे। उनमें से हम इब्ने सिक्कीत का खलीफा के दरबार में उपस्थिति का उल्लेख कर सकते हैं[५०], जो मुतावक्किल के बच्चों के पालन-पोषण का प्रभारी था।[५१]
कार्रवाई
7वीं शताब्दी के भूगोलवेत्ता याकूत हमवी की रिपोर्ट के अनुसार, मुतावक्किल को महलों और आलीशान इमारतों के निर्माण में रुचि थी; इस तरह से कि किसी भी ख़लीफ़ा ने उसके जैसी इमारतें नहीं बनवाईं।[५२] मासर अल-कुबरा फ़ी तारिख सामर्रा पुस्तक में तीस से अधिक महलों के नाम हैं जो मुतावक्किल ने अपने लिए सामर्रा में बनाए थे (अपने आसपास के लोगो के महलों के अलावा) अन्य महलो का उल्लेख किया गया है।[५३] मुतावक्किल ने सभी इमारतों के लिए लगभग 300 मिलियन दिरहम खर्च किए।[५४]
उसने सामर्रा के लिए एक जामा मस्जिद बनाने का आदेश दिया।[५५] 6वीं शताब्दी के इतिहासकार इब्ने जोज़ी के अनुसार इस मस्जिद को बनाने में 380 हजार से अधिक दीनार खर्च किए गए थे, जिसका निर्माण 234 हिजरी से शुरू होकर 237 हिजरी में समाप्त हुआ।[५६] इस मस्जिद को जामे मुतावक्किल के नाम से भी जाना जाता है, इसकी सर्पिल मीनार के कारण इसे "मलवियेह मस्जिद" के नाम से जाना जाता है।[५७] आज, इस मस्जिद के अवशेष शहर से एक किलोमीटर दूर से देखे जा सकते हैं।[५८]
अहले हदीस का पक्षपात
234 हिजरी मे मुतावक्किल अब्बासी ने अहले-हदीस के धार्मिक धर्म को बढ़ावा देने का आदेश दिया[५९] और सरकार का आधिकारिक धर्म घोषित किया।[६०] पिछले खलीफाओं के विपरीत[६१] मुतावक्किल ने मोतज़ेला का सामना किया और धर्मशास्त्रियों को ईश्वर को देखने की संभावना पर चर्चा करने का आदेश दिया।[६२] मुतावक्किल ने क़ुरआन के मख़लूक़ होने वाले विश्वास पर प्रतिबंध लगा दिया।[६३] और उसने कुरान के मखलूक़ होने में विश्वास न करने के कारण वासिक़ अब्बासी ने जिन लोगो को कैद कर लिया था[६४] मुतावक्किल ने उन्हे अहमद इब्ने हंबल सहित आज़ाद कर दिया।[६५]
अहले ज़िम्मा (गैर-मुस्लिम) पर दबाव
वर्ष 235 हिजरी में मुतावक्किल अब्बासी ने अहले ज़िम्मा पर सख्त कानून लागू किए।[६६] मुस्लिम कपड़े पहनने पर प्रतिबंध और किसानों के कपड़े की तरह कपड़े पहनने की आवश्यकता, अम्मामे पर विशेष कपड़े की सिलाई, घोड़ों और खच्चरों की सवारी पर प्रतिबंध, अहले ज़िम्मा को सरकारी कामकाज और सरकार में नियुक्त करने, उनसे जिज़्या लेने, नए चर्चों को नष्ट करने और उनकी कब्रों को जमीन से समतल करने पर रोक इन आदेशों में शामिल थी।[६७] तारिख अल-तमद्दुन अल इस्लामी पुस्तक के लेखक जुर्ज़ी जैदान ने इस भरोसेमंद व्यवहार के लिए हिम्स में मुतावक्किल के खिलाफ विद्रोह में मुसलमानों के साथ ईसाइयों के सहयोग के परिणामस्वरूप अहले ज़िम्मा को जिम्मेदार ठहराया।[६८] अहले ज़िम्मा पर मुतावक्किल के अभूतपूर्व दबाव के बावजूद कुछ ईसाई विद्वान हुनैन इब्ने इस्हाक़ जैसे (चिकित्सक और ज्योतिष) खिलाफत प्रणाली में सेवा करते थे।[६९]
तुर्कों से टकराव
मुतावक्किल जो तुर्कों की मदद से सत्ता में आया था, ने शुरू में उन्हें संतुष्ट करने के लिए काम किए और उन्हें राजनीतिक मामले करने की शक्ति दी; लेकिन कुछ समय बाद, उसने इस पद्धति को छोड़ दिया और तुर्कों की शक्ति को सीमित करने की कोशिश की।[७०] मुतावक्किल अब्बासी ने अपने तीन बेटों, मुहम्मद, अबू अब्दुल्लाह और इब्राहिम को वली अहद (क्राउन प्रिंस) बनाया। मुहम्मद मुंतसर की उपाधि के साथ अब्बासी ख़लीफ़ा के युवराज बना, अबू अब्दुल्लाह मोअतज़ अपाधी के साथ अब्बासी ख़लीफ़ा मुंतसर का युवराज बना और इब्राहीम मोअय्यद की उपाधी के साथ मोअत्ज़ का युवराज बना।[७१] अफ़्रीका और मगरिब की सरकार मुंतसर को, ख़ोरासान और रय की कमान मोअत्ज़ को तथा सीरिया और फ़िलिस्तीन की सरकार मोअय्यद को सौंपी गई।[७२] तारीख अल दुवल अल अब्बासीया किताब के लेखक मुहम्मद सुहेल तक़ूश ने अपनी इस किताब मे मुतावक्किल के इस कदम को तुर्कों की शक्ति और प्रभाव को कमजोर करने का कारण माना है, जिन्होंने मोतसिम और वासिक की अब्बासी खिलाफत के दौरान अब्बासी शासन के तहत भूमि के कुछ हिस्सों पर कब्जा कर लिया था।[७३]
तक़ूश का मानना है कि तुर्क, जो अपने प्रभाव को कम करने के मुतावक्किल के फैसले से अवगत थे, ने कई साजिशें रचीं और यही कारण है कि मुतावक्किल ने उनकी साजिश से बचने के लिए राजधानी को स्थानांतरित करने का फैसला किया।[७४] मुतावक्किल इसे अपनी सरकार की राजधानी बनाने के लिए 244 हिजरी में दमिश्क गया; लेकिन उसे वहां का मौसम और रहन-सहन उपयुक्त नहीं लगा। इसलिए दो महीने के बाद वहां से सामर्रा लौट आया।[७५] तकूश के अनुसार, खलीफा के सामर्रा लौटने के बाद, तुर्क और खलीफा के बीच दुश्मनी अपरिवर्तनीय स्थिति में पहुंच गई, और प्रत्येक ने प्रतिद्वंद्वी को खत्म करने की कोशिश की।[७६]
मृत्यु
247 हिजरी में, चौदह साल और दस महीने की खिलाफत के बाद, मुतावक्किल अब्बासी को उसेके बेटे मुंतसर ने चालीस साल की उम्र में मार डाला[७७] और माहूज़ा शहर में उसके महल में दफनाया गया।[७८] हालाकि मुतावक्किल ने मुंतसर को अपना खलीफ़ा नियुक्त किया था आपसी संबंध अच्छे नही थे, कई मौकों पर उसने उसका मजाक उड़ाया और कभी-कभी उसका अपमान किया और उसे जान से मारने की धमकी दी।[७९] एक अन्य रिपोर्ट में, चौथी शताब्दी के इतिहासकार तबरी के अनुसार, मुतावक्किल ने मुंतसर और कई तुर्की कमांडरों को मारने का फैसला किया था।[८०] इसके अलावा, 8वीं सदी के इतिहासकार इब्ने खल्दुन का मानना है कि मुतवक्किल द्वारा अली बिन अबी तालिब के अपमान के दौरान, जिसका मुंतसर ने विरोध किया और उसे ऐसा करने से मना किया, मुतावक्किल ने उसे खिलाफत से हटा दिया और जान से मारने की धमकी दी।[८१] मुंतसर जो अपने पिता के व्यवहार से क्रोधित था, ने तुर्की कमांडरों के सहयोग से मुतावक्किल की उस समय हत्या कर दी, जब वह नशे में था।[८२]
कुछ रिपोर्टों में, इस घटना का उल्लेख मुतावक्किल द्वारा हज़रत ज़हरा का अपमान करने के दौरान किया गया है।[८३] अल-शिया वल हाकेमून किताब के लेखक मुहम्मद जवाद मुग़निया ने लिखा है कि एक दिन मुंतसिर ने सुना कि उनके पिता ह़जरत फ़ातिमा (स) को अपश्बद कह रहे थे। इसीलिए वह एक न्यायविद के पास गया और अपने पिता के इस कार्य का हुक्म ज्ञात किया।[८४] न्यायविद् ने उसके पिता को महदूर अल-दम बताया; लेकिन यह कहकर कि जो व्यक्ति अपने पिता को मारेगा, उसकी आयु कम कर दी जायेगी, उसे चेतावनी दी कि वह अपने पिता को न मारे।[८५] हालाँकि, उसने मुतावक्किल को मार डाला और केवल सात महीने बाद, वह स्वयं भी मारा गया।[८६]
मुतावक्किल की मृत्यु के साथ, तुर्कों को सरकार में अधिक शक्ति और प्रभाव प्राप्त हुई[८७] और बनी अब्बास के ख़लीफ़ाओं का अधिकार और भय इस हद तक कम हो गया; कि मुतावक्किल के बाद केवल एक शताब्दी में, ग्यारह ख़लीफ़ा, जिनमें से सभी तुर्कों के हाथो सत्ता में आए और फिर मारे गए या अपदस्थ कर दिए गए।[८८]
फ़ुटनोट
- ↑ इब्ने जौज़ी, अल मुन्तज़म, 1412 हिजरी, भाग 11, पेज 178
- ↑ इब्ने जौज़ी, अल मुन्तज़म, 1412 हिजरी, भाग 11, पेज 178
- ↑ तिबरी, तारीख अल तिबरी, 1378 हिजरी, भाग 9, पेज 123
- ↑ इब्ने असीर, अल कामिल, 1385 हिजरी, भाग 7, पेज 33-34
- ↑ ख़िज्री, तारीखे ख़िलाफ़ते अब्बासी, 1384 शम्सी, पेज 107
- ↑ तक़ूश, तारीख अल दुवल अल अब्बासीया, 1430 हिजरी, पेज 154-156
- ↑ मुवाहिद अब्तही, नक़्शे शिआयान दर साख्तारे हुकूमते अब्बासीयान, 1392 शम्सी, पेज 27
- ↑ जाफ़रयान, अज़ पैदाइशे इस्लाम ता ईरान इस्लामी, पेज 312
- ↑ मजलिसी, बिहार उल अनवार, 1403 हिजरी, भाग 41, पेज 322; हुसैनी तेहरानी, इमाम शनासी, 1430 हिजरी, भाग 12, पेज 170
- ↑ इब्ने असीर, अल कामिल, 1385 हिजरी, भाग 7, पेज 55-56
- ↑ अबुल फर्ह इस्फ़हानी, मक़ातिल अल तालेबीन, दार उल मारफ़ा, पेज 478
- ↑ अबुल फर्ह इस्फ़हानी, मक़ातिल अल तालेबीन, दार उल मारफ़ा, पेज 478
- ↑ ज़हबी, तारीख अल इस्लाम, 1413 हिजरी, भाग 18, पेज 552
- ↑ इब्ने असीर, अल कामिल, 1385 हिजरी, भाग 7, पेज 56
- ↑ इब्ने ख़लदूनन, तारीखे इब्ने ख़लदून, 1408 हिजरी, भाग 3, पेज 349
- ↑ इब्ने असीर, अल कामिल, 1385 हिजरी, भाग 7, पेज 55-56
- ↑ खतीब बगदादी, तारीखे बगदाद, 1417 हिजरी, भाग 13, पेज 289
- ↑ खतीब बगदादी, तारीखे बगदाद, 1417 हिजरी, भाग 13, पेज 289
- ↑ इब्ने जौज़ी, अल मुंतज़म, 1412 हिजरी, भाग 11, पेज 237
- ↑ अबुल फर्ह इस्फ़हानी, मक़ातिल अल तालेबीन, दार उल मारफ़ा, पेज 479
- ↑ इब्ने जौज़ी, अल मुंतज़म, 1412 हिजरी, भाग 11, पेज 237
- ↑ अबुल फर्ह इस्फ़हानी, मक़ातिल अल तालेबीन, दार उल मारफ़ा, पेज 479
- ↑ मुदर्रिस, शहरे हुसैन (अ), 1380 शम्सी, पेज 206-207
- ↑ सीवती, तारीख अल ख़ुलफ़ा, 1425 हिजरी, पेज 253
- ↑ याक़ूबी, तारीखे याक़ूबी, बैरूत, भाग 2, पेज 484; नौबख़्ती, फ़ेरक अल शिया, 1404 हिजरी, पेज 92; अशअरी क़ुमी, अल मक़ालात वल फ़ेरक़, 1360 शम्सी, पेज 100
- ↑ शेख मुफ़ीद, अल इरशाद, भाग 2, पेज 310
- ↑ जाफ़रयान, रसूल, हयाते फ़िक्री वा सियासी आइम्मा, 1381 शम्सी, पेज 503
- ↑ मुफ़ीद, अर इरशाद, 1413 हिजरी, भाग 2, पेज 309
- ↑ मसऊदी, इसबात अल वसीया, 1426 हिजरी, पेज 233
- ↑ सिब्ते इब्ने जौज़ी, तज़केरातुल ख़वास, 1426 हिजरी, भाग 2, पेज 493
- ↑ मुफ़ीद, अल इरशाद, 1413 हिजरी, भाग 2, पेज 309
- ↑ मुफ़ीद, अल इरशाद, 1413 हिजरी, भाग 2, पेज 309
- ↑ कुलैनी, अल काफ़ी, 1407 हिजरी, भाग 1, पेज 501; मुफ़ीद, अल इरशाद, 1413 हिजरी, भाग 2, पेज 309
- ↑ मसऊदी, इसबात अल वसीया, 1426 हिजरी, पेज 233
- ↑ सिब्ते इब्ने जौज़ी, तज़केरातुल ख़वास, 1426 हिजरी, भाग 2, पेज 492
- ↑ मुफ़ीद, अल इरशाद, 1413 हिजरी, भाग 2, पेज 311
- ↑ तबरसी, आलाम उल वरा, 1417 हिजरी, भाग 2, पेज 126
- ↑ जाफ़रयान, रसूल, हयाते फ़िक्री वा सियासी इमामान शिया, 1381 शम्सी, पेज 510
- ↑ इब्ने ताऊस, महज अल दावात, 1411 हिजरी, पेज 265-271
- ↑ सज्जादी, बनी अब्बास, पेज 674
- ↑ सज्जादी, बनी अब्बास, पेज 674
- ↑ बलाज़ुरी, फुतूह अल बुलदान, 1988 ई, पेज 42-43
- ↑ अबुल फ़रज इस्फ़हानी, मक़ातिल अल तालेबीन, दार अल मारफ़ा, पेज 478
- ↑ अबुल फ़रज इस्फ़हानी, मक़ातिल अल तालेबीन, दार अल मारफ़ा, पेज 506
- ↑ अबुल फ़रज इस्फ़हानी, मक़ातिल अल तालेबीन, दार अल मारफ़ा, पेज 490
- ↑ किंदी, किताब अल वुलात, 1424 हिजरी, पेज 149
- ↑ अबुल फ़रज इस्फ़हानी, मक़ातिल अल तालेबीन, दार अल मारफ़ा, पेज 490
- ↑ अबुल फ़रज इस्फ़हानी, मक़ातिल अल तालेबीन, दार अल मारफ़ा, पेज 492
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- याक़ूबी, अहमद बिन अबी याक़ूब, तारीख अल याक़ूबी, बैरूत, दार ए सादिर