हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे व आलिहि व सल्लम

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मुहम्मद बिन अब्दुल्लाह बिन अब्दुल मुत्तालिब बिन हाशिम (आम अल-फ़ील-11 हिजरी), इस्लाम के पैगंबर, अल्लाह के बड़े (उलुल अज़्म) नबियों और आख़िरी पैगंबरों में से एक हैं। उनका मुख्य चमत्कार क़ुरआन है।

पैगंबर मुहम्मद (स) अरब प्रायद्वीप के बहुदेववादी (मुशरिक) समाज में पैदा हुए थे, लेकिन उन्होंने मूर्तिपूजा से परहेज़ किया। वह चालीस वर्ष की आयु में पैगंबर बन गए और उनका सबसे महत्वपूर्ण संदेश एकेश्वरवाद (तौहीद) का आह्वान था। उन्होंने अपनी बेअसत (मिशन) के उद्देश्य को नैतिक गुणों को पूर्ण करने के तौर पर परिचित किया। मक्का के बहुदेववादियों ने उन्हें और उनके अनुयायियों को वर्षों तक परेशान किया, लेकिन उन्होंने इस्लाम को नहीं छोड़ा। पैगंबर मुहम्मद (स) ने मक्का में 13 साल तक लोगों को इस्लाम स्वीकार करने के लिये आमंत्रित किया, फिर वह मदीना चले गए और इस प्रवासन (हिजरत) से इस्लामी तारीख़ (साल) का आरम्भ हुआ।

पैगंबर (स) के प्रयासों से, उनके जीवनकाल में लगभग पूरा अरब प्रायद्वीप इस्लाम में परिवर्तित हो गया। बाद के काल में इस्लाम का प्रसार जारी रहा और धीरे-धीरे इस्लाम एक सार्वभौमिक धर्म बन गया।

सक़लैन की हदीस के अनुसार, पैगंबर (स) ने मुसलमानों को आदेश दिया कि वे उनके बाद क़ुरआन और उनके इतरत (अहले बैत (अ)) की शरण में रहें और उन दोनो से अलग न हों, और आप (स) ने ग़दीर की घटना सहित, विभिन्न अवसरों पर, इमाम अली (अ) को अपने उत्तराधिकारी के रूप में परिचित कराया।

पैगंबर (स) ने 25 साल की उम्र में हज़रत ख़दीजा से शादी की और क़रीब 25 साल तक उनके साथ रहे। हज़रत ख़दीजा की वफ़ात के बाद, पैगंबर ने दूसरी पत्नियों से शादी की। पैगंबर (स) के बच्चे हज़रत ख़दीजा और मारिया क़िबतिया से थे, और उनमें से फ़ातिमा (स) को छोड़कर सभी का देहांत उनके जीवनकाल में ही हो गया।

वंश, उपनाम और उपाधियां

हजरत मुहम्मद (अ), अब्दुल्लाह बिन अब्दुल मुत्तलिब बिन हाशिम बिन अब्दे मनाफ़ बिन क़ुसैय बिन कलाब के पुत्र थे। उनकी माता का नाम आमेना बिन्ते वहब था। अल्लामा मजलिसी के अनुसार, इमामिया हज़रत आदम (अ) तक ईश्वर के दूत के पिता, माता और पूर्वजों से ईमान और इस्लाम पर सहमति (इजमाअ) रखते है। [2] पैगंबर (स) का वंश 48 लोगों के माध्यम से आदम (अ) तक पहुंचता है। इस श्रृंखला में कई पैगंबर मौजूद हैं, उदाहरण के लिए: इस्माईल पैगंबर के 28वें पूर्वज हैं और इब्राहिम ख़लीलुल्लाह 29वें है। पैगंबर नूह (स) पैगंबर के 39 वें पूर्वज हैं, हज़रत इदरीस (अ) पैगंबर के 42 वें पूर्वज हैं और आदम पैगंबर (अ) के 48 वें पूर्वज हैं। नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि वसल्लम के पूर्वजों में अदनान तक वंशावली के जानकार सहमत हैं, लेकिन उनके बाद आदम अलैहिस्सलाम तक कई मतभेद हैं एक हदीस के अनुसार, पैगंबर (स) ने कहा: जब मेरा वंश अदनान तक पहुंच जाए तो रुक जाओ। [नोट 1] [3] किताब मनाक़िब में आया है कि पैगंबर (स) का वंश 49 पिताओं के साथ हज़रत आदम तक पहुचता हैं। «يقال إنه ينسب إلى آدم بتسعة و أربعين أباً». [4]

उपनाम और उपाधियां

मुख्य लेख: पैग़म्बर (अ) के उपनामो और उपाधियो की सूची

पैगंबर मुहम्मद (स) का उपनाम (कुन्नियत) अबुल-क़ासिम और अबू इब्राहीम है। [5] उनकी कुछ उपाधियां यह हैं: मुस्तफ़ा, हबीबुल्लाह, सफ़ीउल्लाह, नेअमतुल्लाह, ख़ैरा ख़लक़िल्लाह, सय्यद अल-मुरसलीन, ख़ातम अल-नबीयीन, रहमतुन लिल-आलमीन, नबी ए उम्मी। [6]

जन्म

शिया विद्वानों के बीच प्रसिद्ध मत के अनुसार, पैग़ंबर (स) का जन्म रबीउल अव्वल की 17 तारीख़ और सुन्नियों के बीच लोकप्रिय मत के अनुसार रबीउल अव्वल की 12 तारीख़ को हुआ था। [7] इन दो तिथियों के बीच के अंतराल को शिया और सुन्नी के बीच एकता सप्ताह का नाम दिया गया है। [8]

अल्लामा मजलिसी ने अधिकांश शिया विद्वानों की राय के अनुसार पैगंबर (स) का जन्म रबी-उल-अव्वल की 17 तारीख़ को माना है। [9] हालांकि, किताब अल-काफी में मुहम्मद बिन याक़ूब कुलैनी, [10] और किताब कमालुद्दीन में शेख़ सदूक़ ने रबी-उल-अव्वल की 12 तारीख़ को पैगंबर के जन्म का उल्लेख किया है। [11] अल्लामा मजलिसी के अनुसार, कुलैनी की जो राय है कि पैगंबर (स) का जन्म रबी-उल-अव्वल की 12वीं तारीख़ को हुआ था, ज्यादातर तक़य्या के कारण था। [12] यह भी संभव है कि अल-काफ़ी में, «لإثنتی عشر لیلة بقیت من شهر ربیع الاول» अनुवाद: "रबी-उल-अव्वल के महीने के ख़त्म होने में 12 दिन बाकी थे", इसमें (مَضَت) (गुज़र चुके) वाक्यांश में मज़त शब्द, शब्द बाक़ियात (शेष से) [13] के बजाय ग़लत तरीके से दर्ज हो गया हो क्योंकि ख़तीब क़स्तलानी की रिपोर्ट में "बक़ियत" शब्द दर्ज है। [14]

रसूल जाफ़रियान के अनुसार, शेख़ मुफ़ीद के बाद शिया विद्वान 17 रबीउल अव्वल को पैगंबर मुहम्मद (स) के जन्मदिन के रूप में मानते हैं। [15]

पैगंबर (स) के जन्म के विवरण के बारे में सुन्नी विद्वानों की अलग-अलग राय है। कुछ लोगों ने उनके जन्म को आम अल-फ़ील [16] [नोट 2] और कुछ ने आम अल-फ़ील के दस साल बाद [17] माना है। चूंकि इतिहासकारों ने 632 ईस्वी में 63 वर्ष की आयु में पैगंबर (स) की वफ़ात लिखी है, इस लिये उन्होंने 569 और 570 ईस्वी के बीच पैगंबर (स) के जन्म और आम अल-फ़ील का अनुमान लगाया है [18]

पैगंबर के जन्मदिन के बारे में सुन्नियों में भी मतभेद हैं; रबी-उल-अव्वल की 12वीं,[19] रबी-उल-अव्वल की दूसरी,[20] रबी-उल-अव्वल की आठवीं,[21] रबी-उल-अव्वल की दसवीं[22] और रमज़ान का महीना [23] इन मतों में से हैं।

जन्म स्थान

इस्लाम के पैगंबर (स) का जन्म शेअबे अबी तालिब [24] और उस घर में हुआ था जो बाद में अक़ील बिन अबी तालिब का हो गया था। अक़ील के बच्चों ने इस घर को हज्जाज बिन यूसुफ़ [25] के भाई मुहम्मद बिन यूसुफ़ को बेच दिया था और उसने इसे एक महल में बदल दिया था। बनी अब्बास के शासन के दौरान, अब्बासी ख़लीफ़ा, हारून अल-रशीद की माँ, ख़ैज़रान ने इस घर को ख़रीदा और इसे एक मस्जिद में बदल दिया। [26] 11वीं शताब्दी के मुहद्दिस अल्लामा मजलिसी ने लिखा हैं कि उनके समय में वहाँ मक्का में इसी नाम की एक जगह थी और लोग वहां ज़ियारत के लिये जाया करते थे। [27] हेजाज़ में आले सऊद के शासन तक यह इमारत बाक़ी थी। उन्होंने वहाबी धर्म की मान्यताओं और भविष्यद्वक्ताओं (नबियों) के आसार से आशीर्वाद (तबर्रुक) लेने के निषेध होने के कारण इसे नष्ट कर दिया। [28] [नोट 3]

जन्म की पूर्व संध्या पर घटनाएँ

ऐतिहासिक स्रोतों ने इस्लाम के पैगंबर (स) के जन्म की रात की घटनाओं का वर्णन किया है, जिन्हें इरहासात के नाम से जाना जाता है। [29] इनमें से कुछ घटनाएं यह हैं: कसरा के महल का हिलना और इसकी 14 बुर्जियों का गिरना, फ़ार्स के अग्नि मंदिर में 1000 वर्षों के बाद आग का बुझना, सावेह झील का सूखना और इसी तरह से ज्योतिषियों और सासानी राजा का अजीब सपना देखना। [30]