इमाम अली नक़ी अलैहिस सलाम

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इमाम अली नक़ी अलैहिस सलाम
शियों के दसवें इमाम
इमाम अली नक़ी (अ) का रौज़ा
नामअली बिन मुहम्मद (अ)
उपाधिअबुल हसन सालिस
जन्मदिन15 ज़िल हिज्जा, वर्ष 212 हिजरी
इमामत की अवधि34 वर्ष (220 हिजरी से 254 हिजरी तक)
शहादत3 रजब, वर्ष 254 हिजरी
दफ़्न स्थानसामर्रा, इराक़
जीवन स्थानमदीना, सामर्रा
उपनामहादी, नक़ी
पिताइमाम मुहम्मद तक़ी (अ)
मातासमाना मग़रिबिया
जीवन साथीहोदैस
संतानहसन, मुहम्म्द, हुसैन, जाफ़र
आयु42 वर्ष
शियों के इमाम
अमीरुल मोमिनीन (उपनाम) . इमाम हसन मुज्तबा . इमाम हुसैन (अ) . इमाम सज्जाद . इमाम बाक़िर . इमाम सादिक़ . इमाम काज़िम . इमाम रज़ा . इमाम जवाद . इमाम हादी . इमाम हसन अस्करी . इमाम महदी


अली बिन मुहम्मद जिन्हें इमाम हादी या इमाम अली अल-नक़ी (212-254 हिजरी) के नाम से जाना जाता है, शियों के दसवें इमाम और इमाम मुहम्मद तक़ी (अ) के पुत्र हैं। वह 220 से 254 हिजरी तक 34 वर्षों तक इमाम रहे। इमाम हादी का इमामत काल मुतवक्किल सहित कई अब्बासी ख़लीफाओं की खिलाफ़त के साथ मेल खाता था। उन्होंने अपनी इमामत के अधिकांश वर्ष अब्बासी शासकों के तहते नज़र सामर्रा में बिताए।

इमाम अली नक़ी (अ.स.) आस्था, व्याख्या, न्यायशास्त्र और नैतिकता के विषयों में हदीसें उल्लेख की गई है। इनमें से कुछ हदीसों में, तशबीह व तंज़ीह, जब्र व इख़्तियार जैसे धार्मिक विषयों पर चर्चा की गई है। ज़ियारत जामिया कबीरा और ज़ियारत ग़दीरिया भी उनसे वर्णित की गई है।

अब्बासी ख़लीफ़ा ने इमाम हादी (अ.स.) को प्रतिबंधित कर रखा था और उन्हें शियों के साथ संवाद करने से रोकते थे। इस कारण से, वह ज्यादातर वकील संगठन के माध्यम से शियों से जुड़े हुए थे, जिसमें इमाम के वकीलों का एक समूह शामिल था। उनके साथियों में अब्दुल अज़ीम हसनी, उस्मान बिन सईद, अय्यूब बिन नूह और हसन बिन राशिद थे।

सामर्रा में इमाम अली नक़ी (अ) का मक़बरा एक शिया तीर्थस्थल है। इमाम हादी और उनके बेटे इमाम हसन अस्करी (अ) के यहां दफ़्न होने के कारण इस दरगाह को असकरीयैन का रौज़ा कहा जाता है। 2004 और 2006 में आतंकवादी हमलों के दौरान अस्करीयैन का रौज़ा नष्ट हो गया था। इसे 2009 से 2014 तक ईरान के पवित्र स्थानों की देखभाल करने वाली संस्था के मुख्यालय द्वारा पुनर्निर्मित किया गया है।

नाम, वंश और उपनाम

मुख्य लेख: इमाम नक़ी (अ) के उपनामों और उपाधियों की सूची

अली बिन मुहम्मद, जिन्हें इमाम हादी और अली अल-नक़ी के नाम से जाना जाता है, शियों के दसवें इमाम हैं। उनके पिता इमाम मुहम्मद तक़ी (अ.स.) थे, जो शियों के नौवें इमाम थे, और उनकी माँ एक कनीज़ थीं[१] जिनका नाम समाना मग़रिबिया[२] या सौसन[३] था।

शियों के 10वें इमाम की सबसे प्रसिद्ध उपाधियों में हादी और नक़ी हैं। [४] कहा गया है कि उनका उपनाम हादी इसलिए रखा गया क्योंकि वह अपने समय में लोगों को अच्छाई की ओर ले जाने वाले सबसे अच्छे मार्गदर्शक थे।[५] उनके लिए मुर्तज़ा, आलिम, फ़कीह, अमीन, नासेह, शुद्ध (ख़ालिस) और अच्छा (तय्यब) जैसी अन्य उपाधियों का भी उल्लेख किया गया है।[६]

शेख़ सदूक़ (मृत्यु 381 हिजरी) ने अपने शिक्षकों के हवाले से उल्लेख किया है कि इमाम हादी और उनके बेटे इमाम हसन अस्करी (अ.स.) को अस्करी इस लिये कहा जाता था क्योंकि वे सामर्रा में अस्करी नामक क्षेत्र में रहते थे।[७] सुन्नी विद्वानों में से एक, इब्ने जौज़ी (मृत्यु 654 हिजरी) ने भी अपनी पुस्तक तज़केरतुल-ख़वास में इमाम हादी के साथ अस्करी के संबंध पर इसी कारण का उल्लेख किया है।[८]

उनकी कुन्नियत (उपनाम) अबुल हसन है[९] और हदीस के स्रोतों में, उन्हें अबुल हसन III[१०] कहा जाता है ताकि अबुल हसन प्रथम, यानी इमाम मूसा काज़िम (अ), और अबुल हसन द्वितीय, यानी इमाम अली रज़ा (अ) के साथ भ्रमित न हों।[११]

जीवनी

शेख़ कुलैनी,[१२] शेख़ तूसी,[१३] शेख़ मुफ़ीद [१४] और इब्ने शहर आशोब के अनुसार,[१५] इमाम हादी का जन्म 15 ज़िल हिज्जा 212 हिजरी को सरिया (मदीना के पास एक क्षेत्र) में हुआ था। हालाँकि, उनका जन्म भी उसी वर्ष के रजब के दूसरे या पांचवें दिन भी दर्ज किया गया है, [१६] और इसी तरह से रजब 214 हिजरी और जमादी अल सानी 215 हिजरी में[१७] दर्ज किया गया है।

चौथी शताब्दी के इतिहासकार अली बिन हुसैन मसऊदी के अनुसार, जिस वर्ष जब इमाम मुहम्मद तक़ी (अ) ने अपनी पत्नी उम्म अल-फ़ज़्ल के साथ हज किया था, इमाम हादी को मदीना लाया गया था जब वह युवा थे[१८] और वह 233 हिजरी तक मदीना में रहे। तीसरी चंद्र शताब्दी के इतिहासकार अहमद बिन अबी याक़ूब याक़ूबी ने लिखा है कि इस वर्ष, मुतवक्किल अब्बासी ने इमाम हादी को सामर्रा में तलब किया[१९] और अपने नियंत्रण वाले असकर नामक क्षेत्र में रखा, और वह अपने जीवन के अंत तक वहीं रहे।[२०]

अन्य शिया इमामों की तुलना में इमाम अली नक़ी, इमाम मुहम्मद तक़ी और इमाम हसन अस्करी के जीवन के बारे में अधिक जानकारी नहीं है। मुहम्मद हुसैन रजबी दवानी (जन्म 1339 शम्सी), एक इतिहासकार, इस मुद्दे का कारण इन इमामों के अल्प जीवन, उनके कारावास और उस समय की इतिहास की पुस्तकों के गैर-शिया लेखकों द्वारा लिखे जाने को मानते हैं।[२१]

जुनैदी के शिया होने की कहानी

इसबातुल वसीयत पुस्तक में उल्लिखित रिपोर्ट के अनुसार, इमाम मुहम्मद तक़ी (अ) की शहादत के बाद, अबू अब्दुल्लाह जुनैदी नाम के एक व्यक्ति को, जो कट्टर था और अहले-बैत (अ) के साथ अपनी दुश्मनी के लिए जाना जाता था, अब्बासी सरकार द्वारा नियुक्त किया गया ताकि वह इमाम हादी को शिक्षा दे और उन पर नज़र रखे। और शियों को उनके साथ संवाद करने से रोके; लेकिन कुछ समय बाद यह व्यक्ति शिया इमाम के ज्ञान और व्यक्तित्व से प्रभावित हो कर शिया हो जाता है।[२२]

औलाद

शिया स्रोतों में, इमाम अली नक़ी के लिए हसन, मुहम्मद, हुसैन और जाफ़र नामक चार बेटों का उल्लेख किया गया है।[२३] इसी तरह से उनके लिए एक बेटी का भी उल्लेख किया गया है, जिसका नाम शेख़ मुफ़ीद ने आयशा[२४] और इब्ने शहर आशोब[२५] ने इल्लीया (या अलियह) उल्लेख किया है। दलाई अल-इमामा किताब में उनके लिए आयशा और दलाला नाम की दो बेटियों का उल्लेख किया गया है।[२६] सुन्नी विद्वानों में से एक इब्न हजर हयतमी ने भी अल-सवाएक़ अल मोहरेक़ा में 10वें शिया इमाम की संतानों को चार बेटे और एक बेटी का ज़िक्र किया है।[२७]

शहादत और रौज़ा

शेख़ मुफ़ीद (मृत्यु: 413 हिजरी) की रिपोर्ट के अनुसार, इमाम हादी ने 41 वर्ष की आयु में सामर्रा में 20 साल और 9 महीने के निवास के बाद 254 हिजरी रजब के महीने में शहादत पाई। [२८] इसी तरह से दलायलुल-इमामा और कश्फ अल-ग़ुम्मा में उल्लेख हुआ है कि मोअतज़ अब्बासी (255-252 हिजरी) के शासनकाल के दौरान 10वें इमाम को ज़हर दिया गया था और इसी कारण से वह शहीद हुए।[२९] इब्ने शहर आशोब (मृत्यु: 588 हिजरी) का मानना ​​है कि वह मोअतमिद (शासनकाल: 278-256 हिजरी) के शासनकाल के अंत में शहीद हुए और उन्होने इब्ने बाबवैह के हवाले से लिखा है कि मोअतमिद ने उन्हें जहर दिया था।[३०]

कुछ स्रोतों ने उनकी शहादत के दिन को 3 रजब बताया है[३१] और अन्य ने 25 या 26 जमादी अल सानी बताया है।[३२] ईरान के इस्लामी गणराज्य के आधिकारिक कैलेंडर में, 3 रजब को उनकी शहादत के दिन के रूप में दर्ज किया गया है।

चौथी चंद्र शताब्दी के इतिहासकार मसऊदी के अनुसार, इमाम हसन अस्करी (अ) ने अपने पिता के अंतिम संस्कार में भाग लिया था। इमाम (अ) के शव को मूसा बिन बग़ा के घर के सामने वाली सड़क पर रखा गया था, और अब्बासी ख़लीफ़ा के अंतिम संस्कार में भाग लेने से पहले, इमाम अस्करी ने अपने पिता के पार्थिव शरीर पर प्रार्थना (नमाज़े जनाज़ा) की। मसऊदी ने इमाम हादी के अंतिम संस्कार में भारी भीड़ की सूचना दी है।[३३]

असकरीयैन का रौज़ा

मुख्य लेख: असकरीयैन का रौज़ा

इमाम हादी (अ.स.) को उसी घर में दफ़्न किया गया जिसमें वह सामर्रा में रहते थे।[३४] सामर्रा में इमाम हादी (अ.स.) और उनके बेटे इमाम हसन अस्करी (अ.स.) के दफ़्न स्थान को असकरीयैन के रौज़ा के रूप में जाना जाता है। इमाम हादी (अ.स.) को उनके घर में दफ़्न करने के बाद इमाम अस्करी (अ.स.) ने उनकी क़ब्र के लिए एक नौकर नियुक्त किया। वर्ष 328 हिजरी में, उनकी क़ब्र पर पहला गुंबद बनाया गया था।[३५] अस्करीयैन के रौज़े की विभिन्न अवधियों में मरम्मत, पूरा और पुनर्निर्मित किया गया है।[३६] हर साल, शिया इमाम हादी और इमाम हसन अस्करी के दर्शन के लिए विभिन्न क्षेत्रों से सामर्रा जाते हैं।

मुख्य लेख: असकरीयैन (अ) के रौज़े का विनाश

वर्ष 1384 और 1386 शम्सी में, आतंकवादी विस्फोटों में अस्करीयैन के रौज़े के कुछ हिस्से नष्ट हो गए थे।[३७] महामहिमों के तीर्थस्थलों के पुनर्निर्माण मुख्यालय ने 1394 शम्सी में उसके पुनर्निर्माण का काम पूरा किया।[३८] तीर्थस्थल की ज़रीह का निर्माण आयतुल्लाह सीस्तानी के सहयोग से पूरा किया गया है।[३९]

इमामत काल

इमाम अली नक़ी (अ):

लोग इस दुनिया में संपत्ति के साथ सौदा करते हैं और आख़िरत में अपने कार्यों के साथ।

(अत्तारदी, मुसनद अल-इमाम अल-हादी, 1410 हिजरी, पृष्ठ 304।)

इमाम अली बिन मुहम्मद 220 हिजरी में आठ साल की उम्र में इमामत पर पहुंचे।[४०] सूत्रों के अनुसार, इमामत की शुरुआत में इमाम हादी (अ.स.) की कम उम्र के कारण शियों के बीच संदेह पैदा नहीं हुआ; क्योंकि उनके पिता इमाम मुहम्मद तक़ी (अ) की इमामत भी कम उम्र में ही शुरू हो गई थी।[४१] शेख़ मुफ़ीद के अनुसार, नौवें इमाम के बाद, शियों ने, कुछ लोगों को छोड़कर, इमाम हादी (अ.स.) की इमामत स्वीकार कर ली।[४२] उन्होने मूसा मुबरक़ा को अपना इमाम माना। हालाँकि, कुछ समय बाद, वे अपने विश्वास से वापस लौट आये और सामान्य शिया में शामिल हो गये।[४३]

साद बिन अब्दुल्लाह अशअरी ने उन लोगों के इमाम हादी (अ.स.) के पास वापस लौट आने को उनके प्रति मूसा मुबारका की नापसंदगी का परिणाम माना है।[४४] शेख़ मुफ़ीद[४५] और इब्न शहर आशोब,[४६] ने इमाम हादी (अ.स.) की इमामत पर शियों की सहमति और उनके अलावा किसी अन्य द्वारा इमामत का दावा न करने को उनकी इमामत का एक मज़बूत सबूत माना है।[४७] मुहम्मद बिन याक़ूब कुलैनी और शेख़ मुफीद ने अपने कार्यों में उनकी इमामत के प्रमाण से संबंधित ग्रंथों को सूचीबद्ध किया है।[४८]

इब्न शहर आशोब के अनुसार, शिया पिछले इमामों के कथनों के माध्यम से इमाम अली बिन मुहम्मद की इमामत से आगाह हुए; ऐसी हदीसों के ज़रिये से जो इस्माइल बिन मेहरान और अबू जाफ़र अशअरी जैसे रावियों द्वारा उल्लेख की गई हैं।[४९]

समकालीन ख़लीफ़ा

इमाम हादी (अ.स.) 33 वर्षों तक इमामत के प्रभारी रहे (220-254 हिजरी)[५०] इस अवधि के दौरान, कई अब्बासी ख़लीफ़ा सत्ता में आए। उनकी इमामत की शुरुआत मोअतसिम की खिलाफ़त के साथ हुई और इसका अंत मोअतज़ की खिलाफ़त के साथ हुआ। [५१] लेकिन, इब्न शहर आशोब ने उनकी इमामत के अंत का समय मोअतमिद के ज़माने में माना है।[५२]

इमाम अली नक़ी (अ):

भ्रष्ट स्वभाव में बुद्धि (हिकमत) काम नहीं करती।

(अत्तारदी, मुसनद अल-इमाम अल-हादी, 1410 हिजरी, पृष्ठ 304।)

शियों के 10वें इमाम ने अब्बासी ख़लीफा मोअतसिम की ख़िलाफ़त के दौरान अपनी इमामत के सात साल बिताए।[५३] तारीख़े सियासी ग़ैबत इमामे दवाज़दहुम (अ) पुस्तक के लेखक जासिम हुसैन के अनुसार, मोतसिम इमाम अली नक़ी के समय में इमाम मुहम्मद तक़ी के समय की तुलना में शियों पर कम सख्त था। और वह अलवियों के प्रति अधिक सहिष्णु हो गया था, और उसके दृष्टिकोण में यह बदलाव आर्थिक स्थिति में सुधार और अलवियों की बग़ावत में कमी के कारण हुआ था।[५४] इसके अलावा, 10वें इमाम की इमामत के समय से लगभग पांच साल, वासिक़ की खिलाफ़त के साथ, चौदह साल मुतवक्किल की खिलाफ़त के साथ, छह महीने मुस्तनसर की खिलाफ़त के साथ, दो साल नौ महीने मुस्तईन की खिलाफ़त के साथ, और आठ साल से अधिक समय तक मोअतज़ की ख़िलाफ़त के साथ रहे।[५५]

सामर्रा के लिये समन

233 हिजरी में, मुतवक्किल अब्बासी ने इमाम हादी (अ.स.) को मदीना से सामर्रा आने के लिए मजबूर किया।[५६] शेख़ मुफ़ीद ने मुतावक्किल की इस कार्रवाई को 243 हिजरी में उल्लेख किया है;[५७] लेकिन इस्लामी इतिहास के शोधकर्ता रसूल जाफ़रियान के अनुसार, यह तारीख़ सही नहीं है।[५८] कहा गया है कि इस कार्रवाई का कारण मदीना में अब्बासी सरकार के एजेंट अब्दुल्लाह बिन मुहम्मद[५९] और ख़लीफा द्वारा मक्का और मदीना में नियुक्त, मंडली के इमाम बरिहा अब्बासी की इमाम (अ) का ख़िलाफ़ चुग़ली है।[६०] और इसी तरह से शियों के 10वें इमाम के लिए लोगों की चाहत की भी खबरें बयान की गईं हैं।[६१]

मसऊदी की रिपोर्ट के अनुसार, बरिहा ने मुतावक्किल को लिखे एक पत्र में उनसे कहा: "यदि आप मक्का और मदीना चाहते हैं, तो अली बिन मुहम्मद को वहां से निकाल दें; क्योंकि वह लोगों को खुद को आमंत्रित करते हैं और उन्होने अपने चारों ओर एक बड़ी संख्या को इकट्ठा कर लिया है।"[६२] तदनुसार, मुतवक्किल द्वारा यहया बिन हरसमा को इमाम हादी को सामर्रा में स्थानांतरित करने के लिए नियुक्त किया गया।[६३] इमाम हादी (अ.स.) ने मुतावक्किल को एक पत्र लिखा और उसमें उन्होंने अपने खिलाफ़ कही गईं बातों को ख़ारिज कर दिया।[६४] लेकिन जवाब में मुतावक्किल ने सम्मानपूर्वक उन्हें सामर्रा की ओर यात्रा करने के लिए कहा।[६५] मुतावक्किल के पत्र का पाठ शेख़ मुफ़ीद और शेख़ कुलैनी की किताबों में उद्धृत किया गया है।[६६]

रसूल जाफ़रियान के अनुसार, मुतवक्किल ने इमाम हादी (अ.स.) को सामर्रा में स्थानांतरित करने की योजना इस तरह बनाई थी कि लोगों की संवेदनाएँ न भड़कें और इमाम की जबरन यात्रा का कोई ख़तरनाक परिणाम न निकले;[६७] लेकिन सुन्नी विद्वानों में से एक सिब्ते बिन जौज़ी ने यहया बिन हरसमा की एक रिपोर्ट उल्लेख की है, जिसके अनुसार मदीना के लोग बहुत परेशान और उत्तेजित हो गये थे, और उनका संकट इस स्तर तक पहुंच गया कि वे विलाप करने और चिल्लाने लगे, जो मदीना में उससे पहले कभी नहीं देखा गया।[६८] मदीना छोड़ने के बाद इमाम हादी (अ.स.) काज़मैन में दाखिल हुए और वहां के लोगों ने उनका स्वागत किया गया।[६९] काज़मैन में, वह ख़ुजिमा बिन हाज़िम के घर गए और वहां से उन्हें सामर्रा की ओर भेज दिया गया।[७०]

शेख़ मुफ़ीद के अनुसार, मुतवक्किल स्पष्ट रूप से इमाम (अ) सम्मान करता था; लेकिन वह उनके खिलाफ़ साजिश रचता रहता था।[७१] तबरसी की रिपोर्ट के अनुसार, मुतावक्किल का उद्देश्य लोगों की नजर में इमाम (अ) की महानता और इज़्ज़त को कम करना था।[७२] शेख़ मोफ़ीद के अनुसार, जब पहले दिन इमाम ने सामरा में प्रवेश किया तो उन्हे मुतावक्किल के आदेश से एक दिन उन्होंने उन्हे "ख़ाने सआलीक़" (वह स्थान जहां भिखारी और ग़रीब इकट्ठा होते हैं) में रखा और अगले दिन वे उन्हे उस घर में ले गए जो उसके निवास के लिए था।[७३] सालेह बिन सईद के अनुसार, यह कार्रवाई इमाम हादी (अ.स.) को अपमानित करने के इरादे से की गई थी।[७४]

इमाम के प्रवास के दौरान अब्बासी शासकों उनसे कठोर व्यवहार किया। उदाहरण के लिए, उनके रहने के कमरे में एक क़ब्र खोद कर रखी थी। इसके अलावा, वह उन्हे रात में और बिना किसी सूचना के ख़लीफा के महल में पेश करते थे और वह शियों को उनके साथ संवाद करने से रोकते थे।[७५] कुछ लेखकों ने इमाम हादी के साथ मुतवक्किल के शत्रुतापूर्ण संबंधों के कारणों को इस प्रकार लिखा है:

  • धार्मिक दृष्टिकोण से, मुतवक्किल का झुकाव अहले-हदीस की ओर था, जो मोअतज़ेला और शिया के खिलाफ़ थे, और अहले-हदीस उसे शियों के खिलाफ़ भड़काया करते थे।
  • मुतवक्किल अपनी सामाजिक स्थिति को लेकर चिंतित था और शिया इमामों के साथ लोगों के संबंध से डरता था। इसलिए, वह इस संबंध को ख़त्म कर देने की कोशिश करता था। [७६] इसी संबंध में, मुतवक्किल ने इमाम हुसैन (अ.स.) के रौज़े को नष्ट कर दिया और इमाम हुसैन के तीर्थयात्रियों के साथ सख्त व्यवहार किया करता था।[७७]

मुतवक्किल के बाद उसका बेटा मुंतसिर ख़िलाफ़त की गद्दी पर आया। इस अवधि के दौरान, इमाम हादी (अ.स.) सहित अलवी परिवार पर से सरकार का दबाव कम हो गया था।[७८]

ग़ालियों से मुक़ाबेला

ग़ाली इमाम हादी की इमामत के दौरान सक्रिय थे। वह खुद को इमाम हादी के साथियों और क़रीबियों के रूप में पेश करते थे और इमाम हादी सहित शिया इमामों को ओर कुछ बातों की निस्बत देते थे, जिन्हे अहमद बिन मुहम्मद बिन ईसा अशअरी के इमाम हादी को लिखे पत्र के अनुसार, सुनकर दिलों में घृणा पैदा हो जाती थी। दूसरी ओर, चूँकि इसका श्रेय इमामों को दिया गया था, इसलिए उनमें उन्हें नकारने या अस्वीकार करने का साहस नहीं होता था। ग़ाली दायित्वों (वाजिबात) एवं निषेधों (मुहर्रेमात) की व्याख्या (तावील) करते थे। उदाहरण के लिए, आयत وَأَقِيمُواْ الصَّلاَةَ وَآتُواْ الزَّكَاةَ वाक़िमवा अल-सलता वा अतुवा अल-ज़कात[७९] में नमाज़ और ज़कात का अर्थ नमाज़ पढ़ने और माल देने के बजाय विशेष लोगों को मानते थे। इमाम हादी ने अहमद बिन मुहम्मद के जवाब में लिखा कि ऐसी व्याख्याएँ हमारे धर्म का हिस्सा नहीं हैं। उनसे बचें।[८०] फ़तह बिन यज़ीद जुरजानी का मानना ​​था कि खाना-पीना इमामत के साथ संगत नहीं है और इमामों को खाने-पीने की ज़रूरत नहीं है। उनके जवाब में, इमाम हादी ने पैग़म्बरों के खाने-पीने और उनके बाजार में चलने फिरने का ज़िक्र किया और कहा: "हर शरीर इसी तरह होता है, भगवान को छोड़कर, जिसने शरीर को आकार दिया है।"[८१]

सहल बिन ज़ियाद के पत्र के जवाब में शियों के 10वें इमाम ने अली बिन हसक़ा के ग़ुलू के बारे में जानकारी दी थी, उन्होंने अली बिन हसका की अहले-बैत से संबद्धता को ख़ारिज कर दिया, उसके शब्दों को अमान्य माना और शियों को उससे दूर रहने के लिए कहा और उसके क़त्ल का आदेश भी जारी किया। इस पत्र के अनुसार, अली बिन हस्का इमाम हादी की दिव्यता (ईश्वर होने) में विश्वास करता था और उनकी ओर से खुद को बाब और पैगंबर के रूप में पेश करता था।[८२] इमाम हादी ने ग़ालियों जैसे, नुसैरिया संप्रदाय के संस्थापक मुहम्मद बिन नुसैर निमिरी,[८३] हसन बिन मुहम्मद जिसे इब्न बाबा के नाम से जाना जाता है और फ़ारिस बिन हातिम क़ज़विनी को भी शाप दिया था।[८४]

खुद को इमाम हादी (अ.स.) के साथी के रूप में पेश करने वाले अन्य लोगों में अहमद बिन मुहम्मद सयारी भी था,[८५] जिसे अधिकांश विद्वान ग़ाली और धर्म भ्रष्ट मानते थे।[८६] उसकी किताब अल क़राआत उन कथनों के मुख्य स्रोतों में से है जिसे कुछ लोगों ने क़ुरआन को विकृत करने (तहरीफ़) के लिए उपयोग किया है।[८७] इमाम हादी (अ.स.) ने इब्ने शोअबा हर्रानी द्वारा वर्णित एक ग्रंथ में क़ुरआन के अल्लाह की ओर से होने और उसके वहयी होने पर ज़ोर दिया और इसे हदीसों का मूल्यांकन करने और सही को ग़लत से अलग करने के लिए एक सटीक मानदंड के रूप में पेश किया।।[८८] इसके अलावा, इमाम हादी ने उन शियों का बचाव किया जिन पर ग़लत तौर से ग़ुलू का आरोप लगाया गया था। उदाहरण के लिए, जब क़ुम वालों ने मुहम्मद बिन उरमा को ग़ुलू के आरोप में क़ुम से निष्कासित कर दिया, तो उन्होंने क़ुम के लोगों को एक पत्र लिखा और उन्हें ग़ुलू के आरोप से बरी किया।[८९]

शियों के साथ संचार

इस तथ्य के बावजूद कि इमाम हादी के समय में, सत्तारूढ़ अब्बासी ख़लीफ़ाओं द्वारा गंभीर उत्पीड़न किया जा रहा था, इमाम हादी (अ.स.) और इराक़, यमन, मिस्र और अन्य क्षेत्रों के शियों के बीच एक संबंध स्थापित था। [९०] वह वकालत संगठन और पत्र लेखन के माध्यम से शियों के साथ संपर्क में थे। रसूल जाफ़रियान के अनुसार, इमाम हादी (अ.स.) के समय में, क़ुम ईरान के शियों का सबसे महत्वपूर्ण सभा केंद्र था, और इस शहर के शियों और इमामों (अ.स.) के बीच मजबूत संबंध थे। [९१] मुहम्मद बिन दाऊद क़ुम्मी और मुहम्मद तलहा क़ुम और आसपास के शहरों से इमाम हादी तक लोगों के खुम्स, उपहार और प्रश्न पहुचाया करते थे। [९२] जाफेरियान के अनुसार, इमाम के वकील खुम्स इकट्ठा करने और इसे इमाम को भेजने के अलावा, धार्मिक और न्यायिक समस्याओं को हल करने के साथ-साथ अपने क्षेत्र में अगले इमाम की इमामत स्थापित करने में भी भूमिका निभाते थे। [९३] साज़मान ए वकालत नामक पुस्तक के लेखक मोहम्मद रज़ा जब्बारी ने अली बिन जाफ़र हमानी, अबू अली बिन राशिद और हसन बिन अब्द रब्बेह का उल्लेख इमाम हादी के वकील के रूप में किया है। [९४]

क़ुरआन के ख़ल्क़ होने का मसला

शियों में से एक को लिखे पत्र में, इमाम हादी (अ.स.) ने उनसे क़ुरआन के ख़ल्क़ होने के मुद्दे पर टिप्पणी न करने के लिये कहा। और क़ुरआन के हादिस या क़दीम होने के सिद्धांत में से कोई पक्ष न लेने के लिए कहा। इस पत्र में उन्होंने क़ुरआन के ख़ल्क़ होने के मुद्दे को फ़ितना कहा और इस चर्चा में शामिल होने को विनाश माना है। उन्होंने इस तथ्य पर भी ज़ोर दिया कि क़ुरआन ईश्वर का शब्द है और इस पर चर्चा करने को एक बिदअत के रूप में माना, जिसमें प्रश्नकर्ता और उत्तर देने वाला दोनों इसके पाप में भागीदार हैं।[९५] उस अवधि में, क़ुरआन के हादिस व क़दीम होने के मुद्दे पर बहस के कारण सुन्नियों के बीच लोग संप्रदायों और समूहों में बट गये। मामून और मोअतसिम ने क़ुरआन के ख़ल्क़ होने के सिद्धांत का पक्ष लिया और विरोधियों पर दबाव डाला; इस प्रकार कि इसे कठिन परिश्रम का काल कहा जाता है; हालाँकि, मुतावक्किल क़ुरआन की प्राचीनता (क़दीम होने) का समर्थन करता था और वह शियों सहित विरोधियों को विधर्मी घोषित किया करता था।[९६]

हदीसें

इमाम हादी की हदीसों को शिया हदीस के स्रोतों जैसे, कुतुबे अरबआ, तोहफ़ अल-उक़ूल, मिस्बाह अल-मुतहज्जिद, अल-इहतेजाज और तफ़सीर अयाशी में वर्णित किया गया है। उनसे सुनाई गई हदीसें उनसे पहले के इमामों से कमतर हैं। अतारुदी इसका कारण अब्बासी सरकार की देखरेख में सामर्रा में जबरन उनके रहने को मानते हैं, जिससे उन्हें शास्त्रों और ज्ञान को फैलाने का अवसर नहीं मिला।[९७] इमाम हादी द्वारा उल्लेखित हदीसों में, उनके अलग-अलग नामों का उल्लेख किया गया है जैसे अबी अल-हसन अल-हादी, अबी अल-हसन अल सालिस, अबी अल-हसन अल-अख़ीर। अबी अल-हसन अल-अस्करी, अल-फ़कीह अल-अस्करी, अल-रजुल अल-तैयब, अल-अख़ीर, अल-सादिक़ बिन अल-सादिक़ वल-फ़कीह। उल्लेख किया गया है कि इन अलग-अलग नामों का उपयोग करने का एक कारण तक़य्या था।[९८]

इमाम हादी से एकेश्वरवाद, इमामत, तीर्थयात्रा, व्याख्या और न्यायशास्त्र के विभिन्न अध्यायों जैसे पवित्रता, नमाज़, उपवास, ख़ुम्स, ज़कात, विवाह और शिष्टाचार के क्षेत्र में हदीसें उल्लेख की गईं हैं। एकेश्वरवाद और तंज़ीह के बारे में इमाम हादी (अ.स.) से 21 से अधिक हदीसें सुनाई गई हैं।[९९]

जब्र व इख़्तेयार के विषय पर इमाम हादी (अ.स.) ने एक ग्रंथ अपने पीछे छोड़ा है। इस ग्रंथ में, हदीस ला जहबा वला तफ़वीज़ बलिल अम्रो बैनल अमरैन "«لا جبر و لا تفویض بل امر بین الاَمرین»،" को क़ुरआन के आधार पर समझाया गया है, और जब्र व तफ़वीज़ के मसले में शिया धर्म के नज़रिये से प्रस्तुत किया गया है।[१००] इमाम हादी (अ) ने दलीलों के रूप में जो हदीसें सुनाई हैं, उनमें से अधिकांश जब्र और तफ़वीज़ के बारे में हैं।[१०१]

तीर्थ

मुख्य लेख: ज़ियारत जामेआ कबीरा

जामिया कबीरा ज़ियारत[१०२] और ज़ियारत ग़दिरिया इमाम हादी (अ) से वर्णित है। [१०३] जामेया कबीरा तीर्थयात्रा को इमाम अध्ययन का एक काल माना जाता है।[१०४] ग़दिरिया तीर्थयात्रा का केन्द्र तवल्ला और तबर्रा और इसकी सामग्री इमाम अली (अ.स.) के गुणों की अभिव्यक्ति है।[१०५]

मुतवक्किल की सभा में इमाम हादी की कविता

चौथी चंद्र शताब्दी के इतिहासकार मसऊदी के अनुसार, मुतवक्किल को सूचना दी गई कि इमाम (अ) घर में युद्ध उपकरण और शियों के उनको लिखे गए पत्र मौजूद हैं। इस कारण से, मुतवक्किल के आदेश पर, कई अधिकारियों ने इमाम हादी के घर पर अचानक हमला कर दिया।[१०६] जब इमाम को मुतवक्किल की सभा में ले जाया गया, तो ख़लीफा के हाथ में शराब का जाम था और उसने उसे इमाम को पेश किया।[१०७] इमाम ने यह कहते हुए कि मेरा मांस और खून शराब से दूषित नहीं है, मुतवक्किल के अनुरोध को अस्वीकार कर दिया।[१०८] फिर मुतवक्किल ने इमाम से एक ऐसी कविता सुनाने के लिए कहा जो उसे आनंदित कर दे।[१०९] पहले तो, इमाम ने उसके अनुरोध को स्वीकार नहीं किया; लेकिन उसके आग्रह पर उन्होंने ये पक्तियाँ पढ़ीं:

:باتوا علی قُلَلِ الأجبال تحرسهم غُلْبُ الرجال فما أغنتهمُ القُللُ
واستنزلوا بعد عزّ عن معاقلهم فأودعوا حُفَراً، یا بئس ما نزلوا
ناداهُم صارخ من بعد ما قبروا أین الأسرة والتیجان والحلل؟
أین الوجوه التی کانت منعمة من دونها تضرب الأستار والکللُ
فأفصح القبر عنهم حین ساء لهم تلک الوجوه علیها الدود یقتتل (تنتقل)
قد طالما أکلوا دهراً وما شربوا فأصبحوا بعد طول الأکل قد أُکلوا
وطالما عمروا دوراً لتحصنهم ففارقوا الدور والأهلین وانتقلوا
وطالما کنزوا الأموال وادخروا فخلفوها علی الأعداء وارتحلوا
أضحت مَنازِلُهم قفْراً مُعَطلة وساکنوها إلی الأجداث قد رحلوا

[११०] अनुवाद: वे पहाड़ों की चोटी पर रहते थे और उनकी सुरक्षा बलवान पुरुषों द्वारा की जाती थी; लेकिन चोटियों ने उनके लिए कुछ नहीं किया। सम्मान के कारण, उन्हें उनके आश्रयों से बाहर निकाला गया और गड्ढों में रखा गया, और यह कितना बुरा नीचे आना था। जब वे क़ब्र में थे, तब किसी ने उन्हें पुकारा: "सिंहासन, मुकुट और आभूषण कहाँ गए? उन चेहरों का क्या हुआ जो आशीर्वाद के आदी थे और उसके सामने पर्दा लटका हुआ होता था?” और क़ब्र ने आवाज़ बुलंद की और बोली: “इन चेहरों पर कीड़े रेंग रहे हैं। लंबे समय तक उन्होने खाया और कपड़े पहने और लंबे भोजन के बाद उन्हे खाया गया। उन्होंने लंबे समय तक घर बनाए जब तक कि वे वहां सुरक्षित नहीं हो गए और वे अपने घरों और लोगों से दूर चले गए। बहुत समय तक उन्होंने धन संचय किया और उसे संग्रहित करके शत्रुओं के लिए छोड़ दिया। उनके घर खाली रह गए और उनके निवासी उनकी क़ब्रों की ओर कूच कर गए।"[१११]

मसऊदी ने अनुसार, है इमाम की कविता ने मुतवक्किल और उसके आसपास के लोगों को प्रभावित किया; ऐसे में मुतवक्किल का चेहरा रोने से गीला हो गया और उसने शराब की रैक हटाने और इमाम को सम्मान के साथ उनके घर लौटाने का आदेश दिया।[११२]

साथी और कथावाचक

मुख्य लेख: इमाम हादी (अ) के साथियों की सूची

सय्यद मोहम्मद काज़िम कज़विनी (मृत्यु: 1415 हिजरी) ने अपनी पुस्तक इमाम अल-हादी मिनल-महद इलल-लहद में 346 लोगों को इमाम हादी के साथियों के रूप में पेश किया है। [११३] रसूल जाफ़रियान के अनुसार, इमाम हादी (अ) के ज्ञात कथावाचकों की संख्या लगभग 190 हैं, उनमें से लगभग 180 से हदीसें उल्लेख हुई हैं।[११४] शेख़ तूसी की रेजाल की किताब के अनुसार, इमाम से हदीस सुनाने वाले लोगों की संख्या 185 से अधिक है। [११५] मुसनद अल-इमाम अल-हादी में में अतारुदी ने इमाम हादी के कथावाचकों के रूप में 179 लोगों का उल्लेख किया है और कहा है उनमें सिक़ह (विश्वसनिय), ज़ईफ़ (अविश्वनिय), हसन, मतरूक, मजहूल लोग मौजूद हैं।[११६] अत्तारदी के अनुसार, उन्होंने कुछ कथावाचकों का उल्लेख किया है जो शेख़ तूसी के रेजाल में नहीं हैं, और कुछ कथावाचक जिन्हें शेख तूसी ने अपने रेजाल में शामिल किया है, उनका अत्तारदी के मसनद में ज़िक्र नहीं हुआ है। [११७]

अब्दुल अज़ीम हसनी, उस्मान बिन सईद,[११८] अय्यूब बिन नूह,[११९] हसन बिन राशिद और हसन बिन अली नासिर[१२०] उनके साथियों में थे। इब्न शहर आशोब ने इमाम के वकीलों में से एक के रूप में जाफ़र बिन सुहैल अल-सैक़ल का उल्लेख किया है और मुहम्मद बिन उस्मान को इमाम हादी के प्रमुख (बाब) के रूप में पेश किया है।[१२१]

रसूल जाफ़रियान ने यह साबित करने के लिए कि इमाम हादी (अ.स.) के कुछ साथी ईरानी थे, उनके उपनामों का उल्लेख किया है। उन्होने इमाम के असहाब में इन लोगों जैसे: बिश्र बिन बुशार नैशापूरी, फ़तह बिन यज़ीद जुरजानी, हुसैन बिन सईद अहवाज़ी, हमदान बिन इसहाक़ ख़ोरासानी, अली बिन इब्राहिम तालेक़ानी, मुहम्मद बिन अली काशानी,[१२२] इब्राहिम बिन शैबा इस्फ़हानी, और अबू मक़ातिल दैलमी[१२३] के रहने का स्थान ईरान बताया हैं। [१२४] जाफ़रियान ने हमदान में इमाम के वकील को लिखे गये इमाम के पत्र का जिक्र करते हुए जिसमें इमाम ने लिखा है, "मैंने हमदान में अपने दोस्तों से आपकी सिफारिश की है",[१२५] कहा है कि इमाम के कुछ साथी हमदान में और सबूतों के आधार पर, इमाम के कुछ साथी कज़वीन में रहते थे।[१२६]

ग्रंथ सूची

इमाम हादी (अ.स.) के बारे में अरबी और फ़ारसी भाषाओं में किताबें लिखी गई हैं। इमाम हादी के ग्रंथसूची लेख में, इस बारे में फ़ारसी और अरबी भाषाओं में तीस पुस्तकें पेश की गई हैं।[१२७] इनमें से कुछ कार्य यह हैं:

  • मुसनद अल-इमाम अल-हादी, अज़ीज़ुल्लाह अत्तारदी द्वारा लिखित (मृत्यु: 1393 शम्सी): इस पुस्तक में, इमाम हादी की लगभग 350 हदीसें एकत्रित की गई हैं;
  • हयात इमाम अली अल-हादी, बाक़िर शरीफ़ क़र्शी द्वारा लिखित (मृत्यु: 1433 हिजरी): यह पुस्तक इमाम हादी के जीवन से संबंधित है;
  • अल-नूर अल-हादी इला असहाब अल इमाम अल-हादी, अब्दुल हुसैन शबिस्त्री द्वारा लिखित (मृत्यु 2015): इस पुस्तक में, इमाम हादी के साथियों में से 193 लोगों का परिचय दिया गया है;
  • मौसूआ इमाम अल-हादी, चार खंडों और 2019 पृष्ठों में।

इसके अलावा, पुस्तक "शिकोह ए सामर्रा" में इमाम हादी और इमाम हसन अस्करी (अ) के बारे में लेखों का एक संग्रह है, जिसे इमाम सादिक़ (अ) विश्वविद्यालय द्वारा 1390 शम्सी में 508 पृष्ठों पर प्रकाशित किया गया था।[१२८]

फ़ुटनोट

  1. मोफिद, अल-अरशाद, 1413 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 297; मसऊदी, इसबातुल वसीयत, 1426 हिजरी, पृष्ठ 228।
  2. मोफिद, अल-अरशाद, 1413 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 297।
  3. नौबख्ती, फ़ेर्क अल-शिया, दार अल-अज़वा, पृष्ठ 93।
  4. इब्न शहर आशोब, मनाकिब अल अबी तालिब, 1379 हिजरी, खंड 4, पृष्ठ 401।
  5. क़ुरैशी, हयात अल-इमाम अली अल-हादी, 1429 हिजरी, पृष्ठ 21।
  6. इब्ने शहर आशोब, मनाकिब अल अबी तालिब, 1421 हिजरी, खंड 4, पृष्ठ 401।
  7. सदूक़, एलल अल-शरिया, 1385 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 241।
  8. इब्ने जौज़ी, तज़किरा अल-ख्वास, 1426 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 492।
  9. इब्न शहर आशोब, मनाकिब अल अबी तालिब, 1379 हिजरी, खंड 4, पृष्ठ 401; तूसी, तहजीब अल-अहकाम, 1418 हिजरी, खंड 6, पृष्ठ 104।
  10. उदाहरण के लिए, देखें: कुलैनी, अल-काफ़ी, 1407 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 97, 341।
  11. क़ुरैशी, हयात अल-इमाम अली अल-हादी, 1429 हिजरी, पृष्ठ 21।
  12. कुलैनी, अल-काफ़ी, 1407 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 497।
  13. तूसी, तहजीब अल-अहकाम, 1418 हिजरी, खंड 6, पृष्ठ 104।
  14. मोफिद, अल-अरशाद, 1413 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 297।
  15. इब्न शहर आशोब, मनाकिब अल अबी तालिब, 1379 हिजरी, खंड 4, पृष्ठ 401।
  16. मसऊदी, इसबातुल वसीयत, 1426 हिजरी, पृष्ठ 228।
  17. कुलैनी, अल-काफ़ी, 1407 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 497।
  18. मसऊदी, इसबातुल वसीयत, 1426 हिजरी, पृष्ठ 228।
  19. याकूबी, तारिख़ याकूबी, बेरूत, खंड 2, पृष्ठ 484।
  20. देखें: इब्न जौज़ी, तज़किरा अल-ख्वास, 1426 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 492।
  21. इमाम हादी (अ.स.) के बारे में सीमित ऐतिहासिक जानकारी के कारण, विशिष्ट विश्लेषणात्मक वेबसाइट।
  22. मसऊदी, इसबातुल वसीयत, 1426 हिजरी, पृ. 231-230।
  23. मोफिद, अल-अरशाद, 1413 हिजरी, खंड 2, पृ. 311-312; इब्न शहर आशोब, मनाकिब अल अबी तालिब, 1379 हिजरी, खंड 4, पृष्ठ 402।
  24. मोफिद, अल-अरशाद, 1413 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 312।
  25. इब्न शहर आशोब, मनाकिब अल अबी तालिब, 1379 हिजरी, खंड 4, पृष्ठ 402।
  26. तबरी, दलाई अल-इमामा, 1413 हिजरी, पृष्ठ 412।
  27. इब्न हजर हयतमी, अल-सवाईक़ अल-मुहरेक़ा, काहिरा स्कूल, पृष्ठ 207।
  28. मोफिद, अल-अरशाद, 1413 हिजरी, खंड 2, पृ. 311 और 312; कुलैनी, अल-काफ़ी, 1407 हिजरी, खंड 1, 497-498; तूसी, तहजीब अल-अहकाम, 1418 हिजरी, खंड 6, पृष्ठ 104।
  29. तबरी, दलाई अल-इमामा, 1413 हिजरी, पृष्ठ 409; अर्बेली, कशफ़ अल-ग़ुम्मह, 2013, खंड 2, पृष्ठ 375।
  30. इब्न शहर आशोब, मनाकिब अल अबी तालिब, 1379 हिजरी, खंड 4, पृष्ठ 401।
  31. नौबख्ती, फ़ेर्क़ अल-शिया, दार अल-अज़वा, पृष्ठ 92; इब्न शहर आशोब, मनाकिब अल अबी तालिब, 1379 हिजरी, खंड 4, पृष्ठ 401।
  32. अर्बेली, कश्फ़ अल-ग़ुम्मह, 2013, खंड 2, पृष्ठ 375
  33. मसऊदी, इसबातुल वसीयत, 1426 हिजरी, पृष्ठ 243।
  34. तूसी, तहज़ीब अल-अहकाम, 1418 हिजरी, खंड 6, पृष्ठ 104।
  35. महल्लाती, मआसिर अल-कुबरा, 1384, खंड 1, पृष्ठ 318।
  36. महल्लाती, मा'असर अल-कुबरा, 2004, खंड 1, पृ. 318-393 देखें।
  37. ख़ामेयार, अरब देशों में इस्लामी तीर्थस्थलों का विनाश, 2014, पृष्ठ 29 और 30।
  38. इल्ना समाचार एजेंसी के अनुसार, इमाम अस्करीन रौज़ा के गुंबद का पुनर्निर्माण पूरा हो गया है।
  39. "इमाम अस्करीन (अ), फ़ार्स न्यूज़ एजेंसी के तीर्थ के निर्माण परियोजना की नवीनतम स्थिति।
  40. क़ुम्मी, मुंतहा अल-आमाल, 1379, खंड 3, पृष्ठ 1878
  41. हुसैन, बारहवें इमाम की अनुपस्थिति का राजनीतिक इतिहास, 2005, पृष्ठ 81।
  42. मोफिद, अल-अरशाद, 1413 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 300।
  43. नोबख्ती, फ़ेर्क़ अल-शिया, दार अल-अज़वा, पीपी. 91-92.
  44. अशअरी क़ोमी, निबंध और अंतर, 1361, पृष्ठ 99।
  45. मोफिद, अल-अरशाद, 1413 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 300।
  46. इब्न शहर आशोब, मनाकिब अल अबी तालिब, 1379 हिजरी, खंड 4, पृष्ठ 402।
  47. अत्तारदी, मुसनद अल-इमाम अल-हादी, 1410 हिजरी, पृष्ठ 20।
  48. कुलैनी, अल-काफ़ी, 1407 हिजरी, खंड 1, पृ. 323-325; मोफिद, अल-अरशाद, 1413 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 298।
  49. इब्न शहर आशोब, मनाकिब अल अबी तालिब, 1379 एएच, खंड 4, पृष्ठ 402।
  50. मोफिद, अल-अरशाद, 1413 एएच, खंड 2, पृष्ठ 297; तबरसी, आलाम अलवरा, 1417 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 109।
  51. तबरसी, आलाम अलवरा, 1417 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 109।
  52. इब्न शहर आशोब, मनाकिब अल अबी तालिब, 1379 एएच, खंड 4, पृष्ठ 401।
  53. पिशवाई, सीरए पेशवायान, 1374, पृष्ठ 595।
  54. जसीम, बारहवें इमाम की अनुपस्थिति का राजनीतिक इतिहास, 1376, पृष्ठ 81।
  55. तबरसी, आलाम अलवरा, 1417 हिजरी, खंड 2, पृ. 109 और 110।
  56. याकूबी, तारिख़ याकूबी, बेरूत, खंड 2, पृष्ठ 484।
  57. शेख मोफिद, अल-अरशाद, खंड 2, पृष्ठ 310।
  58. जाफ़रियान, इमामों का बौद्धिक और राजनीतिक जीवन, 2013, पृष्ठ 503।
  59. मोफिद, अल-अरशाद, 1413 एएच, खंड 2, पृष्ठ 309।
  60. मसऊदी, इसबातुल वसीयत, 1426 हिजरी, पृष्ठ 233।
  61. इब्न जौज़ी, तज़किरा अल-ख्वास, 1426 एएच, खंड 2, पृष्ठ 493।
  62. मसऊदी, इसबातुल वसीयत, 1426 हिजरी, पृष्ठ 233।
  63. मसऊदी, इसबातुल वसीयत, 1426 हिजरी, पृष्ठ 233।
  64. मोफिद, अल-अरशाद, 1413 एएच, खंड 2, पृष्ठ 309।
  65. मोफिद, अल-अरशाद, 1413 एएच, खंड 2, पृष्ठ 309।
  66. मोफिद, अल-अरशाद, 1413 एएच, खंड 2, पृष्ठ 309; कुलिनी, अल-काफ़ी, 1407 एएच, खंड 1, पृष्ठ 501
  67. जाफ़रियान, रसूल, इमामों का बौद्धिक और राजनीतिक जीवन, 2008, पृष्ठ 505।
  68. इब्न जौज़ी, तज़किरा अल-ख्वास, 1426 एएच, खंड 2, पृष्ठ 492।
  69. मसऊदी, इसबातुल वसीयत, 1426 हिजरी, पृष्ठ 236-237।
  70. मसऊदी, इसबातुल वसीयत, 1426 हिजरी, पृष्ठ 236-237।
  71. मोफिद, अल-अरशाद, 1413 एएच, खंड 2, पृष्ठ 311।
  72. तबरसी, आलाम अलवरा, 1417 एएच, खंड 2, पृष्ठ 126।
  73. मोफिद, अल-अरशाद, 1413 एएच, खंड 2, पृष्ठ 311।
  74. मोफिद, अल-अरशाद, 1413 एएच, खंड 2, पृष्ठ 311।
  75. मजलेसी, बिहार अनवर, 1403 एएच, खंड 59, पृष्ठ 20।
  76. तबरसी, आलाम अलवरा, 1417 एएच, पृष्ठ 438।
  77. अबुल फ़रज इस्फ़हानी, मक़ातिल अल-तालेबेयिन, 1987, पृष्ठ 478
  78. जाफ़रियान, शिया इमामों का बौद्धिक-राजनीतिक जीवन, 2013, पृष्ठ 511।
  79. सूरह बक़रह, आयत 43
  80. कश्शी, रेजाल अल-कश्शी, 1409 एएच, पृष्ठ 517।
  81. अर्बेली, कशफ़ अल-ग़ुम्मा, 1381 एएच, खंड 2, पृष्ठ 338।
  82. कश्शी, रेजाल अल-कश्शी, 1409 एएच, पीपी 518-519।
  83. नौबख्ती, फ़ेर्क अल-शिया, दार अल-अज़वा, पृष्ठ 93।
  84. कश्शी, रेजाल अल-कश्शी, 1409 एएच, पृष्ठ 520।
  85. अत्तारदी, मुसनद अल-इमाम अल-हादी, 1410 एएच, पृष्ठ 323।
  86. देखें: नज्जाशी, रेजाल अल-नज्जाशी, 1365, पृष्ठ 80, तूसी, अल फ़हरिस्त, 1420 एएच, पृष्ठ 57।
  87. जाफ़रियान, शिया और सुन्नत के बीच एकज़ुबा तहरीफ़ अल-कुरान, 1413 एएच, पीपी 76-77।
  88. इब्ने शोअबा हर्रानी, ​​तोहफ़ अल-उक़ूल, 1404 एएच, पीपी. 459-458
  89. नज्जाशी, रेजाल अल-नज्जाशी, 1365, पृष्ठ 329।
  90. जाफ़रियान, शिया इमामों का बौद्धिक-राजनीतिक जीवन, पृष्ठ 631।
  91. जाफ़रियान, शिया इमामों का बौद्धिक-राजनीतिक जीवन, पृष्ठ 654।
  92. अत्तारदी, मुसनद अल-इमाम अल-हादी, 1410 एएच, पृष्ठ 45।
  93. जाफ़रियान, शिया इमामों का बौद्धिक-राजनीतिक जीवन, पृष्ठ 631।
  94. जब्बारी, वकील संगठन, 2013, खंड 2, पृ. 513-514, 537।
  95. शेख़ सदूक़, अल-तौहीद, 1398 एएच, पृष्ठ 224।
  96. जाफ़रियान, शिया इमामों का बौद्धिक-राजनीतिक जीवन, 1393, पृष्ठ 650।
  97. अत्तारदी, मुसनद अल-इमाम अल-हादी, पृष्ठ 10।
  98. अत्तारदी, मुसनद अल-इमाम अल-हादी, पृष्ठ 10।
  99. अत्तारदी, मुसनद अल-इमाम अल-हादी, 1410 एएच, पीपी 84-94।
  100. अत्तारदी, मुसनद अल-इमाम अल-हादी, 1410 एएच, पीपी. 198-213।
  101. अत्तारदी, मुसनद अल-इमाम अल-हादी, 1410 एएच, पीपी. 198-227।
  102. सदूक़, मन ली यहज़ोरोहु अल-फ़कीह, 1413 एएच, खंड 2, पृष्ठ 609।
  103. इब्न मशहदी, अल-मज़ार, 1419 एएच, पृष्ठ 263।
  104. ज़ियारत जामिया कबीरा इमामोलॉजी का एक पूरा कोर्स है, इकना।
  105. ज़ियारत जामिया कबीरा इमामोलॉजी का एक पूरा कोर्स है, इकना।
  106. मसऊदी, मुरुज अल-ज़हब, 1409 हिजरी, खंड 4, पृष्ठ 11।
  107. मसऊदी, मुरुज अल-ज़हब, 1409 हिजरी, खंड 4, पृष्ठ 11।
  108. मसऊदी, मुरुज अल-ज़हब, 1409 हिजरी, खंड 4, पृष्ठ 11।
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