उस्मान बिन सईद अमरी

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उस्मान बिन सईद अमरी
उस्मान बिन सईद की मज़ार
उस्मान बिन सईद की मज़ार
उपनामअमरी, सम्मान, ज़य्यात, अस्करी
प्रसिद्ध रिश्तेदारमुहम्मद बिन उस्मान
निवास स्थानसामर्रा, बग़दाद
मृत्यु तिथिवर्ष 267 से पहले
मृत्यु का शहरबग़दाद
किस के साथीइमाम मुहम्मद तक़ी (अ), इमाम अली नक़ी (अ), इमाम हसन अस्करी (अ), इमाम महदी (अ)
गतिविधियांपहले विशेष प्रतिनिधि


उस्मान बिन सईद अमरी (अरबी: عثمان بن سعيد العمري) (वर्ष 267 हिजरी से पहले मृत्यु), जिन्हें अबू अम्र के नाम से जाना जाता है, ग़ैबत सुग़रा के दौरान इमाम ज़मान (अ) के चार प्रतिनिधिओं में से पहले विशेष प्रतिनिधि थे। उन्हें इमाम हादी (अ), इमाम हसन अस्करी (अ) और इमाम महदी (अ) के साथियों में से एक के रूप में जाना जाता है, लेकिन इस बारे में संदेह है कि क्या वह इमाम जवाद (अ) के सहाबी थे। इमाम महदी (अ) की इमामत शुरू होने (वर्ष 260 हिजरी) के बाद, उस्मान बिन सईद अपने जीवन के अंत तक (लगभग 6 या 7 वर्ष) इमाम के विशेष प्रतिनिधि थे और उनके बाद, उनके बेटे मुहम्मद बिन उस्मान प्रतिनिधि बने। उस्मान अपने प्रतिनिधि काल में बग़दाद गए और वहां अपने प्रतिनिधि की अवधि बिताइ। बग़दाद और अन्य इराक़ी शहरों में उसके वकील थे जो लोगों से पैसा इकट्ठा करते थे और फिर उसे उसके पास भेजते थे। जब उनकी मृत्यु हुई तो हज़रत महदी (अ) ने उनके बेटे को शोक पत्र भेजा। हदीसी स्रोतों में, उस्मान बिन सईद का उल्लेख ज़य्यात और अमरी जैसी कई उपाधियों के साथ किया गया है।

जीवनी

उस्मान के जन्म की तारीख़ के बारे में कोई सटीक जानकारी नहीं है और ऐसा कहा गया है कि वह 11 वर्ष के आयु से ही इमाम जवाद (अ) के सेवक थे।[१] हालांकि, शेख़ तूसी के अनुसार, वह 11 वर्ष की आयु से इमाम हादी (अ) के सेवक थे।[२] वह इमाम हादी (अ), इमाम हसन अस्करी (अ) और इमाम ज़माना (अ) के प्रतिनिधि थे, और वे उन पर हमेशा भरोसा करते थे। उस्मान बिन सईद पहले समर्रा में रहते थे और 11वें इमाम की शहादत के बाद वह बग़दाद चले गए। उस समय, समर्रा अब्बासी सेना की राजधानी और मुख्यालय था, जिसके शुरू से ही शिया इमामों के साथ अच्छे संबंध नहीं थे। कुछ लोगों ने कहा है कि शायद इसीलिए उस्मान बिन सईद बग़दाद चले गए, जहां उन्होंने कर्ख क्षेत्र को, जहां शिया रहते थे, इमामिया के नेतृत्व का केंद्र बनाया।[३]

नाम और उपनाम

उस्मान का नाम रेजाल स्रोतों में "उस्मान बिन सईद" के रूप में उल्लिखित है, लेकिन रेजाल कश्शी में इसका उल्लेख "हफ़्स बिन अम्र" के रूप में भी किया गया है, जो अन्य वकीलों के साथ गुप्त बैठकों में उनका उपनाम हो सकता है।[४] उनकी उपाधि का उल्लेख उनके पैतृक पूर्वज "अबू अम्र" के आधार पर सभी पुस्तकों में किया गया है।, लेकिन बिहार अल अनवार और सफ़ीना अल बिहार किताब में, अबू मुहम्मद का भी उल्लेख किया गया है, क्योंकि उनका मुहम्मद नाम का एक बेटा था।[५][६]

उनकी सबसे महत्वपूर्ण उपाधि अमरी है, और कहा गया है कि उन्हें इस उपाधि से दो कारण से बुलाया गया है; एक यह कि इमाम अस्करी (अ) ने तीसरे ख़लीफ़ा (उस्मान) के नाम और उसकी उपाधि (अबू अम्र) को उस्मान बिन सईद के साथ जोड़ने की अनुमति नहीं दी और तभी से उन्हें अमरी कहा जाने लगा। दूसरा यह कि उनके पैतृक पूर्वज का नाम "अम्र" हाने के कारण उन्हें अम्री कहा गया है।[७] मोहद्दिस क़ुमी ने उन्हें अम्री कहने का कारण, उनकी मां की ओर से उमर बिन अतरफ़ आला से संबंध को माना है।[८]

उस्मान का उपनाम "सम्मान" और "ज़य्यात" बताया गया है।[९] इसके अलावा, बनी असद जनजाति से संबंधित होने के कारण, उन्हें असदी भी कहा गया है और अस्करी भी कहा गया है; क्योंकि वह सामर्रा में "अस्कर" मोहल्ले के निवासी थे।[१०]

संतान

उस्मान बिन सईद के दो बेटों के नाम का उल्लेख किया गया है:

  1. मुहम्मद बिन उस्मान, जो अपने पिता की मृत्यु के बाद इमाम ज़माना (अ) के दूसरे प्रतिनिधि बने।
  2. अहमद बिन उस्मान, जिनका नाम किताबों और स्रोतों में नहीं मिलता है। हालाँकि, प्रतिनिधि के झूठे दावेदारों में "अबू बक्र मुहम्मद बिन अहमद बिन उस्मान" नाम के एक व्यक्ति के नाम का उल्लेख किया गया है, जिसे मुहम्मद बिन उस्मान का भतीजा बताया गया है।[११]

मृत्यु

अमरी की मृत्यु का समय, उनके जन्म की तरह, ज्ञात नहीं है, लेकिन इस संबंध में दो कथन उद्धृत किये गए हैं:

  1. वर्ष 267 हिजरी से पहले: रेजाल के अधिकांश इतिहासकारों और विद्वानों का यही मत है।
  2. वर्ष 280 हिजरी के बाद: यह कथन वर्ष 280 हिजरी में वर्णित एक तौक़ीअ पर आधारित है। इस हदीस के कथावाचक शेख़ तूसी के अनुसार, उन्होंने वर्ष 280 हिजरी में यह हदीस सुनी थी, और यह उस्मान की मृत्यु के समय को स्पष्ट नहीं कर सकता है।[१२]

उस्मान बिन सईद की मृत्यु के बाद, उनके बेटे मुहम्मद ने उन्हें ग़ुस्ल दिया और उन्हें बग़दाद में अल-दरब नामक प्रसिद्ध मोहल्ले में मदीना अल सलाम के पश्चिम में दफ़नाया गया। शेख़ तूसी ने कहा है कि वर्ष 408 हिजरी में बग़दाद पहुंचने से लेकर वर्ष 430 हिजरी के बाद तक, उन्होंने उल्लिखित स्थान पर उस्मान बिन सईद की क़ब्र की ज़ियारत की है।[१३] आज, उनकी क़ब्र बग़दाद के पूर्व में स्थित "रस्साफ़ा" मोहल्ले में और "शूरजे बाज़ार" नामक क्षेत्र में स्थित है।[१४]

इमाम के शोक पत्र का अंश:

"तुम्हारे पिता खुशी से रहे और एक सम्मानजनक और सुखद स्थिति में उनकी मृत्यु हुई। ईश्वर उन पर दया करें और उन्हें औलिया, सादात और अनुयायियों से मिला दें। ईश्वर उनके चेहरे पर ताज़गी लाये और उसकी गलतियों को माफ़ कर दे और उनके सवाब को बढ़ा दे और उनकी मुसीबतों पर आपको सब्र प्रदान करे, उनकी मृत्यु से तुम दुखी हुए और उनकी मृत्यु ने मुझे भी दुखी किया और तुम्हारे पिता की जुदाई ने तुम्हें और हमें डरा दिया। भगवान अपनी रहमतों से उन्हें खुश करे"

पुरालेख दिनांक

इमामों के वकील

रेजाल की किताबों और स्रोतों में जो उल्लेख है, उसके अनुसार, उस्मान बिन सईद तीन मासूम इमामों (इमाम हादी (अ), इमाम अस्करी (अ) और इमाम ज़माना (अ)) के वकील थे। हालाँकि, कुछ अन्य स्रोतों में उन्हें 11 वर्ष की आयु में इमाम जवाद (अ) का सेवक माना गया है, जिन पर इमाम का भरोसा था और उन्हें कुछ महत्वपूर्ण मिशन सौंपे गए थे।[१५] इब्ने शहर आशोब ने भी उन्हें इमाम जवाद (अ) का द्वार माना है।[१६] कुछ शिया विद्वानों ने बाद वाले कथन को स्वीकार नहीं किया है और उस्मान की आयु के आधार पर उन्हें इमाम जवाद (अ) का सहाबी मानना कठिन है और इस राय को ग़लत बताया गया है।[१७]

इमाम हादी (अ) के वकील

उस्मान बिन सईद इमाम हादी (अ) के सहाबी थे, और उनकी प्रतिनिधित्व भी इमाम द्वारा निर्दिष्ट की गई थी।[१८] अहमद बिन इसहाक़ द्वारा वर्णित इमाम हादी (अ) की एक हदीस में, उस्मान बिन सईद को एक विश्वसनीय और भरोसेमंद व्यक्ति के रूप में पेश किया गया है कि वह जिस चीज़ का श्रेय (निस्बत) इमाम (अ) को देते हैं और लोगों को पहुंचाते हैं, वे सभी इमाम हादी (अ) से हैं।[१९]

इमाम अस्करी (अ) के वकील

उस्मान को, इमाम हादी (अ) के अलावा, इमाम हसन अस्करी (अ) का भी भरोसा प्राप्त था।[२०] शेख़ तूसी ने अपनी रेजाल में उस्मान बिन सईद को इमाम अस्करी (अ) के वकील के रूप में पेश किया है।[२१] विभिन्न हदीसों में यह उल्लेख किया गया है कि इमाम अस्करी (अ) ने उस्मान को संबोधित किया और उन्हें अपना वकील माना है, और दूसरे स्थान पर, इमाम अपने आस-पास के लोगों को गवाह बनाते हैं कि उस्मान बिन सईद मेरे वकील हैं। इमाम ने उनका परिचय वकीलों के मुखिया के रूप में कराया; अर्थात शिया वकीलों के माध्यम से जो भी राशि भेजते थे, वे उस्मान तक पहुंचती थीं और उस्मान उन्हें इमाम तक पहुंचा देते थे।[२२]

इमाम अस्करी (अ) की शहादत के बाद, उस्मान बिन सईद इमाम के कफ़न और दफ़न समारोह के प्रभारी थे। इमामिया के अनुसार, ये संकेत इमाम ज़माना (अ) के उनके प्रतिनिधित्व की गवाही देते हैं।[२३]

इमाम ज़माना (अ) के प्रतिनिधि

इमाम अस्करी (अ) ने उस्मान बिन सईद की ओर से स्पष्टीकरण दिया। उन्होंने अपने बेटे को अपने चालीस साथियों को दिखाया और उन्हें बारहवें इमाम की अनुपस्थिति के दौरान उस्मान का पालन करने के लिए कहा।[२४] एक हदीस के अनुसार, हज़रत महदी (अ) ने क़ुम के लोगों से मिलते समय, उनकी ओर से उस्मान बिन सईद का ज़िक्र किया और उन्हें उनके पास भेजा।[२५]

उस्मान बिन सईद, सामर्रा में सरकारी अधिकारियों की सख्ती और अनेक दुश्मनों की उपस्थिति के कारण, हज़रत महदी (अ) के आदेश पर बग़दाद चले गए। तारीख़े सेयासी ग़ैबते इमाम दवाज़दहुम पुस्तक में जासिम हुसैन के अनुसार, हालांकि समर्रा राजधानी थी, लेकिन अब्बासी सेना की उपस्थिति के कारण जो हमेशा इमामों के खिलाफ़ थे और वह वकील संगठन को उनकी नज़रों से दूर ले जाना चाहता थे, इसलिए वह बग़दाद चले गए और उन्होंने कर्ख़ के शिया मोहल्ले को इमामिया के आयोजन का स्थान बनाया।[२६]

उस्मान अपने शासनकाल के दौरान विभिन्न जिलों के वकीलों के प्रभारी थे और लोगों के ट्रस्ट, फंड और उपहार लेते थे और उन्हें इमाम के पास भेजते थे। वह इमाम को शियों के पत्र, शियों के जवाब में हज़रत महदी (अ) की पांडुलिपियां और तौक़ीआत मूल मालिकों तक पहुंचाते थे।[२७] जब इमाम अस्करी (अ) के भाई जाफ़र ने उनके प्रतिनिधि होने का दावा किया, इमाम हसन अस्करी (अ) के साथियों में से एक अहमद इब्ने इसहाक़ ने यह जानने के लिए कि जाफ़र का दावा सही है या नहीं, उन्होंने एक पत्र लिखा और उस्मान बिन सईद के माध्यम से हज़रत महदी को भेजा। उत्तर पत्र में, इमाम ने जाफ़र की इमामत को अस्वीकार कर दिया और उसे भ्रष्ट और नमाज़ न पढ़ने वाला कहा।[२८]

इमाम का शोक पत्र

उस्मान बिन सईद की मृत्यु पर इमाम ज़माना (अ) ने उनके बेटे मुहम्मद बिन उस्मान को एक शोक पत्र लिखा और अपनी संवेदना व्यक्त की। इस पत्र में बारहवें इमाम ने उस्मान बिन सईद पर पूरी संतुष्टि व्यक्त की और उनके लिए इस्तिग़फ़ार किया। इमाम ज़माना (अ) ने उस्मान बिन सईद की अनुपस्थिति में ग़ुरबत (अकेले होने) की भावना के बारे में भी बात की और उनके स्थान पर उनके बेटे मुहम्मद बिन उस्मान को नियुक्त किया।[२९]

संचालन का तरीक़ा

वह तेल और ज़ैतून का क्रय-विक्रय करते थे और यह व्यवसाय उनके मुख्य काम की आड़ था; और यह कार्य इमाम की ओर से प्रतिनिधित्व और प्रतिनिधित्व की जिम्मेदारियों को छुपाने के लिए था ताकि सरकार को पता न चल सके। उस्मान शियों की संपत्तियों और पत्रों को तेल के डिब्बों में रखकर इमाम के पास ले जाते थे ताकि किसी को उनके अस्तित्व और सामग्री के बारे में पता न चले। इसलिए, उनका उपनाम "सम्मान" और "ज़य्यात" भी है।[३०]

सहायक

उस्मान बिन सईद के विशेष प्रतिनिधित्व की अवधि के दौरान, अहमद बिन इसहाक़, मुहम्मद क़त्तान और हाजिज़ बिन यज़ीद वश्शा नाम के तीन प्रसिद्ध वकील उस्मान के सहायकों में से थे और वे कूफ़ा के वकीलों सहित देश में अन्य वकीलों से संचार और पर्यवेक्षण के प्रभारी थे।[३१]

ज़ियारत नामा

बिहार अल अनवार में अल्लामा मजलिसी ने उस्मान बिन सईद के लिए एक ज़ियारत नामे का उल्लेख किया है और कहा है कि उन्होंने इसे एक शिया विद्वान की पुराने ग्रंथ में देखा था। मजलिसी ने किताब और उसके लेखक के नाम का उल्लेख नहीं किया है।[३२]

संबंधित लेख

फ़ुटनोट

  1. जासिम हुसैन, तारीख़े सेयासी ग़ैबते इमाम दवाज़दहुम, 1385 शम्सी, पृष्ठ 142।
  2. तूसी, रेजाल, 1415 हिजरी, पृष्ठ 389।
  3. जासिम हुसैन, तारीख़े सेयासी ग़ैबते इमाम दवाज़दहुम, 1385 शम्सी, पृष्ठ 149।
  4. तूसी, इख्तेयार मारेफ़त अल रेजाल, पृष्ठ 813।
  5. मजलिसी, बिहार अल-अनवार, 1403 हिजरी, खंड 99, पृष्ठ 293।
  6. कुमी, सफीना अल बिहार, 1414 हिजरी, खंड 6, पृष्ठ 145।
  7. तूसी, अल ग़ैबा, 1411 हिजरी, पृष्ठ 354।
  8. कुमी, सफीना अल बिहार, 1414 हिजरी, खंड 6, पृष्ठ 145।
  9. तूसी, अल ग़ैबा, 1411 हिजरी, पृष्ठ 354।
  10. तूसी, अल ग़ैबा, 1411 हिजरी, पृष्ठ 354।
  11. सद्र, तारीख अल-ग़ैबा, 1412 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 379।
  12. तूसी, अल ग़ैबा, 1411 हिजरी, पृष्ठ 232।
  13. तूसी, अल ग़ैबा, 1411 हिजरी, पृष्ठ 232।
  14. रह तोशे अत्बात आलियात, पृष्ठ 367।
  15. जासिम हुसैन, तारीख़े सेयासी ग़ैबते इमाम दवाज़दहुम, 1385 शम्सी, पृष्ठ 142।
  16. इब्ने शहर आशोब, अल-मनाक़िब, 1379 हिजरी, खंड 4, पृष्ठ 380।
  17. शुश्त्री, क़ामूस अल रेजाल, 1410 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 249।
  18. तूसी, रेजाल तूसी, 1415 हिजरी, पृष्ठ 389।
  19. मजलिसी, बिहार अल-अनवार, 1403 हिजरी, खंड 51, पृष्ठ 344।
  20. तूसी, अल-ग़ैबा, 1411 हिजरी, पृष्ठ 231-229।
  21. तूसी, रेजाल तूसी, 1415 हिजरी, पृष्ठ 401।
  22. मजलिसी, बिहार अल-अनवार, 1403 हिजरी, खंड 50, पृष्ठ 323।
  23. तूसी, अल-ग़ैबा, 1411 हिजरी, पृष्ठ 231 और 356।
  24. तूसी, अल ग़ैबा, 1411 हिजरी, पृष्ठ 231-232, सदूक़, कमालुद्दीन, पृष्ठ 435।
  25. सदूक़, कमालुद्दीन, 1395 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 476।
  26. जासिम हुसैन, तारीख़े सेयासी ग़ैबते इमाम दवाज़दहुम, 1385 शम्सी, पृष्ठ 149।
  27. रह तोशे अत्बात आलियात, पृष्ठ 364।
  28. तबरसी, अल एहतेजाज, 1403 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 468।
  29. तूसी, अल ग़ैबा, 1411 हिजरी, पृष्ठ 361।
  30. तूसी, अल ग़ैबा, 1411 हिजरी, पृष्ठ 354।
  31. जब्बारी, साज़माने वेकालत, 1382 शम्सी, खंड 1, पृष्ठ 82।
  32. मजलिसी, बिहार अल-अनवार, 1403 हिजरी, खंड 99, पृष्ठ 293।

स्रोत

  • इब्ने शहर आशोब माजंदरानी, मुहम्मद बिन अली, मनाक़िब आले अबी तालिब, क़ुम, अल्लामा, 1379 हिजरी।
  • जासिम मुहम्मद हुसैन, तारीख़े सेयासी ग़ैबते इमाम दवादहुम, मुहम्मद तक़ी आयतुल्लाही द्वारा अनुवादित, तेहरान, अमीर कबीर, 1385 शम्सी।
  • जब्बारी, मुहम्मद रज़ा, साज़माने वेकालत व नक़्शे आन दर अस्रे आइम्मा (अ), क़ुम, इमाम खुमैनी अनुसंधान प्रशिक्षण संस्थान, 1382 शम्सी।
  • लेखकों का एक समूह, रह तोशे अत्बात आलियात, तेहरान, मशअर पब्लिशिंग हाउस, 1391 शम्सी।
  • लेखकों का एक समूह, रह तोशे अत्बात आलियात, तेहरान, मशअर, 1388 शम्सी।
  • शुश्त्री, मुहम्मद तक़ी, क़ामूस अल रेजाल, क़ुम, जामेअ मुदर्रेसीन, 1419 हिजरी।
  • सद्र, सय्यद मुहम्मद, तारीख़ अल ग़ैबा, बेरूत, दार अल-ताअर्रुफ़, 1412 हिजरी।
  • सदूक़, मुहम्मद बिन अली, कमालुद्दीन व तमाम अल नेअमा, तेहरान, इस्लामिया, 1395 हिजरी।
  • तबरसी, अहमद बिन अली, अल-एहतेजाज, मशहद, मुर्तज़ा, 1403 हिजरी।
  • तूसी, मुहम्मद बिन हसन, इख्तेयार मारेफ़त अल रेजाल, शोध: सय्यद महदी रजाई, आले-अल-बैत संस्थान, बी ता।
  • तूसी, मुहम्मद बिन हसन, अल-ग़ैबा, क़ुम, अल-मआरिफ़ इस्लामिक फाउंडेशन, 1411 हिजरी।
  • तूसी, मुहम्मद बिन हसन, रेजाल अल तूसी, क़ुम, जामेअ मुदर्रेसीन, 1415 हिजरी।
  • क़ुमी, अब्बास, सफ़ीना अल बिहार व मदीना अल हकम व अल आसार, क़ुम, उस्वा, 1414 हिजरी।
  • मजलिसी, मुहम्मद बाक़िर, बिहार अल-अनवार, बेरूत, अल-वफ़ा संस्थान, 1403 हिजरी।