नमाज़

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नमाज़ (अरबी: الصلاة) मुसलमानों के लिए इबादत का सबसे महत्वपूर्ण कार्य है, जिसमें स्मरण (ज़िक्र) और विशेष कार्य शामिल हैं। हदीसों में इसे "धर्म का स्तंभ" और "अन्य कार्यों की स्वीकृति के लिए शर्त" कहा गया है। नमाज़ के कुछ नियम (अहकाम) और अनुष्ठान होते हैं; अन्य बातों के अलावा, इसे वुज़ू करके और क़िबले की ओर मुंह करके पढ़ा जाना चाहिए। इसे फ़ोरादा (अकेले) और जमाअत दो रूपों में पढ़ा जाता है और इसे जमाअत से पढ़ने की सिफ़ारिश की गई है।

नमाज़ों को वाजिब और मुस्तहब में विभाजित किया गया है: वाजिब नमाज़ों में शामिल हैं: प्रतिदिन की नमाज़, नमाज़े आयात, नमाज़े तवाफ़, नमाज़े मय्यत, माता-पिता की क़ज़ा नमाज़, और वह नमाज़े जो मन्नत, प्रतिज्ञा (अहद) और क़सम के कारण अनिवार्य (वाजिब) हो जाती हैं। प्रतिदिन की नाफ़ेला नमाज़े और नमाज़े शब भी मुस्तहब नमाज़ों में से हैं।

हदीसों में, नमाज़ को त्यागने और उपेक्षा करने के परिणामों का उल्लेख हुआ है, जिनमें से एक अहले बैत (अ) की शिफ़ाअत से वंचित होना है। नमाज़ के शुरू (अव्वले वक़्त) होने के समय पर नमाज़ न पढ़ना और समर्पण (ख़ुज़ूअ) और विनम्रता (ख़ुशूअ) के बिना नमाज़ पढ़ना नमाज़ को हल्के में लेने के उदाहरण हैं। इसके अलावा, ईश्वर का स्मरण, बहुदेववाद और मूर्तिपूजा के खिलाफ़ लड़ाई, फ़साद की रोकथाम इसके अनिवार्य होने के हिक्मत (ज्ञान) में से हैं। अन्य धर्मों में भी नमाज़ हैं; हालांकि उनकी शरीयत के अनुसार उनका तरीक़ा अलग है।

महत्व

हदीस अस सलातो एमाद अल दीन का, अब्दुर्रहीम द्वारा सुलेख

नमाज़ मुसलमानों की इबादत का एक कार्य है, जिसका क़ुरआन में 98 बार[१] उल्लेख किया गया है।[२] कुरआन की आयतों के अनुसार, नमाज़ पाप से निवारक,[३] मोक्ष का एक साधन,[४] समस्याओं में सहायक[५] और यह अम्बिया के लिए ईश्वर के महत्वपूर्ण आदेशों में से एक है[६] और अम्बिया की चिंता विशेष रूप से उनके परिवारों के बारे में है।[७]

नमाज़ इस्लामी धर्म की अनिवार्यताओं में से एक है[८] और यह इबादत का एक कार्य है कि न्याविदों के फ़तवों के अनुसार जिसे किसी भी परिस्थिति में नहीं छोड़ा जाना चाहिए[९] और इसे छोड़ना बड़े पापों (गुनाहे कबीरा) में से एक[१०] और अविश्वास (कुफ़्र) और पाखंड (नेफ़ाक़) का संकेत माना गया है।[११] नमाज़ के विषय पर 11,600 से अधिक हदीसें वसाएल अल शिया और मुस्तद्रक किताबों में वर्णित हुई हैं।[१२] न्यायशास्त्र की पुस्तकों में किताब अल सलात नामक एक अध्याय भी है, जो नमाज़ के नियमों (अहकाम) और आदाब के लिए समर्पित है।[१३]

नमाज़ के बारे में, रचनाएँ स्वतंत्र रूप से प्रकाशित हुई हैं, वर्ष 1376 शम्सी तक जिनकी संख्या लगभग दो हज़ार पुस्तकें और ग्रंथ और सैकड़ों ग़ज़लें और किवाता बताई गई हैं।[१४] वर्ष 2019 तक दुनिया में, नमाज़ियों के लिए लगभग छत्तीस लाख मस्जिदें बनाई गई हैं।[१५] इसके अलावा, सार्वजनिक स्थानों और सड़कों के किनारे नमाज़ पढ़ने के लिए विशिष्ट स्थान होता है, जिसे नमाज़ कक्ष (नमाज़ख़ाना) कहा जाता है।[स्रोत की आवश्यकता]

शिया हदीस के विद्वान मोहम्मदी रय शहरी (मृत्यु 1401 शम्सी) के अनुसार, मक्का में पैग़म्बर (स) की बेअसत के आरम्भ में नमाज़ अनिवार्य हो गई थी।[१६] बिहार अल अनवार में वर्णित एक हदीस के अनुसार, पैग़म्बर (स) ने बेअसत के बाद एक दिन इमाम अली (अ) हज़रत ख़दीजा और अन्य लोगों के साथ नमाज़ पढ़ी है।[१७]


नमाज़ के बारे में हदीसों में प्रयुक्त व्याख्याएँ

नमाज़ पढ़ने का तरीक़ा

पहली रकअत

रुकूअ में शरीर की स्थिति

सबसे पहले हम वुज़ू करते हैं. फिर हम क़िबला की ओर मुंह करके इरादा (नीयत) करते हैं। फिर, हम तकबीर अल इहराम कहते हैं; अर्थात हम अपने हाथ कानों तक उठाते हैं और कहते हैं: "अल्लाहो अकबर"। उसके बाद, हम सूर ए हम्द और फिर एक दूसरा सूरह पढ़ते हैं। इसके बाद हम रुकूअ में जाते हैं और रुकूअ का ज़िक्र पढ़ते हैं और रुकूअ से सिर उठाकर खड़े हो जाते हैं और फिर सजदे में चले जाते हैं और सजदे का ज़िक्र पढ़ते हैं उसके बाद दो ज़ानू हो कर बैठ जाते हैं और हम फिर से सजदा करते हैं और सजदे का ज़िक्र पढ़ते हैं।[३२] रुकूअ का ज़िक्र «سُبحانَ رَبّیَ العظیمِ و بِحَمدِه» "सुब्हाना रब्बी अल अज़ीमे वा बेहम्देह" और सजदे का ज़िक्र «سُبحانَ رَبّیَ الاَعلیٰ وَ بِحَمدِه» "सुब्हाना रब्बी अल-आला वा बेहमदेह" या प्रत्येक रुकूअ या सजदे में तीन बार «سبحانَ‌الله» "सुब्हानल्लाह" कहना है।[३३]

दूसरी रकअत

सजदे में शरीर की स्थिति

दूसरे सजदे के बाद, हम खड़े होते हैं और पहली रकअत की तरह सूर ए हम्द और एक दूसरा सूरह पढ़ते हैं। फिर क़ुनूत पढ़ा जाता है। कुनूत में, हम अपनी हथेलियों को आकाश की ओर करते हैं और क़ुनूत की दुआ पढ़ते हैं। क़ुनूत के बाद हम रुकूअ में जाते हैं और रुकूअ का ज़िक्र पढ़ते हैं। रुकूअ के बाद, हम खड़े होते हैं और पहली रकअत की तरह दो ज़ानू होकर बैठ जाते हैं।[३४] क़ुनूत में, दुआ ए «رَبَّنا آتِنا فِی الدُّنْیا حَسَنَةً وَ فِی الْآخِرَةِ حَسَنَةً وَ قِنا عَذابَ النَّار» "रब्बना आतेना फ़ी अल दुनिया हसना वा फ़ी अल आख़ेरते हसना वा क़ेना अज़ाब अल नार" या किसी अन्य दुआ या ज़िक्र पढ़ा जाता है।

तश्हुद

दूसरे सजदे के बाद, हम अपने घुटनों (ज़ानू) पर बैठते हैं और तश्हुद «اَشْهَدُ اَنْ لااِلهَ اِلاَّ الله وَحْدَهُ لاشَرِیكَ لَهُ، وَاَشْهَدُ اَنَّ مُحَمَداً عَبْدُهُ وَ رَسُولُه، اَلّلهُمَّ صَلِّ عَلی مُحَمَّد وَ آلِ مُحَمَّد» ("अशहदो अन ला इलाहा इल्ला अल्लाह वहदहू ला शरीका लह व अशहदो अन्ना मोहम्मदन अब्दोहू व रसूलोहू, अल्लाहुम्मा सल्ले अला मोहम्मद व आले मोहम्मद") पढ़ते हैं।[३५]

नमाज़ के सलाम और तश्हुद में शरीर की स्थिति

नमाज़ का सलाम

दो रकअती नमाज़ में, तश्हुद के बाद, नमाज़ का सलाम «اَلسَّلامُ عَلَیْكَ اَیُّهَا النَّبِیُّ وَ رَحْمَةُ الله وَ بَرَکاتُهُ، اَلسَّلامُ عَلَیْنا وَ عَلی عِبادِ الله الصّالِحینَ، اَلسَّلامُ عَلَیكُمْ وَ رَحْمَةُ الله وَ بَرَکاتُه»ُ ("अस्सलामो अलैका अय्योहन नबीयो व रहमतुल्लाह व बरकातोह, अस्सलामो अलैना व अला एबादिल्लाह अल सालेहीन, अस्सलामो अलैकुम व रहमतुल्लाह व बरकातोह) पढ़ा जाता है और नमाज़ समाप्त होती है।[३६]

तीसरी और चौथी रकअत

तश्हुद पढ़ने के बाद, हम खड़े होते हैं और तस्बीहाते अरबआ سُبْحانَ الله وَ الْحَمْدُ لِله وَ لا اِلهَ اِلّا الله وَ الله أكْبَر (सुब्हानल्लाह वा अल हम्दो लिल्लाह वा ला इलाहा इल्ला अल्लाह वा अल्लाहो अकबर) तीन बार पढ़ते हैं और फिर हम रुकूअ और सजदा करते हैं। तीन रकअत की नमाज़ में तीसरी रकअत के दूसरे सजदे के बाद तश्हुद और सलाम पढ़ा जाता है। चार रकअत की नमाज़ में, तीसरी रकअत के दूसरे सजदे के बाद, हम फिर से खड़े होते हैं और तस्बीहाते अरबआ के बाद, हम रुकूअ करते हैं और दो सजदे करते हैं और तश्हुद और सलाम पढ़ते हैं।[३७]

नमाज़ के अहकाम और आदाब

नमाज़ के दायित्व

सजदागाह का चित्र जिस पर शिया सजदा करते समय अपने माथे को रखते हैं
मुख्य लेख: नमाज़ के वाजिबात

नमाज़ के दायित्व (वाजिबाते नमाज़) नमाज़ के मुख्य कार्य हैं, जो प्रसिद्ध न्यायविदों के अनुसार हैं: इरादा (नीयत), खड़ा होना (क़याम), तकबीर अल-इहराम, रुकूअ, सजदा, सूर ए हम्द और एक दूसरा सूरह पढ़ना, ज़िक्र (जैसे रूकूअ या सजदे का ज़िक्र), तश्हुद , सलाम, तरतीब और मवालात (नमाज़ के कार्य को एक के बाद एक करना)।[३८] नमाज़ के दायित्वों को रुकनी और ग़ैर रुकनी दायित्वों में विभाजित किया गया है: पहले पांच दायित्व नमाज़ के स्तंभ (अरकाने नमाज़) हैं, यदि उन्हें बढ़ाया या जान-बूझकर या गलती से कम किया जाए तो नमाज़ अमान्य (बातिल) हो जाती है। अन्य छह ग़ैर रुकनी दायित्व हैं, केवल जानबूझकर उन्हें कम करने या बढ़ाने से नमाज़ अमान्य (बातिल) हो जाएगी।[३९]

नमाज़ का अमान्य होना

निम्नलिखित में से किसी एक के कारण नमाज़ अमान्य (बातिल) हो जाती है:

  • हदसे अकबर (कुछ ऐसा जो ग़ुस्ल (स्नान) का कारण बनता है) या असग़र (कुछ ऐसा जो वुज़ू को अमान्य (बातिल) करता है) का होना;
  • क़िबला से चेहरे को मोड़ना;
  • जानबूझकर बोलना;
  • ज़ोर से और जानबूझकर हँसना;
  • तक्त्तुफ़: एक के ऊपर एक हाथ का रखना;
  • सांसारिक मामलों के लिए जानबूझकर और ज़ोर से रोना;[४०]
  • सूर ए हम्द के समाप्त होने के बाद आमीन कहना;
  • जो नमाज़ के स्वरूप को बिगाड़ देता है; जैसे ऊपर-नीचे कूदना और ताली बजाना;
  • खाना और पीना;
  • दो रकअत और तीन रकअत नमाज़ों में पढ़ी जाने वाली रकअतों की संख्या में या चार-रकअत नमाज़ों में से पहली दो रकअतों पर संदेह करना;
  • रुकनी दायित्वों में जानबूझकर या आकस्मिक कमी या वृद्धि या ग़ैर रुकनी दायित्वों में जानबूझकर कमी या वृद्धि करना।[४१]

अन्य अहकाम

तहारत: अनिवार्य नमाज़ों के लिए वुज़ू करना अनिवार्य है।[४२] कुछ मामलों में, वुज़ू के बजाय, व्यक्ति को तयम्मुम करना चाहिए; जैसे पानी न मिलना, पानी की कमी और समय की कमी।[४३] नमाज़ी का स्थान: नमाज़ के स्थान के लिए कई शर्तें हैं; उनमें से यह जायज़ (मुबाह) होना चाहिए (ग़स्बी नहीं हो), हिलना-डुलना नहीं चाहिए, अपवित्र (नजिस) नहीं होना चाहिए और माथे का स्थान घुटनों के स्थान से चार अंगुल से अधिक ऊँचा या नीचा नहीं होना चाहिए।[४४] नमाज़ी के वस्त्र: पुरुष को अपने गुप्तांग ढकने चाहिए और महिला को पूरा शरीर ढकना चाहिए; लेकिन चेहरे, हाथों और पैरों की कलाई तक की गोलाई को ढंकना जरूरी नहीं है।[४५] क़िबला:नमाज़ क़िबला (काबा) की ओर मुंह करके पढ़ी जानी चाहिए।[४६] क़स्र नमाज़: यात्री को चार रकअत वाली नमाज़ दो रकअत पढ़नी चाहिए।[४७] धार्मिक यात्रा को पूरा करने के लिए कुछ शर्तें आवश्यक हैं; इसमें यह भी शामिल है कि कुल यात्रा (आना और जाना) कम से कम आठ शरई फ़रसख (40 से 45 किलोमीटर के बीच) होनी चाहिए।[४८]

हज़रत मासूमा (स) के रौज़े में आयतुल्लाह मर्शी नजफ़ी की इमामत में नमाज़े जमाअत

नमाज़ के आदाब

नमाज़ के लिए आदाब और मुहस्तब तरीकों का उल्लेख हुआ है, जिनमें से कुछ का वर्णन इस प्रकार है: नमाज़ को अव्वले वक़्ल (समय आरम्भ होते ही) पढ़ना, नमाज़ पढ़ने से पहले खुद को सजाना, मस्जिद और जमाअत में नमाज़ पढ़ना, नमाज़ के आरम्भ में दुआ करना, दिल की उपस्थिति और विनम्रता (ख़ुशूअ)।[४९] नमाज़ पढ़ने के बाद भी कुछ कार्यों को करने के लिए कहा गया है जिन्हें ताक़ीबात कहा जाता है; उदाहरण के लिए, आयतुल कुर्सी पढ़ना, हज़रत ज़हरा (स) की तस्बीह पढ़ना और शुक्र का सजदा करना।[५०] इनमें से कुछ कार्यों का उल्लेख मफ़ातिह अल जेनान में भी किया गया है।[५१]

वाजिब और मुस्तहब नमाज़ें

मुख्य लेख: वाजिब नमाज़ें

वाजिब नमाज़ें ऐसी नमाज़ें हैं जिन्हें पढ़ना अनिवार्य है, और यदि उन्हें एक निश्चित समय पर नहीं पढ़ा जाता है, तो उनकी क़ज़ा अनिवार्य हो जाती है। इन प्रार्थनाओं में शामिल हैं:

  1. प्रतिदिन की नमाज़ें: सत्रह रकअत हैं और उन्हें पाँच समय (सुबह, ज़ोहर, अस्र, मग़रिब और ईशा) में पढ़ा जाता है और उन्हीं नामों से जाना भी जाता है;
  2. नमाज़े आयात: यह एक नमाज़ है जिसे कुछ प्राकृतिक घटनाओं, जैसे भूकंप, सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण होने पर पढ़ा जाना अनिवार्य है।
  3. नमाज़े मय्यत: यह एक नमाज़ है जो दफ़नाने से पहले मुस्लिम शव पर पढ़ी जाती है, और मुस्लिम शव को नमाज़ पढ़े बिना दफ़नाना जायज़ नहीं है।
  4. तवाफ़ की नमाज़: यह एक नमाज़ है जो काबा की परिक्रमा के बाद पढ़ी जाती है;
  5. माता पिता की क़ज़ा नमाज़ बड़े बेटे पर;
  6. वह नमाज़ जो प्रतिज्ञाओं (मन्नत) , शपथों (क़सम) और अनुबंधों (अहद) के माध्यम से अनिवार्य हो जाती है।[५२]

मुस्तहब नमाज़ें

मुख्य लेख: मुस्तहब नमाज़ें

मुस्तहब या नवाफ़िल नमाज़े ऐसी नमाज़ें हैं जो अनिवार्य नहीं हैं; हालाँकि, उन्हें पढ़ने की अनुशंसा की जाती है; जैसे प्रतिदिन की नाफ़ेला नमाज़ें और नमाज़े शब।[५३] मुस्तहब नमाज़ें, नमाज़े वित्र को छोड़कर, सभी दो रकअती हैं।[५४]

नमाज़ में लापरवाही के परिणाम

इमाम सादिक़ (अ):

إِنَّ شَفَاعَتَنَا لَا تَنَالُ مُسْتَخِفّاً بِالصَّلَاة؛ (इन्ना शफ़ाअतना ला तनालो मुस्तख़िफ़्फ़न बिस सलात) हमारी शेफ़ाअत उस तक नहीं पहुंचेगी जो नमाज़ को हल्के में लेता है।

शेख़ सदूक़, अल अमाली, 1376 शम्सी, पृष्ठ 484 शम्सी।
पैग़म्बर (स):

مَن اَحسَنَ صَلاتَه حتّى تَراها الناس، وَ أساءَها حينَ يَخلو، فَتِلکَ استهانة (मन अहसाना सलातह हत्ता तराहा अल नास, असाअहा हीना यख़्लू, फ़ा तिल्का इस्तेहानत) जो लोगों के सामने सावधानी से और अकेले में, बिना सावधानी के नमाज़ पढ़ता है, उसने नमाज़ की उपेक्षा की है।

नूरी, मुस्तद्रक अल-वसाएल, 1408 हिजरी, खंड 3, पृष्ठ 26।

अहले बैत (अ) की शेफ़ाअत से वंचित होना:[५५] अबू बसीर द्वारा वर्णित हुई एक रिवायत के अनुसार, जब इमाम सादिक़ (अ) प्राण त्याग रहे थे, तो उन्होंने अपने रिश्तेदारों को बुलाया और कहा: " हमारी शेफ़ाअत उस तक नहीं पहुंचेगी जो नमाज़ को हल्के में लेता है।"[५६]

पंद्रह लक्षणों से पीड़ित: एक हदीस के अनुसार जो पैग़म्बर द्वारा हज़रत फ़ातिमा (स) को सुनाई गई थी, जो नमाज़ को हल्के में लेता है ईश्वर उन्हें पंद्रह लक्षणों से पीड़ित करेंगे।[५७]

जीवन में बरकत न होना; संपत्ति में बरकत न होना; चेहरे पर नूर न होना; कार्य पर इनाम नहीं मिलना; दुआ का क़ुबूल नहीं होना; दूसरों की दुआओं से लाभ न मिलना; अपमान के साथ मृत्यु; भूके मरना; प्यास से इस तरह मरना कि कितना भी पानी पी ले, प्यास न बुझे; एक फ़रिश्ता उसे उसकी क़ब्र में पीड़ा देता है; क़ब्र में अँधेरा होना; फ़ेशारे क़ब्र (क़ब्र का दबाव); क़यामत के दिन, एक फ़रिश्ता उसके चेहरे को अपनी ओर खींचेगा और प्राणी देखेंगे; क़यामत में कठिन कारवाई; ईश्वर उस पर दया नहीं करेगा और उसे दर्दनाक सज़ा मिलेगी।[५८]

बिना किसी कारण नमाज़ में देरी करना (समय पर न पढ़ना)[५९] और समर्पण (ख़ुज़ूअ) और विनम्रता (ख़ुशूअ) के बिना नमाज़ पढ़ना, नमाज़ को हल्का समझने के उदाहरण माने जाते हैं।[६०]

अधिक जानकारी के लिए यह भी देखें: तारिक अल सलात

शिया धर्म और सुन्नी धर्म में नमाज़ के बीच अंतर

शिया और सुन्नी धर्मों के बीच नमाज़ में अंतर पाए जाते हैं, जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं:

शीर्षक शिया मालेकी शाफ़ेई हनफ़ी हंबली
सूर ए हम्द का पढ़ना पहली और दूसरी रकअत में वाजिब है वाजिब और मुस्तहब नमाज़ों की हर रकअत में पढ़ना वाजिब है वाजिब और मुस्तहब नमाज़ों की हर रकअत में पढ़ना वाजिब है पहली और दूसरी रकअत में वाजिब है हर रकअत में वाजिब है[६१]
सूरह के आरम्भ में बिस्मिल्लाह कहना सूरह का भाग है और यह कहना वाजिब है इसे न कहना मुस्तहब है सूरह का भाग है और यह कहना वाजिब है नहीं कहना जाएज़ है सूरह का भाग है और यह कहना वाजिब है[६२]
क़ुनूत सभी नमाज़ों में मुस्तहब है केवल सुबह की नमाज़ में जाएज़ है केवल सुबह की नमाज़ में जाएज़ है केवल वित्र की नमाज़ में जाएज़ है केवल वित्र की नमाज़ में जाएज़ है[६३]
जहर और इख़्फ़ात (नमाज़ के कुछ हिस्सों को ज़ोर से और चुपचाप पढ़ना) सुबह,मग़रिब और ईशा की नमाज़ में जहर, ज़ोहर और अस्र की नमाज़ में इख़्फ़ात वाजिब है सुबह, मग़रिब और ईशा की नमाज़ में जहर मुस्तहब है सुबह, मग़रिब और ईशा की नमाज़ में जहर, ज़ोहर और अस्र की नमाज़ में इख़्फ़ात वाजिब है किसी भी नमाज़ में जहर या इख़्फ़ात वाजिब या मुस्तहब नहीं है सुबह, मग़रिब और ईशा की नमाज़ में जहर ज़रुरी है,[६४]
तक्त्तुफ़ हराम है और आम धारणा के अनुसार यह नमाज़ को अमान्य (बातिल) कर देता है। जाएज़ है वाज़िब और मुस्तहब नहीं है मुस्तहब और सुन्नत है मुस्तहब और सुन्नत है मुस्तहब और सुन्नत है[६५]
सूर ए हम्द पढ़ने के बाद आमीन कहना हराम है और नमाज़ को अमान्य (बातिल) कर देता है मुस्तहब है मुस्तहब है मुस्तहब है मुस्तहब है[६६]
रुकूअ और तमानीना इतना झुकना कि हाथ घुटनों तक पहुंच जाएं, ज़रूरी है और रुकूअ में तमनीना वाजिब है। इतना झुकना कि हाथ घुटनों तक पहुंच जाएं, ज़रूरी है और रुकूअ में तमनीना वाजिब है। इतना झुकना कि हाथ घुटनों तक पहुंच जाएं, ज़रूरी है और रुकूअ में तमनीना वाजिब है। केवल झुकना काफ़ी है तमानीना ज़रूरी नहीं है इतना झुकना कि हाथ घुटनों तक पहुंच जाएं, ज़रूरी है और रुकूअ में तमनीना वाजिब है।[६७]
रुकूअ में ज़िक्र वाजिब है वाजिब नहीं है मुस्तहब है वाजिब नहीं है मुस्तहब है वाजिब नहीं है मुस्तहब है वाजिब है[६८]
रुकूअ के बाद खड़ा होना वाजिब है वाजिब है वाजिब है वाजिब नहीं है वाजिब है[६९]
सजदा के अंग सजदा करते समय माथा दोनो हाथ की हथेली दोनों घुटने और पैर के दोनों अंगूठे जमीन पर रखने चाहिए। माथे को ज़मीन पर रखना ज़रूरी है और बाक़ी अंग का रखना मुस्तहब है माथे को ज़मीन पर रखना ज़रूरी है और बाक़ी अंग का रखना मुस्तहब है माथे को ज़मीन पर रखना ज़रूरी है और बाक़ी अंग का रखना मुस्तहब है सात अंग नाक के साथ ज़मीन पर रखना ज़रूरी है[७०]
सजदे में तमानीना ज़रूरी है ज़रूरी है ज़रूरी है ज़रूरी नहीं है ज़रूरी है[७१]
सज्दे में ज़िक्र करना वाजिब है मुस्तहब है मुस्तहब है मुस्तहब है मुस्तहब है[७२]
तश्हुद नमाज़ के बीच में और आख़िर में तशहुद पढ़ना वाजिब है नमाज़ के बीच में और आख़िर में तशहुद पढ़ना मुस्तहब है नमाज़ के बीच में पढ़ना मुस्तहब और आख़िर में वाजिब पढ़ना है नमाज़ के बीच में और आख़िर में तशहुद पढ़ना मुस्तहब है नमाज़ के बीच में और आख़िर में तशहुद पढ़ना अनिवार्य है।[७३]
नमाज़ में सलाम बाद की पीढ़ियों के प्रसिद्ध फ़तवे के अनुसार सलाम वाजिब है वाजिब है वाजिब है मुस्तहब है वाजिब है[७४]
नमाज़ की रकअत की संख्या के बारे में संदेह चार रकअत की नमाज़ में दूसरी रकअत के बाद संदेह होने की स्थिति में, अधिक संख्या को मानेंगे और नमाज़े एहतेयात पढ़ेंगे वाजिब नमाज़ों में कम संख्या को मानेंगे और नमाज़ को जारी रखेंगे वाजिब नमाज़ों में कम संख्या को मानेंगे और नमाज़ को जारी रखेंगे वाजिब नमाज़ों में यदि हमारे जीवन में पहली बार संदेह होता है नमाज़ को शुरू से पढ़ेंगे और अगली बार, कम संख्या को मानेंगे सभी वाजिब नमाज़ों में कम संख्या को मानेंगे और नमाज़ को जारी रखेंगे[७५]
मुसाफ़िर की नमाज़ चार रकअत वाली नमाज़ को ज़रुरी है कि क़स्र (दो रकअत) पढ़ी जाए क़स्र और पूरी नमाज़ के बीच चयन कर सकते हैं क़स्र और पूरी नमाज़ के बीच चयन कर सकते हैं ज़रूरी है कि क़स्र पढ़ी जाए क़स्र और पूरी नमाज़ के बीच चयन कर सकते हैं[७६]
दो नमाज़ों को एक साथ पढ़ना जाएज़ है यात्रा में जाएज़ है यात्रा में जाएज़ है जाएज़ नहीं है यात्रा में जाएज़ है[७७]

नमाज़ के वुजूब की हिक्मत

कुरान:

وَأَقِمِ الصَّلَاةَ إِنَّ الصَّلَاةَ تَنْهَىٰ عَنِ الْفَحْشَاءِ وَالْمُنْكَرِ؛ (व अक़िम अल सलात इन्ना अल सलाता तनहा अन अल फ़हशाए व अल मुंकर)

नमाज़ क़ायम करो इस लिए कि यही नमाज़ है जो हर बुरे कार्य से रोकती है।
सूर ए अनकबूत आयत 45

इमाम रज़ा (अ) से वर्णित हुई एक रिवायत में, नमाज़ के वुजूब का दर्शन ईश्वर की प्रभुता को स्वीकार करना, बहुदेववाद और मूर्तिपूजा के खिलाफ़ लड़ना, ईश्वर की महानता के सामने सेवक का स्वयं को ज़लील व्यक्त करना, लापरवाही को समाप्त करना, ईश्वर को याद करना फ़साद, पाप और विद्रोह आदि बयान हुआ है।[७८] तफ़सीरे नमूना में, अनुशासन की भावना को मज़बूत करना, शुद्धिकरण का आह्वान करना, नैतिक गुणों को विकसित करना, अन्य कार्यों को महत्व देना और पापों को क्षमा करना नमाज़ के वुजूब के हिक्मत में से हैं।[७९]

इसके अलावा, आयत «وَأَقِمِ الصَّلَاةَ لِذِكْرِي» "व अक़िम अल सलात ले ज़िक्री"[८०] में, ईश्वर की याद को नमाज़ का उद्देश्य बताया गया है।[८१] हज़रत फ़ातिमा (स) से वर्णित है कि ईश्वर ने नमाज़ को वाजिब किया ताकि बंदे अहंकार से दूर रहें।[८२] नहज अल बलाग़ा में यह भी कहा गया है कि नमाज़ अहंकार और अभिमान को नष्ट कर देती है।[८३]

अन्य धर्मों में नमाज़

सभी धर्मों में नमाज़ मौजूद रही है; हालाँकि, इसे पढ़ने का तरीक़ा अलग-अलग रहा है।[८४] यहूदी धर्म में नमाज़ को "टेफ़ीला" कहा जाता है और बहुवचन रूप में, "टेफ़ीलीम" या "टेफ़ीलूत" कहा जाता है और इसके अहकाम "सीदूर" में या कुछ हिस्सों को "मिश्ना" (यहूदी धर्म की दुआओं की पारंपरिक पुस्तक) में उल्लेख किया गया है। [स्रोत की आवश्यकता] लेख "बर्रसी चेगूनगी नमाज़ दर अदयाने यहूद" में कहा गया है: यहूदी धर्म में, आमतौर पर हर दिन तीन नमाज़ें पढ़ी जाती हैं। शाबात (शनिवार) और अन्य पवित्र दिनों पर, रूढ़िवादी और रुढ़िवादी संप्रदाय एक और नमाज़ पढ़ते हैं जिसे मुसाफ़ कहा जाता है।[८५]

ईसाई धर्म में नमाज़ ईश्वर (पिता) या ट्रिनिटी (पुत्र या पवित्र आत्मा) के अन्य व्यक्तियों के साथ संवाद करने के लिए की जाती है। विभिन्न ईसाई संप्रदायों में नमाज़ अलग-अलग तरीकों से पढ़ी जाती हैं। नमाज़ें सामूहिक हो सकती हैं, जैसे प्रभु भोज समारोह, या फ़ोरादा (अकेले) आयोजित की जा सकती हैं।[८६]

मोनोग्राफ़ी

किताब आदाबे नमाज़, लेखक इमाम ख़ुमैनी

नमाज़ के बारे में विभिन्न भाषाओं में रचनाएँ लिखी और अनुवादित की गई हैं।[८७] उनमें से कुछ इस प्रकार हैं:

  • आदाबे नमाज़, इमाम ख़ुमैनी द्वारा लिखित: यह पुस्तक हृदय के आदाब और नमाज़ के आध्यात्मिक रहस्यों का वर्णन करती है और इसमें दो प्रस्तावनाएँ हैं जिसे लेखक ने अपने बच्चों को मुख़ातब कर के लिखी है।
  • असरार अल-सलात, मिर्ज़ा जवाद मलकी तबरेज़ी द्वारा लिखित: यह परिष्कार और दिल की उपस्थिति और नमाज़ के ज्ञान पर लिखी एक किताब है।
  • असरारे नमाज़, इमाम खुमैनी द्वारा लिखित: यह नमाज़ की एक रहस्यमय व्याख्या है, अज़ान से लेकर तश्हुद और सलाम तक।
  • अल सलात फ़ी अल किताब व अल सुन्ना, मोहम्मद मोहम्मदी रय शहरी द्वारा लिखित: इस पुस्तक में नमाज़ की आवश्यकता, नमाज़ का ज्ञान, इस्लाम से पहले नमाज़, नमाज़ की श्रेष्ठता, विशेषताओं के बारे में कुरआन की आयतें और शिया और सुन्नी हदीसें शामिल हैं इसमें नमाज़, नमाज़ का समय, नमाज़ के आदाब आदि शामिल है।
  • राज़हाए नमाज़, अब्दुल्लाह जवादी आमोली द्वारा लिखित: यह नमाज़ और उसके अहकाम पर एक दार्शनिक नज़र है।

सम्बंधित लेख

फ़ुटनोट

  1. नौरोज़ी, मुक़द्दमई बर फलसफ़ा ए नमाज़, यादआवरान प्रकाशन, पृष्ठ 116।
  2. उदाहरण के लिए देखें, सूर ए हज, आयत 41; सूर ए बक़रा, आयत 3; सूर ए निसा 103 और 162; सूर ए माएदा 6; सूर ए अनफ़ाल आयत 2, 3 और 4; सूर ए इब्राहीम आयत 31; सूर ए मोमिनून आयत 2; सूर ए नमल आयत 2 और 3।
  3. सूर ए अनकबूत, आयत 45।
  4. सूर ए आला, आयत 15 और 14।
  5. सूर ए बक़रा, आयत 45.
  6. उदाहरण के लिए देखें, सूर ए मरियम, आयत 31।
  7. सूर ए मरियम, आयत 55।
  8. वज़ीरीफ़र्द, "बर्रसी इंकार ज़रूरी दीन व आसारे आन दर फ़िक़ह", पृष्ठ 183।
  9. मुदर्रसी, अहकामे मुक़द्देमाते नमाज़, 1387 शम्सी, पृष्ठ 61.
  10. तय्यब, अतयब अल बयान, 1378 शम्सी, खंड 14, पृष्ठ 168।
  11. पायनदेह, नहज अल-फ़साहा, 1387 शम्सी, पृष्ठ 279।
  12. हुर्रे आमोली, वसाएल अल-शिया, 1409 हिजरी, खंड 4, पृष्ठ 6 से पृष्ठ 8, पृष्ठ 539 देखें; नूरी, मुस्तद्रक अल-वसाएल, 1408 हिजरी, खंड 3, पृष्ठ 5 से पृष्ठ 6, पृष्ठ 548।
  13. उदाहरण के लिए देखें, नजफ़ी, जवाहिर अल कलाम, 1362 शम्सी, खंड 7, पृष्ठ 2 से आगे देखें।
  14. सेहती सर्दरूदी, "किताब शनासी गुज़ीनशी व तौसीफ़ी नमाज़", पृष्ठ 42।
  15. "दुनिया में मस्जिदों की संख्या कितनी है", अकबर मौक़े अरबी बिल आलम।
  16. मोहम्मदी रय शहरी, शनाख़्त नामे नमाज़, 1392 शम्सी, खंड 1, पृष्ठ 58।
  17. मजलिसी, बिहार अल-अनवार, 1403 हिजरी, खंड 18, पृष्ठ 179-180 देखें।
  18. हुर्रे आमोली, वसाएल अल-शिया, 1409 हिजरी, खंड 4, पृष्ठ 27।
  19. मुत्तक़ी, कन्ज़ अल-उम्माल, 1364 हिजरी, खंड 7, हदीस 18851।
  20. कुलैनी, अल-काफ़ी, 1407 हिजरी, खंड 3, पृष्ठ 268।
  21. मजलिसी, रौज़ा अल-मुत्तक़ीन, 1406 हिजरी, खंड 2, पृ. 6, 17, 220 और 283।
  22. कुतुब रावंदी, शहाब अल-अख़्बार, 1388 शम्सी, पृष्ठ 59।
  23. इब्ने शैबा, तोहफ़ा अल-उक़ूल, 1363 शम्सी, पृष्ठ 455।
  24. पायनदेह, नहज अल-फ़साहा, 1387 शम्सी, हदीस 1588।
  25. सदूक़, अल-खेसाल, 1362 शम्सी, खंड 1, पृष्ठ 103।
  26. मजलिसी, बिहार अल-अनवार, 1403 हिजरी, खंड 82, पृष्ठ 232।
  27. मुत्तक़ी, कन्ज़ अल-उम्माल, 1364 हिजरी, खंड 7, पृष्ठ 291।
  28. आमदी, ग़ेरर अल हेकम, तेहरान विश्वविद्यालय, पृष्ठ 56।
  29. अबुल फ़ोतूह राज़ी, रौज़ अल-जेनान, 1376 शम्सी, खंड 1, पृष्ठ 248।
  30. आमदी, ग़ेरर अल-हेकम, तेहरान विश्वविद्यालय, खंड 2, पृष्ठ 166।
  31. मजलिसी, बिहार अल-अनवार, 1403 हिजरी, खंड 82, पृष्ठ 232।
  32. साज़माने पज़ोहिश व बरनामे रेज़ी आमोज़ेशी वेज़ारत आमोज़ेशी व परवरिश, हदीयाहाए आसमान, 1401, पृष्ठ 53-54 देखें।
  33. खुमैनी, तौज़ीह अल-मसाएल, 1387 शम्सी, पृष्ठ 161-163।
  34. साज़माने पज़ोहिश व बरनामे रेज़ी आमोज़ेशी वेज़ारत आमोज़ेशी व परवरिश, हदीयाहाए आसमान, 1401, पृष्ठ 54-55 देखें।
  35. साज़माने पज़ोहिश व बरनामे रेज़ी आमोज़ेशी वेज़ारत आमोज़ेशी व परवरिश, हदीयाहाए आसमान, 1401, पृष्ठ 55 देखें।
  36. साज़माने पज़ोहिश व बरनामे रेज़ी आमोज़ेशी वेज़ारत आमोज़ेशी व परवरिश, हदीयाहाए आसमान, 1401, पृष्ठ 55 देखें।
  37. मलिकपुर अफ़शां, आमोज़िशे नमाज़ व वुज़ू, 1396 शम्सी, पृष्ठ 11-10।
  38. तबातबाई यज़्दी, अल-उर्वा अल-वुस्क़ा (मोहशा), 1419 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 433।
  39. तबातबाई यज़्दी, अल-उर्वा अल-वुस्क़ा (मोहशा), 1419 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 433।
  40. तबातबाई यज़्दी, अल-उर्वा अल-वुस्क़ा (मोहशा), 1419 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 5-29; बनी हाशमी खुमैनी, रेसाला तौज़ीह अल मसाएल मराजेअ, 1424 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 614-627।
  41. बनी हाशमी खुमैनी, रेसाला तौज़ीह अल मसाएल मराजेअ, 1424 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 628-630।
  42. बनी हाशमी खुमैनी, रेसाला तौज़ीह अल मसाएल मराजेअ, 1424 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 185।
  43. बनी हाशमी खुमैनी, रेसाला तौज़ीह अल मसाएल मराजेअ, 1424 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 365।
  44. तबातबाई यज़्दी, अल-उर्वा अल-वुस्क़ा (मोहशा), 1419 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 385-362।
  45. खोमैनी, अल मसाइल (मोहशी) की व्याख्या, 1424 एएच, खंड 1, पृ. 441 और 442।
  46. बनी हाशमी खुमैनी, रेसाला तौज़ीह अल मसाएल मराजेअ, 1424 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 431।
  47. तबातबाई यज़्दी, अल-उर्वा अल-वुस्क़ा (मोहशा), 1419 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 414।
  48. तबातबाई यज़्दी, अल-उर्वा अल-वुस्क़ा (मोहशा), 1419 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 414।
  49. देखें मोहम्मदी रिशहरी, अल सलात फ़ी अल-किताब वा अल सुन्नत, 1377 शम्सी, खंड 1, पृष्ठ 63-49।
  50. देखें मोहम्मदी रिशहरी, अल सलात फ़ी अल-किताब वा अल सुन्नत, 1377 शम्सी, खंड 1, पृष्ठ 140-144।
  51. क़ुमी, मफ़ातिह अल-जेनान, बख़्शे ताक़ीबाते नमाज़, पृष्ठ 12-19 देखें।
  52. तबातबाई यज़्दी, अल-उर्वा अल-वुस्क़ा (मोहशा), 1419 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 244।
  53. तबातबाई यज़्दी, अल-उर्वा अल-वुस्क़ा (मोहशा), 1419 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 244-245।
  54. तबातबाई यज़्दी, अल-उर्वा अल-वुस्क़ा (मोहशा), 1419 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 246।
  55. शेख़ सदूक़, मन ला यहज़रोहुल फ़क़ीह, 1367 शम्सी, खंड 1, पृष्ठ 206।
  56. शेख़ सदूक़, अल-अमाली, 1376 शम्सी, पृष्ठ 484।
  57. इब्ने ताऊस, फ़लाह अल-साएल, 1406 हिजरी, पृष्ठ 22।
  58. इब्ने ताऊस, फ़लाह अल-साएल, 1406 हिजरी, पृष्ठ 22।
  59. मजलिसी, बिहार अल-अनवार, 1403 हिजरी, खंड 80, पृष्ठ 6।
  60. "नमाज़ को हल्का समझना", हौज़ा समाचार एजेंसी।
  61. मुग़निया, अल फ़िक़्ह अला अल मज़हब अल-ख़म्सा, 1421 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 109।
  62. मुग़निया, अल फ़िक़्ह अला अल मज़हब अल-ख़म्सा, 1421 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 110।
  63. मुग़निया, अल फ़िक़्ह अला अल मज़हब अल-ख़म्सा, 1421 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 110।
  64. मुग़निया, अल फ़िक़्ह अला अल मज़हब अल-ख़म्सा, 1421 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 110।
  65. मुग़निया, अल फ़िक़्ह अला अल मज़हब अल-ख़म्सा, 1421 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 110।
  66. मुग़निया, अल फ़िक़्ह अला अल मज़हब अल-ख़म्सा, 1421 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 111-110।
  67. मुग़निया, अल फ़िक़्ह अला अल मज़हब अल-ख़म्सा, 1421 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 111।
  68. मुग़निया, अल फ़िक़्ह अला अल मज़हब अल-ख़म्सा, 1421 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 111।
  69. मुग़निया, अल फ़िक़्ह अला अल मज़हब अल-ख़म्सा, 1421 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 111।
  70. मुग़निया, अल फ़िक़्ह अला अल मज़हब अल-ख़म्सा, 1421 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 112।
  71. मुग़निया, अल फ़िक़्ह अला अल मज़हब अल-ख़म्सा, 1421 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 112।
  72. मुग़निया, अल फ़िक़्ह अला अल मज़हब अल-ख़म्सा, 1421 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 112।
  73. मुग़निया, अल फ़िक़्ह अला अल मज़हब अल-ख़म्सा, 1421 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 112 और 113।
  74. मुग़निया, अल फ़िक़्ह अला अल मज़हब अल-ख़म्सा, 1421 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 114।
  75. मुग़निया, अल फ़िक़्ह अला अल मज़हब अल-ख़म्सा, 1421 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 114।
  76. मुग़निया, अल फ़िक़्ह अला अल मज़हब अल-ख़म्सा, 1421 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 139।
  77. मुग़निया, अल फ़िक़्ह अला अल मज़हब अल-ख़म्सा, 1421 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 142।
  78. हुर्रे आमोली, वसाएल अल-शिया, 1409 हिजरी, खंड 3, पृष्ठ 4।
  79. मकारिम शिराज़ी, तफ़सीरे नमूना, 1374 शम्सी, खंड 16, पृष्ठ 290-294।
  80. सूर ए ताहा, आयत 14।
  81. देखें मुतह्हरी, "फ़लसफ़ा ए इबादत", पृष्ठ 15-17।
  82. तबरसी, अल-एहतेजाज, 1403 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 107।
  83. नहज अल-बलाग़ा, सुब्ही सालेही द्वारा सुधार, कलेमाते क़ेसार 252, पृष्ठ 512।
  84. राग़िब इस्फहानी, मुफ़रेदात, 1412 हिजरी, पृष्ठ 491।
  85. बाक़िरयान, "बर्रसी चेगूनगी ए नमाज़ दर अदयाने इलाही", पृष्ठ 219।
  86. देखें: फ़ातिमा, "कुछ दिव्य धर्मों में नमाज़ के विभिन्न रूपों को देखें"
  87. "किताब शनासी नमाज़", पृष्ठ 57 और 58 देखें।

स्रोत

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  • बनी हाशमी खुमैनी, सय्यद मोहम्मद हुसैन, तौज़ीह अल-मसाएल मराजे, क़ुम, इस्लामी प्रकाशन कार्यालय, 8वां संस्करण, 1424 हिजरी।
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  • तबातबाई यज़्दी, सय्यद मोहम्मद काज़िम, अल-उर्वा अल-वुस्क़ा (मोहशा), अहमद मोहसिनी सब्ज़ेवारी द्वारा अनुसंधान और सुधार, क़ुम, इस्लामिक प्रकाशन कार्यालय, पहला संस्करण, 1419 हिजरी।
  • तबरसी, अहमद बिन अली, अल-एहतेजाज अला अहले अल-लेजाज, मोहम्मद बाक़िर खोरसन द्वारा शोध, मशहद, मुर्तज़ा पब्लिशिंग हाउस, प्रथम संस्करण, 1403 हिजरी।
  • तय्यब, सय्यद अब्दुल हुसैन, अतयब अल-बयान फ़ी तफ़्सीर अल-कुरआन, तेहरान, इस्लाम प्रकाशन, दूसरा संस्करण, 1378 शम्सी।
  • फ़ातिमा, नुसरत, "कुछ दिव्य धर्मों में नमाज़ के विभिन्न रूपों पर दृष्टी"
  • कुतुब रावंदी, सईद बिन हिबतुल्लाह, शहाब अल-अख़्बार, क़ुम, दार अल-हदीस, 1388 शम्सी।
  • क़ुमी, शेख़ अब्बास, मफ़ातीह अल-जिनान, क़ुम, उस्वा, बी ता।
  • कुलैनी, मुहम्मद बिन याक़ूब, अल-काफ़ी, तेहरान, दार अल-कुतुब अल-इस्लामिया, चौथा संस्करण, 1407 हिजरी।
  • "किताब शनासी नमाज़, परिचय व आलोचना", गुलिस्ताने कुरआन, संख्या 79, शहरिवर 1380 शम्सी।
  • मुत्तक़ी हिंदी, अली बिन होसामुद्दीन, कंज़ल अल उम्माल, दाएरतुल मआरिफ़ अल उस्मानिया, बे असामे हैदराबाद, 1364 हिजरी।
  • मजलिसी, मोहम्मद बाक़िर, बिहार अल-अनवार, अल-वफ़ा फाउंडेशन, 1403 हिजरी।
  • मजलिसी, मोहम्मद तकी, रौज़ा अल-मुत्तक़ीन फ़ी शरहे मन ला यहज़रो अल-फ़कीह, क़ुम, कुशानबुर इस्लामिक कल्चरल इंस्टीट्यूट, दूसरा संस्करण, 1406 हिजरी।
  • मोहम्मदी रय शहरी, मुहम्मद, अल सलात फ़ी अल-किताब वा अल सुन्नत, अब्दुल हादी मसऊदी द्वारा अनुवादित, क़ुम, दार अल-हदीस, पहला संस्करण, 1377 शम्सी।
  • मोहम्मदी रय शहरी, मोहम्मद, शनाख़तनामे नमाज़, दार अल-हदीस वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संस्थान, 1392 शम्सी।
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  • मुग़निया, मोहम्मद जवाद, अल फ़िक़ह अला अल-मज़हब अल-ख़म्सा, बेरूत, दार अल-तियार अल-जदीद-दार अल-जवाद, 10वां संस्करण, 1421 हिजरी।
  • मकारिम शिराज़ी, नासिर, तफ़सीरे नमूना, तेहरान, दार अल-किताब अल-इस्लामिया, 32वां संस्करण, 1374।
  • मलिकपुर अफ़शार, इब्राहीम, आमोज़िशे नमाज़ व वुज़ू, पुर अफ़शार प्रकाशन, क़ुम, 19वां संस्करण, 1396 शम्सी।
  • नजफ़ी, मोहम्मद हसन, जवाहिर अल-कलाम फ़ी शरहे शराए अल-इस्लाम, अब्बास कवाचानी और अली अखुंडी द्वारा शोध और सुधार, बेरूत, दार अल इहिया अल-तोरास अल-अरबी, 7वां संस्करण, 1362 शम्सी।
  • नौरोज़ी, मोहम्मद मसऊद, मुक़द्दमई बर फ़लसफ़ा ए नमाज़, यादआवरान अंतर्राष्ट्रीय प्रकाशन।
  • नूरी, मिर्ज़ा हुसैन, मुस्तद्रक अल-वसाएल, क़ुम, आले-अल-बैत (अ) इंस्टीट्यूट, पहला संस्करण, 1408 हिजरी।
  • नहज अल-बलाग़ा, सुब्ही सालेह द्वारा संशोधित, क़ुम, हिजरत, पहला संस्करण, 1414 हिजरी।
  • वज़ीरी फ़र्द, मोहम्मद जवाद, "बर्रसी ए इंकार ज़रूरी दीन व आसारे आन दर फ़िक़ह", दर दो फ़सलनामे अल्लामा, संख्या 39, वसंत और ग्रीष्म 1391 शम्सी।