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नमाज़ के अरकान

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नमाज़ के अरकान (अरबी: أركان الصلاة) (प्रार्थना के स्तंभ) में कुछ चीज़ें वाजिबाते नमाज़ (नमाज़ में अनिवार्य चीज़ें) हैं, जिनमें वृद्धि या कमी चाहे वह अनजाने में ही हो, नमाज़ को अमान्य (बातिल) कर देती है। प्रसिद्ध शिया न्यायविद (फ़ोकहा) नीयत (इरादे), क़याम, तकबीरतुल इहराम, रूकू और दो सजदों को नमाज़ का स्तंभ मानते हैं।

रुक्न की परिभाषा

रुक्न, किसी चीज़ की बुनियाद या स्तंभ को कहते है। और धार्मिक उपासनाओं (इबादात) में यह एक ऐसा घटक है जिस में जानबूझकर या अनजाने में वृद्धि या कमी पूजा को अमान्य कर देती है। नमाज़, हज और उमरा के कुछ अंग इनके स्तम्भ हैं।

नमाज़ के स्तंभ

अल्लामा हिल्ली के प्रसिद्ध मत के अनुसार, नमाज़ के पाँच मूल स्तंभ हैं: नीयत, क़याम (खड़े होना), तकबीरतुल-एहराम, रुकूअ, दो सजदे[] नीयत का अर्थ है अल्लाह के आदेश को पूरा करने और उसके निकट आने के इरादे से नमाज़ पढ़ना। इसे कभी-कभी "दाई" (इरादा) रखने के रूप में व्यक्त किया जाता है। मन में कुछ विचार लाना या ज़ुबान पर कोई शब्द जारी करना नियत में ज़रूरी नहीं है।[] क़याम का अर्थ तकबीरतुल-एहराम के समय खड़े होने और रुकूअ से जुड़े क़याम (यानी खड़े होकर रुकूअ में जाने) से है।[]

"ला तोआद" (नमाज़ दोहराने की आवश्यकता न होने) के नियम के अनुसार, क़िबला, नमाज़ का समय और पाक-सफ़ाई (तहारत) भी नमाज़ के स्तंभ में शामिल हैं।[] इसलिए, कुछ विद्वानों ने नमाज़ के स्तंभ की संख्या नौ मानी है: क़िबला, नमाज़ का समय, तहारत, रुकूअ, सजदा, नीयत, तकबीरतुल-एहराम, तकबीरतुल-इहराम के समय क़याम और रुकूअ से जुड़ा क़याम।[]

कुछ पूर्ववर्ती फ़क़ीहों ने इख़्तियार (सामर्थ्य) की हालत में क़िबला की तरफ़ मुँह करने को नमाज़ का रुक्न माना है,[] जबकि कुछ ने नमाज़ की क़राअत (पाठ) को रुक्न समझा है।[]

रुक्न का कम या ज़्यादा करना

मशहूर फ़ोक़हा के अनुसार किसी रुक्न के जानबूझ कर या भूले से भी छोड़ देने से नमाज़ बातिल (अमान्य) हो जाती है।[] लेकिन कुछ अन्य न्यायविदों का मानना है कि अनजाने में किसी स्तंभ को बढ़ा देने से प्रार्थना अमान्य नहीं होती है।[]

जब भी कोई नमाज़ पढ़ने वाला अनजाने में एक स्तंभ छोड़ देता है, तो वह उसे उस समय तक कर सकता है जब तक कि वह किसी दूसरे स्तंभ में प्रवेश न कर जाए।[१०]

फ़ुटनोट

  1. अल्लामा हिल्ली, मुख़्फतलिश-शिया, 1412 हिजरी, खंड 2, पीपी। 140-139।
  2. यज़्दी, अल-उरवा अल-वुसक़ा, 1419 हिजरी, खंड 2, पृ.434।
  3. यज़्दी, अल-उरवा अल-वुसक़ा, 1419 हिजरी, खंड 2, पृ.473।
  4. देखें, मिश्कीनी, मुस्तलेहात अल फ़िक़्ह, 1392 शम्सी, पृष्ठ 479।
  5. मूसवी बिजनवर्दी, क़वाएद फ़िक़्हिया, 1379 शम्सी, खंड 2, पृष्ठ 335।
  6. इब्ने हमजा तूसी, अल-वसीला, 1408 हिजरी, पृष्ठ 93।
  7. शेख़ तूसी, अल-मबसूत, अल मकतबा अल-मोर्तज़ाविया, खंड 1, पृष्ठ 105।
  8. शहिद सानी, अल-रौज़ा अल-बहिया, इल्मिया इस्लामिया पब्लिकेशंस, खंड 1, पृष्ठ 644।
  9. नजफी, जवाहिरुल कलाम, दार इहया अल-तुरास अल-अरबी, खंड 9, पीपी 241-239।
  10. नजफी, जवाहिर अल-कलाम, दार इहया अल-तुरास अल-अरबी, खंड 12, पीपी 238-239।

स्रोत

  • इब्ने हमजा तूसी, मुहम्मद इब्ने अली, अल-वसिला अल-नैल अल-फ़ज़ीला, मुहम्मद अल-हस्सून द्वारा शोध, क़ुम, आयतुल्ला अल-मरअशी अल-नजफ़ी पुस्तकालय, 1408 हिजरी।
  • हिल्ली, हसन इब्ने यूसुफ़, मुख़्तलिफ़िश शिया फ़ी अहकामिश शरीया, मकरज़ अल अबहास वद दिरासातिल इस्लामिया द्वारा, क़ुम, दफ़्तरे तबलीग़ाते इस्लामी, 1412 हिजरी।
  • शहीद सानी, ज़ैन अल-आबेदीन, अल-रौज़ा अल-बहीया फी शरहे अल-लोमआ अल-दमश्क़िया, तेहरान, इंतेशाराते इस्मिया इस्लामिया, [बी ता]।
  • तूसी, मुहम्मद इब्ने हसन, अल-मबसूत फ़ी फ़िक़ह अल-इमामिया, मुहम्मद बाक़िर बेहबूदी द्वारा, तेहरान, मकतबा मुर्तज़ाविया, [बी टा]।
  • नजफ़ी, मुहम्मद हसन, जवाहर अल-कलाम फ़ी शरहे शरायउल-इस्लाम, बेरूत, दार अल-अह्या अल-तुरास अल-अरबी, 1983।
  • यज़्दी, सैय्यद मुहम्मद काज़िम, अल-उरवा अल-वुसक़ा, क़ुम, दार अल-तफ़सीर, इस्माइलियान, 1419 हिजरी।