तरावीह

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तरावीह (अरबी: صلاة التراويح) रमज़ान की रातों मे पढ़ी जाने वाली मुस्तहब नमाज़ है, जिसे सुन्नी उमर बिन खत्ताब के आदेश के अनुसार जमाअत के साथ पढ़ते हैं, लेकिन शिया इसे जमाअत के साथ पढ़ने को विधर्म (बिदअत) मानते हैं। शिया और सुन्नी स्रोतों के अनुसार, पैगंबर (स) और अबू बक्र की शासन अवधि के दौरान रमज़ान के नवाफ़ल अकेले पढ़ी जाती थी; लेकिन उमर ने अपनी खिलाफत के दौरान इसे जमाअत के साथ पढ़ने का आदेश दिया। अहले-बैत (अ) ने रमज़ान में नवाफ़िल (मुस्तहब्बात) को जमाअत के साथ पढ़ाना बिद्अत माना है। अहले-सुन्नत के कुछ न्यायविदों और बुजुर्गों ने भी इस नमाज़ को फुरादा (अकेले) पढ़ा है।

सुन्नी मस्जिदों, विशेष रूप से मस्जिद अल-हराम और मस्जिद अल-नबी में रमज़ान की रातों में हर साल जमाअत के साथ तरावीह पढ़ी जाती है। इसके विवरण और फैसलों के बारे में सुन्नी न्यायविदों की अलग-अलग राय है।

नामकरण

तरावीह मुस्तहब नमाज़ है जिसे मुस्लमान रमज़ान के पवित्र महीने मे पढ़ते है।[१] तरावीह का अर्थ है नमाज़ पढ़ने वाले का रमज़ान में दो[२] या चार रकत नमाज़ पढ़ने के बाद बैठना और आराम करना।[३] इसलिए, रमज़ान में दो या चार रकत नमाज़ को तरवीहा भी कहा जाता है; क्योंकि नमाज़ पढ़ने वाला इस नमाज़ देर तक (कयाम) खड़े रहते हैं और नमाज समाप्त करने के बाद आराम करने के लिए बैठ जाते हैं।[४]

महत्व और स्थान

रमज़ान मे नाफ़ला (मुस्तहब) नमाजो को अकेल या जमाअत के साथ पढ़ना शिया और सुन्नीयो के न्यायशास्त्रीय मतभेद है।[५]सुन्नी इस नमाज़ जमाअत के साथ पढ़ना वैध मानते हैं और हर साल रमज़ान के महीने की रातों को मस्जिद में जमाअत के साथ पढ़ते हैं।[६] लेकिन शिया विद्वानों और कुछ प्रमुख सुन्नी विद्वानों का मानना है कि इस नमाज को जमाअत के साथ पढ़ना विधर्म (बिदअत) है।[७]

सुन्नी मस्जिदों, विशेष रूप से मस्जिद अल-हराम और मस्जिद अल-नबी में रमज़ान की रातों में हर साल जमाअत के साथ तरावीह पढ़ी जाती है।

बिद्अत या सुन्नत?

सूत्रों के अनुसार, उमर बिन खत्ताब ने लोगों को 14 हिजरी में जमाअत के साथ तरावीह पढ़ने का आदेश दिया।[८] अब्दुर रहमान बिन अब्दु-कारी से बुखारी के कथन के अनुसार, उमर रात में मस्जिद गए और वहा लोगों को फ़ुरादा (अकेले) नमाज़ पढ़ते देखा तो उबैय बिन काब के नेतृत्व (इक़्तेदा) मे लोगों को जमाअत के साथ नमाज़ पढ़ने का आदेश दिया। फिर जब दूसरी रात उमर मस्जिद में गए और लोगों को जमाअत के साथ नमाज पढ़ते देखा, तो उसने (उमर बिन ख़त्ताब ने) कहा: "نِعمَ البِدعَةً هذِهِ नेअमल बिद्अतो हाज़ेहीः यह अच्छा नवाचार (बिद्अत) है"। [९]

उमर बिन खत्ताब ने मआज़ बिन हारिस,[१०] अबू बक्र बिन मुजाहिद[११] और सुलेमान बिन अबी हस्मा अदवी जैसे लोगो को तरावीह की नमाज़ पढ़ाने के लिए इमामे जमाअत नियुक्त किया।[१२]

सुन्नी न्यायशास्त्र के अनुसार तरावीह की नमाज़ एक मुस्तहब और सुन्नत बिद्अत है।[१३] अबू हामिद ग़ज़ाली ने बिद्अत को वांछनीय और अवांछनीय (पसंददीदा और नापसंद) में विभाजित करके तरावीह को वांछनीय बिद्अत माना है।[१४] हंबली फ़क़ीह इब्ने अबी याअला का मानना है कि उमर ने इस (तरावीह) सुन्नत को नहीं बनाया बल्कि पैगंबर (स) ने इस नमाज़ को सुन्नत बनाया है, जहां उन्होंने (पैगंबर (स)) ने फ़रमाया: अल्लाह ने रमजान के महीने के रोज़ा अनिवार्य (वाजिब) क़रार दिया है, और मैंने इस महीने मे क़याम अर्थात नमाज़ को सुन्नत बनाया है।[१५]

शिया न्यायविदों के अनुसार, रमज़ान के महीने में नाफ़ला नमाज़ फ़ुरादा (व्यक्तिगत-अकेले) पढ़ी जाती है[१६] और जमाअत के साथ नाफ़ला नमाज पढ़ना बिद्अत है[१७] पैगंबर (स) के दौर में यह नमाज़ जमाअत के साथ नहीं पढ़ी जाती थी।[१८] इमामिया विद्वानों की सहमति (इज्मा) के अनुसार, शेख़ तूसी ने रमज़ान की नाफ़ला नमाज़ो को जमाअत के साथ पढ़ना बिद्अत बताया है।[१९] अल्लामा मजलिसी के अनुसार, शिया विद्वान इस बात से सहमत हैं कि रमज़ान की नाफ़ेला नमाज जमाअत के साथ पढ़ना जायज़ नहीं है।[२०]

अहले-बैत (अ) की सीरत

इमाम सादिक़ (अ) की एक रिवायत के अनुसार जब हज़रत अली (अ) खिलाफत पर पहुँचे, तो उन्होंने अपने बेटे इमाम हसन (अ) से लोगों को जमाअत के साथ तरावीह पढ़ने से मना करने के लिए कहा। इमाम हसन (अ) के कलाम को सुनने के बाद लोगों ने वा उमरा कहकर विरोध किया;[२१] हज़रत अली (अ) ने भी सेना के पतन को रोकने के लिए ऐसा करना (जमाअत के साथ तरावीह पढ़ने का विरोध करना) बंद कर दिया।[२२]

ज़ुरारा, मुहम्मद बिन मुस्लिम और फ़ुजैल जैसे कई असहाब ने इमाम बाक़िर (अ) और इमाम सादिक़ (अ) से रमज़ान के महीने की नाफ़ला नमाज़ को जमाअत से पढ़ने के हुक्म के बारे में सवाल किया। उन्होंने ने पैगंबर (स) के जीवनकाल का हवाला देकर इस नमाज़ को जमाअत के साथ पढ़ना बिद्अत करार दिया।[२३] इसके अलावा इमाम रज़ा (अ) से रमज़ान के नवाफ़िल और रकअत के बारे में रिवायत मे पैगंबर (स) के कलाम का हवाला देते हुए, उन्होंने (इमाम रज़ा अ) ने फ़रमाया: नाफ़ला नमाज़ जमाअत के साथ नही पढ़ी जा सकती और पैगंबर (स) अपने जीवन के अंत तक नाफ़ला नमाज़ फुरादा पढ़ते थे।[२४]

अहकाम

तरावीह के कुछ नियम (अहकाम) इस प्रकार हैं:

  • जमाअत के साथ पढ़ना: इस संबंध मे कि तरावीह का जमाअत से पढ़ना वाजिब है,[२५] या मुस्तहब है[२६] और या यह कि जमाअत के साथ पढ़ना या फ़ुरादा (अकेले) पढ़ना वैकल्पिक (इख्तियारी) है, सुन्नी न्यायविदो (फ़ुक़्हा) मे मतभेद पाया जाता हैं।[२७] लेकिन जमाअत के साथ पढ़ने के लिए सुन्नीयो के प्रसिद्ध उलामा को जिम्मेदार ठहराया गया है।[२८] हनफ़ी न्यायविद कासनी ने जमाअत के साथ पढ़ना सुन्नते केफ़ाई माना हैं।[२९] मालेकी पेश्वा मालिक बिन अनस इस नमाज को फ़ुरादा और घर मे पढ़ना बेहतर मानते है।[३०] इब्ने असाकिर के अनुसार, अब्दुल रहमान बिन मुहम्मद बिन इदरीस (अबू मुहम्मद बिन अबी हातिम राज़ी)[३१] और मुहम्मद बिन इद्रीस शाफेई (150-204 हिजरी) जैसे लोग चार सुन्नी न्यायशास्त्रि तरावीह की नमाज़ व्यक्तिगत रूप से घर मे पढ़ा करते थे।[३२]
  • रक्आत की संख्या: तरावीह की रक्आत की संख्या के बारे में मतभेद है। इस विसंगति का कारण पैगंबर (स) से किसी हदीस का नही होना और इससे संबंधित असहाब के कथनों और कार्यों का हवाला है।[३३] अधिकांश सुन्नी न्यायविदों ने तरावीह की नमाज़ 20 रक्अत बताया है।[३४] अबू हनीफ़ा, शाफ़ेई और अहमद बिन हंबल ने भी रक्अतो की संख्या यही बताई है।[३५] लेकिन मालिक बिन अनस ने इसे 36 रकअत माना है।[३६] इस नमाज़ की रकअत की संख्या 11 से 47 भी बताई गई है।[३७] 11 रकअत मुसलमानों में अधिक प्रचलित हैं।[३८]
  • शिया मत के अनुसारः रमज़ान की नाफ़ला नमाज़ 1000 रकअत है, जो पहली 20 रातों में से प्रत्येक रात में 20 रकअत, आखिरी 10 रातों में से प्रत्येक रात में 30 रकअत और प्रत्येक शबे क़द्र मे 100 रकअत पढ़ी जाती है।[३९]
  • नमाज़ का समय: सुन्नियों के दृष्टिकोण से, तरावीह की नमाज़ रमज़ान की रातों में ईशा की नमाज़ के बाद से तुलूअ फ़ज्र तक पढ़ी जाती है।[४०] हनफ़ी, मालेकी और हनबली न्यायविदों के अनुसार, तरावीह की क़ज़ा नहीं है, लेकिन शाफ़ेई न्यायविदों का मानना है समय के बाद क़ज़ा की जा सकती है।[४१]

आज़ान और अक़ामत कहना,[४२] आवाज के साथ बिस्मिल्लाह पढ़ना[४३] और पैगंबर (स)[४४] पर सलवात भेजना इस नमाज़ के अन्य नियम (अहकाम) हैं। सुन्नी स्रोतो मे तरावीह के अहकाम बयान हुए हैं[४५] सरखसी (मृत्यु 483 हिजरी) ने अल-मब्सूत किताब में इस नमाज़ के लिए बारह अध्याय समर्पित किए हैं।[४६]

ख़त्मे क़ुरआन

कुछ सुन्नी बुजुर्गों ने तरावीह की रकत में क़ुरआन का पाठ पूरा करने की सलाह दी है। नमाज़ पढ़ने वाले तरावीह की रकात में कुरआन का पूरा पाठ (ख़त्मे क़ुरआन) के लिए कुरआन के रूकूओ का उपयोग करते हैं।[४७] कुछ लोग क़ुरआन के विभाजन मे रुकूओ को तरावीह से संबंधित मानते है।[४८]

मोनोग्राफ़ी

तरावीह से संबंधिक विभिन्न किताबें प्रकाशित हुई हैं। “सलात अल-तरावीह सुन्नत मशरूआ ओ बिदअतुन मोह्देदसा” जाफ़र बाक़री[४९] और “सलात अल-तरावीह बैनस सुन्नते वलबिदआ” नज्मुद्दीन तब्सी द्वारा लिखी गई कृतियों में से हैं।[५०]जिसमे शिया विद्वानो द्वारा तरावीह की समीक्षा और आलोचना की गई है।

इसके अलावा इमाम हेसामुद्दीन उमर बिन अब्दुलअज़ीज़ द्वारा "तरावीह",[५१] अब्दुल रहमान सयूती द्वारा लिखित "अल-मसाबीह फ़ी सलात अल-तरावीह",[५२] अली बिन अब्द काफ़ी सुब्की द्वारा "नूर अल-मसाबीह फ़ी सलात अल-तरावीह" अब्दुर रहमान बिन अब्दुल-करीम ज़ुबैदी द्वारा लिखित[५३] "इक़ामा अल-बुरहान अली क़मयाते अल-तरावीह फ़ी रमज़ान" है जोकि सुन्नियों द्वारा लिखी गई तरावीह से संबंधित रचनाऐं है।[५४]

फ़ुटनोट

  1. अब्दुर रहमान अब्दुल मुन्इम, मोजम अल-इस्तेलाहात व अल-फ़ाज़ अल-फ़िक़्हीया, दार अल-फ़ज़ीला, भाग 2, पेज 380; देखेः अल-मुस्तलेहात, पेज 1560 क़ुमी, जामे अल-ख़िलाफ़ व वेफ़ाक़, ज़मीने साज़ाने ज़हूर, पेज 119
  2. इब्ने असीर, अल-निहाया, 1364 शम्सी, भाग 2, पेज 274
  3. इब्ने मंज़ूर, लेसान अल-अरब, 1405 हिजरी, भाग 2, पेज 463; सुब्हानी, अल-इंसाफ़, 1423 हिजरी, भाग 1, पेज 383
  4. अब्दुर रहमान अब्दुल मुन्इम, मोजम अल-इस्तेलाहात व अल-फ़ाज़ अल-फ़िक़्हीया, दार अल-फ़ज़ीला, भाग 2, पेज 380; इब्ने मंज़ूर, लेसान अल-अरब, 1405 हिजरी, भाग 2, पेज 463; सुब्हानी, अल-इंसाफ़, 1423 हिजरी, भाग 2, पेज 463
  5. तब्मी वा रहबर, नमाज़े तरावीह, सुन्नत या बिदअत, पेज 18
  6. तब्मी वा रहबर, नमाज़े तरावीह, सुन्नत या बिदअत, पेज 18
  7. बिदअते तरावीह बे एतेराफ़ बुज़ुर्गाने अहले सुन्नत + तसावीर किताब, वेबगाह मोअस्सेसा तहक़ीक़ाते वली अस्र (अ)
  8. देखेः तिबरी, तारीखे तिबरी, मोअस्सेसा अल-आलमी, भाग 3, पेज 277; मसऊदी, मुरूज अल-ज़हब, 1404 हिजरी, भाग 2, पेज 252
  9. बुख़ारी, सहीह अल-बुख़ारी, 1401 हिजरी, भाग 2, पेज 252
  10. अल-मज़ी, तहज़ीब अल-कमाल, 1413 हिजरी, भाग 28, पेज 117; इब्ने अबी हातिम, अल-जर्ह वत तादील, 1372 हिजरी, भाग 8, पेज 246
  11. ख़तीब बगदादी, तारीखे बगदादी, 1417 हिजरी, भाग 2, पेज 162
  12. इब्ने हब्बान, अल-सेक़ात, 1393 हिजरी, भाग 3, पेज 161
  13. सब्की, फ़तावा अल-सब्की, दार अल-मारफ़ा, भाग 2, पेज 107
  14. ग़ज़ाली, एहया उलूम अल-दीन, दार अल-कुतुब अल-अरबी, भाग 3, पेज 113
  15. इब्ने अबि याला, तबक़ात अल-हनाबेला, दार अल-मारफ़ा, भाग 2, पेज 277
  16. शेख तूसी, अल-ख़िलाफ़, 1407 हिजरी, भाग 1, पेज 529
  17. काशेफ़ अल-ग़ेता, कश्फ़ अल-ग़िता, इंतेशारात महदवी, भाग 1, पेज 18; सुब्हानी, अल-इंसाफ़, 1423 हिजरी, भाग 1, पेज 391
  18. क़ुमी, सब्ज़वारी, जामे अल-ख़िलाफ़ वल वेफ़ाक़, ज़मीना साज़ान ज़हूर, पेज 119
  19. 19. तूसी, अल-ख़िलाफ़, 1407 हिजरी, भाग 16, पेज 387
  20. मजलिसी, मिरात अल-उक़ूल, 1404 हिजरी, भाग 16, पेज 378
  21. शेख तूसी, तहज़ीब अल-अहकाम, 1365 शम्सी, भाग 3, पेज 70; हुर्रे आमोली, वासइल अल-शिया, 1414 हिजरी, भाग 8, पेज 46
  22. कुलैनी, अल-काफ़ी, 1362 शम्सी, भाग 8, पेज 63; हुर्रे आमोली, वासइल अल-शिया, 1414 हिजरी, भाग 8, पेज 47
  23. शेख सदूक़, मन ला याहजेरो अल-फ़क़ीह, नशरे इस्लामी, भाग 2, पेज 137
  24. शेख तूसी, अल-इस्तिबसार, 1363 शम्सी, भाग 1, पेज 465; शेख तूसी, तहज़ीब अल-अहकाम,, 1365 शम्सी, भाग 3, पेज 65
  25. सब्की, फ़तावा अल-सब्की, दार अल-मारफ़ा, भाग 1, पेज 156
  26. राफ़ेई, फ़्तहुल अज़ीज़, दार अल-फ़िक्र, भाग 4, पेज 31
  27. अलअन्नोवी, अल-मजमूअ, दार-फ़िक्र, भाग 4, पेज 31
  28. सरख़सी, अल-मब्सूत, 1406 हिजरी, भाग 2, पेज 144
  29. कासानी, बदाए अल-सनाए फ़ी तरतीब अल-शराए, 1406 हिजरी, भाग 2, पेज 288
  30. देखेः सरख़सी, अल-मब्सूत, 1406 हिजरी, भाग 2, पेज 144
  31. इब्ने असाकिर, तारीख मदीना अल-दमिश्क़, 1415 हिजरी, भाग 51, पेज 394
  32. इब्ने असाकिर, तारीख मदीना अल-दमिश्क़, 1415 हिजरी, भाग 35, पेज 375
  33. नमाज़े तरावीह यकी अज़ इबादतहाए माहे रमज़ान अस्त, वेबगाह वा इस्लामाह
  34. देखेः अन्नोवी, रौज़ा अल-तालेबीन, दार अल-कुतुब अल-इल्मीया, भाग 1, पेज 437; अन्नोवी, अल-मजमूअ, दार अल-फ़िक्र, भाग 4, पेज 31; राफ़ेई, फ़त्ह अल-अज़ीज़, दार अल-फिक्र, भाग 4, पेज 264-265
  35. रेहाई, तरावीह, पेज 820
  36. सरख़्सी, अल-मब्सूत, 1406 हिजरी, भाग 2, पेज 144
  37. रेहाई, तरावीह, पेज 820
  38. नमाज़े तरावीह यकी अज़ इबादत हाए माहे रमज़ान अस्त, वेबगाह वा इस्लामाह
  39. तूसी, अल-खिलाफ़, 1407 हिजरी, भाग 1, पेज 530
  40. ज़मीरी, नमाज़े तरावीह अज़ दीदगाहे फ़रीक़ैन, पेज 132
  41. ज़मीरी, नमाज़े तरावीह अज़ दीदगाहे फ़रीक़ैन, पेज 132
  42. सरख्सी, अल-मब्सूत, 1406 हिजरी, भाग 1, पेज 134
  43. अन्नोवी, रौज़ा अल-तालेबीन, दार अल-कुतुब अल-इल्मीया, भाग 1, पेज 354
  44. मक़रीज़ी, इमताअ अल-अस्मा, 1420 हिजरी, भाग 11, पेज 133
  45. दमयाती, एआना अल-तालेबीन, 1418 हिजरी, भाग 1, पेज 307
  46. सरख्सी, अल-मब्सूत, 1406 हिजरी, भाग 2, पेज 143
  47. मुजाहेदी, तरावीह, पेज 743
  48. मुस्तफ़ीद, तक़सीमात क़ुरआनी वा सुवर मक्की वा मदनी, 1384 शम्सी, पेज 16
  49. बाक़ेरी, सलात अल-तरावीह सुन्ना मशरूअतुन ओ बिदअतुन मोहद्देसा, क़ुम, मरकज़े अल-अबहास अल-अक़ाइद, 1427 हिजरी
  50. तबसी, सलात अल-तरावीह बैनस सुन्नते वल बिदअ, क़ुम, 1420 हिजरी
  51. हाजी ख़लीफ़ा, कश्फ़ अल-ज़ुनून, दार एहया ए अल-तुरास अल-अरबी, भाग 2, पेज 1403
  52. हाजी ख़लीफ़ा, कश्फ़ अल-ज़ुनून, दार एहया ए अल-तुरास अल-अरबी, भाग 2, पेज 1702
  53. हाजी ख़लीफ़ा, कश्फ़ अल-ज़ुनून, दार एहया ए अल-तुरास अल-अरबी, भाग 2, पेज 1983
  54. बाशा बग़दादी, ईज़ाह अल-मकनून, दार एहयाए अल-तुरास अल-अरबी, भाग 1, पेज 110

स्रोत

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  • राफ़ेई, अब्दुल करीम, फ़्तह अल-अज़ीज़, दार अल-फिक्र
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  • सब्की, अली बिन अब्दुल काफ़ी, फ़तावा अल-सब्की, बैरूत, दार अल-मारफ़ा
  • सरख्सी, शम्सुद्दीन, अल-मब्सूत, बैरूत, दार अल-फिक्र, 1406 हिजरी
  • शाफ़ेई, मुहम्मद बिन इद्रीस, अल-अम, बैरूत, दार अल-फिक्र, 1403 हिजरी
  • शेख सदूक़, मुहम्मद, मन ला याहज़ेरोह अल-फ़क़ीह, शेधः अली अकबर गफ़्फ़ारी, क़ुम, जामे मुदर्रेसीन, अल-तबअ अल-सानीया, 1363 शम्सी
  • शेख तूसी, मुहम्मद, अल-इस्तिब्सार, शोधः हसन मूसवी, तेहरान, दार अल-कुतुब अल-इस्लामीया, चौथा संस्करण, 1363 हिजरी
  • शेख तूसी, मुहम्मद, अल-ख़िलाफ़, शोधः जमाअत मिनल मोहक़्क़्क़ीन, क़ुम, मोअस्सेसा अल-नश्र अल-इस्लामी, 1407 हिजरी
  • शेख तूसी, मुहम्मद, तहज़ीब अल-अहकाम फ़ी शरह अल-मुक़्नेआ लिश शेख अल-मुफ़ीद, शोधः हसन मूसवी, तेहरान, दार अल-कुतुब अल-इस्लामीया, चौथा संस्करण, 1365 शम्सी
  • ज़मीरी, मुहम्मद रज़ा, नमाज़े तरावीह अज़ दीदगाहे फ़रीक़ैन, पुज़ूहिश नामे हिकमत वा फ़लसफ़ा इस्लामी, (तुलूअ नूर), क्रमांक 10 व 11, ताबिस्तान वा पाईज़, 1383 शम्सी
  • तब्सी, नज्मुद्दीन वा मुहम्मद तक़ी रहबर, नमाज़े तरावीह, सुन्नत या बिदअत, मीक़ात हज, दौरा 9, क्रमांक 35, फरवरदीन, 1380 शम्सी
  • तब्सी, नज्मुद्दीन, सलात अल-तरावीह बैनल सुन्नते वल बिदअते, क़ुम, 1420 हिजरी
  • अब्दुर रहमान अब्दुल मुनइम, महमूद, मोजम अल-मुस्तलेहात वा अलफ़ाज़ अल-फ़िक़्हीया, क़ाहिरा, दार अल-फ़ज़ीला
  • ग़ज़ाली, मुहम्मद बिन मुहम्मद, एहया उलूम अल-दीन, शोधः अब्दुर रहीम बिन हसैन हाफ़िज़ इराक़ी, दार अल-कुतुब अल-अरबी
  • क़ुमी सब्ज़ावारी, अली बिन मुहम्मद, जामे अल-ख़िलाफ़ व अल-वेफ़ाक़ बैना अल-इमामीया व बैन आइम्मा अल-हेजाज़ व अल-इराक़, क़ुम, ज़मीने साज़ान ज़हूर, 1379 शम्सी
  • कासानी, अबु बक्र बिन मसऊद, बदाए अल-सनाए फ़ी तरतीब अल-शराए, दार अल-कुतुब अल-इल्मीया, अल-तबआतुस सानीया, 1406 हिजरी
  • काशेफ़ुल ग़ेता, जाफ़र, कश्फ़ अल ग़िता अन मुबहेमात अल-शरीया, शोधः अब्बास तबरीज़ान व ..., क़ुम, मकतब अल-आलाम अल-इस्लामी, 1422 हिजरी
  • कुलैनी, मुहम्मद बिन याक़ूब, उसूल अल-काफ़ी, तालीक़ अली अकबर गफ़्फ़ारी, दार अल-कुतुब अल-इस्लामीया, 1363 शम्सी
  • मुजाहेदी, फ़ातेमा, तरावीह, दाए रातुल मआरिफ बुजर्ग इस्लामी, भाग 14, मरकज़े दाएरातुल मआरिफ़ बुजुर्ग इस्लामी 1385 शम्सी
  • मजलीसी, मुहम्मद बाकिर, मिरात अल-उकूल फ़ी शरह अखबारे आले अल-रसूल, तेहरान, दार अल-कुतुब अल-इस्लामीया, दूसरा संस्करण, 1404 हिजरी
  • मुस्तफ़ीद, हमीद रज़ा व करीम दौलती, तक़सीमात क़ुरआनी व सुवर मक्की व मदनी, वज़ारत फ़रहंग वा इरशादे इस्लामी, 1384 शम्सी
  • मसऊदी, अली बिन हुसैन, मुरूज अल-ज़हब व मआदिन अल-जवाहिर, क़ुम, अल-हिजरा, दूसरा संस्करण, 1404 हिजरी
  • मक़रीज़ी, अहमद बिन अली, इमता अल-अस्मा बिन नबी मिनल अहवाले वाल अमवाले वा हिफ्दते वल मताए, शोधः मुहम्मद अब्दुल हमीद, बैरूत, दार अल-कुतुब अल-इल्मीया, 1420 हिजरी
  • नमाज़े तरावीह यकी अज़ इबादतहाए माहे रमज़ान अस्त, वेबगाह वा इस्लामाह, तारीख वीजीज 17 फ़रवरदीन 1402 शम्सी