सामग्री पर जाएँ

जानबूझकर रोज़ा तोड़ना

wikishia से
(रोज़ा तोड़ना से अनुप्रेषित)

जानबूझकर रोज़ा तोड़ना (फ़ारसी: روزه‌خواری) रमज़ान के महीने में बिना किसी शरई उज़्र के जानबूझकर रोज़ा तोड़ना इस्लाम में हराम और एक बड़ा गुनाह (गुनाहे कबीरा) माना जाता है। जो व्यक्ति जानबूझकर रोज़ा तोड़ता है, उस पर क़ज़ा (रोज़े की क़ज़ा) के अलावा कफ़्फ़ारा (प्रायश्चित) भी वाजिब हो जाता है। पहली और दूसरी बार रोज़ा तोड़ने पर 25 कोड़ों की सज़ा है। कुछ न्यायविदों के फ़तवे के अनुसार यदि किसी व्यक्ति को रोजा तोड़ने के अपराध में दो बार सजा दी जाती है और तीसरी बार वह जानबूझकर रोज़ा तोड़ता है, तो उसकी सज़ा मौत है।

इस्लामिक विद्वानों (फ़ोक़हा) का मत है कि सार्वजनिक रूप से जानबूझकर रोज़ा तोड़ना, चाहे कोई शरई उज़्र (वैध कारण) ही क्यों न हो, हराम (निषिद्ध) है और ऐसा करने वाला सज़ा का हक़दार है। कुछ इस्लामी देशों में सार्वजनिक रूप से जानबूझकर रोज़ा तोड़ना एक आपराधिक अपराध माना जाता है, जिसकी सज़ा में निम्नलिखित शामिल हो सकते हैं: जेल की सज़ा, कोड़े मारना (चाबुक की सज़ा), जुर्माना (आर्थिक दंड)।

जानबूझकर रोज़ा तोड़ने का अर्थ

जानबूझकर रोज़ा तोड़ना (रोज़ा-ख़्वारी) का अर्थ है रमज़ान के महीने में बिना किसी शरई उज़्र के रोज़ा न रखना।[] यह एक हराम और कबीरा गुनाह माना जाता है।[] इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) से एक रिवायत किताब काफ़ी में वर्णित हुई है जिसके अनुसार, जो व्यक्ति जानबूझकर अपना रोज़ा तोड़ता (नहीं रखता है), वह दीन से ख़ारिज हो जाता है।[]

फ़िक़्ही किताबों में रोज़ा तोड़ने (रोज़ा न रखने) के बारे में यह बताया गया है कि अगर कोई रमज़ान में जानबूझकर रोज़ा नहीं रखता और उसे हलाल समझे, तो वह मुर्तद (धर्मत्यागी) हो जाता है। यहाँ तक कि अगर वह रोज़ा न भी तोड़े, मगर उसे हलाल माने, तो भी वह मुर्तद की सज़ा का हक़दार है।[] फ़ोक़हा के फ़तवे के मुताबिक़, रोज़ा तोड़ने वाले पर क़ज़ा (रोज़े की क़ज़ा) के साथ-साथ कफ़्फ़ारा भी वाजिब होता है।[]

फ़ोक़हा का कहना है कि अगर कोई रोज़ा तोड़े, लेकिन उसे हलाल न समझे, तो उसे तअज़ीर (सज़ा) या हद (शरई सज़ा) दी जाएगी। पहली और दूसरी बार रोज़ा तोड़ने पर 25 कोड़ों की सज़ा बताई गई है।[] कुछ फ़ोक़हा के अनुसार, अगर तीसरी बार भी यही अपराध किया जाए, तो उसकी हद (सज़ा) मौत है, हालाँकि कुछ फ़क़ीह इससे सहमत नहीं हैं।[] रोज़ा तोड़ने वाले पर सज़ा के अलावा क़ज़ा और कफ़्फ़ारा भी वाजिब होता है।[]

खुलेआम रोज़ा तोड़ना और उसकी क़ानूनी सज़ा

शिया और सुन्नी फ़ोक़हा (धर्मशास्त्रियों) के अनुसार, खुलेआम रोज़ा तोड़ना, चाहे कोई शरई उज़्र (धार्मिक कारण) हो, जायज़ नहीं है। जो व्यक्ति जानबूझकर और सार्वजनिक रूप से रोज़ा तोड़ता है, वह सज़ा का हक़दार है।[] कुछ मुस्लिम देशों में खुलेआम रोज़ा तोड़ना एक अपराध माना जाता है,[१०] और इसके लिए सज़ाएँ जैसे जेल, कोड़े, जुर्माना, निर्वासन और कुछ मामलों में मौत की सज़ा भी दी जा सकती है।[११]

ईरान के इस्लामी दंड संहिता के अनुसार: खुलेआम रोज़ा तोड़ने की सज़ा 10 दिन से 2 महीने की जेल और 74 कोड़े हो सकते हैं।[१२] गैर-मुस्लिम जो ईरान में रहते हैं, उन्हें भी रमज़ान के महीने में सार्वजनिक रूप से खाने-पीने से बचना चाहिए, क्योंकि ईरान का क़ानून देश के सभी निवासियों पर लागू होता है।[१३]

जानबूझकर रोज़ा तोड़ने की सज़ा के लिए शर्तें

खुलेआम होना (सार्वजनिक रूप से) – रोज़ा तोड़ने पर सज़ा तभी लागू होती है जब यह सार्वजनिक रूप से (आम नज़रों के सामने) किया गया हो।[१४] दिखावा करने वाले को सज़ा – अगर कोई व्यक्ति जानबूझकर दिखावा करके रोज़ा तोड़ता है (जैसे लोगों के सामने खुलेआम खाना-पीना), तो उसे क़ानूनी अदालत के हवाले किया जाएगा।[१५]

फ़ुटनोट

  1. 1. सालेही, मआरिफ़ ए इस्लामी, खंड 27, पृष्ठ 15।
  2. दस्तग़ैब, गुनाहान ए कबीरा, खंड 1, पृष्ठ 27; इमाम ख़ुमैनी, "तहरीर अल वसीला", मोअस्ससा ए तंज़ीम व नश्र आसार ए इमाम ख़ुमैनी, खंड 1, पृष्ठ 258-259।
  3. कुलैनी, अल काफ़ी, 1407 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 278।
  4. मोअस्ससा ए दाइरातुल मआरिफ़ ए फ़िक़्ह इस्लामी, फ़र्हंग ए फ़िक़्ह, 1392 शम्सी, खंड 5, पृष्ठ 145-146; इमाम ख़ुमैनी, "तौज़ीह उल मसाइल (मोहश्शा)", 1424 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 494-495।
  5. नजफ़ी, जवाहिर अल कलाम, 1404 हिजरी, खंड 16, पृष्ठ 226; ख़ूई, "मौसूआ अल इमाम अल ख़ूई", 1418 हिजरी, खंड 21, पृष्ठ 305।
  6. तबातबाई यज़्दी, अल उर्वातुल वुस्क़ा, 1420 हिजरी, खंड 3, पृष्ठ 521-522।
  7. तबातबाई यज़्दी, अल उर्वातुल वुस्क़ा, 1420 हिजरी, खंड 3, पृष्ठ 522।
  8. इमाम ख़ुमैनी, "तौज़ीह उल मसाइल (मोहश्शा)", 1424 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 926। मोअस्ससा ए दाइरातुल मआरिफ़ ए फ़िक़्ह इस्लामी, "फ़र्हंग ए फ़िक़्ह फ़ारसी", 1385 हिजरी शम्सी, खंड 4, पृष्ठ 169।
  9. अल्लामा हिल्ली, "मुन्तहा अल मतलब", खंड 9, पृष्ठ 174-175। सर्ख़सी, "अल मब्सूत", 1414 हिजरी, खंड 24, पृष्ठ 32-33।
  10. ज़की ज़क्का और सलमानपूर, "बाज़ख़्वानी ए फ़िक़्ही व हुकूकी ए जर्म एंगारी ए तज़ाहुर बे रोज़ा ख़्वारी दर कानूने मजाज़ात ए इस्लामी ईरान व कुद जज़ाए अफ़ग़ानिस्तान" पृष्ठ 60।
  11. "मजाज़ाते रोज़ा ख़्वारी दर ईरान व साएरे किश्वरहाए इस्लामी" समाचार और विश्लेषणात्मक वेबसाइट "शर्क"।
  12. कानूने मजाज़ाते इस्लामी ईरान, किताब पंजुम, मोसव्विब साले, 1375 शम्सी।
  13. कानूने मजाज़ाते इस्लामी ईरान, किताब पंजुम, मोसव्विब साले, 1375 शम्सी।
  14. मूसवी आज़ादेह और सहयोगियों, "ताअम्मोली बर रोज़ा ख़्वारी दर रवाय ए क़ज़ाई" फ़ेले मुजरेमानेह या फ़ेले हराम?" पृष्ठ 544।
  15. मूसवी गुलपायगानी, "मजमा अल मसाइल", 1409 हिजरी, खंड 3, पृष्ठ 215।

स्रोत

  • इमाम खुमैनी, सय्यद रुहुल्लाह, तहरीर अल वसीला, तेहरान, मोअस्सास ए तंज़ीम व नश्र आसारे इमाम खुमैनी, बिना तारीख़।
  • इमाम खुमैनी, सय्यद रुहुल्लाह, तौज़ीह उल मसाएल (मोहश्शा), मुहम्मद हसन बनी हाशमी खुमैनी के प्रयासों से, क़ुम, इस्लामिक प्रकाशन, बिना तारीख़।
  • ख़ूई, सय्यद अबुल क़ासिम, मौसूआ अल इमाम अल ख़ूई, क़ुम, मोअस्सास ए एहया आसार अल इमाम अल ख़ूई, पहला संस्करण, 1418 हिजरी।
  • दस्तग़ैब, सय्यद अब्दुल हुसैन, गुनाहाने कबीरा, क़ुम, इस्लामिक प्रकाशन कार्यालय।
  • ज़की ज़क्का, अहमद और अब्बास सलमानपुर, "बाज़ख़्वानी फ़िक़ही व हुक़ूक़ी जुर्म एंगारी तज़ाहुर बे रोज़ा ख़्वारी दर क़ानूने मजाज़ाते इस्लामी ईरान व कुद जज़ाए अफ़्ग़ानिस्तान", इस्लामी देशों के तुलनात्मक कानून अध्ययन के त्रैमासिक जर्नल, संख्या 3, 1402 हिजरी।
  • सर्खसी, मुहम्मद बिन अहमद, अल मब्सूत, बेरूत, दार उल मारेफ़ा, 1414 हिजरी।
  • सालेही, नादे अली, मआऱिफ़े इस्लामी, क़ुम, दफ़्तरे तब्लीग़ाते इस्लामी हौज़ ए इल्मिया क़ुम।
  • तबातबाई यज़्दी, सय्यद मुहम्मद काज़िम, अल उर्वातुल वुस्क़ा, क़ुम, मोअस्सास ए अल नश्र अल इस्लामी, 1420 हिजरी।
  • अल्लामा हिल्ली, हसन बिन यूसुफ़, मुन्तहा अल मतलब फ़ी तहक़ीक़ अल मज़हब, मशहद, मजमा अल बोहूस अल इस्लामिया, 1412 हिजरी।
  • क़ानूने मजाज़ाते इस्लामी जमहूरी ए इस्लामी ए ईरान, मरकज़े पजोहिशहाए मजलिस, मोसव्विब 1392 शम्सी।
  • कुलैनी, मुहम्मद बिन याक़ूब, अल काफ़ी, सुधार: अली अकबर ग़फ़्फ़ारी और मुहम्मद आखुंदी, तेहरान, दार अल कुतुब अल इस्लामिया, 1407 हिजरी।
  • "मजाज़ाते रोज़ा ख़्वारी दर ईरान व साएर किश्वरहाए इस्लामी", शर्क विश्लेषणात्मक समाचार साइट में शामिल, लेख प्रविष्टि तिथि: 31 उर्दबहिश्त, 1398 शम्सी, देखे जाने की तिथि: 3 इस्फंद, 1403 शम्सी।
  • मौसूआ दाएरतुल मआरिफ़ अल फ़िक़्ह अल इस्लामी, फ़र्हंगे फ़िक़ह मुताबिक़ ए मज़हब ए अहले बैत (अ) क़ुम, मोअस्सास ए दाएरतुल मआरिफ़ फ़िक़्हे इस्लामी, 1387 शम्सी।
  • मूसवी आज़ादेह, सैयद रज़ा और इमान इस्फंदियार और सैयद हामिद रिज़वी, "तअम्मोली बर रोज़ा ख़्वारी दर रोया ए क़ज़ाई, फ़ेले मुजरेमाने या फ़ेले हराम?", कानूनी संस्कृति त्रैमासिक, संख्या 11, 1401 शम्सी।
  • मूसवी गोलपायगानी, सय्यद मुहम्मद रज़ा, मजमा अल मसाइल, क़ुम, दार अल कुरआन अल करीम, 1409 हिजरी।
  • नजफ़ी, मुहम्मद हसन, जवाहिर अल कलाम फ़ी शरहे शराए अल इस्लाम, अब्बास क़ूचानी और अली आखुंदी द्वारा संपादित, बेरूत, दार इह्या अल तोरास अल अरबी, 7वां संस्करण, 1404 हिजरी।