वुज़ू
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| कुछ अमली व फ़िक़ही अहकाम |
| ● बुलूग़ ● न्यायशास्त्र ● शरई अहकाम ● तौज़ीहुल मसायल ● वाजिब ● हराम ● मुस्तहब ● मुबाह ● मकरूह ● नीयत ● क़स्दे क़ुरबत ● नए मसायल |
वुज़ू (अरबी: الوضوء) चेहरे और हाथों को धोने के साथ-साथ सिर और पैरों को क़स्दे क़ुरबत से और विशेष अनुष्ठानों के साथ मसह करने को कहते है। अपने आप में वुज़ू मुस्तहब है; लेकिन नमाज़, तवाफ़ और कुछ दूसरी इबादतों के सही होने की शर्त उनको वुजू के साथ अंजाम देना है। वुज़ू के बिना क़ुरआन की पंक्तियों और खुदा के नाम को छूना जायज़ नहीं है। मस्जिद में जाने और पवित्र कुरआन का पाठ (तिलावत) करने के लिए वुज़ू मुस्तहब है। ऐतिहासिक स्रोतों के अनुसार, वुज़ू का हुक्म पैग़म्बर (स) की बेअसत के शुरूआती दिनों में मक्का मे आया। सूर ए माएदा की छठी आयत और मासूमीन (अ) की 400 से अधिक हदीसें वुजू के बारे में हैं। हदीसों में वुज़ू और कहीं (कुछ हदीसों में) वुज़ू के नवीनीकरण को पापो से क्षमा, क्रोध का ख़त्म होना, दीर्घायु, महशर में चेहरे की चमक और जीविका में वृद्धि का कारण कहा जाता है।
वुज़ू को दो तरीको अर्थात तरतीबी और इरतेमासी से किया जा सकता है। तरतीबी वुज़ू मे सबसे पहले चेहरा धोया जाता है, फिर हाथ धोए जाते हैं और उसके बाद सिर और पैर का मस्ह किया जाता हैं। इरतेमासी वुज़ू भी तरतीबी वुज़ू के समान है, केवल चेहरे और हाथों को धोने के बजाय, उन्हें पानी में डुबाते हुए वुज़ू की नियत की जाती है, और फिर सिर और पैरों का मसह किया जाता है। अगर घाव को खोलना मुश्किल हो या वह हानिकारक हो तो जबीरा वुज़ू करना चाहिए।
शियों और सुन्नियों में हाथ धोने और सिर और पैरों पर मस्ह करने के तरीके के बारे में भी मतभेद हैं; शिया ऊपर से नीचे तक हाथ धोना वाजिब मानते हैं, लेकिन सुन्नी नीचे से ऊपर तक हाथ धोने में विश्वास करते हैं। हदीसी सूत्रों के अनुसार, उमर बिन खत्ताब के खिलाफत के अंत तक, मुसलमानों के बीच वुज़ू करने में कोई बड़ा अंतर नहीं था, और उन सभी ने एक ही तरह (इमामीया तरीक़े) से वुज़ू करते थे। इस्लामी स्रोतों मे शिया और सुन्नी के बीच वुज़ू करने मे मतभेद की सूचना तीसरे खलीफा के शासन काल से मिलती है।
परिभाषा
वुज़ू, चेहरे और हाथों को धोना है और सिर और पैरों को एक विशेष तरीके से क़स्दे क़ुरबत के साथ मसा करना है।[१] वुज़ू नमाज़ और तवाफ़ (परिक्रमा) के सही होने के लिए और कुरआन के लेखन को छूने के जायज़ होने के लिए शर्त है।[२]
ऐतिहासिक स्रोतों के अनुसार, मक्का में पैगंबर की बेअसत की शुरुआत में जिब्राईल द्वारा पैगंबर (स) को वुज़ू करना बताया गया और पैगंबर (स) ने इसे लोगों को सिखाया।[३]
अहकाम
- मुख्य लेखः आय ए वुज़ू
कुरआन और हदीसों में वुज़ू करने की विधि और इसके महत्व का उल्लेख किया गया है।[४] वुज़ू करने का हुक्म सूरा ए माएदा की छठी आयत मे आया है। इसीलिए इस आयत को आय ए वुजू कहा जाता है।[५]
یا أَیُّها الَّذینَ آمَنوا إِذا قُمتُم إِلَی الصَّلاةِ فَاغسِلوا وُجوهَكُم وَ أَیدیَكُم إِلَی الْمَرافِقِ وَ امسَحوا بِرُءُوسِكُم وَ أَرجُلَكُم إِلَی الكَعبَینِ या अय्योहल लज़ीना आ-मनू इज़ा क़ुमतुम एलस्सलाते फ़ग़्सिलू वुजू-हकुम वा एयदीयकुम इलल मराफ़िक़े वमसहू बेरऊसेकुम वा अरजोलकुम इलल काबैन
अनुवाद, हे ईमान वालो, जब तुम नमाज़ के लिए खड़े हो तो अपना चेहरा और हाथ कोहनियों के साथ धोओ और अपने सिर और पैरो को टखनों तक मसा करो।[६]
अपने आप में वुज़ू करना मुस्तहब है[७] जनाज़े की नमाज को छोड़कर दूसरी नमाज़ पढ़ने, तवाफ़ करने, कुरआन की पंक्तियों और अल्लाह के नाम को छूने के लिए वुज़ू वाजिब है।[८] वाजिब एहतियात की बिना पर पैग़म्बर (स), आइम्मा (अ) और हज़रत ज़हरा (स) के नाम को छूने के लिए भी वुज़ू करना चाहिए।[९] मस्जिद और इमामों के मज़ार पर जाना, क़ुरआन की तिलावत करने और साथ मे रखने के लिए, शरीर के किसी अंग को क़ुरआन के कवर या हाशिए तक ले जाने के लिए और इसी तरह क़बिस्तान की ज़ियारत के लिए वुज़ू करना मुस्तहब है।[१०]
वुज़ू की शर्तें
- वुज़ू का पानी पाक (शुद्ध) हो, नापाक (नजिस) न हो।
- वुज़ू का पानी मुज़ाफ़ (मिलावट वाला) न हो, जैसे गुलाबजल, शरबत आदि।
- वुज़ू का पानी और जगह ग़स्बी न हो यानी बिना इजाज़त के इस्तेमाल न किया गया हो।
- वुज़ू का बर्तन हलाल (जायज़) हो, चोरी का या हराम तरीके से हासिल न किया गया हो।
- वुज़ू का बर्तन सोने-चाँदी का न हो।
- वुज़ू के अंग पाक हों, कोई नेजासत न लगी हो।
- पानी को अंगों तक पहुँचने में कोई रुकावट न हो,
- नीयत सही हो, सिर्फ अल्लाह के लिए और दिखावे (रिया) से बचकर।
- क्रम (तरतीब) का ध्यान रखना।
- मवालात (लगातार) बनाए रखना, अंगों को धोने में इतना अंतर न हो कि पहला अंग सूख जाए।
- खुद वुज़ू करना, दूसरों की मदद न लेना (जब तक ज़रूरी न हो)।
- वुज़ू से नुकसान न हो, अगर पानी से कोई बीमारी या नुकसान होता हो, तो वुज़ू जायज़ नहीं।
- वुज़ू के लिए वक्त हो।[११]
वुज़ू के प्रकार
वुज़ू तरतीबी या इरतेमासी किया जा सकता है[१२] और कुछ विशेष परिस्थितियों में वुजू जबीरा तरीके से करना आवश्यक है।[१३]
तरतीबी वुज़ू
तरतीबी वुज़ू: एक हाथ की चौड़ाई मे बाल उगने की जगह से लेकर ठोड़ी के अंत तक पहले चेहरा धोना चाहिए। फिर दाहिने हाथ को उसके बाद बाएं हाथ को कोहनी से थोड़ा ऊपर से अंगूठे तक धोया जाता है। उसके बाद हाथ धोने से बची हुई नमी से सिर के अगले भाग पर माथे के ऊपर मसा किया जाता है, और फिर उसी नमी से दाहिने उसके बाद बाएं पैर पर मसा किया जाता है।[१४]
इरतेमासी वुज़ू
- मुख्य लेखः इरतेमासी वुज़ू
इरतेमासी वुजू का अर्थ है कि व्यक्ति नीयत के बाद[१५] वुजू की नियत से अपना चेहरा और फिर हाथ पानी में डालता है।[१६] इरतेमासी वुज़ू करने का दूसरा तरीक़ा यह है कि पहले चेहरे को और फिर हाथो को पानी मे डाले फिर वुज़ू की नियत करे उसके बाद बाहर निकाल ले।[१७] चेहरे और हाथों को धोने के बाद मसह किया जाता है।[१८] इरतेमासी वुज़ू में भी गैर-इरतेमासी वुज़ू की तरह क्रम (तरतीब) का पालन करना ज़रूरी है पहले चेहरा, फिर दायाँ हाथ और उसके बाद बायाँ हाथ धोया जाता है।[१९]
जबीरा वुज़ू
जबीरा वुज़ू: अगर वुज़ू में धोए या मसा किए जाने वाले किसी हिस्से में घाव या फ्रैक्चर हो और उसे धोया या मसा न किया जा सके, तो सामान्य रूप से वुज़ू किया जाए और घायल या टूटे हुए हिस्से को धोने या मसा करने के बजाय भीगा हुआ हाथ जबीरा के ऊपर फेरा जाए[२०] जबीरा, उस पट्टी या उस कपड़े को कहा जाता है जो घाव को बंद करने के लिए उपयोग किया जाता है।[२१] जबीरा वुज़ू उस स्थिति मे जायज़ है जब जबीरा को खोलना मुशकिल हो या कोई नुक़सान हो या सीधे घाव या फ़ैक्चर पर पानी नही डाला जा सकता हो।[२२]
कुछ मामलों में, वुज़ू के बजाय तयम्मुम वाजिब होता है; उदाहरण के लिए, यदि नमाज़ का समय इतना कम है कि वुज़ू करना इस बात का कारण बनता है कि पूरी नमाज़ या आंशिक नमाज़ समय के बाद पढ़नी पड़ेगी।[२३] इसी तरह, जहाँ पानी उपलब्ध नहीं है या पानी शरीर के लिए हानिकारक है, तयम्मुम का वुज़ू के बदले किया जाता है।[२४]
ग़ुस्ल से वुज़ू की पर्याप्तता
शिया मरज ए तक़लीद के फ़तवे के अनुसार: अगर कोई ग़ुस्ले जनाबत कर लेता है, तो उसे नमाज़ के लिए अलग से वुज़ू करने की ज़रूरत नहीं। ग़ुस्ल ही वुज़ू के बदले काफी है। हालांकि क्या अन्य गुस्ल वुज़ू की जगह काफ़ी है, इस के बारे में शिया फ़ोक़हा की कई राय हैं। साहिब जवाहिर (मृत्यु: 1266 हिजरी) के अनुसार, मशहूर राय यह है कि अन्य गुस्ल वुज़ू के लिए काफ़ी नहीं हैं व नमाज़ के लिए वुज़ू करना होगा।[२५] इमाम ख़ुमैनी का फ़तवा भी यही है।[२६] आयतुल्लाह मक़ारिम शिराज़ी के अनुसार, सभी वाजिब (अनिवार्य) और मुस्तहब ग़ुस्ल जो प्रमाणित हैं (जैसे ग़ुस्ले जुमा) वुज़ू की जगह काफ़ी हैं। हालाँकि, जनाबत के अलावा दूसरे ग़ुस्ल के बाद वुज़ू करना एहतियाते मुस्तहब है।[२७]
वुज़ू कैसे बातिल होता है?
- मुख्य लेख: मुबतेलाते वुज़ू
वुज़ू कुछ चीजो को अंजाम देने से बातिल हो जाता है, उनमें से कुछ निम्नलिखित हैं:
- मनुष्यों से मूत्र, मल या वायु का उत्सर्जन।
- नींद (ताकि कान सुन न सकें और आंखें देख न सकें), दीवानगी, मस्ती और बेहोशी।[२८]
- ऐसा काम करना जो ग़ुस्ल का कारण बनता हैं; जैसे जनाबत या मुर्दों को छूना इत्यादि।[२९] न्यायशास्त्रीय स्रोतों में, मुबतिलाते वुज़ू (वुज़ू को बातिल करने वाली चीजे) को हदसे असगर कहा जाता है;[३०] फ़ाज़िले मिक़दाद के अनुसार, कुछ सुन्नी फ़ुक्हा का मानना है कि पुरुष और गैर महरम महिला के बीच त्वचा का संपर्क वुज़ू को बातिल कर देता है। और इस बात का प्रमाण किसाई है। उन्होने أَوْ لامَسْتُمُ النِّسا "ओ लामसतुम अन-निसा"[३१] आयत मे लामसतुम के स्थान पर लमसतुम पढ़ा। लेकिन शिया फ़ुक्हा के अनुसार "लामस्तुम" शारीरिक संबंध बनाने की ओर इशारा है।[३२]
शिया और सुन्नी के बीच वुज़ू मे अंतर
- मुख्य लेखः वुज़ू की आयत, जूते पर मसह
वुज़ू के अहकाम में, शियों और सुन्नियों के बीच हाथ धोने और सिर और पैरों का मसा करने के तरीके में मतभेद है।[३३]
शिया और सुन्नियों के बीच वुज़ू के बारे में मतभेद ज्यादातर सूरह माएदा की छठी आयत و أیدیکم إلی المرافق वा अयदीयाकुम एलल मराफ़िक़ के अर्थ की व्याख्या में अंतर या इसके पढ़ने में अंतर के कारण हैं।[३४] मासूमीन (अ)[३५] की रिवायतो के आधार पर शिया विद्वान उपरोक्त आयत मे संप्रदाय के विपरीत हाथो को ऊपर से नीचे की ओर धोने को वाजिब मानते है जबकि सुन्नी विद्वान हाथो को नीचे से ऊपर की ओर धोने मे विश्वास करते है।[३६]
इसी तरह शिया फ़ुक्हा के नियम अनुसार, प्राथमिकता के आधार पर दाहिने हाथ को बाएं हाथ से पहले धोना चाहिए।[३७] जबकि सुन्नी विचारधाराओं में इस अमल को मुस्तहब माना जाता है।[३८]
चारो सुन्नी संप्रदाय वुज़ू में टखनों सहित पैरों का धोना वाजिब मानते हैं,[३९] शिया पैर की उंगलियों के सिरे से पैर के ऊपर तक मसा करने में विश्वास करते हैं।[४०] शिया न्यायशास्त्र के अनुसार, यह मसा सिर के मसा की तरह वुज़ू की नमी से होना चाहिए।[४१] मालेकी और हनफ़ी संप्रदाय तरतीब और हनफ़ी और शाफ़ेई मवालात को वुज़ू मे वाजिब नही मानते। लेकिन शिया और अहले-सुन्नत के अन्य संप्रदाय तरतीब और मवालात का पालन करना वाजिब मानते हैं।[४२]
सिर का मसा करने को लेकर शियों और सुन्नियों में मतभेद हैं; उनमें से एक यह है कि शियों के अनुसार, सिर का मसा इस तरह करना कि मसा कहलाए काफ़ी है, और अधिकांश रूप से यह मुस्तहब है कि तीन बंद उंगलियों के आकार का हो उससे अधिक नहीं होना चाहिए।[४३] और इसी तरह शिया फिक्ह के अनुसार सर का मसा वुज़ू के पानी से किया जाए नाकि नए पानी से मसा करे।[४४] हालांकि सिर का मसा करने के बारे में सुन्नी संप्रदायों के अलग-अलग मत हैं,[४५] हनबली न्यायशास्त्र के अनुसार, दोनों कानों सहित पूरे सिर का मसा करना वाजिब है,[४६] और सिर का मसा करने के लिए नए पानी का इस्तेमाल किया जाए।[४७]मालेकी न्यायशास्त्र में, पूरे सिर का मसा किया जाना चाहिए[४८] और हनफी न्यायशास्त्र में, सिर के एक चौथाई हिस्से का मसा करना वाजिब है।[४९] शाफ़ेई की फ़िक्ह के अनुसार, सिर के कम से कम भाग पर नए पानी से मसा करना काफी है।[५०]
जूते पर मसा करना मतभेद का एक दूसरा मामला है जिसे शिया सही नहीं मानते हैं[५१] और उन्होंने इस बात के लिए सूरह माएदा की आयत न 6 और हदीसों का हवाला दिया है।[५२] कुछ मामलों में, वुज़ू तक़य्या के साथ जुड़ा हुआ है: इमाम काज़िम (अ) ने अली इब्ने यक़्तीन -जिनका अब्बासी खिलाफत में एक विशेष स्थान था- के पत्र के जवाब में, उन्हें सुन्नियों की तरह वुजत़ू करने के लिए बाध्य किया, ताकि हारुन अल-रशीद को पता नहीं चले कि वह शिया है।[५३] इमाम काज़िम (अ) ने पहले अली इब्ने यक़्तीन को अब्बासी सरकार में रहने और शियों की सेवा करने के लिए कहा।[५४] जबकि आप (अ) से दूसरे शियों को अब्बासीयो के साथ सहयोग करने से मना किया था।[५५]
उस्मान के शासन से वुज़ू में मतभेद की शुरुआत
कुछ विद्वानों का मानना है कि पैग़म्बर (स)[५६] के समय में मुसलमानों में वुजू करने में कोई अंतर नहीं था और पैगंबर (स) वुज़ू मे अपने पैरों को धोने के बजाय मसा करते थे। पैगंबर के समय के अलावा, अबू बक्र की खिलाफ़त मे भी वूज़ू के बारे में कोई विवाद का उल्लेख नहीं किया गया है।[५७] उमर बिन खत्ताब की खिलाफत मे जुराब पर मसा करने को छोड़कर,[५८] वुज़ू के बारे में मतभेद का संकेत देने वाला कोई वर्णन नहीं है।[५९]
कंज़ उल-उम्माल[६०] और कुछ अन्य स्रोतों में जो कहा गया है, उसके आधार पर,[६१] कुछ शोधकर्ताओं का मानना है कि तीसरे खलीफा (उसमान) के समय से मुसलमानों के बीच वुज़ू में अंतर ज़ाहिर हुआ है।[६२] सय्यद अली शहरिस्तानी ने इमाम अली (अ) और उमर बिन खत्ताब के बीच मसा करने के अंतर का हवाला देते हुए, उनका मानना है कि उस्मान बिन अफ्फान के विपरीत, दूसरे ख़लीफ़ा भी वुज़ू मे पैर धोने के बजाए मसा करते थे।[६३]
वुज़ू की आयत और वुज़ू से संबंधित हदीसो के आधार पर शियों का मानना है कि पैगंबर (स) और उनके असहाबे इमामिया की तरह वुज़ू मे अपने पैरों का मसा करते थे ना कि सुन्नीयो की तरह धोते थे।[६४] हाथ धोने के बारे में भी पैगंबर (स) से रिवायत का वर्णन हुआ हैं। कि पैगंबर (स) का वुज़ू शियों के समान है, और हाथो को ऊपर से नीचे तक हाथ धोते थे।[६५] शियों के अनुसार, पैर धोने वाली रिवायते जिन्हे सुन्नि प्रमाणित करते है वह सभी रिवायते प्रमाणिकता कमजोर और निराधार है; इस तथ्य के अतिरिक्त ये रिवायते वुज़ू की आयत से टकराती है।[६६]
आदाब, मुस्तहब्बात और फ़ज़ाइल
वुज़ू के दौरान कई चीज़ों को मुस्तहब माना गया है;
- वुज़ू से पहले ब्रश करना: पैगंबर (स) ने इमाम अली (अ) को अपनी वसीयत में हर वुज़ू से पहले ब्रश करने की सलाह दी।[६७]
- वुज़ू के आरंभ में अल्लाह का नाम लेना[६८]
- कुल्ली करना और नाक में पानी डालना[६९]
- वुज़ू के हर अंग को धोते समय पूरी तन्मयता और अल्लाह की याद में करें (हुज़ूरे क़ल्ब)।
- वुज़ू के दौरान सूर ए क़द्र पढ़ना
- वुज़ू के बाद आयतुल कुर्सी पढ़ना
वुज़ू करते समय पानी का बर्तन दाईं ओर रखना।[७०] रिवायतों के अनुसार, इमाम अली (अ) वुज़ू के दौरान दुआऐं पढ़ते थे। उन रिवायतो के अनुसार, जो कोई भी वुज़ू करते समय इन दुआओं को पढ़ता है, अल्लाह उसके वुज़ू के पानी की हर बूंद से अल्लाह की तस्बीह, तक़दीस करता हुआ एक फरिश्ता पैदा करता है, जो क़यामत के दिन तक वुज़ू करने वाले व्यक्ति के लिए सवाब लिखता है।[७१] वुज़ू के दौरान पढ़ी जाने वाली दुआए निम्नलिखित हैः
- दाहिने हाथ से बाएं हाथ पर पानी डालते समयः " الْحَمْدُ للَّهِ الذی جَعَلَ الْماءَ طَهُوراً وَ لَمْ یَجْعلْه نَجِساً؛ अल्हमदो लिल्लाहिल लज़ी जाअलल माआ तहूरन वलम यजअलहो नजिसा " अनुवादः प्रशंसा और धन्यवाद अल्लाह का है जिसने पानी को शुद्ध और शुद्ध करने वाला बनाया और उसे अशुद्ध नहीं बनाया।[७२]
- तहारतः " اللَّهُمّ حَصِّنْ فَرْجی و أعِفّهُ وَ َ اسْتُر عَوْرتی و حَرّمنی عَلى النّار अल्लाहुम्मा हस्सिन फ़रजी वा आइफ़्फ़हू वस्तुर औरती वा हर्रिमनी अलन्नार" अनुवादः खुदाया ! मेरे गुप्तांगों को हराम से सुरक्षित रख और इसे पवित्र कर और इसे ढक दे और आग को इस पर हराम कर दे।[७३]
- नाक मे पानी डालते समयः "اللّهم لا تحرّم عليّ ريح الجنّة و اجعلني ممّن يشمّ ريحها و طيبها و ريحانها अल्लाहुम्मा ला तोहर्रिम अलय्या रीहल जन्नते वजअलनी मिम मन यशुम्मो रीहाहा वा तय्यबहा वा रीहाहा " अनुवादः परवरदिगारा ! मेरे लिए जन्नत की खुश्बू को हराम क़रार न दे और मुझे उन लोगों में से एक बना जो इसकी खुश्बू और सुगंध और इसके सुगंधित पौधों को सूंघते हैं।[७४]
- कुल्ला करते समयः " اللّهمّ أنطق لساني بذكرك و اجعلني ممّن ترضى عنه अल्लाहुम्मा अनतिक़ लेसानी बेज़िकरिका वजअलनी मिम मन तरज़ा अन्हो" अनुवादः खुदाया ! अपनी याद में मेरी ज़बान को खोल दे और मुझे उन लोगों में से बना जिनसे तू राज़ी है।[७५]
- चेहरा धोते समयः " اللّهم بيّض وجهي يوم تسودّ فيه الوجوه و لا تسوّد وجهي يوم تبيضّ فيه الوجوه अल्लाहुम्मा बय्यिज़ वज्ही यौमा तस्वद्दो फीहिल वुजूह वला तस्वद्दो वज्ही यौमा तोबय्येज़ो फ़ीहिल वुजूह " अनुवादः खुदाया ! जिस दिन लोगो के चेहरे काले होंगे उस दिन मेरा चेहरा उज्जवल कर देना, और जिस दिन चेहरे उज्जवल होगे उस दिन मेरा चेहरा काला न करना।[७६]
- दाहिना हाथ धोते समयः "اللّهمّ أعطني كتابي بيميني و الخلد بيساري अल्लाहुम्मा आतेनी किताबी बेयमीनी वल ख़ल्दा बेयसारी " अनुवादः खुदाया ! मेरे कर्मो की किताब मेरे दाहिने हाथ मे और अब्दी जावेदानगी (अनन्त अमरता) को मेरे बाएं हाथ मे देना।[७७]
- बायां हाथ धोते समयः "اللّهمّ لا تعطني كتابي بشمالي و لا تجعلها مغلولة إلى عنقي و أعوذ بك من مقطّعات النّيران अल्लाहुम्मा तोअतिनी किताबी बेशुमाली वला तज्अल्हा मग़लूलतन ऐला ओनोक़ी वा आऊज़ो बिका मिन मुक़त्तिआतिन नीरान " अनुवादः खुदाया ! मेरे कर्मो की किताब मेरे बाए हाथ मे ना देना और उसको मेरी गर्दन मे ना बाधना और मैं उग्र कपड़ों से तेरी शरण लेता हूं।[७८]
- सिर का मसा करते समयः " اللّهمّ غشّني برحمتك و بركاتك و عفوك، اللهم غشّني برحمتك و بركاتك و عفوك अल्लाहुम्मा ग़श्शेनी बेरहमतेका वा बरकातेका वा अफ़वेका, अल्लाहुम्मा ग़श्शेनी बेरहमतेका वा बरकातेका वा अफ़वेका " अनुवादः खुदाया ! मुझे अपनी रहमत, नेमत और बख़्शिश से ढांप ले।[७९]
- पैर का मसा करते समयः " اللّهمّ ثبّت قدميّ على الصّراط يوم تزلّ فيه الأقدام و اجعل سعيي فيما يرضيك عنّي अल्लाहुम्मा सब्बित कदमी अलस सिराते यौमा तज़ुल्लो फ़ीहिल अक़दामे वज्अल सायी फ़ीमा यरज़ीका अन्नी " अनुवादः खुदाया ! उस दिन मेरे कदमों को उस रास्ते पर दृढ़ कर जब कदम फिसल जाएंगे, और मेरे प्रयासों को उसमें लगा जो तुझे राज़ी और संतुष्ट करे।[८०]
शिया और सुन्नी हदीसी स्रोतों में वुज़ू के अहकाम, उसकी विशेषताओं और फ़ज़ाइलो के बारे में पैगंबर (स) और शिया इमामों से 400 से अधिक हदीसे वर्णित है।[८१] इस आधार पर वुज़ू को पापो से क्षमा,[८२] क्रोध समाप्त करने के लिए,[८३] दीर्घायु,[८४] महशर में चेहरे की चमक,[८५] और जीविका में वृद्धि[८६] का कारण कहा जाता है। इसी तरह रिवायतों मे वुज़ू के नवीनीकरण (तज्दीदे वुजू) की फ़ज़ीलत[८७] और इसी तरह वुज़ू को पश्चाताप के रूप में भी वर्णित किया गया है।[८८]
संबंधित लेख
फ़ुटनोट
- ↑ फ़ल्लाह ज़ादे, अहकामे दीन, 1386 शम्सी, पेज 44-45; हुसैनी दश्ती, वुज़ू, दर मआरिफ वा मआरीफ़, भाग 10, पेज 370
- ↑ फ़ल्लाह ज़ादे, अहकामे दीन, 1386 शम्सी, पेज 44-45; हुसैनी दश्ती, वुज़ू, दर मआरिफ वा मआरीफ़, भाग 10, पेज 370
- ↑ देखेः इब्ने हेशाम, अल-सीरातुन नबावीया, दार उल-मारफ़ा, भाग 1, पेज 244; तिबरी, तारीख उल-उमम वल मुलूक, 1387 हिजरी, भाग 2, पेज 307
- ↑ सुबहानी, वुज़ू दर किताब व सुन्नत, पेज 4
- ↑ मरकजे फरहंगे वा मआरिफे क़ुरआन, दाए रातुल मआरिफ क़ुरआने करीम, 1382 शम्सी, पेज 407-408
- ↑ सूरा ए माएदा, आयत न. 6
- ↑ शेख अंसारी, किताब अल-तहारत, 1415 हिजरी, भाग 2, पेज 82
- ↑ फ़ैज़ काशानी, मोअतसिम अल-शिया, 1429 हिजरी, भाग 1, पेज 241
- ↑ फ़ल्लाह ज़ादे, अहकामे दीन, 1386 शम्सी, पेज 50
- ↑ फ़ल्लाह ज़ादे, अहकामे दीन, 1386 शम्सी, पेज 50
- ↑ तबातबाई यज़्दी, अल उर्वा अल वुस्क़ा, अल नाशिर मकतब आयतुल्लाह अल उज़मा अल सय्यद अल सिस्तानी, खंड 1, पृष्ठ 169-170, मकारिम शिराज़ी, रेसाला अहकाम जवानान (पेसरान), 1390 शम्सी, पृष्ठ 38।
- ↑ मोअस्सेसा दाए रातुल मआरिफ़ फ़िक्ह इस्लामी, फ़रहंग फिक्ह, 1426 हिजरी, भाग 1, पेज 347
- ↑ देखेः यज़्दी, अल-उरवातुल वुस्क़ा, 1419 हिजरी, भाग 1, पेज 436
- ↑ देखेः यज़्दी, अल-उरवातुल वुस्क़ा, 1419 हिजरी, भाग 1, पेज 353-366
- ↑ मिर्ज़ा क़ुमी, जामे उश-शतात फ़ी अजवबतिस सवालात, 1413 हिजरी, भाग 1, पेज 32
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- ↑ इमाम ख़ुमैनी, तौज़ीहुल मसाइल, 1426 हिजरी, पेज 61
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- ↑ मिर्ज़ा ए क़ुमी, जामेअ अल शतात, 1413 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 32।
- ↑ फ़ल्लाह ज़ादे, दरस नामा ए अहकाम मुबतला बेहुज्जाज, 1389 हिजरी, पेज 37-38
- ↑ फ़ल्लाह ज़ादे, दरस नामा ए अहकाम मुबतला बेहुज्जाज, 1389 हिजरी, पेज 37
- ↑ फ़ल्लाह ज़ादे, अहकामे दीन, 1386 शम्सी, पेज 47-48
- ↑ फ़ल्लाह ज़ादे, अहकामे दीन, 1386 शम्सी, पेज 46
- ↑ इब्ने इद्रीस हिल्ली, अल-सराइर, 1410 हिजरी, भाग 1, पेज 135
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- ↑ सुब्हानी, सिलसिलातुल मसाइल अल-फ़िक्हीया, क़ुम, भाग 2, पेज 9-12
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- ↑ शहरिस्तानी, लेमाज़ल इख़्तिलाफ फ़िल वुज़ू, 1426 हिजरी, पेज 34-35
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- ↑ या अली अलैका बिस्सवाके इन्दा वुज़ू कुल्ले सलात, (शेख सुदूकः मन ला याहजेरोहुल फ़क़ीह, इंतेशाराते जामे मुदर्रेसीन, भाग 1, पेज 53)
- ↑ काना अमीरुल मोमेनीन इज़ा तवज्ज़ा क़ालाः बिस्मिल्लाहे वा बिल्लाहे वा खैरूल अस्माए लिल्लाहे वा अकबरुल अस्मा लिल्लाहे ... (शेख सुदूकः मन ला याहजेरोहुल फ़क़ीह, इंतेशाराते जामे मुदर्रेसीन, भाग 1, पेज 43, हदीस 87)
- ↑ इमाम अली (अ) खिताब बे मुहम्मद बिन अबू बक्र ”तमज़्मज़ा सलासो मर्रातिन वा इस्तंशक़ा सलासन... फ़इन्ननी रअयतो रसूलल्लाहे यसनओ ज़ालिक” (हुर्रे आमोली, वसाइल उश-शिया, 1374 शम्सी, भाग 1, पेज 396)
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स्रोत
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- शेख अंसारी, मुर्तुजा बिन मुहम्मद अमीन, किताब अल-तहारत, क़ुम, कुंगरा ए जहानी बुजरग दाश्त शेख आज़म अंसारी, 1415 हिजरी
- शेख मुफ़ीद, मुहम्मद बिन मुहम्मद, अल-अमाली, शोध अली अकबर गफ़्फ़ारी, क़ुम, इंतेशाराते जामे मुदर्रेसीन, 1403 हिजरी
- शेख मुफ़ीद, मुहम्मद बिन मुहम्मद, अल-इरशाद फी मारफते होजाजिल्लाहे अलल एबाद, संशोधन मोअस्सेसा आले अल-बैत, क़ुम, कुंगरा ए शेख मुफ़ीद, 1413 हिजरी
- शेख सुदूक़, मुहम्मद बिन अली, मन ला याहज़ेरोहुल फ़क़ीह, संशोधन अल-शेख हुसैन अल-आलमी, बैरूत, मोअस्सेसा अल-आलमी लिल मतबूआत, 1406 हिजरी
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- सुब्हनी, जाफ़र, वुज़ू दर किताब वा सुन्नत, दर फ़स्लनामा फ़िक्हे अहले-बैत, ताबिस्तान 1383 शम्सी
- सुब्हानी, जाफ़र, सिलसिलातुल मसाइलुल फ़िक्हीया, क़ुम
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- हुसैनी दश्ती, सय्यद मुस्तफ़ा, वुज़ू दर मआरिफ वा मआरीफ़, भाग 10, तेहरान, मोअस्सेसा फ़रहंगी आरायेह, 1379 शम्सी
- हुसैनी, हमीद, वुज़ू अज़ दीदगाहे मज़ाहिबे इस्लामी, दर फ़स्लनामे मुतालेआत तक़रीबी मजाहिब इस्लामी, क्रमांक 17
