वुज़ू

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वुज़ू (अरबी: الوضوء) चेहरे और हाथों को धोने के साथ-साथ सिर और पैरों को क़स्दे क़ुरबत से और विशेष अनुष्ठानों के साथ मसह करने को कहते है। अपने आप में वुज़ू मुस्तहब है; लेकिन नमाज़, तवाफ़ और कुछ दूसरी इबादतों के सही होने की शर्त उनको वुजू के साथ अंजाम देना है। वुज़ू के बिना क़ुरआन की पंक्तियों और खुदा के नाम को छूना जायज़ नहीं है।

मस्जिद में जाने और पवित्र कुरआन का पाठ (तिलावत) करने के लिए वुज़ू मुस्तहब है। ऐतिहासिक स्रोतों के अनुसार, वुज़ू का हुक्म पैग़म्बर (स) की बेअसत के शुरूआती दिनों में मक्का मे आया। सूर ए माएदा की छठी आयत और मासूमीन (अ) की 400 से अधिक हदीसें वुजू के बारे में हैं। हदीसों में वुज़ू और कहीं (कुछ हदीसों में) वुज़ू के नवीनीकरण को पापो से क्षमा, क्रोध का ख़त्म होना, दीर्घायु, महशर में चेहरे की चमक और जीविका में वृद्धि का कारण कहा जाता है।

वुज़ू को दो तरीको अर्थात तरतीबी और इरतेमासी से किया जा सकता है। तरतीबी वुज़ू मे सबसे पहले चेहरा धोया जाता है, फिर हाथ धोए जाते हैं और उसके बाद सिर और पैर का मस्ह किया जाता हैं। इरतेमासी वुज़ू भी तरतीबी वुज़ू के समान है, केवल चेहरे और हाथों को धोने के बजाय, उन्हें पानी में डुबाते हुए वुज़ू की नियत की जाती है, और फिर सिर और पैरों का मसह किया जाता है। अगर घाव को खोलना मुश्किल हो या वह हानिकारक हो तो जबीरा वुज़ू करना चाहिए।

शियों और सुन्नियों में हाथ धोने और सिर और पैरों पर मस्ह करने के तरीके के बारे में भी मतभेद हैं; शिया ऊपर से नीचे तक हाथ धोना वाजिब मानते हैं, लेकिन सुन्नी नीचे से ऊपर तक हाथ धोने में विश्वास करते हैं। हदीसी सूत्रों के अनुसार, उमर बिन खत्ताब के खिलाफत के अंत तक, मुसलमानों के बीच वुज़ू करने में कोई बड़ा अंतर नहीं था, और उन सभी ने एक ही तरह (इमामीया तरीक़े) से वुज़ू करते थे। इस्लामी स्रोतों मे शिया और सुन्नी के बीच वुज़ू करने मे मतभेद की सूचना तीसरे खलीफा के शासन काल से मिलती है।

परिभाषा

वुज़ू, चेहरे और हाथों को धोना है और सिर और पैरों को एक विशेष तरीके से क़स्दे क़ुरबत के साथ मसा करना है।[१] वुज़ू नमाज़ और तवाफ़ (परिक्रमा) के सही होने के लिए और कुरआन के लेखन को छूने के जायज़ होने के लिए शर्त है।[२] ऐतिहासिक स्रोतों के अनुसार, मक्का में पैगंबर की बेअसत की शुरुआत में जिब्राईल द्वारा पैगंबर (स) को वुज़ू करना बताया गया और पैगंबर (स) ने इसे लोगों को सिखाया।[३]

अहकाम

मुख्य लेखः आय ए वुज़ू

कुरआन और हदीसों में वुज़ू करने की विधि और इसके महत्व का उल्लेख किया गया है।[४] वुज़ू करने का हुक्म सूरा ए माएदा की छठी आयत मे आया है। इसीलिए इस आयत को आय ए वुजू कहा जाता है।[५]

अनुवाद, हे ईमान वालो, जब तुम नमाज़ के लिए खड़े हो तो अपना चेहरा और हाथ कोहनियों के साथ धोओ और अपने सिर और पैरो को टखनों तक मसा करो।[६]

अपने आप में वुज़ू करना मुस्तहब है[७] जनाज़े की नमाज को छोड़कर दूसरी नमाज़ पढ़ने, तवाफ़ करने, कुरआन की पंक्तियों और अल्लाह के नाम को छूने के लिए वुज़ू वाजिब है।[८] वाजिब एहतियात की बिना पर पैग़म्बर (स), आइम्मा (अ) और हज़रत ज़हरा (स) के नाम को छूने के लिए भी वुज़ू करना चाहिए।[९] मस्जिद और इमामों के मजार पर जाना, क़ुरआन की तिलावत करने और साथ मे रखने के लिए, शरीर के किसी अंग को क़ुरआन के कवर या हाशिए तक ले जाने के लिए और इसी तरह क़बिस्तान की ज़ियारत के लिए वुज़ू करना मुस्तहब है।[१०]

वुज़ू के प्रकार

वुज़ू तरतीबी या इरतेमासी किया जा सकता है[११] और कुछ विशेष परिस्थितियों में वुजू जबीरा तरीके से करना आवश्यक है।[१२]

तरतीबी वुज़ू

तरतीबी वुज़ू: एक हाथ की चौड़ाई मे बाल उगने की जगह से लेकर ठोड़ी के अंत तक पहले चेहरा धोना चाहिए। फिर दाहिने हाथ को उसके बाद बाएं हाथ को कोहनी से थोड़ा ऊपर से अंगूठे तक धोया जाता है। उसके बाद हाथ धोने से बची हुई नमी से सिर के अगले भाग पर माथे के ऊपर मसा किया जाता है, और फिर उसी नमी से दाहिने उसके बाद बाएं पैर पर मसा किया जाता है।[१३]

इरतेमासी वुज़ू

मुख्य लेखः इरतेमासी वुज़ू

इरतेमासी वुजू का अर्थ है कि व्यक्ति नीयत के बाद[१४] वुजू की नियत से अपना चेहरा और फिर हाथ पानी में डालता है।[१५] इरतेमासी वुज़ू करने का दूसरा तरीक़ा यह है कि पहले चेहरे को और फिर हाथो को पानी मे डाले फिर वुज़ू की नियत करे उसके बाद बाहर निकाल ले।[१६] चेहरे और हाथों को धोने के बाद मसा किया जाता है।[१७]

जबीरा वुज़ू

जबीरा वुज़ू: अगर वुज़ू में धोए या मसा किए जाने वाले किसी हिस्से में घाव या फ्रैक्चर हो और उसे धोया या मसा न किया जा सके, तो सामान्य रूप से वुज़ू किया जाए और घायल या टूटे हुए हिस्से को धोने या मसा करने के बजाय भीगा हुआ हाथ जबीरा के ऊपर फेरा जाए[१८] जबीरा, उस पट्टी या उस कपड़े को कहा जाता है जो घाव को बंद करने के लिए उपयोग किया जाता है।[१९] जबीरा वुज़ू उस स्थिति मे जायज़ है जब जबीरा को खोलना मुशकिल हो या कोई नुक़सान हो या सीधे घाव या फ़ैक्चर पर पानी नही डाला जा सकता हो।[२०]

कुछ मामलों में, वुज़ू के बजाय तयम्मुम वाजिब होता है; उदाहरण के लिए, यदि नमाज़ का समय इतना कम है कि वुज़ू करना इस बात का कारण बनता है कि पूरी नमाज़ या आंशिक नमाज़ समय के बाद पढ़नी पड़ेगी।[२१] इसी तरह, जहाँ पानी उपलब्ध नहीं है या पानी शरीर के लिए हानिकारक है, तयम्मुम का वुज़ू के बदले किया जाता है।[२२] किसी व्यक्ति ने जनाबत का ग़ुस्ल किया है, उसे नमाज़ के लिए वुज़ू नहीं करना चाहिए, और वही ग़ुस्ल वुज़ू की जगह ले लेगा।[२३]

वुज़ू कैसे बातिल होता है?

वुज़ू कुछ चीजो को अंजाम देने से बातिल हो जाता है, न्यायशास्त्रीय स्रोतों में, मुबतिलाते वुज़ू (वुज़ू को बातिल करने वाली चीजे) को हदसे असगर कहा जाता है;[२४] उनमें से कुछ निम्नलिखित हैं:

  • मनुष्यों से मूत्र, मल या वायु का उत्सर्जन।
  • नींद (ताकि कान सुन न सकें और आंखें देख न सकें), दीवानगी, मस्ती और बेहोशी।[२५]
  • ऐसा काम करना जो ग़ुस्ल का कारण बनता हैं; जैसे जनाबत या मुर्दों को छूना इत्यादि।[२६]

फ़ाज़िले मिक़दाद के अनुसार, कुछ सुन्नी फ़ुक्हा का मानना है कि पुरुष और गैर महरम महिला के बीच त्वचा का संपर्क वुज़ू को बातिल कर देता है। और इस बात का प्रमाण किसाई है। उन्होने أَوْ لامَسْتُمُ النِّسا "ओ लामसतुम अन-निसा"[२७] आयत मे लामसतुम के स्थान पर लमसतुम पढ़ा। लेकिन शिया फ़ुक्हा के अनुसार "लामस्तुम" शारीरिक संबंध बनाने की ओर इशारा है।[२८]

शिया और सुन्नी के बीच वुज़ू मे अंतर

मुख्य लेखः वुज़ू की आयत, चेहरा और हाथ धोना तथा सिर और पैरो का मस्ह

वुज़ू के मामले में, शियों और सुन्नियों के बीच हाथ धोने और सिर और पैरों का मसा करने के तरीके में मतभेद है।[२९] शिया और सुन्नियों के बीच वुज़ू के बारे में मतभेद ज्यादातर सूरह माएदा की छठी आयत و أیدیکم إلی المرافق वा अयदीयाकुम एलल मराफ़िक़ के अर्थ की व्याख्या में अंतर या इसके पढ़ने में अंतर के कारण हैं।[३०] मासूमीन (अ)[३१] की रिवायतो के आधार पर शिया विद्वान उपरोक्त आयत मे संप्रदाय के विपरीत हाथो को ऊपर से नीचे की ओर धोने को वाजिब मानते है जबकि सुन्नी विद्वान हाथो को नीचे से ऊपर की ओर धोने मे विश्वास करते है।[३२]

इसी तरह शिया फ़ुक्हा के नियम अनुसार, प्राथमिकता के आधार पर दाहिने हाथ को बाएं हाथ से पहले धोना चाहिए।[३३] जबकि सुन्नी विचारधाराओं में इस अमल को मुस्तहब माना जाता है।[३४]

चारो सुन्नी संप्रदाय वुज़ू में टखनों सहित पैरों का धोना वाजिब मानते हैं,[३५] शिया पैर की उंगलियों के सिरे से पैर के ऊपर तक मसा करने में विश्वास करते हैं।[३६] शिया न्यायशास्त्र के अनुसार, यह मसा सिर के मसा की तरह वुज़ू की नमी से होना चाहिए।[३७] मालेकी और हनफ़ी संप्रदाय तरतीब और हनफ़ी और शाफ़ेई मवालात को वुज़ू मे वाजिब नही मानते। लेकिन शिया और अहले-सुन्नत के अन्य संप्रदाय तरतीब और मवालात का पालन करना वाजिब मानते हैं।[३८]

सिर का मसा करने को लेकर शियों और सुन्नियों में मतभेद हैं; उनमें से एक यह है कि शियों के अनुसार, सिर का मसा इस तरह करना कि मसा कहलाए काफ़ी है, और अधिकांश रूप से यह मुस्तहब है कि तीन बंद उंगलियों के आकार का हो उससे अधिक नहीं होना चाहिए।[३९] और इसी तरह शिया फिक्ह के अनुसार सर का मसा वुज़ू के पानी से किया जाए नाकि नए पानी से मसा करे।[४०] हालांकि सिर का मसा करने के बारे में सुन्नी संप्रदायों के अलग-अलग मत हैं,[४१] हनबली न्यायशास्त्र के अनुसार, दोनों कानों सहित पूरे सिर का मसा करना वाजिब है,[४२] और सिर का मसा करने के लिए नए पानी का इस्तेमाल किया जाए।[४३]मालेकी न्यायशास्त्र में, पूरे सिर का मसा किया जाना चाहिए[४४] और हनफी न्यायशास्त्र में, सिर के एक चौथाई हिस्से का मसा करना वाजिब है।[४५] शाफ़ेई की फ़िक्ह के अनुसार, सिर के कम से कम भाग पर नए पानी से मसा करना काफी है।[४६]

जूते पर मसा करना मतभेद का एक दूसरा मामला है जिसे शिया सही नहीं मानते हैं[४७] और उन्होंने इस बात के लिए सूरह माएदा की आयत न 6 और हदीसों का हवाला दिया है।[४८]

कुछ मामलों में, वुज़ू तक़य्या के साथ जुड़ा हुआ है: इमाम काज़िम (अ) ने अली इब्ने यक़्तीन -जिनका अब्बासी खिलाफत में एक विशेष स्थान था- के पत्र के जवाब में, उन्हें सुन्नियों की तरह वुजत़ू करने के लिए बाध्य किया, ताकि हारुन अल-रशीद को पता नहीं चले कि वह शिया है।[४९] इमाम काज़िम (अ) ने पहले अली इब्ने यक़्तीन को अब्बासी सरकार में रहने और शियाओं की सेवा करने के लिए कहा।[५०] जबकि आप (अ) से दूसरे शियों को अब्बासीयो के साथ सहयोग करने से मना किया था।[५१]

उस्मान के शासन से वुज़ू में मतभेद की शुरुआत

कुछ विद्वानों का मानना है कि पैग़म्बर (स)[५२] के समय में मुसलमानों में वुजू करने में कोई अंतर नहीं था और पैगंबर (स) वुज़ू मे अपने पैरों को धोने के बजाय मसा करते थे। पैगंबर के समय के अलावा, अबू बक्र की खिलाफ़त मे भी वूज़ू के बारे में कोई विवाद का उल्लेख नहीं किया गया है।[५३] उमर बिन खत्ताब की खिलाफत मे जुराब पर मसा करने को छोड़कर,[५४] वुज़ू के बारे में मतभेद का संकेत देने वाला कोई वर्णन नहीं है।[५५]

कंज़ उल-उम्माल[५६] और कुछ अन्य स्रोतों में जो कहा गया है, उसके आधार पर,[५७] कुछ शोधकर्ताओं का मानना है कि तीसरे खलीफा (उसमान) के समय से मुसलमानों के बीच वुज़ू में अंतर ज़ाहिर हुआ है।[५८] सय्यद अली शहरिस्तानी ने इमाम अली (अ) और उमर बिन खत्ताब के बीच मसा करने के अंतर का हवाला देते हुए, उनका मानना है कि उस्मान बिन अफ्फान के विपरीत, दूसरे ख़लीफ़ा भी वुज़ू मे पैर धोने के बजाए मसा करते थे।[५९]

वुज़ू की आयत और वुज़ू से संबंधित हदीसो के आधार पर शियों का मानना है कि पैगंबर (स) और उनके असहाबे इमामिया की तरह वुज़ू मे अपने पैरों का मसा करते थे ना कि सुन्नीयो की तरह धोते थे।[६०] हाथ धोने के बारे में भी पैगंबर (स) से रिवायत का वर्णन हुआ हैं। कि पैगंबर (स) का वुज़ू शियों के समान है, और हाथो को ऊपर से नीचे तक हाथ धोते थे।[६१] शियों के अनुसार, पैर धोने वाली रिवायते जिन्हे सुन्नि प्रमाणित करते है वह सभी रिवायते प्रमाणिकता कमजोर और निराधार है; इस तथ्य के अतिरिक्त ये रिवायते वुज़ू की आयत से टकराती है।[६२]

आदाब, मुस्तहब्बात और फ़ज़ाइल

वुज़ू के दौरान कई चीजों को मुस्तहब माना गया है;

  • वुज़ू से पहले ब्रश करना: पैगंबर (स) ने इमाम अली (अ) को अपनी वसीयत में हर वुज़ू से पहले ब्रश करने की सलाह दी।[६३]
  • वुज़ू के आरंभ में अल्लाह का नाम लेना[६४]
  • कुल्ली करना और नाक में पानी डालना[६५]

रिवायतो के अनुसार, इमाम अली (अ) वुज़ू के दौरान दुआऐं पढ़ते थे। उन रिवायतो के अनुसार, जो कोई भी वुज़ू करते समय इन दुआओं को पढ़ता है, अल्लाह उसके वुज़ू के पानी की हर बूंद से अल्लाह की तस्बीह, तक़दीस करता हुआ एक फरिश्ता पैदा करता है, जो क़यामत के दिन तक वुज़ू करने वाले व्यक्ति के लिए सवाब लिखता है।[६६] वुज़ू के दौरान पढ़ी जाने वाली दुआए निम्नलिखित हैः

  1. दाहिने हाथ से बाएं हाथ पर पानी डालते समयः " الْحَمْدُ للَّهِ الذی جَعَلَ الْماءَ طَهُوراً وَ لَمْ یَجْعلْه نَجِساً؛ अल्हमदो लिल्लाहिल लज़ी जाअलल माआ तहूरन वलम यजअलहो नजिसा " अनुवादः प्रशंसा और धन्यवाद अल्लाह का है जिसने पानी को शुद्ध और शुद्ध करने वाला बनाया और उसे अशुद्ध नहीं बनाया।[६७]
  2. तहारतः " اللَّهُمّ حَصِّنْ فَرْجی و أعِفّهُ وَ َ اسْتُر عَوْرتی و حَرّمنی عَلى النّار अल्लाहुम्मा हस्सिन फ़रजी वा आइफ़्फ़हू वस्तुर औरती वा हर्रिमनी अलन्नार" अनुवादः खुदाया ! मेरे गुप्तांगों को हराम से सुरक्षित रख और इसे पवित्र कर और इसे ढक दे और आग को इस पर हराम कर दे।[६८]
  3. नाक मे पानी डालते समयः "اللّهم لا تحرّم عليّ ريح الجنّة و اجعلني ممّن يشمّ ريحها و طيبها و ريحانها अल्लाहुम्मा ला तोहर्रिम अलय्या रीहल जन्नते वजअलनी मिम मन यशुम्मो रीहाहा वा तय्यबहा वा रीहाहा " अनुवादः परवरदिगारा ! मेरे लिए जन्नत की खुश्बू को हराम क़रार न दे और मुझे उन लोगों में से एक बना जो इसकी खुश्बू और सुगंध और इसके सुगंधित पौधों को सूंघते हैं।[६९]
  4. कुल्ला करते समयः " اللّهمّ أنطق لساني بذكرك و اجعلني ممّن ترضى عنه अल्लाहुम्मा अनतिक़ लेसानी बेज़िकरिका वजअलनी मिम मन तरज़ा अन्हो" अनुवादः खुदाया ! अपनी याद में मेरी ज़बान को खोल दे और मुझे उन लोगों में से बना जिनसे तू राज़ी है।[७०]
  5. चेहरा धोते समयः " اللّهم بيّض وجهي يوم تسودّ فيه الوجوه و لا تسوّد وجهي يوم تبيضّ فيه الوجوه अल्लाहुम्मा बय्यिज़ वज्ही यौमा तस्वद्दो फीहिल वुजूह वला तस्वद्दो वज्ही यौमा तोबय्येज़ो फ़ीहिल वुजूह " अनुवादः खुदाया ! जिस दिन लोगो के चेहरे काले होंगे उस दिन मेरा चेहरा उज्जवल कर देना, और जिस दिन चेहरे उज्जवल होगे उस दिन मेरा चेहरा काला न करना।[७१]
  6. दाहिना हाथ धोते समयः "اللّهمّ أعطني كتابي بيميني و الخلد بيساري अल्लाहुम्मा आतेनी किताबी बेयमीनी वल ख़ल्दा बेयसारी " अनुवादः खुदाया ! मेरे कर्मो की किताब मेरे दाहिने हाथ मे और अब्दी जावेदानगी (अनन्त अमरता) को मेरे बाएं हाथ मे देना।[७२]
  7. बायां हाथ धोते समयः "اللّهمّ لا تعطني كتابي بشمالي و لا تجعلها مغلولة إلى عنقي و أعوذ بك من مقطّعات النّيران अल्लाहुम्मा तोअतिनी किताबी बेशुमाली वला तज्अल्हा मग़लूलतन ऐला ओनोक़ी वा आऊज़ो बिका मिन मुक़त्तिआतिन नीरान " अनुवादः खुदाया ! मेरे कर्मो की किताब मेरे बाए हाथ मे ना देना और उसको मेरी गर्दन मे ना बाधना और मैं उग्र कपड़ों से तेरी शरण लेता हूं।[७३]
  8. सिर का मसा करते समयः " اللّهمّ غشّني برحمتك و بركاتك و عفوك، اللهم غشّني برحمتك و بركاتك و عفوك अल्लाहुम्मा ग़श्शेनी बेरहमतेका वा बरकातेका वा अफ़वेका, अल्लाहुम्मा ग़श्शेनी बेरहमतेका वा बरकातेका वा अफ़वेका " अनुवादः खुदाया ! मुझे अपनी रहमत, नेमत और बख़्शिश से ढांप ले।[७४]
  9. पैर का मसा करते समयः " اللّهمّ ثبّت قدميّ على الصّراط يوم تزلّ فيه الأقدام و اجعل سعيي فيما يرضيك عنّي अल्लाहुम्मा सब्बित कदमी अलस सिराते यौमा तज़ुल्लो फ़ीहिल अक़दामे वज्अल सायी फ़ीमा यरज़ीका अन्नी " अनुवादः खुदाया ! उस दिन मेरे कदमों को उस रास्ते पर दृढ़ कर जब कदम फिसल जाएंगे, और मेरे प्रयासों को उसमें लगा जो तुझे राज़ी और संतुष्ट करे।[७५]

शिया और सुन्नी हदीसी स्रोतों में वुज़ू के अहकाम, उसकी विशेषताओं और फ़ज़ाइलो के बारे में पैगंबर (स) और शिया इमामों से 400 से अधिक हदीसे वर्णित है।[७६] इस आधार पर वुज़ू को पापो से क्षमा,[७७] क्रोध का ख़त्म होना,[७८] दीर्घायु,[७९] महशर में चेहरे की चमक[८०] और जीविका में वृद्धि[८१] का कारण कहा जाता है। इसी तरह रिवायतो मे वुज़ू के नवीनीकरण (तज्दीदे वुजू) की फ़ज़ीलत[८२] और इसी तरह वुज़ू को पश्चाताप[८३] के रूप में भी वर्णित किया गया है।

संबंधित लेख

फ़ुटनोट

  1. फ़ल्लाह ज़ादे, अहकामे दीन, 1386 शम्सी, पेज 44-45; हुसैनी दश्ती, वुज़ू, दर मआरिफ वा मआरीफ़, भाग 10, पेज 370
  2. फ़ल्लाह ज़ादे, अहकामे दीन, 1386 शम्सी, पेज 44-45; हुसैनी दश्ती, वुज़ू, दर मआरिफ वा मआरीफ़, भाग 10, पेज 370
  3. देखेः इब्ने हेशाम, अल-सीरातुन नबावीया, दार उल-मारफ़ा, भाग 1, पेज 244; तिबरी, तारीख उल-उमम वल मुलूक, 1387 हिजरी, भाग 2, पेज 307
  4. सुबहानी, वुज़ू दर किताब व सुन्नत, पेज 4
  5. मरकजे फरहंगे वा मआरिफे क़ुरआन, दाए रातुल मआरिफ क़ुरआने करीम, 1382 शम्सी, पेज 407-408
  6. सूरा ए माएदा, आयत न. 6
  7. शेख अंसारी, किताब अल-तहारत, 1415 हिजरी, भाग 2, पेज 82
  8. फ़ैज़ काशानी, मोअतसिम अल-शिया, 1429 हिजरी, भाग 1, पेज 241
  9. फ़ल्लाह ज़ादे, अहकामे दीन, 1386 शम्सी, पेज 50
  10. फ़ल्लाह ज़ादे, अहकामे दीन, 1386 शम्सी, पेज 50
  11. मोअस्सेसा दाए रातुल मआरिफ़ फ़िक्ह इस्लामी, फ़रहंग फिक्ह, 1426 हिजरी, भाग 1, पेज 347
  12. देखेः यज़्दी, अल-उरवातुल वुस्क़ा, 1419 हिजरी, भाग 1, पेज 436
  13. देखेः यज़्दी, अल-उरवातुल वुस्क़ा, 1419 हिजरी, भाग 1, पेज 353-366
  14. मिर्ज़ा क़ुमी, जामे उश-शतात फ़ी अजवबतिस सवालात, 1413 हिजरी, भाग 1, पेज 32
  15. वुज़ू ए इरतेमासी, मरकज़े तंज़ीम वा नश्र आसारे आयतुल्लाह बहजत
  16. इमाम ख़ुमैनी, तौज़ीहुल मसाइल, 1426 हिजरी, पेज 61
  17. ख़ामेनई, अजवाबतुल इस्तिफ़्तेआत, 1424 हिजरी, पेज 21
  18. फ़ल्लाह ज़ादे, दरस नामा ए अहकाम मुबतला बेहुज्जाज, 1389 हिजरी, पेज 37-38
  19. फ़ल्लाह ज़ादे, दरस नामा ए अहकाम मुबतला बेहुज्जाज, 1389 हिजरी, पेज 37
  20. फ़ल्लाह ज़ादे, अहकामे दीन, 1386 शम्सी, पेज 47-48
  21. फ़ल्लाह ज़ादे, अहकामे दीन, 1386 शम्सी, पेज 46
  22. इब्ने इद्रीस हिल्ली, अल-सराइर, 1410 हिजरी, भाग 1, पेज 135
  23. फ़ल्लाह ज़ादे, अहकामे दीन, 1386 शम्सी, पेज 57
  24. फ़ैज़ काशानी, रसाइल, 1429 हिजरी, भाग 2, रिसाला 4, पेज 22
  25. यज़्दी, उरवातुल वुस्क़ा, 1419 हिजरी, भाग 1, पेज 330-331; फ़ैज़ काशानी, मोतसिम उश-शिया, 1429 हिजरी, भाग 1, पेज 241
  26. फ़ल्लाह ज़ादे, अहकामे दीन, 1386 शम्सी, पेज 51
  27. सूरा ए माएदा, आयत न. 6
  28. फ़ाज़िल मिक़्दाद, कंज़ुल इरफ़ान, 1419 हिजरी, भाग 1, पेज 25
  29. क़ुमी, चेगूनगी अंजाम वुज़ू नज़्दे फ़रीक़ैन (1), पेज 29-30
  30. हुसैनी, वुज़ू अज़ दीदगाहे मज़ाहिबे इस्लामी, पेज 6
  31. हुसैनी, वुज़ू अज़ दीदगाहे मज़ाहिबे इस्लामी, पेज 6
  32. सय्यद साबिक़, फ़िक्हुस सुन्नत, 1397 हिजरी, भाग 1,पेज 43
  33. हुसैनी, वुज़ू अज़ दीदगाहे मज़ाहिबे इस्लामी, पेज 12
  34. सय्यद साबिक़, फ़िक्हुस सुन्नत, 1397 हिजरी, भाग 1,पेज 48
  35. सय्यद साबिक़, फ़िक्हुस सुन्नत, 1397 हिजरी, भाग 1,पेज 44
  36. हुसैनी, वुज़ू अज़ दीदगाहे मज़ाहिबे इस्लामी, पेज 11-12
  37. हुसैनी, वुज़ू अज़ दीदगाहे मज़ाहिबे इस्लामी, पेज 11-12
  38. हुसैनी, वुज़ू अज़ दीदगाहे मज़ाहिबे इस्लामी, पेज 12
  39. क़ुमी, फ़िक्ह हज चेगूनगी अंजाम वुज़ू नज़्दे फ़रीकैन (3) मस्ह, पेज 43-44
  40. क़ुमी, फ़िक्ह हज चेगूनगी अंजाम वुज़ू नज़्दे फ़रीकैन (3) मस्ह, पेज 45
  41. क़ुमी, फ़िक्ह हज चेगूनगी अंजाम वुज़ू नज़्दे फ़रीकैन (3) मस्ह, पेज 45
  42. क़ुमी, फ़िक्ह हज चेगूनगी अंजाम वुज़ू नज़्दे फ़रीकैन (3) मस्ह, पेज 46-47
  43. क़ुमी, फ़िक्ह हज चेगूनगी अंजाम वुज़ू नज़्दे फ़रीकैन (3) मस्ह, पेज 47
  44. क़ुमी, फ़िक्ह हज चेगूनगी अंजाम वुज़ू नज़्दे फ़रीकैन (3) मस्ह, पेज 47-48
  45. क़ुमी, फ़िक्ह हज चेगूनगी अंजाम वुज़ू नज़्दे फ़रीकैन (3) मस्ह, पेज 48
  46. क़ुमी, फ़िक्ह हज चेगूनगी अंजाम वुज़ू नज़्दे फ़रीकैन (3) मस्ह, पेज 48
  47. आ-मदी, अल-मस्हो फ़ी वुज़ूइर रसूल सल लल्लाहो अलैहे वा आलेही, पेज 32
  48. सुब्हानी, सिलसिलातुल मसाइल अल-फ़िक्हीया, क़ुम, भाग 2, पेज 9-12
  49. देखेः शेख मुफ़ीद, अल-इरशाद, 1413 हिजरी, भाग 2, पेज 227-228
  50. कशी, रिजाले कशी, 1409 हिजरी, पेज 441
  51. कशी, रिजाले कशी, 1409 हिजरी, पेज 441
  52. शहरिस्तानी, लेमाज़ल इख़्तिलाफ फ़िल वुज़ू, 1426 हिजरी, पेज 31
  53. आ-मदी, अल-मस्हो फ़ी वुज़ूइर रसूल, 1420 हिजरी, पेज 80-82
  54. शहरिस्तानी, लेमाज़ल इख़्तिलाफ फ़िल वुज़ू, 1426 हिजरी, पेज 32
  55. शहरिस्तानी, लेमाज़ल इख़्तिलाफ फ़िल वुज़ू, 1426 हिजरी, पेज 31
  56. मुत्तक़ी हिंदी, कंज़ुल उम्माल, 1406 हिजरी, भाग 9, पेज 443, हदीस 26890
  57. शहरिस्तानी, लेमाज़ल इख़्तिलाफ फ़िल वुज़ू, 1426 हिजरी, पेज 33
  58. शहरिस्तानी, लेमाज़ल इख़्तिलाफ फ़िल वुज़ू, 1426 हिजरी, पेज 33
  59. शहरिस्तानी, लेमाज़ल इख़्तिलाफ फ़िल वुज़ू, 1426 हिजरी, पेज 34-35
  60. बहबहानी, मस्हे पा दर वुज़ू, 1395 शम्सी, पेज 26-42
  61. देखेः हुर्रे आमोली, वसाइल उश-शिया, 1374 शम्सी, भाग 1, पेज 387-390
  62. हबहानी, मस्हे पा दर वुज़ू, 1395 शम्सी, पेज 31-32
  63. या अली अलैका बिस्सवाके इन्दा वुज़ू कुल्ले सलात, (शेख सुदूकः मन ला याहजेरोहुल फ़क़ीह, इंतेशाराते जामे मुदर्रेसीन, भाग 1, पेज 53)
  64. काना अमीरुल मोमेनीन इज़ा तवज्ज़ा क़ालाः बिस्मिल्लाहे वा बिल्लाहे वा खैरूल अस्माए लिल्लाहे वा अकबरुल अस्मा लिल्लाहे ... (शेख सुदूकः मन ला याहजेरोहुल फ़क़ीह, इंतेशाराते जामे मुदर्रेसीन, भाग 1, पेज 43, हदीस 87)
  65. इमाम अली (अ) खिताब बे मुहम्मद बिन अबू बक्र ”तमज़्मज़ा सलासो मर्रातिन वा इस्तंशक़ा सलासन... फ़इन्ननी रअयतो रसूलल्लाहे यसनओ ज़ालिक” (हुर्रे आमोली, वसाइल उश-शिया, 1374 शम्सी, भाग 1, पेज 396)
  66. कुलैनी, फ़ुरूए काफ़ी, 1388 शम्सी, भाग 1, पेज 184
  67. कुलैनी, फ़ुरूए काफ़ी, 1388 शम्सी, भाग 1, पेज 182
  68. कुलैनी, फ़ुरूए काफ़ी, 1388 शम्सी, भाग 1, पेज 182
  69. कुलैनी, फ़ुरूए काफ़ी, 1388 शम्सी, भाग 1, पेज 183
  70. कुलैनी, फ़ुरूए काफ़ी, 1388 शम्सी, भाग 1, पेज 183
  71. कुलैनी, फ़ुरूए काफ़ी, 1388 शम्सी, भाग 1, पेज 183
  72. कुलैनी, फ़ुरूए काफ़ी, 1388 शम्सी, भाग 1, पेज 183
  73. कुलैनी, फ़ुरूए काफ़ी, 1388 शम्सी, भाग 1, पेज 183
  74. कुलैनी, फ़ुरूए काफ़ी, 1388 शम्सी, भाग 1, पेज 183
  75. कुलैनी, फ़ुरूए काफ़ी, 1388 शम्सी, भाग 1, पेज 184
  76. देखेः जुस्तुजूगर हदीसी मीज़ान
  77. قال رسول الله(ص): من توضّأ فأحسن الوضوء و صلّى ركعتين لم يحدّث نفسه فيهما بشيء من الدّنيا خرج من ذنوبه كيوم ولدته أمّه؛ क़ाला रसूलुल्लाह (स) मन तवज़्जा फ़आहसनल वुज़ू वा सल्ला रकातैन लम यहददिस नफसुहू फ़ीहेमा बेशैइन मिनद दुनिया खराजा मिन ज़ुनूबेही कयौमे वलेदतहू उम्मोहू, अनुवादः जो शख्स सही तरीके से वुज़ू करता है और दो रकअत नमाज़ पढ़ता है, अगर उसका कोई सांसारिक इरादा नहीं है, तो उसके सारे पाप साफ हो जाते हैं। मानो उसका नया जन्म हुआ हो (ग़ज़ाली, एहया ए उलूमे अल-दीन, दार उल किताब अल-अरबी, भाग 2, पेज 48)
  78. قال رسول الله(ص): اذا غضب أحدكم فليتوضأ؛ क़ाला रसूलुल्लाह (स) इज़ा ग़ज़बा आहदोकुम फ़तवज्जा, अनुवादः जब भी तुम में से किसी को गुस्सा आए तो उसे वुज़ू कर लेना चाहिए। (मुहद्दिस नूरी, मुस्तदरक उल-वसाइल, 1407 हिजरी, भाग 1, पेज 353
  79. قال رسول الله(ص): ... أكثر من الطهور یزد الله في عمرك... क़ाला रसूलुल्लाह (स)... अकसरो मिनत तोहूरे यज्दुल्लाहा फ़ी उम्रेका, (शेख मुफ़ीद, अमाली, 1403 हिजरी, भाग 1, पेज 60, हदीस 5)
  80. قال رسول الله(ص): يَحْشُرُ اللَّهُ أُمَّتِي يَوْمَ الْقِيَامَةِ بَيْنَ الْأُمَمِ غُرّاً مُحَجَّلِينَ مِنْ آثَارِ الْوُضُوءِ؛ क़ाला रसूलुल्लाह (स) यहशोरुल्लाहो उम्मती यौमल क़ियामते बैनल उमामे गुर्रन मोहज्जेलीना मिन आसारिल वुज़ूए, अनुवादः क़ियामत के दिन मेरी उम्मत वुज़ू की वजह से एक रौशन चेहरे वाली दूसरी उम्मतों से घिरी होगी। (मग़रिबी, दआएमुल इस्लाम, 1385 हिजरी, भाग 1, पेज 100)
  81. قال النبی(ص): دم على الطهارة يوسع عليك في الرزق क़ालन नबी (स) दमुन अलत्तहारते यूसाअ अलैका फ़िर रिज़्क़े, अनुवादः हमेशा पवित्र रहो ताकि तुम्हारी जीविका प्रचुर मात्रा में हो। (मुत्तक़ी हिंदी, कन्जुल उम्माल, 1405 हिजरी, भाग 16, पेज 129, हदीस 44154)
  82. أن الوضوء على الوضوء نور على نور؛ अन्नल वुज़ू अल्ल वुज़ू नूरुन अलन नूर, अनुवादः बा वुजू होते हुए वुजू करना सोने पर सुहागा है। (शेख़ सुदूक, मन ला याहज़ेरोहुल फ़क़ीह, जामे मुदर्रेसीन होज़ा ए इल्मिया क़ुम, भाग 1, पजे 41)
  83. امام صادق(ع): من جدد وضوءه لغير حدث جدد الله توبته من غير استغفار इमाम सादिक़ (अ) मन जद्दा वुज़ू लेग़ैरे हदसिन जद्दल्लाहो तौबतहू मिन ग़ैरे इस्तिग़फारिन, अनुवादः जो कोई भी तजदीदे वुज़ू करता है, अल्लाह माफी मांगे बिना उसकी पश्चाताप को नवीनीकृत करता है। (हुर्रे आमोली, वसाइल उश-शिया, आले अल-बैत, भाग 1, पेज 377)

स्रोत

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  • हुसैनी दश्ती, सय्यद मुस्तफ़ा, वुज़ू दर मआरिफ वा मआरीफ़, भाग 10, तेहरान, मोअस्सेसा फ़रहंगी आरायेह, 1379 शम्सी
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