इस्लाह ज़ात अल-बैन

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यह लेख इस्लाह ज़ात अल-बैन की अवधारणा के बारे में है। इसी नाम की आयत के बारे मे जानने के लिए आय ए इस्लाह ज़ात अल-बैन वाला लेख देखे।

इस्लाह ज़ात अल-बैन (अरबीःاصلاح ذات البین) का अर्थ है लोगों के बीच सामंजस्य स्थापित करते हुए उनके बीच संबंधों में सुधार कराना है। इस्लाह ज़ात अल-बैन को स्वभाव को सुधारना और नैतिक गुणों में से एक माना जाता है, वहीं दूसरी ओर बुराई करना, चुगली करना और लोगों के बीच द्वंद्व और शत्रुता पैदा करना नैतिक दोष हैं।

आयतो और रिवायतो में, लोगों को मेल-मिलाप कराने और उनके बीच शत्रुता और विवादों को समाप्त करने के लिए समाधान प्रस्तावित किए गए हैं; जिसमें पारिवारिक विवादों में पक्षों द्वारा मध्यस्थ का चयन करना, सही वसीयत बनाकर विवादों को होने से रोकना और धार्मिक भावनाओ को उभारना शामिल है। धार्मिक शिक्षाओं में, कंजूसी, शैतान का अनुसरण और सांसारिकता जैसे गुणों को इस्लाह ज़ात अल-बैन की बाधाओं के रूप में पेश किया गया है।

परिभाषा

व्यक्तियों या समूहों के बीच शत्रुता और विवाद के कारण उत्पन्न होने वाले खराब संबंधों के सुधार करने का इस्लाह ज़ात अल-बैन कहा जाता है[१] [नोट १][२] यह शब्द सूर ए अनफ़ाल की पहली आयत से लिया गया है।[३] इस्लाह ज़ात अल-बैन दो व्यक्तियों और दो समूहों में मेल-मिलाप कराने को शामिल है।

इस्लाह ज़ात अल-बैन नैतिक गुणों में से एक है और इसके विपरीत आरोप लगाना, अपशब्द कहना, बुरा कहना, चुगली करना और ऐब निकालना इत्यादि नैतिक दोष कहे जाते है।[४]

महत्व एवं स्थान

क़ुरआन मजीद की कई आयतो मे इस्लाह ज़ात अल-बैन का उल्लेख किया है और इस्लाह ज़ात अल-बैन का का आदेश दिया है।[५] इसके अलावा, इमाम अली (अ) ने हसनैन (अ) को इस्लाह ज़ात अल-बय्यन की वसीयत की है।[नोट २][६] कुरआन की आयतों के अनुसार, जो लोग लोगों के बीच मेल मिलाप कराने की कोशिश करता हैं ऐसा व्यक्ति ईश्वर की दया और क्षमा का आनंद लेता है[७] कुछ रिवायतो मे इस्लाह ज़ात अल-बैन (लोगो के बीच मेल मिलाप कराना) को नमाज़ और रोज़े[८] और दान[९] से बेहतर माना गया है। इसके अलावा, एक रिवायत के आधार पर जो दो लोगों के बीच मेल मिलाप करने का काम करता है, स्वर्गदूत उस पर सलाम और दुरूद भेजते है, और उसको शबे-क़द्र दरक करने का सवाब (इनाम) मिलता है।[१०]

इमाम सादिक़ (अ) की एक रिवायत के अनुसार लोगों के बीच सुधार करने के लिए अगर झूठ का सहारा लिया जाए तो यह जायज़ अमल है।[११][नोट ३] इसके अलावा, क़ुरआन ने इस्लाह ज़ात अल-बैन के लिए कानाफूसी को जायज़ माना है।[१२] भले ही कानाफूसी को दूसरी जगह एक बुरा (शैतानी) अमल[१३] माना गया है।[१४] क़ुरआन ने लोगों के बीच मेल मिलाप कराने को छोड़ने की शपथ को वैध नहीं मानता है।[१५]

एक रिवायत के अनुसार इमाम सादिक़ (अ) की ओर से मुफ़ज़्ज़ल बिन उमर के पास धन रखा गया था और उन्होंने इसका इस्तेमाल शियो के बीच पैदा होने वाले वाद-विवाद को समाप्त करने और उनके बीच मेल मिलाप कराने मे खर्च करने की अनुमति दी गई थी। उदाहरण के लिए, उन्होंने उस राशि का उपयोग अबू हनीफा[नोट ४]और उसके दामाद के बीच विवाद को निपटाने के लिए किया गया था।[१६]

समाधान और बाधाएँ

लोगों में सुधार लाने के लिए उपाय बताए गए हैं:

  • विवादों की रोकथाम: क़ुरआन के टिप्पणीकारों ने सूर ए बक़रा की आयत न 182 के संदेश और अवधारणा के अनुसार किसी व्यक्ति के उत्तराधिकारियों के बीच विवादों की रोकथाम के लिए ज़रूरी इकदाम यब बताया है[१७] वसीयतकर्ता शरई कानूनो और न्याय के अनुसार वसीयत करे ताकि उत्तराधिकारी उसके अनुसार न्याय का पालन करते हुए अपने कर्तव्य को पूरा करे और मतभेद होने से बच जाए।[१८]
  • पारिवारिक विवादों में पति-पत्नी द्वारा मध्यस्थ का चयन: पारिवारिक विवादों को सुलझाने के लिए जब पति-पत्नी को अलगाव का डर हो, तो यह सुझाव दिया जाता है कि प्रत्येक पुरुष और पत्नी सुलह बनाने के लिए एक मध्यस्थ का चयन करें।[१९]

मतभेदों की जड़ खोजना, भावनात्मक मुद्दों का उपयोग करना, धैर्य रखना और पक्ष लेने से बचना लोगो मे मेल मिलाप कराने के अन्य तरीकों के रूप में पेश किया गया है।[२०] चुगली करना और विभाजन लोगों के बीच मेल-मिलाप को नष्ट करने मे महत्वपूर्ण कारक है, और इससे निपटने का समाधान चुगली करने पर भरोसा न करना और उसे अस्वीकार करना है।[२१]

चरण और तरीके

लोगों के बीच मतभेदों को सुलझाना सरकार और विश्वासियों का कर्तव्य है। जैसा कि तफ़सीर नमूना मे कहा गया है, यदि सुधार बातचीत के माध्यम से किया जाता है, तो इसके लिए शरिया के शासक (हाकिम शरअ) की अनुमति की आवश्यकता नहीं होती है, लेकिन यदि इस्लाह ज़ात अल-बैन के लिए सख्त कार्रवाई की आवश्यकता होती है, तो शरिया के शासक (हाकिम शरअ) से अनुमति लेनी होगी[२२] इसी तरह सूर ए हुजरात की आयत न 9 के अनुसार जब विश्वासियों के दो समूहों के बीच झगड़ा हो जाए तो सर्वप्रथम नसीहत और क़ुरआन और ईश्वर के आदेश की ओर निमंत्रण के माध्यम से उनके बीच सुलह करानी चाहिए, लेकिन अगर कोई समूह सुलह की पेशकश को स्वीकार नहीं करता है, तो उनसे लड़ना चाहिए।[२३]

बाधाएं

क़ुरआन की व्याख्यात्मक पुस्तको मे शैतान का अनुसरण करते हुए[२४] सांसारिकता[२५] और कंजूसी[२६] को लोगो के बीच मेल मिलाप (इस्लाह ज़ात अल-बैन) में बाधाओं के रूप में पेश किया गया है।

न्यायशास्त्रीय नियम

न्यायविदों ने इस्लाह ज़ात अल-बैन के शीर्षक के तहत कई न्यायशास्त्रीय फैसले प्रस्तुत किए हैं:

  • ऐसे दो या दो से अधिक लोगों के बीच मेल-मिलाप कराना मुस्तहब अमल है जो एक-दूसरे के प्रति घृणा और शत्रुता रखते हैं और यह उन मामलों में वाजिब हो जाता है जहां एक आस्तिक (मोमिन) का जीवन दांव पर है।[२७] मरज ए तक़लीद आयतुल्लाह मकारिम शिराज़ी के अनुसार, एक-दूसरे से दुश्मनी रखने वाले दो मुस्लिम समूहों के बीच मेल-मिलाप कराना वाजिब किफ़ाई है।[२८]
  • इस्लाह ज़ात अल-बैन (लोगो के बीच मेल-मिलाप कराने) के लिए ज़कात खर्च करना जायज़ है।[२९]
  • मुस्तहब है कि न्यायाधीश फैसला सुनाने से पहले दोनों पक्षों को सुलह के लिए बुलाए और यदि कोई पक्ष सुलह करने से इनकार करे तो फैसला सुनाए।[३०]
  • साहिब जवाहर के अनुसार, पति और पत्नी के बीच सुलह के लिए महिला और पुरुष के लिए एक मध्यस्थ चुनना अनिवार्य है, हालांकि अल्लामा हिल्ली ने अपनी किताब तहरीर मे इस काम को मुस्तहब बताया है।[३१]

संबंधित लेख

फ़ुटनोट

  1. तबातबाई, अल-मीज़ान, 1390, भाग 9, पेज 6
  2. देखेः तबरेसी, मजमा अल बयान, 1372 शम्सी, भाग 4, पेज 798
  3. दहखुदा, लुग़त नामा, इस्लाहे ज़ात बइइन श्बद के अंतर्गत
  4. मकारिम शिराज़ी, अख़लाक़ दर क़ुरआन, 1377 शम्सी, भाग 3, पेज 314
  5. देखेः सूर ए हुजरात, आयत न 10
  6. नहज अल बलाग़ा, सुब्ही सालेह, पत्र न 47
  7. सूर ए नेसा, आयत न 129
  8. सदूक़, सवाब अल आमाल, 1406 हिजरी, पेज 148
  9. हुर्रे आमोली, वसाइल अल शिया, 1409 हिजरी, भाग 18, पेज 441
  10. दैलमी, आलाम अल दीन, 1408 हिजरी, पेज 419
  11. कुलैनी, अल काफ़ी, 1407 हिजरी, भाग 2, पेज 341
  12. सूर ए नेसा, आयत न 114
  13. सूर ए मुजादेला, आयत न 10
  14. मकारिम शिराज़ी, तफसीर नमूना, 1371 शम्सी, भाग 4, पेज 127
  15. सूर ए बक़रा, आयत न 224
  16. कुलैनी, अल काफ़ी, 1407 हिजरी, भाग 2, पेज 209, हदीस 2
  17. तबरेसी, मजमा अल बयान, 1371 शम्सी, भाग 1, पेज 485
  18. फ़ख़्रे राज़ी, अल तफसीर अल कबीर, 1420 हिजरी, भाग 5, पेज 236-239
  19. तूसी, अल तिबयान, भाग 3, पेज 192 तबरेसी, मजमा अल बयान, 1371 शम्सी, भाग 3, पेज 70
  20. मकारिम शिराज़ी, अख़लाक़ दर क़ुरआन, 1377 शम्सी, भाग 3, पेज 317-318
  21. अल्लामा मजलिसी, बिहार उल अनवार, 1403 हिजरी, भाग 75, पेज 268
  22. मकारिम शिराज़ी, तफ़सीर नमूना, 1371 शम्सी, भाग 22, पेज 170
  23. तिबरी, जामे अल बयान, 1412 हिजरी, भाग 26, पेज 80-81 फ़ैज़ काशानी, तफसीर अल साफ़ी, 1415 हिजरी, भगा 5, पेज 50
  24. मुग़निया, अल-काशिफ़, 1424 हिजरी, भाग 1, पेज 311
  25. हाशमी रफसंजानी, तफसीर राहनुमा, 1386 शम्सी, भाग 6, पेज 302
  26. मकारिम शिराज़ी, तफसीर नमूना, 1371 शम्सी, भाग 4, पेज 151
  27. काशिफ़ अल ग़ेता, वजीज़तुल अहकाम, 1366 हिजरी, भाग 2, पेज 16
  28. मकारिम शिराज़ी, तफसीर नमूना, 1374 शम्सी, भाग 22, पेज 170
  29. नजफ़ी, जवाहिर अल कलाम, 1404 हिजरी, भाग 15, पेज 361-362
  30. नजफ़ी, जवाहिर अल कलाम, 1404 हिजरी, भाग 40, पेज 145
  31. नजफ़ी, जवाहिर अल कलाम, 1404 हिजरी, भाग 31, पेज 213

नोट

  1. दो लोगो के बीच मेल-मिलाप कराना, दो लोगो के बीच मतभेद को समाप्त करके उनको एक कर देना, सुधार का विलोम मतभेद है जिसका अर्थ लोगो मे मतभेद और जुदाई पैदा करना है। (लुग़त नामा दहखुदा, इस्लाह ज़ात अल-बैनके अंतर्गत)
  2. وَ صَلاَحِ ذَاتِ بَيْنِكُمْ فَإِنِّي سَمِعْتُ جَدَّكُمَا - صلى الله عليه و اله - يَقُولُ صَلاَحُ ذَاتِ الْبَيْنِ أَفْضَلُ مِنْ عَامَّةِ الصَّلاَةِ وَ الصِّيَامِ ... व सलाहे जाते बैनेकुम फ़इन्नी समेअतो जदकोमा- सल लल्लाहो अलैहे व आलेही- यक़ूलो सलाहो ज़ातिल बय्येने अफ़ज़्लो मिन आम्मतिस सलाते वस सेयामे --- (अनुवादः और तुम दोनो को मेल-मिलाप की सलाह देता हूं क्योकि मैने तुम्हारे पूर्वज हज़रत रसूल ख़ुदा को फ़रमाते हुए सुना- आपने फ़रमायाः लोगो के बीच मेल-मिलाप कराना सभी नमाज़ और रोज़ो से बेहतर काम है)। इस बात को ध्यान में रखते हुए कि आमतौर पर किसी व्यक्ति द्वारा मृत्यु के समय दिए गए निर्देश और सिफारिशें ही सबसे महत्वपूर्ण सलाह होती हैं, खासकर यदि वह महत्वपूर्ण और प्रभावशाली व्यक्तित्व और पद का व्यक्ति हो। इसलिए इमाम अली (अ) के इस्लाह ज़ात अल-बैनके बारे मे इरशादात अपने सिर पर घाव लगने और शहादत प्राप्त करने से कुछ क्षण पहले बयान फ़रमाए है। विशेष रूप से उन्होने अपने इस कथन को पैग़म्बर (स) से नक़्ल करते हुए बयान फ़रमाया है। ऐसी स्थिति से पता चलता है कि इमाम अली (अ) की नज़र मे सामाजिक संबंधों मे लोगो के बीच मेल-मिलाप कराना कितना महत्वपूर्ण है!
  3. قَالَ إِنَّ اللهَ... وَ أَحَبَّ الْكَذِبَ فِي الْإِصْلَاحِ... क़ाला इन्नल्लाहा --- व अहब्बल कज़ेबा फ़िल इस्लाहे --- इमाम सादिक (अ) ने इस्लाह ज़ात अल-बय्यन को झूठ बोलना जायज़ होने के मामलो मे से एक घोषित किया है। हालाँकि, सुधार का अर्थ व्यापक है और सुधार का तात्पर्य सभी प्रकार के भ्रष्टाचार और खराबी से मुकाबला करना है। उदाहरण के लिए, हज़रत इब्राहीम (अ) ने लोगों को मूर्तिपूजा के अभिशाप से बचाने के लिए सभी मूर्तियों को तोड़ दिया और बड़ी मूर्ति की गर्दन मे कुल्हाड़ी लटका दी और लोगों से कहा कि इस बड़ी मूर्ति ने सभी छोटी मूर्तियों को तोड़ा है। उसुल काफ़ी, भाग 2, पेज 342
  4. अबू हनीफा का तात्पर्य यहां सईद बिन बयान है, जो प्रसिद्ध अबू हनीफा (हनाफियों के नेता) के अलावा कोई और व्यक्ति है, जिसका काम हाजीयो के कारवां का नेतृत्व करना था, यही कारण है कि उसे साइक़ अल-हज कहा जाता था। अथवा लोगो को कूफ़ा से अराफ़ात की ओर शीघ्र पहुचाने का काम करता था, इस लिए वह साबिक अल हाज के नाम से भी प्रसिद्ध हुआ। उसूल काफ़ी, 1407 हिजरी, चौथा संस्करण, दार अल कुतुब अल-इस्लामिया, संशोधन, अली अकबर गफ़्फ़ारी, भाग 2, पेज 297, फ़ुटनोट संख्या 2

स्रोत

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  • दहख़ुदा, अली अकबर, लुग़त नामा, तेहरान, दानिशकदे तेहरान, 1377 शम्सी
  • दैलमी, हसन बिन मुहम्मद, आलाम अल दीन फ़ी सिफ़ाते अल मोमेनीन, क़ुम, मोअस्सेसा आले अल-बैत अलैहेमुस सलाम, 1408 हिजरी
  • सदूक़, मुहम्मद बिन अली, सवाब अल आमाल व एक़ाब अल आमाल, क़ुम, दार अल शरीफ़ अल रज़ी लिन नशर, 1406 हिजरी
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  • तूसी, मुहम्मद बिन हसन, अल तिबयान फ़ी तफसीर अल क़ुरआन, संशोधकः अहमद हबीब आमोली, बैरूत, दार एहया अल तुरास अल अरबी
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