अल्लामा हिल्ली
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पूरा नाम | हसन बिन यूसुफ़ बिन मोतह्हर हिल्ली |
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उपनाम | आयतुल्लाह, अल्लामा |
जन्म तिथि | 29 रमज़ान वर्ष 648 हिजरी |
जन्म स्थान | हिल्ला |
मृत्यु तिथि | 21 मुहर्रम वर्ष 726 हिजरी |
मृत्यु का शहर | हिल्ला |
समाधि स्थल | इमाम अली (अ) का हरम |
गुरू | सय्यद इब्ने ताऊस, ख़्वाजा नसीरुद्दीन तूसी, इब्ने मीसम बहरानी |
शिष्य | क़ुतबुद्दीन राज़ी, फ़ख़्र उल मुहक़्क़ेक़ीन |
संकलन | कशफ़ुल मुराद, नहज उल हक़ व कश्फ़ उल सिद्क़, बाबे हादी अशर, ख़ुलासातुल अक़वाल फ़ी मारेफ़त अल रेजाल, जौहर अल-नज़ीद |
अन्य | शीया प्राधिकरण के प्रभारी, हौज़ ए इल्मिया (मदरसे) में तदरीस |
राजनीतिक | दूसरे धर्मों के विद्वानों के साथ बहस (मुनाज़ेरा), ईरान में शिया मज़हब का प्रचारन |
अल्लामा हिल्ली (648-726 हिजरी) 8वीं चंद्र शताब्दी के शिया न्यायविद और धर्मशास्त्री थे। उन्होंने विभिन्न वैज्ञानिक क्षेत्रों में 120 से अधिक पुस्तकें लिखी हैं जैसे फिक़्ह, कलाम, व्याख्या, तर्कशास्त्र, उसूल और रेजाल, जिनमें से कुछ शिया मदरसों में शिक्षण और अनुसंधान के स्रोतों में से हैं। शिया न्यायशास्त्र के विकास में अल्लामा हिल्ली की महत्वपूर्ण भूमिका मानी जाती है और यह भी कहा जाता है कि उन्होंने बौद्धिक दृष्टिकोण के आधार पर शिया धर्म और अक़ायद के नज़रियात की व्याख्या की है।
अल्लामा हिल्ली की पुस्तकें बाब अल-हादी अशर और कश्फ़ुल-मुराद, जो ख़्वाजा नसीरुद्दीन तूसी द्वारा लिखित किताब तजरीदुल एतेक़ाद की शरह है, शिया अक़ायद के अध्ययन के मुख्य स्रोतों में से हैं। नहज अल-हक़ व कश्फ़ अल-सिद्क़, ख़ुलासतुल-अक़वाल, अल-जौहर अल-नज़ीद, तज़केतुल-फ़ोक़हा, क़वायद अल-अहकाम और मुख़तलफ़ुश शिया उनकी सबसे प्रसिद्ध रचनाएं हैं।
अल्लामा हिल्ली को पहला व्यक्ति माना जाता है जिन्हे आयतुल्लाह की उपाधि से पुकारा जाता था। कुतुबुद्दीन राज़ी, फख़रुल-मोहक़्क़ेक़ीन, इब्ने मुअय्या और मुहम्मद बिन अली जुरजानी उनके सबसे प्रमुख छात्रों में से थे। ईरान और सुल्तान मुहम्मद ख़ुदाबंदे के दरबार में उनकी उपस्थिति को ईरान में शिया धर्म के प्रसार में एक प्रभावी भूमिका को तौर पर माना गया है।
जीवनी और शिक्षा
हसन बिन यूसुफ़ बिन मोतह्हर हिल्ली, जिन्हें अल्लामा हिल्ली के नाम से जाना जाता है, का जन्म 29 रमज़ान 648 हिजरी में हिल्ला शहर, इराक़ में हुआ था।[१] उनके पिता यूसुफ़ बिन मोतह्हर हिल्ला में इस्लाम के धर्मशास्त्रियों और इल्मे उसूल के विद्वानों में से एक थे।[२] वह कुछ ही साल के थे जब उन्होने अपने पिता के मार्गदर्शन में, क़ुरआन सीखने के लिए स्कूल में दाख़िला लिया और वहां पढ़ना और लिखना सीखा। फिर उन्होंने अपने पिता और अपने मामा मुहक़्क़िक़ हिल्ली से अरबी साहित्य और न्यायशास्त्र, न्यायशास्त्र के सिद्धांतों, हदीस और कलाम शास्त्र की मूल बातें सीखीं। बाद में, उन्होंने अन्य शिक्षकों, विशेष रूप से ख़्वाजा नसीर अल-दीन तूसी से तर्क, दर्शन और हैयत विज्ञान (astrology) का अध्ययन किया और यौवन (बालिग़ होने) तक पहुंचने से पहले इज्तेहाद की डिग्री तक पहुंच गए। अल्लामा हिल्ली को उनके परिवार और विद्वानों की नज़र में जमाल अल-दीन के नाम से जाना जाता था क्योंकि उन्होंने कम उम्र में ही बहुत से गुणों को प्राप्त कर लिया था।[३]
वैज्ञानिक स्थिति
चांद्र वर्ष के 676 में मुहक़्क़िक़ हिल्ली की मृत्यु के बाद, जो शिया प्राधिकरण के प्रभारी (मरजए तक़लीद) थे, उनके छात्रों और हिल्ला के विद्वानों ने नेतृत्व और शिया मरजईयत के लिये योग्य व्यक्ति की खोज के बाद, अल्लामा हिल्ली को इस महत्वपूर्ण मामले के लिए उपयुक्त पाया और वह 28 साल की उम्र में शियों के मरजए तक़लीद बन गये।[४]
अल्लामा पहले व्यक्ति थे जिन्हें उनके महान इल्म और ज्ञान के कारण आयतुल्लाह कहा जाता था। [५] इब्ने हजर अस्कलानी ने उन्हें "आयतुन फ़ी अल-ज़काह" कहा है। [६] शरफ़ अल-दीन शुलिस्तानी, शेख़ बहाई और मुहम्मद बाक़िर मजलिसी, ने अपने छात्रों को जो पत्र (इजाज़े) लिखे हैं, उनमें उन्होंने अल्लामा हिल्ली का उल्लेख "आयतुल्लाह फ़िल-आलमीन" शीर्षक के साथ किया है।[७]
ईरान में प्रवेश
उनके ईरान पहुंचने की सही तारीख़ ज्ञात नहीं है; लेकिन शायद 705 ईस्वी के बाद के वर्षों में वह सुल्तान मुहम्मद ख़ुदा बंदे के निमंत्रण पर ईरान आये थे। मुहम्मद खोदा बंदे ईलख़ानी राजवंश के राजाओं में से एक थे जिन्होंने ईरान पर शासन किया था। ताजुद्दीन आवी ने ओलजायतो के दरबार में अल्लामा हिल्ली की उपस्थिति के लिए ज़मीन तैयार की।[८] जब अल्लामा ईरान पहुंचे, तो उन्होंने न्यायशास्त्र के चार सुन्नी स्कूलों के विद्वानों के साथ बहस (मुनाज़ेरा) की, जिसमें ख्वाजा निज़ामुद्दीन अब्दुल मलिक मराग़ी भी शामिल थे। इस बहस में, वह राजा के सामने इमाम अली (अ) की संरक्षकता और इमामत और शिया धर्म की प्रामाणिकता को सिद्ध करने में सफ़ल हुए। इस घटना के कारण राजा को शिया धर्म का चुनाव करना पड़ा और उसने अपना नाम अल-जायतु से बदलकर सुल्तान मुहम्मद ख़ुदाबंदे रख लिया और ईरान में शिया धर्म का प्रसार किया।[९] विभिन्न स्रोतों में सुल्तान मुहम्मद ख़ुदा बंदे के शिया धर्म पर अल्लामा हिल्ली के प्रभाव का भी उल्लेख है।[१०]
शिक्षक
- शेख यूसुफ़ सदीदुद्दीन (उनके पिता)
- मोहक़्क़िक़ हिल्ली
- सय्यद बिन ताऊस
- सय्यद अहमद बिन ताऊस
- ख़्वाजा नसीरुद्दीन तूसी
- मुहम्मद बिन अली असदी
- यहया बिन सईद हिल्ली
- मुफ़ीदुद्दीन मुहम्मद बिन जहम हिल्ली
- इब्ने मीसम बहारानी
- जमाल अल-दीन हुसैन बिन अयाज़ नहवी
- मुहम्मद बिन मुहम्मद बिन अहमद कश्शी
- नजमुद्दीन अली बिन उमर कातबी
- बुरहानुद्दीन नस्फी
- शेख फ़ारूकी वास्ती
- शेख़ तकीउद्दीन अब्दुल्लाह बिन जाफ़र कूफी
छात्र
उनके कुछ छात्र हैं:
- मुहम्मद बिन हसन बिन यूसुफ़ हिल्ली, फ़ख़र अल-मुहक़्क़ेक़ीन (अल्लामा के बेटे)
- सय्यद अमीदुद्दीन अब्दुल मुत्तलिब (उनके भांजे)
- सैय्यद ज़ियाउद्दीन अब्दुल्लाह हुसैनी अअरजी हिल्ली (उनके भांजे)
- सैय्यद मुहम्मद बिन क़ासिम हसनी को इब्ने मुअय्या के नाम से जाना जाता है
- रज़ी अल-दीन अबुल हसन अली बिन अहमद हिल्ली
- कुतुबुद्दीन राज़ी
- इज़़्ज़ुद्दीन मुहम्मद आमोली
- सैय्यद नज्मुद्दीन महना बिन सेनान मदनी
- ताजुद्दीन महमूद बिन मौला
- तक़ीउद्दीन इब्राहिम बिन हुसैन आमोली
- मोहम्मद बिन अली जुर्जानी
- जमाल अल-दीन बिन होसाम आमेली[११]
रचनाएँ
- मुख्य लेख: अल्लामा हिल्ली की रचनाएँ
अल्लामा हिल्ली ने न्यायशास्त्र, न्यायशास्त्र के सिद्धांतों, धर्मशास्त्र, हदीस, व्याख्या, रेजाल, दर्शन और तर्क जैसे विभिन्न विज्ञानों में बहुत सी रचनाएँ लिखी हैं। इन कार्यों की संख्या को लेकर मतभेद है। अल्लामा हिल्ली ने ख़ुद किताब ख़ुलासतुल अक़वाल में अपनी 57 कृतियों का उल्लेख किया है।[१२]
सैय्यद मोहसिन अमीन आयान अल-शिया में लिखते हैं: "अल्लामा की रचनाएँ एक सौ से अधिक पुस्तकें हैं, और मैंने उनकी 95 पुस्तकें देखी हैं, जिनमें से कई के कई खंड हैं।[१३] वह यह भी कहते हैं कि किताब अल-रौज़ात ने अल्लामा के कार्यों को लगभग एक हजार शोध पुस्तकों के रूप में शुमार किया है। [१४] मिर्ज़ा मोहम्मद अली मोदर्रिस ने भी रेहाना अल-अदब[१५] में अल्लामा के लिए लगभग 120 कार्यों और किताब गुलशने अबरार [१६] ने 110 किताबों का उल्लेख किया है।
अल्लामा हिल्ली के प्रसिद्ध कार्यों में, हम न्यायशास्त्र के विषय में मुख़तलफ़ अल-शिया और तज़किरा अल-फ़ोक़हा, धर्मशास्त्र में कश्फ़ुल-मुराद, बाब हादी अशर और मिन्हाज अल-करामा, रेजाल विज्ञान में ख़ुलासतुल अक़वाल और तर्क विज्ञान में जौहर अल-नज़ीद का उल्लेख कर सकते हैं,
अल्लामा ने शिया अक़ायद के सिद्धांतों पर दो किताबें नहज अल-हक़ व कशफ़ अल-सिद्क़ और मिन्हाज अल-करामह भी लिखीं, और उन्हें उपहार के रूप में ओल्जायतो (ख़ुदा बंदे) के पास ले गए। [१७]
इमाम ज़माना (अ) से मुलाक़ात
इमाम महदी (अ) के साथ अल्लामा हिल्ली की दो मुलाकातें उनके बारे में प्रसिद्ध कहानियों में से हैं।
इमाम द्वारा पुस्तक का समापन
पहली कहानी आधी-अधूरी किताब से संबंधित है जिसे अल्लामा हिल्ली ने कॉपी (इस्तिंसाख़) करने के लिए सुन्नी विद्वानों में से एक से उधार (अमानत के तौर पर) लिया था। लेकिन आधी रात में, नींद ने उन्हे लिखने से रोक दिया। उस समय, इमाम महदी (अ) ने प्रवेश किया और अल्लामा को नक्ल का काम उनके हवाले करने के लिए कहा। जागने के बाद, अल्लामा हिल्ली ने देखा कि पुस्तक की प्रतिलिपि समाप्त हो गई थी।[१८] कहानी का सबसे पुराना स्रोत क़ाज़ी नूरुल्लाह शुश्तरी द्वारा लिखित पुस्तक मजालिस अल-मोमिनिन है। शूश्तरी ने इस कहानी के लिए किसी लिखित स्रोत का उल्लेख नहीं किया और वह कहते हैं कि यह कहानी मोमिनीन के बीच प्रसिद्ध है।[१९]
कर्बला के रास्ते में मुलाक़ात
दूसरी घटना किताब क़सस अल-उलमा में उल्लेख किया गया है, जिसे मुहम्मद बिन सुलेमान तोनेकाबुनी ने लिखा है। और उनके कथन के अनुसार, अल्लामा हिल्ली की कर्बला की एक यात्रा में, रास्ते में एक सय्यद उनके साथ हो जाते हैं, और उनके साथ बात करने के बाद, उन्होने महसूस किया कि वह एक बहुत ही ज्ञानी व्यक्ति हैं, और उन्होने उनके साथ अपनी कठिन वैज्ञानिक समस्याओं को साझा किया और उत्तर प्राप्त किये। इस बीच, वह उनसे पूछते हैं कि क्या ग़ैबते कुबरा (इमाम ज़माना की अनुपस्थिति) के दौरान इमाम ज़माना (अ) से मिलना संभव है। और उसी समय उनके हाथ से चाबुक गिर जाता है, वह व्यक्ति चाबुक को ज़मीन से उठाते है और अल्लामा को देता है और जवाब देते हैं कि यह कैसे संभव नहीं है जब उनका हाथ अभी आपके हाथ में है। अल्लामा हिल्ली को पता चल जाता है कि वह व्यक्ति खुद इमाम महदी हैं और वह खुद को उनके चरणों में गिरा देते हैं।[२०]
मुहम्मद बिन सुलेमान तोनेकाबुनी ने इस कहानी के लिए किसी स्रोत का उल्लेख नहीं किया है और उन्होने इसे एक कहानी के रूप में सुनाया है जो जीभ और मुंह में प्रसिद्ध है।[२१] तोनेकाबुनी ने कहानी की पुष्टि करने के लिए जिस गवाह का उल्लेख किया है, वह यह है कि अल्लामा और उनके बीच बातचीत में वह व्यक्ति, अल्लामा को शेख़ तूसी की किताब अल-तहज़ीब में एक हदीस का हवाला देते हैं, जिस हदीस की तरफ़ अल्लामा का ध्यान नहीं होता है। घर लौटने के बाद, अल्लामा ने उस हदीस को तलाश किया और पाने के बाद उसके हाशिए में लिखा कि इमाम महदी (अ) ने मुझे इस हदीस की ओर निर्देशित किया। तोनेकाबुनी ने इस घटना को सैय्यद मुहम्मद बिन अली तबातबाई मनाहिल किताब के लेखक के छात्र मुल्ला सफ़र अली लाहिजी नाम के एक व्यक्ति के हवाले से बयान किया है। लाहीजी ने अपने शिक्षक सैय्यद मोहम्मद के हवाले से उल्लेख किया हैं कि उन्होंने अल्लामा हिल्ली की उस किताब और उस नोट को देखा था। [२२]
वफ़ात
716 हिजरी में सुल्तान मोहम्मद खुदाबंदे की मृत्यु के बाद, अल्लामा हिल्ली हिल्ला शहर लौट आए और अपने जीवन के अंत तक वहीं रहे। अंत में 21 मुहर्रम 726 हिजरी को 78 साल की उम्र में हिल्ला शहर में उनकी मृत्यु हो गई और उन्हें अमीरुल मोमिनीन की दरगाह में दफ़्न किया गया।[२३]
फ़ुटनोट
- ↑ अल्लामा हिल्ली, रेजाल अल-अल्लामा, 1961, पृष्ठ 48।
- ↑ इशमीतके, अंदीशाहाय कलामी अल्लामा हिल्ली, 1378, पृष्ठ 24।
- ↑ गुलशने अबरार, 1385, खंड 1, पृष्ठ 138।
- ↑ बयात, मसूद व दीगारान, "नक़्शे अल्लामा हिल्ली दर रुश्द व पेश रफ़्ते कलामे शीई", पृष्ठ 67।
- ↑ दायरतुल मआरिफ़े बुज़ुर्गे इस्लामी, "आयतुल्लाह" प्रविष्टि।
- ↑ अस्क़लानी, लेसान अल-मिज़ान, 1390 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 317।
- ↑ मजलेसी, बिहार अल-अनवार, 1403 हिजरी, खंड 1, पेज 204, 107, 81।
- ↑ मुस्तर्दक अल-वसायल, खंड 2, पृष्ठ 406
- ↑ ख़ुनसारी, रौज़ात अल-जन्नात, 1986, खंड 2, पृष्ठ 279, पृष्ठ 280।
- ↑ अमीन, आयान अल-शिया, 1406 हिजरी, खंड 24, पृष्ठ 231
- ↑ सफ़दी, अल-वाफी बिलवफ़यात, 1401 हिजरी, खंड 6, पृष्ठ 79।
- ↑ अमीन, आयान अल-शिया, 1406 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 402।
- ↑ अमीन, आयान अल-शिया, 1406 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 402।
- ↑ अमीन, आयान अल-शिया, 1406 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 402।
- ↑ मुदर्रसी, रिहाना अल-अदब, 1369, खंड 4, पेज 174-178
- ↑ गुलशने अबरार, 1385, खंड 1, पृष्ठ 144।
- ↑ अमीन, आयान अल-शिया, 1406 हिजरी, खंड 10, पृष्ठ 229; तेहरानी, अल-ज़रिया, 1403 हिजरी, खंड 23, पृष्ठ 172।
- ↑ शुशतरी, मजालिस अल-मोमेनिन, 1365, खंड 1, पृष्ठ 571।
- ↑ शुशतरी, मजालिस अल-मोमेनिन, 1365, खंड 1, पृष्ठ 571।
- ↑ तोनेकाबुनी, क़सस अल-उलमा, पृष्ठ 883।
- ↑ तोनेकाबुनी, क़सस अल-उलमा, पृष्ठ 883।
- ↑ तोनेकाबुनी, क़सस अल-उलमा, पृष्ठ 885।
- ↑ अमीन, आयान अल-शिया, 1406 हिजरी, खंड 24, पृष्ठ 223; शुशतरी, मजालिस अल-मोमेनिन, 1365, खंड 1, पृष्ठ 574।
स्रोत
- इब्ने-हजर अस्क़लानी, अहमद, लेसान अल-मिजान, बेरूत, 1390 हिजरी।
- इसमितीके, ज़ाबिनेह अंदिशा हाय कलामी अल्लामा हिल्ली, अनुवादित: अहमद नुमाई, मशहद, बुनियादे पिजोहिश हाय इस्लामी, 1378 शम्सी।
- अमीन, सैय्यद मोहसेन, आयान अल-शिया, बेरूत, दार अल-तआरुफ़ लिल मतबूआत प्रकाशन, 1406 हिजरी/1986 ई।
- बयात, मसूद व दीगारान, "नक़्शे अल्लामा हिल्ली दर रुश्द व पेशरफ़्ते कलामे शीई", दर दो फ़स्लनामा ए तख़स्सोसी सीरए पजोहे अहले-बैत (स), नंबर पांच, 2016 की शरद ऋतु और सर्दियों।
- तोनेकाबुनी, मुहम्मद बिन सुलेमान, क़सस अल-उलमा, पीडीएफ संस्करण।
- तेहरानी, आग़ा बुज़ुर्ग, अल-जरिया इला तसानीफ़ अल-शिया, बेरूत, दार अल-अज़वा, 1403 हिजरी।
- क़ोम सेमिनरी के शोधकर्ताओं का एक समूह, गुलशने अबरार, क़ुम, नशरे मारूफ़, तीसरा संस्करण, 2005।
- ख़ान्दमीर, ग़यासुद्दीन, तारीख़ हबीब सेयर फ़ी अख़बारे अफ़रादिल बशर, बे ऐहतेमामे जलालुद्दीन होमाई, तेहरान, ख़य्याम लाइब्रेरी, 1333 शम्सी।
- ख़ुनसारी, मोहम्मद बाकिर, रौज़ात अल-जन्नात फ़ी अहवाल उलमा वल-सादात, कुम, बी ना, 1986।
- दायरतुल मआरिफ़े बुज़ुर्गे इस्लामी, प्रविष्टि "आयतुल्लाह" [1]।
- शूशतरी, क़ाज़ी नूरुल्लाह, मजालिस अल-मोमेनिन, तेहरान, इस्लामिया बुक स्टोर, 1365 शम्सी।
- अल्लामा हिल्ली, हसन बिन यूसुफ, रेजाल अल अल्लामा, बे ऐहतेमाम मोहम्मद सादिक़ बहरुल उलूम, नजफ़, हैदरीया, 1961 ई.।
- मजलिसी, मोहम्मद बाक़िर, बिहार अल-अनवार, बेरूत, अल-वफा फाउंडेशन, 1403 हिजरी।
- मोदर्रिस, मिर्जा मोहम्मद अली, रेहाना अल-अदब, तेहरान, इंतेशाराते ख़य्याम, 1369 शम्सी।