कर्बला

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कर्बला

कर्बला या कर्बला ए मोअल्ला (अरबीःكربلاء) इराक़ में शिया तीर्थस्थलों में से एक है। 61 हिजरी में कर्बला की घटना में इमाम हुसैन (अ) और उनके साथियों की शहादत और इमाम हुसैन (अ) और हज़रत अब्बास (अ) के हरम ने इस स्थान को शियो के लिए इस शहर को बहुत महत्व दिया है।

इस्लाम से पहले कर्बला का इतिहास बेबीलोनियन काल तक जाता है। इस्लामी विजय के बाद जनजातियाँ कर्बला के आसपास और फ़ोरात नदी के पास रहती थीं। मुहर्रम की 10वीं तारीख को आशूरा की घटना में इमाम हुसैन (अ) और उनके साथियों की शहादत और कर्बला में उनके पार्थिव शवों को दफनाने के बाद, शिया लोग इमाम हुसैन (अ) के हरम की ज़ियारत के लिए कर्बला जाने लगे। इमाम हुसैन (अ) और कर्बला के अन्य शहीदों की ज़ियारत ने शियो के प्रयासों ने कर्बला को शिया बस्ती में बदलने की प्रक्रिया प्रदान की। चंद्र कैलेंडर की दूसरी और तीसरी हिजरी से कर्बला में पहला निर्माण कार्य किया गया। आले बुयेह काल के दौरान कर्बला शहर को विकसित करने के लिए कई उपाय किए गए; लेकिन कर्बला के विकास के लिए सबसे अधिक प्रयास का श्रेय सफ़वी और क़ाजार को जाता है।

तीसरी चंद्र शताब्दी में कर्बला शहर के विकास के साथ-साथ, कर्बला के धार्मिक स्कूलों की स्थापना हुई। हौज़ा ए इल्मीया कर्बला की इल्मी रौनक़ पूरे इतिहास में उतार-चढ़ाव के साथ रही है। कर्बला के क्षेत्रों की वैज्ञानिक समृद्धि के साथ-साथ, कई शिया परिवार ज्ञान प्राप्त करने के लिए कर्बला में बस गए, जिनमें आले ताअमा, आले नक़ीब, बहबहानी, शहरिस्तानी और शिराज़ी परिवार शामिल थे।

कर्बला शहर ने पिछली दो शताब्दियों में कई घटनाओं का अनुभव किया है। कर्बला पर वहाबी आक्रमण, इस शहर पर तुर्क गवर्नर नजीब पाशा का हमला, 1920 की क्रांति और शाबानिया इंतिफादा इन दो शताब्दियों की कुछ मुख्य घटनाएं हैं। 20वीं सदी में उस्मानी साम्राज्य के पतन और ब्रिटिशों द्वारा इसके कब्जे के बाद कर्बला शहर राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक दलों और संगठनों के गठन और इराक की स्वतंत्रता के बाद इसकी वृद्धि का गवाह बना। जमईयातुल-इत्तिहाद वल तरक़्क़ी, अलजमईयातुल वतानीयातिल इस्लामीया, कर्बला में हिज्ब अल-दावा अल-इस्लामिया की शाखा और इराक की इस्लामिक सुप्रीम काउंसिल की शाखा कर्बला में सबसे महत्वपूर्ण शिया पार्टियों के रूप में जानी जाती है।

दुनिया भर से शिया विभिन्न अवसरों पर ज़ियारत के लिए इस शहर आते हैं। इस उपस्थिति का चरम मुहर्रम और सफ़र के अय्यामे अज़ा (शोक के दिनों) विशेष रूप से अरबाईन वॉक के दौरान होता है। 2015 और 2016 में अरबईन वॉक मे ज़ायरीन की संख्या लगभग 20 मिलियन बताई गई है।

पूरे इतिहास में कर्बला को अन्य नामों से भी पुकारा गया है। उनमें ग़ाज़रिया, नैनवा, तफ़्फ़, अक़्र, हायर और नवावीस शामिल हैं।

परिचय

कर्बला इराक़ में शियो के ज़ियारती (तीर्थ) और पवित्र शहरों में से एक है।[१] यह शहर इराक़ के दक्षिणी हिस्से में इसी नाम (कर्बला) के प्रांत के केंद्र में स्थित है और इस देश की राजधानी बगदाद से लगभग 100 किलोमीटर दूर है।[२]

कर्बला की घटना में इमाम हुसैन (अ) और उनके साथियों की शहादत, इमाम हुसैन (अ) और हज़रत अब्बास (अ) के हरम का अस्तित्व और अन्य तीर्थस्थल, इस शहर को सबसे अधिक देखे जाने वाले शहरों में से एक बनाते हैं। विशेष रूप से अज़ा ए मुहर्रम और अरबाईन ए हुसैनी समारोहों के दिनों मे ज़ियारती शरहो मे परिवर्तित हो गए हैं।[३]

1914 में उस्मानी साम्राज्य के पतन और 2003 में सद्दाम के शासन के पतन के बाद, कर्बला को इराक़ में एक विशेष राजनीतिक स्थान मिला है। ब्रिटेन के खिलाफ कर्बला में मरजा ए तक़लीद आयतुल्लाह मुहम्मद तकी शिराज़ी का जिहाद का फ़तवा और इस देश में ब्रिटेन की निरंतर उपस्थिति के विरोध में 1920 के दशक के इराकी लोगों के क्रांति में उनका नेतृत्व, समकालीन में कर्बला की राजनीतिक भूमिका को दर्शाता है।[४] सद्दाम के शासन के पतन के बाद इस शहर की नमाज़े जुमा मे इस देश और इस्लामी दुनिया के राजनीतिक और सामाजिक विकास के संबंध में इराकी शिया मरजेईयत की स्थिति की घोषणा की जाती है। कर्बला में शुक्रवार की नमाज के मंच से मरजा ए तक़लीद आयतुल्लाह सिस्तानी द्वारा आईएसआईएस के खिलाफ जिहाद के फतवे की घोषणा उनमें से एक है।[५]

2015 की जनगणना के अनुसार, कर्बला शहर की जनसंख्या लगभग सात लाख लोगों की बताई गई है।[६] पूरे इतिहास में कर्बला के विभिन्न नाम हैं। ग़ाज़रिया, नैनवा, तफ़्फ़, अक़्र, हायर और नवावीस उनमें से हैं।[७]

इतिहास

कर्बला की हवाई तस्वीर, 2003 मे बअसी सरकार के पतन पश्चात कर्बाल मे निर्माण कार्य का आरम्भ हुआ।

इस्लाम से पहले कुछ स्रोतों ने कर्बला की पृष्ठभूमि बेबीलोनियाई युग से माना है।[८] कुछ रिपोर्टों ने कर्बला को इस्लामी विजय से पहले ईसाइयों के कब्रिस्तान, और कुछ ने इसे ज़रतुश्तीयो के आतिशकदो के केंद्र के रूप में परिचित कराया किया है।[९] बहुत समय पहले कर्बला के आसपास विशेष रूप से फ़रात नदी के निकटवर्ती क्षेत्रों में बहुत से गांव आबाद थे।[१०] इसके अलावा कुछ रिपोर्टो मे कुछ पैगम्बरों का वहा आना विशेष कर कुछ ऊलुल अज़्म पैगंबरो जैसे हज़रत नूह और हज़रत इब्राहीम (अ) का कबर्ला मे आने के बारे मे रिवाई किताबो मे उल्लेख है।[११]

मुसलमानों के हाथो इराक और बैनल नहरैन (मौसोपोटामिया) की विजय के बाद आशूरा की घटना से पहले इतिहासकारों द्वारा दुर्लभ रिपोर्टें दर्ज की गई हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार 12 हिजरी में खालिद बिन वलीद ने हैरा की लड़ाई के दौरान हैरा (वर्तमान नजफ़ के पास) पर विजय प्राप्त करने के बाद कर्बला में डेरा डाला था।[१२] कुछ रिपोर्टों में सिफ़्फ़ीन की लड़ाई से वापसी पर इमाम अली (अ) रास्ते से गुज़रते हुए वहा नमाज़ और विश्राम के लिए कर्बला में रुके, और आप (अ) ने भविष्य में अपने बेटे हुसैन (अ) और उनके साथियों और उनके परिवार के साथ होने वाली घटनाओं के बारे में भविष्यवाणी की।[१३]

सबसे महत्वपूर्ण घटना जिसने कर्बला को शियो के लिए प्रसिद्ध और महत्वपूर्ण बनाया वह आशूरा की घटना है। इस घटना में यज़ीद के प्रति निष्ठा की प्रतिज्ञा न करने और कूफ़ा के लोगों की ओर से आपके प्रति निष्ठा की प्रतिज्ञा करने के लिए विभिन्न पत्र[१४] लिखने के पश्चात आप (अ) ने मक्का से कूफ़ा के लिए प्रस्थान किया।[१५] कूफ़ा के गर्वनर उबैदुल्लाह बिन ज़ियाद के आदेश[१६] से कूफ़ा के रास्ते मे हुर बिन यज़ीद रियाही द्वारा इमाम हुसैन (अ) के कारवां रोकने के बाद, इमाम (अ) के कारवां ने मजबूर होकर कर्बला में पड़ाव डाला।[१७] इमाम हुसैन (अ) के कारवां के रुकने के कुछ दिनों के बाद वर्ष 61 हिजरी में मुहर्रम की 10 तारीख को इमाम हुसैन (अ) और उमर बिन साद की सेना के बीच लड़ाई हुई,[१८] इमाम (अ) अपने बहुत से साथियों के साथ उस दिन शहीद हो गए और इमाम हुसैन (अ) के बचे हुए कारवां जिनमें से अधिकांश महिलाएं और बच्चे थे, को बंदी बना लिया गया और उन्हें पहले कूफ़ा और फिर सीरिया मे यज़ीद की राजधानी दमिश्क भेजा गया।[१९]

शिया इमामो की ओर से इमाम हुसैन (अ) के हरम की ज़ियारत करने की सिफारिश और शियो की ओर से इस पर अधिक ध्यान देने के कारण बनी उमय्या और बनी अब्बास के शासन काल मे इमाम हुसैन (अ) की क़ब्र पर निर्माण किया गया फिर इसके विकास और ज़ाएरीन तथा हरम के आस-पास के लोगों के लिए बस्तियों के निर्माण के लिए जमीन प्रदान की।[२०] कर्बला की घटना के बाद शियो के क़याम ने भी इमाम हुसैन (अ) की कब्र पर शियो के ध्यान में एक भूमिका निभाई है। तव्वाबीन ने अपने क़याम मे जब नख़ला से दमिश्क की ओर रवाना हुए तो रास्ते मे इमाम हुसैन की कब्र की ज़ियारत की।[२१] और इमाम हुसैन (अ) के मार्ग पर चलने की अपनी प्रतिबद्धता की घोषणा की।[२२] मुख्तार के क़याम मे भी कर्बला और इमाम हुसैन (अ) की क़ब्र की ज़ियारत पर विशेष ध्यान दिया गया है। मुख्तार सक़फ़ी ही वह पहला व्यक्ति था जिसने इमाम हुसैन (अ) की कब्र पर एक इमारत का निर्माण करते समय एक मस्जिद और एक छोटा सा गाँव बनाया था,[२३] जिनमे से कुछ मिट्टी, खजूर के पेड़ों की शाखाओं, पत्तो और तनो से बने थे।[२४]

कर्बला में तीर्थयात्रियों की वृद्धि और इमाम हुसैन (अ) के हरम के आसपास कुछ मुसलमानों के निवास के साथ-साथ बनी उमय्या की कमजोरी और बनी अब्बास सरकार के गठन के साथ, कर्बला के विकास ने गंभीर रूप ले लिया। उपयुक्त निर्माण सामग्री का उपयोग करके इमाम (अ) के हरम के आसपास नए घर बनाए गए।[२५]

इन कार्रवाइयों को शियो द्वारा कुछ अब्बासी ख़लीफ़ाओं के लिए ख़तरा माना गया। इसलिए, हारुन अल-रशीद और मुतावक्किल अब्बासी जैसे खलीफाओं ने हरम और उसके आसपास की इमारतों को नष्ट करने का आदेश दिया।[२६] इनसबके बावजूद भी अब्बासी खलीफाओ की घिनौनी कार्रवाई कर्बला को शिया बस्ती बनाने से नही रोक पाई। हारून के बाद, उसके बेटे मामून अब्बासी के काल में, कर्बला में इमाम हुसैन (अ) के हरम और नष्ट हुई इमारतों के पुनर्निर्माण और कर्बला फिर से आबाद हुई।[२७] मुतावक्किल की ओर से किया गया विनाश भी समाप्त होने लगा और कर्बला आबाद होने लगी धव्स्त भवनो और हरम के अलावा, नए स्थान स्थापित किए गए, जिनमें कर्बला का बाजार भी शामिल था।[२८] अब्बासी शासन काल के दौरान कर्बला में इमामों के साथियों द्वारा ज्ञानी समारोह भी आयोजित होने लगे, जिन्हे कर्बला मे हौज़ा ए कर्बला की पहली अवधि के रूप में जाना जाता है।[२९] आले बुयेह के काल मे कर्बला की की वास्तुकला प्रक्रिया ने एक नया रूप लिया[३०] जिसे कुछ लोग उस काल तक कर्बला वास्तुकला के उत्कर्ष काल के रूप में संदर्भित करते हैं।[३१] इमाम हुसैन (अ) की ज़ियारत के दौरान, बूही शासकों ने इमाम हुसैन (अ) के हरम का नवीनीकरण किया और कर्बला शहर का विकास किया। शहर की पहली प्राचीर का निर्माण, नई बस्तियों और बाजारों का निर्माण, उज़दुद्दौला स्कूल और रास अल-हुसैन मस्जिद जैसे धार्मिक स्कूल, जो 372 हिजरी में उज़दुद्दौला दैलमी के आदेश से बनाए गए थे, कर्बला के शहरी विकास के गवाह है।[३२]

सफ़वी और काज़ारी राजाओ की ओर से अतबात ए आलीयात इराक पर विशेष ध्यान के कारण 10 वी से 13वीं शताब्दी हिजरी तक व्यापक रूप से ईरानी वहा निवास करने लगे और कर्बला शहर की वास्तुकला एक नए चरण में प्रवेश कर गई। इस चरण में, कर्बला में इमाम हुसैन (अ) के हरम के विस्तार के अलावा हज़रत अब्बास (अ) के हरम और कर्बला के अन्य तीर्थ स्थलों के नवीनीकरण और विकास के अलावा, कर्बला में रहने वाले ईरानियों ने वाणिज्य की समृद्धि और स्थापना में एक महान भूमिका निभाई है इन में हुसैनीया, धार्मिक विद्यालय, पुस्तकालय और मस्जिदें उल्लेखनीय है। कार्स्टन नीबोर, जॉन एशर जैसे पर्यटकों और भूगोलवेत्ताओं ने अपने यात्रा वृतांतों में उस्मानी युग के दौरान कर्बला के शहरी विकास के बारे में बताया है।[३३] अमेरिकी पर्यटक और पुरातत्त्ववेत्ता जान पीर्टस ने भी 1890 ई मे कर्बला की यात्रा का उल्लेख किया है और कहा है कि प्राचीन शहर कर्बला की सीमा से बाहर जो शहर बनाया गया है इसमे यूरोपीय शहरों की तरह चौड़ी और नियमित सड़कें हैं।[३४]

तीर्थस्थल

कर्बला मे इमाम हुसैन (अ) और हज़रत अब्बास (अ) के हरम की तस्वीर

इमाम हुसैन (अ) और हज़रत अब्बास (अ) के हरम होने के कारण शियो के लिए कर्बला सबसे महत्वपूर्ण तीर्थ शहरों में से है।[३५] इमाम हुसैन (अ) का हरम, उनका और बनी हाशिम एंवम इमाम के अंसार मे से कुछ का मदफ़न (समाधि स्थल) है जो कर्बला की घटना में शहीद हुए है।[३६] इमाम हुसैन (अ) के हरम की ज़ियारत मे हमेशा से शियो के लिए विशेष रुचि रही है। कुछ विशेष दिनों जैसे आशूरा[३७], अरबाईन[३८] और नीमे शाबान[३९] पर इमाम हुसैन (अ) की ज़ियारत पढ़ने की सिफाऱिश के कारण जाएरीन की एक बड़ी संख्या इन्ही दिनो आती है।[४०] शिया न्यायशास्त्र मे इमाम हुसैन (अ) के हरम और तुरबत के कुछ विशेष नियम (ख़ास अहकाम) हैं।[४१]

इमाम हुसैन (अ) का हरम कई बार शिया विरोधीयो विशेषकर अब्बासी खलीफ़ाओ और वहाबीयो द्वारा ध्वस्त किया गया। इमाम हुसैन (अ) के हरम पहला विध्वंस मुतावक्किल के समय में हुआ।[४२] और आखिरी विध्वंस 1411 हिजरी में शाबानिया इंतिफादा के दौरान इराकी बाथ सरकार द्वारा किया गया था।[४३]

हज़रत अब्बास (अ) का हरम भी इमाम हुसैन (अ) के हरम से 378 मीटर उत्तर पूर्व में स्थित है। कर्बला के तीर्थयात्री इमाम हुसैन (अ) की ज़ियारत के अलावा हज़रत अब्बास (अ) की ज़ियारत भी करते हैं।[४४] नौ मुहर्रम को शिया हज़रत अब्बास (अ) के हरम मे मातम दारी करते है और शोक कैलेंडर मे नौ मुहर्रम अधिकांश जगहो पर हज़रत अब्बास (अ) से विशेष है।[४५]

इमाम हुसैन (अ) और हज़रत अब्बास (अ) की दरगाहों के अलावा कर्बला शहर में अन्य तीर्थस्थल भी हैं, जिनमें से अधिकांश कर्बला की घटना से संबंधित हैं। ख़ैमागाह, तिल्ले ज़ैनबीया और हुर बिन यज़ीद रियाही का हरम उन्ही तीर्थस्थलो में से हैं। इमाम हुसैन (अ) के हरम के पास, इमाम सादिक़ (अ) और इमाम ज़माना (अ) के मकामात हैं, जिनका शिया संस्कृति में अत्यधिक सम्मानित है और शिया वहां जाते हैं।[४६]

पिछली दो शताब्दियों की राजनीतिक और सामाजिक घटनाएँ

थंबनेल बनाने में त्रुटि हुई है:
कर्बला मे फ़रात नदी के तट पर मक़ामे इमाम ज़मान (अ)

कर्बला मे पिछली दो शताब्दियों में कई राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक घटनाएं और विकास दिखाई देखने को मिलते है।

वहाबीयो का आक्रमण

18 ज़िल-हिज्जा, 1216 हिजरी मे वहाबी अब्दुल अज़ीज़ बिन सऊद के नेतृत्व में वहाबियों ने हिजाज़ से इराक़ में प्रवेश कर कर्बला पर हमला किया। वह ख़ैमागाह के पड़ोस से शहर में दाखिल हुए और लोगों का नरसंहार करना, उनकी संपत्ति और इमाम हुसैन (अ) के हरम का क़ीमती सामान लूटना शुरू कर दिया। इस दिन, कर्बला के बहुत से लोग ईदे ग़दीर के दिन सामान्य रिवाज के अनुसार नजफ़ में इमाम अली (अ) के हरम गए हुए थे। इसलिए, कर्बला शहर विरोध करने के लिए पुरुषों से खाली था। ऐतिहासिक स्रोतों ने इस घटना के पीड़ितों की संख्या 1,000 से 4,000 तक बताई है। इस घटना में इमाम हुसैन (अ) के हरम को गंभीर क्षति पहुंची।[४७]

नजीब पाशा का आक्रमण

1285 हिजरी में कर्बला के लोगों द्वारा उस्मानी शासन को अस्वीकार करने के बाद, इराक में तुर्क शासक नजीब पाशा ने कर्बला के निवासियों को उस्मानी शासन को स्वीकारने और उनके सामने आत्मसमर्पण करने के लिए कुछ दिन का समय दिया। उस्मानीयो के शहर पर हमला करने से रोकने और कर्बला के लोगों के आत्मसमर्पण न करने के लिए कर्बला में रहने वाले विद्वानों में से एक और शेखिया के दूसरे नेता सय्यद काज़िम रश्ती की मध्यस्थता की विफलता के बाद नजीब पाशा ने कर्बला पर हमले का आदेश दिया। तुर्क सैनिकों को इमाम हुसैन (अ) और हज़रत अब्बास (अ) के हरम तथा सय्यद काज़िम रश्ती के घर को छोड़कर सभी स्थानों पर हमला करने की अनुमति थी। कर्बला के कुछ लोगों ने नुकसान न हो इसलिए हज़रत अबुल फ़ज़ल के हरम में शरण ली। फिर भी यह स्थान उस्मानी आक्रमण से नहीं बचा। कुछ रिपोर्ट्स के अनुसार इस घटना में करीब 10,000 लोग मारे गए थे। यह ग़दीर अल-दम की घटना (अनुवाद: ग़दीर ख़ून) की घटना के रूप में जानी गई।[४८]

उपनिवेशवाद विरोधी संघर्ष

1917 में उस्मानी साम्राज्य की हार और इराक़ में ब्रिटिश की उपस्थिति के दौरान कर्बला शहर अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष के मुख्य केंद्रों में से एक था। 1920 का इराक़ी आंदोलन, जिसे बाद में सौरातुल इशरीन के नाम से जाना गया, का गठन मुहम्मद तकी शिराज़ी के नेतृत्व में कर्बला में हुआ था। यह आंदोलन ब्रिटेन द्वारा इराक से वापसी और इस देश की आजादी में कार्रवाई नहीं करने के बाद हुआ।[४९]

शाबानीया इंतिफादा

शाबानीया इंतेफ़ादा के दमन पश्चात कर्बला
मुख्य लेख: शाबानीया इंतिफ़ादा

शाबान 1411 हिजरी में सद्दाम के नेतृत्व वाली बाथिस्ट सरकार के खिलाफ इराकी लोगों के विद्रोह के दौरान कर्बला, विद्रोह के मुख्य केंद्रों में से एक था। यह शहर इराक के 13 अन्य प्रांतों के साथ, शाबानीया इंतिफ़ादा में लोकप्रिय ताकतों के हाथों में पड़ गया[५०] लेकिन अंत मे इंतेफ़ादा को सद्दाम की कमान के तहत बलों द्वारा नियंत्रित और दबा दिया गया। इंतेफ़ादा के दमन के दौरान बाथ सेना ने इमाम हुसैन (अ) के हरम को क्षतिग्रस्त कर दिया था। कुछ स्रोतों के अनुसार इंतेफ़ादा के दमन के दौरान पूरे इराक में 3 से 5 लाख लोग मारे गए और लगभग 20 लाख लोग बेघर हुए।[५१]

सद्दाम के पतन के बाद अमेरिकी सेना के साथ संघर्ष

2003 मे इराक़ पर अमेरिकी आक्रमण के बाद अमेरिकी सिपाही हज़रत अब्बास (अ) के हरम की ओर जाने वाली सड़क पर अत्मविस्फोट मे प्रयोग हुई गाड़ी के साथ खड़ा हुआ है।

2003 में इराक पर अमेरिकी आक्रमण के दौरान, कर्बला में इमाम हुसैन (अ) और हज़रत अब्बास (अ) के हरम की ओर जाने वाली सड़कों पर कर्बला के लोगों और अमेरिकी सेना के बीच चुटपुट सैन्य झड़पें देखी गईं। इसके अलावा, 2004 में नजफ, बसरा और बगदाद के सद्र शहर में अमेरिकियों के साथ सद्र के गुट जैश अल-महदी से जुड़े शियो के एक समूह के बीच एक सैन्य संघर्ष के बाद, अमेरिकियों ने संभावित हमले को विफल करने के लिए बख्तरबंद उपकरणों के साथ कर्बला शहर में प्रवेश किया। और सद्र पार्टी के कार्यालय पर हमला करने के पश्चात हरम की आसपास की सड़कों को बंद कर दिया। इस संघर्ष का मुख्य कारण इराक में अमेरिकी सेना के कब्जे का विरोध बताया गया है।[५२] कर्बला में जैश अल-महदी के शिया समर्थक भी 2007 में अमेरिकियों के साथ भिड़ गए, अंतर यह था कि मुख्य पार्टी जैश अल-महदी के साथ संघर्ष में इराकी पुलिस और अमेरिकी इराकी पुलिस के समर्थन बल के रूप में थे। उन्होंने कर्बला शहर में संघर्ष स्थल में प्रवेश किया।[५३]

कर्बला में आतंकी हमला

इराक में सद्दाम शासन के पतन पश्चात बाथ पार्टी के कुछ अधिकारीयो के समर्थन से अल-कायदा से जुड़े आतंकवादी और तकफ़ीरी समूहों ने कर्बला में कई आतंकवादी अभियानों को अंजाम दिया।[५४] इसमें कई लोगों की जान चली गई। कर्बला में अधिकांश आतंकवादी घटनाएँ इमाम हुसैन (अ) की अज़ादारी और अरबाईन समारोह के दिनों में होती थी।[५५]

राजनीतिक और सामाजिक दल और संगठन

पिछली दो शताब्दियों में शिया मराज ए तक़लीद का कर्बला मे निवास और हौज़ा ए इल्मीया ने कर्बला की राजनीतिक और सामाजिक विकास के परिर्वतन मे महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। कर्बला में सामाजिक राजनीतिक संगठनों की गतिविधि इराक और कभी-कभी ईरान के राजनीतिक हालात पर प्रभावित होती थी। ईरान के संवैधानिक आंदोलन के प्रति नजफ़ और कर्बला में रहने वाले विद्वानों की प्रतिक्रिया उनमें से एक है। मशरूत आंदोलन ने जह़ा नजफ़ हौज़ा के विद्वानो को सक्रिय कर दिया उसी प्रकार कर्बला को भी प्रभावित किया, एकमात्र अंतर यह था कि कर्बला के लोग मशरूता के विपरीत दृष्टिकोण रखते थे।[५६]

20वीं शताब्दी में विशेष रूप से इराक पर ब्रिटिश कब्जे के दौरान कई पार्टियों और तहरीको का गठन हुआ या सक्रिय पार्टियों की शाखाओ की स्थापना हुई। कर्बला में मौजूद शिया मराज ए तक़लीद और हौज़ा ए इल्मीया भी कुछ पार्टीयो का सहयोग करते थे। 20वी शताब्दी के पूर्वार्ध मे आंदोलनो का मुख्य उद्देश्य बरतानिया को इराक से बाहर निकालना था। जमयतुल इत्तेहाद वत तरक़्क़ी और अल जमयतुल वतानीयातुल इस्लामीया उन्ही मे से एक थी।[५७] जमयातुल वतनीया की स्थापना कर्बला में शिया मरजा मुहम्मद तक़ी शिराज़ी के बेटे मुहम्मद रज़ा शिराज़ी और एक समूह ने 1917 में ब्रिटिश उपस्थिति के खिलाफ हुई। यह सारे आंदोलन मीर्ज़ा ए शीराज़ी का जेहाद के फ़त्वे के बाद 1920 की क्रांति की स्थापना मे महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।[५८]

विभिन्न कम्युनिस्ट समूहों के गठन के साथ, इराक की स्वतंत्रता की छाया में, हिज़्ब अल-शियूई जैसी कम्युनिस्ट पार्टियों की एक शाखा कर्बला और नजफ शहरों में सक्रिय थी और इसने युवाओं की एक विस्तृत श्रृंखला को आकर्षित किया।[५९] हौज़ा और मरजइयत, नजफ़ और कर्बला मे कम्युनिस्टो का इस्लाम के लिए खतरे का आभास करते हुए उनके विरूद्ध एक व्यवस्थित प्रोग्राम के बारे में सोचा।[६०] यह संगठन हिज़्बुद दावतिल इस्लामीया के नाम से 1956 को अस्तित्व मे आया। हिज्बुद दावा की पहली बैठक कर्बला में हुई।[६१] इस पार्टी के कुछ राजनीतिक नेता, जैसे इब्राहिम जाफरी और नूरी मलिकी भी कर्बला के निवासी थे।[६२] हिज्बुद दावा के बाद 1962 में शिराज़ी परिवार से संबंधति साजमाने अमल इस्लामी (इस्लामिक एक्शन ऑर्गनाइजेशन) की स्थापना कर्बला में की गई थी।[६३]

सद्दाम के नेतृत्व वाले बाथ शासन के दौरान इराक़ के कुछ शिया मौलवियों और विद्वानों ने इराक की इस्लामी सर्वोच्च परिषद (मजलिस ए आला इस्लामी इराक) की स्थापना की।[६४] सद्दाम के शासन के पतन के बाद इराक में कई शिया संगठन बने, जिनमें से अधिकांश ने कर्बला में अपनी एक शाखा बनाई और राजनीतिक एवं सांस्कृतिक गतिविधियों में व्यस्त हो गई। इन संगठनों में साज़माने बद्र इराक और सद्र पार्टी के नाम मुख्य रूप से उल्लेख कर सकते हैं।

अनुष्ठान

कर्बला की घटना और इमाम हुसैन (अ) के आंदोलन का शिया समुदायों पर सांस्कृतिक प्रभाव पड़ा विशेष रूप से कर्बला बहुत सी रीति-रिवाज का केंद्र रहा है जो आशूर की घटना से प्रभावित कई सांस्कृतिक घटनाओं का उद्गम स्थल है। कर्बला में शिया अनुष्ठानों का उद्भव, जैसे तुवैरीज शोक समारोह, ज़ियारत ए अरबाईन और अरबाईन पैदल यात्रा, इमाम बारगहो का निर्माण, कर्बला की तुरबत से सज्दागाह और तस्बीह का निर्माण, और ताज़िया बनाना उन्ही रीति-रिवाज मे शुमार होते हैं।

तुवैरीज

तुवैरीज कर्बला से दस किलोमीटर दूर एक शहर का नाम है, जहा से अस्रे आशूर कर्बला के शियो का जुलूस निकलता है जिसे दस्ता ए अज़ादारी तुवैरीज कहा जाता है। लेकिन अधिकांश आशूर के दिन जो अनुष्ठान वहा अंजाम पाते है उसकी ओर इशारा है। कर्बला के शिया अस्रे आशूर को तुवैरीज शहर से इमाम हुसैन (अ) के हरम और हज़रत अब्बास (अ) के हरम तक पैदल चलते हैं, और जब वे इमाम हुसैन (अ) की हरम के करीब पहुंचते हैं, तो बैनल हरमैन से हरम तक का रास्ता ऊंचे कदमो मे सर और सीना ज़नी करते हुए तय करते है। यह रसम 61 हिजरी को वहा के लोगो का इमाम हुसैन (अ) की मदद को देर से पहुंचने की याद मे मनाते है।[६५]

ज़ियारते अरबाईन

शिया धार्मिक समारोहों में से एक कर्बला में ज़ियारते अरबईन है। पहली शताब्दियों से ही शियो ने मासूम इमामों की सलाह के आधार पर ज़ियारते अरबाईन पर विशेष ध्यान दिया है।[६६] बहुत सारे शिया विभिन्न देशो से ज़ियारते अरबाईन के लिए इराक जाते है और नजफ़ से कर्बला तक की यात्रा पैदल करते है और यह यात्रा अरबाईन वॉक से प्रसिद्ध है। अरबाईन के दिन शोक मनाने वालों की एक बड़ी संख्या होती है जो दूर-दूर और निकट इराकी शहरों या दुनिया के अन्य हिस्सों से कर्बला में आते हैं।[६७]

तुरबते कर्बला

कर्बला की तुरबत या इमाम हुसैन (अ) की तुरबत वह मिट्टी है जो इमाम हुसैन (अ) की क़ब्र के आसपास से ली जाती है और रिवायतो मे वर्णित फ़ज़ीलत के कारण शिया इसका बहुत सम्मान करते है।[६८] शिया कर्बला की तुरबत से नमाज़ के लिए सज्दागाह और तस्बीह बनाते हैं।[६९] न्यायशास्त्रीय स्रोतों मे नमाज मे तुर्बत कर्बला पर सजदा करना मुस्तहब है।[७०]

तीर्थयात्रियों के आवास के लिए हुसैनिया की स्थापना

इस्फ़हानी प्राचीन इमाम बारगाह की इमारत जो अल क़िबला रोड कर्बला मे है 1956 को ली गई तस्वीर

कर्बला के तीर्थयात्रियों को समायोजित करने के लिए इमाम बारगाहो का निर्माण पिछली शताब्दियों में हुए कार्यों में से है। कर्बला में पहले इमाम बारगाह के निर्माण की तारीख 11वीं शताब्दी की है। क़ाजार काल के दौरान इराक के तीर्थस्थलों के एक हिस्से के पुनर्निर्माण के साथ, इराक में तुर्क गवर्नर ने 1127 हिजरी में कर्बला के तीर्थयात्रियों के कल्याण के लिए इमाम बारगाह का निर्माण किया।[७१] फ़िर 1368 हिजरी मे ईरानी व्यापारियों के एक समूह ने इस जगह को इराकी औक़ाफ संगठन से खरीदा और इसे इराकी और कुवैती व्यापारियों के एक समूह के साथ मिलकर इस इमाम बारगाह का पुनर्निर्माण किया और उसके बाद तेहरानी इमाम बारगाह का नाम रखा बाद मे नाम परिर्वतित करके इसका नाम हैदरी इमाम बारगाह रखा गया।[७२] इस तिथि से पहले हुसैनीया या इमाम बारगाह नाम के स्थानों के अस्तित्व की कोई रिपोर्ट नहीं मिली है। इस तिथि के बाद, कर्बला के अधिकांश प्रसिद्ध हुसैनिया 14वीं चंद्र शताब्दी के दूसरे और तीसरे दशक के बाद बनाए गए।[७३] इनमें से कुछ ऐतिहासिक हुसैनिया ईरानी और भारतीय शिया विद्वानों और व्यापारियों द्वारा बनाए गए थे।[७४] सद्दाम के पतन के बाद हुसैनीया और ज़ायर सरा की स्थापना का विस्तार किया, और होटलों की बढ़ती हुई संख्या भी हुसैनीया और इमाम बारगाहो के निर्माण की प्रक्रिया को धीमा नहीं कर सकी।[७५]

ताज़िया

ताज़िया की कला कर्बला सहित इराकी शहरों में एक धार्मिक शो के रूप में लोकप्रिय है। ताज़िया अपने वर्तमान स्वरूप में, ईरान में क़ाज़ार काल में अपने विस्तार के बाद, 20वीं शताब्दी ईस्वी के आसपास इराक में प्रवेश किया।[७६] कर्बला और नजफ़ में, इस समारोह को ताज़िया या तशाबीह या मसराह अल-हुसैनी के नाम से भी जाना जाता है।[७७] अन्य शिया समारोहों की तरह, ताज़िया की कला को सीमित कर दिया गया और अंततः 1970 के दशक में बाथ पार्टी के सत्ता में आने पर उस पर प्रतिबंध लगा दिया गया।[७८] 2003 में सद्दाम की सरकार के पतन के बाद, ताज़िया इराक के विभिन्न क्षेत्रों में भी पुनर्जीवित किया गया।

कर्बला के क़वि

इराक के साहित्यिक और ऐतिहासिक स्रोतों के अनुसार, कर्बला के कवियों ने इराक के साहित्यिक और राजनीतिक आंदोलनों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उनकी साहित्यिक, राजनीतिक और सामाजिक गतिविधियों का एक हिस्सा कर्बला और इराक के अन्य शहरों में साहित्य और कविता समाजों में भाग लेने से प्रकट हुआ। जमइयातुन नदवतुश शबाब अल अरबी, नदवतुल ख़मीस अल अरबी, अल-मुंतदुस सक़ाफ़ी वा जमइयातुश शौरा अल शाबीयीन कर्बला में साहित्यिक संघों के उदाहरण हैं।[७९] इनमें से कुछ संघ अभी भी सक्रिय है।[८०] कर्बला में शेर ए आईनी प्रचलित थी। कविता की यह शैली इमाम हुसैन (अ) के हरम और हज़रत अब्बास (अ) के हरम के समर्थन से युवा इराकी कवियों के बीच लोकप्रिय है।

हौज़ा और इल्मी मराकिज़

मुख्य लेख: हौज़ा ए इल्मिया कर्बला

कर्बला में हौज़ा ए इल्मीया की स्थापना शुरूआती शताबादी मे शिया मासूम इमामों के कुछ सहाबी और रावीयो के माध्यम से हुई। इस अवधि के दौरान वे कर्बला में छात्रों को प्रशिक्षण देने में लगे हुए थे। अब्दुल्लाह बिन जाफ़र हिमयरी, जो इमाम अली नक़ी (अ) और इमाम हसन अस्करी (अ) के साथी थे जिनका शुमार हौज़ा ए इल्मीया के प्रारम्भिक शिक्षको मे होता है।[८१] इमाम ज़मान (अ) के गुप्तकाल के दौरान भी कुछ न्यातविदो जैस नज्जाशी, सय्यद बिन ताऊस, शहीद अव्वल और इब्ने फ़हद हिल्ली ने हौज़ा ए इल्मीया कर्बला से ज्ञान प्राप्त किया।[८२]

9वीं शताब्दी हिजरी में कर्बला में हौज़ा ए इल्मीया की स्थापना हुई और इस हौज़ा के सय्यद इज़ुद्दीन हुसैन बिन मुसाइद हाएरी और फ़ैज़ुल्लाह बरमकी बगदादी पहले छात्र थे।[८३] हौज़ा ए इल्मीया कर्बला मे दो स्कूल अखबारी और उसूली सक्रीय थे लेकिन अखबारी स्कूल प्रशंसक अधकि थे।[८४] सफ़वी काल मे अखबारी स्कूल मुहम्मद अमीन उस्तराबादी द्वारा पुनर्जीवित किया गया। सफ़वीयो के पतन के बाद सुन्नी अफ़गानों के उत्पीड़न और नादिर शाह के दबाव ने ईरानी विद्वानों को इराक विशेषकर कर्बला की ओर पलायन करने के लिए मजबूर किया। इस अवधि के दौरान कर्बला में अख़बारी स्कूल अपने चरम पर पहुँच गया था, और बड़ी संख्या में ईरानी विद्वानों के पास अख़बारी विचारधाराएँ थीं। इन सबके बावजूद, कुछ कारणों से अख़बारी स्कूल का पतन शुरू हो गया।[८५]

13वीं शताब्दी मे, ईरानी विद्वानों के नजफ़ में प्रवास या ईरान लौटने के कारण हौज़ा ए इल्मीया कर्बला की चमक दमक मे कमी आ गई और मुहम्मद तकी शिराज़ी ने सामर्रा से काज़मैन और अंततः कर्बला में स्थानांतरित हो गए। इराक में ब्रिटिश कब्जे के खिलाफ लड़ाई में उनके नेतृत्व और व्यापक ब्रिटिश विरोधी आंदोलन में हौज़ा ए इल्मीया कर्बला के कुछ मौलवियों और छात्रों की भागीदारी ने हौज़ा ए इल्मीया कर्बला को नया जीवन दिया।[८६]

विभिन्न सदियों में कर्बला में कई मदरसे स्थापित किये गये। इनमें से बड़ी संख्या में स्कूल इराक में रहने वाले ईरानी विद्वानों द्वारा बनाए गए थे। मदरसा सैय्यद मुजाहिद, मदरसा सद्रे आज़म नूरी और मदरसा ख़ूई इन्ही मदरसो मे से है।[८७] धार्मिक स्कूलों के अलावा, कर्बला में कई पुस्तकालय भी बनाए गए, जिनमें से कुछ पांडुलिपियों की उपस्थिति के कारण शिया शोधकर्ताओं के लिए एक विशेष स्थान रखते हैं।[८८] कुछ इतिहासकारों ने कर्बला में 78 पुस्तकालयों को सूचीबद्ध किया है, जिनमें से कुछ कर्बला में रहने वाले विद्वानों द्वारा बनाए गए थे।[८९] इसके अलावा, बाथ शासन के पतन के बाद, उन्होंने शियावाद के क्षेत्र में कई वैज्ञानिक गतिविधियां और शोध किए हैं।[९०]

परिवार और व्यक्तित्व

कर्बला शहर में पहली शताब्दी से लेकर समकालीन काल तक कई परिवार रहते हैं। इनमें से कुछ परिवार पहली शताब्दियों से कर्बला में रहे जैसे आले तामत और आले नकीब परिवार, आले तमअत की वंशावली इब्राहीम मुजाब तक जाती है जो कर्बला मे निवास करने वाले अलवीयो मे सबसे पुराने है। यह परिवार तीसरी हिजरी में कर्बला में बस गए थे।[९१] आले नक़ीब जोकि इमामम काज़िम के वंशज है पांचवीं चंद्र शताब्दी मे कर्बला मे बसे।[९२] सर्वाधिक प्रसिद्ध परिवार वो है जो ज्ञान प्राप्त करने के लिए इराक के दूसरे शहर, ईरान, अरब देशो और भारत से यहा आकर बसे है। धार्मिक विद्वानों के कुछ परिवार इज्तिहाद हासिल करने या धार्मिक स्कूलों में प्रारंभिक पाठ्यक्रम पास करने के बाद अपने देश लौट आए।[९३] बहबहानी, सद्र शिराज़ी, शहरिस्तानी, कश्मीरी, रश्ती, मरअशी इत्यादि परिवार कर्बला के कुछ प्रसिद्ध परिवार है।[९४]

मौजूदा दौर में इराक और ईरान में कुछ शिया राजनीतिक हस्तियां कर्बला निवासी है। इब्राहीम जाफ़री और नूरी मालेकी इराक की सियासी नेता और अली अकबर सालेही ईरान के राजनेता का जन्म कर्बला मे हुआ है।[९५]

व्यापार और कृषि

समकालीन शताब्दी में कर्बला निवासियों का एक मुख्य व्यवसाय कृषि और वाणिज्य है। इराक़ में पहले दशकों में अरब राष्ट्रवाद की वृद्धि, जो सुन्नियों के पक्ष में थी, इसके अलावा इराकी शिया मरजियत द्वारा इराकी राजशाही की सेवा पर रोक लगाने वाले फतवे के कारण बगदाद और अन्य शहरों में शियाओं की तरह कर्बला में भी शिया सरकारी नौकरी व्यापार और कृषि मे लग गए।[९६] इसके अलावा, प्रचुर मात्रा में पानी की उपस्थिति, विशेष रूप से हुसैनीया नामक जलमार्ग का अस्तित्व, जो फ़रात से कर्बला तक पानी पहुंचाने के लिए जिम्मेदार था। कर्बला में कृषि के विकास और विस्तार के लिए एक उपयुक्त आधार प्रदान किया।[९७]

ईरानी शहरों के साथ भाईचारा ज्ञापन

ईरान और इराक़ के बीच वाणिज्यिक आदान-प्रदान की मात्रा में वृद्धि के कारण ईरान और कर्बला के शहरों के बीच भाईचारा समझौता संपन्न हुआ। क़ुम, मशहद और क़ज़वीन शहर इस ज्ञापन के स्वयंसेवक थे। कज़्वीन शहर को चुनकर, कर्बला और क़ज़वीन शहर के बीच एक भाईचारा समझौता संपन्न हुआ। इस ज्ञापन के आधार पर, पार्टियां वाणिज्यिक संबंधों, चिकित्सा पर्यटन, विकास और शहरी विकास को मजबूत करने के लिए आवश्यक उपाय करने पर सहमत हुईं।[९८]


संबंधित लेख

फ़ुटनोट

  1. राहनुमाई सफ़र बे कर्बला ए मौअल्ला, बाशगाहे खबरनिगारी जवान
  2. कर्बला, पाएगाह खबरी अल जज़ीरा
  3. कर्बला, पाएगाह खबरी अल जज़ीरा
  4. आले ताअमत, मीरासे कर्बला, 1373 शम्सी, पेज 84-186
  5. आलाम ए जेहादे उलमा ए शिया व सुन्नी, खबरगुज़ारी तसनीम
  6. Major Cities
  7. आले ताअमत, तुरास कर्बला, 1435 हिजरी, पेज 31-36
  8. आले ताअमत, तुरास कर्बला, 1435 हिजरी, पेज 31
  9. आले ताअमत, तुरास कर्बला, 1435 हिजरी, पेज 36
  10. आले ताअमत, मीरासे कर्बला, 1435 हिजरी, पेज 20-21
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  13. दैयनूर, अखबार अल तुवाल, 1371 शम्सी, पेज 298
  14. बलाज़ुरी, अनसाब अल अशराफ़, 1977 ई, भाग 3, पेज 157-158; मुफ़ीद, अल इरशाद, 1399 हिजरी, भाग 2, पेज 36-37
  15. तिबरी, तारीख अल उमम वल मुलूक, 1967 ई, भाग 5, पेज 381
  16. तिबरी, तारीख अल उमम वल मुलूक, 1967 ई, भाग 5, पेज 381
  17. मुक़र्रम, मक़तल अल हुसैन (अ), 1426 हिजरी, पेज 192
  18. तिबरी, तारीख अल उमम वल मुलूक, 1967 ई, भाग 5, पेज 417; शेख मुफ़ीद, अर इरशाद, 1399 हिजरी, भाग 2, पेज 91
  19. मुफ़ीद, अर इरशाद, 1388 हिजरी, पेज 509-523
  20. आले ताअमत, मीरासे कर्बला, 1435 हिजरी, पेज 31-32
  21. इब्ने असीर, अल कामिल फ़ी तारीख़, 1386 हिजरी, भाग 4, पेज 178
  22. तिबरी, तारीख तिबरी, 1403 हिजरी, भाग 4, पेज 456-457
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  24. अंसारी, अमारत कर्बला, 2005 ई, पेज 95
  25. क्लीदार, तारीख कर्बला ए मौअल्ला, 1349 हिजरी, पेज 19; अंसारी, अमारत कर्बला, 2005 ई, पेज 96
  26. आले ताअमत, मीरासे कर्बला, 1435 हिजरी, पेज 31-32
  27. जमई अज़ नवीसंदेगान, निगाही नौ बे जिरयाने आशूरा, 1387 शम्सी, पेज 420-421
  28. अंसारी, अमारत कर्बला, 2005 ई, पेज 96-97
  29. सय्यद कबारी, हौज़ा हाए इल्मीया शिया दर गुस्तरे जहान, 1378 शम्सी, पेज 256
  30. अमीन, दाएरातुल मआरिफ़ अल इस्लामीया अल शिया, 1413 हिजरी, भाग 11, पेज 356
  31. अंसारी, अमारत कर्बला, 2005 ई, पेज 99
  32. मूसवी ज़ंजानी, जौलत फ़िल अमाकिन अल मुक़द्देसा, 1405 हिजरी, पेज 83
  33. अंसारी, अमारत कर्बला, 2005 ई, पेज 61-70
  34. John Punnett:Nippuar or Explorations and Avcentures on the Euphrates 180-1890 page:331, Volume II-Second Compaign 1897. Peters
  35. अस्लानी, शहरहाए मुक़द्दस शिया, मरकज़े मुतालेआत वा पासुखगोई बे शुबहात
  36. इस्फ़हानी, मकातिल अल तालेबयीन, दार अल मारफ़ा, पेज 118
  37. इब्ने क़ूलावैह, कामिल अल ज़ियारात, 1356 शम्सी, पेज 173
  38. शेख मुफ़ीद, किताब अल मज़ार, 1413 हिजरी, पेज 53
  39. इब्ने क़ूलावैह, कामिल अल ज़ियारात, 1356 शम्सी, पेज 181
  40. बे मुनासेबत आशूराई हुसैनीः 3 मिलयून ज़ायर दर कर्बला ए मौअल्ला, खबरगुज़ारी मेहेर तेअदादे ज़ायरे इमाम हुसैन (अ) अज़ मरज़े 26 मिलयून नफ़र गुज़श्त, खबरगुज़ारी तसनीम
  41. देखेः फ़ल्लाह ज़ादे, अहकामे फ़िक़्ही सफ़र ज़ियारती अतबात, मरकज़े तहक़ीक़ात हज, पेज 14, 17, 18 और 36
  42. आले तमअत, कर्बला व हरम हाए मुताहर, 1388 शम्सी, पेज 94-95
  43. रिवायती अज़ रोज़हाए जसारते सद्दाम बे कर्बला, खबरगुज़ारी तसनीम
  44. कर्बला बेदून हरम व ज़ियारत हज़रत अबुल फ़ज्ल (अ), कर्बला नमी शवद, पाएगाह इंटरनेटी अस्र शिया, ज़ियारत हरम हज़रत अब्बास (अ)
  45. हरमे हज़रत अबुल फ़ज्ल (अ) दर रोज़े तासूआ, खबरगुज़ारी ईस्ना
  46. क़ुमी, अमाकिने ज़ियारती सियाहती दर इराक़, 1380 शम्सी, पेज 45-54
  47. आले तमअत, तुरासे कर्बला, 1435 हिजरी, पेज 116-121
  48. आले तमअत, तुरासे कर्बला, 1435 हिजरी, पेज 125-132 गुज़ारिशे यक कुश्तार; रिवायती मुस्तनद अज़ क़त्लेआम 10 हज़ार नफ़र शिआयान दर हमले बे कर्बला, खबरगुज़ारी तसनीम
  49. ज़मीज़म, कर्बला वल हरकतुल वतनीयाते फ़िल क़र्न अल इशरीन, 1436 हिजरी, पेज 63-95
  50. तबराइयान, इंतफ़ाजा शाबानीया, 1391 शम्सी, 230 हिजरी
  51. माजरा इंतफ़ाजा शाबानीया चीस्त? पाएगाह खबरी फ़रदा
  52. हुज़ूरे तानकहाए आमरीकाई दर कर्बला, आज़ान्स अक्से खबरी gettyimages
  53. दरगीरी नीरूहाए आमरीकाई बा शिब्हेनिज़ामीयान आरतिश महदी दर कर्बला, खबरगुज़ारी ईस्ना
  54. आमरीका चेगूने अल क़ाएदेहा रा तकफ़ीर करद ? अफसरे इत्तेलाआती रज़ीम बअस चेगूने दाइश रा बेवजूद आवुरद? पाएगाह ख़बरे मशरिक़
  55. याद दाश्तहाए यक ईरानी अज़ आशूराई ख़ूनीन दर कर्बला, पाएगाह इंटरनेटी शबके बी बी सी
  56. रफ़्तार शनासी सियासी हौज़ा कर्बला दर कर्ने अख़ीर, पाएगाह इंटरनेटी मुबाहेसात
  57. ज़मीज़म, कर्बला वल हरकतिल वतनीया फ़िल क़र्ने इशरीन, 1436 हिजरी, पेज 10-16
  58. ज़मीज़म, कर्बला वल हरकतिल वतनीया फ़िल क़र्ने इशरीन, 1436 हिजरी, पेज 63-65
  59. ज़मीज़म, कर्बला वल हरकतिल वतनीया फ़िल क़र्ने इशरीन, 1436 हिजरी, पेज 29-30
  60. अबूज़ैद आमोली, मुहम्मद बाक़िर अल सद्र, अल सीरत वल मसीरा फ़ी हक़ाइक़ व वसाइक़, 1427-1428 हिजरी, भाग 1, पेज 240-242
  61. मोमिन, सनवात अल जम्र, मसीरातुल हरकतुल इस्लामीया फ़िल इराक़, 1957-1986 ई, पेज 35, 169, 200, 255 और 256
  62. ज़मीज़म, कर्बला वल हरकतिल वतनीया फ़िल क़र्ने इशरीन, 1436 हिजरी, पेज 33
  63. ज़मीज़म, कर्बला वल हरकतिल वतनीया फ़िल क़र्ने इशरीन, 1436 हिजरी, पेज 37-39
  64. ज़मीज़म, कर्बला वल हरकतिल वतनीया फ़िल क़र्ने इशरीन, 1436 हिजरी, पेज 45-46
  65. दास्ताने दस्त ए तुवैरीज चीस्त? पाएगाह इंटरनेटी वारिस
  66. तूसी, तहज़ीब अल अहकाम, 1407 हिजरी, भाग 6, पेज 52
  67. चरा पियादे रवी अरबाईन सवाब दारद, खबरगुज़ारी ईस्ना
  68. मजलिसी, बिहार उल अनवार, 1403 हिजरी, भाग 98, पेज 128 और 132
  69. साख़्ते मोहर, तस्बीह व अंगूश्तरहाए अक़ीक़ दर शहरहाए मज़हबी, पाएगाह इंटरनेटी रोज़नामे सनअत
  70. फ़ज़ीलते तुर्बते इमाम हुसैन (अ) वा आदाब इस्तेफ़ादा अज़ आन, पाएगाए इत्तेलारसानी आयतुल्लाह मकारिम शिराज़ी
  71. नवीनी, अज़्वा अला मआलिम मुहाफ़ेज़ते कर्बला, 1391 हिजरी, पेज 83
  72. अल हुसैनीया अल हैदरीया (अल तेहरानीया साबेकन), शबका कर्बला मुक़द्देसा
  73. आले तमअत, तुरासे कर्बला, 1435 हिजरी, पेज 391-393
  74. अल हुसैनीयात, शबका कर्बला मुक़द्देसा
  75. मसीरे नजफ़-कर्बला, जाद्देह हुसैनीयहा, पाएगाह इंटरनेटी जामे जम ऑनलाइन हुसैनीया क़ज़्वीनीहा दर कर्बला साख्ते मी शवद, साइट खबरी ती न्यूज़
  76. मस्राह अल ताज़ीया अहद तक़ूस आशूरा, पाएगाह इंटरनेटी रसीफ़
  77. लतीफ, फुसूल मिन तारीख अल मस्रह अल इराक़ी कर्बला वा तशाबीहिल मक़तल वत तआज़ी अल हुसैनीयाते फ़ी आशूरा, पाएगाह इंटरनेटी अल हवारिल मुतामद्दिन
  78. अल ताग़ीया सद्दाम व महारबतिश शआएरिल हुसैनीया, पाएगाह इंटरनेटी अल नबा अल मालूमातीया
  79. आले तमअत, तुरासे कर्बला, 1435 हिजरी, फेज 456-460
  80. नवीसंदेई के कर्बला रा मिसले कफे दस्तश मी शनासद, पाएगाह खबरी मशरिक न्यूज़
  81. सय्यद कबारी, हौज़ाहाए इल्मीया शिया दर गुस्तरे जहान, 1378 शम्सी, पेज 256
  82. सय्यद कबारी, हौज़ाहाए इल्मीया शिया दर गुस्तरे जहान, 1378 शम्सी, पेज 258-261
  83. पाकितची, हौज़ा ए इल्मीया, पेज 475
  84. बर्रसी जमईयत शनख़्ती उलामा ए नजफ़ व कर्बला, पाएगाह इंटरनेटी मुबाहेसात
  85. बर्रसी जमईयत शनख़्ती उलामा ए नजफ़ व कर्बला, पाएगाह इंटरनेटी मुबाहेसात
  86. रफ्तार शनासी सियासी हौज़ा कर्बला दर कर्ने अख़ीर, पाएगाह इंटरनेटी मुबाहेसात, बर्रसी जमईयत शनख़्ती उलामा ए नजफ़ व कर्बला, पाएगाह इंटरनेटी मुबाहेसात
  87. अंसारी, मेअमारी ए कर्बला दर गुज़र तारीख, 1389 शम्सी, पेज 161-169
  88. आले ताअमत, तुरासे कर्बला, 1435 हिजरी, पेज 414
  89. आले ताअमत, तुरासे कर्बला, 1435 हिजरी, पेज 414-440
  90. दानिशकदे उलूम इस्लामी दानिशगाह अहले-बैत कर्बला, पाएगाह इंटरनेटी दानिशगाह मरकज़े कर्बला लिद देरासात वल बुहूस, पाएगाह इंटरनेटी मरकज़ पुज़ूहिश हाए आसताने इमाम हुसैन (अ) दानिशकदे उलूम इस्लामी कर्बला, पाएगाह इंटरनेटी दानिशगाह कर्बला
  91. आले ताअमत, तुरासे कर्बला, 1435 हिजरी, पेज 306-308
  92. आले ताअमत, तुरासे कर्बला, 1435 हिजरी, पेज 313-315
  93. बर्रसी जमईयत शनख़्ती उलामा ए नजफ़ व कर्बला, पाएगाह इंटरनेटी मुबाहेसात
  94. आले ताअमत, तुरासे कर्बला, 1435 हिजरी, पेज 295-363
  95. ज़िंदगीनामे डॉ. अली अकबर सालेही, पाएगाह साज़माने अनर्ज़ी एटोमी आशनाई बा नूरी मालेकी, पाएगाह इंटरनेटी शबका अल कौसर ज़िंदगीनामे इब्राहीम जाफ़री वज़ीर खारजा इराक़, खबरगुजारी तसनीम
  96. नादेरी दोस्त, शीआयाने इराक, 1386 शम्सी, पेज 101-103
  97. नादेरी दोस्त, शीआयाने इराक, 1386 शम्सी, पेज 59
  98. सरकंसूल ईरान दर कर्बलाः मफ़ाद ख़ाहर ख़ानगी क़ुजवीन व कर्बला रा अमलयाती कुनीद, खबरगुज़ारी मेहर

स्रोत