फ़तवा
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कुछ अमली व फ़िक़ही अहकाम |
फ़ुरू ए दीन |
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फ़तवा, दायित्वधारियों के शरई दायित्वों के बारे में मुजतहिद या तक़लीद के प्राधिकारी (मरज ए तक़लीद) की राय है, जो चार स्रोतों (क़ुरआन, सुन्नत, सर्वसम्मति (इजमाअ) और अक़्ल) से प्राप्त की जाती है। शिया न्यायविदों के अनुसार, न्याय, शिया इसना अशरी होना, आलम (सबसे बड़ा ज्ञानी) होना, हलाल जन्म होना, शरिया फैसले (अहकाम) प्राप्त करने के क्षेत्र में आवश्यक तरीकों और विज्ञान से परिचित होना फ़तवा जारी करने वाले की शर्तें हैं।
फ़तवा आमतौर पर वाजिब, हराम, मकरूह, मुस्तहब और मुबाह शब्दों के साथ व्यक्त किया जाता है। कभी-कभी फ़तवे को व्यक्त करने के लिए "अक़वा यह है", "बेना बर अक़वा" और "अज़हर यह है" जैसे वाक्यांशों का भी उपयोग किया जाता है। इसके अलावा, इस फ़तवा को मुफ्ती के मुंह से सुनना, दो आदिल द्वारा सूचित होना, एक आदिल या एक विश्वसनीय व्यक्ति जिसकी बातों पर भरोसा किया जा सकता है द्वारा सूचित होना, और तौज़ीहुल मसायल ग्रंथ में फ़तवा को पढ़ना मुजतहिद का फ़तवा प्राप्त करने के तरीकों में से एक है।
फ़तवा और हुक्म के बीच अंतर में कहा गया है कि फ़तवा मुजतहिद विद्वानों द्वारा उनके मुक़ल्लिदों (अनुयाईयों) के लिये एक सामान्य मसले की अभिव्यक्ति है; जबकि, हुक्म शरई शासक द्वारा किसी निश्चित कार्य करने या ना करने का एक आदेश होता है और यह उन सभी लोगों पर बाध्यकारी है जिन्हें इस निर्णय द्वारा संबोधित किया जाता है।
शिया न्यायविदों द्वारा जारी किए गए कुछ फ़तवे यह हैं: तंबाकू पर प्रतिबंध लगाने वाला फ़तवा, आईएसआईएस (दाइश) के खिलाफ़ जेहाद का फ़तवा और अहले सुन्नत की पवित्र हस्तियों के अपमान के हराम होने का फ़तवा।
संकल्पना
फ़तवा का अर्थ है किसी शरई हुक्म के बारे में मुजतहिद का अपनी राय व्यक्त करना और अपने अनुयायियों की जानकारी के लिए उसका ऐलान करना।[१] किसी शरई मुद्दे पर किसी न्यायविद् की राय जानने के बारे में अनुरोध करने को इस्तिफ़ता कहा जाता है।[२] फ़तवा देने वाले को मुफ़्ती और फ़तवा लेने वाले को मुस्तफ़्ती कहा जाता है। [३]
न्यायशास्त्र की किताबों में इज्तेहाद और तक़लीद के अध्याय में फ़तवे के अहकाम के बारे में बात होती है। [४]
फ़तवा और हुक्म में अंतर
न्यायविदों ने फ़तवा और हुक्म के बीच के अंतरों का उल्लेख किया है। जैसे:
- फ़तवा एक सामान्य फैसले का बयान है। जैसे नशीले पदार्थों का सेवन सभी लोगों के लिए वर्जित है; लेकिन हुक्म शरई शासक द्वारा किसी निश्चित कार्य को करने या छोड़ने का आदेश है। जैसे कि किसी विशिष्ट उत्पाद का बहिष्कार करने का आदेश। [५]
- फ़तवे में, शरीयत के मसले को लागू करना और उसके विषय को निर्धारित करना दायित्वधारी (मुकल्लफ़) की जिम्मेदारी है, लेकिन फैसले का कार्यान्वयन शरई शासक की राय में है, न कि दायित्वधारियों की, जैसे कि शरीयत के शासक का रमज़ान के महीना के चांद होने के बारे में शासनादेश। [६]
- मुजतहिद का फ़तवा केवल उसके अनुयायियों के लिए (शरई हुज्जत) है; लेकिन, शरीयत के शासक (हाकिमे शरअ) का आदेश केवल उसके अनुयाईयों तक सीमित नही होगा बल्कि सभी के लिए होगा। [७] और यहां तक कि एक अन्य मुजतहिद जो शरिया के शासक से ज़्यादा ज्ञानी (आ"लम) है, उसे भी शासक के नियम का पालन करना पड़ेगा। [८]
फ़तवा जारी करने के स्रोत
मुख्य लेख: चार दलीलें
एक फ़तवा केवल तभी मान्य (हुज्जत) होता है जब वह मोतबर शरई दलीलों से प्रमाणित हो; अन्यथा, उस पर अमल करना वर्जित (हराम) है। [९] फ़तवा देने के लिये मान्य शरई दलीलें चार स्रोतों से प्राप्त होती हैं आता है, और वह यह हैं:
- क़ुरआन: क़ुरआन की लगभग छह हजार आयतों में से लगभग 500 छंद (लगभग एक तेरहवां) शरिया नियमों (शरई अहकाम) के लिए समर्पित हैं। [१०] बेशक, मोहम्मद हादी मारेफ़त के अनुसार, शरिया नियम प्राप्त करने का ज्ञान इन ही 500 आयतों तक सीमित नहीं है। [११]
- सुन्नत: इसका मतलब चौदह मासूमीन (अ) के शब्द, कार्य और व्याख्याएं हैं। [१२] शिया पैगंबर (स) और इमामों (अ) की सुन्नत को सबूत (हुज्जत) मानते हैं; लेकिन सुन्नी केवल पैगंबर (स) की सुन्नत को ही सबूत मानते हैं। [१३]
- इज्माअ: इज्माअ का अर्थ है किसी मुद्दे पर विद्वानों की सर्वसम्मत राय। [१४] शियों के अनुसार, इज्माअ सबूत है अगर यह पैगंबर (स) या इमाम (स) की राय को इंगित करता है। [१५]
- अक़्ल: अक़्ली दलील, एक ऐसा निर्णय जिसके द्वारा शरई हुक्म तक पहुंचना संभव हो जाता है। [१६] लेकिन, अख़बारी अक़्ल को शरई हुक्म को प्राप्त करने के लिए एक वैध दलील के तौर पर नहीं मानते हैं। [१७]
मुफ़्ती की विशेषताएँ
फ़तवा देने वाले की कुछ विशेषताएं बताई गई हैं: उनमें बुलूग़, अक़्ल, न्याय, शिया इसना अशरी, सबसे बड़ा ज्ञानी (अअलम), और हलाल जन्म शामिल हैं। [१८] इसके अलावा, मुफ्ती को शरई अहकाम को प्राप्त करने के तरीके और उनसे फैसले कैसे प्राप्त करें, साथ ही साथ सभी विज्ञानों जो अहकाम प्राप्त करने में भूमिका निभाते हैं, को जानना चाहिए। वह एक विद्वान होना चाहिए और उसे फैसलों के बारे में तर्क करने और उनके आधारों को समझाने में सक्षम होना चाहिए। [१९] इसलिए, एक मुफ्ती को क़ुरआन और सुन्नत का विद्वान होना चाहिए। इसी तरह से, उसे नासिख़ व मंसूख़,आम व ख़ास, मुतलक़ व मुक़य्यद, हक़ीक़त व मजाज़ का ज्ञान होना चाहिये। [२०]
अहकाम
फ़तवे से संबंधित कुछ फैसले इस प्रकार हैं:
- ऐसे व्यक्ति के लिए जो शरिया नियमों को प्राप्त करने की क्षमता रखता है, उसके लिये मुफ्ती को संदर्भित करना और उसकी तक़लीद करना स्वीकार्य (जायज़) नहीं है। [२१]
- किसी ऐसे व्यक्ति के लिए फ़तवा देना मना (हराम) है जिसके पास दलीलों से शरीयत के फैसले निकालने की क्षमता नहीं है। [२२]
- फ़तवा प्राप्त करने के तरीक़े यह हैं: मुफ्ती से सुनना, दो धर्मी (आदिल) लोगों द्वारा सूचित करना, एक धर्मी (आदिल) व्यक्ति या ऐसे विश्वसनीय व्यक्ति द्वारा सूचित करना जिसकी बातों पर भरोसा किया जा सके, और मुफ्ती के मुद्दों की व्याख्या (तौज़ीहुल मसायल) ग्रंथ में ढूंढना। [२३]
- यदि मुजतहिद का फ़तवा बदल जाता है, तो उसकी तक़लीद करने वालों के लिए इसकी घोषणा के वाजिब होने के बारे में मतभेद है। [२४] कुछ न्यायविदों के अनुसार, यदि पिछला फ़तवा सावधानी (ऐहतेयात) के पक्ष में था, तो फ़तवे के परिवर्तन की घोषणा उसकी तक़लीद करने वालों के लिये अनिवार्य नहीं है। [२५] कुछ अन्य लोगों ने नए फ़तवे की घोषणा को अनिवार्य नहीं माना है; क्योंकि पिछला फ़तवा भी इज्तिहाद की शर्तों और मानकों के मुताबिक ही पेश किया गया था। [२६]
- यदि कोई आ'लम मुजतहिद किसी मामले पर फ़तवा देता है, तो उसकी तक़लीद करने वाला व्यक्ति उस मामले पर दूसरे मुजतहिद के फ़तवे का पालन नहीं कर सकता है। [२७]
- मुफ़्ती के लिये फ़तवा जारी करने की अनुमति तब है जब उसे यक़ीन हो कि फैसले निकालने में शामिल हर चीज़ उसके अधिकार और कंटृोल में है। [२८]
फ़तवे की ओर संकेत करने वाले शब्द
फ़तवे को इंगित करने वाले शब्द दो प्रकार से हैं:
- ऐसी शब्द जो सीधे तौर पर फ़तवा हैं: जैसे वाजिब, हराम, मकरूह, मुस्तहब और मुबाह [२९]; इसके अलावा, "यह अक़वा है", "बेना बर अक़वा", "यह अज़हर है", "यह असंभावित नहीं है", "क़ुव्वत से ख़ाली नहीं है" और "अहवत अक़वा है" जैसे वाक्यांश भी शामिल हैं। [३०]
- ऐसी व्याख्याएं जो फ़तवे की तरह हैं: जैसे कि "यह असंभव नहीं है, लेकिन मामला मुश्किल है", "अहवत, हालांकि अक़वा नहीं है", "यह कारण से खाली नहीं है", "यह मुश्किल है, हालाँकि यह क़ुर्ब से खाली नहीं है" और "यह कहना संभव है, लेकिन यह हर्ज से खाली है"। इन मामलों में, तक़लीद करने वाला किसी अन्य मुजतहिद की ओर नहीं जा सकता है। [३१]
ऐहतेयाते वाजिब और ऐहतेयाते मुसतहब फ़तवे नहीं हैं
वाजिब एहतियात और मुस्तहब एहतियात फ़तवा नहीं हैं। ऐहतेयात ए वाजिब में, मुजतहिद शरिया मुद्दे के संबंध में एक निश्चित निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा है और उने फ़तवा जारी नहीं किया है। ऐसे में वह शुरू से ही मुकल्लफ़ की शरई ज़िम्मेदारी को एहतियात के तौर पर बयान करता हैं। इन मामलों में, तक़लीद करने वाला उसी ऐहतेयात का पालन कर सकता है या किसी अन्य मुजतहिद के फ़तवे का पालन कर सकता है जिसे वह अपने मरजा के बाद आलम (सबसे बड़ा ज्ञानी) मानता है। [३२] ऐहतेयात ए मुसतहब में मुजतहिद नतीजे पर पहुच चुका है और उसने फ़तवा दिया है लेकिन उसने ऐहतेयात का रास्ता भी दिखाया है. इस मामले में, मुक़ल्लिद फ़तवे या ऐहतेयात के अनुसार कार्य कर सकता है। [३३]
फ़तवा पुस्तकों में अभिव्यक्ति "ऐहतेयात", यदि यह फ़तवे से पहले या बाद में है, तो यह ऐहतेयात ए मुसतहब का संकेत है, और यदि यह फ़तवे से पहले या बाद में नहीं है, तो यह ऐहतेयात ए वाजिब को इंगित करता है। [३४]
ऐतिहासिक फ़तवे
कुछ प्रसिद्ध ऐतिहासिक फ़तवे और शिया न्यायविद यह हैं:
तम्बाकू पर प्रतिबंध लगाने वाला फ़तवा
"बिस्मिल्लाह हिर्रहमानिर रहीम" "आज से तंबाकू का उपयोग चाहे जिस तरह से भी हो, इमाम अल-ज़माना (अ) से युद्ध करने की तरह है।" (पुरालेखों का इतिहास, इस्फ़हानी करबलाई, तारिख़ दुख़ानियह, 1377 शम्सी, पृष्ठ 118)
- इमाम हुसैन (अ) के क़त्ल के जायज़ होने का फ़तवा जो शुरैह क़ाज़ी द्वारा दिया गया। [३५]
- तम्बाकू पर प्रतिबंध लगाने वाला फ़तवा: मीर्ज़ा शीराज़ी का फ़तवा, जो 1309 हिजरी में नासिरुद्दीन शाह द्वारा चार ईरानी शहरों में इंग्लिश कंपनी को विशेष तम्बाकू और तम्बाकू रियायतें देने के जवाब में जारी किया गया था, और इसके कारण, उक्त अनुबंध समाप्त कर दिया गया था। [३६]
- जेहाद की आवश्यकता और अंग्रेजों के खिलाफ़ लड़ाई के बारे में मिर्ज़ा मोहम्मद तक़ी शीराज़ी का फतवा: यह फ़तवा 1338 हिजरी में जारी किया गया था और यह ब्रिटिश आक्रमणकारियों के खिलाफ़ इराकी लोगों के विद्रोह की शुरुआत थी [३७] और यह इराक़ के ब्रिटिशों से मुक्ती का कारण बना। [३८]
- कम्युनिस्ट पार्टी में शामिल होने के हराम होने के संबंध में सय्यद मोहसिन हकीम का फ़तवा: यह फ़तवा 1380 हिजरी में अब्दुल करीम कासिम के पद संभालने और गैर-धार्मिक विचारों को बढ़ावा देने के बाद जारी किया गया था। सय्यद मोहसिन हकीम ने दो फ़तवों के ज़रिये कम्युनिस्ट पार्टी में शामिल होने को शरीयत के अनुसार अस्वीकार्य और ईशनिंदा और नास्तिकता या उन्हें बढ़ावा देने के रूप में माना। [३९]
- सलमान रुश्दी की फाँसी पर इमाम ख़ुमैनी का फ़तवा (आदेश): 14 फ़रवरी 1989 ई. (7 रजब 1409 हिजरी)। [४०]
- दाइश के खिलाफ़ जेहाद का फ़तवा: इराक़ के मरजा तक़लीद सय्यद अली सीस्तानी का फ़तवा, जो 2014 में आईएसआईएस के खिलाफ़ जारी किया गया था। इस फ़तवे में उन्होंने इराक़ और उसके पवित्र स्थानों की रक्षा को वाजिब ए केफ़ाई कहा और इराकी लोगों के समूहों से तकफिरियों का मुकाबला करने को कहा। इस फ़तवे के जारी होने के बाद, हश्द शअबी का गठन हुआ और इराक़ से आईएसआईएस को निष्कासित करने का कारण बना। [४१]
- अहले सुन्नत की पवित्र हस्तियों के अपमान के हराम होने का फ़तवा: आयतुल्लाह ख़ामेनेई का फ़तवा जो यासिर अल-हबीब द्वारा पैगंबर (स) की पत्नी आयशा के अपमान और 2009 में सऊदी अरब के अल-अहसा क्षेत्र के शिया विद्वानों के इस बारे में प्रश्न करने के बाद जारी किया गया था। [४२]
- शिया धर्म के आधार पर अमल के जायज़ होने पर शेख़ शलतूत का फ़तवा: सुन्नी न्यायविद् और अल-अज़हर विश्वविद्यालय के प्रोफेसर शेख़ महमूद शलतूत ने 1378 हिजरी में एक फ़तवे में जाफ़री (शिया इसना अशरी) धर्म को मानने और उसका पालन करने को अन्य सुन्नी धर्मों की तरह स्वीकार्य माना। [४३]
शाज़ फ़तवे
वह फ़तवा जो किसी प्रसिद्ध फ़तवे के विपरीत होता है उसे शाज़ फ़तवा या "तफ़र्रुद ए फ़तवाई" कहा जाता है। [४४] उनमें से कुछ यह हैं:
- कुत्तों और सूअरों के निर्जीव अंगों की पवित्रता: शिया न्यायविदों में से एक सय्यद मुर्तज़ा का मानना है कि कुत्तों और सूअरों के बाल अशुद्ध नहीं हैं क्योंकि वे निर्जीव अंग हैं। [४५] मोहम्मद हसन नजफ़ी के अनुसार, सय्यद मुर्तज़ा का फ़तवा शिया न्यायविदों की प्रसिद्ध राय के विपरीत है। [४६]
- शराब की शुद्धता: साहिब जवाहिर के अनुसार, शेख़ सदूक़, इब्ने अबी अक़ील ओमानी [४७] और मुहक़्क़िक़ अर्दाबेली [४८] जैसे कुछ न्यायविदों ने शिया न्यायविदों की लोकप्रिय राय के विपरीत, शराब और नशीले पदार्थों की शुद्धता का फ़तवा दिया है। अल्लामा हिल्ली ने "मुख़तलफ़ अल-शिया" पुस्तक में शराब और नशीले पदार्थों की अशुद्धता की निस्बत प्रसिद्ध शिया न्यायविदों की ओर दी है। [४९]
- पुरुषों और महिलाओं की दीयत की समानता: आयतुल्लाह सानेई के फ़तवे के अनुसार, मुस्लिम महिला और पुरुष की दीयत बराबर है। [५०] शिया न्यायविदों के प्रसिद्ध दृष्टिकोण के अनुसार, मुस्लिम महिला की दीयत मर्द से आधी है। [५१]
फ़तवा परिषद
फ़तवा परिषद का मतलब है कि लोग किसी एक निश्चित व्यक्ति की तक़लीद करने के बजाय न्यायविदों के एक समूह के नज़रिये की तक़लीद करते हैं। इसमें, चूंकि सभी मुद्दों पर न्यायविदों के बीच एकमत होना संभव नहीं है, इसलिए बहुमत की राय ही कसौटी मानी जाती है। [५२]
इस सिद्धांत के समर्थकों के अनुसार, फ़तवे की वैधता और मुजतहिद की तक़लीद करने के प्रमाणों की जांच आवश्यकता से पता चलता है कि प्रामाणिकता की कसौटी व्यक्तिगत फ़तवों और समूह फ़तवों (परिषद) दोनों में मौजूद है। [५३] बेशक, इस सिद्धांत की कुछ शोधकर्ताओं द्वारा आलोचना की गई है। [५४]
इस्तिफ़ता परिषद
मुजतहिदों का एक समूह जो शरिया मुद्दे की जांच करता है और मरज ए तक़लीद को अपनी परामर्शी राय देता है, उसे परामर्शदात्री परिषद (इस्तिफ़ता कमेटी) कहा जाता है। [५५] मरजअ अपने अनुयायियों के प्रश्नों के उत्तर देते समय अपने नज़रिये को परिषद के सदस्यों के सामने पेश करता है ताकि अगर वह इसको संपूर्ण करने के लिये कोई राय रखते हैं तो वह उसे व्यक्त करें और अंत में फ़तवे के लिए सामग्री को व्यवस्थित करना, बयान करना और एकत्रित करना मरज ए तक़लीद की जिम्मेदारी होती है। [५६]
संबंधित लेख
फ़ुटनोट
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- ↑ अमीद, फरहंगे अमीद, "फ़तवा" शब्द के तहत; सज्जादी, फ़रहंग इस्लामी शिक्षा, शब्द "इस्फ़तिफ़ता" के अंतर्गत।
- ↑ इस्लामिक न्यायशास्त्र संस्थान विश्वकोश, फ़ारसी न्यायशास्त्र, 1387, खंड 5, पृष्ठ 644।
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स्रोत
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