नमाज़े आयात
यह लेख एक न्यायशास्त्रीय अवधारणा से संबंधित एक वर्णनात्मक लेख है और धार्मिक आमाल के लिए मानदंड नहीं हो सकता। धार्मिक आमाल के लिए अन्य स्रोतों को देखें। |
कुछ अमली व फ़िक़ही अहकाम |
फ़ुरू ए दीन |
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नमाज़े आयात (अरबी: صلاة الآيات) वाजिब नमाज़ो में से एक है जो कुछ प्राकृतिक घटनाओं जैसे भूकंप, सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण होने पर वाजिब हो जाती है। इस नमाज़ को वाजिब बनाने वाली अन्य घटनाओं में लाल और पीली आंधी हैं, अगर वे लोगों को अधिक भयभीत करती हैं।
नमाज़े आयात दो रकअत हैं, और प्रत्येक रकअत में पाँच रुकूअ हैं और दो तरीक़े से पढ़ी जाती हैं: पहले तरीके मे, प्रत्येक रुकूअ से पहले, एक बार सूर ए हम्द और एक पूरा सूरा पढ़ा जाता है। दूसरे तरीक़े में, एक सूरा को पाँच भागों में विभाजित किया जाता है और प्रत्येक रुकूअ से पहले उसका एक भाग पढ़ा जाता है। इस तरीक़े में, प्रत्येक रकअत में पहले रुकूअ से पहले सूरह हम्द पढ़ा जाता है, और दूसरे रुकूओ से पहले केवल सूरह के पाँच भागों में से केवल एक भाग पढ़ा जाता है।
अगर नमाज़े आयात सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण के अलावा किसी अन्य कारण से है, तो जब भी पढ़ी जाए है, तो अदा की नियत से पढ़ी जाती है; और अगर नमाज़े आयात सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण के कारण है तो सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण के दौरान पढ़ी जाए और यदि उस समय नही पढ़ी तो क़ज़ा पढ़नी चाहिए।
परिभाषा और नामकरण
नमाज़े आयात वो नमाज़ है जो कुछ प्राकृतिक घटनाएँ जैसे सूर्य ग्रहण, चंद्र ग्रहण, भूकंप[१] के कारण और कोई भी प्राकृतिक घटना जो लोगों मे अधिक भय पैदा करती है[२] जैसे कि लाल-पीली आंधी के कारण वाजिब होती है।[३] "आयात" आयत या "आया" का बहुवचन निशानी के अर्थ मे है।[४] और रिवायतो मे सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण को अल्लाह की निशानी माना गया है।[५]
हदीसों में नमाज़ आयात का सलातुल आयात के शीर्षक के नाम से कोई उल्लेख नहीं है, बल्कि इसे "सलातुल कुसूफ" नाम दिया गया है;[६] लेकिन न्यायशास्त्र की किताबों में इसके लिए दोनों शीर्षकों का इस्तेमाल किया गया है।[७] कहा गया है कि इस नमाज़ को नमाज़े आयात के रूप में नामित करने का कारण शायद यह है कि मनुष्य इन घटनाओं को हर चीज पर भगवान की शक्ति और स्वामित्व की निशानी समझते है।[८] पैगंबर (स) ने अपने बेटे इब्राहीम बिन मुहम्मद (स) की मृत्यु के दिन जब सूर्य ग्रहण लगा, सूर्य और चंद्रमा को भगवान के दो संकेतों के रूप में पेश किया जो उनकी आज्ञा का पालन करते हैं परिचय कराया और कहा कि जब भी दोनो मे से किसी को ग्रहण लगे तो नमाज़े आयात पढ़ो।[९]
पृष्ठभूमि
नमाज़े आयात मुसलमानो पर 10वें चंद्र वर्ष मे वाजिब हुई। ऐतिहासिक स्रोतों के अनुसार, इस वर्ष जब पैग़म्बर (स) के पुत्र इब्राहीम की मृत्यु हुई तो सूर्य ग्रहण हुआ। लोगों के एक समूह ने सूर्य ग्रहण को इब्राहीम की मृत्यु से जोड़ा; लेकिन पैगंबर (स) ने इन दोनो (सूर्य और चंद्र ग्रहण) को ईश्वरीय संकेत माना जो कि ईश्वर की इच्छा से होते हैं, न कि किसी की मृत्यु या जीवन से।[१०] फिर उन्होंने (आप स) ने आदेश दिया कि जब ग्रहण लगे, तो उन्हें नमाज़े आयत पढ़नी चाहिए, और खुद मुसलमानो के साथ नमाज़े आयात पढ़ी।[११]
नमाज़े आयात पढ़ने का तरीक़ा
नमाज़े आयात दो रकअत हैं, और प्रत्येक रकअत में पाँच रूकुअ हैं और दो तरीक़े से पढ़ी जाती हैं[१२]
- पहला तरीक़ाः इस तरीक़े में हर रुकू से पहले सूर ए हम्द और एक दूसरा सूरा पढ़ा जाता है,[१३] इस तरह तकबीरातुल अहराम के बाद सूर ए हम्द और फिर एक दूसरा सूरा पढ़ते हैं और रूकूअ में जाते हैं। रुकूअ के बाद फिर से सूरह हम्द और एक और सूरह पढ़ते हैं और फिर करते हैं। इसी तरह पांचवें रुकूअ तक जारी रखते हैं। फिर सज्दा करते हैं और पहली रकअत की तरह दूसरी रकअत पढ़ते हैं। दूसरी रकअत के सज्दे के बाद तशह्हुद और सलाम पढ़ा जाता हैं।[१४]
- दूसरा तरीक़ाः इस तरीक़े मे हर रकअत में एक सूर ए हम्द और एक दूसरा पढ़ा जाता है; इस अंतर के साथ कि प्रत्येक रकअत में सूर ए हम्द को केवल एक बार पढ़ा जाता हैं, और दूसरे सूरे को पाँच भागों में विभाजित किया जाता है, और प्रत्येक रुकूअ से पहले इसका एक भाग अकेले (सूरह हम्द के बिना) पढ़ा जाता हैं।[१५]
फ़ुक़्हा के फ़तवों के अनुसार, पहला तरीक़ा एक रकअत में और दूसरा तरीक़ा दूसरी रकअत में इस्तेमाल किया जा सकता है।[१६] [नोट १]
मुस्तहब्बात
नमाज़े आयात के कुछ मुस्तहब्बात निम्नलिखित हैः
- दूसरे, चौथे, छठे, आठवें और दसवें रुकूअ से पहले क़ुनूत पढ़ना।[१७]
- जो आमाल रोज़ाना की नमाज़ मे मुस्तहब है वो नमाज़े आयात मे भी मुस्तहब है, हालाकि नमाज़े आयात मे आज़ान और अक़ामत के स्थान पर तीन बार अस-सलात कहना मुस्तहब है।[१८]
- हर रकअत के पांचवे रुकूअ को छोड़कर हर रुकू के बाद तकबीर (अल्लाहो अकबर) कहना।[१९]
जमाअत के साथ नमाज़ पढ़ना,[२०] तेज़ आवाज़ मे पढ़ना[२१] सूर्य और चाँद के ग्रहण समाप्त होने तक नमाज़ को लम्बा करना,[२२] और बड़े सूरे पढ़ना[२३] नमाज़े आयात के दूसरे मुस्तहब हैं। [नोट २]
नमाज़े आयात का समय और उसकी क़ज़ा
सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण से संबंधित नमाज़े आयात का समय ग्रहण की शुरूआत से लेकर उसके पुनः ज़ाहिर होने तक[२४] या उसके पूर्ण ज़ाहिर होने तक[२५] है। साहिबे जवाहिर के अनुसार एहतियात यह है कि ग्रहण शुरू होने से उसके जाहिर होने तक नमाज़ पढ़ने मे देरी न की जाए।[२६] अगर सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण से संबंधित नमाज़ आयात उसके समय मे नही पढ़ी गई तो उसकी क़ज़ा वाजिब है।[२७] भूकंप और दूसरे कारणो (सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण के अलावा) से संबंधित नमाज़े आयात की क़ज़ा नहीं है[२८] और जब भी पढ़ी जाए अदी की नियात से पढ़ी जाए।[२९]
ग्रहण का ग़ुस्ल
अल्लामा हिल्ली के अनुसार, कई शिया फक़ीह जैसे कि सय्यद मुर्तज़ा, सल्लार दैलमी और अबू सलाह हलबी ने फ़तवा दिया है कि यदि कोई व्यक्ति सूर्य ग्रहण या चंद्र ग्रहण की नमाज़ समय पर नहीं पढ़ता है, तो क़ज़ा के अलावा ग़ुस्ल भी वाजिब है। खुद अर्थात अल्लामा हिल्ली और कुछ दूसरे फ़ुक्हा; जैसे शेख मुफ़ीद, इब्ने बर्राज और इब्ने इदरीस हिल्ली ने इस ग़ुस्ल को मुस्तहब माना है। हालांकि इस ग़ुस्ल का वाजिब या मुस्तहब होना उस समय है जब चाँद या सूरज को पूर्ण ग्रहण लगा हो, और साथ ही उस व्यक्ति ने जान बूझ कर समय के अंदर नमाज़ अदा न की हो।[३०] रिवायत मे इस गुस्ल को ग्रहण का गुस्ल कहा गया है।[३१]
समय कम होने की स्थिति मे रोज़ाना की नमाज़ को प्राथमिकता सूर्य और चंद्र ग्रहण की नमाज़े आयात को तुरंत पढ़ना वाजिब है;[३२] लेकिन अगर नमाज़े आयात रोज़ाना की नमाज़ के दौरान वाजिब हो जाए, तो पहले उस नमाज़ को पढ़ा जाए जिसका वक्त कम हो। यदि दोनों नमाज़ो (नमाज़े आयात और रोज़ाना की नमाज़) का समय तंग हो, तो रोज़ाना की नमाज़ को नमाज़े आयात पर प्राथमिकता देनी चाहिए।[३३]
दूसरे अहकाम
- नमाज़े आयात का हर रुकूअ रुक्न है, यदि इसे जानबूझकर कम या ज़्यादा हो जाए तो नमाज़ बातिल है।[३४]
- नमाज़े आयात केवल उस क्षेत्र के लोगों पर वाजिब है जहां प्राकृतिक आपदाएं हुई हैं।[३५]
- कुछ फ़ुक़्हा के अनुसार, हाइज़ और नुफासा पर नमाज़े आयात वाजिब नही है।[३६] हालांकि, उन्होंने कहा है कि एहतियात वाजिब यह है कि हैज़ और निफ़ास से पाक होने के बाद उसकी कज़ा पढ़नी चाहिए।[३७]
- सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण के कारण सामान्य आंखों से देखे जाने पर नमाज़े आयात वाजिब होती है। टैलिस्कोप और दूरबीन से देखे गए सूर्य और चंद्र ग्रहण पर नमाज़े आयात वाजिब नही होती।[३८]
- भूकंप के पश्चात आने वाले झटको को भूंकप मे शामिल किया जाए तो नमाज़े आयात वाजिब होगी।[३९] इसी प्रकार यदि मामूली भूकंप का एहसास हो तब भी नमाज़े आयात वाजिब है।[४०]
- अगर विभिन्न कारणो से कई नमाज़े आयात वाजिब हो तो एहतीयात वाजिब की बिना पर नियत करते समय नमाज़े आयात के कारण का निर्धारण करना ज़रूरी है।[४१]
नोट
- ↑ सय्यद मुहम्मद काज़िम तबातबाई यज़्दी ने अपनी किताब उरवातुल वुस्क़ा मे नमाज़े आयात पढ़ने के 9 तरीके बयान किए है। (स्रोत की आवश्यकता)
- ↑ लंबी नमाज़े आयात के संबंध मे पैगंबर (स) और इमाम अली (अ) से रिवायात नकल हुई है। इमाम अली (अ) की रिवायत के अनुसार जोकि आपने सूर्य ग्रहण के समय पढ़ी, उसमे आपने सूर ए कहफ़, सूर ए अम्बिया को दो रकअत मे पांच बार तकरार किया। (हुर्रे आमोली, वसाइल उश-शिया, भाग 7, पेज 499)
फ़ुटनोट
- ↑ अल्लामा हिल्ली, तबसेरातुल मुताअल्लेमीन, 1411 हिजरी, पेज 48; नजफ़ी, मज्माउर रसाइल (अलमहश्शी), 1373 शम्सी, पेज 410
- ↑ इमाम ख़ुमैनी, तहरीर अल-वसीला, मोअस्सेसा मतबूआते दार उल इल्म, भाग 1, पेज 191
- ↑ अल्लामा हिल्ली, तबसेरातुल मुताअल्लेमीन, 1411 हिजरी, पेज 48; नजफ़ी, मज्माउर रसाइल (अलमहश्शी), 1373 शम्सी, पेज 410
- ↑ फ़राहीदी, अल-ऐन, 1410 हिजरी, भाग 8, पेज 441 (इय्या शब्द के अंतर्गत)
- ↑ बरक़ी, अलमहासिन, 1371 हिजरी, भाग 2, पेज 313, हदीस 31
- ↑ देखेः कुलैनी, अल-काफ़ी, 1407 हिजरी, भाग 3, पेज 288; शेख सुदूक़, मन ला याहज़ेरोहुल फ़क़ीह, 1413 हिजरी, भाग 1, पेज 434; शेख तूसी, तहज़ीब उल अहकाम, 1407 हिजरी, भाग 2, पेज 171
- ↑ देखेः अल्लामा हिल्ली, तबसेरातुल मुताअल्लेमीन, 1411 हिजरी, पेज 48; नजफ़ी, जवाहिर उल कलाम, 1404 हिजरी, भाग 5, पेज 48; फ़ैज़ काशानी, मफ़ाती उल शराए, किताब खाना आयतुल्लाह मरअशी, भाग 1, पेज 137; तबातबाई, रियाज़ उल मसाइल, 1418 हिजरी, भाग , पेज 193
- ↑ अकबरी, निगाही बे फ़लसफ़ा अहकाम, 1390, पेज 67
- ↑ मजलिसी, मुहम्मद बाक़िर, बिहार उल अनवार, भाग 22, पेज 1557; सुब्हानी, जाफ़र, फ़ुरूग़े अब्दियत, भाग 1, पेज 52
- ↑ बलाज़ुरी, अनसाब उल अशराफ़, 1959 ई, भाग 1, पेज 452
- ↑ बरक़ी, अल-महासिन, 1371 हिजरी, भाग 2, पेज 313; हुर्रे आमोली, वसाइल उश शिया, 1416 हिजरी, भाग 7, पेज 48
- ↑ अल्लामा हिल्ली, निहायतुल अहकाम, 1419 हिजरी, भाग 2, पेज 71
- ↑ अल्लामा हिल्ली, निहायतुल अहकाम, 1419 हिजरी, भाग 2, पेज 71
- ↑ अल्लामा हिल्ली, निहायतुल अहकाम, 1419 हिजरी, भाग 2, पेज 72
- ↑ अल्लामा हिल्ली, निहायतुल अहकाम, 1419 हिजरी, भाग 2, पेज 71-7
- ↑ बनी हाश्मी ख़ुमैनी, तौज़ीहुल मसाइल मराजे, 1392 शम्सी, भाग 1, पेज 1036 व 1509
- ↑ बनी हाश्मी ख़ुमैनी, तौज़ीहुल मसाइल मराजे, 1392 शम्सी, भाग 1, पेज 1037 व 1512
- ↑ बनी हाश्मी ख़ुमैनी, तौज़ीहुल मसाइल मराजे, 1392 शम्सी, भाग 1, पेज 1036 व 1510
- ↑ अल्लामा हिल्ली, तबसेरातुल मुताअल्लेमीन, 1411 हिजरी, पेज 48
- ↑ अल्लामा हिल्ली, तबसेरातुल मुताअल्लेमीन, 1411 हिजरी, पेज 48
- ↑ इमाम ख़ुमैनी, तहरीर अल-वसीला, मोअस्सेसा मतबूआते दार उल इल्म, भाग 1, पेज 194
- ↑ यज़्दी, मुहम्मद काज़िम, उरवातुल वुस्क़ा, भाग 27, पेज 217
- ↑ अल्लामा हिल्ली, तबसेरातुल मुताअल्लेमीन, 1411 हिजरी, पेज 48
- ↑ अल्लामा हिल्ली, तबसेरातुल मुताअल्लेमीन, 1411 हिजरी, पेज 48 इमाम ख़ुमैनी, तहरीर अल-वसीला, मोअस्सेसा मतबूआते दार उल इल्म, भाग 1, पेज 192
- ↑ नजफ़ी, जावहिर उल कलाम, 1404 हिजरी, भाग 11, पेज 409
- ↑ नजफ़ी, मज्मा उर रसाइल (अलमहश्शी), 1373 शम्सी, पेज 411, 1307 ई
- ↑ अल्लामा हिल्ली, तबसेरातुल मुताअल्लेमीन, 1411 हिजरी, पेज 48
- ↑ अल्लामा हिल्ली, तबसेरातुल मुताअल्लेमीन, 1411 हिजरी, पेज 48; नजफ़ी, मज्मा उर रसाइल (अलमहश्शी), 1373 शम्सी, पेज 411, 1308 ई
- ↑ अल्लामा हिल्ली, तबसेरातुल मुताअल्लेमीन, 1411 हिजरी, पेज 48; नजफ़ी, मज्मा उर रसाइल (अलमहश्शी), 1373 शम्सी, पेज 411, 1308 ई
- ↑ अल्लामा हिल्ली, मुखतलाफुल शिया, 1413 हिजरी, भाग 1, पेज 317
- ↑ देखेः तूसी, तहज़ीब उल अहकाम, 1407 हिजरी, भाग 1, पेज 115
- ↑ नजफ़ी, मज्मा उर रसाइल (अलमहश्शी), 1373 शम्सी, पेज 411, 1308 ई
- ↑ अल्लामा हिल्ली, तबसेरतुल मुतअल्लेमीन, 1411 हिजरी, पेज 49; नजफ़ी, मज्मा उर रसाइल (अलमहश्शी), 1373 शम्सी, पेज 412
- ↑ तबातबाई यज़्दी, अल-उरवातुल वुस्क़ा, 1409 हिजरी, भाग 1, पेज 728
- ↑ तबातबाई यज़्दी, अल-उरवातुल वुस्क़ा, 1409 हिजरी, भाग 1, पेज 731
- ↑ तबातबाई यज़्दी, अल-उरवातुल वुस्क़ा, 1409 हिजरी, भाग 1, पेज 731; इमाम ख़ुमैनी, नजातुल एबाद, 1422 हिजरी, पेज 119
- ↑ बनी हाश्मी ख़ुमैनी, तौज़ीहुल मसाइल मराजे, 1392 शम्सी, भाग 1, पेज 1034-1035, मस्अला 1506
- ↑ इमाम ख़ुमैनी, नजातुल एबाद, 1422 हिजरी, भाग 1, पेज 109
- ↑ ख़ामेनई, अज्वाबातुल इस्तिफ़्तेआत, 1420 हिजरी, भाग 1, पेज 214, मस्अला 714
- ↑ ख़ामेनई, अज्वाबातुल इस्तिफ़्तेआत, 1420 हिजरी, भाग 1, पेज 214, मस्अला 715
- ↑ बनी हाश्मी ख़ुमैनी, तौज़ीहुल मसाइल मराजे, 1392 शम्सी, पेज 1027-1028, मस्अला 1493
स्रोत
- अकबरी, महमूद, निगाही बे फ़लसफ़ला अहकाम, क़ुम, फ़ित्यान, 1390 शम्सी
- इमाम ख़ुमैनी, सय्यद रूहुल्लाह, तहरीर अल-वसीला, क़ुम, मोअस्सेसा मतबूआते दार उल इल्म
- इमाम ख़ुमैनी, सय्यद रूहुल्लाह, नेज़तुल एबाद, मोअस्सेसा तंज़ीम व नश्रे आसारे इमाम ख़ुमैनी, तेहरान, 142 हिजरी
- बलाज़ुरी, अहमद बिन याह्या, अनसाब उल अशराफ़ (भाग 1), शोध मुहम्मद हमीदुल्लाह, मिस्र, दार उत तआरुफ, 1995 ई
- बरक़ी, अहमद बिन मुहम्मद, अलमहासिन, संशोधन जलालुद्दीन अरमोई, क़ुम, दार उल कुतुब उल इस्लामीया, 1371 हिजरी
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- अल्लामा हिल्ली, हसन बिन युसुफ़, तबसेरातुल मुताअल्लमीन फ़ी अहकाम अल-दीन, संशोधन मुहम्मद हादी यूसुफ़ी ग़रवी, तेहरान, मोअस्सेसा चाप व नश्र वावस्ता बे वज़ारत फ़रहंग वा इरशाद इस्लामी, 1411 हिजरी
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- फराहीदी, खलील बिन अहमद, अल-ऐन, संशोधन महदी मख़ज़ूमी वा इब्राहीम सामराएरी, क़ुम, हिजरत, 1410 हिजरी
- तबातबाई, सय्यद अली, रियाज़ुल मसाइल, क़ुम, मोअस्सेसा आले अल-बैत (अ) पहला संस्करण, 1418 हिजरी
- फ़ैज़ काशानी, मुहम्मद मोहसिन, मफ़ातीहुश शराए, क़ुम, किताब खाना आयतुल्लाह मरअशी नजफ़ी, पहला संस्करण
- कुलैनी, मुहम्मद बिन याक़ूब, अल-काफ़ी, क़ुम, दार अल-इकताब अल इस्लामीया, चौथा संस्करण, 1407 हिजरी
- नजफी, मुहम्मद हसन बिन बाक़िर, रिसाला शरीफ़ा मजमा उर रसाइल (अलमोहश्शी), मशहद, मोअस्सेसा हज़रत साहिब ज़मान 1373 शम्सी
- नजफ़ी, मुहम्मद हसन, जवाहिर अल-कलाम फ़ी शरह शराए इस्लाम, संशोधन अब्बास क़ूचानी व अली आख़ूंदी, तेहरान, दार एहयाइत तुरास अल अरबी, 1404 हिजरी