शरई अहकाम

wikishia से

शरई अहकाम, (अरबी: الأحكام الشرعية) या शरिया नियम मानव कर्तव्यों से संबंधित धार्मिक कानून। शरई अहकाम तकलीफ़ी और वज़ई दो प्रकारों में विभाजित होते हैं: तकलीफ़ी अहकाम सीधे मानवीय कर्तव्यों को व्यक्त करते हैं; जैसे नमाज़ पढ़ना, शराब न पीना। वज़ई अहकाम अप्रत्यक्ष रूप से मानव कर्तव्यों से संबंधित हैं; जैसे अपवित्र वस्त्रों के साथ नमाज़ पढ़ना बातिल है।

शरई अहकाम शरिया तर्को से प्राप्त होते हैं, जिनमें क़ुरआन, सुन्नत, अक़्ल और इज्मा (आम सहमति) शामिल है। एक व्यक्ति जो इन साक्ष्यों से शरिया नियम प्राप्त करने की क्षमता रखता है, उसे मुज्तहिद कहा जाता है। आज कल शरई अहकाम तौज़ीहुल मसाइल नामक पुस्तकों में प्रस्तुत किया जाता है, जिसमें मराज ए तकलीद की राय शामिल होती है।

मराज ए तकलीद के फ़तवे के आधार पर, उन मसाइल को सीखना वाजिब है जिनसे व्यक्ति अक्सर रूबरू होता है।

फ़िक़्ही परिभाषा और प्रकार

मानव कर्तव्य से संबंधित धार्मिक कानूनों को शरई अहकाम (शरीया नियम) कहा जाता है;[१] जैसे नमाज़ का वाजिब होना, रोज़े का वाजिब, शराब पीना हराम होना, शादी-विवाह और क्रय विक्रय जैसे मसाइल का सही होने के लिए बताई गई शर्तें।[२]

शरिया नियम के प्रकार

न्यायविदों (फ़ुक्हा) ने शरिया नियमो की विभिन्न श्रेणियों मे विभाजित किया है। उनमें से:

  • तकलीफ़ी और वज़ई हुक्म
  • वाक़ेई और ज़ाहेरी हुक्म
  • अव्वली वा सानवी हुक्म
  • मौलवी और इरशादी हुक्म
  • तासीसी और इमज़ाई हुक्म[३] है।

तकलीफ़ी और वज़ई हुक्म

मुख़्य लेख: तकलीफ़ी हुक्म और वज़ई हुक्म

तकलीफ़ी हुक्म किसी विषय के संबंध में व्यक्ति के कर्तव्य को सीधे व्यक्त करता है; जैसे नमाज़ पढ़ने या शराब न पीने का हुक्म।[४] तकलीफ़ी हुक्म के पाँच प्रकार हैं: वुजूब, इस्तेहबाब, हुरमत, कराहत और इबाहा[५] इन्हें अहकामे ख़म्सा (अर्थात पांच प्रकार के हुक्म) कहा जाता है।[६]

वज़ई हुक्म सीधे आदेश को व्यक्त नहीं करता है; बल्कि, उदाहरण के लिए, यह एक कार्रवाई के सही होने की शर्तो को बयान करता है;[७] जैसे कि अपवित्र (नजिस) कपड़ों के साथ नमाज़ पढ़ना बातिल है।[८] वज़ई हुक्म अप्रत्यक्ष रूप से मानव कर्तव्यों से संबंधित हैं। जैसे विवाह के नियम वज़ई हुक्म केवल इसकी वैधता की शर्तों को बताता हैं; जबकि शादी के बाद, प्रत्येक पुरुष और महिला को एक-दूसरे के प्रति कर्तव्यों का पता चलता है, यह तकलीफ़ी हुक्म का दायित्व हैं।[९]

अव्वली वा सानवी हुक्म

मुख़्य लेख: अव्वली हुक्म और सानवी हुक्म

अव्वली हुक्म उन अहकाम को कहा जाता है जो सामान्य परिस्थितियों में मनुष्यों के उत्तरदायित्व हैं; जैसे सुबह की नमाज़ पढ़ने का वुजूब, शराब पीने की हुरमत (निषेधता)। सानवी हुक्म उन अहकाम को कहा जाता है जो आपातकाल या मजबूरी की स्थिति में जारी किया जाता है। जैसे किसी ऐसे व्यक्ति के लिए रोज़े न रखने की अनुमति जिसका रोज़ा रखना उसके स्वास्थ्य को खतरे में डालता है या जिसे ऐसा करने के लिए मजबूर किया गया हो।[१०]

तासीसी और इमज़ाई हुक्म

मुख़्य लेख: तासीसी हुक्म और इमज़ाई हुक्म

तासीसी हुक्म उन अहकाम को कहा जाता है जिन्हे इस्लामी शरीयत में पहली बार बनाए गए थे।[११] इमज़ाई हुक्म उन अहकाम को कहा जाता है जो इस्लाम से पहले थे और इस्लाम ने उन अहकाम की पुष्टि की है।[१२]

शरई अहकाम की दलीले

मुख़्य लेख: अदिल्ला ए अरबा (चार तर्क)

शरिया नियम दिराया, रेजाल, फ़िक़्ह (न्यायशास्त्र) और उसूले फ़िक़्ह (न्यायशास्त्र के सिद्धांतों) जैसे ज्ञान की सहायता से प्राप्त किए जाते हैं।[१३] शरिया नियमों को प्राप्त करने के लिए, न्यायविद चार स्रोतों का उल्लेख करते हैं: क़ुरआन, सुन्नत, अक़ल और इज्माअ (आम सहमति) को अदिल्ला ए अरबा (चार तर्क) कहते हैं।[१४] सुन्नत का अर्थ है वो रिवायते हैं जो मासूमीन (अ) के कथन और कर्म से नक़ल किए गए हैं।[१५] सुन्नी न्यायशास्त्र में, केवल पैग़म्बर (स) की सुन्नत का हवाला दिया जाता है; हालाँकि, शिया न्यायशास्त्र में, पैगंबर की सुन्नत के अलावा, मासूम इमामों की सुन्नत का भी उल्लेख किया गया है।[१६] शिया इमामिया न्यायशास्त्र में, कुरान और बारह इमामों की रिवायते धार्मिक क़ानून के दो मुख्य स्रोत हैं।[१७]

इन स्रोतों से शरीयत के अहकाम को निकाला मुज्तहिद की ज़िम्मेदारी है। मुज्तहिद वह है जो इज्तेहाद तक पहुँच गया हो; अर्थात्, इसमें तर्को से शरीयत के अहकाम को प्राप्त करने की क्षमता है।[१८]

शरई अहकाम से आशनाई का वुजूब

न्यायविदों के फ़तवे के अनुसार, शरीयत के उन मसअलो को सीखना वाजिब है, जिनका हमे अक्सर सामना करना पड़ता हैं।[१९] इसके अलावा, एक व्यक्ति को या तो मुज्तहिद होना चाहिए और दलीलो से अहकाम को हासिल करना चाहिए, या मरज ए तक़लीद का अनुसरण करना चाहिए, या ऐहतीयात के माध्यम से सुनिश्चित हो कि उसने अपने शरई कर्तव्य को अंजाम दिया है; उदाहरण के लिए, उसे ऐसा कोई कार्य नहीं करना चाहिए जिसे कुछ मुज्तहिद हराम मानते हैं और दूसरे जायज़ मानते हैं, या उसे ऐसा कार्य करना चाहिए जिसे कुछ मुज्तहिद वाजिब और दूसरे जायज़ मानते हैं।[२०]

अहकाम की मख़्सूस किताबें

आज कल शरई अहकाम को तौज़ीहुल मसाइल नामक किताब के रूप में प्रस्तुत किया जाता है, जो मराज ए तक़लीद द्वारा लिखी गई हैं।[२१] मरज ए तक़लीद वह है जिसकी दूसरे व्यक्ति तक़लीद (अनुसरण) करते हैं; अर्थात् वे अपने धार्मिक कार्यों को फ़क़ीह के फ़तवा के आधार पर करते हैं और अपने शरई वुजूहात (ख़ुम्सजक़ात इत्यादि) का फ़क़ीह या उनके प्रतिनिधियों को भुगतान करते हैं।[२२]

फ़ुटनोट

  1. हकीम, अल-उसूल अल-आम्मा लिल फ़िक्ह अल-मक़ारिन, 1418 हिजरी, पेज 51-52
  2. सदर, अल-मआलिम अल-जदीद लिल उसूल, 1379 शम्सी, भाग 1, पेज 124
  3. विलाई, फ़रहंग तश्रीही इस्तेलाहात उसूले, 1387 शम्सी, पेज 175-176
  4. सदर, अल-मआलिम अल-जदीद लिल उसूल, 1379 शम्सी, भाग 1, पेज 123-124
  5. सदर, दुरूस फ़ी इल्म अल-उसूल, 1418 हिजरी, भाग 1, पेज 63-64; सदर, अल-मआलिम अल-जदीद लिल उसूल, 1379 शम्सी, भाग 1, पेज 124-125
  6. सज्जादी, फ़रहंग उलूम, 1344 शम्सी, पेज 29
  7. सदर, अल-मआलिम अल-जदीद लिल उसूल, 1379 शम्सी, भाग 1, पेज 124
  8. हुसैनी शिराज़ी, अल-उसूल एला किफ़ायातिल उसूल, 1426 हिजरी, भाग 5, पेज 83
  9. सदर, अल-मआलिम अल-जदीद लिल उसूल, 1379 शम्सी, भाग 1, पेज 124-125
  10. मिश्कीनी, इस्तेलाहात अल-उसूल, 1374 शम्सी, पेद 124
  11. मोहक़्क़िक़े दामाद यज्दी, क़वाइद फ़िक्ह, 1406 हिजरी, भाग 1, पेज 6
  12. मोहक़्क़िक़े दामाद यज्दी, क़वाइद फ़िक्ह, 1406 हिजरी, भाग 1, पेज 6
  13. मकारिम शिराज़ी, दाएरतुल मआरिफ़ फ़िक्ह मक़ारिन, 1427 हिजरी, भाग 1, पेज 176, 323-330
  14. मुज़फ़्फ़र, उसूल अल-फ़िक़्ह, 1430 हिजरी, भाग 1, पेज 51
  15. मुज़फ़्फ़र, उसूल अल-फ़िक़्ह, 1430 हिजरी, भाग 3, पेज 64
  16. मुज़फ़्फ़र, उसूल अल-फ़िक़्ह, 1430 हिजरी, भाग 3, पेज 64
  17. मकारिम शिराज़ी, दाएरतुल मआरिफ़ फ़िक्ह मक़ारिन, 1427 हिजरी, भाग 1, पेज 176, 182
  18. विलाई, फ़रहंग तश्रीही इस्तेलाहात उसूल, 1387 शम्सी, पेज 38
  19. बनी हाश्मी ख़ुमैनी, तौज़ीहुल मसाइल मराजे, 1424 हिजरी, भाग 1, पेज 24
  20. बनी हाश्मी ख़ुमैनी, तौज़ीहुल मसाइल मराजे, 1424 हिजरी, भाग 1, पेज 11-12
  21. यज़्दानी, मुरूरी बर रिसालेहाए इल्मीया, पेज 292
  22. यज़्दी, अल-उरवातुल वुस्क़ा, 1428 हिजरी, भाग 1, पेज 4; रहमान सताईश, तक़लीद, पेज 789

स्रोत

  • बनी हाश्मी ख़ुमैनी, सय्यद मुहम्मद हुसैन, तौज़ीहुल मसाइल मराजे मुताबिक बा फ़तावाए सीज्देह नफर अज मराजे मोअज़्ज़्म तक़लीद, क़ुम, दफ्तरे इंतेशारात इस्लामी वाबस्ते बे जामे मुदर्रेसीन हौज़ा ए इल्मीया क़ुम, 1424 हिजरी
  • हुसैनी शिराज़ी, मुहम्मद, अल-उसूल एला किफ़ायातिल उसूल, क़ुम, दार उल हिकमा, तीसरा संस्करण 1426 हिजरी
  • हकीम, मुहम्मद तक़ी, अल-उसूल अल-आम्मा फ़िल फ़िक़्ह अल-मकारिन, क़ुम, मज्मा ए जहानी अहलेबैत, दूसरा संस्करण, 1418 हिजरी
  • रहमान सताइश, मुहम्मद काज़िम, तकलीद 1, दर दानिश नामा जहान इस्लाम, तेहरान, बुनयाद दायरतुल मआरिफ इस्लामी, पहला संस्करण 1382 शम्सी
  • सज्जादी, सय्यद जाफ़र, फ़रहंग उलूम, शामिल इस्तेलाहात अदबी, फ़िक़्ही, उसूली, मआनी व बयान व दस्तूरी, तेहरान, मोअस्सेसा मतबूआते इल्मी, 1344 शम्सी
  • सदर, मुहम्मद बाक़िर, अल-मआलिम अल-जदीदा लिल उसूल, क़ुम, कुंगराए शहीद सदर, दूसरा संस्करण 1379 शम्सी
  • सदर, मुहम्मद बाक़िर, दुरूस फ़ी इल्म अल-उसूल, क़ुम, इंतेशाराते इस्लामी, पांचवा संस्करण, 1418 हिजरी
  • मोहक़्क़िक़ दामाद, सय्यद मुस्तफ़ा, क़वाइद फ़िक्ही, तेहरान, मरकज़े नश्र उलूम इस्लामी, बारहवां संस्करण, 1406 हिजरी
  • मिश्कीनी, अली, इस्तेलाहात अल-उसूल वा मोअज़्ज़म अबहासेहा, क़ुम, अल-हादी, छटा संस्करण, 1374 शम्सी
  • मुज़फ़्फ़र, मुहम्मद रज़ा, उसूल अल-फ़िक़्ह, क़ुम, इंतेशाराते इस्लामी, पांचवा संस्करण, 1430 हिजरी
  • मकारिम शिराज़ी, नासिर, दायरतुल मआरिफ़ फ़िक़्ह मक़ारिन, क़ुम, इंतेशारात मदरसा इमाम अली बिन अबी तालिब, पहला संस्करण, 1427 हिजरी
  • विलाई, ईसा, फ़रहंग तश्रीही इस्तेलाहात उसूल, तेहरान, नश्र नी, छटा संस्करण, 1387 शम्सी
  • यज़्दानी, अब्बास, मुरूरी बर रिसालेहाए इल्मीया 2, दर काविशी नौ दर फ़िक्ही, क्रमांक 15 और 16, 1377 शम्सी