शियो के इमाम

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यह लेख बारह इमामों के परिचय से संबंधित है। इमामों की इमामत और उनके तर्को के बारे में जानने के लिए शिया इमामों की इमामत को देखे।


शियो के इमाम (अरबी: أئمة الشيعة) आइम्मा-ए-मासूमीन (अ) अर्थात पैगंबर के परिवार के बारह सदस्य। जो शिया शिक्षाओं और मान्यताओं के अनुसार पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि वा आलेही वसल्लम के पश्चात [एक के बाद एक] उनके उत्तराधिकारी हैं। और आपके बाद इस्लामी समाज के इमाम और अभिभावक है। पहले इमाम अली (अलैहिस सलाम) और बाकी इमाम आप और हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाहे अलैहा की नस्ल से हैं।

शिया एतेक़ादात के अनुसार इन इमामों को अल्लाह तआला ने नियुक्त किया है। इमामो की विशेषताओ में से इस्मत, इल्म ए ग़ैब, अफ़ज़लियत और शिफ़ाअत का हक़ है। शिया शिक्षाओ के अनुसार आइम्मा (अ) तवस्सुल किया जा सकता है। और उनके माध्यम से अल्लाह से क़ुरबत हासिल की जा सकती है।

आइम्मा (अ) पर वही उतरने और शरीयत लाने के अलावा पैगंबर (स.अ.व.व.) के सभी कर्तव्य पूरा करते हैं। पैगंबर (स) ने अल्लाह के आदेश से आइम्मा (अ.स.) का जगह जगह विभिन्न अवसरो पर परिचय कराया है। पैग़ंबर की ज़बान से निकले शब्दो के अनुसार आइम्मा (अ) की विशेषताए, नाम, संख्या की व्याख्या हुई है। इन हदीसो के अनुसार वह सब के सब क़ुरैश और पैगंबर के परिवार वालो मे से है और हज़रत महदी अंतिम इमाम हैं। पहले इमाम, इमाम अली (अ) की इमामत के संबंध मे पैंगबर द्वारा बताई हदीसे हदीसों के स्रोतो मे मौजूद है और दूसरे इमाम की इमामत के संबंध मे पैंगबर (स) और इमाम अली (अ) से प्रमाणिकता के रूप मे नक़्ल हुई है और उनके पश्चात प्रत्येक इमाम ने अगले इमाम को प्रमाणिक पहुंचाया है। इन प्रमाणिकता के आधार पर इस्लाम के इमाम बारह है और उनके नाम निम्नलिखित है।

अली बिन अबी तालिब, हसन बिन अली (अ), हुसैन बिन अली (अ), अली बिन हुसैन, मोहम्मद बिन अली, जाफ़र बिन मोहम्मद, मूसा बिन जाफ़र, अली बिन मूसा, मोहम्मद बिन अली, अली बिन मोहम्मद, हसन बिन अली और महदी (अ)। शियो के मशहूर मत के अनुसार ग्यारह इमाम शहीद हो गए और उनके अंतिम इमाम महदी ए मौऊद ग़ैबत मे जीवन व्यतीत कर रहे है। वो भविष्य मे ज़हूर करेंगे और पृथ्वी को अद्ल व इंसाफ से भर देगे।

सुन्नी, शिया इमामों की इमामत को स्वीकार नहीं करते; लेकिन वे उनके प्रति प्रेम और भक्ति का इज़हार करते हैं और उनके धार्मिक और इल्मी हक़ को स्वीकार करते हैं। शिया इमामों की जीवनी और उनके गुणों के बारे में कई पुस्तके लिखी गई हैं, जैसे अल-इरशाद और दलाइ लुल-इमामा, और सुन्नियों ने यनाबी उल-मवद्दा और तज़किरा तुल-ख़वास जैसी पुस्तके लिखी है।

शिया संप्रदाय मे इमामो का स्थान और विशेषताए

बारह इमामों की इमामत का अक़ीदा अर्थात विश्वास शिया इसना अशरी संप्रदाय के मूल सिद्धांतों में से एक है।[१] शियों के दृष्टिकोण से इमाम अल्लाह द्वारा इस्लाम के पैगंबर (स.अ.व.व.) के माध्यम से निर्धारित होता है।[२] शियों का मानना है कि कुरआन में इमामों के नामों का उल्लेख नहीं हुआ है; लेकिन कुरआन की आयतों जैसे आय ए ऊलिल अम्र, आय ए तत्हीर, आय ए विलायत, आय ए इकमाल, आयत ए तब्लीग़ और आय ए सादेक़ीन मे इमामों की इमामत की ओर इशारा किया गया है।[३] जबकि रिवायतो मे नामों और संख्या का उल्लेख है।[४]

शिया इसना अशरी संप्रदाय के अनुसार, इमामों के पास पैगंबर (स) के सभी कर्तव्य हैं, जैसे कुरआन की आयतों की व्याख्या करना, शरई अहकाम को बयान करना, समाज में लोगों को शिक्षित करना, धार्मिक सवालों का जवाब देना, समाज में न्याय स्थापित करना और इस्लाम की सरहदों की रखवाली करना, नबी (स) से उनका अंतर केवल रहस्योद्घाटन अर्थात वही प्राप्त करने और शरीयत लाने में है।[५]

विशेषताए

शिया इमामिया की दृष्टि से बारह इमामों की कुछ विशेषताएँ इस प्रकार हैं:

  1. इस्मत: आइम्मा (अ) पैगंबर (स) की तरह, सभी पापों और ग़लतियों से मासूम हैं।[६]
  2. अफ़ज़लियत: शिया विद्वानों के दृष्टिकोण से पैगंबरे इस्लाम (स.अ.व.व.) के बाद बाकी दूसरे नबीयो, फ़रिश्तों और अन्य लोगों से श्रेष्ठ अर्थात अफ़ज़ल हैं।[७] जो रिवायतें आइम्मा (अ) की तमाम प्राणियो पर श्रेष्ठता पर दलालत करती है वो मुस्तफ़ीज़ बल्कि मुतावातिर है।[८]
  3. इल्मे ग़ैब: आइम्मा (अ) के पास अल्लाह का दिया हुआ इल्मे ग़ैब है।[९]
  4. तकवीनी और तशरीई विलायत: अधिकांश इमामी शिया विद्वान आइम्मा (अ.स.) की तकवीनी विलायत की पुष्टि पर सहमत हैं।[१०] [10] आइम्मा (अ.स.) की तशरीई विलायत अर्थात जनता और उनके माल पर जनता से अधिक अधिकार रखने मे कोई मतभेद नही है।[११] हदीसों के आधार पर तशरीई विलायत का अर्थ है क़ानून बनाने और उसको जारी करने का अधिकार इमामों के लिए साबित है।[१२]
  5. शिफ़ाअत का अधिकार: पैगंबर (स) की तरह सभी इमामों के पास शिफ़ाअत का अधिकार है।[१३]
  6. दीनी और इल्मी मरज़ेईयत: हदीसे सक़लैन[१४] और हदीसे सफीना[१५] जैसी हदीसो के आधार पर आइम्मा (अ.स.) दीनी और इल्मी मरजेईयत रखते हैं और लोगों को धार्मिक मामलों में उनका पालन करना चाहिए।[१६]
  7. समाज का नेतृत्व: इस्लाम के पैगंबर (स) के बाद इस्लामी समुदाय का नेतृत्व और प्रशासन आइम्मा (अ) का कर्तव्य है।[१७]
  8. इताअत का वाजिब होना: आय ए उलिल अम्र के आधार पर आइम्मा (अ) की आज्ञाकारिता (इताअत) वाजिब है। जिस तरह अल्लाह और पैगंबर (स.अ.व.व.) की तरह आइम्मा (अ.स.) की आज्ञाकारिता अनिवार्य है।[१८]

अधिकांश शिया विद्वानों के दृष्टिकोण से सभी शिया इमाम शहीद हो गए हैं या शहीद होंगे।[१९] उनका तर्क रिवायतो[२०] मे से वह रिवायत है जिसमे आया है «[२१]وَ اللَّهِ مَا مِنَّا إِلَّا مَقْتُولٌ شَهِيد» 'वल्लाहि मा मिन्ना इल्ला मक़तूलुन शहीद' कि सभी इमाम दुनिया से शहीद जाएंगे।[२२]

इमामो की इमामत

विस्तृत लेखः शिया इमामो की इमामत

शिया विद्वान बारह इमामो की इमामत बौद्धिक तर्क जैसे इस्मत और अफ़ज़लीयत, और नक़ली तर्क जैसे हदीसे जाबिर, हदीसे लौह, हदीसे 12 ख़ुलफ़ा के माध्यम से साबित करते है।[२३]

हदीसे जाबिर

विस्तृत लेखः हदीसे जाबिर जाबिर इब्ने अब्दुलाह अंसारी ने आय ए विलायत «[२४]يا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا أَطِيعُوا اللهه وَ أَطِيعُوا الرَّسُولَ وَ أُولِي الْأَمْرِ مِنْكُمْ» (या अय्योहल लज़ीना आमानू अतीउल लाहा वा अती उर रसूला वा उलिल उम्र मिनकुम) के आने के पश्चात उलिल अम्र के अर्थ से संबंधिक पैगंबर (स) से सवाल किया। पैगंबर (स) ने जवाब मे फ़रमायाः "ये मेरे बाद मेरे उत्तराधिकारी और मुसलमानों के इमाम हैं, जिनमें से पहले अली बिन अबी तालिब हैं, और उनके बाद क्रमशः हसन, हुसैन, अली बिन हुसैन और मुहम्मद बिन अली, जाफ़र बिन मुहम्मद, मूसा बिन जाफ़र, अली बिन मूसा, मुहम्मद बिन अली, अली बिन मुहम्मद, हसन बिन अली और उनके बाद उनका बेटा मेरा हम नाम और मेरी हम उपाधि है।[२५]

हदीसे ख़ुल्फ़ाए इस्ना अशर

विस्तृत लेखः हदीसे ख़ुल्फ़ाए इस्ना अशर

खुश लेख

अहले सुन्नत से एक रिवायत आई है जिसमे पैगंबर के खलीफ़ाओ की संख्या 12 और उनकी कुछ विशेषताओ जैसे उनका क़ुरैशी होने का वर्णन हुआ है; जाबिर बिन सुमरा ने पैगंबर से रिवायत की है "यह धर्म हमेशा पुनरुत्थान के दिन तक बाकी रहेगा और जब तक आप पर बारह खलीफा नहीं होंगे। ये सभी खलीफा कुरैशी के हैं।"[२६] इस संबंध मे इब्ने मसऊद से नकल होने वाली हदीस की ओर भी इशारा किया जा सकता है जिसके आधार पर पैगंबर के नकीबो की संख्या बनी इस्राइल के नकीबो की संख्या के बराबर अर्थात 12 है।[२७] सुन्नी विद्वान सुलेमान बिन इब्राहीम क़न्दूज़ी के अनुसार पैगंबर की हदीस मे 12 खलीफ़ा का अर्थ है शियो के 12 इमाम क्योकि यह संख्या इनके अलावा कही पर भी फिट नही बैठती।[२८]

इमामो का परिचय

इमामी शियों के अक़ली तर्कसंगत के कारणों[२९] और इसी प्रकार नकली तर्कसंगतो जैसे हदीसे ग़दीर और हदीसे मंज़लत के आधार पर पैगंबर ए इस्लाम के बर हक़ और बिला फासला खलीफ़ा इमाम अली इब्न अबी तालिब (अ) हैं। इमाम अली के पश्चात क्रमशः इमाम हसन, इमाम हुसैन, इमाम सज्जाद, इमाम बाक़िर, इमाम सादिक़, इमाम काज़िम, इमाम रजा, इमाम तक़ी, इमाम नक़ी, इमाम अस्करी और फिर इमाम महदी जिनके हाथो मे उम्मत की बागडोर है।[३०]


नाम उपनाम उपाधि जन्म जन्म का
साल
जन्म
स्थान
शहादत शहादत का
साल
शहादत
स्थल
इमामत इमामत
काल
माता का नाम
अली बिन अबीतालिब अमीर उल-मोमेनीन अबुल हसन 13 रजब 30 आम उल-फ़ील काबा 21 रमज़ान 40 हिजरी कूफ़ा 11-40 29 साल फ़ातिमा बिन्ते असद
हसन बिन अली मुज्तबा अबु मुहम्मद 15 रमज़ान 2 हिजरी मदीना 28 सफ़र 50 हिजरी मदीना 40-50 10 साल फ़ातिमा (स.)
हुसैन बिन अली सय्यद-उश शोहदा अबू अब्दिल्लाह 3 शाबान 3 हिजरी 10 मुहर्रम 61 हिजरी कर्बला 50-61 10 साल
अली बिन हुसैन सज्जाद, ज़ैन-उल आबेदीन अबुल हसन 5 शाबान 38 हिजरी 25 मुहर्रम 95 हिजरी मदीना 61-94 35 साल शहरबानो
मुहम्मद बिन अली बाक़िर अल-उलूम अबू जाफ़र 1 रजब 57 हिजरी 7 ज़िल-हिज्जा 114 हिजरी 94-114 19 साल फ़ातिमा
जाफ़र बिन मुहम्मद सादिक़ अबु अब्दिल्लाह 17 रबी-उल अव्वल 83 हिजरी 25 शव्वाल 148 हिजरी 114-148 34 साल फ़ातिमा
मूसा बिन जाफ़र काज़िम अबुल हसन 7 सफ़र 128 हिजरी 25 रजब 183 हिजरी काज़मैन 148-183 35 साल हमीदा बरबरिया
अली बिन मूसा रज़ा अबुल हसन 11 ज़िल क़ाअ्दा 148 हिजरी आख़िरे सफ़र 203 हिजरी मशहद 183-203 20 साल तकत्तुम
मुहम्मद बिन अली तक़ी, जवाद अबू जाफ़र 10 रजब 195 हिजरी आख़िरे ज़िल क़ाअ्दा 220 हिजरी काज़मैन 203-220 17 साल सबीका
अली बिन मुहम्मद हादी, नक़ी अबुल हसन 15 ज़िल-हिज्जा 212 हिजरी 3 रजब 254 हिजरी सामर्रा 220-254 34 साल समाना मग़रिब्या
हसन बिन अली ज़की, अस्करि अबु मुहम्मद 10 रबी-उस सानी 234 हिजरी 8 रबी-उल अव्वल 260 हिजरी 254-260 6 साल सूसन
हुज्जत बिन हसन क़ायम अबुल क़ासिम 15 शाबान 255 हिजरी सामर्रा
इमामत 260 हिजरी से आज तक (१४४५)
नरजिस ख़ातून

इमाम अली (अ)

विस्तृत लेखः इमाम अली (अ.स.)

हरम ए इमाम अली (अ) नजफ़, इराक़.

शियो के पहल इमाम अबू तालिब के पुत्र और फात्मा बिन्ते असद के सपुत्र अलि इब्ने अबि तालिब जोकि इमाम अली के नाम और उपाधि अमीरुल मोमेनीन है[३१] उनका जन्म 13 रजब सन् 30 आमुल फ़ील (हाथीयो वाला सालः आमुल फ़ील इस लिए कहा जाता है क्योकि इस साल अबरह्र ने खाना ए काबा पर हमला किया था) और पैगंबर पर ईमान लाने वाले पहले व्यक्ति थे। [31] और हमेशा पैगंबर के साथ साथ रहते थे और फ़ात्मा पैगंबर की बेटी के साथ उनका विवाह हुआ था।[३२]

हालाँकि पैगंबर ने अली (अ) को कई मौकों पर अपने तत्काल उत्तराधिकारी के रूप में पेश किया था, जिसमें ग़दीर का दिन भी शामिल था,[३३] लेकिन उनके स्वर्गवास पश्चात सक़ीफ़ा बनी साएदा के वाक़ेया मे अबू बक्र बिन अबी कुहाफ़ा को मुसलमानों के खलीफा के रूप में निष्ठा का वचन दिया।[३४] 25 साल की सहनशीलता, सशस्त्र विद्रोह से बचने और इस्लामी समाज की समीचीनता और एकता (तीन ख़लीफ़ाओं के शासन की अवधि) का पालन करने के लिए 35 हिजरी में लोगों ने अली (अ) के प्रति निष्ठा की प्रतिज्ञा की और उन्हें खिलाफत के लिए चुना।[३५] अली (अ) की खिलाफत जोकि लगभग चार साल और नौ महीने तक चली, तीन गृह युद्ध हुए: जंगे जमल, जंगे सिफ़्फीन और जंगे नहरवान। इसलिए हज़रत के शासन का अधिकांश समय आंतरिक विवादों को सुलझाने में व्यतीत होता था।[३६]

40 हिजरी के रमजान की 19 तारीख को मस्जिदे कूफ़ा की मेहराब मे फ़ज्र की नमाज मे इब्ने मुलजिम मुरादी के हाथो इमाम अली (अ) के सर पर जरबत लगी और 21 रमज़ान को शहादत हो गई और आपको नजफ में दफनाया गया।[३७] हज़रत अली (अ) के अनगिनत गुण है।[३८] [38] इब्ने अब्बास के अनुसार हज़रत अली (अ.स.) की प्रशंसा में 300 से अधिक आयतें हैं।[३९]

विशेषताएँ

इतिहास की गवाही और मित्रो की पुष्टि और दुश्मनों की स्वीकारोक्ति के अनुसार अमीर अल-मोमेनीन (अ.स.) इंसानी कमालात के हवाले से बेनक़्स थे और इस्लामी फ़ज़ाइल मे पैगंबर (स) के प्रशिक्षण का पूर्ण उदाहरण थे। जो बहसे आपके व्यक्तित्व से संबंधित हुई है और इस विषय पर शिया, सुन्नी और अन्य जिज्ञासु जानकार लेखकों द्वारा जितनी पुस्तके लिखी गई है उतनी पुस्तके इतिहास में किसी व्यक्ति के बारे में नहीं लिखी गई हैं।[४०]

ज्ञान

अमीर उल-मोमेनीन (अ) ज्ञान के मामले मे पवित्र पैगंबर (स) के सहाबा और इस्लाम के सभी लोगों के बीच अपना उदाहरण आप थे, और वह इस्लाम में पहले व्यक्ति थे जिन्होंने इल्मी बयानत मे तर्क और इस्तिदलाल के दरवाजे खोल दिए और मआरिफ इलाहीया मे दार्शनिक तरीके से चर्चा की। कुरान के बारे में अपने विचार व्यक्त किए और अपने शब्द की रक्षा के लिए अरबी के नियम तैयार किए और ख़िताबत में सबसे मजबूत अरब थे [४१] (देखें: नहज उल-बालाग़ा)।

वीरता और शारीरिक शक्ति

अली (अ.स.) बहादुरी में एक उदाहरण थे और उन सभी युद्धों में जिसमें आप (अ) ने चाहे पवित्र पैगंबर (स) के समय मे, चाहे पैगंबर (स) के बाद भाग लिया कभी भी भय या आतंक का शिकार नहीं हुए। और इस तथ्य के बावजूद विभिन्न घटनाओ और वाक़ेआत मे- जैसे जंगे ओहोद, जंगे हुनैन, जंगे ख़न्दक़ और जंगे ख़ैबर पैगंबर के असहाब और इस्लाम पर कपकपिया तारी हुई या तितर बितर होकर फ़रार हुए- कभी भी शत्रु को पीठ नही दिखाई और इतिहास उदाहरण पेश नही कर सकता कि शक्तिशाली पहलवान और योद्धा आपके सामने आए और फिर जीवित बच निकले हो; और इस स्थिति में आप ताकत और साहस के चरम पर होते हुए भी कभी किसी कमजोर व्यक्ति को नहीं मारा और भगोड़े का पीछा नहीं किया, और किसी पर शबखून नही मारते थे। यह इस्लामी इतिहास में है कि खैबर की लड़ाई में खैबर के किले के द्वार तक अपना हाथ पहुंचाया और उसे एक झटके से उखाड़ कर दूर फेंक दिया।[४२] फत्हे मक्का के दिन पैगंबर ने मूर्तियो को तोड़ने का आदेश दिया। हुबल मक्का में सबसे बड़ी मूर्ति थी और काबा के ऊपर स्थापित विशाल पत्थर की मूर्ति थी। पवित्र पैगंबर के आदेश पर अली ने अपने पैर पैगंबर के कंधे पर रखे और काबा के शीर्ष पर पहुंच गए, हुबल की मूर्ति को उखाड़ कर नीचे फेंक दिया।[४३]

तक़वा और इबादत

अमीरुल मोमेनीन (अ) तक़वा और अल्लाह की इबादत मे भी थे। कुछ रसूलुल्लाह (स) की सेवा में आए और अमीरुल मोमेनीन (अ) के कड़े मिज़ाज की शिकायत की तो आप (स) ने फ़रमायाः अली की मलामत न करो वो अल्लाह के आशिक और प्रेमी है। पैगंबर के सहाबी अबू दरदा ने मदीना के नखलिस्तान में देखा कि अली (एएस) सूखी लकड़ी की तरह जमीन पर गिरे पड़े थे। सूचना देने के लिए घर पर आया और आपकी पत्नि को पैगंबर (स) की सेवा संवेदना व्यक्त की तो आप (स) ने फ़रमाया कि मेरे चचाजात मरे नही है बल्कि इबादत मे अल्लाह के भय से चकरा कर गिर गए है और यह स्थिति आप पर बार बार आती रहती है।"[४४]

राअफ़त और शफ़्क़त

अमीरल मोमेनीन (अ) अपने अधीनस्थों के प्रति राअफ़त और शफ़्क़त, बेसहारा और मिस्कीनो के प्रति करुणा और गरीबों और जरूरतमंदों के प्रति उदारता के मामले में भी अद्वितीय थे। और इस संबंध मे विभिन्न रिवायते और हिकायते स्रोतो मे उल्लेखित है। आपको जो कुछ भी मिलता था, वह उल्लाह के मार्ग में जरूरतमंदों, गरीबों और मिस्कीनो में बांट देते थे, और खुद बहुत ही सख्ती और सादा जीवन व्यतीत करते थे। आप कृषि को बहुत पसंद करते थे और आमतौर पर खाई खोदते थे, बंजर भूमि को बोने और आबाद करने में लगे रहते थे, लेकिन उन्होंने जो खाई खोदी या जमीन को बसाया, वह गरीबों की मदद करने के लिए समर्पित कर दिया। और आपके औक़ाफ़ – जो "सदक़ा ए अली" के नाम से प्रसिद्ध थे। से प्राप्त होने वाली वार्षिक आय के अपने खिलाफत के अंतिम दिनों के दौरान एक बहुत बड़ी राशि (अर्थात 24,000 स्वर्ण दीनार) तक पहुँच गए थे।[४५]

इमाम हसन (अ.स.)

विस्तृत लेखः इमाम हसन मुज्तबा अलैहिस सलाम

इमाम हसन मुज्तबा (अ) और उनके भाई इमाम हुसैन (अ) अमीर उल-मोमेनीन अली (अ) के दो बेटे हैं जिनकी माता पैगंबर (स.) की बेटी हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (स) हैं। पैगंबर (स.) बार-बार फ़रमाते थे कि "हसन और हुसैन मेरे बेटे हैं" और इस संबंध में अमीर उल-मोमेनीन (अ.) अपने अन्य बच्चों से कहते थे कि "तुम मेरे बेटे हो और" हसन और हुसैन अल्लाह के पैगंबर के पुत्र हैं"।[४६] इमाम हसन मुज्तबा (अ) का जन्म मदीना में वर्ष 3 हिजरी में हुआ था, और 7 साल और कुछ महीनों तक वह अल्लाह के रसूल (स.) की उपस्थिति में रहे, और रसूलुल्लाह की शहादत के जो आपकी माता हजरत फ़ातेमा की शहादत से 3 या 6 महीने पहले हुई- आप अपने पिता के प्रशिक्षण मे रहे।[४७]

अपने पिता की शहादत के बाद, इमाम हसन मुज्तबा (अ) ने अल्लाह के फरमान और अपने पिता की वसीयत के अनुसार इमामत का पद ग्रहण किया और कुछ समय के लिए स्पष्ट खिलाफत का पद धारण किया। उन्होंने लगभग 6 महीने तक मुसलमानों के मामलों का प्रबंधन किया और इस अवधि के दौरान अमीर उल-मोमीन (अ) और मुआविया बिन अबी सुफियान – जो आपके परिवार के एक जिद्दी दुश्मन और वर्षों से खिलाफत का लालची ( शुरू में उस्मान के रक्त के बहाने और अंत में खिलाफत का स्पष्ट रूप से दावा करेत हुए) लड़ा था। - ने इराक पर – जो आपकी सरकार का केंद्र था- हमला करके युद्ध शुरू किया, और दूसरी ओर इमाम के सेना कमांडरों को रिश्वत के रूप में बड़ी रकम देने और पद एंवम स्थिति के वादे देकर उन्हे भटका दिया और अपनी ही की सेना को आपके खिलाफ विद्रोह करने के लिए प्रेरित किया।

सुल्हे इमाम हसन (अ)

विस्तृत लेखः सुल्हे इमाम हसन (अ)

इमाम हसन मुज्तबा का मरक़द जन्नत उल-बक़ीअ

अंतः हज़रत इमाम हसन मुज्तबा (अ) सुल्ह पर विवश हुए और कुछ शर्तो पर जाहिरी हकूमत मुआविया को दी गई (उनमें से एक यह कि, मुआविया की मृत्यु के बाद खिलाफत इमाम के पास आजाएगी, मुआविया क्राउन प्रिंस की घोषणा नहीं करेगा, और अहले-बैत कि शियो का जीवन और संपत्ति सुरक्षित होगी )[४८]

मुआविया ने इस प्रकार इस्लामिक खिलाफत को जब्त कर लिया और इराक में प्रवेश किया और सार्वजनिक और औपचारिक संबोधनों के दौरान सुल्ह की शर्तों को निरस्त कर दिया और हर तरह और तरीकों का उपयोग करके अहले-बैत और उनके अनुयायियों पर सबसे गंभीर तरीके से अत्याचार किया। पैगंबर (स) के बेटे इमाम हसन ने अपने इमामत की 10 साल की अवधि को बड़े संकट और कठिनाई में बिताया यहा तक कि उन्हें (अ) अपने ही घर में भी अमन नही मिला, और अंत में वर्ष 50 हिजरी में मुआविया के कहने पर आपकी पत्नी (जोदा बिन्त अश्अस) के हाथो जहर से शहीद हो गए।[४९] इमाम हसन (अ) मानवीय गुणों और सिद्धियों के मामले में अपने पिता और नाना रसूलुल्लाह (स) का एक आदर्श उदाहरण थे, और जब तक उनके नाना जीवित थे, आप और आपके भाई इमाम हुसैन (अ) पवित्र पैगंबर (स) के यहा विशेष स्थान रखते थे और कभी उन्हें अपने कंधों पर सवार करते थे। शिया और सुन्नी विद्वानों ने पवित्र पैगंबर से बयान किया है कि उन्होंने इमाम हसन मुज्तबा और इमाम हुसैन (अ) के सम्मान में कहा: ابناي هذان إمامان قاما أو قعدا؛ इबनाई हाज़ाने इमामाने क़ामा औ क़आदा (अनुवादः मेरे यह दो बेटे इमाम है चाहे वो खड़े हो या बैठे हो अर्थात ये दोनो इमाम है चाहे जाहिरी खिलाफ़त का पद इनके पास हो या इनके पास ना हो)

पैगंबर (स) और अली (अ) से विभिन्न रिवायते आई है जो इस बात को सिद्ध करती है कि आप अपने पिता के पश्चात इमाम है।[५०]

इमाम हुसैन (अ.स.)

विस्तृत लेखः इमाम हुसैन अलैहिस सलाम

इमाम हुसैन (अबा अब्दिल्लाह, सय्यद उश-शोहदा) अली (अ) के दूसरे बेटे हैं जिनकी माता हज़रत फ़ातिमा बिन्ते रसूल (स) हैं। आपका जन्म मदीना में वर्ष 4 हिजरी में हुआ था। अपने भाई इमाम हसन (अ) की शहादत के बाद, आल्लाह के हुक्म और आपकी वसीयत के अनुसार आपने इमामत का पद ग्रहण किया आप शियो के तीसरे इमाम है।[५१]

अंतिम छह महीनो को छोड़कर इमाम हुसैन की खिलाफत के अधिकांश दस साल मुआविया के शासन काल में बीता- आपने इस अवधि को बहुत कठिन और अप्रिय और दम घुटने वाली परिस्थितियों में बीताया- क्योंकि एक तरफ धार्मिक कानून अविश्वसनीय हो चुके थे और सरकार की इच्छाओं ने अल्लाह और पैगंबर की आज्ञाओं को बदल दिया था; तो दूसरी ओर मुआविया और उसके एजेंट अहले-बैत और शियाओं को नुकसान पहुँचाने और अली और अली के परिवार का नाम मिटाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। दूसरी ओर मुआविया ने अपने पुत्र यज़ीद की खिलाफ़त की बुनयादो को मजबूत करने के प्रयास का आरम्भ कर दिया था और मुसलमानो की एक मंडली यजीद की बदसलूकी के कारण मुआविया के इन प्रयासों से खुश नहीं थी। मुआविया ने इन विरोधों को दबाने और नए विरोधों के सर न उठनाने के लिए और अधिक हिंसक तरीकों का सहारा लिया।[५२]

इमाम हुसैन को इस अंधेरे दौर से गुजरना पड़ा, मुआविया और उसके एजेंटो की हर आध्यात्मिक यातना को सहन कर रहे थे, जब तक कि 60 हिजरी के मध्य में मुआविया की मृत्यु नहीं हो गई और उसके बेटे यज़ीद ने अपने पिता की जगह ले ली।[५३]

यज़ीद की बैअत (निष्ठा) से इंकार

इमाम हुसैन (अ.स.) के हरम के भीतरी द्वार पर पैगंबर (स.अ.) की हदीस

बैअत एक अरबी परंपरा थी जो सल्तनत और इमारत जैसे महत्वपूर्ण मामलों में लागू होती थी, और अधीन व्यक्तियो, विशेष रूप से सरदारों को सुल्तान या अमीर के प्रति बैअत करना पड़ती थी, और बैैैेैअत के बाद यदि कोई क़ौम इसका उल्लंघन करती तो क़ौम के लिए शर्म और अपमान का कारण होता था। पैगंबर की सीरत मे बैअत उस समय मान्य थी जब उसे बिना किसी दबाव और स्वेच्छा से किया जाता था।[५४]

मुआविया ने देश के जाने-माने लोगों से यज़ीद के प्रति निष्ठा की शपथ ली थी लेकिन उसने इमाम हुसैन (अ.) से कोई बहस नही की थी और उसने यज़ीद से वसीयत की थी अगर हुसैन बिन अली (अ) बैअत से इंकार करे तो इस बात को आगे ना बढाओ ख़ामोश रहते हुए अनदेखी करो; क्योंकि उसने समस्या के दोनों पक्षों का ठीक से विश्लेषण किया था और इसके खतरनाक परिणामों से अवगत था।[५५]

लेकिन यज़ीद अभिमान, अहंकार और लापरवाही के कारण अपने पिता की वसीयत का पालन करने के लिए तैयार नहीं था, और अपने पिता की मृत्यु के तुरंत बाद उसने मदीना के गर्वनर को आदेश दिया कि इमाम हुसैन से उसके लिए बैअत ले और यदि बैअत न करे तो उन्हे गिरफ्तार करके शाम भेज दे !! मदीना के गर्वनर ने इमाम (अ.स.) को यज़ीद के अनुरोध से अवगत कराया और इमाम हुसैन (अ.स.) ने इस मामले के बारे में सोचने के लिए मोहलत मांगी और रात में अपने परिवार के साथ मदीना से मक्का चले गए और अल्लाह के हरम मे शरण ली जो इस्लाम मे शांति का आधिकारिक स्थान था।[५६]

कुछ समय बाद कूफ़ा के लोगों के निमंत्रण पर इमाम अपने परिवार और साथीयो के एक समूह के साथ कूफ़ा के लिए रवाना हुए।[५७] इमाम और उनके साथियों को कर्बला में यज़ीद की सेना से घेर लिया और मुहर्रम की 10 वें दिन इमाम हुसैन (अ) और यज़ीद की सेना उमर बिन साद की कमांड़री मे युद्ध हुआ जिसमे इमाम (अ.स.), उनके परिवार और साथी शहीद हुए, महिलाओ और बच्चो सहित इमाम सज्जाद (अ.) जो बीमार थे, को बंदी बना लिया गया।[५८]

आशूरा से संबंधित एक विश्लेषण

यदि कोई इमाम हुसैन (अ) के जीवन के इतिहास और यज़ीद की स्थिति पर ध्यान से विचार करें, तो इस तथ्य में संदेह की कोई जगह नहीं है कि इमाम हुसैन (अ) के पास उस दिन मारे जाने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। और यज़ीद के प्रति निष्ठा - जो इस्लाम की पायमाली के समान थी - आपके लिए संभव नहीं थी; क्योंकि एक तरफ यज़ीद इस्लाम धर्म और उसके नियमों की किसी भी पवित्रता और सम्मान के प्रति आश्वस्त नहीं था और किसी भी नैतिक और धार्मिक नियमों और कानूनों से बंधा नहीं था, दूसरी ओर वह खुले तौर पर इस्लाम की पवित्रता और कानूनों का मजाक उड़ाता था। उन्हें लापरवाही से रौंदता था। जबकि इसके पूर्वज धर्म की आड़ में धार्मिक कानूनों का विरोध करते थे, और धर्म के बाहरी रूप का सम्मान करते थे और उन धार्मिक संबंधों पर गर्व करते थे जिनका मुसलमानों द्वारा सम्मान किया जाता था; जैसे: अल्लाह के रसूल का सहाबी होना आदि।[५९]

और इससे यह ज्ञात होता है कि कुछ टीकाकारों ने कहा है कि इन दो पेशवाओं (इमाम हसन और इमाम हुसैन) के मानदंड अलग-अलग थे - और इमाम हसन (अ.) शांति प्रिय थे जबकि इमाम हुसैन (अ.) युद्ध को प्राथमिकता देते थे; यहां तक कि बड़े भाई ने 40,000 की सेना होने के बावजूद मुआविया के साथ सुलह कर ली और छोटा भाई 40 आदमियों के साथ यज़ीद के खिलाफ कुरूक्षेत्र में उतरे - एक निराधार दावा; क्योंकि हम देखते हैं कि इमाम हुसैन (अ.) एक दिन के लिए भी यज़ीद की निष्ठा की छाया में जाने को तैयार नहीं हुए, मुआविया के शासन में अपने भाई इमाम हसन (अ.) की तरह 10 साल तक रहे (इमाम हसन भी 10 साल तक मुआविया के शासन मे रहे) और इस तरह से कभी विरोध नहीं किया, और इसमें कोई संदेह नहीं है कि अगर इमाम हसन (अ.) और इमा हुसैन (अ) मुआविया के विरूद्ध करूक्षेत्र का मार्ग च्यन करते तो निश्चित रूप से क़त्ल कर दिया जाते और उनकी हत्या से इस्लाम के लिए ज़रा भी फ़ायदा नहीं होता। और उनकी शहादत मुआविया के जाहिर रूप से ह़क पर होने जो सहाबी, कातिब ए वही और ख़ालुल मोमेनीन (मोमिनो का मामा) कहलवाता था और हर प्रकार षडयंत्र रचा करता था, अप्रभावित होती। इसके अलावा, वह उन्हें अपने एजेंटों के माध्यम से मार सकता था और खुद जाकर शोक और अज़ादारी के लिए बैठ सकता था और उनके खून का दावा कर सकता था; वही काम जो उसने तीसरे खलीफ़ा के साथ किय था।[६०]

इमाम सज्जाद (अ)

जन्नत उल-बक़ीअ मे इमाम सज्जाद (अ.स.) का मरक़द

विस्तृत लेख: इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ)

अली इब्न उल-हुसैन (अ) उपनाम ज़ैनुल आबेदीन और सज्जाद, शियो के चौथे इमाम है और इमाम हुसैन (अ) के पुत्र हैं, जिनकी माता शाह ज़नान जो (शहर बानो के नाम से जानी जाती हैं) ईरान के राजा यज़्दगिर्द तृतिय की बेटी हैं। आपका जन्म मदीना मे 38 हिजरी को हुआ।[६१]

आप तीसरे इमाम के बचे हुए अकेले बेटे थे; जबकि आपके दूसरे भाई कर्बला में शहीद हो गए थे चूंकि कर्बला में युद्ध के समय आप बीमार थे और हथियार उठाने और लड़ने में असमर्थ होने के कारण आप जिहाद में भाग नहीं ले सके। कर्बला मे आपको असीर (बंदि) बनाया गया और कर्बला के असीरो के साथ कूफ़ा[६२] और सीरिया[६३] भेजा गया था।

इमाम सज्जाद (अ) ने सीरिया में एक ख़ुत्बा (उपदेश) दिया जिसमे अपना और अपने पिता का परिचय कराया, जिसने लोगों को प्रभावित किया।[६४] अपनी कैद के दिन बिताने के पश्चात इमाम मदीना लौट आए और मदीना में इबादत करने में व्यस्थ हो गए और अबू हम्ज़ा सुमाली और अबू खालिद काबुली के अतिरिक्त कोई संबंध मे नहीं था। विशेष लोगो ने इमाम से प्राप्त ज्ञान को शियाओं में फैलाया।[६५]

इमामत के 34 साल बाद[६६] 57 साल की आयु में 95 हिजरी[६७] में चौथे इमाम को वलीद बिन अब्दुल मलिक ने जहर देकर शहीद कर दिया[६८] प्रसिद्ध कब्रिस्तान बक़ीअ मे उनके चाचा इमाम हसन (अ) के पास दफन कर दिया।[६९]

इमाम सज्जाद (अ) की दुआ और मुनाजात का संग्रह जिसमें कई धार्मिक शिक्षाएं शामिल हैं सहिफ़ ए सज्जादिया पुस्तक में एकत्र किया गया है।[७०]

इमाम मुहम्मद बाक़िर (अ.स.)

जन्नत उल-बक़ीअ मे इमाम बाक़िर (अ.स.) का मरक़द

विस्तृत लेखः इमाम बाक़िर (अ)

मुहम्मद बिन अली, इमाम मुहम्मद बाक़िर (अ) और शियो के पांचवें इमाम है, इमाम सज्जाद (अ) और इमाम हसन (अ) की बेटी फ़ातिमा [७१] के बेटे है आपका जन्म 57 हिजरी को मदीना मे हुआ। [७२] उन्होने अपने पिता के पश्चात अल्लाह के हुक्म, पैगंबर (स) और अपने से पहले इमामों द्वारा परिचय से इमामत के पद तक पहुंचे।[७३] उमवी ख़लीफ़ा हेशाम के भतीजे इब्राहिम बिन वलीद बिन अब्दुल मलिक द्वारा 114 हिजरी[७४] ने आपको जहर देकर शहीद कर दिया।[७५] इमाम बाक़िर को उनके पिता इमाम सज्जाद के बगल में मदीने के प्रसिद्ध कब्रिस्तान बक़ीअ में दफनाया गया।[७६] इमाम बाक़िर (अ) कर्बला में मौजूद थे, उस समय उनकी आयु मात्र चार थी।[७७]

पाँचवें इमाम की इमामत का दौर 18 या 19 साल तक चला,[७८] दूसरी ओर बनी उमय्या के अत्याचारों के कारण, हर दिन क्रांतियाँ और युद्ध हुए, और इन समस्याओं ने खिलाफत व्यवस्था को व्यस्त और अहलेबैत को दूर रखा। [७९] दूसरी ओर कर्बला की घटना और अहले-बैत के उत्पीड़न ने मुसलमानों को उस पर मोहित कर दिया और उसके लिए इस्लामी सच्चाई और अहले-बैत की शिक्षाओं को फैलाने के अवसर पैदा किए। जो पहले वाले इमामों में से किसी के लिए संभव नहीं थे, इसलिए इमाम बाक़िर (अ) से अनगिनत हदीसें आई है।[८०] शेख मुफ़ीद के अनुसार, धार्मिक शिक्षा में इमाम बाक़िर की हदीस इतनी अधिक है कि इमाम हसन (अ) और इमाम हुसैन (अ) के बच्चों में से किसी ने इतनी मात्रा मे हदीसे नही छोड़ी।[८१]

इमाम जाफ़र सादिक़ (अ)

विस्तृत लेखः इमाम जाफ़र सादिक़ (अ)

जाफ़र बिन मुहम्मद, इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) और शियो के छठे इमाम है। इमाम बाक़िर (अ) और कासिम बिन मुहम्मद बिन अबी बक्र की बेटी उम्मे फ़रवा के बेटे है। आपका जन्म इस्लामी कैलेंडर के तीसरे महीने रबी उल-अव्वल की 17 तारीख 83 हिजरि को मदीना में हुआ। [८२] 148 [८३] हिजरी मे अब्बासी ख़लीफ़ा मंसूर द्वारा आपको जहर देकर शहीद कर दिया गया [८४] और आपको मदीना के प्रसिद्द कब्रिस्तान बक़ीअ मे दफनाया गया।[८५]

इमाम सादिक ने अपने 34 साल की इमामत [८६] के दौरान ख़िलाफ़त ए उमय्या की कमजोरी का लाभ उठाते हुए इस्लामी शिक्षाओं के प्रकाशन के लिए एक उपयुक्त मंच प्राप्त किया, उन्होंने धार्मिक शिक्षाओं को प्रकाशित करते हुए विभिन्न विषयो मे विशेषज्ञ छात्रो को प्रशिक्षित किए।[८७] उनके छात्रों और कथाकारों (मोहद्देसीन) की संख्या 4000 होने का अनुमान है।[८८] ज़ुरारा, मुहम्मद बिन मुस्लिम, मोमिन ए ताक़, हेशाम बिन हकम, अबान बिन तग़लिब, हिशाम बिन सालिम, जाबिर बिन हय्यान[८९] और सुन्नियों मे सुफ़्यान ए सूरी, अबू हनीफ़ा (हनफ़ी संप्रदाय के प्रमुख), मालेकी संप्रदाय के प्रमुख मालिक बिन अनस, छठे इमाम के छात्रो में से थे।[९०]

शेख़ मुफ़ीद के अनुसार अधिकांश हदीसे इमाम सादिक़ (अ) से आई है।[९१] इसी कारण वंश शिया संप्रदाय को जाफ़री मज़हब कहा जाता है।[९२]

इमाम मूसा काज़िम (अ)

काज़मैन के हरम की पुरानी तस्वीर

विस्तृत लेखः इमाम मूसा काज़िम (अ)

मूसा बिन जाफ़र, इमाम मूसा काज़िम (अ), आपकी उपाधि काज़िम और बाबुल हवाइज शियो के सातवें इमाम है। इमाम सादिक़ (अ) और हमीदा के बेटे आपका जन्म मक्का और मदीना के बीच के क्षेत्र अबूवा मे 128 हिजरी में हुआ।[९३]

इमाम काज़िम (अ) अपने पिता इमाम सादिक़ (अ) के बाद उनकी वसीयत के अनुसार इमामत के पद पर पहुंचे[९४] सातवें इमाम[९५] की 35 साल की इमामत की अवधि मे मंसूर, हादी, महदी और हारून जैसे अब्बासी खलीफ़ा रहे।[९६] यह समय अब्बासी खलीफाओ के उरूज का समय था जोकि इमाम काज़िम (अ) और शियों के लिए एक कठिन समय था। इसलिए उन्होंने उस समय की सरकार के खिलाफ तक़य्या इख्तियार करते हुए शियाओं को भी तक़य्या करने का आदेश दिया।[९७] 179 हिजरी की 20 शव्वाल को जब हारून हज के लिए मक्का गया तो उसने इमाम काज़िम को मदीना मे गिरफ्तार करके बसरा और बसरा से बगदाद स्थानांतरित करने का आदेश दिया।[९८] 183 हिजरी में सिंदी बिन शाहिक द्वारा बगदाद जेल में जहर देकर शहीद कर दिया गया और मक़ाबिरे कुरैश[९९] नामक स्थान पर, जो अब काज़मैन में है[१००] दफ़नाया गया।

इमाम अली रज़ा (अ.स.)

इमाम रज़ा (अ.स.) का हरम (मशहद)

विस्तृत लेखः इमाम अली रज़ा (अ)

अली बिन मूसा बिन जाफ़र, इमाम रज़ा (अ) के नाम से मशहूर शियों के आठवें इमाम है, इमाम मूसा काज़िम (अ) और नज्मा ख़ातून के बेटे मदीना में 148 हिजरी में पैदा हुए और 203 हिजरी में 55 साल की उम्र में तूस (मशहद) में शहादत हुई।[१०१]

अपने पिता के बाद इमाम रज़ा (अ) अल्लाह के हुक्म और इमाम काज़िम (अ) की वसीयत से इमामत के पद पर पहुंचे और आपकी इमामत की अवधि 20 साल (183-203) थी। आपकी इमामत मे हारून और उसके दो बेटे अमीन और मामून खलीफ़ा थे।[१०२]

हारून के पश्चात उसका बेटा मामून तख़्त ए ख़िलाफ़त बैठा।[१०३] अपनी खिलाफत को वैध बनाने के लिए उसने इमाम रज़ा (अ) की गतिविधियों को नियंत्रित करने और इमामत की महिमा और गरिमा को कम करने के लिए इमाम को अपना क्राउन प्रिंस नियुक्त करने का फैसला किया।[१०४] इसीलिए उसने 201 हिजरी मे इमाम को मदीने से मर्व बुलाया।[१०५] मामून ने पहले ख़िलाफ़त उसके बाद वली अहदी को इमाम के सामने पेश किया जिसे इमाम ने स्वीकार नही किया अंतः मामून ने इमाम को वली अहदी स्वीकार करने के लिए मजबूर किया। परंतु इमाम ने इस शर्त के साथ - कि सरकारी कार्यो मे, किसी को पद से निलंबित करने या किसी को पद पर नियुक्त करने से संबंधित कोई हस्तक्षेप नही करेगे- वली अहदी को स्वीकार किया।[१०६]कुछ समय पश्चात शियाओ की तीव्र प्रगति को देखकर अपनी ख़िलाफ़त को बचाने के लिए इमाम रज़ा (अ) को ज़हर देकर शहीद कर दिया।[१०७]प्रसिद्ध हदीस सिलसिलातुज़ ज़हब नेशापुर से मर्व की ओर जाते हुए इमाम रज़ा (अ.स.) से नक़ल हुई है।[१०८] मर्व में इमाम रज़ा (अ) की उपस्थिति के दौरान मामून ने उनके और अन्य धर्मों और संप्रदायों के बुजुर्गों के बीच वाद-विवाद सत्र (मुनाज़रे) आयोजित किए जो इमाम के इल्म और दानिश मे श्रेष्ठता के कारक बने।[१०९]

इमाम मुहम्मद तक़ी (अ.स.)

इमाम काज़िम और इमाम जवाद (अ.स.) के हरम (काज़मैन)

विस्तृत लेखः इमाम मुहम्मद तक़ी (अ)

मुहम्मद बिन अली, इमाम जवाद और इमाम मुहम्मद तक़ी (अ) शियो के नौवें इमाम है। इमाम रज़ा और सबीका नौबिया के बेटे मदीना मे 195 हिजरी के पवित्र रमज़ान मे पैदा हुए।[११०] और 220 हिजरी को मोअतसिम अब्बासी के आदेश से मामून की बेटी और अपकी पत्नी उम्मुल फ़ज़्ल ने आपको ज़हर देकर बगदाद मे आपको शहीद कर दिया[१११]अपने दादा शियो के सातवें इमाम, इमाम काज़िम (अ) के किनारे आपको दफ़न किया गया।[११२]

इमाम जवाद (अ) मात्र आठ साल की उम्र में[११३] अपने पिता के बाद अल्लाह के हुक्म और अपने पूर्वजो की वसीयत के अनुसार इमामत के पद पर पहुंचे।[११४] आपकी कम उम्र मे इमाम होने पर कई शियाओं ने शक किया। कुछ ने तो इमाम रज़ा के भाई अब्दुल्लाह बिन मूसा को इमाम कहा, और अन्य लोग वाक़्फ़िया संप्रदाय में शामिल हो गए। लेकिन उनमें से अधिकांश ने नस्से इमामत और इल्मी परीक्षा लेकर इमाम जवाद (अ.स.) की इमामत को स्वीकार कर लिया।[११५]आपकी इमामत के 17 साल[११६] की अवधि मे मामून और मोअतसिम ख़लीफ़ा थे।[११७]

मामून ने 204 हिजरी मे आप पर और आपके शियाओ पर नज़र रखने के लिए इमाम जवाद को बगदाद - जो उस समय खिलाफत की राजधानी थी - बुलाया और अपनी बेटी उम्मुल फ़ज़्ल से शादी करा दी।[११८] कुछ समय पश्चात इमाम मदीना लौट आए और मामून के शासनकाल के अंत तक मदीना में रहे। मामून की मृत्यु पश्चात मोअतसिम ने खिलाफत की बागडोर संभाली और 220 हिजरी में इमाम को बगदाद बुलाया और निगरानी में रखा, और अंत में मोअतसिम के उकसाने पर आपकी पत्नि ने जहर दिया गया और शहीद कर दिया गया।[११९]

इमाम अली नक़ी (अ)

इमाम हादी (अ.स.) का हरम (सामर्रा)

विस्तृत लेखः इमाम हादी (अ)

अली बिन मुहम्मद, इमाम हादी या इमाम अली नक़ी (अ) शियो के दसवें इमाम है। इमाम मुहम्मद तक़ी और समाना मग़रिब्या के बेटे मदीना के पास सुरया नामक क्षेत्र मे 212 हिजरी मे पैदा[१२०] और 254 हिजरी इराक़ के सामर्रा शहर[१२१]मे अब्बासी ख़लीफ़ा मोअतज़ बिल्लाह[१२२] के आदेश से शहीद हुए।

इमाम अली नक़ी (अ) ने (220 -254 हिजरी) 33 साल तक[१२३] शियों की इमामत की और इस 33 साल की अवधि मे मोअतसिम, वासिक़, मुतावक्किल, मुंतसिर, मुस्तईन और मुअतज़ जैसे छः अब्बासी खलीफा आपके समकालीन थे।[१२४]

मुतावक्किल ने 233 हिजरी में इमाम हादी (अ)[१२५] को निगरानी में रखने के लिए उन्हें मदीना से समारा बुलाया[१२६]- जो उस समय खिलाफत का केंद्र था-[१२७] आप (अ) ने अपना बाकी जीवन वही पर व्यतीत किया।[१२८]मुतवक्किल की मृत्यु पश्चात ख़िलाफत की बागडोर क्रमशः मुंतसिर, मुस्तईन और मुअतज़ अपने हाथो मे घुमाते रहे। इमाम हादी (अ) को मोअतज़ के दौराने खिलाफ़त मे जहर देकर शहीद कर दिया गया।[१२९]

इमाम अली नक़ी (अ) शियों को दुआ और ज़ियारतो के माध्यम से शिक्षित करते थे।[१३०]महत्वपूर्ण ज़ियारत ज़ियारत ए जामेआ ए कबीरा इमाम हादी (अ.स.) से नक़ल हुई है।[१३१]

इमाम हसन अस्करी (अ)

दसवें और ग्यारहवे इमाम (अ.स.) के हरम का पुनः निर्माण

विस्तृत लेखः इमाम हसन अस्करी (अ)

हसन बिन अली, इमाम हसन अस्करी (अ) शियो के ग्यारहवें इमाम है। इमाम अली नक़ी (अ) और हदीस के बेटे मदीना मे 232 हिजरी मे पैदा[१३२]और अब्बासी ख़लीफा मोअतमद के षडयंत्र से 260 हिजरी मे ज़हर से शहीद हुए।[१३३]आपको आपके पिता की क़ब्र के किनारे सामर्रा मे घर मे दफ़नाया गया।[१३४]ग्यारहवें इमाम अपने पिता के विवरण अनुसार, दसवे इमाम पश्चात इमामत के पद पर पहुंचे अपनी छः साल की इमामत की अवधि[१३५] मे मोअतज़, मोहतदा और मोअतमद अब्बासी खलीफा आपके समकालीन थे।[१३६] [136] इमाम अब्बासी ख़लीफ़ाओ की देख-रेख मे होने के बावजूद कई बार इमाम को क़ैद किया गया।[१३७]कुछ इतिहासकारो के अनुसार इमाम की सबसे लंबी कैद सामर्रा मे ख़लीफ़ा द्वारा कारवास था।[१३८] इसीलिए इमाम तक़य्या का मुज़ाहेरा करते थे।[१३९]अपने पूर्वजो की भांति वकालत के संगठन के माध्यम से शियों से सूचित रहते थे।[१४०] बताया जाता है कि खलीफाओं की ओर से दबाव और सख्ती का कारण एक ओर शियों की संख्या और शक्ति में वृद्धि थी और दूसरी ओर ऐसे साक्ष मौजूद थे जो ग्यारहवे इमाम के लिए एक बच्चे के अस्तित्व की सूचना देते थे, जिसे महदी ए मौऊद के नाम से जाना जाता था।[१४१]

इमाम महदी (अ)

मस्जिदे जमकरान (क़ुम) की पुरानी तस्वीर
मस्जिदे सहला(इराक़)

विस्तृत लेखः इमाम महदी (अ)

मुहम्मद बिन हसन, इमाम महदी और इमाम ज़माना (अ.त.) शियो के बारहवे और अंतिम इमाम है। इमाम हसन असकरी और नरजिस ख़ातुन के पुत्र 15 शाबान 255 हिजरी को समर्रा में पैदा हुए।[१४२]

इमाम महदी पांच साल की उम्र में इमामत पर पहुंचे।[१४३]पैगंबर (स.) और सभी इमामों ने उनके इमाम होने की पुष्टि की है।[१४४]इमाम महदी अपने पिता की शहादत के समय 260 हिजरी तक लोगों से गुप्त थे और कुछ विशेष शिया लोगो के अतिरिक्त उनसे कोई मिल नही सकता था।[१४५]अपने पिता की शहादत के बाद अल्लाह के हुक्म से जनता की आखो से गायब हो गए। उन्होंने लगभग सत्तर साल ग़ैबत ए सुग़रा (लघु गुप्त काल) मे बिताए और इस अवधि वे चार विशेष प्रतिनियुक्तियों के माध्यम से शियों के संपर्क में थे; परंतु 329 हिजरी में ग़ैबत ए कुबरा (दीर्घ गुप्त काल) की शुरुआत के साथ शियों और इमाम के बीच संबंध विशेष प्रतिनियुक्तियों द्वारा समाप्त कर दिया गया।[१४६]

हदीसों के अनुसार गुप्त काल के दौरान शियों को उस समय के इमाम के आने की प्रतीक्षा करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है और इसे सबसे अच्छे कर्मों में से माना जाता है।[१४७] हदीसों के अनुसार[१४८] इमाम के ज़हूर पश्चात इस्लामी समाज न्याय से भर जाएगा।[१४९] बहुत सी हदीसो मे इमाम के ज़हूर (प्रकट होने की) की निशानीयो का उल्लेख किया गया है।[१५०]

नव्वाबे ख़ास

विस्तृत लेख: नुव्वाब अरबआ

कुछ समय के लिए बारहवें इमाम ने उस्मान बिन सईद अमरी को – जो आपके पिता और दादा के सहाबियों में से थे और उनके विश्वासपात्र और अमीन थे- विशेष दूत बनाया और उनके माध्यम से शियाने अहले-बैत के सवालों का जवाब देते थे। उस्मान बिन सईद की मृत्यु के बाद, उनके बेटे मुहम्मद बिन उस्मान अमरी इमाम के विशेष दूत बने उनके निधन पश्चात यह पद अबुल क़ासिम हुसैन बिन रूह नौबख्ती को सौप दिया गया। हुसैन बिन रूह के स्वर्गवास पश्चात अली बिन मुहम्मद समरी इमाम अस्र (अ) नायबे खास थे। [१५१]

अली बिन मुहम्मद समरी की मृत्यु के कुछ दिन पहले वर्ष 329 हिजरी में, इमाम अस्र (अ) द्वारा एक संदेश जारी किया गया जिसमें अली बिन मुहम्मद समरी को निर्देश दिया गया था कि "आप आज से छह दिन बाद इस दुनिया को छोड़ देंगे और उसके बाद, नयाबत खास्सा का द्वार बंद कर दिया गया है और अब गैबते कुबरा (दीर्घ गुप्तकाल) शुरू होगी और यह उस दिन तक जारी रहेगी जब तक अल्लाह ज़हूर की अनुमति नहीं देगा।

तो, इस भविष्यवाणी (तौकीअ) के अनुसार, बारहवें इमाम (अ) की ग़ैबत के दो काल है।

ग़ैबते सुग़रा (लघु गुप्त काल): जिसका आरम्भ साल 260 हिजरी में शुरू हुआ और साल 329 हिजरी में खत्म हुआ और यह प्रतिक्रिया लगभग 70 साल तक जारी रही। ग़ैबते कुबरा (दीर्घ गुप्त काल): जिसका आरम्भ साल 329 हिजरी से शुरू हुआ और जब तक अल्लाह इमाम को ज़हूर की अनुमति नही दे देता तब तक जारी रहेगा। अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) शिया और सुन्नियों द्वारा सहमत हदीस के संदर्भ में कहते हैं: अगर इस दुनिया के जीवन में एक दिन के अलावा कुछ भी नहीं बचा हो, तो अल्लाह तआला इस दिन को इतना लम्बा करेगा जब तक कि मेरे बच्चों में से महदी ज़हूर करे और इस दुनिया को न्याय से भर दे जिस प्रकार यह अत्याचार और उत्पीड़न से भर चुकी होगी। [१५२]

अहले सुन्नत के बीच शिया इमामो की मंज़ीलत

अहले सुन्नत शिया के बारह इमामों को पैगंबर (स) का बिला फ़ासला उत्तराधिकारी के रूप में स्वीकार नहीं करते हैं,[१५३] लेकिन उनसे मुहब्बत करते है[१५४] पैगंबर (स) के कथन के आधार पर जो उनके स्रोतों में बयान किया गया है। रिश्तेदार जो आय ए मवद्दत के अनुसार[१५५] उनसे मवद्दत अनिवार्य है, अली (अ) और फातिमा (स) और उनके दो बच्चे है।"[१५६] 6 टी चंद्र शताब्दी हिजरी के सुन्नी मुफ़स्सिर और मुताकल्लिम फख़रूद्दीन राज़ी ने आय ए मुवद्दत का हवाला देते हुए नमाज़ के तशह्हुद मे सलवात और पैगंबर (स) की सीरत मे अली (अ) और फ़ातिमा (स) तथा उनके बच्चों से प्यार और दोस्ती को अनिवार्य माना है।[१५७]

कुछ सुन्नी विद्वान शिया इमामों के दरगाहों पर जाकर ज़ियारत करते और उनसे तवस्सुल करते थे। तीसरी चंद्र शताब्दी हिजरी मे सुन्नी विद्वान अबू अली ख़ल्लाल ने कहा कि जब भी मुझे कोई समस्या होती, मैं मूसा बिन जाफ़र की कब्र पर जाता और उनसे तवस्सुल करता, और मेरी समस्या हल हो जाती।[१५८] तीसरी चौथी हिजरी के सुन्नी धर्मशास्त्री, मुफस्सिर, मुहद्दिस अबू बक्र मुहम्मद बिन ख़ुजैमा से नकल हुआ है कई बार इमाम रज़ा (अ) की ज़ियारत को गया तो मेरे तवस्सुल को देखकर दूसरे दंग रह जाते[१५९] एक और दूसरे सुन्नी मुहद्दिस इब्ने हब्बान जिनका संबंध भी तीसरी और चौथी शताब्दी से है उन्होंने कहा कि जब मैं तूस में था और मुझे कोई समस्या होती, तो मैं अली बिन मूसा अल-रज़ा (अ की ज़ियारत को जाता और दुआ करता, और मेरी दुआ कबूल होती और मेरी समस्या हल हो जाती थी[१६०]

समकालीन शिया धर्मशास्त्री आयतुल्लाहिल उज़्मा जाफ़र सुबहानी के अनुसार, कई सुन्नी विद्वानों ने शिया इमामों (अ) के धार्मिक और वैज्ञानिक अधिकार को स्वीकार कर लिया है।[१६१] उदाहरण स्वरूप हनफ़ी संप्रदाय के संस्थापक अबू हनीफ़ा से नक़ल किया गया है कि मैंने जाफ़र बिन मुहम्मद (अ) से बड़ा कोई फ़क़ीह नही देखा।[१६२] यही वाक्य पहली और दूसरी चंद्र शताब्दी हिजरी के ताबेईन सुन्नी टीकाकार, मुहद्दिस मुहम्मद बिन मुस्लिम बिन शाहब ज़ोहरी ने इमाम सज्जाद (अ) के बारे मे कहा है।[१६३]

किताबो का परिचय

शिया इमामों की जीवनी और उनके फ़ज़ाइलो (गुणो) के बारे में शियों और सुन्नियों द्वारा विभिन्न किताबें लिखी गई हैं।

आइम्मा के बारे मे शियों की किताबे

इमामों और उनके फ़ज़ाइलो के बारे में शिया विद्वानों की निम्नलिखित किताबे उल्लेखनीय है:

  1. दला-ए-लुल इमामा यह किताब अरबी भाषा मे मुहम्मद बिन जुरैर तबरी सग़ीर (मृत्यु 310 हिजरी) द्वारा लिखी गई है। इस किताब मे लेखन ने जनाब फ़ातेमा ज़हरा (अ) के फ़जाइल और उनके मोज्ज़ात का उल्लेख किया है।
  2. अल इरशाद फ़ी मारफ़ते हुजाजिल्लाहे अलल एबाद शेख मुफ़ीद (मृत्यु 410 हिजरी) द्वारा अरबी भाषा मे कलाम और इतिहास के विषय मे लिखी गई है। इस किताब मे आइम्मा (अ) की जीवनी औक उनके फज़ाइल वाली रिवायतो का उल्लेख है।
  3. मनाक़िबो आले अबी तालिब इब्ने शहर आशोब माज़नदरानी द्वारा चौदह मासूमीन के फज़ाइल पर आधारित अरबी भाषा मे किताब है।

इन किताबो के अलावा ऐलाम उल वरआ बेआलामिल हुदा, कश्फुल गुम्मा फ़ी मारेफ़तिल आइम्मा, रौज़ातुल वाएज़ीन वा बसीरातुल मुत्तऐज़ीन, जलाउल उयून और मुनतहुल आमाल फ़ी तवारिख़िन्न नबी वल आल उल्लेखनीय है।

आइम्मा के बारे मे सुन्नीयो की किताबे

इमामों और उनके फ़ज़ाइलो के बारे में सुन्नी विद्वानों की निम्नलिखित किताबे उल्लेखनीय है:

  1. मतालिब अस्सऊल फ़ी मनाक़िबे आले रसूल मुहम्मद बिन तल्हा शाफेई ने इस किताब को अरबी भाषा मे 12 अध्याय पर आधारित 12 इमामो की जीवनी का उल्लेख किया है।[१६४]
  2. तज़्केरतुल ख़वास मिनल आइम्मते फ़ी ज़िक्रे ख़साएसिल आइम्मा हनफी संप्रदाय के विद्वान और इतिहासकार युसुफ बिन कज़ाऊग़ली प्रसिद्ध सिब्ते बिन जौज़ी ने बारह इमामो की जीवनी और उनके फज़ाइल को 12 अध्याय मे ज़िक्र किया है।[१६५]
  3. अल फ़ुसूलुल मोहिम्मा फ़ी मारेफ़तिल आइम्मा नवी शताब्दी के सुन्नी विद्वान इब्ने सब्बाग़ मालेकी (मृत्यु 855 हिजरी) ने बारह इमामो की जीवनी और फ़ज़ाइल का उल्लेख किया है इस किताब से शिया और सुन्नी विद्वानो ने बहुत सारे हवाले बयान किए है।[१६६]
  4. अल आइम्मतिल इस्ना अशर या अश्शज़ारातुज़ ज़हबिया दमिश्क के रहने वाले हनफ़ी संप्रदाय के सुन्नी विद्वान शम्सुद्दीन इब्ने तूलून (मृत्यु 953 हिजरी) द्वारा लिखित।[१६७]
  5. अलइत्तेहाफ बेहुब्बिल अशराफ़ मिस्र के रहने वाले शाफ़ेई संप्रदाय के अनुयायी सुन्नी विद्वान जमालुद्दीन शबरावी (मृत्यु 1092-1172 हिजरी) द्वारा पैगंबर (स) के परिवार और आइम्मा (अ) की जीवनी पर आधारित है।[१६८]
  6. 'नूरुल अबसार फ़ी मनाक़िबे आले बैतिन नबी अल मुख्तार 13 शताब्दी के सुन्नी विद्वान मोमिन शबलंजी ने अपनी किताब मे पैगंबर (स.), शियो के इमाम और अहले सुन्नत के खलीफ़ाओ की जीवनी का उल्लेख किया है।[१६९]
  7. यनाबी उल मवद्दा लेज़विल क़ुर्बा अहले-बैत पैगंबर (स) की जीवनी, फ़ज़ाइल से विशिष्ट किताब हनफी संप्रदाय के अनुयायी सुन्नी विद्वान सुलेमान बिन इब्राहीम कंदूज़ी (मृत्यु 1294 हिजरी) द्वारा लिखित।[१७०]

संबंधित लेख

फ़ुटनोट

  1. मुहम्मदी, शरह कश्फ़ उल मुराद, 1378 शम्सी, पेज 403; मूसवी ज़िन्जानी, अक़ाएद उल-इमामिया अल-इस्ना अशारिया, 1413 हिजरी, भाग 3, पेज 178
  2. मुहम्मदी, शरह कश्फ़ उल मुराद, 1378 शम्सी, पेज 425; मूसवी ज़िन्जानी, अक़ाएद उल-इमामिया अल-इस्ना अशारिया, 1413 हिजरी, भाग 3, पेज 181-182
  3. देखे, मकारिम शिराज़ी, प्याम ए-क़ुरआन, 1386 शम्सी, भाग 9, पेज 170-172 और 369-370
  4. देखे, हकीम, अल-इमामतो वल अहले-बैत (अ.स.), 1424 हिजरी, पेज 305 व 338
  5. सुबहानी, मनशूर-ए अक़ाइद-ए इमामिया, 1376 शम्सी, पेज 165-166
  6. अल्लामा हिल्ली, कश्फ़ उल-मुराद, 1382 शम्सी, पेज 184; फ़य्याज़ लाहिजी, सरसाया ए ईमान दर उसूले एतेक़ादात, 1372 शम्सी, पेज 114-115
  7. सुदूक़, अल-एतेक़ादात, 1414 हिजरी, पेज 93; मुफीद, अवाएलुल मक़ालात, 1413 हिजरी, पेज 70-71; मजलिसी, बिहार उल-अनवार, 1403 हिजरी, भाग 26, पेज 297; शब्बर, हक़्क़ उल-यक़ीन, 1424 हिजरी, पेज 149
  8. मजलिसी, बिहार उल-अनवार, 1403 हिजरी, भाग 26, पेज 297; शब्बर, हक़्क़ उल-यक़ीन, 1424 हिजरी, पेज 149
  9. कुलैनी, अल-काफ़ी, 1407 हिजरी, भाग 1, पेज 255-256, 260-261; सुबहानी, इल्मे ग़ैब, 1386 शम्सी, पेज 63-79
  10. हम्मूद, अल-फ़वाएद उल-बहईया, 1421 हिजरी, भाग 5, पेज 38
  11. ख़ूई, मिसबाह उल-फ़ुक़ाहा, 1417 हिजरी, भाग 5, पेज 38; साफ़ी, गुलपाएगानी, विलायते तकवीनी वा विलायते तशरीई, 1392 शम्सी, पेज 133, 135 और 141
  12. आमुली, अल-विलाया तुत तकवीनिया वत तशरीईया, 1428 हिजरी, पेज 60-63; मोमिन, विलायते वलीइल मासूम, पेज 100-118; हुसैनी, मीलानी, इस्बाते विलायातुल आम्मा, 1438 हिजरी, पेज 272-273, 311-312
  13. तूसी, अल-तिबयान, दार ए एहयाइल तुरास अल-अरबी, भाग 1, पेज 214
  14. सफ़्फ़ार, बसाए रुल दरजात, 1404 हिजरी, पेज 412-414
  15. सफ़्फ़ार, बसाए रुल दरजात, 1404 हिजरी, पेज 297
  16. सुबहानी, सीमाए अकाइद ए शिया, 1386 शम्सी, पेज 231-235; सुबहानी, मनशूरे अक़ाइद ए इमामिया, 1376 शम्सी, पेज 157-158; मूसवी, ज़नजानी, अक़ाइद उल-इमामिया अल-इस्ना अश्रिया, 1413 हिजरी, भाग 3, पेज 180-181
  17. सुबहानी, मनशूरे अक़ाइद ए- इमामिया, 1376 शम्सी, पेज 149-150
  18. तूसी, अल-तिबयान, दार ए एहयाइल तुरास अल-अरबी, भाग 3, पेज 236; मुहम्मदी, शरह ए कश्फ़ उल-मुराद, 1378 शम्सी, पेज 415
  19. सुदूक़, अल-ख़िसाल, 1362 शम्सी, भाग 2, पेज 528; तबरसी, ऐअलाम उल-वर्आ, 1390 हिजरी, पेज 367; इब्ने शहर आशोब, मनाक़िब ए आले अबी तालिब 1379 शम्सी, भाग 2, पेज 209; मजलिसी, बिहार उल अनवार, 1403 हिजरी, भाग 27, पेज 209 व 216
  20. मजलिसी, बिहार उल अनवार, 1403 हिजरी, भाग 27, पेज 207-217
  21. सदूक़, मन ला याहज़ेरोह उल-फ़क़ीह, 1413 हिजरी, भाग 2, पेज 585; तबरसी, एअलाम उल वर्आ, 1390 शम्सी, पेज 367
  22. तबरसी, एअलाम उल वर्आ, 1390 शम्सी, 367; इब्ने शहर आशोब, मनाक़िब आले अबी तालिब, 1379 शम्सी, भाग 2, पेज 209
  23. हकीम, अल-इमामा वल अहले-बैत (अ.स.), 1424 हिजरी, पेज 305-351; मुहम्मदी, कश्फ़ उल-मुराद, 1378 शम्सी, पेज 495-496
  24. सूरा ए निसा, आयत 59
  25. ख़ज़्ज़ाज़े राज़ी, किफ़ाय तुल असर, 1401 हिजरी, पेज 53-55; सुदूक, कमालुद्दीन, 1395 शम्सी, भाग 1, पेज 253-254
  26. देखे बुखारी, सहीए बुख़ारी, भाग 8, पेज 127; मुस्लिम नेशापुरी, सहीए मुस्लिम, दार उल फ़िक्र, भाग 6, पेज 3-4; अहमद बिन हम्बल, मुस्नदे अहमद, दार ए सादिर, भाग 5, पेज 90, 93, 98, 99, 100 और 106; तिरमिज़ी, सुन्न तिरमिज़ी, भाग 3, पेज 340; सजिस्तानी, सन्न इब्ने दाऊद, भाग 2, पेज 309
  27. देखे हाकिमे नेशापुरी, अल-मुस्तदरक अलस्सहीहैन, भाग 4, पेज 501 नोअमानी, किताब उल-ग़ैय्बा, पेज 74-75
  28. क़ंदूज़ी, यनाबी उल- मवद्दा लेज़िल क़ुरबा, दार उल-उस्वा, भाग3, पेज 292-293
  29. देखे मुहम्मदी, शरह कश्फ़ उल-मुराद, पेज 427-441; मूसवी ज़ंजानी, अकाएद उल-इमामिया अल इस्ना अश्रिया, भाग 3, पेज 7-8
  30. देखे मुहम्मदी, शरह कश्फ़ उल-मुराद, पेज 427-441; मूसवी ज़ंजानी, अकाएद उल-इमामिया अल इस्ना अश्रिया, भाग 3, पेज 7-15
  31. मुहम्मदी, शरह कश्फ़ उल-मुराद, पेज 495; मूसवी ज़ंजानी, अकाएद उल-इमामिया अल इस्ना अश्रिया, भाग 3, पेज 197-180
  32. मुफ़ीद अर-इरशाद, भाग 1, पेज 6
  33. मुहम्मदी, शरहे कश्फ़ुल मुराद, पेज 427-436
  34. तबरसी, आलाम उल-वरा, पेज 138-139
  35. तबातबाई, शिया दर इस्लाम, पेज 201
  36. तबातबाई, शिया दर इस्लाम, पेज 201-202
  37. मुफ़ीद, अल-इरशाद, भाग 1, पेज 9; तबरसी, आलाम उल-वरा, पेज 154
  38. मुफ़ीद, अल-इरशाद, भाग 1, पेज 29-66; तबरसी, आलाम उल-वरा, पेज 182; हाकिम, हसकानी, शवाहिद उत-तंज़ील, भाग 1, पेज 21-31
  39. क़नदूज़ी, यनाबी उल-मवद्दत, दार उल-उस्वा, भाग 1, पेज 377
  40. तबातबाई, शिया दर इस्लाम, पेज 202
  41. तबातबाई, शिया दर इस्लाम, पेज 202-203
  42. तबातबाई, शिया दर इस्लाम, पेज 203
  43. तबातबाई, शिया दर इस्लाम, पेज 203-204
  44. तबातबाई, शिया दर इस्लाम, पेज 202
  45. तबातबाई, शिया दर इस्लाम, पेज 202-203
  46. तबातबाई, शिया दर इस्लाम, पेज 203
  47. तबातबाई, शिया दर इस्लाम, पेज 203-204
  48. तबातबाई, शिया दर इस्लाम, पेज 202-203
  49. तबातबाई, शिया दर इस्लाम, पेज 204
  50. तबातबाई, शिया दर इस्लाम, पेज 204-205
  51. तबातबाई, शिया दर इस्लाम, पेज 207
  52. तबातबाई, शिया दर इस्लाम, पेज 207-208
  53. तबातबाई, शिया दर इस्लाम, पेज 208
  54. तबातबाई, शिया दर इस्लाम, पेज 208
  55. तबातबाई, शिया दर इस्लाम, पेज 209
  56. तबातबाई, शिया दर इस्लाम, पेज 209
  57. तबातबाई, शिया दर इस्लाम, पेज 209-210
  58. मूसवी ज़नजानी, अकाएद उल-इमामिया अल-इस्ना अश्रिया, भग 1, पेज 150
  59. तबातबाई, शिया दर इस्लाम, पेज 205
  60. तबातबाई, शिया दर इस्लाम, पेज 205
  61. मुफ़ीद, अल-इरशाद, भाग 2, पेज 137 तबरसी, आलाम उल-वरा, पेज 256 इब्ने शहर आशोब, मनाक़िब ए आले अबी तालिब, भाग 4, पेज 175-176
  62. मुफ़ीद, अल-इरशाद, भाग 2, पेज 114
  63. मुफ़ीद, अल-इरशाद, भाग 2, पेज 119
  64. मजलिसी, बिहार उल-अनवार, भाग 45, पेज 138-139
  65. तबातबाई, शिया दर इस्लाम, पेज 216
  66. मुफ़ीद, अल-इरशाद, भाग 2, पेज 138; तबरसी, आलाम उल-वरा, पेज 256; इब्ने शहर आशोब, मनाक़िब ए आले अबी तालिब, भाग 4, पेज 175
  67. तबरसी, आलाम उल-वरा, पेज 256; मुफ़ीद, अल-इरशाद, भाग 2, पेज 137-138
  68. इब्ने शहर आशोब, मनाक़िब ए आले अबी तालिब, भाग 4, पेज 176
  69. मुफ़ीद, अल-इरशाद, भाग 2, पेज 138; तबरसी, आलाम उल-वरा, पेज 256; इब्ने शहर आशोब, मनाक़िब ए आले अबी तालिब, भाग 4, पेज 176
  70. सहीफ़ा ए सज्जादिया, तरजुमा और शरह फैज़ उल-इस्लाम, पेज 3
  71. मुफ़ीद, अल-इरशाद, भाग 2, पेज 155
  72. मुफ़ीद, अल-इरशाद, भाग 2, पेज 157-158; इब्ने शहर आशोब, मनाक़िब ए आले अबि तालिब, भग 4, पेज 210
  73. मुफ़ीद, अल-इरशाद, भाग 2, पेज 158-159
  74. मुफ़ीद, अल-इरशाद, भाग 2, पेज 157-158; तबरसी, आलाम उल-वरा, पेज 264
  75. इब्ने शहर आशोब, मनाक़िब ए आले अबि तालिब, भग 4, पेज 210
  76. मुफ़ीद, अल-इरशाद, भाग 2, पेज 157-158; तबरसी, आलाम उल-वरा, पेज 264
  77. याक़ूबी, तारीख ए याक़ूबी, दार ए सादिर, भाग 2, पेज 320
  78. तबरसी, आलाम उल-वरा, पेज 265; इब्ने शहर आशोब, मनाक़िब ए आले अबि तालिब, भग 4, पेज 210
  79. तबातबाई, शिया दर इस्लाम, पेज 217
  80. तबातबाई, शिया दर इस्लाम, पेज 217-218
  81. मुफ़ीद, अल-इरशाद, भाग 2, पेज 157
  82. मुफ़ीद, अल-इरशाद, भाग 2, पेज 179-180 तबरसी, आलाम उल-वरा, पेज 271
  83. मुफ़ीद, अल-इरशाद, भाग 2, पेज 180; तबरसी, आलाम उल-वरा, पेज 271
  84. इब्ने शहर आशोब, मनाक़िब ए आले अबि तालिब, भग 4, पेज 280; जाफ़रयान, हयात ए फ़िक्री व सियासी ए इमामान ए शिया, पेज 326
  85. मुफ़ीद, अल-इरशाद, भाग 2, पेज 180; तबरसी, आलाम उल-वरा, पेज 272
  86. तबातबाई, शिया दर इस्लाम, पेज 218-219
  87. मुफ़ीद, अल-इरशाद, भाग 2, पेज 179-180; मनाक़िब ए आले अबि तालिब, भग 4, पेज 247
  88. तबातबाई, शिया दर इस्लाम, पेज 219
  89. मनाक़िब ए आले अबि तालिब, भग 4, पेज 247-248; जाफ़रयान, हयात ए फ़िक्री व सियासी ए इमामान ए शिया, पेज 327-329
  90. मुफ़ीद, अल-इरशाद, भाग 2, पेज 179
  91. शहीदी, ज़िंदगानी इमाम सादिक़, पेज 61
  92. मुफ़ीद, अल-इरशाद, भाग 2, पेज 215
  93. मुफ़ीद, अल-इरशाद, भाग 2, पेज 215; तबरसी, आलाम उल-वरा, पेज 294; इब्ने शहर आशोब, मनाक़िब ए आले अबि तालिब, भग 4, पेज 323-324
  94. मुफ़ीद, अल-इरशाद, भाग 2, पेज 215
  95. मुफ़ीद, अल-इरशाद, भाग 2, पेज 215; तबरसी, आलाम उल-वरा, पेज 294; इब्ने शहर आशोब, मनाक़िब ए आले अबि तालिब, भग 4, पेज 324
  96. इब्ने शहर आशोब, मनाक़िब ए आले अबि तालिब, भग 4, पेज 324; तबरसी, आलाम उल-वरा, पेज 294
  97. देखेः जाफ़रयान, हयात ए फ़िक्री व सियासी ए इमामान ए शिया, पेज 384, 385 और 398
  98. कुलैनी, अल-काफ़ी भाग 1, पेज 476; जाफ़रयान, हयात ए फ़िक्री व सियासी ए इमामान ए शिया, पेज 402-404
  99. मुफ़ीद, अल-इरशाद, भाग 2, पेज 215; इब्ने शहर आशोब, मनाक़िब ए आले अबि तालिब, भग 4, पेज 323-324; तबरसी, आलाम उल-वरा, पेज 294
  100. तबातबाई, शिया दर इस्लाम, पेज 221
  101. मुफ़ीद, अल-इरशाद, भाग 2, पेज 247; तबरसी, आलाम उल-वरा, पेज 313-314
  102. मुफ़ीद, अल-इरशाद, भाग 2, पेज 247
  103. मुफ़ीद, अल-इरशाद, भाग 2, पेज 247; तबरसी, आलाम उल-वरा, पेज 314
  104. तबरसी, आलाम उल-वरा, पेज 314; इब्ने शहर आशोब, मनाक़िब ए आले अबि तालिब, भग 2, पेज 367
  105. तबातबाई, शिया दर इस्लाम, पेज 222
  106. जाफ़रयान, हयात ए फ़िक्री व सियासी ए इमामान ए शिया, पेज 445; तबातबाई, शिया दर इस्लाम, पेज 224
  107. सुदूक़, ओयून ए अख़बार उर-रजा, भाग 2, पेज 135
  108. जाफ़रयान, हयात ए फ़िक्री व सियासी ए इमामान ए शिया, पेज 445; तबातबाई, शिया दर इस्लाम, पेज 442-443
  109. मुफ़ीद, अल-इरशाद, भाग 2, पेज 273; तबरसी, आलाम उल-वरा, पेज 344
  110. मुफ़ीद, अल-इरशाद, भाग 2, पेज 273; तबरसी, आलाम उल-वरा, पेज 344
  111. तबरसी, आलाम उल-वरा, पेज 344-345; इब्ने शहर आशोब, मनाक़िब ए आले अबि तालिब, भग 4, पेज 379
  112. 112- मुफ़ीद, अल-इरशाद, भाग 2, पेज 295; तबरसी, आलाम उल-वरा, पेज 344-345
  113. जाफ़रयान, हयात ए फ़िक्री व सियासी ए इमामान ए शिया, पेज 472
  114. मुफ़ीद, अल-इरशाद, भाग 2, पेज 273; तबरसी, आलाम उल-वरा, पेज 345
  115. जाफ़रयान, हयात ए फ़िक्री व सियासी ए इमामान ए शिया, पेज 472-474
  116. 116- मुफ़ीद, अल-इरशाद, भाग 2, पेज 273; तबरसी, आलाम उल-वरा, पेज 344
  117. तबरसी, आलाम उल-वरा, पेज 344
  118. 118- जाफ़रयान, हयात ए फ़िक्री व सियासी ए इमामान ए शिया, पेज 478
  119. तबातबाई, शिया दर इस्लाम, पेज 225; जाफ़रयान, हयात ए फ़िक्री व सियासी ए इमामान ए शिया, पेज 480-482
  120. 120- मुफ़ीद, अल-इरशाद, भाग 2, पेज 297; तबरसी, आलाम उल-वरा, पेज 355
  121. कुलैनी, अल-काफ़ी भाग 1, पेज 497; मुफ़ीद, अल-इरशाद, भाग 2, पेज 297 और 312; तबरसी, आलाम उल-वरा, पेज 355
  122. तबरसी, आलाम उल-वरा, पेज 355; तबातबाई, शिया दर इस्लाम, पेज 225-226
  123. मुफ़ीद, अल-इरशाद, भाग 2, पेज 297; तबरसी, आलाम उल-वरा, पेज 355
  124. तबरसी, आलाम उल-वरा, पेज 355; जाफ़रयान, हयात ए फ़िक्री व सियासी ए इमामान ए शिया, पेज 502
  125. जाफ़रयान, हयात ए फ़िक्री व सियासी ए इमामान ए शिया, पेज 503
  126. जाफ़रयान, हयात ए फ़िक्री व सियासी ए इमामान ए शिया, पेज 538
  127. कुलैनी, अल-काफ़ी भाग 1, पेज 498; तबरसी, आलाम उल-वरा, पेज 355
  128. जाफ़रयान, हयात ए फ़िक्री व सियासी ए इमामान ए शिया, पेज 506
  129. तबातबाई, शिया दर इस्लाम, पेज 227; जाफ़रयान, हयात ए फ़िक्री व सियासी ए इमामान ए शिया, पेज 500-502
  130. जाफ़रयान, हयात ए फ़िक्री व सियासी ए इमामान ए शिया, पेज 522
  131. सुदुक़, मन ला यहज़ेरोहुल फ़क़ीह, भाग 2, पेज 609
  132. कुलैनी, अल-काफ़ी भाग 1, पेज 503; मुफ़ीद, अल-इरशाद, भाग 2, पेज 13
  133. कुलैनी, अल-काफ़ी भाग 1, पेज 503; मुफ़ीद, अल-इरशाद, भाग 2, पेज 313 और 336; तबरसी, आलाम उल-वरा, पेज 367
  134. तबातबाई, शिया दर इस्लाम, पेज 227-228; तबरसी, आलाम उल-वरा, पेज 367
  135. कुलैनी, अल-काफ़ी भाग 1, पेज 503; मुफ़ीद, अल-इरशाद, भाग 2, पेज 313 और 336; तबरसी, आलाम उल-वरा, पेज 367
  136. मुफ़ीद, अल-इरशाद, भाग 2, पेज 313-314; तबरसी, आलाम उल-वरा, पेज 367
  137. तबरसी, आलाम उल-वरा, पेज 367
  138. जाफ़रयान, हयात ए फ़िक्री व सियासी ए इमामान ए शिया, पेज 538-539 और 542
  139. जाफ़रयान, हयात ए फ़िक्री व सियासी ए इमामान ए शिया, पेज 538 और 542
  140. तबातबाई, शिया दर इस्लाम, पेज 228
  141. तबातबाई, शिया दर इस्लाम, पेज 228-229
  142. कुलैनी, अल-काफ़ी भाग 1, पेज 514; मुफ़ीद, अल-इरशाद, भाग 2, पेज 339; तबरसी, आलाम उल-वरा, पेज 418
  143. मुफ़ीद, अल-इरशाद, भाग 2, पेज 339; तबरसी, आलाम उल-वरा, पेज 418
  144. मुफ़ीद, अल-इरशाद, भाग 2, पेज 339-340
  145. मुफ़ीद, अल-इरशाद, भाग 2, पेज 336
  146. तबातबाई, शिया दर इस्लाम, पेज 230-231
  147. देखेः मजलिसी, बिहार उल-अनवार, भाग 52, पेज 122
  148. उदाहरण स्वरूप देखेः कुलैनी, अल-काफ़ी भाग 1, पेज 25, हदीस 21; मजलिसी, बिहार उल-अनवार, भाग 52, पेज 336
  149. तबातबाई, शिया दर इस्लाम, पेज 231-232
  150. उदाहरण स्वरूप देखेः मजलिसी, बिहार उल-अनवार, भाग 52, पेज 181 और 278
  151. तबातबाई, शिया दर इस्लाम, पेज 230-231
  152. तबातबाई, शिया दर इस्लाम, पेज 231
  153. उदाहरण स्वरूप देखेः क़ाज़ी अब्दुल जब्बार, शरह अल उसूले ख़म्सा, पेज 514; तफ़ताज़ानी, शरहुल मकासिद, भाग 5, पेज 263 और 290
  154. उदाहरण स्वरूप देखेः बग़दादी, अलफ़रको बैनल फ़िरक़, पेज 353-354
  155. क़ुल्ला असअलोकुम अलैहे अजरन इल्लल मवद्दता फ़िल क़ुर्बा, सूर ए शूरा आयत, 23
  156. हाकिम, हसकानी, शवाहिद उत तंज़ील, भाग 2, पेज 189 और 196; ज़मख़शरि, अल कश्शाफ़, भाग 4, पेज 219-220
  157. फ़ख्रे राज़ी, अल तफ़सीर उल कबीर, भाग 27, पेज 595
  158. बग़दादी, तारीख़ ए बग़दाद, भाग 1, पेज 133
  159. इब्ने हजर अस्क़लानी, तहज़ीब उत तहज़ीब, भाग 7, पेज 388
  160. इब्ने हब्बान, अलसेक़ात, भाग 8, पेज 457
  161. सुबहानी, सीमाए अकाइद ए शिया, पेज 234
  162. ज़हबी, सीर ए आलामुन नबला, भाग 6, पेज 257
  163. अबू ज़रआ दमिश्क़ी, तारीख़ ए अबि ज़रआ दमिश्क़ी, मजमा लुग़त उल अरबिया, पेज 536
  164. तबातबाई, अहलुलबैत अलैहेमुस्सलाम फ़िल मकतबतिल अरबिया, मोअस्सेसा ए आले-अलबैत, पेज 481-483
  165. इब्ने जोज़ी, तज़्केरतुल ख़वास, पेज 102-103
  166. इब्ने सब्बाग़, अल फ़ुसूलुल मोहिम्मा, दार उल हदीस, भाग 1, पेज 6 और 683-684
  167. इब्ने सब्बाग़, अल फ़ुसूलुल मोहिम्मा, दार उल हदीस, भाग 1, मुकद्देमा मोहक़्क़िक़, पेज 24
  168. तबातबाई, अहलुलबैत अलैहेमुस्सलाम फ़िल मकतबतिल अरबिया, मोअस्सेसा ए आले-अलबैत, पेज 235
  169. शबरावी, अल इत्तेहाफ बेहुब्बिल अशराफ़, पेज 5-7
  170. शाह मुहम्मदी, अली वा शुकूह ग़दीरे ख़ुम, पेज 45

स्रोत

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  • ख़ज़्ज़ाज़ ए राज़ी, अली बिन मुहम्मद, किफ़ायातुल असर फ़ी नस्से अलल आइम्मतिल इस्ना अश्र, तस्हीह अब्दुल लतीफ हुसैनी कुहकमारी, क़ुम, बेदार, 1401 हिजरी
  • खूई, सय्यद अबुल क़ासिम, मिस्बाहुल फ़ुक़ाहत (तब्ए क़दीम), तक़रीर मुहम्मद अली तौहीदी, क़ुम, अंसारियान, 1417 हिजरी
  • ज़हबी, शम्सुद्दीन मुहम्मद बिन अहमद, सीर ए आलामुन नबला, मोअस्सेसा तुर रिसाला, तीसरा प्रकाशन, 1405 हिजरी
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  • सुबहानी, जाफ़र, सीमा ए अकाइद शिया, अनुवाद जवाद मुहद्देसी, तेहरान नश्रे मश्अर, पहला प्रकाशन, 1386 शम्सी
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  • सुदूक़, मुहम्मद बिन अली बिन बाबवैह, अल-एतेक़ादात, क़ुम, अल-मोतमेरुल आ-लमी लिश शैख अल मुफ़ीद, दूसरा प्रकाशन, 1414 हिजरी
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  • सुदूक़, मुहम्मद बिन अली बिन बाबवैह, मन ला याहजेरोहुल फ़क़ीह, तस्हीह अली अकबर ग़फ़्फ़ारी, क़ुम, दफ्तर ए इंतेशारत इस्लामी, दूसरा प्रकाशन, 1413 हिजरी
  • सफ़्फ़ार, मुहम्मद बिन हसन, बसाएरुद दरजात फ़ी फ़ज़ाइले आले मुहम्मद, क़ुम, मकतब आयतुल्लाह मरअशी अल-नजफी, दूसरा प्रकाशन, 1404 हिजरी
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  • तबातबाई, सय्यद मुहम्मद हुसैन, शिया दर इस्लाम, क़ुम, दफ्तर इंतेशारात इस्लामी, 1383 शम्सी
  • तबरसी, फ़ज़्ल बिन हसन, एअलाम उल वरा बेआलामिल हुदा, तेहरान, इस्लामिया, चौथा प्रकाशन, 1390 हिजरी
  • तूसी, मुहम्मद बिन हसन, अल-तिबयान फ़ी तफ़सीर अल-क़ुरआन, तस्हीह अहमद अहमद आमोली, बैरूत, दार ए एहयाइत तुरास अल अरबी
  • आमोली, सय्यद जाफ़र मुर्तज़ा, अल-विलायातुत तकवीनीया वत तशरीईया, मरकज़ अल-इस्लामी लिद देरासात, दूसरा प्रकाशन, 1428 हिजरी
  • अल्लामा हिल्ली, हसन बिन यूसूफ़, कश्फुल मुराद फी शरहे तजरीदिल एतेकादात क़िस्मुल इलाहीयात, तालीक़ा जाफ़र सुबहानी, क़ुम, मोअस्सेसा इमाम सादिक़ (अ), दूसरा प्रकाशन, 1382 शम्सी
  • अली बिन हुसैन, सहीफ़ा ए सज्जादिया, तरजुमा व शरह फ़ैज़ उल इस्लाम, तेहरान, फ़क़ीह, दूसरा प्रकाशन, 1376 शम्सी
  • फ़ख़्रे राज़ी, मुहम्मद बिन उमर, अल-तफ़सीर उल कबीर (मफ़ातीह उल ग़ैब), बैरूत, दार ए एहयाइत तुरास अल-अरबी, तीसरा प्रकाशन, 1420 हिजरी
  • क़ाज़ी अब्दुल जब्बार, अब्दुल जब्बार बिन अहमद, शरह अल-उसूल अल-ख़म्सा, तालीक़ा अहमद बिन हुसैन अबी हाशिम, बैरूत, दार ए एहयाइत तुरास अल-अरबी, पहला प्रकाशन, 1422 हिजरी
  • क़ंदूज़ी, सुलेमान बिन इब्राहीम, यनाबी उल मवद्दा लेज़विल क़ुर्बा, बैरूत, दार उल उसवा
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  • मोमिन क़ुमी, मुहम्मद, विलायत वली इल मासूम दर मजमूआ तिल आसार अल मोतमेरूल आ-लमी अल-सानी लिल इमाम अल-रज़ा (अ), मशहद, अल मोतमेरूल आ-लमी अल-सानी लिल इमाम अल-रज़ा (अ), 1409 हिजरी
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  • मुहम्मदी, अली, शरह कश्फ़ुल मुराद, क़ुम, दार उल फ़िक्र, चौथा प्रकाशन, 1378 शम्सी
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अधिक जानकारी के लिए स्रोत

  • हयात ए फ़िक्री वा सियासी ए इमामान ए शिया, रसूल जाफ़रयान, क़ुम, अंसारियान