हदीस मन माता

wikishia से
हदीस मन माता
विषयइमाम की पहचान
किस से नक़्ल हुईपैग़म्बर (स)
दस्तावेज़ की वैधताशिया और सुन्नी स्रोतों में मुत्वातिर का दावा
शिया स्रोतअल काफ़ी, क़मालुद्दीन व तमाम अल नेअमा, केफ़ायतुल असर फ़ी अल नस अला अल आइम्मते अल इस्ना अशर
सुन्नी स्रोतसहीह मुस्लिम, मुसनद अहमद बिन हंबल, मुसनद अबू दाऊद तयालोसी, मुसनद अल शामेईन

हदीस मन माता (अरबी: حديث من مات) इस्लाम के पैग़म्बर (स) की एक हदीस है जिसके अनुसार जो कोई भी अपने समय के इमाम को जाने बिना मर जाता है वह अज्ञानता (जाहेलियत) की मौत मरता है। इस हदीस को शिया और सुन्नी स्रोतों में अलग-अलग शब्दों में वर्णित किया गया है और इसी कारण शिया और सुन्नी दोनों इस हदीस से सहमत हैं।

हालाँकि, इस हदीस को लेकर शियों और सुन्नियों के बीच अलग अलग धारणाएँ हैं:

शिया इस हदीस को इमामत के मुद्दे के बारे में मानते हैं और इससे इमाम को जानने और उसका पालन करने की आवश्यकता का अनुमान लगाते हैं। लेकिन सुन्नियों का मानना है कि यह वर्णन इस्लामी शासक के साथ लोगों के रिश्ते और उसके प्रति निष्ठा (बैअत) की आवश्यकता के मुद्दे से संबंधित है।

हदीस का स्थान "मन माता"

इस्लामी स्रोतों में, "मन माता" वाक्यांश के साथ हदीसें वर्णित हुई हैं;[१] लेकिन हदीस "मन माता" की व्याख्या का अर्थ पैग़म्बर (स) की यह प्रसिद्ध हदीस है: مَنْ ماتَ وَ لَمْ یعْرِفْ إمامَ زَمانِهِ مَاتَ مِیتَةً جَاهِلِیة (मन माता व लम यअरिफ़ इमामा ज़मानेही माता मीततन जाहेलीया) अनुवाद: प्रत्येक व्यक्ति जो अपने समय के इमाम को न जानते हुए मरता है, वह अज्ञानता की मौत मरता है। जैसा कि शिया और सुन्नी हदीस स्रोतों में वर्णित हुआ है।[२]

इस हदीस को ऐसे शब्दों के साथ भी वर्णित किया गया है जो इससे थोड़े अलग हैं। उदाहरण के लिए, किताब काफ़ी में, यह हदीस इमाम सादिक़ (अ) से वर्णित है कि पैग़म्बर (स) ने कहा: مَنْ مَاتَ وَ لَیسَ لَهُ إِمَامٌ فَمِیتَتُهُ مِیتَةٌ جَاهِلِیةٌ (मन माता व लैसा लहु इमामुन फ़मीततोहु मीततुन जाहेलीया) अनुवाद: कोई भी व्यक्ति इमाम के बिना मर जाता है, उसकी मृत्यु अज्ञानता की मृत्यु है।[३] इसके अलावा, कुछ सुन्नी स्रोतों में, इस्लाम के पैग़म्बर (स) को यह कहते हुए उद्धृत किया गया है: مَنْ مَاتَ بِغَیرِ إِمَامٍ مَاتَ مِیتَةً جَاهِلِیةً (मन माना बेग़ैरे इमामिन माता मीततन जाहेलीया) अनुवाद: जो व्यक्ति इमाम के बिना मर जाता है; वह अज्ञानता की मौत मरता है।[४]

अल्लामा मजलिसी ने इस कथन को शियों और सुन्नियों के बीच मुतवातिर माना है।[५] शेख़ बहाई ने यह भी कहा कि इस हदीस पर शिया और सुन्नी सहमत हैं।[६]

इस्लाम के पैग़म्बर (स):
مَنْ ماتَ وَ لَمْ يَعْرِفْ إمامَ زَمانِهِ فَقَدْ مَاتَ مِيتَةً جَاهِلِيَّة؛

(मन माता व लम यअरिफ़ इमामा ज़मानेही फ़क़द माता मीततन जाहेलिया) प्रत्येक व्यक्ति जो अपने समय के इमाम को न जानते हुए मरता है, वह अज्ञानता की मौत मरता है।

मनाक़िब इब्ने शहर आशोब, 1379 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 246।

अज्ञानता की मृत्यु का अर्थ

शेख़ कुलैनी ने हदीस मन माता को इमाम सादिक़ (अ) से वर्णित किया है जिसमें (अज्ञानता की मृत्यु) का अर्थ बताया गया है। कथन का पूरा पाठ इस प्रकार है:

इब्ने अबी याफ़ूर वर्णित करते हैं: मैंने इमाम सादिक़ (अ) से इस्लाम के पैग़म्बर (स) के इस कथन "कोई भी व्यक्ति जो इमाम के बिना मर जाता है, उसकी मृत्यु अज्ञानता की मृत्यु है।" के बारे में सवाल किया। "क्या इसका अर्थ अविश्वास (कुफ़्र) की स्थिति में मरना है?" इमाम सादिक़ (अ) ने उत्तर दिया: "इसका अर्थ गुमराही की स्थिति में मरना है।" मैंने कहा, "जो कोई इस समय मर जाता है और उसका कोई पेशवा नहीं हो, उसकी मृत्यु अज्ञानता की मृत्यु है?" उन्होंने कहा: "हाँ"।[७]

हदीस स्रोत

कुछ शिया और सुन्नी स्रोत जिनमें हदीस "मन माता" का वर्णन किया गया है वह इस प्रकार किया है:

इस्लाम के पैग़म्बर (स):
مَنْ مَاتَ بِغَیرِ إِمَامٍ مَاتَ مِیتَةً جَاهِلِیةً؛

(मन माता बेग़ैरे इमामिन माता मीततन जाहेलीया) जो व्यक्ति इमाम के बिना मर जाता है; वह अज्ञानता की मौत मरता है।

अहमद बिन हंबल, मुसनद हंबल, 1421 हिजरी, खंड 28, पृष्ठ 88।

शिया स्रोत

सुन्नी सूत्र

  • मुसनद अहमद बिन हंबल[११]
  • मुसनद अबू दाऊद सुलेमान बिन दाऊद तयालसी[१२]
  • मुसनद अल शामेईन, अबुल क़ासिम तबरानी[१३]

शिया और सुन्नी विद्वानों के अनुसार हदीस का अर्थ

शिया और सुन्नी विद्वान, उनमें से प्रत्येक, अपनी धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, "हदीस मन माता" की अलग अलग व्याख्या करते हैं:

शिया

शियों ने इमामत के मुद्दे में हदीस "मन माता" का इस्तेमाल किया है और उन्होंने इसे सभी युगों[१४] में इमाम की उपस्थिति की आवश्यकता और इमाम को जानने और उसका पालन करने की आवश्यकता का प्रमाण माना है।[१५] शिया मान्यताओं के अनुसार, इस कथन में इमाम का अर्थ अहले बैत और मासूम आइम्मा (अ) हैं, और वर्तमान युग में, इमाम महदी (अ) पर ईमान रखना ज़रूरी है।[१६]

सुन्नी

सुन्नियों ने इस हदीस की एक और व्याख्या और अर्थ प्रस्तुत किया है। वे इस हदीस में "इमाम" का अर्थ इस्लामी समाज के शासक से मानते हैं, जिसे इस्लामी समाज की रक्षा के लिए उसकी आज्ञा का पालन करना चाहिए और उसकी निष्ठा में रहना चाहिए।[१७] इस्लामी शासक की आज्ञा का पालन करने की आवश्यकता में सभी मुस्लिम शासक शामिल हैं, और शासकों का क्रूर और पापी होना आज्ञापालन की इस आवश्यकता में कोई समस्या पैदा नहीं करता है। उपरोक्त हदीस की व्याख्या में, इब्ने तैमिया ने पैग़म्बर (स) के साथियों (सहाबा) और अनुयायियों की यज़ीद बिन मुआविया के प्रति आज्ञाकारिता और निष्ठा की आवश्यकता बताई है।[१८]

हालांकि, कुछ सुन्नी स्रोतों ने उपरोक्त कथन में "इमाम" की व्याख्या इस्लाम के पैग़म्बर (स) के रूप में की है और उनका मानना है कि पैग़म्बर पर विश्वास (ईमान) करना चाहिए; क्योंकि वह इस दुनिया में धरती के लोगों के इमाम हैं।[१९]

फ़ुटनोट

  1. उदाहरण के लिए, देखें: बर्क़ी, अल महासिन, 1371 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 88।
  2. सय्यद इब्ने ताऊस, अल इक़बाल बिल आमाल अल हसना, 1415 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 252; शेख़ सदूक़, कमालुद्दीन, 1395 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 410; तफ्ताज़ानी, शरहे मक़ासिद, 1409 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 239, कुंदोज़ी, यनाबी उल मोअद्दा, 1413 हिजरी, खंड 456।
  3. कुलैनी, अल काफ़ी, 1407 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 376।
  4. अहमद बिन हंबल, मुसनद अहमद, 1421 हिजरी, खंड 28, पृष्ठ 88; अबू दाऊद, मुसनद अबू दाऊद, 1419 हिजरी, खंड 3, पृष्ठ 425; तबरानी, मुसनद अल शामेईन, 1405 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 437।
  5. अल्लामा मजलिसी, बिहार उल अनवार, 1403 हिजरी, खंड 8, पृष्ठ 368।
  6. शेख़ बहाई, अल अरबऊन हदीसन, 1431 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 431।
  7. कुलैनी, अल काफ़ी, 1407 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 376।
  8. कुलैनी, अल काफ़ी, 1407 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 376।
  9. शेख़ सदूक़, कमालुद्दीन, 1395 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 409।
  10. ख़ज़्ज़ाज़ राज़ी, केफ़ायतुल अल असर, 1401 हिजरी, पृष्ठ 296।
  11. इब्ने हंबल, मुसनद अहमद, 1421 हिजरी, खंड 28, पृष्ठ 88।
  12. अबू दाऊद, मुसनद अबू दाऊद, 1419 हिजरी, खंड 3, पृष्ठ 425।
  13. तबरानी, मुसनद अल शामेईन, 1405 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 437।
  14. अबुल फ़ुतूह राज़ी, रौज़ अल जिनान, खंड 4, पृष्ठ 173।
  15. मुल्ला सद्रा, शरहे उसूल अल काफ़ी, 1383 शम्सी, खंड 2, पृष्ठ 474।
  16. अल्लामा मजलिसी, मिरआत उल उक़ूल, 1404 हिजरी, खंड 4, पृष्ठ 27, शेख़ बहाई, अल अरबऊन हदीसन, 1431 हिजरी, खंड 431।
  17. सोहैब अब्दुल जब्बार, अल जामेअ अल सहीह, 2014 ईस्वी, खंड 4, पृष्ठ 234, फ़ुटनोट।
  18. इब्ने तैमिया, मुख़्तसर मिन्हाज अल सुन्ना, 1426 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 49।
  19. इब्ने हिब्बान, सहीह इब्ने हिब्बान, 1414 हिजरी, खंड 10, पृष्ठ 434।

स्रोत

  • इब्ने तैमिया, तक़ीउद्दीन, मुख़्तसर मिन्हाज अल सुन्ना, तल्खीस अब्दुल्लाह बिन मुहम्मद अल ग़नीमान, सनआ, दार अल सिद्दीक़, दूसरा संस्करण, 1426 हिजरी।
  • अबुल फुतूह राज़ी, हुसैन बिन अली, रौज़ा अल जिनान व रुह अल जिनान फ़ी तफ़सीर अल कुरआन, डॉ. मुहम्मद जाफ़र याहक़ी और डॉ. मुहम्मद महदी नासेह द्वारा शोध किया गया, मशहद, बुनियादे पजोहिशहाए इस्लामी आस्ताने क़ुद्स रज़वी, 1408 हिजरी।
  • शेख़ बहाई, अल अरबऊन हदीसन, क़ुम, नशरे जामेआ मुदर्रेसीन, तीसरा संस्करण, 1431 हिजरी।
  • तफ्ताज़ानी, सादुद्दीन, अब्दुर्रहमान उमीरा द्वारा शोध किया गया, नशर अल शरीफ अल रज़ी, पहला संस्करण, 1409 हिजरी।
  • तबरानी, सुलेमान बिन अहमद, मुसनद अल शामेईन, बेरूत, मोअस्सास ए अल रेसाला, पहला संस्करण, 1405 हिजरी।
  • अहमद बिन हंबल, अबू अब्दुल्लाह, मुसनद अहमद, शोएब अल अरनौत का शोध, बेरूत, मोअस्सास ए अल रेसाला, 1421 हिजरी।
  • बर्क़ी, अबू जाफ़र अहमद बिन मुहम्मद बिन खालिद, अल महासिन, जलालुद्दीन मोहद्दिस द्वारा शोध और सुधार किया गया, क़ुम, दार उल कुतुब अल इस्लामिया, दूसरा संस्करण, 1371 हिजरी।
  • खज़्ज़ाज़ राज़ी, अली बिन मुहम्मद, "केफ़ायतुल असर फ़ी अल नस अला अल आइम्मा अल इस्ना अशर, क़ुम, नशरे बीदार, 1401 हिजरी।
  • सय्यद बिन ताऊस, रज़ीउद्दीन अली, अल इक़बाल बिल आमाल अल हसना, जवाद क़य्यूमी इस्फ़हानी द्वारा शोध और सुधार किया गया, क़ुम, इंतेशाराते दफ़्तरे तब्लीग़ाते इस्लामी, प्रथम संस्करण, 1415 हिजरी।
  • शेख़ सदूक़, कमालुद्दीन व तमाम अल नेअमा, अली अकबर गफ़्फ़ारी द्वारा अनुसंधान और सुधार किया गया, तेहरान, दार अल कुतुब अल इस्लामिया, दूसरा संस्करण, 1395 हिजरी।
  • अबू दाऊद तयालसी, सुलेमान बिन दाऊद, मुसनद अबी दाऊद अल तयालसी, मुहम्मद बिन अब्दुल मोहसिन तुर्की द्वारा शोध किया गया, मिस्र, दार हिज्र, पहला संस्करण, 1419 हिजरी।
  • मुस्लिम बिन हज्जाज क़शीरी नैशापूरी, सहीह मुस्लिम अल मुसनद अल सहीह अल मुख्तसर बे नक़्ले अल अदल एला रसूल्ललाह, मुहम्मद फ़ोवाद अब्दुल बाक़ी द्वारा शोध किया गया, बेरूत, दार एह्या अल तोरास अल अरबी, बिना तारीख़।
  • कुलैनी, मुहम्मद बिन याक़ूब, अल काफ़ी, अली अकबर ग़फ़्फ़ा और मुहम्मद आखुंदी द्वारा अनुसंधान और सुधार किया गया, तेहरान, दार अल कुतुब अल इस्लामिया, चौथा संस्करण, 1407 हिजरी।
  • अल्लामा मजलिसी, मुहम्मद बाक़िर, बिहार उल अनवार, बेरूत, दार इह्या अल तोरास अल अरबी, दूसरा संस्करण, 1403 हिजरी।
  • अल्लामा मजलिसी, मुहम्मद बाक़िर, मिरआत अल उक़ूल फ़ी शरहे अख़्बार अल अर रसूल, अनुसंधान और सुधार: सय्यद हाशिम रसूली, तेहरान, दार अल कुतुब अल इस्लामिया, दूसरा संस्करण, 1403 हिजरी।
  • कुंदोज़ी, यनाबी उल मोअद्दा लेज़वी अल क़ुर्बा, नशरे उस्वा, 1413 हिजरी।
  • मुहम्मद इब्ने हिब्बन इब्ने अहमद, सहीह इब्ने हिब्बान, शोएब अल अरनौत द्वारा शोध किया गया, बेरूत, मोअस्सास ए अल रेसाला, दूसरा संस्करण, 1414 हिजरी।
  • मुल्ला सद्रा, सद्रुद्दीन शिराज़ी मुहम्मद बिन इब्राहीम, शरहे उसूल अल काफ़ी, अनुसंधान और सुधार: मुहम्मद ख़ाजवी, तेहरान, मोअस्सास ए मुतालेआत व तहक़ीक़ाते फ़र्हंगी, पहला संस्करण, 1383 शम्सी।