इमामत की अमानतें

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इमामत की अमानतें (अरबी: ودائع الإمامة) (वदायेए इमामत), नबियों, इमाम अली (अ) और हज़रत फ़ातेमा ज़हरा (अ) की वह वस्तुएं हैं जो शिया इमामों के पास थीं और जिन्हे इमाम को पहचानने के लिए मापदंड के रूप में जाना जाता था। इनमें पैगंबर (स) की तलवार और अंगूठी, हज़रत मूसा की छड़ी, हज़रत सुलेमान की अंगूठी और मुसहफ़े फ़ातेमा (अ), जफ्र और जामिया शामिल हैं।

शिया इमाम, जब झूठे इमामत के दावेदारों और इमाम को पहचानने में शियों के संदेह का सामना करते थे, तो अपने पास मौजूद इमामत की अमानतों को सबूत के तौर पर पेश करते थे।

अवधारणा और स्थान

वदायेए (अमानत) का मतलब है खास चीजें, जैसे तलवारें, किताबें और अंगूठियां, जो एक इमाम से दूसरे को अमानत के तौर पर सौंपी जाती हैं और उनकी इमामत की निशानी होती हैं। इमामत की अमानतें, पिछले इमाम की वसीयत के साथ, अगले इमाम की पहचान करने के लिए महत्वपूर्ण मानदंडों में से एक रही हैं,[१]विशेष रूप से चूंकि तक़य्या के हालात में जब वसीयत के माध्यम से इमामत को साबित करना असंभव हो चुका था।[२]लिहाज़ा इमामत की अमानतों पर ज़ोर दिया जाता था ताकि इमाम के व्यक्तित्व की पहचान करने में कोई संदेह बाक़ी नहीं रहे।[३]

उदाहरण

शिया स्रोतों में उद्धृत हदीसों में कुछ चीज़ों को इमामत की अमानतों में से शुमार किया गया है। इमामों ने इन चीजों के अस्तित्व को संदर्भित करने और अपने पास मौजूद होने के लिए "इंदना" (हमारे पास) या "इंडी" (मेरे पास) के शब्दों का इस्तेमाल किया है:

इमामत की अमानतें स्पष्टीकरण
पैगंबर (स) की तलवार[४] इमाम सादिक़ (अ) के एक कथन में, पैगंबर (स) की तलवार की तुलना बनी इज़राइल के ताबूत से करने के बाद कहा गया है: यदि पैगंबर की तलवार हम में से प्रत्येक के साथ हो, तो उसे इमामत दी गई है।[५] कुछ हदीसों के अनुसार, यह तलवार वही ज़ुल्फ़िक़ार है।[६]
जफ़र[७] एक ऐसी किताब है जिसमें पुनरुत्थान (क़यामत) के दिन तक भविष्य की घटनाओं का उल्लेख है।[८]
जामिया पैगंबर (स) द्वारा लिखी गई किताब है और इमाम अली (अ) की लिखावट में है और इसमें हलाल और हराम के सभी क़ानून हैं।[९]
अली (अ) की किताब[१०] कुछ लोगों ने जामिया और अली की किताब को दो नामों वाली एक किताब माना है;[११] लेकिन आग़ा बुज़ुर्ग तेहरानी ने इस किताब को ईश्वर दूत (स) के कार्यों के रूप में नामित किया और इसे जफ़र और जामिया से अलग माना है।[१२]
मुसहफ़े फ़ातिमा (अ) एक किताब है जिसे दिव्य दूत (फ़रिश्तों) ने हज़रत फ़ातेमा (अ) को लिये बयान किया और इमाम अली (अ) ने इसे लिखा।[१३]
सहीफ़ ए फ़रायज़ इमाम अली (अ) की लिखावट में विरासत के बारे में एक किताब है।[१४]
पैगंबर की अंगूठी[१५]
पैगंबर (स) का कवच[१६] हदीसों में उल्लेख किया गया है कि एक इमाम की निशानियों में से एक यह है कि पैगंबर (स) का कवच उनके कद के लिए उपयुक्त है।[१७]
जफ़र-सुर्ख़ वह भंडारगृह, जहां पैगंबर (स) के हथियार रखे हुए है।[१८]
जफ़र सफे़ेद वह भंडारगृह है जहां तौरेत, बाइबिल, ज़बूर और अन्य आसमानी पुस्तकें रखी हुई हैं।[१९]
शियों का दीवान जिसमें शियों के नाम हैं। कुछ हदीसों में इसे "सम्मान" कहा गया है।[२०]
अम्बिया की अन्य विरासतें जैसे कि तख़्तियां, सीनियां, ताबूत, मूसा (अ) की छड़ी और सुलेमान (अ) की अंगूठी।[२१]

इमामत की अमानतों द्वारा इमामों का दलील देना

शिया इमामों ने इमामत के झूठे दावेदारों के खिलाफ़ या शियों के संदेह से निपटने के दौरान उनके पास मौजूद इमामत की अमानतों का हवाला दिया है। उदाहरण के लिए, इमाम अली (अ) ने छह लोगों की परिषद में कहा: "मैं भगवान की क़सम खाता हूं, क्या आप में से कोई है जिसके पास भगवान के दूत के हथियार, झंडा और अंगूठी है?"[२२]

इमाम सादिक़ (अ) जो एक ओर हसनियों के आंदोलन का सामना कर रहे थे जिसने मुहम्मद बिन अब्दुल्लाह महज़ के महदी होने का प्रचार किया[२३]और दूसरी ओर वह कैसानिया और ज़ैदिया के दो आंदोलनों का सामना कर रहे थे, अपने पास मौजूद पैगंबर (स) के हथियार को उनके खिलाफ़ विरोध में एक उपकरण के रूप में पेश करते थे।[२४] यह वर्णित किया गया है कि इमाम सादिक़ (अ) को बताया गया कि कुछ लोग सोचते हैं कि ईश्वर के दूत की तलवार अब्दुल्लाह बिन हसन के पास है। उन्होने जवाब दिया:

"मैं भगवान की क़सम खाता हूं, कि अब्दुल्लाह बिन हसन ने उसे कभी देखा भी नही है। ईश्वर के दूत की तलवार और झंडा मेरे पास है। ईश्वर के दूत का हथियार, बनी इसराइल के बीच ताबूत की तरह है। जहां ताबूत, वहां नवूबत। इसी तरह से जिस के पास ईश्वर के दूत का हथियार हो वही इमाम है।"[२५]

एक इमाम से दूसरे इमाम को जमा राशि का स्थानांतरण

शिया हदीसों के अनुसार, इमामत की अमानतों को प्रत्येक इमाम से दूसरे इमाम को सौंप दिया गया है; या तो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से। इमाम सादिक़ अलैहिस सलाम से रिवायत है: किताबें अली अलैहिस्सलाम के पास थीं। जब वह इराक़ गये, तो उन्होने उन पुस्तकों को उम्मे सलमा के पास अमानत के तौर पर रख दिया। उनके बाद, वे पुस्तकें इमाम हसन (अ) के पास थीं, और उनके बाद, इमाम हुसैन (अ) के पास, और उनके बाद, अली बिन हुसैन (अ) के साथ, और उनके बाद, मेरे पिता (इमाम बाक़िर (अ)) के पास[२६]

यह भी बताया गया है कि जब इमाम हुसैन (अ) इराक़ जाने लगे, तो उन्होंने पैगंबर (स) की पत्नी उम्मे सलमा को किताबें और वसीयत अमानत के तौर पर सौंपी। जब अली बिन हुसैन (अ) वापस लौटे, तो उम्मे सलमा ने वह सब उनके हवाले कर दिया।[२७]

इमाम बाक़िर अलैहिस सलाम से भी रिवायत है कि जब अली बिन हुसैन अलैहिस्सलाम की वफ़ात का समय आया तो वह एक बक्सा लेकर मेरे पास आए और मुझसे कहाः ऐ मुहम्मद, यह बक्सा ले लो। उस डिब्बे में ईश्वर के दूत (स) की तलवार और उनकी पुस्तकें थीं।[२८]

इमाम महदी की अनुपस्थिति में उन अमानतों का स्थान

अल्लामा मजलिसी की एक रिपोर्ट के अनुसार, ग़ैबते सुग़रा के दौरान इमामत की वह अमानतें को इमाम ज़माना (अ) के विशेष प्रतिनिधि को सौंपी गयी थीं। उनकी रिपोर्ट में यह कहा गया है कि जब दूसरे नायब मुहम्मद बिन उस्मान की मृत्यु हो गई, तो उनके नौकर ने उस बक्से को जिसमें इमामत की अमानतें थीं, को तीसरे डिप्टी, हुसैन बिन रूह नौबख्ती को सौंप दिया।[२९]

आग़ा बुज़ुर्ग तेहरानी के अनुसार, शिया हदीसों के आधार पर, इमामत की अमानतों को वर्तमान में बारहवें इमाम को सौंपा गया है।[३०]

फ़ुटनोट

  1. शेख़ तूसी, अल-एक़तेसाद, 1430 हिजरी, पृष्ठ 375।
  2. तबताबाई, "जुसतारी दर आसीब शिनासी चालिश हाय इमामते इमाम काज़िम", पेज 104।
  3. तबातबाई, "जुसतारी दर आसीब शिनासी चालिश हाय इमामते इमाम काज़िम", पृष्ठ 79।
  4. कुलैनी, अल-काफी, खंड 1, 1362, पृष्ठ 305।
  5. कुलैनी, अल-काफ़ी, 1362, खंड 1, पृष्ठ 238।
  6. इब्ने शहर आशोब, अल-मनाक़िब, 1379 हिजरी, खंड 4, पेज 135 और 253।
  7. कुलैनी, अल-काफ़ी, 1362, खंड 1, पृष्ठ 239; सफ़्फ़ार, बसाएर अल-दराजात, 1404 हिजरी, पृष्ठ 152।
  8. शेख़ सदूक़, कमालुद्दीन, 1395 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 353।
  9. शेख़ मुफ़ीद, अल-इरशाद, 1413 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 186।
  10. सफ़्फ़ार, बसायर अल-दरजात, 1404 हिजरी, पृष्ठ 147।
  11. अस्करी, मआलिम अल-मदरसतैन, 1410 हिजरी, खंड 2, पेज 335-338।
  12. आग़ा बुज़ुर्ग तेहरानी, ​​अल-ज़रीया, 1408 हिजरी, खंड 2, पेज 306-307।
  13. सफ़्फ़ार, बसायर अल-दरजात, 1404 हिजरी, पेज 152-153।.
  14. आग़ा बुज़ुर्ग तेहरानी, ​​अल-ज़रियह, 1408 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 162।.
  15. सफ़्फ़ार, बसायर अल-दरजात, 1404 हिजरी, पेज 156
  16. सफ़्फ़ार, बसायर अल-दरजात, 1404 हिजरी, पेज 156
  17. اइब्ने शहर आशोब, अल-मनक़िब, 1379 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 253; शेख़ मुफ़ीद, अल-इरशाद, 1413 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 217।
  18. शेख़ मुफ़ीद, अल-इरशाद, 1413 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 186।
  19. शेख़ मुफ़ीद, अल-इरशाद, 1413 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 186
  20. सफ़्फ़ार, बसायर अल-दरजात, 1404 हिजरी, पेज 173
  21. सफ़्फ़ार, बसायर अल-दरजात, 1404 हिजरी, पेज 175
  22. सफ़्फ़ार, बसायर अल-दरजात, 1404 हिजरी, पृष्ठ 182।
  23. नजफियान रज़वी, "बर्रसी चेगुनेगिये मुनासेबाते हसनियान व इमामाने शिया, मुतालेयाते तारीख़े इस्लाम", 1392 शम्सी।
  24. शेख़ मुफीद, अल-इरशाद, 1413 हिजरी, खंड 2, पेज 187-188।
  25. सफ़्फ़ार, बसाएर अल-दरजात, 1404 हिजरी, पृष्ठ 175।
  26. सफ़्फ़ार, बसायर अल-दरजात, 1404 हिजरी, पृष्ठ 162।
  27. कुलैनी, अल-काफ़ी, 1362, खंड 1, पृष्ठ 304; इब्ने शहर आशोब, अल-मनाक़िब, 1379 हिजरी, खंड 4, पृष्ठ 172।
  28. कुलैनी, अल-काफ़ी, 1362, खंड 1, पृष्ठ 305।
  29. अल्लामा मजलिसी, बिहार अल-अनवार, 1403 हिजरी, खंड 85, पृष्ठ 211।
  30. आग़ा बुज़ुर्ग तेहरानी, ​​अल-ज़रिया, 1408 हिजरी, खंड 21, पृष्ठ 126।

स्रोत

  • आग़ा बुजुर्ग तेहरानी, ​​मोहम्मद मोहसिन, अल-ज़रिया इला तसानीफ़ अल-शिया, क़ुम, इस्माइलियान, 1408 हिजरी।
  • इब्ने शहर आशोब, मुहम्मद बिन अली, अल-मनाक़िब, क़ुम, अल्लामा पब्लिशिंग हाउस, 1379 हिजरी।
  • शेख़ सदूक़, मुहम्मद बिन अली, कमाल अल-दीन और तमाम अल-नेमह, अली अकबर गफ़्फारी द्वारा संशोधित, इस्लामिया, तेहरान, दूसरा संस्करण, 1395 हिजरी।
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  • अस्करी, सैय्यद मुर्तजा, मआलिम अल मदरासतैन, बेरूत, नोमान संस्थान, 1410 हिजरी।
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  • नजफ़ी रज़वी, लैला, "बर्रसी ए चेगूनगिये मुनासेबाते हसनियान व इमामाने शिया ता साले 145 हिजरी", मुतालेआते तारीख़े इस्लाम, संख्या पांच, 1392।