शियो के इमाम
यह लेख बारह इमामों के परिचय से संबंधित है। इमामों की इमामत और उनके तर्को के बारे में जानने के लिए शिया इमामों की इमामत को देखे।
शियो के इमाम (अरबी: أئمة الشيعة) आइम्मा-ए-मासूमीन (अ) अर्थात पैग़म्बर के परिवार के बारह सदस्य। जो शिया शिक्षाओं और मान्यताओं के अनुसार पैग़म़्बर सल्लल्लाहु अलैहि वा आलेही वसल्लम के पश्चात [एक के बाद एक] उनके उत्तराधिकारी हैं। और आपके बाद इस्लामी समाज के इमाम और अभिभावक है। पहले इमाम अली अलैहिस सलाम और अन्य इमाम आप और हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाहे अलैहा की नस्ल से हैं।
शिया इमामिया की मान्यताओं के अनुसार इन इमामों को ईश्वर ने नियुक्त किया है। इमामो की विशेषताओ में से इस्मत इल्म ए ग़ैब, अफ़ज़लियत और शिफ़ाअत का हक़ है। शिया शिक्षाओ के अनुसार आइम्मा (अ) तवस्सुल किया जा सकता है। और उनके माध्यम से ईश्वर से क़ुरबत (नज़दीक) हासिल की जा सकती है। इमामों (अ) पर वही उतरने और शरीयत लाने के अलावा पैग़म्बर (स) के सभी कर्तव्य पूरा करते हैं।
सुन्नी, शिया इमामों की इमामत को स्वीकार नहीं करते; लेकिन वे उनके प्रति प्रेम और भक्ति का इज़हार करते हैं और उनके धार्मिक और इल्मी हक़ को स्वीकार करते हैं।
क़ुरआन में इमामों के नाम का उल्लेख नहीं है; लेकिन पैग़म्बर (स) की कुछ हदीसों में जैसे कि: हदीस जाबिर और हदीस बारह ख़लीफ़ा, इमामों के नाम और संख्या का उल्लेख किया गया है। इन हदीसों के अनुसार, पैग़म्बर (स) के इमाम और उत्तराधिकारी बारह हैं और वे सभी क़ुरैश क़बीले से और पैग़म्बर (स) के अहले बैत में से हैं।
शिया इसना अशरी मत के अनुसार, इमाम अली (अ) को पैग़म्बर मुहम्मद (स) ने स्पष्ट रूप से इमामत के लिए नियुक्त किया था। इसके बाद हर इमाम ने अपने बाद के इमाम को स्पष्ट रूप से और नस्स के ज़रिए पेश किया। इस आधार पर, पैग़म्बर (स) के बाद उनके बारह उत्तराधिकारी निम्नलिखित हैं: अली बिन अबी तालिब, हसन बिन अली, हुसैन बिन अली, अली बिन हुसैन, मुहम्मद बिन अली, जाफ़र बिन मुहम्मद, मूसा बिन जाफ़र, अली बिन मूसा, मुहम्मद बिन अली, अली बिन मुहम्मद, हसन बिन अली और महदी (अलैहिमुस्सलाम)। शिया मत के प्रसिद्ध दृष्टिकोण के अनुसार, इनमें से ग्यारह इमामों को शहीद किया गया और अंतिम इमाम, इमाम महदी (अ) ग़ैबत में हैं। वह भविष्य में ज़ुहूर करेंगे और धरती को न्याय और इंसाफ़ से भर देंगे।
शिया इमामों की जीवनी और उनके गुणों के बारे में कई पुस्तके लिखी गई हैं, जैसे अल-इरशाद और दलाइल अल इमामा, और सुन्नियों ने यनाबी उल-मवद्दा और तज़किरा तुल-ख़वास जैसी पुस्तके लिखी है।
स्थान और विशेषताएँ
बारह इमामों की इमामत का अक़ीदा अर्थात विश्वास शिया इसना अशरी संप्रदाय के मूल सिद्धांतों में से एक है।[१] शियों के दृष्टिकोण से इमाम ईश्वर द्वारा इस्लाम के पैग़म्बर (स) के माध्यम से निर्धारित होता है।[२]
शियों का मानना है कि कुरआन में इमामों के नामों का उल्लेख नहीं हुआ है; लेकिन क़ुरआन की आयतों जैसे आय ए ऊलिल अम्र, आय ए ततहीर, आय ए विलायत, आय ए इकमाल, आयत ए तब्लीग़ और आय ए सादेक़ीन मे इमामों की इमामत की ओर इशारा किया गया है।[३] जबकि रिवायतो मे उनके नामों और उनकी संख्या का उल्लेख है।[४]
शिया इसना अशरी संप्रदाय के अनुसार, इमामों के पास पैग़म्बर (स) के सभी कर्तव्य हैं, जैसे क़ुरआन की आयतों की व्याख्या करना, शरई अहकाम को बयान करना, समाज में लोगों को शिक्षित करना, धार्मिक सवालों का जवाब देना, समाज में न्याय स्थापित करना और इस्लाम की सरहदों की रखवाली करना, पैग़म्बर (स) से उनका अंतर केवल रहस्योद्घाटन (वही) अर्थात वही प्राप्त करने और शरीयत लाने में है।[५]
विशेषताए
शिया इमामिया की दृष्टि से बारह इमामों की कुछ विशेषताएँ इस प्रकार हैं:[नोट १]
- इस्मत: आइम्मा (अ) पैग़म्बर (स) की तरह, सभी पापों और ग़लतियों से मासूम हैं।[६]
- अफ़ज़लियत: शिया विद्वानों के दृष्टिकोण से पैग़म्बर (स) के बाद बाकी दूसरे नबीयो, फ़रिश्तों और अन्य लोगों से श्रेष्ठ अर्थात अफ़ज़ल हैं।[७] जो रिवायतें आइम्मा (अ) की तमाम प्राणियो पर श्रेष्ठता पर दलालत करती है वो मुस्तफ़ीज़ बल्कि मुतावातिर है।[८]
- इल्मे ग़ैब: आइम्मा (अ) के पास अल्लाह का दिया हुआ इल्मे ग़ैब है।[९]
- तकवीनी और तशरीई विलायत: अधिकांश इमामी शिया विद्वान आइम्मा (अ.स.) की तकवीनी विलायत की पुष्टि पर सहमत हैं।[१०] [10] आइम्मा (अ.स.) की तशरीई विलायत अर्थात जनता और उनके माल पर जनता से अधिक अधिकार रखने मे कोई मतभेद नही है।[११] हदीसों के आधार पर तशरीई विलायत का अर्थ है क़ानून बनाने और उसको जारी करने का अधिकार इमामों के लिए साबित है।[१२]
- शिफ़ाअत का अधिकार: पैगंबर (स) की तरह सभी इमामों के पास शिफ़ाअत का अधिकार है।[१३]
- दीनी और इल्मी मरज़ेईयत: हदीसे सक़लैन[१४] और हदीसे सफीना[१५] जैसी हदीसो के आधार पर आइम्मा (अ.स.) दीनी और इल्मी मरजेईयत रखते हैं और लोगों को धार्मिक मामलों में उनका पालन करना चाहिए।[१६]
- समाज का नेतृत्व: इस्लाम के पैगंबर (स) के बाद इस्लामी समुदाय का नेतृत्व और प्रशासन आइम्मा (अ) का कर्तव्य है।[१७]
- इताअत का वाजिब होना: आय ए उलिल अम्र के आधार पर आइम्मा (अ) की आज्ञाकारिता (इताअत) वाजिब है। जिस तरह अल्लाह और पैगंबर (स.अ.व.व.) की तरह आइम्मा (अ.स.) की आज्ञाकारिता अनिवार्य है।[१८]
अधिकांश शिया विद्वानों के दृष्टिकोण से सभी शिया इमाम शहीद हो गए हैं या शहीद होंगे।[१९] उनका तर्क रिवायतो[२०] मे से वह रिवायत है जिसमे आया है «[२१]وَ اللَّهِ مَا مِنَّا إِلَّا مَقْتُولٌ شَهِيد» 'वल्लाहि मा मिन्ना इल्ला मक़तूलुन शहीद' कि सभी इमाम दुनिया से शहीद जाएंगे।[२२]
इमामो की इमामत
- मुख्य लेखः शिया इमामों की इमामत
शिया विद्वान बारह इमामो की इमामत बौद्धिक तर्क जैसे इस्मत और अफ़ज़लीयत, और नक़ली तर्क जैसे हदीसे जाबिर, हदीसे लौह, हदीस बारह ख़ोलफ़ा के माध्यम से साबित करते है।[२३]
हदीसे जाबिर
- मुख्य लेखः हदीसे जाबिर
जाबिर इब्ने अब्दुलाह अंसारी ने आय ए विलायत «[२४]يا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا أَطِيعُوا اللهه وَ أَطِيعُوا الرَّسُولَ وَ أُولِي الْأَمْرِ مِنْكُمْ» (या अय्योहल लज़ीना आमानू अतीउल लाहा वा अती उर रसूला वा उलिल उम्र मिनकुम) के आने के पश्चात उलिल अम्र के अर्थ से संबंधिक पैगंबर (स) से सवाल किया। पैगंबर (स) ने जवाब मे फ़रमायाः "ये मेरे बाद मेरे उत्तराधिकारी और मुसलमानों के इमाम हैं, जिनमें से पहले अली बिन अबी तालिब हैं, और उनके बाद क्रमशः हसन, हुसैन, अली बिन हुसैन और मुहम्मद बिन अली, जाफ़र बिन मुहम्मद, मूसा बिन जाफ़र, अली बिन मूसा, मुहम्मद बिन अली, अली बिन मुहम्मद, हसन बिन अली और उनके बाद उनका बेटा मेरा हम नाम और मेरी हम उपाधि है।[२५]
हदीसे ख़ुल्फ़ाए इसना अशर
- मुख्य लेखः हदीस ख़ुल्फ़ा ए इसना अशर

अहले सुन्नत से एक रिवायत आई है जिसमे पैगंबर के खलीफ़ाओ की संख्या 12 और उनकी कुछ विशेषताओ जैसे उनका क़ुरैशी होने का वर्णन हुआ है; जाबिर बिन सुमरा ने पैगंबर से रिवायत की है "यह धर्म हमेशा पुनरुत्थान के दिन तक बाकी रहेगा और जब तक आप पर बारह खलीफा नहीं होंगे। ये सभी खलीफा कुरैशी के हैं।"[२६] इस संबंध मे इब्ने मसऊद से नकल होने वाली हदीस की ओर भी इशारा किया जा सकता है जिसके आधार पर पैगंबर के नकीबो की संख्या बनी इसराइल के नक़ीबो की संख्या के बराबर अर्थात 12 है।[२७] सुन्नी विद्वान सुलेमान बिन इब्राहीम क़न्दूज़ी के अनुसार पैग़म्बर की हदीस मे 12 खलीफ़ा का अर्थ है शियो के 12 इमाम क्योकि यह संख्या इनके अलावा कही पर भी फिट नही बैठती।[२८]
इमामो का परिचय
इमामी शियों के अक़ली तर्कसंगत के कारणों[२९] और इसी प्रकार नकली तर्कसंगतो जैसे हदीसे ग़दीर और हदीसे मंज़लत के आधार पर पैगंबर ए इस्लाम के बर हक़ और बिला फासला खलीफ़ा इमाम अली इब्न अबी तालिब (अ) हैं। इमाम अली के पश्चात क्रमशः इमाम हसन, इमाम हुसैन, इमाम सज्जाद, इमाम बाक़िर, इमाम सादिक़, इमाम काज़िम, इमाम रजा, इमाम तक़ी, इमाम नक़ी, इमाम अस्करी और फिर इमाम महदी जिनके हाथो मे उम्मत की बागडोर है।[३०]
नाम | उपनाम | उपाधि | जन्म | जन्म का साल |
जन्म स्थान |
शहादत | शहादत का साल |
शहादत स्थल |
इमामत | इमामत काल |
माता का नाम |
---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|
अली बिन अबीतालिब | अमीर उल-मोमेनीन | अबुल हसन | 13 रजब | 30 आम उल-फ़ील | काबा | 21 रमज़ान | 40 हिजरी | कूफ़ा | 11-40 | 29 साल | फ़ातिमा बिन्ते असद |
हसन बिन अली | मुज्तबा | अबु मुहम्मद | 15 रमज़ान | 2 हिजरी | मदीना | 28 सफ़र | 50 हिजरी | मदीना | 40-50 | 10 साल | फ़ातिमा (स.) |
हुसैन बिन अली | सय्यद-उश शोहदा | अबू अब्दिल्लाह | 3 शाबान | 3 हिजरी | 10 मुहर्रम | 61 हिजरी | कर्बला | 50-61 | 10 साल | ||
अली बिन हुसैन | सज्जाद, ज़ैन-उल आबेदीन | अबुल हसन | 5 शाबान | 38 हिजरी | 25 मुहर्रम | 95 हिजरी | मदीना | 61-94 | 35 साल | शहरबानो | |
मुहम्मद बिन अली | बाक़िर अल-उलूम | अबू जाफ़र | 1 रजब | 57 हिजरी | 7 ज़िल-हिज्जा | 114 हिजरी | 94-114 | 19 साल | फ़ातिमा | ||
जाफ़र बिन मुहम्मद | सादिक़ | अबु अब्दिल्लाह | 17 रबी-उल अव्वल | 83 हिजरी | 25 शव्वाल | 148 हिजरी | 114-148 | 34 साल | फ़ातिमा | ||
मूसा बिन जाफ़र | काज़िम | अबुल हसन | 7 सफ़र | 128 हिजरी | 25 रजब | 183 हिजरी | काज़मैन | 148-183 | 35 साल | हमीदा बरबरिया | |
अली बिन मूसा | रज़ा | अबुल हसन | 11 ज़िल क़ाअ्दा | 148 हिजरी | आख़िरे सफ़र | 203 हिजरी | मशहद | 183-203 | 20 साल | तकत्तुम | |
मुहम्मद बिन अली | तक़ी, जवाद | अबू जाफ़र | 10 रजब | 195 हिजरी | आख़िरे ज़िल क़ाअ्दा | 220 हिजरी | काज़मैन | 203-220 | 17 साल | सबीका | |
अली बिन मुहम्मद | हादी, नक़ी | अबुल हसन | 15 ज़िल-हिज्जा | 212 हिजरी | 3 रजब | 254 हिजरी | सामर्रा | 220-254 | 34 साल | समाना मग़रिब्या | |
हसन बिन अली | ज़की, अस्करि | अबु मुहम्मद | 10 रबी-उस सानी | 234 हिजरी | 8 रबी-उल अव्वल | 260 हिजरी | 254-260 | 6 साल | सूसन | ||
हुज्जत बिन हसन | क़ायम | अबुल क़ासिम | 15 शाबान | 255 हिजरी | सामर्रा | नरजिस ख़ातून |
इमाम अली (अ)
- मुख्य लेखः इमाम अली (अ)

अली बिन अबी तालिब, जो इमाम अली (अ) के नाम से प्रसिद्ध हैं और अमीरुल मोमिनीन (अ) के उपनाम से जाने जाते हैं, शिया मुसलमानों के पहले इमाम हैं। वे अबू तालिब और फ़ातिमा बिन्ते असद के बेटे थे। वे तेरह रजब सन् 30 आमुल फ़ील में काबा के अंदर पैदा हुए थे।[३१] वे पहले पुरुष थे जिन्होंने पैग़म्बर मुहम्मद (स) पर ईमान लाया था[३२] और हमेशा पैग़म्बर (स) के साथ रहे। उन्होंने पैग़म्बर (स) की बेटी फ़ातिमा ज़हरा (स) से विवाह किया।[३३]
हालाँकि पैग़म्बर ने अली (अ) को कई अवसरों पर अपने तत्काल उत्तराधिकारी के रूप में पेश किया था, जिसमें ग़दीर का दिन भी शामिल था,[३४] लेकिन उनके स्वर्गवास पश्चात सक़ीफ़ा बनी साएदा के वाक़ेया मे अबू बक्र बिन अबी कुहाफ़ा को मुसलमानों के खलीफा के रूप में निष्ठा का वचन दिया।[३५] 25 साल की सहनशीलता, सशस्त्र विद्रोह से बचने और इस्लामी समाज की समीचीनता और एकता (तीन ख़लीफ़ाओं के शासन की अवधि) का पालन करने के लिए 35 हिजरी में लोगों ने अली (अ) के प्रति निष्ठा की प्रतिज्ञा की और उन्हें खिलाफत के लिए चुना।[३६] अली (अ) की खिलाफत जोकि लगभग चार साल और नौ महीने तक चली, तीन गृह युद्ध हुए: जंगे जमल, जंगे सिफ़्फीन और जंगे नहरवान। इसलिए हज़रत के शासन का अधिकांश समय आंतरिक विवादों को सुलझाने में व्यतीत होता था।[३७]
40 हिजरी के रमज़ान की 19 तारीख़ को मस्जिदे कूफ़ा की मेहराब मे फ़ज्र की नमाज मे इब्ने मुलजिम मुरादी के हाथो इमाम अली (अ) के सर पर जरबत लगी और 21 रमज़ान को शहादत हो गई और आपको नजफ में दफनाया गया।[३८] हज़रत अली (अ) के अनगिनत गुण है।[३९] इब्ने अब्बास के अनुसार हज़रत अली (अ.स.) की प्रशंसा में 300 से अधिक आयतें हैं।[४०] इमाम अली (अ) से यह भी रिवायत (वर्णन) की गई है कि: "अल्लाह ने कोई भी आयत जिसमें 'या अय्युहल्लज़ीन आमनू' (ऐ ईमान लाने वालों) कहा गया हो, नाज़िल नहीं की, मगर यह कि अली (अ) उन मोमिनों के सरदार और उनके अमीर (नेता) हैं।[४१]
इमाम हसन (अ.स.)
- मुख्य लेखः इमाम हसन मुज्तबा अलैहिस सलाम
हसन बिन अली (अ), जो इमाम हसन मुजतबा के नाम से प्रसिद्ध हैं, इमाम अली (अ) और हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (स) के बेटे थे। वे 15 रमज़ान, सन् 3 हिजरी को मदीना में पैदा हुए।[४२]
इमाम हसन (अ) अपने पिता की शहादत के बाद, ईश्वर के हुक्म और अपने पिता की वसीयत के अनुसार इमामत के पद पर आए। उन्होंने क़रीब छह महीने तक मुसलमानों के खलीफ़ा के रूप में समाज के कार्यों का संचालन किया।[४३] इस दौरान मुआविया बिन अबी सुफ़ियान ने इराक़, जो उस समय इमाम हसन (अ) की खिलाफत का केंद्र था, पर हमला किया। उसने इमाम हसन (अ) की सेना के कुछ सिपहसालारों को धोखे में डालकर उन्हें उनके ख़िलाफ़ भड़काया। हालात इस हद तक बिगड़ गए कि इमाम हसन (अ) को मजबूरन सुलह करनी पड़ी और कुछ शर्तों के साथ ख़िलाफ़त को ज़ाहेरी रूप से मुआविया को सौंप दिया।[४४] इन शर्तों में यह भी शामिल था कि मुआविया की मौत के बाद ख़िलाफ़त दोबारा इमाम हसन (अ) को लौटाई जाएगी और उनके अहले बैत और शियों को किसी भी प्रकार की तकलीफ़ नहीं दी जाएगी। इमाम हसन (अ) ने 10 साल तक इमामत की।[४५] वे 28 सफ़र, सन् 50 हिजरी में मुआविया की साज़िश के तहत अपनी पत्नी जअदा द्वारा ज़हर देकर शहीद कर दिए गए और बक़ीअ क़ब्रिस्तान में दफ़्न किए गए।[४६]
इमाम हसन (अ) असहाबे किसा[४७] में से एक हैं, और मुबाहिला की घटना[४८] में उपस्थित थे। वे पैग़म्बर (स) के अहले बैत में से हैं, जिनके बारे में आय ए ततहीर नाज़िल हुई थी।[४९]
इमाम हुसैन (अ.स.)
- मुख्य लेखः इमाम हुसैन अलैहिस सलाम
हुसैन बिन अली (अ), जो अबा अब्दिल्लाह और सय्यद अल शोहदा के नाम से प्रसिद्ध हैं और शिया मुसलमानों के तीसरे इमाम हैं, वे इमाम अली (अ) और हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (स) के दूसरे बेटे थे। वे 3 शाबान, सन् 4 हिजरी में मदीना में पैदा हुए।[५०] इमाम हसन (अ) की शहादत के बाद, पैग़म्बर (स), इमाम अली (अ) की स्पष्ट घोषणा और अपने भाई की वसीयत के अनुसार, इमामत के पद पर फ़ाइज़ हुए।[५१]
इमाम हुसैन (अ.) ने 10 वर्षों तक इमामत की।[५२] उनकी इमामत की अवधि का अधिकांश हिस्सा आख़िरी छह महीने को छोड़कर मुआविया की ख़िलाफ़त के साथ संबद्ध रहा।[५३] 60 हिजरी में मुआविया की मौत हो गई और उसका बेटा यज़ीद उसकी जगह खलीफ़ा बना।[५४] यज़ीद ने मदीना के हाकिम को हुक्म दिया कि वह इमाम हुसैन (अ) से उसके लिए बैअत (निष्ठा की शपथ) ले, और अगर वे इंकार करें तो उनका सिर काटकर शाम भेज दिया जाए। जब मदीना के हाकिम ने यज़ीद की यह मांग इमाम हुसैन (अ) तक पहुँचाई, तो उन्होंने रातों-रात अपने अहले बैत के साथ मक्का की ओर रुख़ किया।[५५] कुछ समय बाद, कूफ़ा के लोगों के निमंत्रण पर, इमाम हुसैन (अ) अपने परिवार और कुछ साथियों के साथ कूफ़ा की ओर रवाना हुए।[५६] लेकिन रास्ते में ही कर्बला के मैदान में यज़ीद की सेना ने उन्हें घेर लिया। 10 मुहर्रम को इमाम हुसैन (अ) और यज़ीद की सेना जिसकी सरदारी उमर बिन सअद कर रहा था के बीच जंग हुई। इस जंग में इमाम हुसैन (अ), उनके अहले बैत और साथी शहीद हो गए, जबकि औरतों, बच्चों और बीमार इमाम सज्जाद (अ) को क़ैद कर लिया गया।[५७]
इमाम हसन (अ) असहाबे किसा[५८] में से एक हैं, और मुबाहिला की घटना[५९] में उपस्थित थे। वे पैग़म्बर (स) के अहले बैत में से हैं, जिनके बारे में आय ए ततहीर नाज़िल हुई थी।[६०]
इमाम सज्जाद (अ)
- मुख्य लेख: इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ)
अली इब्न उल-हुसैन (अ) उपनाम ज़ैनुल आबेदीन और सज्जाद, शियो के चौथे इमाम है और इमाम हुसैन (अ) के पुत्र हैं, जिनकी माता शहर बानो ईरान के राजा यज़्दगिर्द तृतिय की बेटी हैं। आपका जन्म मदीना मे सन् 38 हिजरी को हुआ।[६१]
इमाम सज्जाद (अ) कर्बला की घटना में क़ैद कर लिए गए थे और कर्बला के क़ैदियों के साथ कूफ़ा[६२] और फिर शाम[६३] भेजे गए। उन्होंने शाम में एक ऐसा ख़ुत्बा (भाषण) दिया जिसमें उन्होंने अपना और अपने पूर्वजों का परिचय कराया, जो वहां के लोगों पर गहरा प्रभाव डाल गया।[६४] क़ैद की अवधि पूरी होने के बाद उन्हें मदीना वापस भेज दिया गया। मदीना में वे इबादत में लगे रहते थे और आम लोगों से नहीं मिलते थे, सिवाय कुछ खास शिया साथियों के जैसे कि अबू हमज़ा सोमाली और अबू खालिद काबुली। ये खास शिया उनके पास से जो मआरिफ (धार्मिक ज्ञान और शिक्षाएं) हासिल करते थे, उन्हें शिया समाज में आगे फैलाते थे।[६५]
इमामत के 34 साल बाद[६६] 57 साल की आयु में 95 हिजरी[६७] में चौथे इमाम को वलीद बिन अब्दुल मलिक ने ज़हर देकर शहीद कर दिया[६८] प्रसिद्ध बक़ीअ क़ब्रिस्तान मे उनके चाचा इमाम हसन (अ) के पास दफ़न कर दिया।[६९]
सहीफ़ा सज्जादिया एक ऐसी किताब है जिसमें इमाम सज्जाद (अ) से वर्णित दुआएं शामिल हैं।[७०] सहीफ़ा सज्जादिया की दुआओं का मुख्य विषय तौहीद (एकेश्वरवाद) है, और इनका मूल भाव ईश्वर के दरबार में गिड़गिड़ाना और विनम्रता है।[७१] इमाम सज्जाद (अ) ने इस सहीफ़ा में अख़लाक़ी उसूल (नैतिक सिद्धांत) और सामाजिक-राजनीतिक जीवनशैली को दुआ और मुनाजात के रूप में पेश किया है।[७२] सहीफ़ा को नहजुल बलाग़ा[७३] के बाद शियों की सबसे महत्वपूर्ण और प्रमुख किताब माना गया है। और इसे एक गहन और पूर्ण विश्वदृष्टिकोण (जहान-बिनी) और मक़्तब (शिक्षा प्रणाली) की पूर्ण प्रस्तुति समझा जाता है।[७४]
इमाम मुहम्मद बाक़िर (अ.स.)

- मुख्य लेखः इमाम बाक़िर (अ)
मुहम्मद बिन अली, इमाम मुहम्मद बाक़िर (अ) और शियो के पांचवें इमाम है, इमाम सज्जाद (अ) और इमाम हसन (अ) की बेटी फ़ातिमा [७५] के बेटे है आपका जन्म 57 हिजरी को मदीना मे हुआ। [७६] उन्होने अपने पिता के पश्चात अल्लाह के हुक्म, पैगंबर (स) और अपने से पहले इमामों द्वारा परिचय से इमामत के पद तक पहुंचे।[७७] उमवी ख़लीफ़ा हेशाम के भतीजे इब्राहिम बिन वलीद बिन अब्दुल मलिक द्वारा 114 हिजरी[७८] ने आपको जहर देकर शहीद कर दिया।[७९] इमाम बाक़िर को उनके पिता इमाम सज्जाद के बगल में मदीने के प्रसिद्ध बक़ीअ कब्रिस्तान में दफ़नाया गया।[८०] इमाम बाक़िर (अ) कर्बला में मौजूद थे, उस समय उनकी आयु मात्र चार थी।[८१]
पाँचवें इमाम की इमामत का दौर 18 या 19 साल तक चला,[८२] दूसरी ओर बनी उमय्या के अत्याचारों के कारण, हर दिन क्रांतियाँ और युद्ध हुए, और इन समस्याओं ने खिलाफत व्यवस्था को व्यस्त और अहलेबैत को दूर रखा। [८३] दूसरी ओर कर्बला की घटना और अहले-बैत के उत्पीड़न ने मुसलमानों को उस पर मोहित कर दिया और उसके लिए इस्लामी सच्चाई और अहले-बैत की शिक्षाओं को फैलाने के अवसर पैदा किए। जो पहले वाले इमामों में से किसी के लिए संभव नहीं थे, इसलिए इमाम बाक़िर (अ) से अनगिनत हदीसें आई है।[८४] शेख मुफ़ीद के अनुसार, धार्मिक शिक्षा में इमाम बाक़िर की हदीस इतनी अधिक है कि इमाम हसन (अ) और इमाम हुसैन (अ) के बच्चों में से किसी ने इतनी मात्रा मे हदीसे नही छोड़ी।[८५]
इमाम जाफ़र सादिक़ (अ)
- मुख्य लेखः इमाम जाफ़र सादिक़ (अ)
जाफ़र बिन मुहम्मद, इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) और शियो के छठे इमाम है। इमाम बाक़िर (अ) और क़ासिम बिन मुहम्मद बिन अबी बक्र की बेटी उम्मे फ़रवा के बेटे है। आपका जन्म इस्लामी कैलेंडर के तीसरे महीने रबी उल-अव्वल की 17 तारीख 83 हिजरी को मदीना में हुआ। [८६] 148 [८७] हिजरी मे अब्बासी ख़लीफ़ा मंसूर द्वारा आपको ज़हर देकर शहीद कर दिया गया [८८] और आपको मदीना के प्रसिद्द बक़ीअ क़ब्रिस्तान मे दफ़नाया गया।[८९]
इमाम सादिक़ ने अपने 34 साल की इमामत [९०] के दौरान ख़िलाफ़त ए उमय्या की कमजोरी का लाभ उठाते हुए इस्लामी शिक्षाओं के प्रकाशन के लिए एक उपयुक्त मंच प्राप्त किया, उन्होंने धार्मिक शिक्षाओं को प्रकाशित करते हुए विभिन्न विषयो मे विशेषज्ञ छात्रो को प्रशिक्षित किए।[९१] उनके छात्रों और कथाकारों (मोहद्देसीन) की संख्या 4000 होने का अनुमान है।[९२] ज़ोरारा, मुहम्मद बिन मुस्लिम, मोमिन ए ताक़, हेशाम बिन हकम, अबान बिन तग़लिब, हिशाम बिन सालिम, जाबिर बिन हय्यान[९३] और सुन्नियों मे सुफ़ियान सूरी, अबू हनीफ़ा (हनफ़ी संप्रदाय के प्रमुख), मालेकी संप्रदाय के प्रमुख मालिक बिन अनस, छठे इमाम के छात्रो में से थे।[९४]
शेख़ मुफ़ीद के अनुसार अधिकांश हदीसे इमाम सादिक़ (अ) से आई है।[९५] इसी कारण वंश शिया संप्रदाय को जाफ़री मज़हब कहा जाता है।[९६]
इमाम मूसा काज़िम (अ)

- मुख्य लेखः इमाम मूसा काज़िम (अ)
मूसा बिन जाफ़र, इमाम मूसा काज़िम (अ), आपका उपनाम काज़िम और बाबुल हवाइज शियो के सातवें इमाम है। इमाम सादिक़ (अ) और हमीदा के बेटे आपका जन्म मक्का और मदीना के बीच के क्षेत्र अबूवा मे 128 हिजरी में हुआ।[९७]
इमाम काज़िम (अ) अपने पिता इमाम सादिक़ (अ) के बाद उनकी वसीयत के अनुसार इमामत के पद पर पहुंचे[९८] सातवें इमाम[९९] की 35 साल की इमामत की अवधि मे मंसूर, हादी, महदी और हारून जैसे अब्बासी खलीफ़ा रहे।[१००] यह समय अब्बासी खलीफाओ के उरूज का समय था जोकि इमाम काज़िम (अ) और शियों के लिए एक कठिन समय था। इसलिए उन्होंने उस समय की सरकार के खिलाफ तक़य्या इख्तियार करते हुए शियाओं को भी तक़य्या करने का आदेश दिया।[१०१]
सन् 179 हिजरी की 20 शव्वाल को जब हारून हज के लिए मक्का गया तो उसने इमाम काज़िम को मदीना मे गिरफ्तार करके बसरा और बसरा से बग़दाद स्थानांतरित करने का आदेश दिया।[१०२] 183 हिजरी में सिंदी बिन शाहिक द्वारा बग़दाद जेल में जहर देकर शहीद कर दिया गया और मक़ाबिरे कुरैश[१०३] नामक स्थान पर, जो अब काज़मैन में है[१०४] दफ़नाया गया।
इमाम अली रज़ा (अ.स.)

- मुख्य लेखः इमाम अली रज़ा (अ)
अली बिन मूसा बिन जाफ़र, इमाम रज़ा (अ) के नाम से मशहूर शियों के आठवें इमाम है, इमाम मूसा काज़िम (अ) और नज्मा ख़ातून के बेटे मदीना में 148 हिजरी में पैदा हुए और 203 हिजरी में 55 साल की उम्र में तूस (मशहद) में शहादत हुई।[१०५]
अपने पिता के बाद इमाम रज़ा (अ) अल्लाह के हुक्म और इमाम काज़िम (अ) की वसीयत से इमामत के पद पर पहुंचे और आपकी इमामत की अवधि 20 साल (183-203) थी। आपकी इमामत मे हारून और उसके दो बेटे अमीन और मामून खलीफ़ा थे।[१०६]
हारून के पश्चात उसका बेटा मामून तख़्त ए ख़िलाफ़त बैठा।[१०७] अपनी खिलाफत को वैध बनाने के लिए उसने इमाम रज़ा (अ) की गतिविधियों को नियंत्रित करने और इमामत की महिमा और गरिमा को कम करने के लिए इमाम को अपना वली अहद नियुक्त करने का फैसला किया।[१०८] इसीलिए उसने 201 हिजरी मे इमाम को मदीने से मर्व बुलाया।[१०९] मामून ने पहले ख़िलाफ़त उसके बाद वली अहदी को इमाम के सामने पेश किया जिसे इमाम ने स्वीकार नही किया अंतः मामून ने इमाम को वली अहदी स्वीकार करने के लिए मजबूर किया। परंतु इमाम ने इस शर्त के साथ - कि सरकारी कार्यो मे, किसी को पद से निलंबित करने या किसी को पद पर नियुक्त करने से संबंधित कोई हस्तक्षेप नही करेगे- वली अहदी को स्वीकार किया।[११०]कुछ समय पश्चात शियों की तीव्र प्रगति को देखकर अपनी ख़िलाफ़त को बचाने के लिए इमाम रज़ा (अ) को ज़हर देकर शहीद कर दिया।[१११]
प्रसिद्ध हदीस सिलसिलातुज़ ज़हब निशापुर से मर्व की ओर जाते हुए इमाम रज़ा (अ.स.) से नक़ल हुई है।[११२] मर्व में इमाम रज़ा (अ) की उपस्थिति के दौरान मामून ने उनके और अन्य धर्मों और संप्रदायों के बुजुर्गों के बीच वाद-विवाद सत्र (मुनाज़रे) आयोजित किए जो इमाम के इल्म और दानिश मे श्रेष्ठता के कारक बने।[११३]
इमाम मुहम्मद तक़ी (अ.स.)

- मुख्य लेखः इमाम मुहम्मद तक़ी (अ)
मुहम्मद बिन अली, इमाम जवाद और इमाम मुहम्मद तक़ी (अ) शियो के नौवें इमाम है। इमाम रज़ा और सबीका नौबिया के बेटे मदीना मे 195 हिजरी के पवित्र रमज़ान मे पैदा हुए।[११४] और 220 हिजरी को मोअतसिम अब्बासी के आदेश से मामून की बेटी और अपकी पत्नी उम्मुल फ़ज़्ल ने आपको ज़हर देकर बगदाद मे आपको शहीद कर दिया[११५]अपने दादा शियो के सातवें इमाम, इमाम काज़िम (अ) के किनारे आपको दफ़न किया गया।[११६]
इमाम जवाद (अ) मात्र आठ साल की उम्र में[११७] अपने पिता के बाद अल्लाह के हुक्म और अपने पूर्वजो की वसीयत के अनुसार इमामत के पद पर पहुंचे।[११८] आपकी कम उम्र मे इमाम होने पर कई शियाओं ने शक किया। कुछ ने तो इमाम रज़ा के भाई अब्दुल्लाह बिन मूसा को इमाम कहा, और अन्य लोग वाक़्फ़िया संप्रदाय में शामिल हो गए। लेकिन उनमें से अधिकांश ने नस्से इमामत और इल्मी परीक्षा लेकर इमाम जवाद (अ.स.) की इमामत को स्वीकार कर लिया।[११९]आपकी इमामत के 17 साल[१२०] की अवधि मे मामून और मोअतसिम ख़लीफ़ा थे।[१२१]
मामून ने 204 हिजरी मे आप पर और आपके शियाओ पर नज़र रखने के लिए इमाम जवाद को बगदाद - जो उस समय खिलाफत की राजधानी थी - बुलाया और अपनी बेटी उम्मुल फ़ज़्ल से शादी करा दी।[१२२] कुछ समय पश्चात इमाम मदीना लौट आए और मामून के शासनकाल के अंत तक मदीना में रहे। मामून की मृत्यु पश्चात मोअतसिम ने खिलाफत की बागडोर संभाली और 220 हिजरी में इमाम को बगदाद बुलाया और निगरानी में रखा, और अंत में मोअतसिम के उकसाने पर आपकी पत्नि ने जहर दिया गया और शहीद कर दिया गया।[१२३]
इमाम अली नक़ी (अ)

- मुख्य लेखः इमाम अली नक़ी (अ)
अली बिन मुहम्मद, इमाम हादी या इमाम अली नक़ी (अ) शियो के दसवें इमाम है। इमाम मुहम्मद तक़ी और समाना मग़रिब्या के बेटे मदीना के पास सुरया नामक क्षेत्र मे 212 हिजरी मे पैदा[१२४] और 254 हिजरी इराक़ के सामर्रा शहर[१२५]मे अब्बासी ख़लीफ़ा मोअतज़ बिल्लाह[१२६] के आदेश से ज़हर देकर शहीद किया गया।
इमाम अली नक़ी (अ) ने (220 -254 हिजरी) 33 साल तक[१२७] शियों की इमामत की और इस 33 साल की अवधि मे मोअतसिम, वासिक़, मुतवक्किल, मुंतसिर, मुस्तईन और मोअतज़ जैसे छः अब्बासी खलीफा आपके समकालीन थे।[१२८]
मुतवक्किल ने 233 हिजरी में इमाम हादी (अ)[१२९] को निगरानी में रखने के लिए उन्हें मदीना से सामर्रा बुलाया[१३०]- जो उस समय खिलाफ़त का केंद्र था-[१३१] आप (अ) ने अपना बाकी जीवन वही पर व्यतीत किया।[१३२]मुतवक्किल की मृत्यु पश्चात ख़िलाफत की बागडोर क्रमशः मुंतसिर, मुस्तईन और मुअतज़ अपने हाथो मे घुमाते रहे। इमाम हादी (अ) को मोअतज़ के दौराने खिलाफ़त मे जहर देकर शहीद कर दिया गया।[१३३]
इमाम अली नक़ी (अ) शियों को दुआ और ज़ियारतो के माध्यम से शिक्षित करते थे।[१३४]महत्वपूर्ण ज़ियारत ज़ियारत ए जामेआ ए कबीरा इमाम हादी (अ.स.) से नक़ल हुई है।[१३५]
इमाम हसन अस्करी (अ)

- मुख्य लेखः इमाम हसन अस्करी (अ)
हसन बिन अली, इमाम हसन अस्करी (अ) शियो के ग्यारहवें इमाम है। इमाम अली नक़ी (अ) और हदीस के बेटे मदीना मे 232 हिजरी मे पैदा[१३६]और अब्बासी ख़लीफा मोअतमद के षडयंत्र से 260 हिजरी मे ज़हर से शहीद हुए।[१३७]आपको आपके पिता की क़ब्र के किनारे सामर्रा मे घर मे दफ़नाया गया।[१३८]
ग्यारहवें इमाम अपने पिता के विवरण अनुसार, दसवे इमाम पश्चात इमामत के पद पर पहुंचे अपनी छः साल की इमामत की अवधि[१३९] मे मोअतज़, मोहतदा और मोअतमद अब्बासी खलीफा आपके समकालीन थे।[१४०] [136] इमाम अब्बासी ख़लीफ़ाओ की देख-रेख मे होने के बावजूद कई बार इमाम को क़ैद किया गया।[१४१]कुछ इतिहासकारो के अनुसार इमाम की सबसे लंबी कैद सामर्रा मे ख़लीफ़ा द्वारा कारवास था।[१४२] इसीलिए इमाम तक़य्या का मुज़ाहेरा करते थे।[१४३]अपने पूर्वजो की भांति वकालत के संगठन के माध्यम से शियों से सूचित रहते थे।[१४४] बताया जाता है कि खलीफाओं की ओर से दबाव और सख्ती का कारण एक ओर शियों की संख्या और शक्ति में वृद्धि थी और दूसरी ओर ऐसे साक्ष मौजूद थे जो ग्यारहवे इमाम के लिए एक बच्चे के अस्तित्व की सूचना देते थे, जिसे महदी ए मौऊद के नाम से जाना जाता था।[१४५]
इमाम असकरी (अ) और उनके पिता को, सामर्रा शहर में रहने के कारण, असकरीयैन के नाम से जाना जाता है।[१४६]
इमाम महदी (अ)
- मुख्य लेखः इमाम महदी (अ)
मुहम्मद बिन हसन, इमाम महदी और इमाम ज़माना (अ.त.) शियो के बारहवे और अंतिम इमाम है। इमाम हसन असकरी और नरजिस ख़ातुन के पुत्र 15 शाबान 255 हिजरी को समर्रा में पैदा हुए।[१४७]
इमाम महदी पांच साल की उम्र में इमामत पर पहुंचे।[१४८]पैगंबर (स.) और सभी इमामों ने उनके इमाम होने की पुष्टि की है।[१४९]इमाम महदी अपने पिता की शहादत के समय 260 हिजरी तक लोगों से गुप्त थे और कुछ विशेष शिया लोगो के अतिरिक्त उनसे कोई मिल नही सकता था।[१५०]अपने पिता की शहादत के बाद अल्लाह के हुक्म से जनता की आखो से गायब हो गए। उन्होंने लगभग सत्तर साल ग़ैबत ए सुग़रा मे बिताए और इस अवधि वे चार विशेष प्रतिनियुक्तियों के माध्यम से शियों के संपर्क में थे; परंतु 329 हिजरी में ग़ैबत ए कुबरा की शुरुआत के साथ शियों और इमाम के बीच संबंध विशेष प्रतिनियुक्तियों द्वारा समाप्त कर दिया गया।[१५१]
हदीसों के अनुसार ग़ैबत के दौरान शियों को उस समय के इमाम के आने की प्रतीक्षा करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है और इसे सबसे अच्छे कर्मों में से माना जाता है।[१५२] हदीसों के अनुसार[१५३] इमाम के ज़हूर पश्चात इस्लामी समाज न्याय से भर जाएगा।[१५४] बहुत सी हदीसों मे इमाम के ज़हूर की निशानीयो का उल्लेख किया गया है।[१५५]
अहले सुन्नत के बीच शिया इमामों की स्थिचि
अहले सुन्नत शिया के बारह इमामों को पैगंबर (स) का बिला फ़ासला उत्तराधिकारी के रूप में स्वीकार नहीं करते हैं,[१५६] लेकिन उनसे मुहब्बत करते है[१५७] पैगंबर (स) के कथन के आधार पर जो उनके स्रोतों में बयान किया गया है। रिश्तेदार जो आय ए मवद्दत के अनुसार[१५८] उनसे मवद्दत अनिवार्य है, अली (अ) और फातिमा (स) और उनके दो बच्चे है।"[१५९] 6 टी चंद्र शताब्दी हिजरी के सुन्नी मुफ़स्सिर और मुताकल्लिम फख़रूद्दीन राज़ी ने आय ए मुवद्दत का हवाला देते हुए नमाज़ के तशह्हुद मे सलवात और पैगंबर (स) की सीरत मे अली (अ) और फ़ातिमा (स) तथा उनके बच्चों से प्यार और दोस्ती को अनिवार्य माना है।[१६०]
कुछ सुन्नी विद्वान शिया इमामों के दरगाहों पर जाकर ज़ियारत करते और उनसे तवस्सुल करते थे। तीसरी चंद्र शताब्दी हिजरी मे सुन्नी विद्वान अबू अली ख़ल्लाल ने कहा कि जब भी मुझे कोई समस्या होती, मैं मूसा बिन जाफ़र की कब्र पर जाता और उनसे तवस्सुल करता, और मेरी समस्या हल हो जाती।[१६१] तीसरी चौथी हिजरी के सुन्नी धर्मशास्त्री, मुफस्सिर, मुहद्दिस अबू बक्र मुहम्मद बिन ख़ुजैमा से नकल हुआ है कई बार इमाम रज़ा (अ) की ज़ियारत को गया तो मेरे तवस्सुल को देखकर दूसरे दंग रह जाते[१६२] एक और दूसरे सुन्नी मुहद्दिस इब्ने हब्बान जिनका संबंध भी तीसरी और चौथी शताब्दी से है उन्होंने कहा कि जब मैं तूस में था और मुझे कोई समस्या होती, तो मैं अली बिन मूसा अल-रज़ा (अ की ज़ियारत को जाता और दुआ करता, और मेरी दुआ कबूल होती और मेरी समस्या हल हो जाती थी[१६३]
समकालीन शिया धर्मशास्त्री आयतुल्लाहिल उज़्मा जाफ़र सुबहानी के अनुसार, कई सुन्नी विद्वानों ने शिया इमामों (अ) के धार्मिक और वैज्ञानिक अधिकार को स्वीकार कर लिया है।[१६४] उदाहरण स्वरूप हनफ़ी संप्रदाय के संस्थापक अबू हनीफ़ा से नक़ल किया गया है कि मैंने जाफ़र बिन मुहम्मद (अ) से बड़ा कोई फ़क़ीह नही देखा।[१६५] यही वाक्य पहली और दूसरी चंद्र शताब्दी हिजरी के ताबेईन सुन्नी टीकाकार, मुहद्दिस मुहम्मद बिन मुस्लिम बिन शाहब ज़ोहरी ने इमाम सज्जाद (अ) के बारे मे कहा है।[१६६]
किताबो का परिचय
- मुख्य लेख: शिया इमामों के बारे में किताबों की सूची
शिया इमामों की जीवनी और उनके फ़ज़ाइलो (गुणो) के बारे में शियों और सुन्नियों द्वारा विभिन्न किताबें लिखी गई हैं।
आइम्मा के बारे मे शियों की किताबे
इमामों और उनके फ़ज़ाइलो के बारे में शिया विद्वानों की निम्नलिखित किताबे उल्लेखनीय है:
- दला-ए-लुल इमामा यह किताब अरबी भाषा मे मुहम्मद बिन जुरैर तबरी सग़ीर (मृत्यु 310 हिजरी) द्वारा लिखी गई है। इस किताब मे लेखन ने जनाब फ़ातेमा ज़हरा (अ) के फ़जाइल और उनके मोज्ज़ात का उल्लेख किया है।
- अल इरशाद फ़ी मारफ़ते हुजाजिल्लाहे अलल एबाद शेख मुफ़ीद (मृत्यु 410 हिजरी) द्वारा अरबी भाषा मे कलाम और इतिहास के विषय मे लिखी गई है। इस किताब मे आइम्मा (अ) की जीवनी औक उनके फज़ाइल वाली रिवायतो का उल्लेख है।
- मनाक़िबो आले अबी तालिब इब्ने शहर आशोब माज़नदरानी द्वारा चौदह मासूमीन के फज़ाइल पर आधारित अरबी भाषा मे किताब है।
- आलाम उल वरा बे आलामिल होदा, यह एक अरबी भाषा में लिखी गई किताब है, जिसे फ़ज़्ल बिन हसन तबरसी (मृत्यु 548 हिजरी क़मरी) ने लिखा है। यह किताब पैग़म्बर इस्लाम (स) और मासूम इमामों (अ. की सीरत और जीवन पर आधारित है।
- कश्फ़ उल ग़ुम्मा फी मारेफ़तिल आइम्मा (अ), यह भी एक अरबी भाषा में लिखी गई किताब है, जिसमें चौदह मासूमों (अ) की जीवनी, फ़ज़ीलतों और चमत्कारों का उल्लेख किया गया है। इसे अली बिन ईसा अरबली (मृत्यु 692 हिजरी क़मरी) ने लिखा है।
- रौज़तुल वाएज़ीन व बसीरतुल मुत्तएज़ीन, यह किताब फ़त्ताल नीशाबूरी (मृत्यु 508 हिजरी क़मरी) ने लिखी है। इसमें पैग़म्बर (स) और अहले बैत (अ) के जीवन और इतिहास का वर्णन है। इस किताब का फ़ारसी में अनुवाद महमूद मेहदी दामगानी ने किया है।
- जलाउल ऊयून, यह एक फ़ारसी भाषा में लिखी गई किताब है, जिसे मुहम्मद बाकिर मजलिसी (1037–1110 हिजरी क़मरी) ने लिखा। यह किताब चौदह मासूमों (अ) की जीवन-गाथा पर आधारित है और इसमें 14 बाब (अध्याय) हैं।
- मुन्तह़ल आमाल फी तवारिख़िन नबी वल आल, यह किताब शेख़ अब्बास क़ुमी (1294–1359 हिजरी क़मरी) की रचना है। इसमें बहुत विस्तार से चौदह मासूमों (अ) के जीवन का वर्णन किया गया है।
आइम्मा के बारे मे सुन्नीयो की किताबे
इमामों और उनके फ़ज़ाइलो के बारे में सुन्नी विद्वानों की निम्नलिखित किताबे उल्लेखनीय है:
- मतालिब अस्सऊल फ़ी मनाक़िबे आले रसूल मुहम्मद बिन तल्हा शाफेई ने इस किताब को अरबी भाषा मे 12 अध्याय पर आधारित 12 इमामो की जीवनी का उल्लेख किया है।[१६७]
- तज़्केरतुल ख़वास मिनल आइम्मते फ़ी ज़िक्रे ख़साएसिल आइम्मा हनफी संप्रदाय के विद्वान और इतिहासकार युसुफ बिन कज़ाऊग़ली प्रसिद्ध सिब्ते बिन जौज़ी ने बारह इमामो की जीवनी और उनके फज़ाइल को 12 अध्याय मे ज़िक्र किया है।[१६८]
- अल फ़ुसूलुल मोहिम्मा फ़ी मारेफ़तिल आइम्मा नवी शताब्दी के सुन्नी विद्वान इब्ने सब्बाग़ मालेकी (मृत्यु 855 हिजरी) ने बारह इमामो की जीवनी और फ़ज़ाइल का उल्लेख किया है इस किताब से शिया और सुन्नी विद्वानो ने बहुत सारे हवाले बयान किए है।[१६९]
- अल आइम्मतिल इस्ना अशर या अश्शज़ारातुज़ ज़हबिया दमिश्क के रहने वाले हनफ़ी संप्रदाय के सुन्नी विद्वान शम्सुद्दीन इब्ने तूलून (मृत्यु 953 हिजरी) द्वारा लिखित।[१७०]
- अलइत्तेहाफ बेहुब्बिल अशराफ़ मिस्र के रहने वाले शाफ़ेई संप्रदाय के अनुयायी सुन्नी विद्वान जमालुद्दीन शबरावी (मृत्यु 1092-1172 हिजरी) द्वारा पैगंबर (स) के परिवार और आइम्मा (अ) की जीवनी पर आधारित है।[१७१]
- 'नूरुल अबसार फ़ी मनाक़िबे आले बैतिन नबी अल मुख्तार 13 शताब्दी के सुन्नी विद्वान मोमिन शबलंजी ने अपनी किताब मे पैगंबर (स.), शियो के इमाम और अहले सुन्नत के खलीफ़ाओ की जीवनी का उल्लेख किया है।[१७२]
- यनाबी उल मवद्दा लेज़विल क़ुर्बा अहले-बैत पैगंबर (स) की जीवनी, फ़ज़ाइल से विशिष्ट किताब हनफी संप्रदाय के अनुयायी सुन्नी विद्वान सुलेमान बिन इब्राहीम कंदूज़ी (मृत्यु 1294 हिजरी) द्वारा लिखित।[१७३]
संबंधित लेख
फ़ुटनोट
- ↑ मुहम्मदी, शरह कश्फ़ उल मुराद, 1378 शम्सी, पेज 403; मूसवी ज़िन्जानी, अक़ाएद उल-इमामिया अल-इस्ना अशारिया, 1413 हिजरी, भाग 3, पेज 178
- ↑ मुहम्मदी, शरह कश्फ़ उल मुराद, 1378 शम्सी, पेज 425; मूसवी ज़िन्जानी, अक़ाएद उल-इमामिया अल-इस्ना अशारिया, 1413 हिजरी, भाग 3, पेज 181-182
- ↑ देखे, मकारिम शिराज़ी, प्याम ए-क़ुरआन, 1386 शम्सी, भाग 9, पेज 170-172 और 369-370
- ↑ देखे, हकीम, अल-इमामतो वल अहले-बैत (अ.स.), 1424 हिजरी, पेज 305 व 338
- ↑ सुबहानी, मनशूर-ए अक़ाइद-ए इमामिया, 1376 शम्सी, पेज 165-166
- ↑ अल्लामा हिल्ली, कश्फ़ उल-मुराद, 1382 शम्सी, पेज 184; फ़य्याज़ लाहिजी, सरसाया ए ईमान दर उसूले एतेक़ादात, 1372 शम्सी, पेज 114-115
- ↑ सुदूक़, अल-एतेक़ादात, 1414 हिजरी, पेज 93; मुफीद, अवाएलुल मक़ालात, 1413 हिजरी, पेज 70-71; मजलिसी, बिहार उल-अनवार, 1403 हिजरी, भाग 26, पेज 297; शब्बर, हक़्क़ उल-यक़ीन, 1424 हिजरी, पेज 149
- ↑ मजलिसी, बिहार उल-अनवार, 1403 हिजरी, भाग 26, पेज 297; शब्बर, हक़्क़ उल-यक़ीन, 1424 हिजरी, पेज 149
- ↑ कुलैनी, अल-काफ़ी, 1407 हिजरी, भाग 1, पेज 255-256, 260-261; सुबहानी, इल्मे ग़ैब, 1386 शम्सी, पेज 63-79
- ↑ हम्मूद, अल-फ़वाएद उल-बहईया, 1421 हिजरी, भाग 5, पेज 38
- ↑ ख़ूई, मिसबाह उल-फ़ुक़ाहा, 1417 हिजरी, भाग 5, पेज 38; साफ़ी, गुलपाएगानी, विलायते तकवीनी वा विलायते तशरीई, 1392 शम्सी, पेज 133, 135 और 141
- ↑ आमुली, अल-विलाया तुत तकवीनिया वत तशरीईया, 1428 हिजरी, पेज 60-63; मोमिन, विलायते वलीइल मासूम, पेज 100-118; हुसैनी, मीलानी, इस्बाते विलायातुल आम्मा, 1438 हिजरी, पेज 272-273, 311-312
- ↑ तूसी, अल-तिबयान, दार ए एहयाइल तुरास अल-अरबी, भाग 1, पेज 214
- ↑ सफ़्फ़ार, बसाए रुल दरजात, 1404 हिजरी, पेज 412-414
- ↑ सफ़्फ़ार, बसाए रुल दरजात, 1404 हिजरी, पेज 297
- ↑ सुबहानी, सीमाए अकाइद ए शिया, 1386 शम्सी, पेज 231-235; सुबहानी, मनशूरे अक़ाइद ए इमामिया, 1376 शम्सी, पेज 157-158; मूसवी, ज़नजानी, अक़ाइद उल-इमामिया अल-इस्ना अश्रिया, 1413 हिजरी, भाग 3, पेज 180-181
- ↑ सुबहानी, मनशूरे अक़ाइद ए- इमामिया, 1376 शम्सी, पेज 149-150
- ↑ तूसी, अल-तिबयान, दार ए एहयाइल तुरास अल-अरबी, भाग 3, पेज 236; मुहम्मदी, शरह ए कश्फ़ उल-मुराद, 1378 शम्सी, पेज 415
- ↑ सुदूक़, अल-ख़िसाल, 1362 शम्सी, भाग 2, पेज 528; तबरसी, ऐअलाम उल-वर्आ, 1390 हिजरी, पेज 367; इब्ने शहर आशोब, मनाक़िब ए आले अबी तालिब 1379 शम्सी, भाग 2, पेज 209; मजलिसी, बिहार उल अनवार, 1403 हिजरी, भाग 27, पेज 209 व 216
- ↑ मजलिसी, बिहार उल अनवार, 1403 हिजरी, भाग 27, पेज 207-217
- ↑ सदूक़, मन ला याहज़ेरोह उल-फ़क़ीह, 1413 हिजरी, भाग 2, पेज 585; तबरसी, एअलाम उल वर्आ, 1390 शम्सी, पेज 367
- ↑ तबरसी, एअलाम उल वर्आ, 1390 शम्सी, 367; इब्ने शहर आशोब, मनाक़िब आले अबी तालिब, 1379 शम्सी, भाग 2, पेज 209
- ↑ हकीम, अल-इमामा वल अहले-बैत (अ.स.), 1424 हिजरी, पेज 305-351; मुहम्मदी, कश्फ़ उल-मुराद, 1378 शम्सी, पेज 495-496
- ↑ सूरा ए निसा, आयत 59
- ↑ ख़ज़्ज़ाज़े राज़ी, किफ़ाय तुल असर, 1401 हिजरी, पेज 53-55; सुदूक, कमालुद्दीन, 1395 शम्सी, भाग 1, पेज 253-254
- ↑ देखे बुखारी, सहीए बुख़ारी, भाग 8, पेज 127; मुस्लिम नेशापुरी, सहीए मुस्लिम, दार उल फ़िक्र, भाग 6, पेज 3-4; अहमद बिन हम्बल, मुस्नदे अहमद, दार ए सादिर, भाग 5, पेज 90, 93, 98, 99, 100 और 106; तिरमिज़ी, सुन्न तिरमिज़ी, भाग 3, पेज 340; सजिस्तानी, सन्न इब्ने दाऊद, भाग 2, पेज 309
- ↑ देखे हाकिमे नेशापुरी, अल-मुस्तदरक अलस्सहीहैन, भाग 4, पेज 501 नोअमानी, किताब उल-ग़ैय्बा, पेज 74-75
- ↑ क़ंदूज़ी, यनाबी उल- मवद्दा लेज़िल क़ुरबा, दार उल-उस्वा, भाग3, पेज 292-293
- ↑ देखे मुहम्मदी, शरह कश्फ़ उल-मुराद, पेज 427-441; मूसवी ज़ंजानी, अकाएद उल-इमामिया अल इस्ना अश्रिया, भाग 3, पेज 7-8
- ↑ देखे मुहम्मदी, शरह कश्फ़ उल-मुराद, पेज 427-441; मूसवी ज़ंजानी, अकाएद उल-इमामिया अल इस्ना अश्रिया, भाग 3, पेज 7-15
- ↑ मुफ़ीद, अल इरशाद, 1413 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 5, तबरसी, आलाम उल वरा, 1390 हिजरी, पृष्ठ 1543।
- ↑ मुफ़ीद अर-इरशाद, भाग 1, पेज 6
- ↑ तबातबाई, शिया दर इस्लाम, 1383 शम्सी, पृष्ठ 200।
- ↑ मुहम्मदी, शरहे कश्फ़ुल मुराद, पेज 427-436
- ↑ तबरसी, आलाम उल-वरा, पेज 138-139
- ↑ तबातबाई, शिया दर इस्लाम, पेज 201
- ↑ तबातबाई, शिया दर इस्लाम, पेज 201-202
- ↑ मुफ़ीद, अल-इरशाद, भाग 1, पेज 9; तबरसी, आलाम उल-वरा, पेज 154
- ↑ मुफ़ीद, अल-इरशाद, भाग 1, पेज 29-66; तबरसी, आलाम उल-वरा, पेज 182; हाकिम, हसकानी, शवाहिद उत-तंज़ील, भाग 1, पेज 21-31
- ↑ क़नदूज़ी, यनाबी उल-मवद्दत, दार उल-उस्वा, भाग 1, पेज 377
- ↑ हाकिम हस्कानी, शवाहिद अल तंज़ील, 1411 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 63-71।
- ↑ मुफ़ीद. अल इरशाद, 1413 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 5, तबरसी, आलाम उल वरा, 1390 हिजरी, पृष्ठ 205।
- ↑ तबरसी, आलाम उल वरा, 1390 हिजरी क़मरी, पृष्ठ 205; तबातबाई, शिया दर इस्लाम, 1383 शम्सी, पृष्ठ 205।
- ↑ तबातबाई, शिया दर इस्लाम, 1383 शम्सी, पृष्ठ 205-206।
- ↑ तबातबाई, शिया दर इस्लाम, 1383 शम्सी, पृष्ठ 206।
- ↑ तबरसी, आलाम उल वरा, 1390 हिजरी क़मरी, पृष्ठ 206।
- ↑ कुलैनी, अल-काफ़ी, 1407 हिजरी क़मरी, भाग 1, पृष्ठ 287; हाकिम हसकानी, शवाहिद अल तंज़ील, 1411 हिजरी क़मरी, भाग 2, पृष्ठ 38 और 52-55।
- ↑ मुफ़ीद, अल-इरशाद, 1413 हिजरी क़मरी, भाग 1, पृष्ठ 168।
- ↑ कुलैनी, अल-काफ़ी, 1407 हिजरी क़मरी, भाग 1, पृष्ठ 287; हाकिम हसकानी, शवाहिद अल तंज़ील, 1411 हिजरी क़मरी, भाग 2, पृष्ठ 29-139।
- ↑ तबरसी, आलाम अल वरा, 1390 शम्सी, पृष्ठ 214 और 215।
- ↑ मुफ़ीद, अल इरशाद, 1413 हिजरी, भाग 2, पृष्ठ 27।
- ↑ तबरसी, आलाम उल वरा, 1390 हिजरी क़मरी, पृष्ठ 215।
- ↑ तबातबाई, शिया दर इस्लाम, 1383 शम्सी, पृष्ठ 208।
- ↑ मुफ़ीद, अल-इरशाद, 1413 हिजरी क़मरी, भाग 2, पृष्ठ 32; तबरसी, आलाम उल वरा, 1390 हिजरी क़मरी, पृष्ठ 222।
- ↑ मूसा ज़ंजानी, अक़ाएदुल इमामिया अल इसना अशरिय्या, 1413 हिजरी क़मरी, भाग 1, पृष्ठ 148 व 149।
- ↑ तबातबाई, शिया दर इस्लाम, 1383 शम्सी, पृष्ठ 209 व 210।
- ↑ मूसा ज़ंजानी, अक़ाएदुल इमामिया अल इसना अशरिय्या, 1413 हिजरी क़मरी, भाग 1, पृष्ठ 150।
- ↑ कुलैनी, अल-काफ़ी, 1407 हिजरी क़मरी, भाग 1, पृष्ठ 287; हाकिम हसकानी, शवाहिद अल तंज़ील, 1411 हिजरी क़मरी, भाग 2, पृष्ठ 38 और 52-55।
- ↑ मुफ़ीद, अल-इरशाद, 1413 हिजरी क़मरी, भाग 1, पृष्ठ 168।
- ↑ कुलैनी, अल-काफ़ी, 1407 हिजरी क़मरी, भाग 1, पृष्ठ 287; हाकिम हसकानी, शवाहिद अल तंज़ील, 1411 हिजरी क़मरी, भाग 2, पृष्ठ 29-139।
- ↑ मुफ़ीद, अल-इरशाद, भाग 2, पेज 137 तबरसी, आलाम उल-वरा, पेज 256 इब्ने शहर आशोब, मनाक़िब ए आले अबी तालिब, भाग 4, पेज 175-176
- ↑ मुफ़ीद, अल-इरशाद, भाग 2, पेज 114
- ↑ मुफ़ीद, अल-इरशाद, भाग 2, पेज 119
- ↑ मजलिसी, बिहार उल-अनवार, भाग 45, पेज 138-139
- ↑ तबातबाई, शिया दर इस्लाम, पेज 216
- ↑ मुफ़ीद, अल-इरशाद, भाग 2, पेज 138; तबरसी, आलाम उल-वरा, पेज 256; इब्ने शहर आशोब, मनाक़िब ए आले अबी तालिब, भाग 4, पेज 175
- ↑ तबरसी, आलाम उल-वरा, पेज 256; मुफ़ीद, अल-इरशाद, भाग 2, पेज 137-138
- ↑ इब्ने शहर आशोब, मनाक़िब ए आले अबी तालिब, भाग 4, पेज 176
- ↑ मुफ़ीद, अल-इरशाद, भाग 2, पेज 138; तबरसी, आलाम उल-वरा, पेज 256; इब्ने शहर आशोब, मनाक़िब ए आले अबी तालिब, भाग 4, पेज 176
- ↑ आग़ा बुज़ुर्ग तेहरानी. अल ज़रीया, 1403 हिजरी, भाग 15, पृष्ठ 18-19।
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- ↑ सुब्हानी, फ़र्हंगे अक़ाएद व मज़ाहिब ए इस्लामी, 1395 शम्सी, भाग 6, पृष्ठ 406।
- ↑ मुफ़ीद, अल-इरशाद, भाग 2, पेज 155
- ↑ मुफ़ीद, अल-इरशाद, भाग 2, पेज 157-158; इब्ने शहर आशोब, मनाक़िब ए आले अबि तालिब, भग 4, पेज 210
- ↑ मुफ़ीद, अल-इरशाद, भाग 2, पेज 158-159
- ↑ मुफ़ीद, अल-इरशाद, भाग 2, पेज 157-158; तबरसी, आलाम उल-वरा, पेज 264
- ↑ इब्ने शहर आशोब, मनाक़िब ए आले अबि तालिब, भग 4, पेज 210
- ↑ मुफ़ीद, अल-इरशाद, भाग 2, पेज 157-158; तबरसी, आलाम उल-वरा, पेज 264
- ↑ याक़ूबी, तारीख ए याक़ूबी, दार ए सादिर, भाग 2, पेज 320
- ↑ तबरसी, आलाम उल-वरा, पेज 265; इब्ने शहर आशोब, मनाक़िब ए आले अबि तालिब, भग 4, पेज 210
- ↑ तबातबाई, शिया दर इस्लाम, पेज 217
- ↑ तबातबाई, शिया दर इस्लाम, पेज 217-218
- ↑ मुफ़ीद, अल-इरशाद, भाग 2, पेज 157
- ↑ मुफ़ीद, अल-इरशाद, भाग 2, पेज 179-180 तबरसी, आलाम उल-वरा, पेज 271
- ↑ मुफ़ीद, अल-इरशाद, भाग 2, पेज 180; तबरसी, आलाम उल-वरा, पेज 271
- ↑ इब्ने शहर आशोब, मनाक़िब ए आले अबि तालिब, भग 4, पेज 280; जाफ़रयान, हयात ए फ़िक्री व सियासी ए इमामान ए शिया, पेज 326
- ↑ मुफ़ीद, अल-इरशाद, भाग 2, पेज 180; तबरसी, आलाम उल-वरा, पेज 272
- ↑ तबातबाई, शिया दर इस्लाम, पेज 218-219
- ↑ मुफ़ीद, अल-इरशाद, भाग 2, पेज 179-180; मनाक़िब ए आले अबि तालिब, भग 4, पेज 247
- ↑ तबातबाई, शिया दर इस्लाम, पेज 219
- ↑ मनाक़िब ए आले अबि तालिब, भग 4, पेज 247-248; जाफ़रयान, हयात ए फ़िक्री व सियासी ए इमामान ए शिया, पेज 327-329
- ↑ मुफ़ीद, अल-इरशाद, भाग 2, पेज 179
- ↑ शहीदी, ज़िंदगानी इमाम सादिक़, पेज 61
- ↑ मुफ़ीद, अल-इरशाद, भाग 2, पेज 215
- ↑ मुफ़ीद, अल-इरशाद, भाग 2, पेज 215; तबरसी, आलाम उल-वरा, पेज 294; इब्ने शहर आशोब, मनाक़िब ए आले अबि तालिब, भग 4, पेज 323-324
- ↑ मुफ़ीद, अल-इरशाद, भाग 2, पेज 215
- ↑ मुफ़ीद, अल-इरशाद, भाग 2, पेज 215; तबरसी, आलाम उल-वरा, पेज 294; इब्ने शहर आशोब, मनाक़िब ए आले अबि तालिब, भग 4, पेज 324
- ↑ इब्ने शहर आशोब, मनाक़िब ए आले अबि तालिब, भग 4, पेज 324; तबरसी, आलाम उल-वरा, पेज 294
- ↑ देखेः जाफ़रयान, हयात ए फ़िक्री व सियासी ए इमामान ए शिया, पेज 384, 385 और 398
- ↑ कुलैनी, अल-काफ़ी भाग 1, पेज 476; जाफ़रयान, हयात ए फ़िक्री व सियासी ए इमामान ए शिया, पेज 402-404
- ↑ मुफ़ीद, अल-इरशाद, भाग 2, पेज 215; इब्ने शहर आशोब, मनाक़िब ए आले अबि तालिब, भग 4, पेज 323-324; तबरसी, आलाम उल-वरा, पेज 294
- ↑ तबातबाई, शिया दर इस्लाम, पेज 221
- ↑ मुफ़ीद, अल-इरशाद, भाग 2, पेज 247; तबरसी, आलाम उल-वरा, पेज 313-314
- ↑ मुफ़ीद, अल-इरशाद, भाग 2, पेज 247
- ↑ मुफ़ीद, अल-इरशाद, भाग 2, पेज 247; तबरसी, आलाम उल-वरा, पेज 314
- ↑ तबरसी, आलाम उल-वरा, पेज 314; इब्ने शहर आशोब, मनाक़िब ए आले अबि तालिब, भग 2, पेज 367
- ↑ तबातबाई, शिया दर इस्लाम, पेज 222
- ↑ जाफ़रयान, हयात ए फ़िक्री व सियासी ए इमामान ए शिया, पेज 445; तबातबाई, शिया दर इस्लाम, पेज 224
- ↑ सुदूक़, ओयून ए अख़बार उर-रजा, भाग 2, पेज 135
- ↑ जाफ़रयान, हयात ए फ़िक्री व सियासी ए इमामान ए शिया, पेज 445; तबातबाई, शिया दर इस्लाम, पेज 442-443
- ↑ मुफ़ीद, अल-इरशाद, भाग 2, पेज 273; तबरसी, आलाम उल-वरा, पेज 344
- ↑ मुफ़ीद, अल-इरशाद, भाग 2, पेज 273; तबरसी, आलाम उल-वरा, पेज 344
- ↑ तबरसी, आलाम उल-वरा, पेज 344-345; इब्ने शहर आशोब, मनाक़िब ए आले अबि तालिब, भग 4, पेज 379
- ↑ 112- मुफ़ीद, अल-इरशाद, भाग 2, पेज 295; तबरसी, आलाम उल-वरा, पेज 344-345
- ↑ जाफ़रयान, हयात ए फ़िक्री व सियासी ए इमामान ए शिया, पेज 472
- ↑ मुफ़ीद, अल-इरशाद, भाग 2, पेज 273; तबरसी, आलाम उल-वरा, पेज 345
- ↑ जाफ़रयान, हयात ए फ़िक्री व सियासी ए इमामान ए शिया, पेज 472-474
- ↑ 116- मुफ़ीद, अल-इरशाद, भाग 2, पेज 273; तबरसी, आलाम उल-वरा, पेज 344
- ↑ तबरसी, आलाम उल-वरा, पेज 344
- ↑ 118- जाफ़रयान, हयात ए फ़िक्री व सियासी ए इमामान ए शिया, पेज 478
- ↑ तबातबाई, शिया दर इस्लाम, पेज 225; जाफ़रयान, हयात ए फ़िक्री व सियासी ए इमामान ए शिया, पेज 480-482
- ↑ 120- मुफ़ीद, अल-इरशाद, भाग 2, पेज 297; तबरसी, आलाम उल-वरा, पेज 355
- ↑ कुलैनी, अल-काफ़ी भाग 1, पेज 497; मुफ़ीद, अल-इरशाद, भाग 2, पेज 297 और 312; तबरसी, आलाम उल-वरा, पेज 355
- ↑ तबरसी, आलाम उल-वरा, पेज 355; तबातबाई, शिया दर इस्लाम, पेज 225-226
- ↑ मुफ़ीद, अल-इरशाद, भाग 2, पेज 297; तबरसी, आलाम उल-वरा, पेज 355
- ↑ तबरसी, आलाम उल-वरा, पेज 355; जाफ़रयान, हयात ए फ़िक्री व सियासी ए इमामान ए शिया, पेज 502
- ↑ जाफ़रयान, हयात ए फ़िक्री व सियासी ए इमामान ए शिया, पेज 503
- ↑ जाफ़रयान, हयात ए फ़िक्री व सियासी ए इमामान ए शिया, पेज 538
- ↑ कुलैनी, अल-काफ़ी भाग 1, पेज 498; तबरसी, आलाम उल-वरा, पेज 355
- ↑ जाफ़रयान, हयात ए फ़िक्री व सियासी ए इमामान ए शिया, पेज 506
- ↑ तबातबाई, शिया दर इस्लाम, पेज 227; जाफ़रयान, हयात ए फ़िक्री व सियासी ए इमामान ए शिया, पेज 500-502
- ↑ जाफ़रयान, हयात ए फ़िक्री व सियासी ए इमामान ए शिया, पेज 522
- ↑ सुदुक़, मन ला यहज़ेरोहुल फ़क़ीह, भाग 2, पेज 609
- ↑ कुलैनी, अल-काफ़ी भाग 1, पेज 503; मुफ़ीद, अल-इरशाद, भाग 2, पेज 13
- ↑ कुलैनी, अल-काफ़ी भाग 1, पेज 503; मुफ़ीद, अल-इरशाद, भाग 2, पेज 313 और 336; तबरसी, आलाम उल-वरा, पेज 367
- ↑ तबातबाई, शिया दर इस्लाम, पेज 227-228; तबरसी, आलाम उल-वरा, पेज 367
- ↑ कुलैनी, अल-काफ़ी भाग 1, पेज 503; मुफ़ीद, अल-इरशाद, भाग 2, पेज 313 और 336; तबरसी, आलाम उल-वरा, पेज 367
- ↑ मुफ़ीद, अल-इरशाद, भाग 2, पेज 313-314; तबरसी, आलाम उल-वरा, पेज 367
- ↑ तबरसी, आलाम उल-वरा, पेज 367
- ↑ जाफ़रयान, हयात ए फ़िक्री व सियासी ए इमामान ए शिया, पेज 538-539 और 542
- ↑ जाफ़रयान, हयात ए फ़िक्री व सियासी ए इमामान ए शिया, पेज 538 और 542
- ↑ तबातबाई, शिया दर इस्लाम, पेज 228
- ↑ तबातबाई, शिया दर इस्लाम, पेज 228-229
- ↑ जाफ़रयान, हयाते फ़िक्री व सियासी इमामाने शिया, 1387 शम्सी, पृष्ठ 500 और 536।
- ↑ कुलैनी, अल-काफ़ी भाग 1, पेज 514; मुफ़ीद, अल-इरशाद, भाग 2, पेज 339; तबरसी, आलाम उल-वरा, पेज 418
- ↑ मुफ़ीद, अल-इरशाद, भाग 2, पेज 339; तबरसी, आलाम उल-वरा, पेज 418
- ↑ मुफ़ीद, अल-इरशाद, भाग 2, पेज 339-340
- ↑ मुफ़ीद, अल-इरशाद, भाग 2, पेज 336
- ↑ तबातबाई, शिया दर इस्लाम, पेज 230-231
- ↑ देखेः मजलिसी, बिहार उल-अनवार, भाग 52, पेज 122
- ↑ उदाहरण स्वरूप देखेः कुलैनी, अल-काफ़ी भाग 1, पेज 25, हदीस 21; मजलिसी, बिहार उल-अनवार, भाग 52, पेज 336
- ↑ तबातबाई, शिया दर इस्लाम, पेज 231-232
- ↑ उदाहरण स्वरूप देखेः मजलिसी, बिहार उल-अनवार, भाग 52, पेज 181 और 278
- ↑ उदाहरण स्वरूप देखेः क़ाज़ी अब्दुल जब्बार, शरह अल उसूले ख़म्सा, पेज 514; तफ़ताज़ानी, शरहुल मकासिद, भाग 5, पेज 263 और 290
- ↑ उदाहरण स्वरूप देखेः बग़दादी, अलफ़रको बैनल फ़िरक़, पेज 353-354
- ↑ क़ुल्ला असअलोकुम अलैहे अजरन इल्लल मवद्दता फ़िल क़ुर्बा, सूर ए शूरा आयत, 23
- ↑ हाकिम, हसकानी, शवाहिद उत तंज़ील, भाग 2, पेज 189 और 196; ज़मख़शरि, अल कश्शाफ़, भाग 4, पेज 219-220
- ↑ फ़ख्रे राज़ी, अल तफ़सीर उल कबीर, भाग 27, पेज 595
- ↑ बग़दादी, तारीख़ ए बग़दाद, भाग 1, पेज 133
- ↑ इब्ने हजर अस्क़लानी, तहज़ीब उत तहज़ीब, भाग 7, पेज 388
- ↑ इब्ने हब्बान, अलसेक़ात, भाग 8, पेज 457
- ↑ सुबहानी, सीमाए अकाइद ए शिया, पेज 234
- ↑ ज़हबी, सीर ए आलामुन नबला, भाग 6, पेज 257
- ↑ अबू ज़रआ दमिश्क़ी, तारीख़ ए अबि ज़रआ दमिश्क़ी, मजमा लुग़त उल अरबिया, पेज 536
- ↑ तबातबाई, अहलुलबैत अलैहेमुस्सलाम फ़िल मकतबतिल अरबिया, मोअस्सेसा ए आले-अलबैत, पेज 481-483
- ↑ इब्ने जोज़ी, तज़्केरतुल ख़वास, पेज 102-103
- ↑ इब्ने सब्बाग़, अल फ़ुसूलुल मोहिम्मा, दार उल हदीस, भाग 1, पेज 6 और 683-684
- ↑ इब्ने सब्बाग़, अल फ़ुसूलुल मोहिम्मा, दार उल हदीस, भाग 1, मुकद्देमा मोहक़्क़िक़, पेज 24
- ↑ तबातबाई, अहलुलबैत अलैहेमुस्सलाम फ़िल मकतबतिल अरबिया, मोअस्सेसा ए आले-अलबैत, पेज 235
- ↑ शबरावी, अल इत्तेहाफ बेहुब्बिल अशराफ़, पेज 5-7
- ↑ शाह मुहम्मदी, अली वा शुकूह ग़दीरे ख़ुम, पेज 45
नोट
- ↑ शेख़ सदूक़ ने अपनी किताब अल-एतेक़ादात में बारह इमामों के बारे में यूँ कहा है: हम उन पर यह अक़ीदा (विश्वास) रखते हैं कि वे ही उलिल-अम्र हैं जिनकी आज्ञा का पालन अनिवार्य है। वे लोगों पर गवाह हैं, वे ईश्वर तक पहुँचने के दरवाज़े और रास्ते हैं और उसी की ओर राह दिखाने वाले हैं। वे ईश्वरीय ज्ञान के ख़ज़ाने हैं और वही उसके वही के अनुवादक हैं। वे तौहीद (एकेश्वरवाद) के स्तंभ हैं। वे मासूम हैं और हर प्रकार की नापाकी व अपवित्रता से पाक हैं। वे चमत्कारों और वाज़ेह निशानियों के मालिक हैं, ज़मीन वालों के लिए सुरक्षा हैं और नजात (उद्धार) की कश्ती हैं। वे सम्मानित ईश्वर के बंदे हैं; जिनसे मुहब्बत ईमान है और जिनसे दुश्मनी कुफ्र है। उनका हुक्म ईश्वर का हुक्म है और उनका निषेध ईश्वर की निषेध है। उनकी इताअत, ईश्वर की इताअत है और उनकी नाफ़रमानी, ईश्वर की नाफ़रमानी है। उनका दोस्त ईश्वर का दोस्त है और उनका दुश्मन ईश्वर का दुश्मन है... अल-एतेक़ादात, शेख़ सदूक़, 1414 हिजरी क़मरी, पृष्ठ 94।
स्रोत
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- अबू ज़रआ दमिश्क़ी, अब्दुर्रहमान बिन अमरू, तारीख़े अबी ज़रआ अल दमिश्क़ी, दमिश्क़, मजमा उल लुग़तुल अरबिया
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- इब्ने सब्बाग़, अली बिन मुहम्मद, अल फ़ुसूलुल मोहिम्मा फ़ी मारेफ़तिल आइम्मा, तहक़ीक़, सामी ग़रीज़ी, क़ुम, दार उल हदीस
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- हाकिम, हस्कानी, उबैदुल्लाह इब्ने अब्दुल्लाह, शवाहेदुत तंज़ील लेक़वा-ए-दित तफ़ज़ील, तहक़ीक़ मुहम्मद बाक़िर महमूदी, तेहरान, वज़ारत ए फ़रहंग वा इरशाद ए इस्लामी, पहला प्रकाशन, 1411 हिजरी
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- मुहम्मदी, अली, शरह कश्फ़ुल मुराद, क़ुम, दार उल फ़िक्र, चौथा प्रकाशन, 1378 शम्सी
- मुस्लिम नेशाबूरी, मुस्लिम बिन हुज्जाज, सहीह मुस्लिम, बैरूत, दार उल फ़िक्र
- मुफ़ीद, मुहम्मद बिन मुहम्मद, अल-इरशाद फ़ी मारफ़ते होजाजिल्लाहे अलल एबाद, क़ुम, कुंगरा ए शेख मुफ़ीद, पहला प्रकाशन, 1413 हिजरी
- मुफ़ीद, मुहम्मद बिन मुहम्मद, अवाए लुल मक़ालात फ़िल मज़ाहिब वल मुख़तारात, क़ुम, अल मोतमेरुल आ-लमी लिश शेख अल-मुफ़ीद, पहला प्रकाशन, 1413 हिजरी
- मकारिम शीराज़ी, नासिर, पयाम ए क़ुरआन, तेहरान, दार उल कुतुब उल इस्लामिया, नवां प्रकाशन, 1386 शम्सी
- मूसवी ज़ंजानी, सय्यद इब्राहीम, अकाएदुल इमामिया अल इस्ना अशरिया, बैरूत, मोअस्सेसा ए आ-लमी, तीसरा प्रकाशन, 1413 हिजरी
- नोमानी, मुहम्मद बिन इब्राहीम, किताब अल-ग़ैबा, बैरूत, मोअस्सेसा तुल आ-लमी लिल मतबूआत, 1403 हिजरी, 1983 ई
- याक़ूबी, अहमद बिन इस्हाक़, तारीख़ अल-याक़ूबी, बैरूत, दार ए सादिर
- Gulzar calligraphic panel", Library of Congress, वीजिट 2 मार्च 2022
अधिक अध्ययन के लिए स्रोत
हयाते फ़िकरी व सियासी इमामाने शिया, लेखक: रसूल जाफ़रियान, प्रकाशन: क़ुम, अंसारियान पब्लिकेशन।