मिक़्दाद बिन अम्र

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मिक़्दाद बिन अम्र सालबा
उपाधिअबू माबद, अबू सईद
जन्मदिन16 आमुल फ़ील, बेसत से 24 साल पहले (हज़रामूत में)
जन्म स्थानयमन
निवास स्थानहज़रामूत, मक्का, मदीना
प्रसिद्ध रिश्तेदार(पत्नी) ज़बाआ बिन्ते ज़ुबैर (पैग़म्बर (स) के चाचा की बेटी)
मृत्यु की तिथि और स्थानवर्ष 33 हिजरी, मदीना
दफ़्न स्थानमदीना, क़ब्रिस्ताने बक़ीअ
इस्लाम लाने का समयपहले इस्लाम लाने वालों में से एक
युद्धों में भागीदारीबद्र, अन्य
प्रवासनहबशा और मदीना
प्रसिद्धि का कारणअरकाने अरबआ में से एक
विशेष भूमिकाएँइमाम अली (अ) के बेहतरीन सहाबियों में से
अन्य गतिविधियांतीनों ख़लीफ़ा का विरोध, मुख़्य रूप से सक़ीफ़ा की घटना का विरोध

मिक़्दाद बिन अम्र (अरबी: مقداد بن عمرو) (वफ़ात 33 हिजरी) मिक़्दाद बिन असवद के नाम से प्रसिद्ध है, पैग़म्बर (स) के जलील उल-क़द्र सहाबी और इमाम अली (अ) के वफादार साथियों में से थे। मिक़्दाद ने बेअसत के शुरुआती दिनों में इस्लाम धर्म स्वीकार किया और उन्हें इस्लाम घोषित करने वाले पहले मुसलमानों में उनकी गणना की जाती है। इसी तरह आपने सद्रे इस्लाम (इस्लाम के प्रारम्भिक दिनो) के सभी युद्धों में भाग लिया। मिक़्दाद को सलमान फ़ारसी, अम्मार बिन यासिर और अबू ज़र ग़फ़्फ़ारी के साथ हज़रत अली इब्न अबी तालिब (अ) के सच्चे अनुयाईयों में जाना जाता है और इन लोगों को पैगंबर (स) के समय से ही हज़रत अली (अ) के शिया के नाम से प्रसिद्ध थे।

पैग़म्बर (स) के स्वर्गवास के पश्चात इन्होने इमाम अली (अ) के ख़लीफ़ा और उत्तराधिकारी होने का समर्थन किया, इसलिए इन्होंने सक़ीफ़ा मे अबू बक्र के प्रति निष्ठा की प्रतिज्ञा करने से इनकार किया। साथ ही आप उस्मान के कट्टर विरोधियों में से थे। मिक़्दाद उन कुछ सहाबीयो में से हैं जो हज़रत फ़ातेमा ज़हरा (अ) के अंतिम संस्कार में शामिल हुए थे। अहले-बैत (अ) से वर्णित हदीसों में उनकी प्रशंसा का उल्लेख हुआ है और उन्हें उन लोगों में गिना गया है जो इमाम महदी (अ.त.) के ज़हूर के समय रजअत करेंगे। उन्होंने पैगंबर (स) से हदीसें भी बयान की हैं।

जीवनी

वंश और जन्म

मिक़्दाद बिन अम्र बिन सअलबा जो मिक़्दाद बिन असवद के नाम से प्रसिद्ध है, के जन्म की सही तारीख ज्ञात नहीं है, लेकिन सूत्रो मे उनकी मृत्यु के बारे में लिखा हैं कि 33 हिजरी में 70 वर्ष की आयु मे उनका निधन हुआ।[१] इस आधार पर संभावना दी जा सकती है कि उनका जन्म बेअसत से 24 साल पहले (हिजरत से 37 साल पहले) हुआ था। जीवनीकारों और इतिहासकारों ने बीसवें पूर्वज तक उनके परिवार के वंश का उल्लेख किया है।[२]

हज़्रामूत मे मिक़्दाद और अबी शिम्र बिन हज्र नाम के एक व्यक्ति के बीच युद्ध हुआ था जिसमें वह व्यक्ति घायल हो गया था। इस घटना पश्चात मिक़्दाद मक्का चले गए और यहा असवद बिन अब्द बिन यगूस ज़हरी के साथ एक संधि की, जिसके बाद वो मिक़्दाद बिन असवद कहे जाने लगे, लेकिन इस आयत ادْعُوهُمْ لِآبَائِهِمْ उद्ऊहुम बेआबाएहिम तुम उन्हे उनके पिता और पूर्वजों के नाम से बुलाओ।[३] के नाज़िल होने के बाद उन्हें मिक़्दाद बिन अम्र कहा जाने लगा।[४]

उपनाम और उपाधि

मिक़्दाद के लिए बहराई या बहरावी कंदी और हज़रमी जैसे उपनाम बयान हुए है।[५] इस प्रकार अबू माअबद, अबू सईद और अबुल अस्वद उनकी उपाधियो का उल्लेख हुआ है।[६]

विवाह और संतान

  • विवाह: मिक़्दाद की पत्नी ज़बाआ, जो रसूले ख़ुदा (स) के चाचा जुबैर बिन अब्दुल मुत्तलिब की बेटी थी।[७] इस तथ्य के बावजूद कि पैगंबर (स) ज़बाआ को वंश के मामले में एक उच्च व्यक्तित्व का मालिक मानते थे, उन्होंने मिक़्दाद के साथ उनकी शादी का समर्थन किया और इस अवसर पर सहाबियो को संबोधित किया और कहा: मैंने अपने चाचा की पुत्री बज़ाआ की मिक़्दाद से विवाह केवल इसलिए किया ताकि लोग वंश की परवाह किए बिना प्रत्येक विश्वासी (हर मोमिन) को बेटी दें।[८]
  • संतान: मिक़्दाद के दो बच्चे थे जिनका नाम अब्दुल्लाह और करीमा था। अब्दुल्लाह ने इमाम अली (अ) के खिलाफ़ आयशा के साथ जमल की लड़ाई में भाग लिया और उसी लड़ाई में मारा गया। जब इमाम अली (अ) ने मिक़्दाद के बेटे को देखा, तो आप (अ) ने फ़रमाया: "तू कितना बुरा भांजा निकला।"[९] कुछ इतिहासकारों ने अब्दुल्ला के स्थान पर उसका नाम माअबद कहा है।[१०]

निधन और दफ़न स्थान

मिक़्दाद जीवन के अंतिम दिनों में जरफ में रहते थे जो मदीना से सीरिया की ओर एक फरसख़ अर्थात (लगभग साढ़े पांच किलोमीटर) दूरी पर स्थित था। 33 हिजरी में 70 वर्ष आयु पाने के बाद मिक़्दाद का निधन हो गया। मुसलमान उनके शव को मदीना लाए जहा उस्मान बिन अफ्फान ने नमाज़े जनाज़ा पढ़ाई और बक़ीअ कब्रिस्तान में दफनाया गया।[११] तुर्की के वान शहर मे एक क़ब्र को मिक़्दाद की क़ब्र बताया जाता है जिसे कुछ शोधकर्ता फ़ाज़िले मिक़्दाद या अरब के किसी बुज़ुर्ग की कब्र बताते है।[१२] मिक़्दाद अमीर व्यक्ति थे और उन्होने अपनी संपत्ति से 36,000 दिरहम हसनैन (अ) शरीफ़ैन को दिए जाने की वसीयत की थी।[१३]

पैगंबर (स) के समय मे

इस्लाम स्वीकार करना

मिक़्दाद ने बेअसत की शुरुआत में इस्लाम धर्म अपना कर मुश्रेकीने कुरैश की यातनाओं का सामना किया। इतिहासकार उन्हें साबेक़ीन (पहले इस्लाम लाने वालो) में शुमार करते हैं; लेकिन उनके इस्लाम को स्वीकार करने की स्थिति के बारे में विवरण का उल्लेख नहीं किया गया है। इब्ने मसऊद से यह वर्णन किया गया है कि इस्लाम स्वीकार करने की घोषणा करने वाले पहले सात लोगों में से एक मिक़्दाद थे।[१४]

ईश्वर ने मुझे 4 लोगों से प्रेम करने का आदेश दिया है और मुझ से कहा है कि मैं भी इन से प्रेम करता हूंँ: अली, मिक़्दाद, अबूज़र, सलमान

इब्ने हजर अस्क़लानी, अल एसाबा, 1995 ईसवी/1415 हिजरी, खंड 6, पृष्ठ 161

प्रवासन

मिक़्दाद दो बार प्रवासित (हिजरत की) हुए, पहली बार एबिसिनिया (हब्शा) की ओर हिजरत की जिसमे मिक़्दाद मुसलमानों के तीसरे समूह में सम्मिलित थे। दूसरी बार, उन्होंने मदीना प्रवासन में भाग लिया उसकी सटीक तारीख ज्ञात नहीं है, लेकिन कई सबूतों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि प्रवास के पहले वर्ष शव्वाल के महीने में अबू उबैदा नाम से होने वाली सरय्या मे मिक़्दाद भी मुसलमानों से जा मिले और उनके साथ मदीना चले आए।[१५]

युद्धों में भागीदारी

मिक़्दाद ने रसूले ख़ुदा (स) के जीवन में सभी युद्धों में भाग लिया, उनका शुमार सहाबियो में सबसे बहादुर लोगों में होता था।[१६] मिक़्दाद बद्र की लड़ाई में घुड़सवार सैनिक बल में थे और उनके अश्व का नाम सब्हा (तैराक) था। शायद मिक़्दाद का पूरी बहादुरी के साथ युद्ध करने के कारण उनके घोड़े को सब्हा कहते थे।[१७]

ओहोद की लड़ाई मे भी मिक़्दाद का बहुत प्रभावशाली भूमिका रही है। जिस समय सभी सहाबीयो ने भागने का रास्ता चुना तो इतिहासिक कथन के अनुसार अली, तल्हा, ज़ुबैर, अबू दुजाना, अब्दुल्लाह बिन मसऊद और मिक़्दाद के अलावा किसी ने प्रतिरोध नही दिखाया।[१८] कुछ सूत्रों के अनुसार, मिक़्दाद इस युद्ध मे इस्लामी यौद्धाओ के तीरअंदाजो मे थे।[१९] जबकि कुछ ने लिखा कि मिक़्दाद और जुबैर इस्लामी लश्कर की घुड़सवार सेना के कमांडर थे।[२०]

इमाम अली (अ) के उत्तराधिकारी होने का समर्थन

पैगंबर (स) के स्वर्गवास और सक़ीफ़ा में अबू बक्र का खलीफा के रूप में चुनाव के बाद बहुत कम लोग हजरत अली (अ) के प्रति वफादार रहे, जिन्होंने अबू बक्र के प्रति निष्ठा की प्रतिज्ञा करने से इनकार कर दिया उनमें सलमान, अबू-ज़र और मिक़्दाद शामिल थे। मिक़्दाद ने सक़ीफ़ा में भाग नहीं लिया बल्कि वो अमीरुल मोमिनीन हज़रत अली (अ) और कुछ सहाबीयो के साथ पैगंबर (स) के अंतिम संस्कार में व्यस्थ रहे।[२१] जिन्होने हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (स) की नमाज़े जनाज़ा मे भाग लिया।[२२] कुछ स्रोत उन्हे शर्ता तुल-ख़मीस का सदस्य भी कहते हैं।[२३][२४]

मिक़्दाद ने अबू बक्र और उनके साथियों को विभिन्न अवसरों पर इमाम अली (अ) का उत्तराधिकारी होने को दोहराया और लोगो के सामने इस मुद्दे को स्पष्ट करने के कई चरणों को अंजाम दिया। उदाहरण स्वरूप कुछ चरणो को बयान किया जा रहा है:

  • अबू बक्र को खलीफा चुने जाने और निष्ठा की प्रतिज्ञा के बावजूद, मुहाजिरों और अंसार के एक समूह ने उसकी निष्ठा की प्रतिज्ञा करने से इनकार करते हुए हज़रत अली इब्ने अबी तालिब (अ) के साथ हो गए। इन लोगों में मुक़दाद भी शामिल थे।[२५]
  • जब चालीस लोग इमाम अली (अ) के पास आए और कहा कि हम आपकी प्रतिरक्षा करने के लिए तैयार हैं, तो इमाम ने उनसे कहा, अगर तुम अपनी बात पर खरे उतरो, तो कल अपना सिर मुंडवाकर आओ। अगले दिन केवल सलमान, मिक़्दाद और अबू-ज़र अपने सिर मुंडवाकर इमाम (अ) के पास आए।[२६]
  • उमर के बाद खलीफा का निर्धारण करने के लिए गठित छह सदस्यीय परिषद में, जब अब्दुर्रहमान बिन औफ ने हज़रत अली (अ) से कहा: मैं आपके प्रति निष्ठा तभी रखूंगा जब आप अल्लाह की किताब (कुरआन), पैगंबर (स) की सुन्नत और अबू-बक्र की सुन्नत का अनुसरण करो, और हज़रत अली (अ) ने केवल पहली दो शर्तों को स्वीकार किया। इस अवसर पर मिक़्दाद ने अब्दुर्रहमान बिन औफ की ओर मुड़कर कहा: ख़ुदा की क़सम! तुमने अली (अ) जो सदैव हक़ और न्याय पर फ़ैसला करता है, को छोड़ दिया है। और आगे कहते हैं: मैंने किसी पैगंबर (स) के बाद अहले-बैत (अ) से अधिक उत्पीड़ित कोई व्यक्ति या परिवार नहीं पाया।[२७]

मिक़्दाद ने उस्मान की खिलाफत का विरोध किया और मस्जिद ए पैगंबर में उनके खिलाफ भाषण देकर इस विरोध की घोषणा की।[२८]

याक़ूबी ने कुछ इतिहासकारों के हवाले से कहा है कि जिस दिन उस्मान की ख़लीफ़ा के रूप मे निष्ठा की प्रतिज्ञा हुई उसी दिन रात मे ईशा की नमाज़ अदा करने के लिए मस्जिद जा रहे थे, तो उनके सामने एक मोमबत्ती जल रही थी। जब मिक़्दाद का उनसे सामना हुआ, तो उन्होने उस्मान से कहा, क्या यह नवाचार (बिदअत) है?[२९]

याक़ूबी के अनुसार, मिक़्दाद, उस्मान के खिलाफ बोलने वालो और हज़रत अली इब्ने अबी तालिब (अ) के समर्थकों में से थे।[३०]

अहले-बैत (अ) की हदीसों में मिक़्दाद

मिक़्दाद के बारे में मासूमीन (अ) से कई हदीसों का वर्णन किया गया है, जिसमें उनके गुणों और नैतिक विशेषताओ का वर्णन किया गया है, उदाहरण स्वरूप:

  • अल्लाह के रसूल से प्रेम: अल्लाह के रसूल ने कहा: ईश्वर ने मुझे चार लोगों से प्रेम करने का आदेश दिया है। किसी ने पूछा कि वह कौन लोग हैं? उत्तर दिया: अली, सलमान, मिक़्दाद और अबू-ज़र।[३१]
  • मिक़्दाद का जन्नती होना: अनस बिन मालिक से रिवायत है: एक दिन अल्लाह के रसूल ने कहाः जन्नत मेरी उम्मत के चार लोगो की प्रतीक्षा मे है। जब हज़रत अली (अ) ने उनके बारे में पूछा, तो उन्होंने कहा: ख़ुदा की क़सम! आप उनमें से पहले व्यक्ति हैं और अन्य तीन व्यक्ति मिक़्दाद, सलमान और अबू-ज़र हैं। इसी तरह इमाम सादिक़ (अ) ने इस आयत إِنَّ الَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ كَانَتْ لَهُمْ جَنَّاتُ الْفِرْدَوْسِ نُزُلًا (इन्नल लज़ीना आ-मनू वा अमेलुस सालेहाते कानत लहुम जन्नात उल-फ़िरदौसे नोज़ोला)[३२] की व्याख्या में फ़रमाया: यह आयत अबू-ज़र, मिक़्दाद, सलमान और अम्मार के बारे मे आई है।[३३]
  • मिक़्दाद का ईमान: इमाम सादिक़ (अ) द्वारा वर्णित ईमान के दस स्तर हैं। मिक़्दाद आठवें स्तर पर, अबू-ज़र नौवें स्तर पर और सलमान दसवें स्तर पर हैं।[३४]
  • आय ए मवद्दत पर अमल करने वाला: इमाम सादिक़ (अ) ने आय ए मवद्दत قُل لا أَسئَلُكُم عَلَیهِ أَجراً إِلاَّ المَوَدَّةَ فِی القُربى क़ुल ला असअलोकुम अलैहे अजरन इल्लल मवद्दता फ़िल क़ुर्रबा[३५] के बारे में फ़रमायाः ख़ुदा की क़सम! इस आयत का 7 व्यक्तियो के अलावा किसी ने भी पालन नहीं किया और उनमे से एक मिक़्दाद है।[३६]
  • अहले-बैत (अ) मे से मिक़्दाद: एक दिन जाबिर बिन अब्दुल्लाह अंसारी ने अल्लाह के रसूल से सलमान, मिक़्दाद और अबू-ज़र के बारे में सवाल किया। जवाब में आप (स) ने प्रत्येक के बारे में बात की और मिक़्दाद के बारे में कहा: मिक़्दाद हम मे से है। जो मिक़्दाद का दुश्मन है, ख़ुदा भी उसका दुश्मन है जो उसका मित्र है, ख़ुदा भी उसका मित्र है। हे जाबिर! यदि तुम चाहते हैं कि आपकी दुआ को स्वीकृति मिले, तो खुदा के सामने उसके नाम से दुआ करो, क्योंकि ईश्वर की दृष्टि में उसका नाम सबसे अच्छे नामों में से एक है।[३७]
  • हज़रत अली (अ) के प्रति वफादारी: इमाम बाक़िर (अ) से वर्णित है कि: अल्लाह के रूसल के बाद सलमान, अबू-ज़र और मिकदाद को छोड़कर सभी लोगों ने अल्लाह के रसूल की सीरत को त्याग दिया:[३८] कुछ हदीसो मे मिक़्दाद को इमाम अली (अ) का सर्वाधिक आज्ञाकारी दोस्त बताया गया है।[३९]
  • मिक़्दाद की रज़अत: हदीसों के अनुसार मिक़्दाद हज़रत महदी (अ) के ज़हूर और उनके आंदोलन के समय मे रजअत करने वालो, आपके असहाब (साथियो) और आपकी सरकार के कमांडरों मे से है।[४०]
  • मिक़्दाद को दोस्त रखो: इमाम सादिक़ (अ) ने फ़रमायाः मुसलमानों पर वाजिब है कि अल्लाह के रूसल के पश्चात पद-भ्रष्ट ना होने वालो से मित्रता रखें। फिर कुछ नाम लिए उनमे सलमान, अबू-ज़र और मिक़्दाद का नाम भी लिया।[४१]

हदीस का वर्णन

मिक़्दाद ने पैगंबर (स) से हदीसों का वर्णन किया है। इसी तरह कुछ रावीयो ने मिक़्दाद से हदीस को सुना या वर्णन किया है, उनमें: सुलैम बिन क़ैस, अनस बिन मालिक, अब्दुल्लाह बिन अब्बास, अब्दुल्लाह बिन मसऊद, अब्दुर्रहमान बिन अबी लैला, अबू-अय्यूब अंसारी, ज़बाआ बिन्ते ज़ूबैर बिन अब्दुल मुत्तलिब (आपकी पत्नी) और करीमा (आपकी बेटी)।[४२]

व्यक्तिकरण

  • सीमा ए मिक़्दाद: मुहम्मद मुहम्मदी इश्तेहारदी द्वारा लिखित, पयामे इस्लाम पब्लिशिंग हाउस द्वारा प्रकाशित किताब।
  • मिक़्दाद: मुहम्मद कामरानी द्वारा लिखित, जिसे हदीसे नैनवा ने प्रकाशित किया है।
  • साल हाए सख़्ती बूद: इस किताब मे मिक़्दाद की जीवन स्थितियों को चित्रकला में दर्शाया गया है।
  • अल-मिक़्दाद इब्न उल-असवद उल-कंदी अव्वलो फ़ार्सिन फ़िल इस्लाम: मुहम्मद जवाद फ़क़ीह द्वारा संकलित किताब को अल-अलामी इंस्टीट्यूट ऑफ लेबनानी प्रेस ने प्रकाशित किया है।
  • सिल-सिला तुल-अरकान उल-अरब्आ: यह चार खंडों में छपी है, जिसका तीसरा खं मिक़्दाद की जीवनी पर आधारित है।
  • माअस सहाबते वत-ताबेईन: चौदह खंडो पर आधारित कमाल सय्यद द्वारा संकलित किताब का छठा खंड मिक़्दाद से विशेष है। क़ुम के अंसारियान प्रकाशन द्वारा प्रकाशित।

फ़ुटनोट

  1. इब्ने हजर अस्क़लानी, अल-इसाबा, 1995 ई / 1415 हिजरी, भाग 6, पेज 161
  2. इब्ने हज़्म अंदालुसी, जमहरह अंसब अल-अरब, दार अल-मआरिफ़, पेज 441.
  3. सूर ए अहज़ाब, आयत न. 5
  4. इब्ने हजर अस्क़लानी, अल-इसाबा, 1995 ई / 1415 हिजरी, भाग 6, पेज 160; मक़रीज़ी, इमता इल-अस्मा, 1420 हिजरी, भाग 12, पेज 57
  5. इब्ने हज़्म अन्दलूसी, जुम्हरत अंसाब उल-अरब, दार उल-मआरिफ़, पेज 441
  6. मामक़ानी, तंक़ीह उल-मक़ाल, 1352 हिजरी, भाग 3, पेज 245
  7. बलाज़रि, अंसाब उल-अशराफ़, 1959 ई, भाग 1, पेज 205
  8. मजलिसी, बिहार उल-अनवार, 1403 हिजरी, भाग 22, पजे 265
  9. इब्ने हजर अस्क़लानी, अल-इसाबा, 1995 ई / 1415 हिजरी, भाग 5, पेज 22
  10. बलाज़रि, अंसाब उल-अशराफ़, 1959 ई, भाग 2, पेज 264-265
  11. इब्ने साद, तबक़ात उल-कुबरा, 1410 हिजरी, भाग 3, पेज 121; अमीन, आयान उश-शिया, 1403 हिजरी, भाग 10, पेज 134; बलाज़रि, अंसाब उल-अशराफ़, 1959 ई, भाग 1, पेज 204; जुरकुली, अल-आलाम, 1980 ई, भाग 7, पेज 282
  12. क़ुमी, मुंतहा उल-आमाल, 1413 हिजरी, भाग 1, पेज 228
  13. मज़ी, तहज़ीब उल-कमाल, 1400 हिजरी, भाग 28, पेज 252
  14. इब्ने असीर, असअद उल-ग़ाबा, 1970 ई, भाग 5, पेज 242
  15. इब्ने हजर अस्क़लानी, अल-इसाबा, 1995 ई / 1415 हिजरी, भाग 5, पेज 205; मामक़ानी, क़ामूस उर-रिजाल, भाग 9, पेज 114
  16. ज़रकुली, अल-आलाम, 1980 ई, भाग 7, पेज 282
  17. इब्ने साद, तबक़ात उल-कुबरा, 1410 हिजरी, भाग 3, पेज 120
  18. इब्ने साद, तबक़ात उल-कुबरा, 1410 हिजरी, भाग 3, पेज 114
  19. इब्ने असीर, असअद उल-ग़ाबा, 1970 ई, भाग 5, पेज 242
  20. इब्ने असीर, अल-कामिल फ़ी तारीख़, बैरूत, दार ए सादिर, भाग 2, पेज 152
  21. मजलिसी मुहम्मद बाक़िर, बिहार उल-अनवार, 1403 हिजरी, भाग 22, पेज 328
  22. कशी, इख़्तियारे मारेफ़त उर-रिजाल, 1404 हिजरी, भाग 1, पेज 34
  23. ख़ूई, मोजम उर-रिजाल उल-हदीस, 1410 हिजरी, भाग 6, पेज 188
  24. लेकिन अगर शर्ता तुल-ख़मीस हज़रत अली के शासन काल मे बनी हो तो इसमे मिक़्दाद का होना मुश्किल है क्योकि उनके निधन की तारीख 33 हिजरी उल्लेखित है जबकि हज़रत अली (अ) के शासन का आरम्भ 35 हिजरी मे हुआ।
  25. आबी, नस्र उल-दुर फ़िल मुहाज़ेरात, 1424 हिजरी, भाग 1, पेज 277; इब्ने अबिल हदीद, शरह नहज उल-बलाग़ा, 1418 हिजरी, भाग 1, पेज 137-138; शेख सुदूक, अल-ख़िसाल, 1403 हिजरी, पेज 461-465
  26. याक़ूबी, तारीखे याक़ूबी, 1373 शम्सी, भाग 2, पेज 126
  27. तब्री, तारीखे तब्री, बैरूत, 1404 हिजरी, पेज 233
  28. तब्री, तारीखे तब्री, बैरूत, 1404 हिजरी, पेज 233
  29. याक़ूबी, तारीखे याक़ूबी, 1373 शम्सी, भाग 2, पेज 54
  30. याक़ूबी, तारीखे याक़ूबी, 1373 शम्सी, भाग 2, पेज 54-55
  31. शेख़ मुफ़ीद, अल-इख़्तेसास, जामे मुदर्रेसीन, पेज 9
  32. सूरा ए कहफ़, आयत न. 107
  33. मजलिसी, बिहार उल-अनवार, 1403 हिजरी, भाग 4, पेज 151
  34. क़ुमी, शेख़ अब्बास, मुंतहल आमाल, 1413 हिजरी, भाग 1, पेज 288
  35. सूरा ए शूरा, आयत न. 23
  36. मजलिसी, बिहार उल-अनवार, 1403 हिजरी, भाग 23, पेज 237
  37. शेख मुफ़ीद, अल-इख़्तेसास, जामे मुदर्रेसीन, पेज 223
  38. ख़ूई, मोजम उर-रिजाल उल-हदीस, 1410 हिजरी, भाग 6, पेज 186
  39. कशी, इख़्तियारे मारफ़त उर-रिजाल, 1404 हिजरी, भाग 1, पेज 46
  40. मुफ़ीद, अल-इरशाद, 1388 शम्सी, पेज 634
  41. ख़ूई, मोजम उर-रिजाल उल-हदीस, 1410 हिजरी, भाग 6, पेज 187
  42. ख़ूई, मोजम उर-रिजाल उल-हदीस, 1410 हिजरी, भाग 6, पेज 185; मज़्ज़ी, तहज़ीब उल-कमाल, भाग 28, पेज 453-454

स्रोत

  • आबी, अबू साद मंसूर बिन अल-हुसैन, नस्र उद-दुर फ़िल मुहाज़ेरात, शोधः ख़ालिद उब्दुल ग़नी महफ़ूज़, बैरूत, दार उल-कुतुब उल-इल्मिया, पहला प्रकाशन, 1424 हिजरी / 2004 ई
  • इब्ने अबिल-हदीद, इज़्जुद्दीन बिन हिबातुल्लाह, शरह नहज उल-बलाग़ा, शोधः मुहम्मद अब्दुल करीम अल-निम्री, बैरूत, दार उल-कुतुब उल-इल्मिया, पहला प्रकाशन, 1418 हिजरी / 1998 ई
  • इब्ने असीर, अली बिन मुहम्मद, असद उल-ग़ाबा, शोधः मुहम्मद इब्राहीम अल-बना, बैरूत, दार ए एहयाइत तुरास अल-अरबी, 1970 ई
  • इब्ने असीर, अली बिन मुहम्मद, अल-कामिल फ़ी तारीख़, बैरूत, दारे सादिर
  • इब्ने हज़्म अनदुलूसी, अली बिन अहमद, जुमहरा अंसाब उल-अरब, शोधः मुहम्मद अब्दुस सलाम हारून, क़ाहेरा, दार उल-मआरिफ़
  • इब्ने हजर असक़लानी, अहमद बिन अली, अल-इसाबा फ़ी तमीज़ अल-सहाबा, शोधः आदिल अहमद अब्दुल मौजूद और अली मुहम्मद मोअव्विज़, बैरूत, दार उल-कुतुब उल-इल्मिया, पहला प्रकाशन, 1995 ई / 1415 हिजरी
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