अदी बिन हातिम ताई

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अदी बिन हातिम ताई (अरबीः عَديّ بن حاتِم الطائي) (मृत्यु 67 हिजरी) पैगंबर (स) और इमाम अली (अ)  के साथियों मे से है। उन्होंने इमाम अली (अ) के समर्थन में जमल, सिफ़्फ़ीन और नहरवान की लड़ाई में भाग लिया। इसके अलावा इमाम हसन (अ) के खिलाफत के दौरान उन्होंने लोगों को आपकी सेना में शामिल होने और मुआविया बिन अबी सुफयान से लड़ने के लिए प्रोत्साहित किया। अदी ने खुल्लम खुल्लम इमाम अली (अ) के लिए अपने प्यार पर जोर दिया और मुआविया के खिलाफ उनका बचाव किया।

अदी हातिम ताई का पुत्र और ताई जनजाति के बुजुर्ग थे। उन्होंने मुख्तार के प्रतिशोध में भाग नहीं लिया और उनका विरोध भी नहीं किया। हालाँकि, उन्होंने अपने कबीले के कुछ सदस्य जो मुख्तार के विरोधी थे मुख्तार से उनकी सिफाऱिश करते थे।

परिचय

अदी पैगंबर (स) के साथियों में से थे। उनके पिता हातिम ताई जाहिलियत के दौरान अपनी उदारता (सख़ावत) के लिए जाने जाते थे। [1] उदी को अपनी प्रजा का प्रवक्ता, संवेदनशील और महान व्यक्ति माना जाता है।[१]

उदी की मृत्यु 67 हिजरी में मुख्तार के शासन काल में कूफा में हुई।[२] उनकी मृत्यु 68 और 69 हिजरी में बताई जाती है।[३] उनकी मृत्यु 82 या 120 वर्ष की आयु मे हुई।[४] 

उदी बिन हातिम से वर्णित है कि जब भी मैं पैगंबर (स) की सेवा मे पहुंचता था, तो मेरे बैठने के लिए जगह बनाते थे।[५] पैगंबर (स) ने उन्हें बनी असद और तैय्य गोत्र (कबीला) के दान (ज़कात) लेने के लिए नियुक्त किया था।[६]

मुस्लमान होना

इस्लाम स्वीकार करने से पहले अदी बिन हातिम ईसाई और तय जनजाति के प्रमुख थे।[७] 9 हिजरी के रबी अल-सानी में पैगंबर (स) ने इमाम अली (अ) को सेना के साथ ताई की भूमि की ओर भेजा[८] जब अदी को इस घटना के बारे में पता चला, तो उसने अपने परिवार और संपत्ति को सीरिया भेज दिया, लेकिन उसकी बहन को गिरफ्तार करने के पश्चात मदीना स्थानांतरित कर दिया। उनकी बहन ने पैगंबर (स) से उसे रिहा करने की विंती की। पैगंबर (स) ने उनके अनुरोध को स्वीकार करते हुए ताई जनजाति के एक कारवां के साथ सीरिया भेज दिया।[९] जब वह अदी के पास पहुंची तो उदी ने पैगंबर (स) के बारे में उसकी राय पूछी, और उन्होंने कहा, जितनी जल्दी हो सके उनके पास जाओ, क्योंकि अगर वह वास्तव में पैगंबर है, तो जो पहले उस पर ईमान लाएगा, वह प्राथमिकता रखता है, और यदि वह राजा है, तो तुम्हारा सम्मान कम नहीं होगा। उदी ने उसकी (बहन की) राय मान ली और मदीना चले गए, और पैगंबर (स) से मिलने और उनके साथ बात करने के बाद, उन्हें पता चला कि वह वास्तव में पैगंबर (स) है और इस्लाम स्वीकार कर लिया।[१०]

9वें या 10वें हिजरी वर्ष में आदि के इस्लाम में रूपांतरण का उल्लेख किया गया है।[११]

खिलाफत काल के युद्धों में भागीदारी

पैगंबर (स) की स्वर्गवास के बाद हुए धर्मत्याग के दौरान अदी इस्लाम के प्रति सच्चे रहे और अपने ही लोगों के धर्मत्याग को रोका।[१२] अदी अबू बक्र के लिए तय्य जनजाति के दान को लाए।[१३] उन्होंने पहले खल़ीफ़ा के खिलाफत काल मे होने वाले युद्द में भाग लिया[१४] नबूवत का दावा करने वाले तलिहा[१५] के साथ होनेव वाले युद्ध मे मैमना के प्रभारी थे।[१६] इसी प्रकार दूसरे खलीफ़ा की ख़िलाफत मे(ईरान और इराक पर प्राप्त होने वाली विजय मे भाग लिया।[१७] अदी उसमान के विरोधियों में शामिल हो गए और इब्ने आसम ने उन्हें उस्मान के हत्यारों में सूचीबद्ध किया है।[१८]

इमाम अली (अ) और इमाम हसन (अ) की संगति

अदी इमाम अली (अ) के खिलाफ़त काल मे उनके साथ थे।[१९]

* जमल का युद्ध

इब्ने कुतैबा (मृत्यु 276 हिजरी) के वर्णन के अनुसार, अदी बिन हातिम ने जमल की लड़ाई के दौरान इमाम अली (अ) की मदद करने के लिए ताई जनजाति के तेरह हजार घुड़सवार प्रदान किए।[२०] युद्ध के दौरान, इमाम अली (अ) ने उन्हें और कई अन्य लोगों को उस ऊँट के मारने के लिए नियुक्त किया, जिस पर आयशा सवार थी।[२१] अदि जमल की लड़ाई में[२२] (और एक कथन के अनुसार सिफ़्फ़ीन की लड़ाई मे)[२३] उनकी आंख में चोट लग गई थी। और उनका पुत्र तुरैफ़ भी इस लड़ाई में मारा गया था।[२४]

* सिफ़्फ़ीन का युद्ध

सिफ़्फ़ीन की लड़ाई में अदी बिन हातिम और बनि हुज़मर के एक सदस्य के बीच सेना का झंडा ले जाने की होड़ थी, लेकिन इमाम अली (अ) ने झंडा अदी बिन हातिम को सौंप दिया।[२५] इस युद्ध में भी इमाम अली (अ) ने उन्हें और कुछ अन्य लोगों को अल्लाह और उसकी किताब की ओर आमंत्रित करने के लिए मुआविया के पास भेजा।[२६] सिफ़्फ़ीन के युद्ध में अदी का बेटा ज़ैद इमाम अली (अ) की सेना में था, लेकिन जब उसने अपने मामा हाबिस बिन साद ताई का शव देखा, जो मुआविया की सेना में था तो अदी के पुत्र ने इमाम अली (अ) की सेना छोड़ कर मुआविया की सेना में शामिल हो गया।[२७]

* नहरवान का युद्ध

अदी नहरवान[२८] की लड़ाई में भी इमाम अली (अ) की सेना में थे और उनका बेटा तरफा इस युद्ध[२९] में मारा गया था।

इमाम अली (अ) की शहादत के बाद

इमाम हसन मुज्तबा (अ) की ख़िलाफत के दौरान भी अदी लोगों को मुआविया के साथ जिहाद के लिए अपनी सेना में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित करते थे।[३०] अबुल फ़रज इस्फ़हानी के वर्णन के अनुसार जब उदी ने इमाम हसन की सेना में शामिल होने में लोगों के आलस्य को देखा, तो लोगो को संबोधित करते हुए अदी ने कहा: सुबहानल्लाह! तुम्हारा व्यवहार कितना घिनौना है! आप अपने इमाम और अपने पैगंबर के बेटे के निमंत्रण को स्वीकार क्यों नहीं करते?!... क्या आप भगवान के क्रोध से नही डरते?![३१]

मुआविया से इमाम अली (अ) का बचाव

शिया इतिहासकार अली बिन हुसैन मसऊदी के अनुसार, मुआविया ने अदी से पूछा: आपके बेटों का क्या हुआ? अदी ने कहा कि वे अली की सेना में मारे गए। मुआविया ने कहा: अली ने अपने बच्चों को बचाने और तेरे बच्चों को तलवार चलाने के लिए भेज दिया तुम्हारे साथ अली ने अच्छा व्यवहार नहीं किया। अदी ने कहा: "नहीं; भगवान की कसम मैंने न्याय नही किया अली शहीद हो गए और मैं अभी भी जीवित हूँ!"[३२]

उन्होंने मुआविया को अली (अ) के बारे में बुरा भला बोलने से भी आगाह किया और कहा: "ईश्वर की कसम, मुआविया! आपकी नफरत से भरे हुए दिल अभी भी हमारे सीने में धड़क रहे हैं और अली (अ) की सेना में आपके साथ लड़ी गई तलवारें हमारे कंधों पर हैं। यदि छल और कपट से तुम हमारे निकट आओगे, दो खुली उँगलियों के बीच की दूरी से भी कम हम तुम्हारे निकट आ जाएँगे। और निश्चित रूप से अली के बारे में बदनामी सुनने की तुलना में हमारे लिए अपना गला काटना और अपनी छाती में दम तोड़ना आसान है।"[३३]

तीसरी चंद्र शताब्दी के लेखक इब्राहिम बिन मुहम्मद बैहकी ने अल-महासिन वल-मुसावी किताब में अदी और मुआविया के बीच एक और बातचीत का वर्णन किया है। इस बातचीत में, मुआविया ने अदी से अली (अ) की गुणो का वर्णन करने के लिए कहा। अदी ने कहा: "मैं भगवान की कसम खाता हूं, वह दूरदर्शी और मजबूत थे, निर्णायक रूप से बोलते और शासन करते थे ..." अदी की बातें सुनने के बाद, मुआविया रोया और कहा: "अली की जुदाई में आपका धैर्य कैसा है ?" अदी ने उत्तर दिया: "उस महिला के धैर्य की तरह जिसने अपने बच्चे को गोद में लिया है; ना उसके आंसू नहीं सूखेंगे और उसका रोना समाप्त होगा।[३४] शेख अब्बास क़ुमी (मृत्यु 1359 शम्सी) ने इसका उल्लेख सफ़ीनातुल बिहार मे किया है। [३५]

कुछ अन्य स्रोतों में, इस बातचीत का श्रेय ज़रार बिन ज़ुमरा को दिया गया है।[३६]

मुख्तार से सिफ़ारिश करना

इस्लामिक इतिहास के शोधकर्ता मुहम्मद हादी यूसुफ ग़रवी (जन्म 1327 शम्सी) के अनुसार, अदी बिन हातिम के प्रतिशोध मे न तो उनके साथियों में से थे और न ही उनके विरोधियों में से थे।[३७] तय्य जनजाति के एक समूह जोकि मुख्तार सक़फ़ी का विरोधी था उनके और मुख्तार सक़फ़ी के बीच होने वाली जबानातुस सब्अ जंग मे उनको गिरफ्तार कर लिया गया।[३८] उदी बिन हातिम ने मुख्तार से उनको रिहा करने के लिए सिफ़ारिश की मुख्तार ने उन्हे रिहा कर दिया।[३९]  इसी प्रकार कर्बला की घटना मे उमर बिन साद की सेना के हकीम बिन तुफ़ैल ताई के परिवार ने अदी बिन हातिम से मुख्तार से सिफारिश करने के लिए कहा। जब अदी ने मुख्तार से उनके लिए सिफ़ारिश की, तो मुख़्तार ने कहा: आप हुसैन के हत्यारों में से किसी की सिफ़ारिश कैसे कर सकते हैं?! अदी ने कहा कि उनसे झूठ बोला गया। मुख्तार ने कहा, "अगर ऐसा है, तो चलिए इसे आप पर छोड़ता हूं।" लेकिन इससे पहले कि मुख्तार अदी की मध्यस्थता को स्वीकार करे मुख्तार के साथियों ने हकीम बिन तुफैल का काम समाप्त दिया।[४०]

हदीस की स्थिति

शेख़ तूसी ने उन्हें पैगंबर (स)[४१]  और इमाम अली (अ)[४२]  का सहाबी माना है। उन्होंने इमाम अली  (अ) से हदीसें बयान की हैं।[४३] साथ ही  उनसे कुछ हदीसो का सहीह बुखारी में वर्णन हुआ हैं।[४४]

फ़ुटनोट

  1.  इब्ने अब्दुल बिर, अल इस्तीआब, 1412 हिजरी, भाग 3, पेज 1057
  2. इब्ने साद, अल तबक़ात अल कुबरा, 1410 हिजरी, भाग 6, पेज 99
  3. देखेः इब्ने अब्दुल बिर, अल इस्तीआब, 1412 हिजरी, भाग 3, पेज 1057
  4.  देखेः इब्ने हजर अस्क़लानी, अल इसाबा, 1415 हिजरी, भाग 4, पेज 388
  5.  इब्ने अब्दुल बिर, अल इस्तीआब, 1412 हिजरी, भाग 3, पेज 1058
  6. इब्ने हेशाम, अल सीरत अल नबावीया, दार अल मारफ़ा, भाग 2, पेज 600
  7. याक़ूबी, तारीख अल याक़ूबी, दार ए सादिर, भाग 2, पेज 79
  8.  तिबरी, तारीख अल उमम वल मुलूक, 1387 हिजरी, भाग 3, पेज 111
  9. इब्ने हेशाम, अल सीरत अल नबावीया, दार अल मारफ़ा, भाग 2, पेज 578-580
  10. इब्ने हेशाम, अल सीरत अल नबावीया, दार अल मारफ़ा, भाग 2, पेज 578-580
  11. इब्ने हजर अस्क़लानी, अल इसाबा, 1415 हिजरी, भाग 4, पेज 388
  12. इब्ने हजर अस्क़लानी, अल इसाबा, 1415 हिजरी, भाग 4, पेज 388
  13.  इब्ने अब्दुल बिर, अल इस्तीआब, 1412 हिजरी, भाग 3, पेज 1058
  14. वाक़ेदी, अल रद्दा, 1410 हिजरी, पेज 89; इब्ने आसम, अल फ़ुतूह, 1411 हिजरी, भाग 1, पेज 14
  15. इब्ने हजर अस्क़लानी, अल इसाबा, 1415 हिजरी, भाग 3, पेज 440
  16. वाक़ेदी, अल रद्दा, 1410 हिजरी, पेज 89; इब्ने आसम, अल फ़ुतूह, 1411 हिजरी, भाग 1, पेज 14
  17. तिबरी, तारीख अल उमम वल मुलूक, 1387 हिजरी, भाग 3, पेज 486; इब्ने कसीर, अल बिदाया वल निहाया, 1407 हिजरी, भाग 6, पेज 344
  18. इब्ने आसम, अल फ़ुतूह, 1411 हिजरी, भाग 3, पेज 62
  19. इब्ने साद, अल तबक़ात अल कुबरा, 1410 हिजरी, भाग 6, पेज 99
  20. इब्ने क़तीबा, अल इमामा वल सियासा, 1413 हिजरी, भाग 1, पेज 77
  21.  बलाज़री, अंसाब अल अशराफ़, 1394 हिजरी, भाग 2, पेज 249
  22. बलाज़री, अंसाब अल अशराफ़, 1394 हिजरी, भाग 2, पेज 261
  23. इब्ने कसीर, अल बिदाया वल निहाया, 1407 हिजरी, भाग 7, पेज 275
  24. बलाज़री, अंसाब अल अशराफ़, 1394 हिजरी, भाग 2, पेज 261
  25. तिबरी, तारीख अल उमम वल मुलूक, 1387 हिजरी, भाग 5, पेज 9
  26. बलाज़री, अंसाब अल अशराफ़, 1394 हिजरी, भाग 2, पेज 302
  27. मुनक़री, वक़अतो सिफ़्फ़ीन, 1404 हिजरी, पेज 522
  28. तिबरी, तारीख अल उमम वल मुलूक, 1387 हिजरी, भाग 11, पेज 543
  29.  बलाज़री, अंसाब अल अशराफ़, 1394 हिजरी, भाग 2, पेज 375
  30. बलाज़री, अंसाब अल अशराफ़, 1394 हिजरी, भाग 3, पेज 32
  31. अबुल फ़रज इस्फ़हानी, मक़ातिल अल तालेबीन, दार अल मारफ़ा, पेज 70
  32. मसऊदी, मुरूज अल ज़हब, 1409 हिजरी, भाग 3, पेज 4
  33. मसऊदी, मुरूज अल ज़हब, 1409 हिजरी, भाग 3, पेज 4-5
  34. बीहक़ी, अल महासिन वल मुसावी, 1420 हिजरी, पेज 41
  35. क़ुमी, सफ़ीनातुल बिहार, फ़राहानी, भाग 6, पेज 184
  36. मसऊदी, मुरूज अल ज़हब, 1409 हिजरी, भाग 2, पेज 421; इब्ने अबुदल बिर, अल इस्तिआब, 1412 हिजरी, भाग 3, पेज 1107
  37.  यूसुफ़ी ग़रवी, मोसूआ अल तारीख अल इस्लामी, 1417 हिजरी, भाग 6, पेज 406
  38. यूसुफ़ी ग़रवी, मोसूआ अल तारीख अल इस्लामी, 1417 हिजरी, भाग 6, पेज 406
  39. इब्ने असीर, अल कामिल, 1385 हिजरी, भाग 4, पेज 242
  40. इब्ने असीर, अल कामिल, 1385 हिजरी, भाग 4, पेज 242
  41. तूसी, रेजाल अल तूसी, 1373 शम्सी, पेज 43
  42. तूसी, रेजाल अल तूसी, 1373 शम्सी, पेज 73
  43. ख़ूई, मोजम रेजाल अल हदीस, 1413 हिजरी, भाग 12, पेज 147
  44. देखेः बुख़ारी, सहीह अल बुख़ारी, 1422 हिजरी, भाग 1, पेज 46

1. दयार बकरी, तारीख अल ख़मीस, दार ए सादिर, भाग 1, पेज 255


स्रोत

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  • याक़ूबी, अहमद बिन अबी याक़ूब, तारीख अल याक़ूबी, बैरूत, दार ए सादिर
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