तोलक़ा
तुलाक़ा (अरबी: الطلقاء) का अर्थ है मुक्त किये गये, पैग़ंबर (स) के विरोधियों के एक समूह का ज़िक्र है, मक्का पर विजय प्राप्त करने (फ़तहे मक्का) के बाद, उनकी सज़ा माफ़ कर दी गई। अबू सुफ़ियान और उनके बेटे मुआविया सबसे प्रमुख तुलक़ा में से हैं।
सिफ़्फीन की लड़ाई में, इमाम अली (अ) ने तुलक़ा को उन लोगों के रूप में पेश किया जो हमेशा इस्लाम के प्रति शत्रुतापूर्ण रहे हैं और उन्होने अनिच्छा से इस्लाम को स्वीकार किया। तुलक़ा एक अपमानजनक शब्द है जो बनी उमय्या के लिए प्रयोग किया जाता था, और इसी आधार पर, उन्हें खिलाफ़त के योग्य नहीं माना जाता था।
संकल्पना
तुलक़ा का अर्थ है ऐसी बंदी जिन्हे मुक्त कर दिया गया हो।[१] पैगंम्बर (स) ने इस शब्द का इस्तेमाल मक्का की विजय (फ़तहे मक्का) के अवसर पर मक्का के एक समूह के बारे में किया था।[२] यह समूह पैगंबर (स) के विरोधियों में से एक था, जो मक्का की विजय के बाद अनिच्छा से मुस्लमान बन गए थे। पैगंबर (स) ने उन्हें ग़ुलाम नहीं बनाया और उन्हें तुलाक़ा के रूप में संबोधित किया, जिसका अर्थ है मुक्त लोग।[३]
14वीं शताब्दी के शिया विद्वान सय्यद मोहम्मद हुसैन तेहरानी के अनुसार, मक्का की विजय से पहले, तुलक़ा कहा करते था कि मुहम्मद को उसके लोगों के साथ छोड़ दो, अगर वह उन्हें हरा देता है तो हम इस्लाम में परिवर्तित हो जाएंगे, और यदि वे मुहम्मद को हरा देते हैं, तो उसके लोग हमें उससे बचा लेंगे।[४] तुलक़ा को, कभी-कभी उन्हें "मक्का की विजय के मुस्लिम" (मुस्लिमह अल-फ़त्ह) भी कहा जाता है।[५]
संख्या और हस्तियाँ
कुछ ऐतिहासिक रिपोर्टों के अनुसार, तुलक़ा दो हजार से अधिक लोग थे।[६] इसके अलावा, ऐतिहासिक स्रोतों में, अबू सुफियान, मुआविया बिन अबी सुफयान, यज़ीद बिन अबू सुफयान, सुहैल बिन अम्र, हुवेतब बिन अब्दुल उज़्ज़ा,[७] जबीर बिन मतअम, इकरमा बिन अबी जहल, अताब बिन असीद, सफ़वान बिन उमय्या, मुतिअ बिन असवद, हकीम बिन हेज़ाम, हारिस बिन हेशाम और हकम बिन अबिल-आस [८] का उल्लेख तुलक़ा के रूप में किया गया है।
हसन बिन फरहान मालिकी (जन्म 1390 हिजरी), एक सुन्नी विद्वान, ने पद और गरिमा के मामले में तुलक़ा को तीन समूहों में विभाजित किया है:
- एक समूह जिसके ईमान के सही होने पर पैगंम्बर (स) को भरोसा था और आपने उन्हें मुवल्लेफ़तुल क़ुलूब के हिस्से के रूप में कुछ भी नहीं दिया; जैसे इकरमा बिन अबी जहल, अताब बिन असीद और जबीर बिन मतअम।
- वह समूह जिसे पैगंबर (स) ने मुवल्लेफ़तुल क़ुलूब के हिस्से से संपत्ति दी; जिनमें अबू सुफियान, मुआविया, सफ़वान बिन उमय्या और मुतीअ बिन असवद शामिल हैं। इस समूह को तुलक़ा का सबसे निचला स्तर माना जाता है।
- पहले समूह और दूसरे समूह के बीच का समूह, जिन मेंं हारिस बिन हेशाम, सुहैल बिन अम्र और हकीम बिन हेज़ाम, जैसे लोग शामिल थे।[९]
बनी उमय्या के बारे में अपमानजनक प्रयोग
कुछ समकालीन शोधकर्ताओं के अनुसार, तुलाक़ा की व्याख्या एक प्रकार की बदनामी का संकेत देती थी[१०] और इस आधार पर बनी उमय्या को तुलाक़ा की पार्टी मानते थे।[११]
हजरत अली (अ) ने मुआविया को लिखे एक पत्र में उन्हें तुलाक़ा में से एक कहा और इसी आधार पर, उन्होंने उन्हें खिलाफ़त, इमामत और सलाह के योग्य नहीं मानते थे।[१२] इमाम अली (अ) ने इसी तरह से सिफ़्फ़ीन की जंग में तुलक़ा उन लोगों को माना। जिन्होंने अनिच्छा से, इस्लाम को अपनाया और हमेशा इस्लाम के साथ युद्ध की हालत में रहे।[१३] अली बिन अबी तालिब (अ) ने उन्हें क़ुरआन के दुश्मन, पैगंबर (स) की सुन्नत, और विधर्म (बिदअत वाले) और रिश्वतखोर लोगों के रूप में पेश किया है।[१४]
हज़रत ज़ैनब (स), जब वह यज़ीद बिन मुआविया की क़ैद में थी, तो उन्होने एक धर्मोपदेश में यज़ीद को तुलक़ा का बेटा कहा।[१५]
हिजरी की तीसरी शताब्दी के एक इतिहासकार अहमद बिन यहया बलाज़री ने अपनी पुस्तक अंसाब अल-अशराफ़ में जो ज़िक्र किया है, उसके अनुसार उमर बिन ख़त्ताब ने तुलक़ा और उनके बच्चों को खिलाफ़त के योग्य नहीं मानते थे।[१६]
फ़ुटनोट
- ↑ इब्ने मंज़ूर, लेसान अल-अरब, 1414 हिजरी, खंड 10, पृष्ठ 227।
- ↑ इब्ने हेशाम, अल-सिरह अल-नबविया, दार अल-मारेफा, खंड 2, पृष्ठ 412; तबरी, तारीख़ अल उमम वल-मुलूक, 1387, खंड 3, पृष्ठ 61।
- ↑ मक़रीज़ी, इम्ताअ अल-अस्माअ, 1420 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 391।
- ↑ हुसैनी तेहरानी, इमाम शेनासी, 1426 हिजरी, खंड 18, पृष्ठ 280
- ↑ मालिकी, साथी और साथी, 1422 हिजरी, पृष्ठ 192।
- ↑ मोकद्देसी, अल-बदा वल-तारीख़, अलमरकज़ अल-सक़ाफ़ा अल-दिनिया, खंड 4, पृष्ठ 236।
- ↑ हुसैनी तेहरानी, इमाम शेनासी, 1426 हिजरी, खंड 18, पृष्ठ 280।
- ↑ मालिकी, अस सोहबा वस सहाबा, 1422 हिजरी, पेज। 192-193।
- ↑ मालिकी, अस सोहबा वस सहाबा, 1422 हिजरी, पेज। 192-193।
- ↑ जवादी, "तुलक़ा व नक़्शे आनान दर तारीख़े", पृष्ठ 7।
- ↑ जवादी, "तुलक़ा व नक़्शे आनान दर तारीख़े", पृष्ठ 2।
- ↑ मनक़री, वक़आ सिफ़्फ़ीन, 1404 हिजरी, पृष्ठ 29।
- ↑ इब्ने कुतैबा अल-दिनुरी, अल इमामा वस सियासा, 1410 हिजरी, पृष्ठ 178।
- ↑ इब्ने कुतैबा अल-दिनुरी, अल इमामा वस सियासा, 1410 हिजरी, पृष्ठ 178।
- ↑ तबरसी, अल-इहतेजाज, 1403 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 308।
- ↑ बलाज़री, जमल मिन अंसाब अल-अशराफ़, 1417 हिजरी, खंड 10, पेज 434-435; इब्ने हजर असक़लानी, 1415 हिजरी, खंड 4, पृष्ठ 70।
स्रोत
- इब्ने हजर अस्कलानी, अल-इसाबा फ़ी तमईज़ अल सहाबा, शोध: आदिल अहमद अब्द अल-माैजूद और अली मुहम्मद मुअव्वज़, बेरूत, दार अल-किताब अल-इल्मिया, 1415 हिजरी/1995 ई.
- इब्ने कुतैबा अल-दैनूरी, अब्दुल्लाह बिन मुस्लिम, अल इमामा वस सियासा, शोध: अली शिरी, बेरूत, दार अल-अज़वा, पहला संस्करण, 1410 हिजरी।
- इब्ने मंज़ूर, मुहम्मद इब्न मकरम, लिसानुल अरब, अहमद फ़ार्स द्वारा संपादित, बेरूत, दार अल-फ़िक्र, 1414 हिजरी।
- इब्ने हेशाम, अल-सीरह अल-नबविया, अब्दुल मलिक इब्न हेशाम, शोध: मुस्तफा अल-सक्का, इब्राहिम अल-अबियारी और अब्दुल हाफिज शिबली, बेरूत, दार अल-मारेफा, बी ता।
- बलाज़री, अहमद बिन यहया, किताब जमल मिन अंसाब अल-अशराफ़, शोध: सोहेल ज़कार और रियाज़ ज़रकाली, बेरूत, दार अल-फ़िक्र, 1417 हिजरी/1996 ई.।
- जवादी, सैय्यद महदी, "तुलक़ा व नक़्शे आनहा दर तारीख़े इस्लाम", पजोहिश नामा मैगज़ीन में, संख्या 12, शरद ऋतु 2007।
- हुसैनी तेहरानी, सैय्यद मोहम्मद हुसैन, इमाम शेनासी, मशहद, अल्लामा तबताबाई प्रकाशन, 1426 हिजरी।
- तबरसी, अहमद बिन अली, अल-इहतजाज अली अहल अल-लुजाज, मशहद, मुर्तज़ा पब्लिशिंग हाउस, 1403 हिजरी।
- तबरी, मुहम्मद बिन जरीर, तारीख़ अल उमम वल-मुलूक, बेरूत, दार अल-तुरास, 1378।
- मालिकी, हसन बिन फरहान, अल-सोहबा वस सहाबा बैनल इतलाक़ अल लुग़वी वत तख़सीस अल शरई, अम्मान, अल-मरकज़ अलदेरासात अल तारीख़िया, 1422 हिजरी/2002 ईस्वी।
- मुकद्देसी, मुतह्हिर बिन ताहिर, अल-बदा वल-तारीख़, बुर सईद, मकतब अस सक़ाफ़ा वल-दिनियह, बी ता।
- मक़रीज़ी, अहमद बिन अली, इम्ता'आ अल-इस्मा'अ बेमा लिन नबी, मिनल अहवाल वा अल-अमवाल, वल-हफ़दा वा अल-मुता'अ, शोध: मुहम्मद अब्दुल हमीद अल-नमीसी, बेरूत, दार अल-कुतुब अल-इल्मिया, 1420 हिजरी/1999 ई.
- मनक़री, नस्र बिन मोज़ाहिम, वक़आ सिफ़्फीन, शोध: अब्द अल-सलाम मुहम्मद हारून, अल-अरबिया अल-हदीसा, 1382 हिजरी/ऑफसेट: क़ुम, मंशूरात अलमकतबा अल-मरअशी अल-नजफी, 1404 हिजरी।