अदालते सहाबा
अदालते सहाबा (अरबीः عدالة الصحابة) अधिकांश सुन्नीयो का दृष्टिकोण है जिसके अंतर्गत वो पैग़म्बर (स) के तमाम सहाबीयो को आदिल और अहले बहिश्त समझते है। इस सिद्धांत के अनुसार, सहाबीयो की आलोचना और विरोध करने की अनुमति नहीं है, और उनके कथनों को बिना जरह व तादील के स्वीकार किया जाता है। शिया विद्वानों और सुन्नी विद्वानों का एक समूह पैगंबर (स) सहाबीयो को दूसरे मुसलमानों के समान मानता है और अदालते सहाबा के सिद्धांत को अस्वीकार नही करते है।
सहाबीयो की आदलत के समर्थकों ने क़ुरआन की आयतों के साथ-साथ पैगंबर के कथनों के साथ तर्क दिया है, उनमें से रिज़वान वाली आयत है, जिसमे सहाबीयो के साथ भगवान की संतुष्टि की बात कही गई है। दूसरी ओर, विरोधियों ने ये आयतें केवल उन सहाबीयो से मख़सूस की हैं, जो बैयत ए रिज़वान मे मौजूद थे और अपने वादे पर अडिग रहे। साथ ही, विरोधियों के अनुसार, अदालते सहाबा का सिद्धांत क़ुरआन की उन आयतों के अनुकूल नहीं है जो पैगंबर (स) के सहीबीयो के बीच पाखंडियों के अस्तित्व के बारे में सूचित करती हैं। अदालते सहाबा के सिद्धांत की आलोचना में अदालत के खिलाफ सहाबीयो के कुछ कार्यों और व्यवहार जैसे धर्मत्याग, शराब पीना, अली (अ) को अपशब्द कहना, मुसलमानों की हत्या करना और एक दूसरे के खिलाफ अभियान चलाना भी बयान किया गया है।
कुछ शिया शोधकर्ताओ का मानना है कि अदालते सहाब के सिद्धांत को लक्ष्यों के साथ प्रस्तावित किया गया था जैसे कि तीन खलीफाओं के खिलाफत को सही ठहराना और मुआविया बिन अबी सुफयान के शासन को वैध बनाना इत्यादि। सहाबा के इज्तिहाद, मुसलमानों के बीच मतभेद, क़ुरआन और सुन्नत को समझने मे सहाबीयो का अनुसरण, सहाबा की बातों को प्रमाण समझना और उनसे वर्णित हदीसों को बिना किसी जरह वा तादील (रावी की आलोचना और प्रशंसा के सिद्धांत) के स्वीकार करना इस सिद्धांत के परिणाम माने जाते हैं।
सहाबी की परिभाषा
- मुख्य लेख: सहाबी
सहाबी उस व्यक्ति को कहा जाता है जिसने पैगंबर (स) से मुलाक़ात की हो और निधन के समय भी वह पैगंबर (स) पर ईमान रखता हो और मुसलमान हो।[१] मुलाक़ात अर्थात दर्शन, एक दूसरे के साथ घूमना-फिरना, एक दूसरे का साथ देना शामिल है।[२] हालाकि कुछ ने उपरोक्त परिभाषा में कुछ शर्तें की वृद्धि की हैं; जैसे कि पैगंबर (स) के साथ लंबे समय तक संबंध, उनसे हदीसो को कंठस्थ करना, पैगंबर (स) की ओर से लड़ाई करना और शहादत प्राप्त करना,[३] और कुछ दूसरे लोग सहाबी होने के लिए केवल पैगंबर (स) से मिलने या दर्शन से ही संतुष्ट हो गए हैं;[४] लेकिन सातवी आठवी शताब्दी के सुन्नी विद्वान इब्ने हजर अस्क़लानी के अनुसार, प्रमुख सुन्नी विद्वानों द्वारा सहाबी की परिभाषा मे जो स्वीकार किया जाता है वह प्रारम्भिक परिभाषा है।[५]
कुछ स्रोतों के अनुसार, पैगंबर (स) के स्वर्गवास के समय सहीबीयो की संख्या एक लाख चौदह हज़ार थी।[६] जो लोग बचपन में पैगंबर (स) से मिले, उन्हे देखा उन्हें सहाबा सिग़ार और महिलाओं को सहाबीयात कहा जाता है।[७]
सिद्धांत की व्याख्या
सुन्नी विद्वानों के प्रसिद्ध मत के अनुसार, सभी सहाबी आदिल हैं।[८] इब्ने हजर असक़लानी ने दावा किया कि सभी सुन्नियों ने सभी सहाबीयो की अदालत पर सहमति व्यक्त की, और उन्होंने इसके विरोधियों को मुब्तदेआ कहा है।[९] उन्होंने इब्ने हज़म (मृत्यु 456 हिजरी) से भी उद्धृत किया कि सभी सहाबी स्वर्ग में जाएंगे और उनमें से कोई भी नर्क में नहीं जाएगा।[१०]
हालांकि, सुन्नी विद्वान माज़री (मुहम्मद बिन अली बिन उम्र अल-माज़री, अबू अब्दिल्लाह की उपनाम मृत्यु 530 या 536 हिजरी) ने केवल सहाबीयो के एक समूह की अदालत को स्वीकार किया जो पैगंबर (स) के कर्मचारी थे। जिन्होने उनका सम्मान किया और उनकी मदद की, और "उनके साथ नाज़िल होने वाले नूर।" उनका अनुसरण किया।[११] कुछ अन्य सुन्नी पैगंबर (स) के सहाबीयो को अन्य मुसलमानों की तरह मानते हैं और इस बात मे विश्वास करते है कि केवल पैगंबर (स) के साथ रहना आदिल होने का कारण नही है।[१२]
अहमद हुसैन याकूब के अनुसार, सहाबीयो के आदिल होने का अर्थ यह है कि सहाबीयो के बारे में झूठ बोलना और उनकी आलोचना करना जायज़ नहीं है, भले ही उन्होंने कोई गलती की हो।[१३] इब्ने असीर उसद अल-ग़ाबा की प्रस्तावना में लिखते हैं, "सारे सहाबी आदिल हैं और उनकी कोई आलोचना नही की जा सकती।"[१४] इस कारण से कुछ सुन्नी विद्वानों ने कहा है कि जो कोई भी पैगंबर (स) के सहाबीयो मे से किसी पर कोई नक़्स करता है तो वह काफिर है।[१५]
सहाबा के आदिल होने का अर्थ एक ऐसा लक्षण माना जाता है जिसके आधार पर सहाबा की बातें स्वीकार की जाती हैं। ख़तीब अल-बग़दादी ने लिखा: कोई भी हदीस जो पैगंबर (स) तक जाती हो, उस पर अमल करना उस समय वाजिब है जब उसके कथाकारों (रावीयो) की अदालत सिद्ध हो जाए, सहाबीयो को छोड़कर; क्योंकि सहाबीयो की अदालत सिद्ध हो चुकी है; क्योंकि परमेश्वर ने उन्हें न्यायोचित ठहराया है और उन्हें उनकी शुद्धता के बारे में बताया है।[१६]
समर्थकों के तर्क
सहाबीयो की अदालत को साबित करने के लिए, सुन्नियों ने क़ुरआन की आयतों और पैगंबर (स)[१७] की हदीसो के साथ निम्नलिखित तर्क दिए है:
- वो आयते जो इस बात पर तर्क है कि परमेश्वर सहाबीयो से प्रसन्न हैं; जैसे कि "وَالسَّابِقُونَ الْأَوَّلُونَ مِنَ الْمُهَاجِرِینَ وَالْأَنصَارِ وَالَّذِینَ اتَّبَعُوهُم بِإِحْسَانٍ رَّضِی اللَّـهُ عَنْهُمْ وَرَضُوا عَنْهُ»؛ वस्सेबेकूनल अव्वलूना मिनल मुहाजेरीना वल अंसारे वल लज़ीना इत्तबाऊहुम बेएहसानिर रज़िल्लाहो अनहुम वा रज़ू अन्हो, अनुवादः और प्रवासियों और अंसार के पहले पायनियर, और जो अच्छे कर्मों के साथ उनका पालन करते हैं, भगवान उनसे प्रसन्न हैं और वे उससे प्रसन्न हैं)[१८] इसके अलावा "لَّقَدْ رَضِيَ اللَّـهُ عَنِ الْمُؤْمِنِينَ إِذْ يُبَايِعُونَكَ تَحْتَ الشَّجَرَةِ» लक्द रज़ेयल्लाहो अनिल मोमेनीना इज़ योबायेऊनका तहतश शजर[१९] (निःसन्देह, ईश्वर ईमानवालों से प्रसन्न हुआ जब उन्होंने उस पेड़ के नीचे तुमसे अपनी निष्ठा की शपथ ली।)[२०] सुन्नी विद्वानो के अनुसार ईश्वर का सहाबा से प्रसन्न होना उनके आदिल होने का तर्क हैं, और कहते है कि जिससे ईश्वर प्रसन्न होता है, वह उस पर कभी क्रोधित नहीं होगा और उस पर अज़ाब नही करेगा।[२१] शिया विद्वानों के अनुसार, ये आयतें सभी सहाबीयो की अदलत पर दलालत नही करती है; क्योंकि पहली आयत से यह समझा जा सकता है कि भगवान कुछ मुहाजेरान और अंसार का जिक्र कर रहा हैं नाकि सभी का ज़िक्र कर रहा है।[२२] दूसरी आयत में केवल उन सहाबीयो को बयान कर रहा है जो बैअत ए रिज़वान मे उपस्थित थे और अपने किए हुए वादे पर दृढ़ रहे, नाकि सभी सहाबा।[२३] इसी तरह सभी सहाबीयो की अदालत इस आयम मे وَمِمَّنْ حَوْلَكُم مِّنَ الْأَعْرَابِ مُنَافِقُونَ ۖ وَمِنْ أَهْلِ الْمَدِينَةِ ۖ مَرَدُوا عَلَى النِّفَاقِ वा मिम्मन हौलाकुम मिनल आराबे मुनाफ़ेक़ूना वा मिन अहलिल मदीनते मरादू अलन नेफ़ाक़े[२४] जाहिर नही है क्योंकि उल्लिखित आयत कुछ सहाबीयो को पाखंडी के रूप में पेश करती है।[२५]
- वे आयतें जो मुसलमानों को सर्वश्रेष्ठ उम्मत और उम्मते वस्त के रूप में पेश करती हैं, जैसे कि كُنتُمْ خَیرَ أُمَّةٍ أُخْرِجَتْ لِلنَّاسِ कुंतुम खैरा उम्मतिन उखरेजत लिन्नासे"[२६] और आयत "وَ کَذلِکَ جَعَلْناکُمْ أُمَّةً وَسَطاً वकज़ालेका जाअलनाकुम उम्मतन वस्ता"[२७] कुछ सुन्नी मुफ़स्सिरो ने उम्मते वस्ता को आदिल उम्मत से तफसीर की है।[२८] और उन्होंने कहा कि यद्यपि उम्मत शब्द सामान्य है, इसका अर्थ विशिष्ट (सहाबा) है और यह आयत सहाबीयो के बारे में उतरी है,[२९] हालाकि शिया विद्वानो का कहना है कि यह आयत पैगंबर (स) के कुछ सहाबीयो के व्यवहार पर दलालत करती है उनकी उपस्थिति के कारण पैगंबर (स) की उम्माह को ईश्वर ने सर्वश्रेष्ठ उम्माह कहा है, सभी साथियों को नहीं कहा।[३०]
- असहाबी कल नुजुम की हदीस; इस हदीस में पैगंबर (स) के सहाबीयो की तुलना सितारों से की गई है, उनमें से प्रत्येक का अनुसरण करने से मार्गदर्शन मिलता है। शिया विद्वानों और कुछ सुन्नी विद्वानों के अनुसार, उपरोक्त कथन नकली और मनगढ़ंत है जिकि क़ुरआन की आयतों और पैगंबर (स) के अन्य कथनों के अनुकूल नहीं है।[३१]
इनके अलावा सहाबा की अदालत को सिद्ध करने के लिए क़ुरआन की अन्य आयतों[३२] और "हदीसे खैरुल क़ुरून क़रनी" और "ला तसब्बू असहाबी" जैसी हदीसो से इस्तिदलाल किया गया है।[३३] जबकि पैगंबर (स) के साथियों के बीच पाखंडी और धर्मत्यागी का अस्तित्व उपरोक्त आयतो और हदीसो को सभी सहाबीयो के आदिल होने को लागू करने से रोकता है।[३४] उदाहरण के लिए, नबा की आयत के टीकाकारों के अनुसार, जो कहते है: "यदि कोई दुष्ट व्यक्ति आपके लिए खबर लाता है, तो उसकी जांच करें",[३५] वलीद बिन अक़बा के बारे मे जो कि सहाबी था उसके लिए उतरी है।[३६]
सहाबीयो का प्रदर्शन
शिया विद्वानों और कुछ सुन्नी विद्वानों का मानना है कि कुछ सहाबीयो के कार्य उनके अदालत के सिद्धांत का उल्लंघन करते हैं। सय्यद मोहसिन अमीन के अनुसार, उबैदुल्लाह बिन जहश, उबैदुल्लाह बिन ख़तल, रबिआ बिन उमय्या और अशअस बिन क़ैस जैसे सहाबी धर्मत्यागी हो गए है।[३७] इसके अलावा, सहीह बुखारी में एक कथन के आधार पर, पैगंबर (स) ने सहाबीयो के धर्मत्यागीयो की संख्या के बारे में सूचित किया है।[३८]
ऐतिहासिक पुस्तकों में कुछ साथियों के अन्यायपूर्ण व्यवहार के प्रमाण भी मिलते हैं, जैसे शराब पीना, अली (अ) को अपशब्द कहना, आदिल इमाम का विरोध करना और मुसलमानों की हत्या करना इत्यादि। बुस्र बिन अरताह ने इमाम अली (अ) के लगभग 30 हज़ार शियो का नरसंहार किया,[३९] मुग़ैयरा बिन शौबा ने इमाम अली (अ) को लगभग नौ साल तक मिम्बर से अपशब्द कहे और बदनाम किया,[४०] ख़ालिद बिन वलीद ने मालिक बिन नुवैरा को शहीद किया और उसी रात उनकी पत्नी के साथ सोया था।[४१] और वलीद बिन अक़बा शराब पीता था।[४२] मुहम्मद बिन इद्रीस शाफ़ई ने भी वर्णन किया है कि पैगंबर (स) के सहाबीयो मे से मुआविया बिन अबू सुफ़यान, अम्र बिन आस, मुग़ैरा बिन शोबा और ज़ियाद बिन अबीह की गवाही को स्वीकार नहीं किया जाता है।[४३]
इसके अलावा, जमल की लड़ाई में एक-दूसरे के हाथों सहाबीयो की हत्या, जिसमें सहाबीयो के दो समूह एक-दूसरे का सामना खड़े थे, सभी सहाबीयो की अदालत के सिद्धांत के अनुकूल नहीं है; सुन्नी मोतज़ली इब्ने अबील हदीद जिन सहाबीयो ने जमल की लड़ाई कराई उन्हे जहन्नमी मानते है, और उनमें से केवल आयशा, तलहा और ज़ुबैर को पश्चाताप के कारण बाहर रखा है। विद्रोह पर जोर देने के कारण सिफ़्फ़ीन की लड़ाई में सीरियाई सेना के बारे में भी उनका यही मत है। उन्होने मोतज़ली सह-विचारकों के अनुसार, ख्वारिज को जहन्मी मानते है।[४४]
लक्ष्य और परिणाम
शियो ने अदालते सहाबा के सिद्धांत को स्वीकार नहीं किया है और उनका मानना है कि पैगंबर (स) के साथी बाकी मुसलमानों की तरह थे और किसी की अदालत सिर्फ पैगंबर (स) के साथ रहने से सिद्ध नहीं हो सकती।[४५] उनके अनुसार, यह संभव नहीं है कि पैगंबर ए इस्लाम (स) के सभी सहाबा धर्मपरायणता (तक़वा) के स्तर तक पहुंच गए हों ताकि उन्हे अदालत (बड़े पापों को छोड़ना और छोटे पापों को करने पर जोर नहीं देते) से परिचित कराया जा सके, जबकि इस्लामी इतिहास के स्रोतों के अनुसार, कुछ सहाबा ने डर, नाचारी और मोअल्लेफ़तिल क़ुलूब के कारण पैगंबर (स) पर ईमान व्यक्त किया।[४६] उनके अनुसार, सहाबा की अदालत की चर्चा निम्नलिखित लक्ष्यों के साथ की गई है, जिनमें से कुछ हैं:
- तीन खलीफाओं के खिलाफत का औचित्य,
- सहाबा के लिए प्रतिरक्षा और उन्हें आलोचना और विरोध करने से रोकना।
- मुआविया बिन अबी सुफ़यान के शासन को वैध बनाना और उसके कार्यों को न्यायोचित ठहराना।[४७]
सहाबीयो के कुछ व्यवहारों को सही ठहराने के लिए सहाबा के इज्तिहाद के सिद्धांत को स्थापित करना, क़ुरआन और सुन्नत को समझने मे सहाबीयो का अनुसरण, मुसलमानो के बीच मतभेद,सहाबा की बातों को प्रमाण समझना और उनसे वर्णित हदीसों को बिना किसी जरह वा तादील (रावी की आलोचना और प्रशंसा के सिद्धांत) के स्वीकार करना इस सिद्धांत के परिणाम माने जाते हैं।[४८]
मोनोग्राफ़ी
अदालते सहाबा का मुद्दा शिया और सुन्नी के बीच मतभेदों में से एक है, जिसे सहाबा के लेखन,[४९] तफसीर[५०] और धर्मशास्त्र[५१] में ध्यान दिया गया है। शियो ने इसके बारे में स्वतंत्र पुस्तकें भी लिखी हैं, जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं:
- अदालते सहाबा, 14 वीं शताब्दी के शिया विद्वान सय्यद अली मिलानी द्वारा फ़ारसी भाषा मे रचित है। इस पुस्तक में अदालते सहाबा पर दिए गए तर्को की आलोचना की गई है। लेखक ने क़ुरआन की आयतो से कुछ सहाबीयो के बड़े पापो को सुन्नीयो के बुज़र्ग से कुछ सहाबा के आदिल न होने के उदाहरण पेश किए है।
- अदालते सहाबा दर परतोए क़ुरआन, सुन्नत वा तारीख, मरजा ए तक़लीद मुहम्मद आसिफ़ मोहसिनी द्वारा संकलित है। इस पुस्तक मे अदालते सहाबा को तक़रीब बैनल मज़ाहिब के दृष्टिकोण से जाच की गई है। शिया और सुन्नी विद्वानों के अनुसार सहाबी की परिभाषा और क़ुरआन की आयतों के अनुसार कुछ सहाबा की अनैतिकता और पाखंड के अस्तित्व को साबित करना पुस्तक के विषयों में से एक है। लेखक ने शियो द्वारा सभी सहाबा के काफ़िर होने के दावे को भी खारिज किया है।[५२]
नजरया अदालत अल सहाबा वल मरजेईयत अल सियासा फ़िल इस्लाम, अहमद हुसैन याकूब[५३] द्वारा लिखित, अदालते सहाबा सय्यद मुहम्मद यसरबी[५४] द्वारा लिखित, बर रसी नज़रया अदालत सहाबा गुलाम मोहसिन ज़ैनली[५५] की रचना और अहले-बैत[५६] की विश्व सभा के अनुसंधान समूह द्वारा नज़रया अदालते सहाबा अन्य कार्यों में से हैं, जो अदालते सहाबा के सिद्धांत की आलोचना में लिखी गई है।
संबंधित लेख
फ़ुटनोट
- ↑ इब्ने हजर अस्क़लानी, अल इसाबा, 1415 हिजरी, भाग 1, पेज 158
- ↑ शहीद सानी, अल रेआयतो फ़ी इल्म अल देराया, 1408 हिजरी, पेज 339
- ↑ देखेः इब्ने हजर अस्क़लानी, अल इसाबा, 1415 हिजरी, भाग 1, पेज 159
- ↑ याकूब, नजरया अदालत अल सहाबा, 1429 हिजरी, पेज 15
- ↑ इब्ने हजर अस्क़लानी, अल इसाबा, 1415 हिजरी, भाग 1, पेज 159
- ↑ शहीद सानी, अल रेआयतो फ़ी इल्म अल देराया, 1408 हिजरी, पेज 345
- ↑ इब्ने हजर अस्क़लानी, अल इसाबा, 1415 हिजरी, भाग 7, पेज 679, भाग 8, पेज 113
- ↑ इब्ने असीर, असद उल ग़ाबा, 1409 हिजरी, भाग 1, पेज 10; इब्ने अब्दुल बिर्र, अल इस्तीआब,, 1992 ई, भाग 1, पेज 2
- ↑ इब्ने हजर असक़लानी, अल इसाबा, 1415 हिजरी, भाग 1, पेज 162
- ↑ इब्ने हजर असक़लानी, अल इसाबा, 1415 हिजरी, भाग 1, पेज 163
- ↑ देखेः इब्ने हजर असक़लानी, अल इसाबा, 1415 हिजरी, भाग 1, पेज 163
- ↑ इब्ने अबलि हदीद, शरह नहजुल बलागा, 1378-1384 हिजरी, भाग 1, पेज 9
- ↑ याक़ूब, नजरया अदालत अल सहाबा, 1429 हिजरी, पेज 15
- ↑ इब्ने असीर, असद उल ग़ाबा, 1409 हिजरी, भाग 1, पेज 10
- ↑ इब्ने हजर असक़लानी, अल इसाबा, 1415 हिजरी, भाग 1, पेज 162
- ↑ खतीब बगदादी, अल किफ़ाया, अल मकतब अल इल्मी, भाग 1, पेज 64
- ↑ खतीब बगदादी, अल किफ़ाया, अल मकतब अल इल्मी, भाग 1, पेज 64; इब्ने हजर असक़लानी, अल इसाबा, 1415 हिजरी, भाग 1, पेज 162
- ↑ सूर ए तौबा, आयत न 100
- ↑ सूर ए फ़्तह, आयत न 18
- ↑ खतीब बगदादी, अल किफ़ाया, अल मकतब अल इल्मी, भाग 1, पेज 64; इब्ने हजर असक़लानी, अल इसाबा, 1415 हिजरी, भाग 1, पेज 162-163
- ↑ इब्ने अब्दुल बिर्र, अल इस्तीआब,, 1992 ई, भाग 1, पेज 4
- ↑ अल्लामा तबातबाई, अल मीज़ान, 1417 हिजरी, भाग 9, पेज 374; सुब्हानी, अल इलाहीयात, 1412 हिजरी, भाग 4, पेज 445
- ↑ तूसी, अल तिबयान, दार एहया अल तुरास अल अरबी, भाग 9, पेज 329
- ↑ सूर ए तौबा, आयत न 101
- ↑ सूर ए तौबा, आयत न 101
- ↑ सूर ए आले इमरान, आयत न 110
- ↑ सूर ए बक़रा, आयत न 143
- ↑ सीवती, अल दुर अल मंसूर, 1404 हिजरी, भाग 1, पेज 144; फ़ख़्र राज़ी, तफसीर अल कबीर, 1420 हिजरी, भाग 4, पेज 84
- ↑ खतीब बगदादी, अल किफ़ाया, अल मकतब अल इल्मी, भाग 1, पेज 64
- ↑ अल्लामा तबातबाई, अल मीज़ान, 1417 हिजरी, भाग 1, पेज 123
- ↑ सुब्हानी, अल इलाहीयात, 1412 हिजरी, भाग 4, पेज 443
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- ↑ इब्ने हजर असक़लानी, अल इसाबा, 1415 हिजरी, भाग 1, पेज 165
- ↑ अल्लामा तबातबाई, अल मीज़ान, 1417 हिजरी, भाग 9, पेज 374
- ↑ सूर ए हुज्रात, आयत न 6
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- ↑ अबू रय्या, शेख अलमुज़ीरत अबू हुरैरा, दार अल मआरिफ़, पेज 219
- ↑ इब्ने अबिल हदीद, शरह नहजुल बलागा, 1378-1384 हिजरी, भाग 1, पेज 9
- ↑ शहीद सानी, अल रआया फ़ी इल्म अल देराया, 1408 हिजरी, पेज 343; अमीन, आयान अल शिया, 1419 हिजरी, भाग 1, पेज 161
- ↑ अमीन, आयान अल शिया, 1419 हिजरी, भाग 1, पेज 162
- ↑ याक़ूब, नजरया अलादत अल सहाबा, पेज 107
- ↑ फ़खअली, गुफ़्तेमान अदालत सहाबा, पाएगाह तखस्सूसी वहाबीयत पुज़ूही
- ↑ इब्ने अब्दुल बिर्र, अल इस्तीआब, 1992 ई, भाग 1, पेज 4; इब्ने असीर, असद उल गाबा, 1409 हिजरी, भाग 1, पेज 10; इब्ने हजर असक़लानी, अल इसाबा, 1415 हिजरी, भाग 1, पेज 161-165
- ↑ देखेः अल्लामा तबातबाई, अल मीज़ान, 1417 हिजरी, भाग 9, पेज 374-375
- ↑ देखेः सुब्हानी, अल इलाहीयात, 1412 हिजरी, भाग 4, पेज 445
- ↑ अदालते सहाबा दर परतौ ए क़ुरआन, सुन्नत वा तारीख़, पाएगाह इत्तेला रसानी हदीस शिया
- ↑ नजरया अदालत अल सहाबा वल मरजेईयत अल सियासिया फ़िल इस्लाम, किताब खाना मदरसा फ़क़ाहत
- ↑ अदालते सहाबा, मजमूआ ए नक़्द व बररसी, साइट पातूक़ किताबे फ़रदा
- ↑ बररसी नज़रया ए अदालते सहाबा, शब्का जामेअ किताब गैसूम
- ↑ नज़रया अदालते सहाबा, साइट मजमा जहानी अहले-बैत
स्रोत
- क़ुरआन करीम
- इब्ने असीर, अली बिन मुहम्मद, असद उल ग़ाबा फ़ी मारफ़त अल सहाबा, दार अल फ़िक्र, बैरूत, 1409 हिजरी
- इब्ने अबिल हदीद, अब्दुल मजीद, शरह नहज अल बलाग़ा, बे कोशिश मुहम्मद अबुल फ़ज़्ल इब्राहीम, काहिरा, 1378-1384 हिजरी / 1959-1964 ई
- इब्ने अब्दुल बिर्र, युसूफ़ बिन अब्दुल्लाह, अल इस्तीआब फ़ी मारफ़त अल अस्हाब, शोधः अली मुहम्मद अल बजावी, बैरूत, दार अल जैल, 1992 हिजरी
- इब्ने आसम कूफ़ी, अहमद बिन आसम, अल फ़ुतूह, शोधः अली शीरी, बैरूत, दार अल अज़्वा, 1411 हिजरी
- इब्ने हजर अस्क़लानी, अहमद बिन अली, अल इसाबा फ़ी तमीईज अल सहाबा, शोधः आदिल अहमद अब्दुल मौजूद, अली मुहम्मद मोअव्विज़, बैरूत, दार अल कुतुब अल इल्मीया, 1415 हिजरी
- अबू रय्या, महमूद, शेख अल मुज़ीरा अबू हुरैरा, मिस्र, दार अल मआरिफ़
- अमीन, सय्यद मोहसिन, आयान अल शिया, शोधः हसन अमीन, बैरूत, दार अल तआरुफ़, 1419 हिजरी
- बुख़ारी, मुहम्मद बिन इस्माईल, सहीह बुख़ारी, शोधः दार तौक़ अल नेजात, 1422 हिजरी
- बलाज़ुरी, अहमद बिन याह्या, अंसाब अल अशराफ़, शोधः अहसान अब्बास, बैरूत, जमईत अल मुस्तशरेक़ीन अल अलमानीया, 1400 हिजरी
- हमीदी, मुहम्मद बिन फ़ुतूह, अल जमअ बैनल सहीहैन अल बुख़ारी वा मुस्लिम, शोधः अली हुसैन अल बवाब, बैरूत, दार इब्ने हज़्म, 1423 हिजरी
- खतीब बग़दादी, अहमद बिन अली, अल किफ़ाया फ़ी इल्म अल रिवाया, शोध अबू अब्दिल्लाह अल सूरक़ी व इब्राहीम हम्दी अल मदनी, मदीना, अल मकतब अल इल्मीया
- दूख़ी, याह्या अब्दुल हुसैन, अदालत अल सहाबा बैनल कद्दासते वल वाकैअ, अल मजमा अल आलमी ले अहले-बैत, 1430 हिजरी
- सुब्हानी, जाफ़र, अल इलाहीयात अला हुदा अल किताब वल सुन्नत वल अक़ल, क़ुम, अल मरकज़ अल आलमी लिद देरासात अल इस्लामीया, 1412 हिजरी
- शहीद सानी, जैनुद्दीन बिन अली, अल रेआया फ़ी इल्म अल देराया, शोधः अबुद्ल हुसैन मुहम्मद अली बक़्क़ाल, क़ुम, मकतब आयतुल्लाहिल उज़्मा अल मरअशी अल नजफ़ी, 1408 हिजरी
- तबातबाई, सय्यद मुहम्मद हुसैन, अल मीज़ान फ़ी तफ़सीर अल क़ुरआन, क़ुम, दफ़्तर इंतेशारात इस्लामी वा बस्ता बेह जामे मुदर्रेसीन हौज़ा ए इल्मीया क़ुम, 1417 हिजरी
- तबरसी, फ़ज़्ल बिन हसन, मजमा अल बयान फ़ी तफ़सीर अल क़ुरआन, मुक़द्दमा महमूद बलाग़ी, तेहरान, इंतेशारात नासिर खुस्रो, 1372 शम्सी
- तूसी, मुहम्मद बिन हसन, अल तिबयान फ़ी तफ़सीर अल क़ुरआन, शोधः अहमद क़सीर आमोली, मुकद्दमा आक़ा बुजुर्ग तेहारनी, बैरूत, दार एहया अल तुरास अल अरबी
- याक़ूब, अहमद हुसैन, नज़रया अदालते सहाबा वल मरजेईया अल सियासिया फ़िल इस्लाम, राजेअ अली अल कूरानी आमली, 1429 हिजरी
- याक़ूब उरदनी, अहमद हुसैन, नज़रया अदालते सहाबा वल मरजेईया अल सियासिया फ़िल इस्लाम, अमान (उरदन), मतबा अल ख़य्याम, पहला संस्करण
- फ़ख़ अली, मुहम्मद तक़ी, मजमूआ गुफ़्तेमानहाए मज़ाहिब इस्लामी, गुफ़्तेमान अदालते सहाबा, मशअर, तेहरान