आयत ए नबा

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(आय ए नबा से अनुप्रेषित)
आयत ए नबा
आयत ए नबा फ़ारसी अनुवाद के साथ
आयत का नामआयत ए नबा
सूरह में उपस्थितसूर ए हुजरात
आयत की संख़्या6
पारा26
शाने नुज़ूलज़कात जमा करने के लिए पैग़म्बर (स) द्वारा बनी मुस्तलक़ की ओर वदील बिन उक़बा का भेजा जाना
नुज़ूल का स्थानमदीना
विषयफ़िक़ही और अख़्लाक़ी

आयत ए नबा (अरबी: آیة النبأ) सूर ए हुजरात की आयत न. 6 को कहते है। अधिकांश मुफ़स्सेरीन बनी मुस्तलक़ जनजाति की ओर से ज़कात का भुगतान न करने के संबंध मे वलीद बिन उक़्बा की झूठी सूचना को इस आयत की शाने नुज़ूल बताया है। इस घटना और आयत के नाज़िल होने के पश्चात जब मुसलमानो ने इस ख़बर के बारे मे शोध किया तो इसके सही न होने की पुष्ठि हुई।

उसूले फ़िक़्ह मे ख़बर ए वाहिद की हुज्जियत के बारे मे चर्चा की जाती है।


आयत का मत्न और अनुवाद

अनुवादः हे ईमान वालो! यदि कोई पाखंडी “फ़ासिक़” तुम्हारे पास कोई सूचना लाए तो छान बीन कर लिय करो कहीं ऐसा ना हो कि तुम किसी क़ौम को अज्ञानता मे हानि पहुंचा दो और फिर अपने किए पर पछतावा करो।

शाने नुज़ूल

इस आयत के लिए मुफ़स्सेरीन ने दो शाने नुज़ूल बयान की है। अधिकांश ने इस बात को लिखा है कि यह आयत वलीद बिन उक़्बा के संबंध मे नाज़िल हुई है। जिसको पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने बनी मुस्तलक़ जनजाति के पास ज़कात एकत्रित करने के लिए भेजा था।[१] मज्मा उल बयान मे फ़ज़्ल बिन तबरसी के अनुसार जिस समय बनी मुस्तलक इस बात से सूचित हुए कि उनकी ओर पैगंबर का प्रतिनिधि आ रहा है वो उसके स्वागत के लिए आगे बढ़े, लेकिन वलीद ने ज़माना ए जाहेलियत इस जनजाति के साथ दुश्मनी के कारण यह विचार किया कि यह लोग उसकी हत्या करने आ रहे है। इस आधार पर वह पैगंबर के पास वापस लौट गया और कहने लगा कि उन्होने ज़कात का भुगतान करने से इंकार कर दिया। पैगंबर (स) ने उनसे मुक़ाबला करने का इरादा किया तब यह आयत नाज़िल हुई और मुसलमानो को आदेश दिया कि जब कोई पाखंडी कोई सूचना लेकर आए तो उसकी छान बीन करो।[२]

कुछ लोगो का कहना है कि यह आयत पैगंबर की पत्नि मारिया क़िबतिया पर लगाई गई तोहमत के संबंध मे नाज़िल हुई है। इस घटना मे मुजरिम को दंड देने का अधिकार हज़रत अली (अ) को दिया गया था। इस संबंध मे आपने पैगंबर (स) से पूछा यदि मेरा अनुसंधान और अवलोकन लोगो के कहने के विपरीत हो तो क्या मै इन झूठी अफ़वाहो पर अमल ना करने पर अधिकार रखता हूं ? पैगंबर (स) ने उनको अनुमति दी थी। अंत मे आपको पता चला कि कोई ग़लती किसी से नही हुई और यह सब अफ़्वा और झूठ है।[३]

आयत ए नबा और खबर ए वाहिद की हुज्जियत

उसूले फ़िक्ह मे ख़बर ए वाहिद की हुज्जियत को सिद्ध करने के लिए आयत ए नबा की चर्चा की जाती है।[४] हालाकि उसूली विद्वान इस आयत के माध्यम से ख़बर ए वाहिद की प्रामाणिकता को साबित करने पर एकमत नहीं हैं। मुहम्मद हुसैन नाईनी खबर ए वाहिद की प्रमाणिकता को साबित करने के लिए इस आयत से सहायता लेने को सही बताते है।[५] लेकिन शेख़ अंसारी का मानना है कि यह आयत खबर ए वाहिद की हुज्जियत को साबित नही करती।[६]

फ़ुटनोट

  1. मकारिम शीराज़ी, तफ़सीर-ए नमूना, 1374 शम्सी, भाग 22, पेज 153
  2. तबरसी, मज्मा उल-बयान, 1372 शम्सी, भाग 9, पेज 198
  3. तबरसी, मज्मा उल-बयान, 1372 शम्सी, भाग 9, पेज 198-199
  4. मरकज़े इत्तेलाआत वा मदारिके इस्लामी, फ़रहंग नामे उसूले फ़िक्ह, 1389 शम्सी, पेज 62
  5. नाईनी, फ़वाएद उल-उसूल, 1376 शम्सी, भाग 3, पेज 187
  6. शेख़ अंसारी, फ़राएद उल-उसूल, 1416 हिजरी, पेज 116-136

स्रोत

  • शेख़ अंसारी, मुर्तज़ा, फ़राएद-उल उसूल, क़ुम, मोअस्सेसात अल नश्र उल इस्लामी, पांचवा प्रकाशन, 1416 हिजरी
  • तबरसी, फ़ज़्ल बिन हुसन, मजमा उल-बयान फ़ी तफ़सीर उल कुरआन, तेहरान, नासिर ख़ुसरो, 1372 शम्सी
  • मकारिम शीराज़ी, नासि, तफ़सीर-ए नमूना, तेहरान, दार उल कुतुब उल इस्लामिया, 1374 शम्सी
  • नाईनी, मुहम्मद हुसैन, फ़वाएद उल-उसूल, क़ुम, जामे मुदर्रेसीन हौज़ा ए इल्मिया क़ुम, पहला प्रकाशन, 1376 शम्सी