आय ए इंज़ार

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आय ए इंज़ार
आयत का नामइंज़ार
सूरह में उपस्थितसूर ए शोअरा
आयत की संख़्या214
पारा19
नुज़ूल का स्थानमक्का
विषयएतेक़ादी, सार्वजनिक रूप से रिश्तेदारों को इस्लाम में आमंत्रित करना
अन्यइमाम अली (अ) के उत्तराधिकार की घोषणा

आय ए इंज़ार (अरबी: آية الإنذار) (शोअरा: 214) पैग़म्बर (स) को अपने क़रीबी रिश्तेदारों को चेतावनी देने और सार्वजनिक रूप से उन्हें इस्लाम में आमंत्रित करने का आदेश देती है। आयत के नुज़ूल के बाद, ईश्वर के पैग़म्बर (स) ने अपने चालीस रिश्तेदारों को आमंत्रित किया और सार्वजनिक रूप से उन्हें इस्लाम में आमंत्रित करने के बाद, उन्होंने अली बिन अबी तालिब (अ) को अपने उत्तराधिकारी के रूप में पेश किया। शिया धर्मशास्त्री, इस आयत के नुज़ूल से सम्बंधित हदीसों का हवाला देते हुए, इसका उपयोग इमाम अली (अ) के उत्तराधिकार को सिद्ध करने के लिए करते हैं।

शिया टिप्पणीकारों ने रिश्तेदारों के साथ भेदभाव के संदेह से बचने और धर्म में दूसरों के साथ लापरवाही न करने की चेतावनी के साथ-साथ रिश्तेदारों को पैग़म्बर के पवित्रता के बारे में जानकारी देने को भी, उन्हें आमंत्रित करने के कारणों में माना है।

इमाम अली (अ) की इमामत का पहला दस्तावेज़

सूर ए शोअरा की आयत 214 सबसे मशहूर आयत है जिसे आय ए इंज़ार (चेतावनी वाली आयत) कहा जाता है। ऐसा कहा गया है कि आय ए नफ़र, सूर ए शूरा की आयत 7 और सूर ए मुदस्सिर की आयत 1 और 2 को भी यही नाम दिया गया है।[१] इस आयत में, ईश्वर, पैग़म्बर मुहम्मद (स) को अपने क़रीबी रिश्तेदारों को चेतावनी देने का आदेश देता है और जैसा कि तफ़सीरे नमूना में कहा गया है कि शिर्क और ईश्वर के विरोध से डरना चाहिए।[२]

इस आयत को पहली आयत माना जाता है जो इस्लाम के सार्वजनिक प्रचार के लिए पैग़म्बर (स) पर अवतरित हुई थी।[३] कुछ लोग, इमाम अली के उत्तराधिकार के बारे में आय ए इंज़ार के नुज़ूल से सम्बंधित हदीसों का हवाला देते हुए, इस आयत को इमाम अली (अ) की इमामत का पहला मज़बूत दस्तावेज़ और निश्चित प्रमाण मानते हैं।[४] कुछ इतिहासकारों का मानना है कि यह आयत बेअसत के तीसरे वर्ष नाज़िल हुई थी।[५]

इमाम अली के उत्तराधिकार की घोषणा

मुख्य लेख: हदीस यौम अल दार

शिया और सुन्नी व्याख्याओं के अनुसार, आय ए इंज़ार के नाज़िल होने के बाद, पैग़म्बर (स) ने अपने चालीस क़रीबी रिश्तेदारों को एक दावत में आमंत्रित किया और उन्हें ईश्वर की एकता और अपनी नबूवत को स्वीकार करने के लिए कहा। फिर उन्होंने दो-तीन बार कहा, "तुममें से कौन इस कार्य में मेरी सहायता करेगा कि वह मेरा भाई, अभिभावक और उत्तराधिकारी तुम्हारे बीच में हो?" सबकी ख़ामोशी के बाद हर बार अली (अ) ने कहाः “हे ईश्वर के पैग़म्बर! मैं हूँ"। तब पैग़म्बर (स) ने कहा: "यह तुम्हारे बीच मेरा उत्तराधिकारी और ख़लीफ़ा है। इसकी बातें सुनें और इसका पालन करें"।[६] मजमा उल बयान में यह शाने नुज़ूल, शियों और सुन्नियों के बीच प्रसिद्ध माना गया है।[७]

शिया धर्मशास्त्रियों ने इस हदीस के दस्तावेज़ को मुत्वातिर माना है[८] और इसे इमाम अली (अ) की बिला फ़स्ल खिलाफ़त को सिद्ध करने के लिए उद्धृत किया है।[९]

इस्लाम में आमंत्रित करने की शुरुआत रिश्तेदारों से क्यों?

टिप्पणीकारों ने पैग़म्बर को उनके रिश्तेदारों से इस्लाम में आमंत्रित करने की शुरुआत के कारणों को बताया है, जिनमें शामिल हैं:

  • सगे-संबंधियों के साथ भेदभाव की आशंका से बचने की चेतावनी और धर्म के मामले में दूसरों के साथ लापरवाही न बरतने की चेतावनी दी गई है।[१०]
  • अन्य जनजातियों के लोगों को इकट्ठा करने की तुलना में रिश्तेदारों को इकट्ठा करना और पैग़म्बर के लिए उन्हें चेतावनी देना आसान है।[११]
  • ईश्वर के पैग़म्बर (स) पर ईमान लाने के बाद, रिश्तेदारों की सहायता और सहयोग मिलना।[१२]
  • व्यापक क्रांतिकारी कार्यक्रम छोटे दायरे से शुरू होना चाहिए।[१३]
  • पैग़म्बर (स) के रिश्तेदार उन्हें बेहतर जानते थे, और रिश्तेदारी दूसरों की तुलना में उनके शब्दों को अधिक सुनने का कारण बनेगी, और वे दूसरों की तुलना में, पैग़म्बर (स) के प्रति नफ़रत, ईर्ष्या और शत्रुता से बहुत दूर होंगे।[१४]

सम्बंधित लेख

फ़ुटनोट

  1. बशवी, "आय ए इंज़ार", पृष्ठ 149।
  2. मकारिम, तफ़सीरे नमूना, 1374 शम्सी, खंड 15, पृष्ठ 366।
  3. मौलाई निया और मोमेनी, "तफ़सीरे तत्बीक़ी आय ए इंज़ार अज़ दीदगाहे फ़रीक़ैन", पृष्ठ 144।
  4. मौलाई निया और मोमेनी, "तफ़सीरे तत्बीक़ी आय ए इंज़ार अज़ दीदगाहे फ़रीक़ैन", पृष्ठ 164।
  5. उदाहरण के लिए, देखें: इब्ने असीर, अल-कामिल फ़ी अल-तारीख़, 1385 ईस्वी, खंड 2, पृष्ठ 60; बलाज़री, अंसाब अल-अशराफ़, 1417 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 116; विष्णवी, हयात अल-नबी व सीरत, 1424 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 105।
  6. बहरानी, अल-बुरहान, अल-मकतब अल-इल्मिया, खंड 4, पृष्ठ 189-186; फ़ोरात अल-कूफ़ी, तफ़सीरे फ़ोरात अल-कूफ़ी, 1410 हिजरी, पृष्ठ 300; इब्ने कसीर, तफ़सीर अल-कुरआन अल-अज़ीम, 1406 हिजरी, खंड 6, पृष्ठ 153-151; स्यूति, अल दुर अल मंसूर, 1404 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 97; हस्कनी, शवाहिद अल-तंज़ील, 1411 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 543-542; तबरसी, मजमा उल-बयान, 1406 हिजरी, खंड 7, पृ. 322-323।
  7. तबरसी, मजमा उल-बयान, 1372 शम्सी, खंड 7, पृष्ठ 322।
  8. बशवी, "आय ए इंज़ार", पृष्ठ 149।
  9. शेख़ मुफ़ीद, रेसाला फ़ी माना अल-मौला, 1413 हिजरी, पृ. 39 और 40; शेख़ मुफ़ीद, अल-फुसूल अल-मुख्तार, 1413 हिजरी, पृष्ठ 96; नबाती बयाज़ी, अल-सेरात अल-मुस्तक़ीम, 1384 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 325; खंड 2, पृष्ठ 29।
  10. तबरसी, मजमा उल-बयान, 1372 शम्सी, खंड 7, पृष्ठ 322।
  11. तबरसी, मजमा उल-बयान, 1372 शम्सी, खंड 7, पृष्ठ 322।
  12. मुग़निया, तफ़सीर अल-काशिफ़, दार अल-अनवार, खंड 5, पृष्ठ 521।
  13. मकारिम, तफ़सीरे नमूना, 1374 शम्सी, खंड 15, पृष्ठ 366।
  14. मकारिम, तफ़सीरे नमूना, 1374 शम्सी, खंड 15, पृष्ठ 366।

स्रोत

  • इब्ने असीर, अली इब्ने मुहम्मद, अल-कामिल फ़ी अल-तारिख, बेरूत, दार सादिर, 1385-1386 शम्सी।
  • इब्ने कसीर दमिश्क़ी, इस्माइल इब्ने उमर, तफ़सीर अल-कुरआन अल-अज़ीम, बेरूत, दार अल-किताब अल-इल्मिया, मुहम्मद अली बिज़ून की पांडुलिपियाँ, 1419 हिजरी।
  • बहरानी, सय्यद हाशिम, अल-बुरहान फ़ी तफ़सीर अल-कुरआन, तेहरान, बास फाउंडेशन, 1416 हिजरी।
  • बशवी, मोहम्मद याकूब, "आय ए इंज़ार",दर दानिश नामे हज व हरमैन शरीफ़ैन, खंड 1, बी जा, पज़ोहिश कदेह हज व ज़ियारत, 1392 शम्सी।
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  • हस्कानी, उबैदुल्ला बिन अहमद, शवाहिद अल तंज़ील ले क़वाएद अल तफ़ज़ील, तेहरान, साज़माने चाप व इंतेशाराते वेज़ारते इरशादे इस्लामी, 1411 हिजरी।
  • स्यूति, जलालुद्दीन, अल दुर अल मंसूर, क़ुम, आयतुल्लाह मर्शी नजफ़ी लाइब्रेरी, 1404 हिजरी।
  • शेख़ मुफ़ीद, मुहम्मद बिन मुहम्मद, रेसाला फ़ी माना अल मौला, क़ुम, शेख़ मुफ़ीद की विश्व कांग्रेस का प्रकाशन, 1413 हिजरी।
  • शेख़ मुफ़ीद, मुहम्मद बिन मुहम्मद, अल-फुसूल अल-मुख्तार, क़ुम, शेख़ मुफ़ीद की विश्व कांग्रेस का प्रकाशन, 1413 हिजरी।
  • तबरसी, फ़ज़ल बिन हसन, मजमा उल-बयान फ़ी तफ़सीर अल-कुरआन, बेरूत, दार अल-मारेफ़ा व ऑफसेट तेहरान, नासिर खोस्रो, 1406 हिजरी।
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  • मुग़निया, मोहम्मद जवाद, अल-तफ़सीर अल-काशिफ़, बेरूत, दार अल-अनवार, बी.ता।
  • मकारिम शिराज़ी, नासिर, तफ़सीरे नमूना, तेहरान, दार अल-कुतुब अल-इस्लामिया, 1374 शम्सी।
  • मौलाई निया, इज़्ज़तुल्लाह और मोहम्मद अमीन मोमेनी, "तफ़सीरे तत्बीक़ी आय ए इंज़ार अज़ निगाहे फ़रीक़ैन", पज़ोहिशहाए तफ़सीरे तत्बीक़ी, खंड 1, 1394 शम्सी।
  • नबाती बयाज़ी, अली बिन यूनुस, अल-सेरात अल-मुस्तक़ीम, नजफ़, हैदरिया लाइब्रेरी, 1384 हिजरी।
  • विष्णवी, मोहम्मद क़ेवाम, हयात अल-नबी व सीरत, क़ुम, साज़माने औकाफ़ व उमूरे ख़ैरिया, 1424 हिजरी।