बुतों को तोड़ने की घटना

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बुतों को तोड़ने की घटना (अरबी: واقعة كسر الأصنام) इमाम अली (अ) के हाथों काबा की छत पर रखे बुतों को तोड़ने का उल्लेख करती है। इस घटना में, इमाम अली (अ) ने पैग़म्बर (स) के कंधे पर क़दम रखा और काबा के छत पर गए और हुबल जैसे बुतों को नीचे फेंक दिया। यह घटना शिया और सुन्नी स्रोतों में वर्णित हुई है। इस घटना का समय लैला अल मबीत (वह रात जब पैग़म्बर (स) ने मक्का छोड़ा था और अली (अ) उनके दुश्मनों को धोखा देने के लिए पैग़म्बर (स) के बिस्तर पर सोए थे) या मक्का की विजय के समय माना गया है।

बुतों को तोड़ने की घटना, को आयत «وَ قُلْ جَاءَ الْحَقُّ وَ زَهَقَ الْبَاطِلُ...» و «وَ رَفَعْناهُ مَكاناً عَلِيًّا» "वा क़ुल-जाआ अल-हक़ व ज़हका अल-बातिल.." व "व रफ़अनाहो मकानन अलिया" के नाज़िल होने का कारण माना गया है। इस घटना के बाद, पैग़म्बर मुहम्मद (स) ने पैग़म्बर इब्राहीम (अ) को पहले बुत तोड़ने वाले और इमाम अली (अ) को अंतिम बुत तोड़ने वाले के रूप में परिचय कराया है। कुछ रिवायतों में अली (अ) का ज़िक्र "कासिर अल-अस्नाम" (बुतों को तोड़ने वाला) के रूप में किया गया है।

बुतों को तोड़ने की घटना को इमाम अली (अ) के गुणों में से एक माना गया है। इमाम अली (अ) ने उमर बिन ख़त्ताब के बाद ख़लीफ़ा नियुक्त करने के लिए गठित छह-सदस्यीय परिषद में इसका उल्लेख किया था। कुछ सुन्नी स्रोतों में इस घटना का उल्लेख पाप करने के साधनों को नष्ट करने की आवश्यकता के प्रमाण के रूप में किया गया है।

घटना का विवरण

बुतों को तोड़ने की घटना या "हदीस कस्र अल इस्नाम"[१] यह घटना इमाम अली (अ) को इस्लाम के पैग़म्बर (स) द्वारा अपने कंधे पर खड़ा करके काबा की छत से बुतों को नीचे गिराने की घटना को संदर्भित करती है।[२] इस घटना में कुछ महत्वपूर्ण बुतों जैसे होबल को तोड़ने का उल्लेख किया गया है।[३] हालांकि, इस घटना के विवरण के बारे में मतभेद पाया जाता है। कुछ रिवायतों के अनुसार, पहले अली (अ) ने पैग़म्बर (स) को अपने कंधे पर उठाने को कहा; लेकिन वह नहीं कर सके। इस कारण अली (अ) पैग़म्बर (स.) के कंधे पर चढ़ गये[४] और बुतों को काबा के ऊपर से ज़मीन पर फेंक दिया। एक अन्य रिपोर्ट में, पैग़म्बर (स) को अपने कंधों पर चढ़ने के लिए इमाम अली (अ) के प्रारंभिक प्रस्ताव के बारे में उल्लेख किया गया है, जिसे पैग़म्बर मुहम्मद (स) ने अली (अ) को याद दिलाया था कि कोई भी ऐसा नहीं कर सकता।[५] जाबिर बिन अब्दुल्लाह के अनुसार, यह समस्या रेसालत के बोझ के कारण थी।[६] इस संबंध में अन्य कारणों का भी उल्लेख किया गया है।[७] एक अन्य रिवायत के अनुसार, पवित्र पैग़म्बर (स) ने आरम्भ से ही अली (अ) को अपने कंधे पर चढ़ने का आदेश दिया था।[८]

इमाम अली (अ) काबा की छत से नीचे कैसे आये, इसके बारे में अलग-अलग उल्लेख हैं। कुछ हदीसों के अनुसार, इमाम अली (अ) खुद काबा की छत से कूद गए थे, जिसकी दीवार की ऊंचाई उस समय चालीस हाथ थी[९] लेकिन वह घायल नहीं हुए थे।[१०] एक हदीस के अनुसार पैग़म्बर (स) ने अली (अ) से कहा: जिब्राईल तुम्हें काबा के ऊपर से नीचे लाए।[११] उमर बिन ख़त्ताब की एक रिपोर्ट के अनुसार, जब इमाम अली (अ) ने बुतों को निचे गिरा दिया, उसके बाद पैग़म्बर (स) ने उनसे नीचे आने के लिए कहा और अली दो पंखों वाले पक्षी की तरह नीचे आये, और उमर ऐसी स्थिति का सपना देखते थे और कहते थे कि जिस भगवान की अली पूजा करते थे, उसने अली को ज़मीन पर गिरने नहीं दिया।[१२]

कुछ हदीसों के अनुसार, पैग़म्बर (स) इस घटना में आयत «وَ قُلْ جَاءَ الْحَقُّ وَ زَهَقَ الْبَاطِلُ...» و «وَ رَفَعْناهُ مَكاناً عَلِيًّا» "वा क़ुल-जाआ अल-हक़ व ज़हका अल-बातिल.." व "व रफ़अनाहो मकानन अलिया"[१३] का पाठ कर रहे थे।[१४] इसी कारण बुतों को तोड़ने की घटना को इस आयत के नाज़िल होने का कारण माना गया है।[१५] इसके अलावा, इब्ने शहर आशोब द्वारा वर्णित हदीस के अनुसार, आयत «وَ رَفَعْناهُ مَكاناً عَلِيًّا» (व रफ़अनाहो मकानन अलिया)[१६] इसी घटना में नाज़िल हुई है।[१७]

बुतों को तोड़ने की घटना शिया[१८] और सुन्नी[१९] किताबों में वर्णित है। अब्दुल्लाह बिन अब्बास,[२०] जाबिर बिन अब्दुल्लाह अंसारी[२१] और अबू मरियम[२२] ने इस घटना का वर्णन किया है। अल्लामा अमीनी ने किताब अल ग़दीर में, उन सुन्नी विद्वानों की एक सूची एकत्र की है जिन्होंने इस घटना का उल्लेख किया है।[२३]

बुतों की तोड़ने की घटना पेंटिंग, जो 11वीं शताब्दी में तृतीय उस्मानी शासक सुल्तान मुराद के आदेश और सय्यद सुलेमान क़ासिम पाशा द्वारा बनाई गई थी।

गुण

पैग़म्बर इस्लाम (स) द्वारा इमाम अली (अ) को अपने कंधों पर उठाना अली (अ) के विशिष्ट गुणों में से एक माना गया है।[२४] इस कहानी का उल्लेख सद्गुण लेखन की पुस्तकों[२५] और कवियों की कविताओं[२६] में किया गया है।

इस घटना के बाद, पैग़म्बर मुहम्मद (स) ने हज़रत इब्राहीम (अ) को पहले बुत तोड़ने वाले के रूप में और इमाम अली (अ) को अंतिम बुत तोड़ने वाले के रूप में प्रस्तुत किया है।[२७] कुछ अन्य हदीसों में इमाम अली (अ) को «کاسِر الاصنام» (कासिरे अस्नाम) (बुतों को तोड़ने वाले) के रुप में भी पेश किया गया है।[२८] इसके अलावा, सुन्नी विद्वान इब्ने जौज़ी (मृत्यु 654 हिजरी) किताब तज़किरा अल-ख्वास में, इमाम अली (अ) के नामकरण के बारे में विभिन्न कथनों को उद्धृत करते हुए, उन्होंने एक कथन उद्धृत किया है जिसके अनुसार, इमाम अली (अ) की माँ ने उनका नाम हैदर रखा था और क्योंकि वह बुतों को तोड़ने के लिए पैग़म्बर (स) के कंधों पर चढ़ गए थे, इसलिए उनका नाम "अली" (उच्च पद) रखा गया था। हालाँकि, इब्ने जौज़ी का स्वयं मानना है कि अली नाम उन्हें उनके जन्म के समय उनकी माँ ने दिया था।[२९]

छह सदस्यीय परिषद में बुतों को तोड़ने की घटना का हवाला देना

इमाम अली (अ) को बुतों को तोड़ने की घटना पर गर्व था[३०] और कहते थे: मैं वह व्यक्ति था जिसने पैग़म्बर की नबूवत की मुहर (एक संकेत जो पैग़म्बर (स) के दोनों कंधों के बीच खुदा हुआ था और उनकी पैग़म्बरी बारे में बताया गया था) पर क़दम रखा था।[३१] छह लोगों की परिषद में, जो उमर बिन ख़त्ताब के बाद ख़लीफा नियुक्त करने के लिए आयोजित की गई थी, उन्होंने उपस्थित लोगों से स्वीकार करवाया कि उनके अलावा किसी अन्य व्यक्ति में ऐसा गुण नहीं पाया जाता है।[३२] यह भी कहा गया है कि उमर बिन ख़त्ताब की इच्छा थी कि वह यह सम्मान हासिल कर पाते।[३३]

समय

अधिकांश स्रोतों में, इस घटना के समय का उल्लेख नहीं किया गया है और केवल यही मिलता है कि यह घटना रात में[३४] और गुप्त रूप से[३५] हुई थी। हालाँकि, उस समय के कुछ स्रोतों में, इस घटना का समय लैला अल मबीत[३६] (वह रात जब पैग़म्बर (स) ने मक्का छोड़ा था और अली (अ) उनके दुश्मनों को धोखा देने के लिए पैग़म्बर (स) के बिस्तर पर सोए थे) या मक्का की विजय[३७] के समय माना गया है। बिहार अल अनवार में अल्लामा मजलिसी ने इमाम सादिक़ (अ) से एक रिवायत वर्णित की है कि यह घटना नौरोज़ के दिन हुई थी।[३८]

किताब दानिशनामे अमीरुल मोमिनीन में, कई हदीसों की जांच के बाद, इस संभावना को मज़बूत माना जाता है कि यह घटना लैला अल मबीत में हुई थी।[३९] इसके अलावा, अल्लामा मजलिसी ने यह संभावना जताई है कि बुतों को कई बार तोड़ा गया थां।[४०]

परिणाम

कुछ हदीसों के अनुसार, इमाम अली (अ) के हाथों बुतों को तोड़ने के कारण बहुदेववादियों ने उसके बाद ईश्वर के घर में बुत नहीं रखे।[४१] कुछ सुन्नी स्रोतों में, इस घटना को पाप करने के साधनों को नष्ट करने की आवश्यकता का प्रमाण माना जाता है।[४२]

फ़ुटनोट

  1. अल्लामा हिल्ली, नहज अल-हक़, 1982 ई, पृष्ठ 223।
  2. शुश्त्री, इहक़ाक़ अल-हक़, 1409 हिजरी, खंड 18, पृष्ठ 162।
  3. हस्कानी, शवहादि अल-तंज़ील, 1411 हिजरी, खंड 1, पृ. 453-454; इब्ने शहर आशोब, मनाक़िब, 1379 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 135।
  4. नसाई, अल-सुनन अल-कुबरा, 1421 हिजरी, खंड 7, पृष्ठ 451; अबी याली, मुसनद, 1410 हिजरी, खंड 1, पृ. 251-252।
  5. बहरानी, अल-बुरहान, 1415 हिजरी, खंड 3, पृ. 579-580।
  6. इब्ने शहर आशोब, मनाक़िब, 1379 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 135।
  7. सदूक़, मआनी अल-अख़्बार, 1403 हिजरी, पृ. 350-352; बोहरानी, अल-बुरहान, 1415 हिजरी, खंड 3, पृ. 576-578।
  8. इब्ने शहर आशोब, मनाक़िब, 1379 हिजरी, खंड 2, पृ. 136, 141।
  9. इब्ने शहर आशोब, मनाक़िब, 1379 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 141।
  10. हकीम नीशापुरी, अल-मुस्तद्रक अला अल-सहीहैन, 1422 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 398।
  11. बहरानी, अल-बुरहान, 1415 हिजरी, खंड 3, पृष्ठ 580।
  12. मजलिसी, बिहार अल-अनवार, 1403 हिजरी, खंड 38, पृष्ठ 77, सुन्नी स्रोतों का हवाला देते हुए।
  13. सूर ए इस्रा, आयत 81।
  14. हकीम नीशापुरी, अल-मुस्तद्रक अला अल-सहीहैन, 1422 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 398; खंड 3, पृष्ठ 6.
  15. हस्कनी, शवाहिद अल-तंज़ील, 1411 हिजरी, खंड 1, पृ. 453-454; इब्ने शहर आशोब, मनाक़िब, 1379 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 135।
  16. सूर ए मरियम, आयत 57।
  17. इब्ने शहर आशोब, मनाक़िब, 1379 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 135।
  18. उदाहरण के लिए देखें, इब्ने शहर आशोब, मनाक़िब, 1379 हिजरी, खंड 2, पृ. 135-142; शुश्त्री, इहक़ाक़ अल-हक़, 1409 हिजरी, खंड 18, पृष्ठ 162-168।
  19. इब्ने अबी शैबा, अल-मुसनफ़, 1429 हिजरी, खंड 13, पृष्ठ 146-147; इब्ने हंबल, मुसनद, 1416 हिजरी, खंड 2, पृ. 73-74; बज़्ज़ार, मुसनद बज़्ज़ार, 1409 हिजरी, खंड 4, पृ. 21-22; नसाई, अल-सुनन अल-कुबरा, 1421 हिजरी, खंड 7, पृष्ठ 451; अबी याली, मुसनद, 1410 हिजरी, खंड 1, पृ. 251-252; अल-तबरी, तहज़ीब अल-आसार, मुसनद अली बिन अबी तालिब (अ), बी ता, पृष्ठ 236-240; हकीम नीशापुरी, अल-मुस्तद्रक अला अल-सहीहैन, 1422 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 398, खंड 3, पृष्ठ 6।
  20. इब्ने शहर आशोब, मनाक़िब, 1379 हिजरी, खंड 2, पृ. 136, 141।
  21. हस्कानी, शवाहिद अल-तंज़ील, 1411 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 453; इब्ने शहर आशोब, मनाक़िब, 1379 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 135।
  22. उदाहरण के लिए देखें: इब्ने अबी शैबा, अल-मुसनफ़, 1429 हिजरी, खंड 13, पृष्ठ 146-147; इब्ने हंबल, मुसनद, 1416 हिजरी, खंड 2, पृ. 73-74; बज़्ज़ार, मुसनद बज़्ज़ार, 1409 हिजरी, खंड 4, पृ. 21-22; नेसाई, अल-सुनन अल-कुबरा, 1421 हिजरी, खंड 7, पृष्ठ 451; अबी याली, मुसनद, 1410 हिजरी, खंड 1, पृ. 251-252।
  23. अमीनी, अल-ग़दीर, 1416 हिजरी, खंड 7, पृष्ठ 18-24।
  24. नेसाई, अल-सुनन अल-कुबरा, 1421 हिजरी, खंड 7, पृष्ठ 451; नेसाई, ख़साएस अमीर अल-मोमेनीन, 1424 हिजरी, पृष्ठ 96; बस्ती, किताब अल-मरातिब, 1421 हिजरी, पृष्ठ 124।
  25. इब्ने शहर आशोब, मनाक़िब, 1379 हिजरी, खंड 2, पृ. 135-142; शुश्त्री, इहक़ाक़ अल-हक़, 1409 हिजरी, खंड 18, पृष्ठ 162-168।
  26. बकरी, अनवार, 1411 हिजरी, पृष्ठ 148; हुर्रे आमोली, इस्बात अल-होदात, 1425 हिजरी, खंड 3, पृष्ठ 424।
  27. इब्ने शाज़ान, अल-फ़ज़ाएल, 1363 शम्सी, पृष्ठ 97।
  28. इब्ने शाज़ान, अल-रौज़ा, 1423 हिजरी, पृष्ठ 31।
  29. इब्ने जौज़ी, तज़किरा अल-ख्वास, 1418 हिजरी, पृष्ठ 15।
  30. इब्ने शहर आशोब, मनाक़िब, 1379 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 136; इब्ने शाज़ान, अल-फ़ज़ाएल, 1363 शम्सी, पृष्ठ 85।
  31. इब्ने शहर आशोब, मनाक़िब, 1379 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 136।
  32. तबरसी, अल-एहतेजाज, 1403 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 138; बोहरानी, हिल्या अल अबरार, 1411 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 329।
  33. इब्ने शहर आशोब, मनाक़िब, 1379 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 136।
  34. हकीम नीशापुरी, अल-मुस्तद्रक अला अल-सहीहैन, 1422 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 398; इब्ने शहर आशोब, मनाकिब, 1379 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 141।
  35. इब्ने हंबल, मुसनद, 1416 हिजरी, खंड 2, पृ. 73-74; बज़्ज़ार, मुसनद बज़्ज़ार, 1409 हिजरी, खंड 4, पृ. 21-22; अबी या'अली, मुसनद, 1410 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 251।
  36. हकीम नीशापुरी, अल-मुस्तद्रक अला अल-सहीहैन, 1422 हिजरी, खंड 3, पृष्ठ 6।
  37. इब्ने शहर आशोब, मनाकिब, 1379 हिजरी, खंड 2, पृ. 135, 140।
  38. मजलिसी, बिहार अल-अनवार, 1403 हिजरी, खंड 56, पृष्ठ 138।
  39. मोहम्मदी रय शहरी, दानिशनामे अमीरुल मोमिनीन, 1389 शम्सी, खंड 1, पृष्ठ 223।
  40. मजलिसी, बिहार अल-अनवार, 1403 हिजरी, खंड 56, पृष्ठ 138।
  41. इब्ने शाज़ान, अल-फ़ज़ाएल, 1363 शम्सी, पृष्ठ 97।
  42. अल-तबरी, तहज़ीब अल-आसार, मुसनद अली बिन अबी तालिब (अ), बी ता, पृष्ठ 240-238।

स्रोत

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