हज़रत इब्राहीम अलैहिस सलाम

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हज़रत इब्राहीम अलैहिस सलाम,(अरबी: حضرت ابراهیم علیه السلام) जिन्हें इब्राहीम ख़लील के नाम से जाना जाता है, दूसरे उलुल अज़्म (पांंच बड़े पैग़बरों को उलुल अज़्म कहते हैं) पैगंबर (ईशदूत) हैं। इब्राहीम को मेसोपोटामिया (बैनुन नहरैन) में एक नबी के रूप में भेजा गया था, और उन्होने उस समय के शासक नमरूद और उस क्षेत्र के लोगों को एकेश्वरवाद (तौहीद) के लिए आमंत्रित किया था। कुछ लोगों ने उनके निमंत्रण को स्वीकार कर लिया और जब वह उनके विश्वास (ईमान लाने) से निराश हो गए, तो वे फ़िलिस्तीन चले गए।

क़ुरआन की आयतों के अनुसार, इब्राहीम को मूर्तिपूजक जनता ने आग में फेंक दिया क्योंकि उन्होने उनकी मूर्तियों को तोड़ दिया था, लेकिन भगवान की आज्ञा से आग ठंडी हो गई और इब्राहीम उसमें से सुरक्षित निकल आये।

हज़रत इस्माइल (अ) और हज़रत इसहाक़ (अ) इब्राहीम के बेटे और उनके उत्तराधिकारी हैं। बनी इज़राइल की वंशावली, जिससे कई ईश्नरीयदूत प्रकट हुए, और उनके साथ हज़रत मरियम, हज़रत ईसा की माँ, इसहाक के माध्यम से इब्राहीम तक पहुँचती है। इस्लाम के पैगंबर उनके दूसरे बेटे इस्माइल के वंशज हैं।

कुरआन ने काबा के निर्माण और लोगों को हज की रस्मों के लिए आमंत्रित करने का श्रेय इब्राहीम को दिया और उन्हे ख़लीलुल्लाह (अल्लाह के दोस्त) के रूप में पेश किया। कुरआन की आयतों के अनुसार, खुदा के हुक्म से अपने बेटे की क़ुरबानी सहित तमाम विपत्तियों से परखने के बाद, उसने नबूवत के अलावा इमामत का पद हासिल किया है।

जीवनी

जन्म और मृत्यु

अधिकांश शोधकर्ताओं ने 20 वीं शताब्दी ईसा पूर्व को इब्राहिम (अलैहिस सलाम) के जन्म की तारीख़ माना है, और उनमें से कुछ ने 1996 ईसा पूर्व के अधिक सटीक आंकड़े का उनके जन्मदिन के तौर पर उल्लेख किया है।[१] किताब हवादिसुल अय्याम में उनका जन्मदिन 10 मुहर्रम ज़िक्र हुआ है।[२] जबकि कुछ इतिहासकारों ने ज़िल-हिज्जा के पहले दिन को उनका जन्मदिन माना है।[३]

फ़िलिस्तीन के अल-ख़लील शहर मेें हज़रत इब्राहीम (अ) का मज़ार

इस्लामी स्रोतों में कई शहरों के नाम इब्राहिम (अ) के जन्मस्थान के रूप में उल्लेख किये गये है। तबरी के इतिहास के अनुसार, कुछ ने बाबुल या कोसा जो इराक़ के सवाद क्षेत्र का हिस्सा थे, जहां उस समय नमरूद का शासन था, को इब्राहीम का जन्मस्थान मानते थे, जबकि अन्य ने कहा कि उनका जन्मस्थान अलवरका (उरुक) या हर्रान था और कहा गया है कि बाद में उनके पिता उन्हे बाबुल या कोसा ले गये।[४] इमाम सादिक़ अलैहिस सलाम के एक कथन में, "कोसा" का उल्लेख हज़रत इब्राहीम के जन्मस्थान और उस स्थान के रूप में किया गया है जहाँ नमरूद का शासन था।[५] इब्ने बतूता, छठी चंद्र शताब्दी के पर्यटक, ने इराक़ में हिल्ला और बग़दाद के बीच बोर्स नामक स्थान का उल्लेख किया है और कहा है कि यह इब्राहीम का जन्मस्थान था।[६]

इब्राहिम (अ) 179 या 200 साल जीवित रहे और फिलिस्तीन में स्थित हेब्रोन में जिसे अब अलख़लील कहा जाता है, उनकी मृत्यु हुई।[७]

इब्राहीम के पिता

इब्राहीम के पिता के नाम को लेकर विवाद है। धार्मिक ग्रंथ अहदे अतीक़ में, यह नाम तरेह [८] के रूप में दर्ज है, जिसका मुस्लिम ऐतिहासिक स्रोतों में तारुख़[९] या तारेह [१०] के रूप में उल्लेख किया गया है। क़ुरआन में कहा गया है: «وَ إِذْ قالَ إِبْراهِیمُ لِأَبِیهِ آزَرَ» "और जब इब्राहीम ने अपने पिता आज़र से कहा"।[११] इस आयत के अनुसार क़ुरआन की व्याख्या करने वाले कुछ अहले सुन्नत विद्धान आज़र को हज़रत इब्राहीम का पिता मानते है।[१२] जबकि शिया मुफ़स्सेरीन इस आयत में उल्लेख वाक्य अब को पिता के अर्थ में नहीं मानते हैं।[१३] उनके अनुसार, अरबी में "अब" शब्द का प्रयोग पिता के अलावा चाचा, दादा, अभिभावक आदि के अर्थ में भी किया जाता है।[१४]

ऐतिहासिक स्रोतों की रिपोर्टों के अनुसार, जिस वर्ष इब्राहिम (अ) का जन्म हुआ, नमरूद के आदेश से, उन्होंने पैदा होने वाले हर बच्चे को मार डाला; क्योंकि ज्योतिषियों ने भविष्यवाणी की थी कि इस साल एक बच्चा पैदा होगा जो नमरूद और उसके अनुयायियों के धर्म का विरोध करेगा और मूर्तियों को तोड़ देगा। इस कारण इब्राहीम की माता ने नमरूद की सेना के डर से उन्हे अपने घर के पास एक गुफा में रखा और पन्द्रह महीने के बाद रात को गुफा से बाहर निकाला।[१५]

शादी और बच्चे

हज़रत इब्राहीम की पहली पत्नी सारा हैं, और तौरैत के अनुसार, इब्राहीम ने कुलदानियों की राजधानी में उनसे विवाह किया।[१६] तौरेत से ऐसा प्रतीत होता है कि वह इब्राहीम की सौतेली बहन थी;[१७] लेकिन शिया मान्यताओं के अनुसार, सारा इब्राहीम की मौसी की बेटी और हज़रत लूत (अ) की बहन थीं।[१८] हदीसों के अनुसार इब्राहीम ने उनसे कोसा में शादी की। वह बहुत मालदार थी। शादी करने के बाद सारा माल हज़रत इब्राहिम के अधिकार में आ गया और उन्होने उसे और बढ़ा दिया; ऐसा कि उनके जीवन के क्षेत्र में उनके जितना धन और प्रतिष्ठा किसी के पास नहीं थी।[१९]

इब्राहीम के सारा से कोई संतान नहीं थी; इसलिए सारा ने उन्हे अपनी दासी हाजिरा दी, और इब्राहीम को इस्माईल नाम का एक पुत्र हुआ।[२०] उसके बाद कुछ साल बाद सारा के यहां भी बेटा हुआ जिसका नाम इसहाक़ रखा गया। इसहाक़ का जन्म इस्माईल के 5 या 13 वर्ष बाद हुआ था।[२१] कुछ रिपोर्टों के अनुसार, जब इसहाक का जन्म हुआ था, तब इब्राहीम की उम्र 100 वर्ष से अधिक थी और सारा की आयु 90 वर्ष थी[२२] और एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार, इसहाक इस्माईल से 30 साल बाद पैदा हुए और इब्राहिम (अ) उस समय 120 वर्ष के थे।[२३]

यह कहा गया है कि सारा की मृत्यु के बाद, इब्राहिम (अ) ने दो अन्य महिलाओं से शादी की, जिनमें से एक के 4 बेटे थे और दूसरे के 7 बेटे थे, और उसके कुल बच्चे 13 बेटों तक पहुँचे।[२४]

इब्राहीम क़ुरआन में

कुरआन में हज़रत इब्राहीम का 69 बार उल्लेख किया गया है।[२५] और उन के जीवन की कहानी के ज़िक्र के लिए उनके नाम पर एक सूरह भी है।[२६] कुरआन में हज़रत इब्राहीम के बारे में जिन बातों का ज़िक्र हुआ है, उनमें उनकी नबूवत और एकेश्वरवाद का आह्वान, उनकी इमामत, बेटे की बली, चार पक्षियों के मरने और आग के ठंडा होने के बाद जीवन में वापस आने का चमत्कार शामिल है।

नबूवत, इमामत और ख़लील होने का रुतबा

कुरआन की कई आयतों में, इब्राहीम की नबूवत और एकेश्वरवाद के लिए उनके आह्वान का उल्लेख किया गया है।[२७] इसके अलावा, सूरह अहकाफ़ की आयत 35 में, उलुल अज़्म पैगम्बरों का उल्लेख हुआ है,[२८] हदीसों के अनुसार, इब्राहीम उनमें से एक है और दूसरे पैगंबर है। जबकि पहले पैगंबर हज़रत नूह (अ) हैं।[२९] सूरह बक़रह की आयत 124 के अनुसार, ईश्वर ने कई परीक्षणों के बाद पैगंबर इब्राहिम (अ) को इमामत के पद पर नियुक्त किया। अल्लामा मुहम्मद हुसैन तबताबाई के अनुसार, इस आयत में इमामत के दर्जे का अर्थ है आंतरिक मार्गदर्शन; उस स्थिति तक पहुँचने के लिए अस्तित्वगत पूर्णता और एक विशेष आध्यात्मिक स्थिति की आवश्यकता होती है जो कई प्रयासों के बाद प्राप्त होती है।[३०]

कुरआन की आयतों के अनुसार, ईश्वर ने इब्राहीम को ख़लील (दोस्त) के रूप में चुना[३१] इसलिए, उन्हें ख़लीलुल्लाह उपनाम दिया गया था। किताब इललुश शरायेअ में वर्णित हदीसों के आधार पर, सजदों की बहुतायत, दूसरों की इच्छाओं को अस्वीकार न करना और भगवान के अलावा अन्य से अनुरोध नहीं करना, खाना खिलाना और रात में पूजा करना, उन्हें ईश्वर द्वारा ख़लील के रूप में चुनने के कारणों में से थे।[३२]

इब्राहीम, नबियों के पिता

कुरआन के अनुसार, इब्राहीम उनके बाद कई नबियों के पूर्वज है।[३३] उनके पुत्र इसहाक़ इस्राएलियों के पूर्वज है, जिनसे याक़ूब, यूसुफ़, दाऊद (डेविड), सुलेमान (सोलोमन), अय्यूब, मूसाहारून और इस्राएलियों के अन्य नबियों का जन्म हुआ।[३४]

इसके अलावा, हज़रत ईसा (अ) का वंश उनकी मां हज़रत मरियम (अ) के माध्यम से हज़रत इसहाक़ के पुत्र हज़रत याक़ूब तक पहुंचता है।[३५] इस्लामी हदीसों व मान्यताओं के अनुसार, पैगंबर मुहम्मद (स) का वंश हज़रत इब्राहीम के दूसरे पुत्र हज़रत इस्माईल तक जाता है।[३६] इसी वजह से उन्हे अबुल अंबिया (नबियों के बाप) का उपनाम दिया गया है।[३७]

हज़रत इब्राहीम (अ) नमरूद की आग में, फ़र्चियान द्वारा चित्रकला

चमत्कार

कुरआन की आयतों के अनुसार, आग का ठंडा होना और चार पक्षियों का पुनर्जीवित होना इब्राहीम के चमत्कारों में से थे:

  • आग का ठंडा होना: सूरह अंबिया की आयत 57 से 70 के अनुसार, जब इब्राहीम ने देखा कि उनके लोगों ने मूर्तियों की पूजा करना बंद नहीं किया है, तो उन्होने मूर्तियों को तोड़ दिया और इसके लिये बड़ी मूर्ति को जिम्मेदार ठहराया और कहा कि अगर मूर्ति बोलती है, तो उससे पूछो। मूर्तिपूजक उसके तर्क के सामने रुक गए, लेकिन विश्वास करना नहीं छोड़ा, उन्होंने मूर्तियों को तोड़ने के कारण उसे आग में फेंक दिया; लेकिन दैवीय आदेश से आग ठंडी हो गई।[३८]
  • चार पक्षियों का पुनरुद्धार: सूरह बक़रह की आयत 260 के अनुसार, इब्राहीम के मृतकों को वापस जीवन में देखने के अनुरोध के जवाब में, ईश्वर ने उन्हे चार पक्षियों को मारने और उनके मास को आपस में मिलाने और उन्हें कई पहाड़ों के ऊपर रखने का आदेश दिया। उन्होने ऐसा किया और फिर पक्षियों को बुलाया। वे जीवित होकर उनके पास आए।

प्रवास

सूरह अंबिया की आयत 71 में, इब्राहीम (अ) के बारे में कहा गया है: "हम उसे लूत के साथ उस भूमि पर ले गए, जिसमें हमने दुनिया को आशीर्वाद दिया है।"[३९] इसमें उल्लिखित भूमि की व्याख्या पर कुछ किताबों में उसे शाम (सिरिया)[४०] या फ़िलिस्तीन और बैतुल मुक़द्दस[४१] जाना है। इमाम सादिक़ (अ.स.) के कथन में बैतुल-मकदिस को इब्राहिम (अ.स.) के उत्प्रवासन के गंतव्य के रूप में भी पेश किया गया है।[४२]

काबा का निर्माण

सूरह बक़रह की आयत 127 में कहा गया है कि हज़रत इब्राहिम ने काबा का निर्माण अपने बेटे इस्माईल[४३] की मदद से किया और ईश्वर के आदेश से उन्होंने लोगों को हज की रस्मों के लिए आमंत्रित किया।[४४] कुछ हदीसों के अनुसार, काबा को सबसे पहले हज़रत आदम (अ) ने बनाया था, इब्राहीम ने इसे फिर से बनाया।[४५]

पुत्र की बलि

मूल लेख: ज़बीहुल्लाह

हज़रत इब्राहिम की एक दिव्य परीक्षा यह थी कि उन्हें अपने पुत्र की बलि (क़ुर्बानी) करने के लिए नियुक्त किया गया था। कुरआन के अनुसार, इब्राहीम ने सपना देखा कि वह अपने बेटे की बलि दे रहे है। उन्होने इस विषय पर अपने पुत्र से चर्चा की और उनके पुत्र ने उसे परमेश्वर की आज्ञा का पालन करने के लिए कहा; लेकिन जब इब्राहीम ने अपने बेटे को बलि देने के लिए वेदी पर रखा, तो एक पुकार आई: "हे इब्राहीम, तुमने अपना सपना पूरा कर लिया है। निश्चय ही हम नेक लोगों को ऐसा ही बदला देते हैं। वास्तव में, यह परीक्षा स्पष्ट थी और हमने आपके बच्चे को एक बड़े बलिदान [वध होने से] से बचा लिया।"[४६]

क़ुरआन में इब्राहीम के बेटे के नाम का उल्लेख नहीं है जिसे उन्हे वध करने के लिए नियुक्त किया गया था। इसको लेकर शिया और सुन्नी दोनों में मतभेद है। कुछ कहते हैं कि वह इस्माइल थे और अन्य उन्हे इसहाक़ मानते हैं।[४७] शेख़ तूसी का मानना ​​है कि शिया हदीसों से ऐसा प्रतीत होता है कि यह इस्माईल थे।[४८] मुल्ला सालेह माज़िंदरानी ने किताब फ़ुरूए काफ़ी के अपने विवरण में इस राय को शिया विद्वानों के बीच एक लोकप्रिय दृष्टिकोण माना है।[४९] ग़ुफ़ैला तीर्थयात्रा (रजब के आधे भाग में इमाम हुसैन (अ.स.) के लिए एक विशेष तीर्थयात्रा) में भी कहा गया है: शांति तुम पर हो, ऐ इस्माइल के वारिस, ईश्वर का बलिदान (ज़बीहुल्लाह)![५०]

इब्राहीम प्रचीन ग्रंथों में

ओल्ड टैस्टमैंट (अहदे अतीक़) में, पैगंबर अब्राहम का उल्लेख सबसे पहले अब्राम के नाम से किया गया था; [५१] लेकिन अध्याय 17 में यह कहा गया है: "लेकिन अब मेरी सौगंध तुम्हारे साथ है और तुम कई राष्ट्रों के पिता बनोगे और तुम्हारा नाम इसके बाद अब्राम नहीं होगा; बल्कि तुम्हारा नाम इब्राहीम होगा; क्योंकि मैं ने तुझे बहुत सी जातियों का पिता ठहराया है।"[५२]

ओल्ड टैस्टमैंट के कथन के अनुसार, इब्राहीम अरामी जनजातियों से संबंधित है, जो उत्तरी सीरिया में फ़ुरात नदी के तट पर अरब प्रायद्वीप से चले गए थे।[५३] पैदाईश के 11 वें अध्याय के अनुसार, तारेह, इब्राहीम के पिता ने सारा और लूत, कुलदानियों की राजधानी से निकल कर कनआन देश को गए, और हर्नरा में पहुंचकर वहीं रुक गए, और वहीं पर मुत्यु पाई।[५४] कुछ लोग इस से यह निष्कर्ष निकालते हैं, कि यह कुलदानियों की राजधानी उनका इब्राहीम का जन्म स्थान था। हालांकि, अध्याय 12 की शुरुआत में हर्रान, इब्राहीम का जन्मस्थान और उनकी जन्मभूमि के तौर पर उल्लेख किया गया है।[५५]

तौरैत के अनुसार, इब्राहीम 75 वर्ष की आयु तक हर्रान में रहे, और उसके बाद वह ईश्वर के आदेश पर वहां से कनआन चले गये और अपनी पत्नी सारा और अपने भतीजे लूत और हर्रान के कुछ लोगों को अपने साथ ले गये। वहां उन्होने पूर्वी बेतेल में डेरा डाला और जानवरों के ज़िबह करने के लिये जगह बनाई।[५६] उसके बाद, अकाल पड़ने के कारण, उन्हें मजबूरी में मिस्र की ओर प्रवास करना पड़ा,[५७] लेकिन कुछ समय बाद वे वापस बेतेल लौट आए[५८] और बाद में हेब्रोन (अल-ख़लील) चले गए और वहीं बस गए।[५९]

तौरेत में कहा गया है कि जब इब्राहीम ने मिस्र में प्रवेश किया, तो उन्होने मिस्रियों के नुक़सान से खुद को बचाने के लिए अपनी पत्नी सारा को अपनी बहन के रूप में पेश किया, जो उनकी पत्नी के लिए लालची थे। परिणामस्वरूप, मिस्र के फ़िरऔन ने, जो उनकी सुंदरता पर मोहित हो गया, उन्हे बिना किसी बाधा के अपनी पत्नी के रूप में ले लिया, और उसके कारण उसने इब्राहीम का भला किया। लेकिन परमेश्वर ने इसके कारण फिरौन और उसके घराने को गंभीर विपत्तियों से पीड़ित किया।[६०] अल्लामा तबताबाई ने तौरेत में इब्राहीम की कहानी के इस हिस्से का उल्लेख करते हुए, इसे अन्य चीज़ों के साथ-साथ नबूवत के मक़ाम और धर्मपरायणता की भावना के साथ इसकी असंगति का हवाला दिया है और इसे तौरेत के विरूपण (तहरीफ़) का एक कारण माना है।[६१]

ओल्ड टैस्टमैंट ने हज़रत इब्राहीम के बेटों इसहाक़ (अ) को ज़बीहुल्लाह उल्लेख किया गया है।[६२] कुछ ज़गहों पर ज़बीह को उनका इकलौता बेटा कहा गया है।[६३] इसी तरह से तौरेत में ज़िक्र हुआ है कि ईश्वर ने कनआन में हज़रत इब्राहीम से वादा किया कि, नील नदी से लेकर फ़ुरात नदी तक का इलाक़ा उनकी औलाद को प्रदान किया जायेगा जो इसहाक की पीढ़ी से उभरेंगे।[६४]

नए टैस्टमैंट (अहदे जदीद) में, इब्राहीम (अ) का 72 स्थानों पर उल्लेख किया गया है और हज़रत ईसा की वंशावली उनके साथ इसहाक़ (अ) के माध्यम से 39 बिचौलियों (मैथ्यू, 1: 1-7) या 54 मध्यस्थों (लूका, 3: 24-25) से जुड़ी हुई है। नए नियम (टैस्टमैंट) में इब्राहीम (अ) के विश्वास (ईमान) का उल्लेख उच्चतम विश्वास के रूप में किया गया है; क्योंकि वह अल्लाह की आज्ञा से अजनबियों की तरह से अपनी जन्मभूमि से दूर फिलिस्तीन में रहे और अपने बच्चे को वेदी पर (क़ुर्बानी के लिये) ले गये।[६५]

मोनोग्राफ़ी

हज़रत इब्राहीम (अ) की जीवनी पर आधारित यह पुस्तक उनके जीवन, विचारों और कार्यों की व्याख्या करती है, इसका नाम क़हरमाने तौहीद, शरह व तफ़सीरे आयाते मरबूत बे हज़रत इब्राहीम (अ) है। इसके लेखक आयतुल्लाह नासिर मकारिम शीराज़ी हैं और यह मदरस ए इमाम अली बिन अबी तालिब (अ) के प्रकाशन की ओर से 224 पेज में छपी है।[६६]

संबंधित लेख

फ़ुटनोट

  1. सज्जादी, "इब्राहिम ख़लील (अ)", पृष्ठ 499
  2. मरअशी नजफी, हवादिसुल अय्याम, पृष्ठ 46 (इलेक्ट्रॉनिक संस्करण)।
  3. # देखें: मरअशी नजफी, हवादिसुल अय्याम, पृष्ठ 46 (इलेक्ट्रॉनिक संस्करण)।
  4. तबरी, तारीख़ अल-उमम वल-मुलूक, 1967, खंड 1, पृष्ठ 233
  5. # कुतुब रावंदी, क़ेससुल अंबिया, आस्ताने कुद्स रज़वी, खंड 1, पृष्ठ 298
  6. # इब्ने बतूता, पृष्ठ 101।
  7. # तबरी, तारीख़ अल-उमम वल-मुलूक, 1967, खंड 1, पृष्ठ 312; इब्ने कसीर, अल-बिदाया वन-निहाया, खंड 1, पृष्ठ 174।
  8. पैदाइश, 11:24, इब्रानी पाठ; QS: फारसी अनुवाद जो प्रकाशित हो चुका है
  9. तबरी, तारीख अल-उमम वल-मुलूक, 1967, खंड 1, पृष्ठ 233
  10. इब्ने कसीर, अल-बिदाया वन-निहाया, 1986, खंड 1, पृष्ठ 142; इब्न हिशाम, अल-सिराह अल-नबविया, दार अल-मारेफा, खंड 1, पृष्ठ 2
  11. सूरह अनआम, आयत 74
  12. फख्रे राज़ी, मिफ़ताह अल-ग़ैब, 1420 हिजरी, खंड 13, पृष्ठ 31।
  13. अबुल फुतुह राज़ी, रौज़ अल-जिन्नान और रौह अल-जिन्नान, 1408 हिजरी, खंड 7, पीपी. 340 और 341; मकारिम शिराज़ी, तफ़सीर अल-नमूना, 1374, खंड 5, पृष्ठ 303।
  14. उदाहरण के लिए, तबताबाई, अल-मिज़ान, 1417 हिजरी, खंड 7, पृष्ठ 165 देखें।
  15. # तबरी, तारीख अल-उमम वल-मुलूक, 1967, खंड 1, पृष्ठ 234
  16. पैदाइश, 11:29
  17. पैदाइश, 20:12
  18. तबताबाई, अल-मिज़ान, 1417 हिजरी, खंड 7, पृष्ठ 229; अयाशी, तफ़सीर अयाशी, 1380 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 254।
  19. तबताबाई, अल-मिज़ान, 1417 हिजरी, खंड 7, पृष्ठ 229
  20. इब्ने असीर, अल-कामिल, 1385 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 101।
  21. मसऊदी, इसबातुल वसीया, 2004, पीपी 41-42
  22. मसऊदी, इसबातुल वसीया, 2004, पृष्ठ 46।
  23. इब्ने साद, तबक़ात अल-कुबरा, 1410 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 41
  24. इब्ने साद, तबक़ात अल-कुबरा, 1410 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 41
  25. फ़िरोज़ मेहर, "मुक़ायस ए क़िस्स ए इब्रहीम दर क़ुरआन व तौरेत में इब्राहीम", पी. 88
  26. खुर्रम शाही, दानिश नाम ए कुरआन और कुरान पजोही, 1377, खंड 2, पृष्ठ 1240।
  27. सूरह मरियम, आयतें 41-48 - सूरह अंबिया, आयतें 51-57 - सूरह शूरा', आयतें 69-82 - सूरह साफ़्फ़ात, आयतें 83-100 - सूरह ज़ुखरुफ़, आयतें 26 और 27 - सूरह मुमतहेना, आयत 4 - सूरह अंकबूत, आयत 16-25।
  28. सूरह मरियम, आयतें 41-48 - सूरह अंबिया, आयतें 51-57 - सूरह शूरा', आयतें 69-82 - सूरह साफ़्फ़ात, आयतें 83-100 - सूरह ज़ुखरुफ़, आयतें 26 और 27 - सूरह मुमतहेना, आयत 4 - सूरह अंकबूत, आयत 16-25
  29. तबताबाई, अल-मिज़ान, 1393 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 272।
  30. तबताबाई, अल-मिज़ान, 1393 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 272
  31. सूरह निसा, आयत 125
  32. सदूक़, इललुश शरिया, 1385, खंड 1, पीपी 34 और 35
  33. सूरह अनकबूत, आयत 27
  34. सूरह अनआम, आयत 84
  35. मुग़निया, तफ़सीर अल-काशिफ, 1424 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 208
  36. इब्ने हिशाम, अल-सिराह अल-नबविया, दार अल-मारेफा, खंड 1, पृष्ठ 2; इब्न अब्द रब्बाह, अल-अक़्द अल-फ़रीद, 1402 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 89
  37. सैय्यद कुतुब, फ़ी ज़ेलालिल क़ुरआन, 1425 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 2997
  38. सूरह अंबिया, आयत 57 से 70
  39. सूरह अंबिया, आयत 71
  40. महली और सियुती, तफ़सीर अल-जलालैन, 1416 हिजरी, पृष्ठ 402; अबुल-फतुह राज़ी, रौज़ अल-जेनान, 1408 हिजरी, खंड 15, पृष्ठ 200
  41. काशानी, तफ़सीर मिनहाज अल-सादेक़ीन, 1336, खंड 6, पृष्ठ 8।
  42. कुतुब रावंदी, क़ससुल अंबिया, आस्ताने कुद्स रज़वी, खंड 1, पृष्ठ 298
  43. सूरह बक़रह, आयत 127
  44. सूरह हज, आयत 27
  45. # फ़ैज़ काशानी, तफ़सीर अल-साफ़ी, 1415 हिजरी, खंड 1, पीपी. 189 और 190
  46. सूरह सफ़्फ़ात, आयत 101 से 108
  47. कुरतुबी देखें, अल-जामे लेअहकाम अल-कुरान, 1364, खंड 16, पृष्ठ 100; अल-बुरहान फ़ी तफ़सीर अल-कुरान, खंड 4, पीपी। 616 से 622।
  48. तूसी, अल-तिबायन, दार एहिया अल-तुरास अल-अरबी, खंड 8, पृष्ठ 518
  49. माज़ंदरानी, ​​शरह फ़ुरू अल-काफी, 1429 एएच, खंड 4, पृष्ठ 402।
  50. अस सलामो अलैका या वारिसा इस्माईला ज़बीहिल्लाह। मोहम्मदी रयशहरी, दानिश नाम ए इमाम हुसैन बर पाय ए कुरआन, हदीस व तारीख़, खंड 12, पृष्ठ 127।
  51. पैदाइश, 11:26।
  52. पैदाइश, 17:4-5, फ़ज़ल ख़ान हमदानी (ग्रॉसी) द्वारा अनुवादित
  53. सूसे, अल अरब वल यहूद फ़ित तारीख़, 1972, पृष्ठ 252
  54. पैदाइश, 11:31-32
  55. पैदाइश, 12:1-4
  56. पैदाइश, 12:1-8
  57. पैदाइश, 12:10
  58. पैदाइश, 13:1-4
  59. पैदाइश, 13:18
  60. पैदाइश, 12:11-19
  61. तबताबाई, अल-मिजान, 1417 हिजरी, खंड 7, पीपी 225 और 226।
  62. पैदाइश, 22:1-14.
  63. तकवीन, 22:2.
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स्रोत

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