बनी क़ैनोक़ाअ युद्ध

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यह लेख बनी क़ैनोक़ाअ युद्ध के बारे में है। इस नाम की जनजाति के बारे में जानने के लिए बनी क़ैनोक़ाअ वाला लेख देखें।
बनी क़ैनोक़ाअ युद्ध
बनी क़ैनोक़ाअ जनजाति का स्थान
बनी क़ैनोक़ाअ जनजाति का स्थान
तारीख15 शव्वाल वर्ष 2 हिजरी से उसी वर्ष 1 ज़िल क़ाअदा तक
जगहमदीना
कारणबनी क़ैनोक़ाअ द्वारा दुस्तूर अल-मदीना का उल्लंघन
परिणाममुसलमानों की जीत और बनी क़ैनोक़ाअ की हार और निर्वासन
सेनानियों
युद्ध पक्षमुसलमान
बनी क़ैनोक़ाअ के यहूदी


बनी क़ैनोक़ाअ युद्ध (अरबी: غزوة بني قينقاع) मदीना के यहूदियों के साथ पैग़म्बर (स) का पहला युद्ध था। बनी क़ैनोक़ाअ जनजाति के पास अरब का सबसे प्रसिद्ध बाज़ार था और मदीना की आर्थिक शक्ति उनके पास थी। मदीना में पैग़म्बर (स) की शक्ति के साथ, बनी क़ैनोक़ाअ ने अपनी स्थिति को ख़तरे में देखा और मुसलमानों का मुक़ाबला करना शुरू कर दिया। उन्होंने मदीना की संधि का उल्लंघन करते हुए एक मुस्लिम महिला के साथ छेड़छाड़ और हमला किया। पैग़म्बर (स) ने इत्मामे हुज्जत के बाद, 15 शव्वाल वर्ष 2 हिजरी में उनके ख़िलाफ़ युद्ध की घोषणा की और उनके किले को घेर लिया। पंद्रह दिनों की घेराबंदी के बाद, बनी क़ैनोक़ाअ के यहूदियों ने पैग़म्बर (स) के सामने आत्मसमर्पण कर दिया और पैग़म्बर (स) के आदेश से उन्हें शाम निर्वासित कर दिया गया।

कुछ इतिहासकारों ने बनी क़ैनोक़ाअ युद्ध को खज़रजियों के लिए एक परीक्षा माना है; क्योंकि इस युद्ध में, कुछ खज़रजियों, जैसे कि ओबादा बिन सामित, ने बनी क़ैनोक़ाअ के साथ अपने समझौते पर पैग़म्बर (स) के साथ अपने समझौते को प्राथमिकता दी। लेकिन अब्दुल्लाह बिन उबैय जैसे कुछ अन्य लोग पैग़म्बर (स) के युद्ध आदेशों के खिलाफ़ खड़े हुए।

बनी क़ैनोक़ाअ की हार के साथ, लूट का बहुत सारा माल मुसलमानों के हाथ लग गया। कहा गया है कि ख़ुम्स का हुक्म पहली बार इसी युद्ध में लागू हुआ था। बनी क़ैनोक़ाअ के निर्वासन के बाद, मदीना में राजनीतिक-धार्मिक एकता क़ायम हो गई और मदीना का पूर्ण बहुमत मुसलमानों के हाथों में आ गया।

इस्लाम के इतिहास में बनी क़ैनोक़ाअ युद्ध का महत्व

बनी क़ैनोक़ाअ युद्ध, पैग़म्बर (स) का सातवां[१] और यहूदियों के ख़िलाफ़ उनका पहला युद्ध था।[२] बनी क़ैनोक़ाअ की हार के साथ, जो मदीना में सबसे बहादुर यहूदियों में से थे, अन्य यहूदी पैग़म्बर (स) की शक्ति से डर गए और कुछ समय के लिए मुसलमानों पर हमला करने और छेड़छाड़ से बचते रहे।[३] इस शक्तिशाली यहूदी समूह की हार के साथ, मुसलमानों ने अधिक आत्मविश्वास प्राप्त किया और भय और संदेह को दूर कर दिया।[४]

मदीना से बनी क़ैनक़ोअ यहूदियों के निष्कासन के साथ, मदीना में राजनीतिक-धार्मिक एकता क़ायम हुई और मदीना का पूर्ण बहुमत मुसलमानों के हाथों में आ गया।[५] बनी क़ैनोक़ाअ की लड़ाई के साथ, पैग़म्बर (स) ने सरकार के मामले में अपना दृढ़ संकल्प दिखाया और यहूदियों के विचार को, जो पैग़म्बर (स) की सहनशीलता को उनके डर का परिणाम मानते थे, खारिज कर दिया।[६] कुछ शोधकर्ताओं का मानना है कि बनी क़ैनोक़ाअ युद्ध मदीना के लोगों, विशेषकर ख़ज़रजियों के लिए एक परीक्षण था, कि पैग़म्बर (स) और इस्लाम के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को क़बीलाई समझौतों के विरुद्ध मापा गया था, और इस परीक्षण में अधिकांश लोगों (कुछ को छोड़कर जैसे अब्दुल्लाह इब्ने उबैय) ने इस्लाम के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दिखाई।[७]

बनी क़ैनोक़ाअ जनजाति

मुख्य लेख: बनी क़ैनोक़ाअ

बनी क़ैनोक़ाअ यहूदियों की एक जनजाति थी जो इस्लाम की शुरुआत में मदीना में रहती थी।[८] कुछ रिपोर्टों में, बनी क़ैनोक़ाअ जनजाति को मदीना के पहले निवासियों के रूप में पेश किया गया है।[९] हालाँकि, कुछ इतिहासकारों ने अमालक़ा को मदीना का पहला निवासी और बनी क़ैनोकाअ को मदीना में बसने वाली दूसरी जनजाति माना है।[१०] बनी क़ैनोक़ाअ, ख़ज़रज जनजाति के सहयोगी थे।[११] बनी क़ैनक़ोअ बाज़ार सबसे प्रसिद्ध अरब बाज़ारों में से एक था[१२] जिसे साल भर में कई बार स्थापित किया जाता था और लोग इस पर गर्व करते थे।[१३] उनके पास मदीना में पास कृषि भूमि या ताड़ के पेड़ नहीं थे, और उनका व्यवसाय सुनार[१४] और लोहार था।[१५] फ़ोरोग़े अब्दीयत पुस्तक के लेखक जाफ़र सुब्हानी का मानना है कि मदीना की आर्थिक शक्ति बनी क़ैनोक़ाअ जनजाति के नियंत्रण में थी।[१६] ऐसा कहा गया है कि मुसलमानों द्वारा पराजित होने और सीरिया में निर्वासित होने के थोड़े समय (एक वर्ष[१७]) के बाद बनी क़ैनोकाअ जनजाति नष्ट हो गई।[१८]

युद्ध के कारण

जाफ़र सुब्हानी के अनुसार, मदीना में पैग़म्बर (स) के सत्ता हासिल करने के साथ, बनी क़ैनोक़ाअ ने अपनी स्थिति को ख़तरे में देखा और इसी कारण, उन्होंने अपमानजनक कविताएँ प्रकाशित करके पैग़म्बर (स) और मुसलमानों को कमज़ोर करने की कोशिश की।[१९] तीसरी शताब्दी हिजरी के इतिहासकार वाक़ेदी के अनुसार, पैग़म्बर (स) ने मदीना की संधि करके यहूदियों के साथ शांति स्थापित की, इस शर्त पर कि वे मुसलमानों के विरुद्ध किसी की सहायता नहीं करेंगे।[२०] बनी क़ैनोकाअ पहली यहूदी जनजाति थी जिसने इस समझौते को तोड़ा और युद्ध की ओर रुख किया।[२१] कुछ इतिहासकारों का मानना है कि बनी क़ैनोकाअ जनजाति के कुछ लोगों ने मुसलमानों के बीच फ़ितना और इख़्तिलाफ़ पैदा करने की कोशिश की और औस और ख़ज़रज के बीच फ़ितना पैदा करने की कोशिश की।[२२]

बद्र की लड़ाई में मुसलमानों की जीत के बाद, बनी क़ैनोकाअ को मुसलमानों की सफलता से ईर्ष्या हुई और उन्होंने पैग़म्बर (स) के साथ अपने समझौते का उल्लंघन किया।[२३] पैग़म्बर (स) इत्मामे हुज्जत करने के लिए बनी क़ैनोकाअ के बड़े बाज़ार में उपस्थित हुए[२४] और उन्हें संधि का पालन करने की चेतावनी दी; लेकिन उन्होंने पैग़म्बर (स) की बातों को नजरअंदाज कर दिया और उन्हें धमकी दी।[२५] 8वीं शताब्दी हिजरी के इतिहासकार, इब्ने ख़ल्दून के अनुसार, उनके व्यवहार के बाद, भगवान ने पैग़म्बर (स) पर सूर ए अनफ़ाल की आयत 58 नाज़िल की और उन्हें जिहाद का आदेश दिया।[२६] हालांकि, एक अन्य रिपोर्ट में, इस आयत का रहस्योद्घाटन (नुज़ूल) मुस्लिम महिलाओं के प्रति यहूदियों के अपमानजनक व्यवहार से संबंधित है।[२७] ऐसा कहा गया है कि एक मुस्लिम महिला बनी क़ैनोकाअ के यहूदी बाज़ार में एक सुनार की दुकान पर गई थी।[२८] यहूदी सुनार ने महिला के कपड़े का एक हिस्सा हटा दिया और उसका अपमान किया।[२९] एक मुस्लिम उस महिला की सहायता करने गया और उस यहूदी की हत्या कर दी।[३०] अन्य यहूदियों ने उस मुसलमान पर भी आक्रमण कर उस मुसलमान की हत्या कर दी। इस घटना के बाद मुसलमानों और यहूदियों के बीच संघर्ष बढ़ गया।[३१]

युद्ध का समय

अधिकांश इतिहासकारों के अनुसार, बद्र की लड़ाई के बाद बनी क़ैनोक़ाअ युद्ध,[३२] 15 शव्वाल वर्ष 2 हिजरी को शुरू हुआ और 1 ज़िल क़ाअदा को समाप्त हुआ।[३३] एक अन्य रिपोर्ट में, यह युद्ध हिजरी के तीसरे वर्ष के सफ़र के महीने में हुआ था।[३४] एक अन्य रिवायत में, यह कहा गया है कि जब पैग़म्बर (स) ने बनी क़ैनोक़ाअ को हराया और मदीना लौट आए, तो ईद अल अज़्हा (10वीं ज़िल हिज्जा) थी और पैग़म्बर (स) ने पहली बार लोगों के साथ ईद की नमाज़ अदा की।[३५] यह भी कहा गया है कि बनी क़ैनोक़ाअ और बनी नज़ीर को एक ही समय में निर्वासित किया गया था।[३६] कुछ इतिहासकारों के अनुसार, इस घटना के समय का निर्धारण करने में रिपोर्टों के अंतर के कारण इसकी सटीक तारीख निर्धारित करना मुश्किल हो गया है।[३७]

मुसलमानों की विजय

बनी क़ैनोकाअ युद्ध की शुरुआत के साथ, यहूदी अपने किलों में चले गए और पैग़म्बर (स) ने उन्हें पंद्रह दिनों तक अपने महलों में घेर लिया।[३८] चौथी शताब्दी हिजरी के इतिहासकार मसऊदी का मानना है कि घिरे हुए यहूदियों की संख्या चार सौ थी।[३९] पैग़म्बर (स) ने मदीना में अबू लोबाबा बिन अब्दुल मुंज़िर को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया।[४०] ऐसा कहा गया है कि इस युद्ध में पैग़म्बर (स) की सेना का ध्वज सफ़ेद था और पैग़म्बर (स) के चाचा हमज़ा बिन अब्दुल मुत्तलिब के हाथों में था।[४१] हालाँकि, किताब अल सहीह मिन सीरत अल नबी अल आज़म के लेखक सय्यद जाफ़र आमोली के अनुसार, इस युद्ध में पैग़म्बर (स) का ध्वज काला था इस युद्ध सहित सभी युद्धों में पैग़म्बर (स) के ध्वजवाहक इमाम अली (अ) थे।[४२] पंद्रह दिनों के बाद, बनी क़ैनोक़ाअ के यहूदियों ने पैग़म्बर (स) के सामने आत्मसमर्पण कर दिया।[४३] बनी क़ैनोक़ाअ को शाम निर्वासित कर दिया गया और इज़रआत के क्षेत्र में बसाया गया।[४४]

बनी क़ैनोक़ाअ के सहयोगियों की भूमिका

चौथी शताब्दी हिजरी के इतिहासकार तबरी के अनुसार, पैग़म्बर (स) ने बनी क़ैनोक़ाअ को मारने का फैसला किया; लेकिन अब्दुल्लाह बिन उबैय (बनी क़ैनोक़ाअ के सहयोगियों में से एक और मदीना के पाखंडियों में से एक) ने उन्हें ऐसा करने से रोक दिया।[४५] पैग़म्बर (स) ने अब्दुल्लाह बिन उबैय के अनुरोध को अस्वीकार कर दिया; परन्तु जब उसने बहुत ज़्यादा आग्रह किया, तो पैग़म्बर (स) ने उसके अनुरोध को स्वीकार कर लिया; लेकिन उन्होंने उस पर और यहूदियों पर लानत (श्राप) की और बनी क़ैनोक़ाअ के यहूदियों को निर्वासित करने का आदेश दिया।[४६] सय्यद जाफ़र मुर्तज़ा का मानना है कि पैग़म्बर (स) द्वारा अब्दुल्लाह बिन उबैय के इस अनुरोध को स्वीकार करना इस तथ्य के कारण था कि एक ओर अब्दुल्लाह बिन उबैय के अनुयायियों के दिल पैग़म्बर के करीब आएँगे और उन्हें इस्लामी समाज से जुड़ेगा और दूसरी ओर, इस्लामी समाज की शक्ति केवल मुख्य शत्रुओं पर ही ख़र्च होगी।[४७] मदीना से बनी क़ैनोक़ाअ को निर्वासित करने के पैग़म्बर (स) के आदेश के बाद, अब्दुल्लाह बिन उबैय एक बार फिर पैग़म्बर (स) को इस आदेश को छोड़ने के लिए मजबूर करना चाहता था। लेकिन इस बार मुसलमानों ने उसे पैग़म्बर के पास जाने की इजाज़त नहीं दी।[४८]

ओबादा बिन सामित, जो अब्दुल्लाह बिन उबैय के विपरीत, बनी क़ैनोक़ाअ के सहयोगियों में से एक था, ने उन्हें नापसंद किया और उनके साथ लड़ना शुरू कर दिया।[४९] उन्हें पैग़म्बर (स) द्वारा बनी क़ैनोक़ाअ को शहर से बाहर निकालने के लिए नियुक्त किया गया था।[५०]

लूटे हुए माल पर खुम्स का हुक्म लागू करना

बनी क़ैनोकाअ के किलों से मुसलमानों को कई हथियार और सुनार के उपकरण प्राप्त हुए।[५१] चौथी शताब्दी हिजरी के इतिहासकार, तबरी और मसऊदी के अनुसार, पैग़म्बर (स) ने बनी क़ैनोकाअ युद्ध में प्राप्त लूट के माल को असहाब के बीच बांट दिया और पहली बार इस पर ख़ुम्स लिया।[५२] सय्यद जाफ़र मुर्तज़ा ने इस युद्ध में पहली बार ख़ुम्स के हुक्म के लागू होने पर संदेह किया है।[५३] इसी तरह उनका यह भी मानना है कि इस युद्ध में प्राप्त संपत्ति फ़य (वह धन जो मुसलमानों ने बिना युद्ध और रक्तपात के काफिरों से प्राप्त किया हो) थी और सभी धन (माल) पैग़म्बर (स) के लिए था; लेकिन पैग़म्बर (स) ने ईसार (बलिदान) किया और संपत्ति को मुसलमानों के बीच बांट दिया।[५४] पैग़म्बर (स) ने सफ़्वो अल ग़नाएम (लूट का एक हिस्सा जो कमांडर स्वंय के लिए लेता है[५५]) के रूप में तीन धनुष, दो कवच, तीन तलवारें और तीन भाले चुने और उन्होंने मुहम्मद बिन मस्लमा और साद बिन मोआज़ को भी दो कवच दिए।[५६] ऐसा कहा गया है कि उन दो कवचों में से एक वह कवच था जिसे पैग़म्बर दाऊद ने जालूत को मारते समय पहना था।[५७]

फ़ुटनोट

  1. नोवैरी, नेहाया अल अरब, 1374 हिजरी, खंड 17, पृष्ठ 1।
  2. वाक़ेदी, अल मग़ाज़ी, 1409 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 177।
  3. सलाबी, ग़ज़वात अल रसूल (स), 1428 हिजरी, पृष्ठ 91।
  4. आमोली, अल सहीह मिन सीरत अल नबी अल आज़म (स), 1426 हिजरी, खंड 7, पृष्ठ 40।
  5. सुब्हानी, फ़रोग़े अब्दीयत, 1385 शम्सी, खंड 1, पृष्ठ 516।
  6. हस्नी, सीरत अल मुस्तफ़ा, 1416 हिजरी, पृष्ठ 375।
  7. सलहब, ग़ज़वात अल रसूल (स) और सरायह, 1426 हिजरी, पृष्ठ 124।
  8. याक़ूत हम्वी, मोजम अल बुल्दान, 1416 हिजरी, खंड 4, पृष्ठ 424।
  9. सम्हूदी, वफ़ा अल वफ़ा, 1419 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 126।
  10. सम्हूदी, वफ़ा अल वफ़ा, 1419 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 126।
  11. इब्ने हिशाम, अल सीरत अल नबविया, दार अल मारेफ़ा, खंड 1, पृष्ठ 540।
  12. जवाद अली, अल मफ़सल फ़ी तारीख़ अल अरब, 1422 हिजरी, खंड 14, पृष्ठ 59।
  13. सम्हूदी, वफ़ा अल वफ़ा, 1419 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 95।
  14. तबरी, तारीख़ अल तबरी, 1387 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 481।
  15. बलअमी, तारीख़ नामे तबरी, 1373 शम्सी, खंड 3, पृष्ठ 151।
  16. सुब्हानी, फ़ोरोग़े अब्दीयत, 1385 शम्सी, खंड 1, पृष्ठ 512।
  17. हल्बी, अल सीरत अल हल्बिया, 1427 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 487।
  18. बलाज़ोरी, अंसाब अल अशराफ़, 1959 ईस्वी, खंड 1, पृष्ठ 309; इब्ने असीर, अल कामिल, 1385 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 138।
  19. सुब्हानी, फ़ोरोग़े अब्दीयत, 1385 शम्सी, खंड 1, पृष्ठ 512।
  20. वाक़ेदी, अल मग़ाज़ी, 1409 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 176।
  21. वाक़ेदी, अल मग़ाज़ी, 1409 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 177।
  22. याक़ूत, ग़ज़वात अल रसूल (स), 1428 हिजरी, पृष्ठ 85-86।
  23. इब्ने असीर, अल कामिल, 1385 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 137।
  24. सुब्हानी, फ़ोरोग़े अब्दीयत, 1385 शम्सी, खंड 1, पृष्ठ 513।
  25. इब्ने असीर, अल कामिल, 1385 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 137।
  26. इब्ने ख़ल्दून, तारीख़े इब्ने ख़ल्दून, 1408 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 432।
  27. इब्ने ख़ल्दून, तारीख़े इब्ने ख़ल्दून, 1408 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 432।
  28. इब्ने हिशाम, अल सीरत अल नबविया, दार अल मारेफ़ा, खंड 2, पृष्ठ 48।
  29. वाक़ेदी, अल मग़ाज़ी, 1409 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 176।
  30. वाक़ेदी, अल मग़ाज़ी, 1409 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 177।
  31. इब्ने हिशाम, अल सीरत अल नबविया, दार अल मारेफ़ा, खंड 2, पृष्ठ 48।
  32. सलाबी, ग़ज़ावात अल रसूल (स), 1428 हिजरी, पृष्ठ 88।
  33. वाक़ेदी, अल मग़ाज़ी, 1409 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 176; मसऊदी, अल तंबीह वा अल अशराफ़, पृष्ठ 206।
  34. तबरी, तारीख़ अल तबरी, 1387 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 481; मिक़रेज़ी, इम्ता अल अस्मा, 1420 हिजरी, खंड 8, पृष्ठ 347।
  35. तबरी, तारीख़ अल तबरी, 1387 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 482; मिक़रेज़ी, इम्ता अल अस्मा, 1420 हिजरी, खंड 8, पृष्ठ 347।
  36. अस्कलानी, फ़तह अल बारी, 1379 हिजरी, खंड 7, पृष्ठ 332।
  37. फ़रहानी मुन्फ़रिद, "बनी क़ैनोक़ाअ", पृष्ठ 471।
  38. वाक़ेदी, अल मग़ाज़ी, 1409 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 177।
  39. मसऊदी, अल तंबीह वा अल अशराफ़, दार अल सवा, पृष्ठ 206।
  40. तबरी, तारीख़ अल तबरी, 1387 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 481।
  41. तबरी, तारीख़ अल तबरी, 1387 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 481।
  42. आमोली, सही मिन सीरत अल नबी अल आज़म (स), 1426 हिजरी, खंड 7, पृष्ठ 37-38।
  43. तबरी, तारीख़ अल तबरी, 1387 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 480।
  44. बलाज़ोरी, अंसाब अल अशराफ़, 1959 ईस्वी, खंड 1, पृष्ठ 309।
  45. तबरी, तारीख़ अल तबरी, 1387 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 480।
  46. तबरी, तारीख़ अल तबरी, 1387 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 481।
  47. आमोली, सही मिन सीरत अल नबी अल आज़म (स), 1426 हिजरी, खंड 7, पृष्ठ 42।
  48. हस्नी, सीरत अल मुस्तफ़ा, 1416 हिजरी, पृष्ठ 376।
  49. वाक़ेदी, अल मग़ाज़ी, 1409 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 179।
  50. वाक़ेदी, अल मग़ाज़ी, 1409 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 179।
  51. वाक़ेदी, अल मग़ाज़ी, 1409 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 179।
  52. तबरी, तारीख़ अल तबरी, 1387 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 481; मसऊदी, अल तंबीह वा अल अशराफ़, दार अल-सावी, पृष्ठ 207।
  53. आमोली, सही मिन सीरत अल नबी अल आज़म (स), 1426 हिजरी, खंड 7, पृष्ठ 39।
  54. आमोली, सही मिन सीरत अल नबी अल आज़म (स), 1426 हिजरी, खंड 7, पृष्ठ 38।
  55. अब्दुल मुनइम, मोअजम अल मुस्तलेहात व अल अल्फ़ाज़ अल फ़िक़हीया, दार अल फ़ज़ीला, खंड 2, पृष्ठ 374।
  56. वाक़ेदी, अल मगाज़ी, 1409 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 178-179।
  57. सम्हूदी, वफ़ा अल वफ़ा, 1419 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 215।

स्रोत

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