इफ़्क की घटना
- यह लेख इफ़्क की घटना के बारे में है। क़ुरआन मे इफ़्क़ की कहानी के बारे में जानने के लिए इफ़्क की आयतों वाला लेख देखें।
इफ़्क की घटना (अरबीः حادثة الإفك) इस्लाम के प्रारम्भिक दिनो मे पैग़म्बर (स) की पत्नियों में से एक पर वेश्यावृत्ति का आरोप लगाने वाले लोगों के एक समूह की कहानी है। शोधकर्ताओं ने इस घटना को पैग़म्बर (स) की सरकार के खिलाफ़ पाखंडियों की सबसे बुनियादी आंतरिक साजिश के रूप में पहचाना है; क्योंकि वे इससे पैग़म्बर (स) के चरित्र को नष्ट करना चाहते थे और उनकी नेतृत्व क्षमता को संदिग्ध करना चाहते थे। परन्तु ईश्वर ने इफ़्क की आयते उतार कर शत्रुओं की इस साजिश को नष्ट कर दिया।
सूत्रों में, आरोपी व्यक्ति के बारे में दो मुख्य रिपोर्टें हैं: सुन्नी स्रोतों और कुछ शिया स्रोतों के अनुसार, इफ़्क की आयते पाखंडियों द्वारा आयशा पर आरोप लगाने के बारे मे उतरी है। कहा गया है कि गज़्वा बनी मुस्तलक़ मे आयशा रसूल अल्लाह के साथ थी, जो इस्लामी सेना से पीछे रह गई थी और सफ़वान बिन मोअत्तल नामक व्यक्ति के साथ आकर सेना मे शामिल हुई। कुछ पाखंडीयो ने आयशा और सफ़वान के बीच अवैध संबंध होने का आरोप लगाया। कुछ शिया शोधकर्ताओ का कहना है कि इस बात प्रमाण और पाठ दोनो हिसाब से विभिन्न आपत्तिया जताई गई है जैसे पैग़म्बर (स) का आयशा पर संदेह करना, क्योकि पैग़म्बरो की इस्मत से असंगत होना और इसी प्रकार दूसरे युद्धो मे रसूल अल्लाह की पत्नीयो का साथ ना आना इन आपत्तियो मे से एक है।
दूसरी रिवायत, तफ़सीर क़ुम्मी के अनुसार आयशा ने मारिया क़िब्तिय्या पर आरोप लगाया था जिसके कारण आयत उतरी। जब रसूल अल्लाह के पुत्र इब्राहीम का जन्म हुआ तो आयशा ने इब्राहीम को जरीह नामक किसी व्यक्ति का पुत्र बताया और पैग़म्बर (अ) ने आयशा के कथन अनुसार इमाम अली (अ) को जरीह की हत्या करने पर निर्धारित किया। जब इमाम अली (अ) जरीह के पास गए तो कहानी झूठी निकली। इस रिवायत पर भी विभिन्न आपत्ती व्यक्त की गई हैः जैसे क़ुरआन की आयतो का असंगत होना, शोध के बिना पैग़म्बर (स) की ओर से हत्या का आदेश देना और क़ज़्फ़ की सज़ा लागू न करना महत्वपूर्ण आपत्तीयो मे से है।
मुहम्मद हुसैन तबातबाई, सय्यद मुहम्मद हुसैन फ़ज़्लुल्लाह, मकारिम शिराज़ी और जाफ़र सुब्हानी जैसे कुछ शिया विद्वान दोनो रिपोर्टो मे से किसी को भी नही मानते है। अकेले तबातबाई ने इस बात की पुष्टि की है इफ़्क की आयतो के आधार पर जिस पर आरोप लगाया गया था वह पैग़म्बर (स) के परिवार से था।
शिया और सुन्नी दोनों स्रोतों में कई अन्य रिपोर्टें हैं, जो आयशा द्वारा मारिया क़िब्तिय्या पर आरोप लगाने की पुष्टि करती हैं; लेकिन उनमें से किसी में भी इफ़्क की आयतो के उतरने का उल्लेख नहीं है। शिया विद्वानों में से केवल समकालीन विद्वानों, जैसे सय्यद अबुल क़ासिम ख़ूई और सय्यद मुर्तज़ा अस्करी ने आय ए इफ़्क को मारिया क़िब्तिय्या की कहानी से संबंधित माना है।
ऐसा कहा गया है कि इफ़्क की हदीस का अध्ययन इस्लाम के इतिहास में सबसे कठिन विषयों में से एक है, जो तफ़सीरी, कलामी, फ़िक़्ही और मानव विज्ञान विषयों से संबंधित है, और राजनीतिक और धार्मिक प्रवृत्तियों ने इसे और अधिक जटिल बना दिया है। इफ़्क की घटना के विषय पर सय्यद जाफ़र मुर्तज़ा आमोली द्वारा लिखित हदीस अल-इफ़्क और अली महमूद रशवान द्वारा लिखित हदीस अल इफ़्क मिन अल मंज़ूर अल ऐअलामी जैसी किताबें हैं।
इस्लाम के इतिहास में इफ़्क की घटना का महत्व
इफ़्क (का अर्थ झूठ[१] और आरोप[२] है) पैग़म्बर (स) के समय की एक घटना को संदर्भित करता है जिसमें पैग़म्बर (स) की पत्नियों में से एक पर अवैध आरोप लगाया गया था, जिसके परिणाम स्वरूप परमात्मा ने (सूर ए नूर की आयत न 11-26 मे) इफ़्क की आयतो मे खुलासा किया।[३] कहा जाता है कि आरोप लगाने वालो का उद्देश्य पैग़म्बर (स) के चरित्र को बदनाम करना था। लेकिन परमेश्वर ने इन आयतों को उतार कर और आरोप लगाने वालो को फटकार लगाकर सच्चाई को स्पष्ट किया और दुश्मनों की साजिश को असफल कर दिया।[४] कुछ शोधकर्ताओं ने इफ़्क की घटना को पैग़म्बर (स) सरकार के खिलाफ पाखंडियों की सबसे बुनियादी आंतरिक साजिश के रूप में पेश किया है;[५] जिस से पैग़म्बर (स) पर संदेह करें और उनकी नेतृत्व क्षमता को समाप्त करें[६] और आप (स) राजनीतिक और सामाजिक हिसाब से सीमित हो जाएं।[७] कुछ का कहना है कि इफ़्क की हदीस इस्लाम के इतिहास मे सबसे कठिन विषयो मे से है जो व्याखयात्मक, धार्मिक, न्यायशास्त्रीय और मानव विज्ञान से संबंधित है और धार्मिक और राजनीतिक दिल चस्पी के कराण यह मामला और अधिक जटिल बन चुका है।[८]
इफ़्क की आयतें
- मुख्य लेख: इफ़्क की आयतें
क़ुरआन के सूर ए नूर की 11 से 26 नम्बर की आयतो मे उल्लेखित घटना मे किसी एक मुसलमान पर लगाए गए आरोप की ओर संकेत करते हुए इस दुर्व्यवहार की निंदा की गई है।[९] तफ़सीर अल-मीज़ान के लेखक मुहम्मद हुसैन तबातबाई के अनुसार, सूर ए नूर की इन आयतो से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि जिस पर आरोप लगाया गया था वह कोई मामूली व्यक्ति नही था बल्कि उसका संबंध पैग़म्बर (स) के परिवार से था और आरोप लगाने वाले भी एक दो व्यक्ति नही थे बल्कि पूरा एक समूह था।[१०] परमात्मा ने इन आयतो मे आरोप लगाने वालो को सख़त अज़ाब का वादा देने के साथ साथ विश्वासीयो को भी इस प्रकार की अफ़वाह को बिना किसी जांच के स्वीकार करने पर उनकी निंदा की।[११]
इन आयतो के अंतिम भाग मे परमात्मा लोगों को पवित्र महिलाओं पर वेश्यावृत्ति का आरोप लगाने से सख्ती से रोकते हुए पवित्र महिलाओं को ऐसे आरोपो से बरी करता हैं।[१२]
इफ़्क की घटना से संबंधित विभिन्न रिपोर्टें
इफ़्क की घटना में जिस व्यक्ति पर आरोप लगाया गया था, उसके बारे में राय में मतभेद है।[१३] कुछ शिया रिपोर्टों में, मारिया क़िब्तिय्या पर आरोपी लगाया गया था; लेकिन सुन्नी परंपराओं के साथ-साथ अन्य शिया रिपोर्टों में भी आयशा पर आरोप लगाया गया है।[१४] तफ़सीर अल-क़ुमी के लेखक अली बिन इब्राहीम क़ुमी[१५] के शब्दों से ऐसा लगता है शियो के अनुसार इन आयतो का मारिया क़िब्तिय्या के बारे में उतरने मे असहमत नहीं हैं, या कम से कम शिया दृष्टिकोण से यहि प्रसिद्ध है कि यह आयतें मारिया किब्तिया के बारे मे उतरी है;[१६] लेकिन कुछ शोधकर्ताओं के अनुसार, शिया दृष्टिकोण से मारिया क़िब्तिय्या के बारे में इफ़्क की आयतो का उतरना न केवल प्रसिद्ध है, बल्कि समकालीन विद्वानो से पहले विद्वानों के बीच, आयशा के बारे में इन आयतो का उतरना अधिक प्रसिद्ध था;[१७] 8 वी हिजरी के एक शिया न्यायविद और धर्मशास्त्री अल्लामा हिल्ली ने इफ़्क की आयतो को आयशा से संबंधित माना और कहा कि वह इसके विपरीत किसी अन्य दृष्टिकोण के अस्तित्व से अवगत है।[१८]
पहली रिपोर्ट: आयशा पर आरोप
चंद्र कैलेंडर के 14वीं शताबादी के शिया टिप्पणीकार मुहम्मद जवाद मुग़निया के अनुसार, अधिकांश टिप्पणीकारों और इतिहासकारों का मानना है कि इफ़्क की आयतें उस घटना से संबंधित हैं जो पैग़म्बर (स) की बनी मुस्तलक़ की लड़ाई से (5 हिजरी[१९] या 6 हिजरी[२०] वापसी के दौरान हुई थी।[२१] आयशा के कथन के अनुसार, पैग़म्बर (स) जोकि युद्धों में हमेशा अपनी पत्नियों में से एक को अपने साथ ले जाते थे, बमी मुस्तलक अभियान में आयशा को अपने साथ ले गए।[२२] इस युद्ध से वापस लौटते समय, जब कारवां आराम करने के लिए रुका तो आयशा अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए लश्करगाह (शिविर) से दूर चली गई, और जब उसने अपना हार खो दिया, तो उसे खोजने में आयशा ने कुछ समय बिताया।[२३] जिन सैनिको को आयशा की अनुपस्थिति के बारे में पता नहीं था, वह निकल पडे और आयशा का कजावा यह सोच कर कि आयशा उसमे सैनिक उसको भी अपने साथ ले गए।[२४] लश्करगाह (शिविर) में लौटने के बाद, आयशा ने लश्करगाह को खाली पाया तो सफ़वान बिन मुअत्तल नामक व्यक्ति के आने तक उसी स्थान पर रुकी सफवान ने आयशा के पास पहुंच कर अपना ऊँट आयशा को दिया और उसे अपने साथ सेना में ले गया।[२५] आयशा इस यात्रा से लौटने के बाद बीमार हो गई इस दौरान आयशा ने पैग़म्बर (स) के व्यवहार में बदलाव का आभास किया और सफवान बिन अफ़वान के बारे मे कुछ अफवाहे लोगो के बीच घूम रही है।[२६] इस घटना के कुछ समय निंदकों को फटकारने के लिए क़ुरआन की उल्लिखित आयतो का अवतरण हुआ।[२७]
कुछ शिया विद्वानों ने इफ़्क की घटना को आयशा पर लाछन लगाने से संबंधित माना है। उनमें नस्र बिन मुज़ाहिम ने अपनी किताब वक़्अतो सिफ़्फ़ीन मे[२८] नोमानी ने उनसे मंसूब तफसीर मे[२९] शेख मुफ़ीद ने अल-जमल मे[३०] शेख तूसी ने अल तिबयान में[३१] तबरेसी ने आलाम अल वरा[३२] क़ुत्बुद्दीन रावंदी ने फ़िक़्ह अल क़ुरआन[३३] और मुक़द्दस अर्दबेली ने ज़ुब्दातुल बयान[३४] मे बयान किया है।
आरोप लगाने वाले कौन थे?
क़ुरआन करीम की उपरोक्त आयतो मे आरोप लगाने वालो के एक समूह को निंदक के रूप में नामित किया गया है और उनके नामों का उल्लेख नहीं किया गया है;[३५] हालांकि, कुछ स्रोतों ने अब्दुल्लाह बिन उबैय, हस्सान बिन साबित और मिस्ताह बिन उसासा जैसे पाखंडी लोगों को इफ़्क की घटना का सरगना माना है।[३६]
आयशा के लिए फ़ज़ीलत गढ़ना
सुन्नी इफ़्क की आयतों के अवतरण (नुज़ूल) को आयशा के लिए फ़ज़ीलत मानते हैं।[३७] हालाँकि इस रिपोर्ट का उल्लेख सुन्नियों के विभिन्न कथनों में किया गया है, शिया इतिहासकार सय्यद जाफ़र मुर्तज़ा आमोली के अनुसार, इनमें से लगभग सभी कथन स्वयं आयशा द्वारा सुनाए गए है।[३८] कुछ शोधकर्ताओं का मानना है कि आयशा ने इसे व्यक्तिगत घटना तक सीमित कर दिया[३९] और खुद पर बहुत अधिक ध्यान देकर इसे अपने लिए फ़ज़ीलत बनाया है।[४०] इसी कारण शिया इस घटना की प्रामाणिकता पर संदेह करते है।[४१] इसके आधार पर उन्होंने कहा कि भले ही इफ़्क की आयतें आयशा के बारे में नाजिल हुई हों, यह केवल उसकी पवित्रता को इंगित करती हैं और उसके लिए कोई अन्य फ़ज़ीलत साबित नहीं करती हैं।[४२]
दूसरी रिपोर्ट: मारिया क़िब्तिय्या पर आरोप लगाना
इफ़्क की आयतो के अवतरण को मारिया क़िब्तिय्या की कहानी से संबंधित करने का उल्लेख सबसे पहले अली इब्न इब्राहिम कुमी की किताब तफ़सीर क़ुमी में किया गया है।[४३] अली इब्न इब्राहीम क़ुमी ने इमाम बाक़िर (अ) द्वारा वर्णित रिवायत के अनुसार, आयशा ने मारिया क़िब्तिय्या पर जरीह किब्ती नामक व्यक्ति के साथ अवैध संबंध का आरोप लगाया था।[४४] इस रिवायत के अनुसार जब पैग़म्बर (स) अपने बेटे इब्राहीम की मौत से दुखी थे, तो आप (स) से आयशा ने कहा, “आप इब्राहीम की मौत पर दुखी क्यो है; क्योंकि वह तो जरीह का बेटा था"।[४५] इस कारण से, पैग़म्बर (स) ने इमाम अली (अ) से जरीह को मारने के लिए कहा।[४६] जरीह जब इमाम अली (अ) के इरादे से अवगत हुआ तो जान बचाने के लिए किसी पेड़ पर चढ़ गया।[४७] और उसी समय उसके कपड़े शरीर से हट गये और अली (अ) को पता चला कि उसके तो लिंग ही नहीं है।[४८] इस तरह मारिया पर लगे अवैध संबंध का आरोप समाप्त हो गया और इफ़्क की आयतें नाज़िल हुई।[४९]
ऐसा कहा गया है कि शिया विद्वानों में से केवल समकालीन विद्वानों ने इफ़्क की आयतो को मारिया क़िब्तिय्या से संबंधित माना है।[५०] इन विद्वानों मे सय्यद अबुल क़ासिम ख़ूई[५१] सय्यद जाफ़र मुर्तज़ा आमोली[५२] और सय्यद मुर्तज़ा अस्करी[५३] उल्लेखनीय है। शेख़ मुफ़ीद ने मारिया की हदीस के विषय पर एक स्वतंत्र ग्रंथ लिखा है, जिसे रिसालतुन हौला ख़बर ए मारिया कहा जाता है, इस हदीस को मुसल्लम मानते हुए सभी विद्वानो के यहा इस कथन के साबित होने का उल्लेख करते हैं;[५४] लेकिन जिस हदीस का उन्होंने वर्णन किया है उसमे इफ़्क की आयतो के अवतरण का उल्लेख नहीं है;[५५] इसी प्रकार कई अन्य स्रोतों मे मारिया की कहानी इफ़्क की आयतो के अवतरण का उल्लेख किए बिना बयान हुई है; इन स्रोतों में सय्यद मुर्तज़ा की अमाली,[५६] अल-हिदाया अल-कुबरा[५७] दलायल अल-इमामा[५८] और अल-मनाकिब[५९] शामिल हैं। सुन्नी विद्वानों ने आयशा पर आरोप लगाने वाले पाखंडियों की कहानी इफ़्क की आयोत के तहत बयान की है। हालाँकि, मारिया के खिलाफ आरोप का उल्लेख सुन्नी स्रोतों में भी किया गया है, जिनमें से कुछ सहीह मुस्लिम,[६०] तबक़ात अल-कुबरा,[६१] अंसाब अल-अशराफ़,[६२] अल-मुस्तदरक अला अल-सहीहैन[६३] और सफवत अल-सफ्फ़ा[६४] उल्लेखनीय है।
दोनो रिपोर्टों की समस्याओं की जाँच
इन दोनों रिपोर्टों में से प्रत्येक के लिए कुछ समस्याओं का उल्लेख किया गया है, और कुछ टिप्पणीकारों जैसे कि मुहम्मद हुसैन तबातबाई,[६५] सय्यद मुहम्मद हुसैन फ़ज़्लुल्लाह,[६६] मकारिम शिराज़ी[६७] और जाफ़र सुब्हानी ने इन समस्याओं के कारण इन दोनों को खारिज कर दिया है।[६८] दोनों रिपोर्टों को गलत मानते हुए कहा गया है कि ऐसी संभावना है कि यह आयत किसी तीसरे व्यक्ति के बारे में सामने आई है।[६९] दूसरी ओर, कुछ शोधकर्ताओं का मानना है कि ऐसी संभावना है कि दोनों घटनाएं सही हो; इस स्पष्टीकरण के साथ कि आयशा की कहानी के लिए इफ़्क की आयतो का अवतरण हुआ है, लेकिन मारिया की कहानी के लिए किसी आयत का अवतरण नही हुआ।[७०]
आयशा से संबंधित रिपोर्ट पर आपत्तियाँ
शिया मुसलमान पैग़म्बरों की पत्नियों (यहाँ तक कि हज़रत नूह की पत्नी और हज़रत लूत की पत्नी) को भी व्यभिचार से दूषित होने से सुरक्षित मानते हैं;[७१] लेकिन उनमें से कुछ के अनुसार, इफ़्क की आयको का आयशा से संबंधित होने मे कई समस्याएं हैं।[७२] सय्यद जाफ़र मुर्तज़ा ने इस कहानी को मन गढ़त माना और इसके रचनाकारों का उद्देश्य आयशा के लिए फ़ज़ीलत जाहिर करना था।[७३] इसके अलावा कुछ इन्ही रिवायतो की सनद कमजोर है[७४] और कुछ दूसरी रिवायतो के साथ विरोधाभास भी है[७५] इन्ही समस्याओ मे से कई समस्याएं इस प्रकार बताई गई हैं:
- ऐसे महत्वपूर्ण मामले में एक बच्चे के साथ पैगम्बर (स) का परामर्श करना: इन रिवायतो में यह उल्लेख किया गया है कि पैग़म्बर (स) ने इस संबंध में अली बिन अबी तालिब और ओसामा बिन ज़ैद से परामर्श किया था, ओसामा ने आयशा के बचाव में जबकि इमाम अली (अ) ने आयशा के खिलाफ बात की थी।[७६] यह इस तथ्य के बावजूद है कि इस घटना के समय ओसामा एक छोटा बच्चा था।[७७]
- अन्य युद्धों में पैग़म्बर (स) की पत्नियों का साथ न देना: आयशा से संबंधित रिपोर्ट में पैग़म्बर (स) की पत्नियों में से एक का युद्धों में उनके साथ रहना, पैग़म्बर (स) के तौर-तरीकों का परिचय दिया गया है; हालाँकि, ऐसी कोई रिपोर्ट नहीं है जो अन्य युद्धों में पैग़म्बर (स) की पत्नियों की उपस्थिति का उल्लेख करती हो।[७८]
- पैग़म्बर (स) का आयशा पर संदेह: सुन्नी रिपोर्टों के अनुसार, पैग़म्बर (स) को आयशा पर संदेह था; लेकिन ऐसा लेख पैग़म्बर (स) की अचूकता (इस्मत) के साथ असंगत है।[७९]
- क़ज़्फ़ की सज़ा का लागू न करना: क़ुरआन की आयतों से ज्ञात होता है कि इस घटना से पहले इस्लाम मे क़ज़्फ़ की सज़ा का विधान किया गया था अर्थात क़ानूनी रूप ले चुकी थी, यदि आयशा की कहानी सत्य होती तो इस आरोप और लाछन की अफ़वाह (लगभग एक महीने) चल रही थी उस समय पैग़म्बर (स) द्वारा आरोप लगाने वाले से तर्क न मांगना और क़ज़्फ़ की सज़ा का लागू न करना संभव नही था[८०] तीसरी शताब्दी के इतिहासकार याक़ूबी के अनुसार रसूल अल्लाह (अ) ने आरोप लगाने वालो को सज़ा दी और क़ज़्फ़ करने वालो पर सज़ा लागू की गई।[८१]
- सफवान बिन मोअत्तल का अविवाहित होना: आयशा ने इस वर्णन में सफवान को अविवाहित व्यक्ति के रूप में पेश किया; जबकि अन्य रिवायतो के अनुसार, उनकी एक पत्नी थी और उनकी पत्नी ने उनके बारे में पैग़म्बर (स) से शिकायत की थी।[८२]
- इतनी महत्वपूर्ण घटना का केवल एक व्यक्ति का रावी होना: सय्यद जाफ़र मुर्तज़ा आमोली के अनुसार, भारी बहुमत और शायद इस खंड के सभी कथन आयशा से सुनाए गए है, और यह कैसे संभव है कि एक इतनी महत्वपूर्ण घटना केवल एक ही व्यक्ति द्वारा सुनाई गई है और कैसे संभव है कि इतनी महत्वपूर्ण घटना को किसी अन्य व्यक्ति बयान ही नही किया?[८३]
मारिया से संबंधित रिपोर्ट पर आपत्तियाँ
मारिया से संबंधित रिवायत की भी आयशा के कथन की तरह आलोचना की गई है, और कुछ विद्वानों ने इस रिपोर्ट पर आपत्तिया जताई है।[८४] शिया टिप्पणीकार सय्यद मुहम्मद हुसैन फ़ज़्लुल्लाह के अनुसार, इस रिपोर्ट के संबंध मे आयशा से संबंधित रिपोर्ट से कही अधिक समस्याएं है।[८५] उनमें से निम्नलिखित का उल्लेख किया जा सकता है:
- आरोप लगाने वालों पर क़ज़्फ़ की सज़ा का लागू न होना: इस धारणा के साथ कि क़ज़्फ़ के बारे में हुक्म इस घटना से पहले आ चुका था, सवाल उठता है कि पैग़म्बर (स) ने मारियम पर आरोप लगाने क़ज़्फ़ की सज़ा लागू क्यों नहीं की।[८६]
- बिना किसी तर्क और जांच के मुजरिम को मारने का आदेश: मुद्दे की सच्चाई या झूठ की जांच किए बिना पैग़म्बर (स) के लिए अभियुक्त (मुजरिम) की हत्या का आदेश देना कैसे संभव है? इसके अलावा, ऐसे पाप की सजा किसी व्यक्ति को मारना नहीं है।[८७]
- क़ुरान की आयतों से असंगति: इफ़्क की आयतों से ज्ञात होता है कि आरोप लगाने वाला एक समूह है जबकि इस रिवाय मे केवल आयशा है।[८८]
मोनोग्राफ़ी
शियो और सुन्नियों ने इफ़्क की घटना पर विभिन्न पुस्तकें लिखी हैं, जिनमें निम्नलिखित दो पुस्तकें शामिल हैं:
- सय्यद जाफ़र मुर्तज़ा आमोली द्वारा लिखित "हदीस अल-इफ़्क": लेखक ने पुस्तक की सामग्री को चौदह अध्यायों में व्यवस्थित किया है और आयशा और मारिया से संबंधित दो घटनाओं का वर्णन और विश्लेषण किया है।[८९] उन्होंने सही का परिचय दिया और इसकी समस्याओं का उत्तर दिया।[९०] इस पुस्तक का दूसरा संस्करण 1439 हिजरी में बेरुत में अल-मरकज़ अल-इस्लामी लिद देरासात के प्रयासों से 403 पृष्ठों में प्रकाशित किया गया था।[९१]
- अली महमूद रशवान द्वारा लिखित हदीस अल-इफ़्क मिनल मंज़ूर ए अल-एलामी: इस पुस्तक के लेखक, जो सुन्नी लेखकों में से हैं, ने आयशा से संबंधित घटना को निश्चित रूप से स्वीकार किया और मारिया की घटना का उल्लेख नहीं किया।[९२] इस पुस्तक की सामग्री को तीन अध्यायों में व्यवस्थित किया गया है।[९३] घटना के समय, स्थान और सामान्य माहौल की व्याख्या, इस घटना के खिलाफ विभिन्न लोगों का रुख और इस मामले के बारे में क़ुरआनी नुकात विषय का गठन करते हैं।[९४] यह पुस्तक मक्का की उम्मुल क़ुरा यूनिवर्सिटी द्वारा 1415 हिजरी में 162 पृष्ठों पर प्रकाशित की गई थी।[९५]
फ़ुटनोट
- ↑ फराहीदी, अल ऐन, 1410 हिजरी, भाग 5, पेज 416
- ↑ इब्न मंज़ूर, लेसान अल अरब, 1414 हिजरी, भाग 10, पेज 390
- ↑ ख़ुरासानी व दश्ती, आय हाए नामदार, 1388 शम्सी, पेज 38
- ↑ मुंतज़री, पासुख बे पुरसिशहाए दीनी, 1389 शमसी, पेज 43
- ↑ हुसैनीयान मुक़द्दम, बररसी तारीखी-तफ़सीरी हादस ए इफ्क, पेज 160
- ↑ रशवान, हदीस अल इफ़्क मिन अल मंज़ूर अल इस्लामी, 1415 हिजरी, पेज 12
- ↑ जाफ़रनिया, बर रसी व नक़्द गुज़ारिशहाए हादस ए इफ़्क, पेज 47
- ↑ हुसैनीयान मुक़द्दम, बररसी तारीखी-तफ़सीरी हादस ए इफ्क, पेज 160
- ↑ तबातबाई, अल मीज़ान, 1417 हिजरी, भाग 15, पेज 89
- ↑ तबातबाई, अल मीज़ान, 1417 हिजरी, भाग 15, पेज 89
- ↑ मकारिम शिराज़ी, अल अम्सल, 1421 हिजरी, भाग 11, पेज 46
- ↑ सूर ए नूर, आयत न 20-26
- ↑ मुंतज़री, पासुख बे पुरसिशहाए दीनी, 1389 शम्सी, पेज 42
- ↑ मुंतज़री, पासुख बे पुरसिशहाए दीनी, 1389 शम्सी, पेज 42
- ↑ क़ुमी, तफसीर अल क़ुमी, 1363 हिजरी, भाग 2, पेज 99
- ↑ हुसैनीनान मुकद्दम, बर रसी तारीखी-तफ़सीरी हादस ए इफ़्क, पेज 166
- ↑ खशिन, अबहास हौला अल सय्यदत आयशा, 1438 हिजरी, पेज 258
- ↑ देखेः अल्लामा हिल्ली, अज्वब अल मसाइल अल मुहन्नाएया, 1401 हिजरी, पेज 121
- ↑ इब्ने साद, अल तबकात अल कुबरा, 1414 हिजरी, भाग 2, पेज 48-50; मस्ऊदी, अल तंबीह व अल अशराफ़, मोअस्सेसा नशर अल मनाबे अल सक़ाफ़ीया अल इस्लामीया, पेज 215
- ↑ इब्न असीर, असद अल ग़ाबा, 1409 हिजरी, भाग 1, पेज 29
- ↑ मुग़नीया, तफसीर अल कश्शाफ़, 1424 हिजरी, भाग 5, पेज 403
- ↑ बुख़ारी, सहीह अल बुख़ारी, 1422 हिजरी, भाग 6, पेज 101
- ↑ वाक़ेदी, अल मुग़ाज़ी, 1409 हिजरी, भाग 2, पेज 428
- ↑ इब्न हेशाम, अल सीरत अल नबवीया, दार अल मारफ़ा, भाग 2, पेज 298
- ↑ मुस्लिम, सहीह मुस्लिम, दार एहया अल तुरास अल अरबी, भाग 4, पेज 2129
- ↑ सन्आनी, अल मुसन्निफ़, 1403 हिजरी, भाग 5, पेज 410
- ↑ वाहेदी नेशाबूरी, असबाब नुज़ूल अल क़ुरआन, 1411 हिजरी, पेज 332
- ↑ इब्ने मुज़ाहिम, वक्अतो सिफ़्फ़ीन, 1404 हिजरी, पेज 523
- ↑ नौमानी, रेसालतुल मोहकम वल मुताशाबेह, 1384 शम्सी, पेज 156
- ↑ शेख मुफ़ीद, अल जमल, 1416 हिजरी, पेज 157
- ↑ शेख तूसी, अल तिबयान, भाग 7, पेज 415
- ↑ तबरेसी, आलाम अल वरा, 1417 हिजरी, भाग 1, पेज 197
- ↑ रावंदी, फ़िक़्ह अल क़ुरआन, 1405 हिजरी, भाग 2, पेज 388
- ↑ मुक़द्देसी अर्दबेली, ज़ुब्दतुल बयान, मकतब अल मुर्तज़वीया, पेज 388
- ↑ सूर ए नूर, आयत न 11
- ↑ याक़ूबी, तारीख अल याक़ूबी, दार सादिर, भाग 2, पेज 53; तबरी, तारीख अल उमम व अल मुलूक, 1387 हिजरी, भाग 2, पेज 614-616
- ↑ देखेः फ़ख़्रे राज़ी, अल तफसीर अल कबीर, 1420 हिजरी, भाग 23, पेज 338; इब्न असीर, असद अल ग़ाबा, 1409 हिजरी, भाग 6, पेज 191
- ↑ आमोली, हदीस अल इफ़्क, 1439 हिजरी, पेज 90
- ↑ जाफ़रयान, बर रसी व नक़्द गुज़ारिश हाए हादेसा ए इफ़्क, पेज 52
- ↑ हुसैनीयान मुक़द्दम, बर रसी तारीखी-तफ़सीरी हादेसा ए इफ़्क, पेज 161
- ↑ जाफ़रनिया, बर रसी व नक़्द गुज़ारिशहाए हादस ए इफ़्क, पेज 52; हुसैनीयान मुक़द्दम, बर रसी तारीखी-तफ़सीरी हादेसा ए इफ़्क, पेज 161
- ↑ हुसैनीयान मुक़द्दम, बर रसी तारीखी-तफ़सीरी हादेसा ए इफ़्क, पेज 160
- ↑ हुसैनीयान मुक़द्दम, बर रसी तारीखी-तफ़सीरी हादेसा ए इफ़्क, पेज 166
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- ↑ देखेः आमोली, हीदस अल इफ़्क, 1439 हिजरी, पेज 381-38255-334; अस्करी, अहादीस उम्म अल मोमेनीन आयशा, 1425 हिजरी, भाग 2, पेज 167-181
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- ↑ रशवान, हदीस अल इफ़्क मिन अल मनज़ूर अल आलमी, 1415 हिजरी
- ↑ देखेः रशवान, हदीस अल इफ़्क मिन अल मनज़ूर अल आलमी, 1415 हिजरी
- ↑ रशवान, हदीस अल इफ़्क मिन अल मनज़ूर अल आलमी, 1415 हिजरी
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- क़ुमी, अली इब्न इब्राहीम, तफसीर अल क़ुम्मी, क़ुम, दार अल किताब, 1363 शम्सी
- मस्ऊदी, अली बिन अल हुसैन, अल तंबीह व अल अशराफ़, काहेरा, दार अल सावी (चाप अशसतः क़ुम मोअस्सेसा नशर अ मनाबे अल सक़ाफ़ा अल इस्लामीया)
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- मुग़नीया, मुहम्मद जवाद, तफसीर अल कश्शाफ़, तेहरान, दार अल किताब अल इस्लामीया, 1424 हिजरी
- मुक़द्दस अरदबेली, अहमद बिन मुहम्मद, जुबदतुल बयान, तेहरान, मकतब अल मुर्तजवीया
- मकारिम शिराज़ी, नासिर, अल मसल फ़ी तफ़सीर किताब अल्लाह अल मुंज़ल, अनुवाद व तलखीस मुहम्मद अली आज़रशब, क़ुम, मदरसा इमाम अली बिन अबि तालिब, 1421 हिजरी
- मकारिम शिराज़ी, नासिर, तफसीर नमूना, तेहरान, दार अल किताब अल इस्लामीया, 1374 शम्सी
- मुंतज़री, हुसैन अली, पासुख बे पुरसिश हाए दीनी, क़ुम, दफतर आयतुल्लाह मुंतज़री, 1389 शम्सी
- नौमानी, मुहम्मद बिन इब्राहीम, रेसाला अल मोहकम व अल मुताशाबेह, मशहद, मजमा अल बहूस अल इस्लामीया, 1384 शम्सी
- वाहेदी नेशाबूरी, अली बिन अहमद, असबाब नुज़ूल अल क़ुरआन, बैरूत, दार अल किताब अल इल्मीया, 1411 हिजरी
- वाक़ेदी, मुहम्मद बिन उमर, अल मग़ाज़ी, शोधः मारसडन जूनिस, बैरुत, मोअस्सेसा अल आलमी, 1409 हिजरी
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