हजरे असवद
हजर उल असवद (अरबी: الحجر الأسود) एक काला पत्थर है जो काबा की दीवार पर स्थापित है। यह पत्थर, पूजा के पहले स्थान का एकमात्र बचा हुआ हिस्सा है जिसे पृथ्वी पर बनाया गया था। इमाम बाक़िर (अ) के एक हदीस के अनुसार, हजर उल असवद पृथ्वी पर तीन स्वर्गीय पत्थरों में से एक है।
पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने हजरे असवद को छूने की सिफ़ारिश की है, और मुस्लिम न्यायविद इसके छूने को मुसतहब मानते हैं। काबा की परिक्रमा, इसी पत्थर के सामने से शुरू होकर यहीं ख़त्म होती है। हर वाजिब और मुस्तहब परिक्रमा में, इस पत्थर को दाहिने हाथ से छूने और चूमने की सिफ़ारिश की जाती है, और यदि नहीं छू सकते, तो इसे हाथ से इंगित करें और इसके साथ वचन और सौगंध को नवीनीकृत करें।
कुछ शिया विद्वानों के अनुसार, इमाम होने के बारे में, मुहम्मद बिन हनफ़िया और इमाम सज्जाद (अ) के बीच विवाद में, इमाम ने हजरे असवद को न्यायाधीश बनाया और हजरे असवद ने इमाम सज्जाद (अ) की इमामत की गवाही दी थी।
पूरे इतिहास में, हजरे असवद पर कई हमले हुए हैं और कई लोगों ने इसे नष्ट करने या चोरी करने की कोशिश की है, और कभी-कभी वे सफ़ल भी हुए हैं।
परिचय
हजरे असवद एक काला पत्थर है जो काबा की दीवार पर पूर्वी स्तंभ[२] में स्थापित है।[३] इस पत्थर का मुसलमानों के नज़दीक एक महान आध्यात्मिक मूल्य है।[४] काबा का पूर्वी स्तंभ, हजरे असवद की उपस्थिति के कारण, रुकने हजर उल असवद के नाम से प्रसिद्ध है।[५]
इस पत्थर की दूरी मस्जिद उल हराम के ज़मीनी स्तर से डेढ़ मीटर ऊंची है।[६] इस पत्थर को चांदी के केस में रखा गया है। आज, इस पत्थर के केवल आठ छोटे टुकड़े बचे हैं, जिनमें से सबसे बड़ा एक खजूर के आकार का है।[७]
इमाम बाक़िर (अ) की एक हदीस के अनुसार, धरती पर स्वर्ग से तीन पत्थर हैं, जिनमें से एक हजर उल-असवद है।[८]
क़ुरआन में हजरे असवद का कोई उल्लेख नहीं है। हालाँकि, सूर ए आले इमरान में वर्णित किया गया है कि; “ ईश्वर के घर में «آيَاتٌ بَيِّنَاتٌ؛ (उज्ज्वल संकेत) हैं”[९] और इस आयत की व्याख्या (तफ़सीर) में, हजरे असवद को काबा के उज्ज्वल संकेतों के उदाहरणों में से एक माना गया है।[१०]
दूसरे खलीफ़ा ने हजरे असवद को ऐसा पत्थर माना जिससे मनुष्य को कोई लाभ या हानि नहीं है। उसने हजरे असवद से प्रेम का कारण, केवल पैग़म्बर (स) का इस पत्थर के प्रति प्रेम माना है। इमाम अली (अ) ने खलीफ़ा का खंडन किया और कहा कि ईश्वर पुनरुत्थान (क़यामत) के दिन इस पत्थर को पुनर्जीवित करेगा, जबकि इसकी एक जीभ और दो होंठ हैं और उन लोगों की गवाही देगा जो अपने वचन का पालन करते हैं। यह पत्थर भगवान के दाहिने हाथ का प्रतिनिधित्व करता है जिसके द्वारा लोग उसके प्रति निष्ठा (बैअत) की शपथ लेते हैं।[११]
पैग़म्बर (स) ने उमरातुल क़ज़ा[१२] के दौरान इस अवस्था में कि वह ऊंट पर सवार थे, काबा की परिक्रमा की, और अपने बेंत द्वारा हजरे असवद को छुआ।[१३]
फ़ज़ीलत
इस्लाम के पैग़म्बर (स) ने हजरे असवद को छूने की सिफ़ारिश की है और इस पत्थर को ईश्वर का दाहिना हाथ माना है कि लोग इसे छूते हैं।[१४] आयतुल्ला जवादी आमोली (जन्म 1312 शम्सी), शिया विद्वानों में से एक का मानना है कि, हजरे असवद का छूना ऐसा है कि जैसे मुसलमान ईश्वर के प्रति निष्ठी की शपथ लेते हैं।[१५] कुछ लोगों ने पैग़म्बर (स) के शब्दों का अर्थ यह निकाला है कि हजरे असवद के माध्यम से सआदत प्राप्त की जा सकती है।[१६] यह भी एक हदीस में वर्णित है कि इमाम ज़माना (अ) ज़हूर के बाद हजरे असवद पर टेक लगाऐ होंगे और लोग उनके प्रति निष्ठा की प्रतिज्ञा लेगें।[१७]
इस पत्थर के गुण (फ़ज़ीलत) के बारे में तफ़सीरे नमूना में, यह कहा गया है कि यह पत्थर सबसे पुरानी चीज़ है जिसे एक पूजा केंद्र में निर्माण सामग्री के रूप में इस्तेमाल किया गया है; क्योंकि धरती पर सभी इबादतगाहों और यहां तक कि काबा का भी कई बार पुनर्निर्माण किया गया है और उनकी सामग्रियों को बदल दिया गया है। यह एकमात्र पत्थर का टुकड़ा है जो हजारों वर्षों के बाद इस इबादतगाह के स्थायी भाग के रूप में बना हुआ है।[१८]
शिया स्रोतों में, हजरे असवद के बगल में दुआ पढ़ने की सिफ़ारिश की गई है।[१९] काबा की परिक्रमा, इसी पत्थर के सामने से शुरू होकर यहीं ख़त्म होती है।[२०] हर वाजिब और मुस्तहब परिक्रमा में, इस पत्थर को दाहिने हाथ से छूने और चूमने की सिफ़ारिश की जाती है, और यदि नहीं छू सकते, तो इसे हाथ से इंगित करें और इसके साथ वचन और सौगंध को नवीनीकृत करें।[२१]
यह कहा गया है कि पूरे इतिहास में हजरे असवद की कभी पूजा नहीं की गई और मूर्ति भी नहीं माना गया, यहाँ तक कि जाहेलीयत काल के दौरान भी, जब यह अत्यधिक पूजनीय था, लेकिन यह हमेशा शुद्ध एकेश्वरवाद (तौहीदे ख़ालिस) और बहुदेववाद के निषेध (नफ़ी ए शिक्र) का संकेत रहा है।[२२]
इस्तेलामे हजर
- मुख्य लेख: इस्तेलामे हजर
इस्तेलामे हजर का अर्थ है हजरे असवद को छूना और आशीर्वाद (तबर्रुक) के इरादे से उसे चूमना।[२३] हदीसों में, हजरे असवद को छूने और चूमने की सिफ़ारिश की गई है।[२४] शिया और सुन्नी न्यायविद इस्तेलाम (छूने) को मुसतहब मानते हैं।[२५]
तफ़सीरे अल मीज़ान में अल्लामा तबातबाई ने हजरे असवद को छूने और चूमने के आदेश को एक संकेत के रूप में माना कि सभी रिवायात और आयतें जो पूरी तरह से दिव्य अनुष्ठानों (शआएरे एलाही) का आदेश देते हैं, पैग़म्बर (स) का सम्मान करते हैं और उन्हें और उनके परिवार को प्रेम करते हैं, साथ ही इस तरह के अन्य आदेशों के रूप में। कुछ आदेश सही हैं, उनमें कुछ भी ग़लत नहीं है, और उन्हें शिर्क नहीं माना जा सकता है।[२६]
उत्पत्ति और रंग
हजरे असवद को एक स्वर्गीय पत्थर माना जाता है[२७] कुछ हदीसों के अनुसार, हजरे असवद मूल रूप से फ़रिश्तों में से एक था, जिसने सभी फ़रिश्तों से पहले और उनके सामने दिव्य वचन को प्रतिबद्ध किया था, और ईश्वर ने उसे सारी सृष्टि (मख़्लूक़) का अमीन बनाया था।[२८]
कुछ रिवायतों के अनुसार, आदम (अ) ने काबा के निर्माण में इस स्वर्गीय पत्थर का इस्तेमाल किया।[२९] हज़रत इब्राहीम (अ) द्वारा काबा के पुनर्निर्माण के समय, यह पत्थर अबू क़ुबैस पर्वत पर था और इब्राहीम (अ) ने इसे काबा पर स्थापित किया था।[३०]
कुछ हदीसों के अनुसार, यह पत्थर शुरुआत में बहुत सफ़ेद था, लेकिन पापी लोगों,[३१] और अपराधियों और पाखंडियों (मुनाफ़ेक़ीन) के छूने के कारण काला हो गया।[३२] ऐसा कहा गया है कि इसका अत्यधिक कालापन काबा के अलग-अलग समय में कई बार जलने के कारण है।[३३] इसके अलावा, कुछ रवायतों में इसके काले होने का कारण अविश्वासियों (काफ़िरों) के स्पर्श को मानते हैं।[३४]
मुहम्मद जवाद मुग़निया (जन्म 1322) के समकालीन शिया टिप्पणीकारों में से एक का मानना है कि हजरे असवद का स्वर्गिय पत्थर होना और पहले सफ़ेद होने और फिर काले होने की बात, सभी एकल रिपोर्ट (ख़बरे वाहिद) या कहानियाँ हैं जिन्हें स्वीकार करने के लिए हम ज़िम्मेदार नहीं हैं।[३५]
ऐतिहासिक घटनाऐं
इस्लाम के पैग़म्बर (स) की बेसत से पांच साल पहले काबा के पुनर्निर्माण में हर कबीला हजरे असवद लगाना चाहता था। विवाद गंभीर हो गया और अंत में, पैग़म्बर मुहम्मद (स) के सुझाव के साथ, पत्थर को एक कपड़े में रखा गया, और कपड़े के किनारे को कुरैश के नेताओं को सौंप दिया गया। और जब वे उसके स्थान पर पहुँचे, तो पैग़म्बर ने पत्थर को अपने हाथों से एक विशेष स्थान पर रख दिया।[३६]
छठी शताब्दी के शिया विद्वान इब्ने हमज़ा तूसी के अनुसार[३७] और अन्य,[३८] इमाम होने के बारे में, मुहम्मद बिन हनफ़िया और इमाम सज्जाद (अ) के बीच विवाद हुआ इमाम सज्जाद (अ) ने उनसे बात की, लेकिन उन्होंने स्वीकार नहीं किया। अंत में इमाम ने हजरे असवद को न्यायाधीश बनाया। ईश्वर की अनुमति के साथ, हजरे असवद ने इमाम सज्जाद (अ) के इमामत की गवाही दी।
हजरे असवद पर पूरे इतिहास में कई बार हमला किया गया है और कई लोगों ने इसे नष्ट करने या चोरी करने की कोशिश की है।[३९] ज़िल हिज्जा 317 हिजरी में, क़रमतियों ने मक्का पर हमला किया। वे हजरे असवद को काबा से हटाकर अपनी राजधानी ले गए। वर्ष 339 हिजरी में, उन्होंने एक बड़ी राशि के बदले हजरे असवद को, काबा को वापस कर दिया।[४०]
फ़ुटनोट
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