हज़रत फ़ातिमा ज़हरा सलामुल्लाहे अलैहा (अरबी: فاطمة الزهراء) (5 बेअसत-11 हिजरी) पैग़म्बर (स) और हज़रत खदीज़ा की बेटी, इमाम अली (अ) की पत्नी, इमाम हसन (अ), इमाम हुसैन (अ), हज़रत ज़ैनब (स) की मां हैं। आप असहाबे किसा या पंजेतन पाक में से हैं, जिन्हें शिया मासूम (निर्दोष) मानते हैं। ज़हरा, बतूल और सैय्यदतुन निसा अल-आलामीन आपके उपनाम हैं और उम्मे अबीहा आपकी प्रसिद्ध उपाधि है। हज़रत फ़ातिमा (स) एकमात्र ऐसी महिला हैं जो नजरान के ईसाइयों से मुबाहेला में पैग़म्बर (स) के साथ थीं।
चरित्र | मासूमा, अस्हाबे किसा |
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उपनाम | उम्मे अबीहा, उम्मुल आइम्मा, उम्मुल हसन, उम्मुल हुसैन, उम्मुल मोहसिन |
उपाधि | ज़हरा, सिद्दीक़ा, ताहेरा, राज़िया, मर्ज़िया, मुबारेका, बतूल |
जन्म | 20 जमादी अल सानी, बेसत के पांचवे वर्ष |
जन्म स्थान | मक्का |
शहादत | 3 जमादी अल सानी, वर्ष 11 हिजरी |
दफ़न स्थान | अज्ञात |
निवास स्थान | मक्का, मदीना |
पिता | पैग़म्बरे इस्लाम (स) |
माता | ख़दीजा तुल कुबरा (स) |
जीवन साथी | इमाम अली (अ) |
संतान | इमाम हसन (अ), इमाम हुसैन (अ), हज़रत ज़ैनब (स) और उम्मे कुल्सूम, मोहसिन बिन अली |
आयु | 18 से 28 वर्ष |
सूर ए कौसर, आय ए ततहीर, आय ए मवद्दत, आय ए इत्आम और हदीसे बिज़्आ आप की शान और फ़ज़ीलत के उल्लेख मे आई है। रिवायत में आया है कि पैगंबर (स) ने फ़ातिमा ज़हरा (स) का परिचय सय्यदतुन निसा अल-आलमीन के रूप मे कराया और उनकी खुशी और नाराज़गी को अल्लाह की खुशी और नाराज़गी के रूप में वर्णित किया।
आपने सक़ीफ़ा बनी साएदा की घटना के विरोध के साथ अबू-बक्र द्वारा ख़िलाफ़त हड़पने और उसके प्रति निष्ठा की प्रतिज्ञा न करने की घोषणा की। आपने फ़िदक हड़पने की घटना में अमीरुल मोमिनीन (अ) की प्रतिरक्षा में एक धर्मोपदेश दिया, जो खुतबा ए फ़दकिया के नाम से प्रसिद्ध है। पैगंबर (स) के स्वर्गवास के तुरंत बाद अबू-बक्र के गुर्गो द्वारा उनके घर पर हुए हमले के परिणामस्वरूप हज़रत फ़ातिमा (स) घायल हो गईं और बीमार पड़ गईं थोड़े समय पश्चात 3 जमादी उस-सानी 11 हिजरी (जमादी उस-सानी इस्लामी कैलेंडर का छठा महीना) को मदीना में शहीद हो गई। पैगंबर (स) की बेटी की वसीयत के अनुसार रात के अंधेरे में दफ़नाया गया और उनकी कब्र आज भी अज्ञात है।
हज़रत ज़हरा (स) की तस्बीह, मुस्हफ़े फ़ातिमा (स) और ख़ुतबा ए फ़दकिया आपकी आध्यात्मिक धरोहर का हिस्सा हैं। मुस्हफ़े फ़ातिमा एक किताब है जिसमें दिव्य दूत (फ़रिश्ते) द्वारा आप पर नाज़िल होने वाले इलहाम भी सम्मिलित है जिन्हे इमाम अली (अ) द्वारा लिखित रूप मे लाया गया हैं। रिवायतो के अनुसार सहीफ़ा ए फ़ातिमा (स) इमामों से मुंतक़िल होते होते वर्तमान में इमाम ज़माना (अ) के पास है।
शिया उन्हें अपना आदर्श मानते हैं और उनकी शहादत के दिनों में उनका शोक मनाते हैं जिन्हें फ़ातेमिया के नाम से जाना जाता है। ईरान में आपके जन्म दिन (20 जमादी अल सानी) को मदर-डे और वूमैन-डे घोषित किया गया है, और फ़ातिमा और ज़हरा लड़कियों के सबसे अधिक रखे जाने वाले नाम हैं।
नाम और वंशावली
- मुख़्य लेख: हज़रत फ़ातिमा के उपनाम
हज़रत फातिमा ज़हरा, हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा (स) और हज़रत ख़दीजा कुबरा (स) की पुत्री हैं। आपके लगभग 30 उपनामो का उल्लेख हुआ है। जिनमें ज़हरा, सिद्दीक़ा, मुहद्देस्सा, बतूल, सय्यदतुन निसा अल-आलमीन, मंसूरा, ताहिरा, मुतह्हरा, ज़किया, मुबारका, राज़िया, मरज़िया अधिक प्रसिद्ध हैं।[१] आप के लिए कई उपाधियो का उल्लेख किया गया है: जैसे: उम्मे अबीहा, उम्मुल-आइम्मा, उम्मुल-हसन, उम्मुल-हुसैन और उम्मुल-मोहसिन।[२]
हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (अ) की वंशावली
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जीवनी
हज़रत फ़ातिमा की जीवनी | |
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20 जमादि उस-सानी वर्ष 5 बेसत | जन्म |
10 रमज़ान वर्ष 10 बेसत | माता ख़दीजा का स्वर्गवास[३] |
अंतिम सफ़र वर्ष 2 हिजरी | हजरत अली इब्ने अबी तालिब (अ) के साथ निकाह [४] |
1 ज़िल हिज्जा वर्ष 2 हिजरी | हज़रत अली (अ) के साथ विवाह और विदाई [५] |
15 रमज़ान वर्ष 3 हिजरी | इमाम हसन (अ) का जन्म [६] |
7 शव्वाल वर्ष 3 हिजरी | ओहोद की लड़ाई के शहीदो के घायलो के उपचार के लिए उपस्थित होना पैगंबर (स) [७] |
3 शाबान वर्ष 4 हिजरी | इमाम हुसैन (अ) का जन्म [८] |
5 जमादिल अव्वल वर्ष 5 अथवा 6 हिजरी | जन्म हज़रत ज़ैनब (स)[९] |
वर्ष 6 हिजरी | जन्मउम्मे कुलसूम[१०] |
वर्ष 7 हिजरी | पैगंबर (स) का हज़रत फ़ातिमा (स) के लिए हिबा करना फ़दक की ओर से बाग़े [११] |
24 ज़िल हिज्जा वर्ष 9 हिजरी | नजरान के ईसाईयो के साथ मुबाहला के लिए उपस्थित होना [१२] |
28 सफ़र अथवा 12 रबीउल अव्वल वर्ष 11 हिजरी | पैगंबर अकरम (स) का स्वर्गवास[१३] |
रबीउल अव्वल 11 हिजरी۔ | अबू-बक्र के आदेश पर फ़दक को आपसे वापस लेना |
रबीउल अव्वाल 11 हिजरी. | मस्जिदे नबवी मे खुत्बा ए फ़दकया करना |
रबीउल अव्वल 11 हिजरी. | पिता के स्वर्गवास पर शोक हेतु हज़रत फ़ातिमा (स) के लिए इमाम अली (अ) के माध्यम से बक़ी मे बैतुल आहज़ान का निर्माण |
रबीउस सानी 11 हिजरी. | हज़रत फ़ातिमा (स) के द्वार पर आक्रमण और मोहसिन बिन अली की शहादत |
13 जमादिल अव्वाल अथवा 3 जमादि उस-सानी 11 हिजरी. | शहादत[१४] |
हज़रत फ़ातिमा (स) पवित्र पैगंबर (स) और हज़रत ख़दीजा की अंतिम संतान है।[१५] सभी इतिहासकार इस बात से सहमत हैं कि हज़रत फ़ातिमा (स) का जन्म मक्का में मस-ई के पास ज़ुक़ाक़ अल-अत्तारीन वा ज़ुक़ाक़ अल-हजर नामक महल्ले मे स्थित हज़रत ख़दीजा के घर हुआ।[१६]
जन्म और बचपन
शियों के यहा प्रसिद्ध कथन अनुसार, हज़रत फ़ातिमा का जन्म बेअसत (अर्थात पैंगबरी की घोषणा) के पांचवे साल जोकि अहक़ाफ़िया साल[१७] (सूरह अहक़ाफ़ के नाज़िल होने का वर्ष) में हुआ।[१८] शेख़ मुफ़ीद और कफ़अमी ने आपके जन्म का उल्लेख बेअसत के दूसरे साल मे किया है।[१९] जबकि अहले सुन्नत के अनुसार आपका जन्म बेअसत के पांच साल पूर्व हुआ।[२०]
शिया स्रोतों में आपके जन्म की तारीख 20 जमादी उस सानी उल्लेखित है।[२१]
आपके जीवन के शुरुआती दिनों के बारे में ऐतिहासिक स्रोतो की कमी के कारण, सटीक जानकारी प्राप्त करना मुश्किल है।[२२] ऐतिहासिक दस्तावेज़ो के अनुसार हज़रत ज़हरा (स) ने पैग़म्बर (स) की दावत के अलनी होने के पश्चात, बहुदेववादियों की ओर से अपने बाबा पर किए जाने वाले अत्याचार और दुर्व्यवहार को क़रीब से देखा। इसके अलावा बचपन के तीन साल बनी हाशिम और पैग़म्बर (स) के अनुयायियों के खिलाफ़ बहुदेववादियों के आर्थिक और सामाजिक दबाव में बिताए।[२३] इसी प्रकार आप बचपन में हज़रत फ़ातिमा (स) ने अपनी मां ख़दीजा और अपने पिता के चाचा और महत्वपूर्ण समर्थक हज़रत अबू तालिब को भी खो दिया।[२४] इसके अलावा क़ुरैश की पैगंबर (स) की हत्या करने की योजना,[२५] पैगंबर (स) का रात में मक्का से मदीना प्रवास और आपका बनी हाशिम की दूसरी महिलाओ सहित हज़रत अली (अ) के साथ मदीना प्रवास करना, हज़रत फ़ातिमा (स) के बचपन मे घटने वाली घटनाएं है।[२६]
विवाह
- मुख़्य लेख: इमाम अली और हजरत फ़ातिमा की शादी
हज़रत फ़ातिमा (स) के लिये कई रिश्ते थे। लेकिन आपने हज़रत अली का रिश्ता स्वीकार करके उनसे विवाह किया। कुछ शोधकर्ताओं के अनुसार, पवित्र पैगंबर (स) का मदीना प्रवास, जो इस्लामी समाज का नेतृत्व और आप (स) से निसबत के कारण मुसलमानों के बीच सम्मानित थी?[२७] इसके अलावा पैगंबर (स) का आप से प्रेम व्यक्त करना,[२८] अपनी समकालीन महिलाओ के बीच की जाने वाली तुलना[२९] मे आपमे पाई जाने वाली विशेषताऐं कारण बनी कि मुसलमान आपका हांथ मांगे।[३०] कुरैश के कुछ लोग जो जिन्होने पहले इस्लाम स्वीकार किया और मालदार थे उन्होंने आपका हाथ मांगा।[३१] अबू-बक्र, उमर[३२] और अब्दुर्रहमान बिन औफ़[३३] ने भी आपका रिश्ता मांगा, लेकिन अल्लाह के रसूल (स) ने हज़रत अली को छोड़कर बाकी सभी के रिश्तो को यह कहते हुए खारिज कर दिया[३४] कि मेरी बेटी फ़ातिमा का रिश्ता एक दिव्य आदेश है, इसलिए मैं इस संबंध मे रहस्योद्घाटन (वही) की प्रतीक्षा कर रहा हूं।[३५] इसी प्रकार कुछ मामलों में हज़रत फ़ातिमा (स) के असंतोष का भी उल्लेख किया।[३६]
इमाम अली (अ) पैगंबर (स) के साथ अपने पारिवारिक संबंध और हज़रत फ़ातिमा (स) के नैतिक और धार्मिक गुणों के कारण इस रिश्ते की हार्दिक इच्छा रखते थे।[३७] लेकिन इतिहासकारो के अनुसार आप मे इतना साहस पैदा नही हो रहा था कि आप रसूल की बेटी का हाथ मांगे।[३८] साद बिन मआज़ ने हज़रत अली (अ) के अनुरोध से पैगंबर (स) को अवगत कराया। इस रिश्ते पर अपनी संतुष्टि व्यक्त करते हुए पैगंबर (स)[३९] ने इसे अपनी बेटी के सामने रखा और उन्हें हज़रत अली (अ) के नैतिक गुणों और अच्छे चरित्र से अवगत किया, जिस पर हज़रत फ़ातिमा (स) ने भी संतोष व्यक्त किया।[४०] आप (स) ने अल्लाह के आदेश से हज़रत फ़ातिमा का विवाह हज़रत अली के साथ कर दिया।[४१] प्रवासन के शुरुआती दिनों में, अन्य प्रवासियों की तरह हज़रत अली (अ) की आर्थिक स्थिति उपयुक्त नहीं थी।[४२] इसलिए पैगंबर (स) के कहने पर आपने अपना कवच बेचकर या गिरवी रखकर हज़रत फ़ातिमा (स) का हक़ मेहेर का भुगतान किया।[४३] इस प्रकार मस्जिद अल-नबी मे हज़रत अली (अ) और हज़रत ज़हरा (स) का निकाह पढ़ा गया।[४४] इतिहास कारो मे इस बात पर मतभेद है कि यह निकाह किस तारीख को पढ़ा गया? अधिकांश स्रोतों में प्रवासन के दूसरे वर्ष का उल्लेख है।[४५] विदाई बद्र की लड़ाई के बाद प्रवासन के दूसरे वर्ष शव्वाल (इस्लामी कैलेंडर का दसवा महीना) या ज़िल-हिज्जा (इस्लामी कैलेंडर का बारहवा महीना) में हुई।[४६]
विवाहित जीवन
हदीसों और ऐतिहासिक स्रोतों में उल्लेख किया गया है कि हज़रत फ़ातिमा (स) हज़रत अली (अ) के साथ विभिन्न प्रकार से यहां तक कि पैगंबर (स) की उपस्थिति मे भी मुहब्बत से बात करती थीं और आपको श्रेष्ठ पति मानती थीं।[४७] हज़रत अली (अ) का सम्मान आपकी उत्कृष्ट विशेषताओं में से एक है। इतिहास मे मिलता है कि आप हज़रत अली (अ) के साथ घर के अंदर प्यार से बात करती थीं।[४८] और लोगों के सामने आप हज़रत अली (अ) को उनकी उपाधि अबुल-हसन से बुलाती थीं।[४९] हदीसो मे उल्लेखित है कि हज़रत फ़ातिमा (स) हज़रत अली (अ) के लिए स्वंय को इत्र और गहनो से सजाती थ।[५०]
विवाहित जीवन के शुरुआती दिनों में, हज़रत फ़ातिमा (स) और हज़रत अली (अ) को बहुत कठिन आर्थिक परिस्थितियों का सामना करना पड़ा।[५१] कभी-कभी हसनैन के लिए भर पेट भोजन भी संभव नहीं होता था।[५२] मगर हज़रत फ़ातिमा (स) ने इस संबंध मे कभी किसी भी तरह की कई शिकायत नहीं की और अपने पति के घरेलू खर्चों को पूरा करने में मदद करने के लिए ऊन भी काता करती थी।[५३]
घर के आंतरिक मामले हज़रत फ़ातिमा और बाहरी मामले हज़रत अली (अ) द्वारा अंजाम पाते थे।[५४] जिस समय पैगंबर (स) ने फ़िज़्ज़ा को आपकी दासी के रूप मे आपकी सेवा के लिए भेजा तो उस समय भी घर के सभी आंतरिक मामले उनपर नही छोड़ती थी बल्कि आधे मामले खुद अंजाम देती और आधे मामले फ़िज़्ज़ा को सौंपती थी।[५५] इस संबंध में ऐतिहासिक साक्ष्यों से पता चलता है कि एक दिन फ़िज़्ज़ा घर के कामों को करती थी जबकि दूसरे दिन आप स्वयं करती थी।[५६]
संतान
शिया और सुन्नी दोनों स्रोत इस बात से सहमत हैं कि इमाम हसन (अ),[५७] इमाम हुसैन (अ)[५८], हज़रत ज़ैनब[५९] और उम्मे कुलसूम,[६०] हज़रत फ़ातिमा और इमाम अली[६१] की संतान हैं। शिया और कुछ सुन्नी स्रोतों में एक और पुत्र का नाम भी मिलता है जिसका पैगंबर (स) के स्वर्गवास पश्चात हज़रत ज़हरा के साथ हुई घटना मे गर्भपात हो गया, जिसका नाम मोहसिन या मोहस्सन वर्णित है।[६२]
जीवन के अंतिम दिन
हज़रत फ़ातिमा के जीवन के अंतिम महीनों में, कुछ कड़वी और अप्रिय घटनाएँ हुईं, जिसके कारण कहा जाता है कि इस अवधि के दौरान किसी ने भी उनके होठों पर मुस्कान नहीं देखी।[६३] इन घटनाओं में पैगंबर के स्वर्गवास[६४] सक़ीफ़ा की घटना, अबू-बक्र और उनके साथियों द्वारा खिलाफ़त और फ़दक के बाग़ हड़पने और साथियों की सभा में उपदेश देने की घटना[६५] उनके जीवन के अंतिम दिनों में हुई कड़वी और अप्रिय घटनाओं में से हैं। इस अवधि के दौरान, हज़रत फ़ातिमा (स) अपने विरोधियों के खिलाफ़ इमाम और विलायत की प्रतिरक्षा में हज़रत अली (अ) के साथ खड़ी थी;[६६] जिसके कारण आप विरोधीयो की क्रूरता और अत्याचार का निशाना बनी और आपके द्वार पर लकड़ीया एकत्रित करके दरवाज़े को आग लगा देना इसी श्रृंखला की एक कड़ी है।[६७]हजरत अली (अ) द्वारा अबू बक्र की निष्ठा की प्रतिज्ञा न करना और अबू-बक्र के विरोधियों को उनके घर में विरोध के रूप में इकट्ठा करना ऐसे मुद्दे थे जिन्हें खलीफा और उनके समर्थकों द्वारा हज़रत फातिमा (स) के खिलाफ बहाने के रूप में इस्तेमाल करके घर पर हमला किया और अंत में घर के दरवाजे को आग लगा दी। इस हमले मे हज़रत फ़ातिमा (स) हज़रत अली (अ) को जबरन निष्ठा की प्रतिज्ञा के लिए मस्जिद ले जाने मे रोकने के कारण क्रूरता का निशाना बनीं।[६८] जिससे आपके गर्भ मे पल रहे मोहसिन का गर्भपात हो गया।[६९] इस घटना पश्चात आप सख्त बीमार हो गईं[७०] और कुछ दिनो पश्चात आपकी शहादत हो गई।[७१] आपने हज़रत अली (अ) को वसीयत की आपके विरोधीयो को आपके अंतिम संस्कार मे सम्मिलित होने की अनुमति न दी जाए और उन्हे रात के अंधेरे मे दफ़नाया जाए।[७२] प्रसिद्ध कथन के अनुसार, हज़रत फ़ातिमा (स) ने 3 जमादी उस-सानी (इस्लामी कैलेंडर का छठा महीना) 11 हिजरी को मदीना में शहीदत पाई।[७३]
राजनीतिक रुख
हज़रत फ़ातिमा (स) के छोटे से जीवन में विभिन्न सामाजिक गतिविधियों के अलावा एक राजनीतिक रुख भी देखा जा सकता है। मदीना प्रवासन, ओहोद की जंग,[७४]ख़न्दक़ की जंग में घायलों की देखभाल, मुजाहिदीन को युद्ध उपकरण की डिलीवरी और[७५] मक्का की विजय[७६] के अवसर पर आपकी उपस्थिति सामाजिक गतिविधियों मे से है लेकिन आपकी राजनीतिक स्थिति की अभिव्यक्ति पैगंबर (स) के स्वर्गवास पश्चात देखा जा सकता है। इस छोटी सी अवधि में इस्लामिक सरकार के राजनीतिक परिदृश्य पर हज़रत फातिमा की राजनीतिक स्थिति इस प्रकार देखी गई:
सक़ीफ़ा बनी सायदा की घटना में पैगंबर (स) के बाद अबू-बक्र को ख़लीफा के रूप में नियुक्ति के बाद, उनके प्रति निष्ठा की प्रतिज्ञा से इंकार, मुहाजिरिन के प्रमुख लोगों से खिलाफ़त के लिए इमाम अली (अ) की श्रेष्ठता की स्वीकृति लेना, फ़दक के बाग के स्वामित्व की कोशिश, मस्जिद अल-नबी मे मुहाजेरीन और अंसार की एक सभा को संबोधित करना और दरवाज़े पर विरोधीयो द्वारा हमले के समय हजरत अली (अ) का बचाव करना। शोधकर्ताओं के अनुसार पैगंबर (स) के स्वर्गवास के बाद हज़रत फ़ातिमा (स) ने जो प्रतिक्रिया व्यक्त की वह वास्तव में अबू-बक्र और उनके समर्थकों द्वारा ख़िलाफ़त हड़पने के खिलाफ एक आपत्ति और विरोध था।[७७]
सकीफा का विरोध
- मुख़्य लेख: सक़ीफ़ा बनी साएदा की घटना
ख़लीफ़ा के चुनाव को लेकर सक़ीफ़ा बनी सायदा में हुई आपात बैठक में वहा पर उपस्थित सहीबयो द्वारा अबू-बक्र के ख़लीफ़ा नियुक्त होने पर उनके प्रति निष्ठा की शपथ लेने के बाद आपने हज़रत अली (अ) और तल्हा एंवम ज़ुबैर जैसे सहाबीयो के साथ मिलकर सहाबीयो की इस पहल का विरोध किया।[७८] क्योंकि अलविदाई हज के अवसर पर पैगंबर (स) ने ग़दीर ख़ुम के स्थान पर इमाम अली (अ) को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया था।[७९] ऐतिहासिक प्रमाणों के अनुसार हज़रत फ़ातिमा (स) हज़रत अली (अ) के साथ एक-एक सहाबी के घर जाती, उनसे मदद और समर्थन मांगती थी। आपके अनुरोध के जवाब मे सहाबी कहते थे, "यदि आपने अबू-बक्र की निष्ठा की प्रतिज्ञा से पहले यह मांग की होती, तो हम अली का समर्थन करते, लेकिन अब हमने अबू-बक्र के प्रति निष्ठा की प्रतिज्ञा की है।" जब सहाबी हज़रत अली (अ) का समर्थन करने से इंकार करते, तो आप उन्हें चेताती कि अबू-बक्र की निष्ठा अल्लाह की नाराज़गी और सज़ा का कारण है।[८०]
फ़दक का बाग और खुत्बा ए फ़दकया
- मुख़्य लेख: ख़ुत्बा ए फ़दकया
हज़रत फ़ातिमा (स) ने अबू-बक्र की ओर से फ़दक को आप (स) से वापस लेकर सरकारी ख़जाने में जमा करने के अबू-बक्र के कदम का कड़ा विरोध किया।[८१] अतः फ़दक को अपने स्वामित्व मे वापस लाने के लिए आपने अबू-बक्र के साथ बात-चीत की, अबू-बक्र ने जब देखा कि आप (स) के पास पर्याप्त तर्क और सबूत हैं जो साबित करते हैं कि यह बाग आपकी संपत्ति है[८२] तो अबू बक्र ने एक दस्तावेज लिखा जिसमें लिखा कि फ़दक हज़रत फ़ातिमा (स) की संपत्ति है। जब उमर बिन ख़त्ताब को इस बात का पता चला तो उन्होंने हज़रत फ़ातिमा (स) के हाथ से यह दस्तावेज़ छीन कर फाड़ दिया।[८३] जब आपने देखा कि फ़दक वापस लेने के सभी प्रयास व्यर्थ हो रहे है तो आपने मस्जिद अल-नबी का रूख किया और वहा पर सहाबीयो के उपस्थिति मे एक ख़ुत्बा दिया जोकि खुत्बा ए फ़दकया के नाम से प्रसिद्ध है जिसमे आपने अबू-बक्र द्वारा ख़िलाफ़त को हड़पने और फ़दक को वापस लेने की कड़े शब्दो मे विरोध किया और ख़लीफा के इस कदम की कड़ी निंदा की। इस धर्मोपदेश मे आपने अब-बक्र और उनके समर्थकों की कार्रवाई को नरक खरीदने के रूप में वर्णित किया।[८४]
अबू-बक्र के विरोधीयो दवारा इज्तेमा का समर्थन
- मुख़्य लेख: हज़रत फ़ातिमा के घर में इज्तेमा की घटना
पैगंबर (स) के स्वर्गवास के तुरंत बाद जब कुछ लोगों ने अबू-बक्र के प्रति निष्ठा की प्रतिज्ञा की और इमाम अली (अ) के ख़लीफ़ा और उत्तराधिकार होने के बारे में पैगंबर (स) द्वारा जारी किए गए आदेशों की अनदेखी की, तो हज़रत फ़ातिमा (स) ने हज़रत अली (अ), बनी हाशिम और कुछ अन्य सहाबीयो के साथ मिलकर अबू-बक्र के प्रति निष्ठा की प्रतीज्ञा करने से इंकार कर दिया। अबू-बक्र की ख़िलाफ़त के विरोधी आपके घर में इकट्ठा हो गए और उन्होने पैगंबर (स) का उत्तराधिकारी और ख़िलाफ़त के हवाले से हज़रत अली (अ) के पूर्ण अधिकार का समर्थन किया।[८५] उनमें पैगंबर के चाचा अब्बास बिन अब्दुल मुत्तलिब, सलमान फ़ारसी, अबू-ज़र ग़फ़्फ़ारी, अम्मार बिन यासिर, मिक़्दाद, उबय बिन का'ब और बनी हाशिम शामिल थे।[८६]
घर पर आक्रमण के दौरान हज़रत अली की रक्षा
- मुख़्य लेख: हज़रत फ़ातिमा (स) के घर पर हमले की घटना
अबू-बक्र के समर्थकों द्वारा हजरत अली (अ) के घर पर हमले के दौरान हज़रत फ़ातिमा (स) दुश्मनों के खिलाफ़ हजरत अली (अ) के समर्थन में खड़ी हुई और हज़रत फ़ातिमा (स) ने हज़रत अली (अ) को जबरन अबू-बक्र के प्रति निष्ठा की प्रतीज्ञा के लिए लेजाने की अनुमति नहीं दी। तीसरी और चौथी शताब्दी के अहले-सुन्नत विद्वान इब्ने अब्द रब्बाह के अनुसार, जब अबू-बक्र इस बात से सूचित हुए कि उनके विरोधी हज़रत फ़ातिमा (स) के घर पर एकत्र हुए हैं, तो उन्होंने उन पर हमला करने और उन्हें तितर-बितर करने का आदेश दिया, और प्रतिरोध की स्थिति में उनके साथ युद्ध किया जाए। उमर कुछ लोगों के साथ हज़रत फ़ातिमा (स) के घर गए और मांग की कि घर के लोग बाहर आ जाएं और चेतावनी दी कि अगर उन्होंने उनके आदेश का पालन नहीं किया, तो घर में आग लगा दी जाएगी।[८७] उमर और उनके सहयोगि जबरन घर के अंदर दाखिल हुए। इस अवसर पर, आप (स) ने उन्हें धमकी दी कि अगर घर से बाहर नहीं निकले, तो मैं अल्लाह से शिकायत करूंगी।[८८] इसपर हमलावर लोग घर से बाहर चले गए इमाम अली (अ) और बनी हाशिम के अलावा घर मे उपस्थित सभी लोगों को अबू बक्र के प्रति निष्ठा की प्रतिज्ञा करने के लिए मस्जिद ले गए।[८९]
हज़रत फ़ातिमा (स) के घर में विरोध करने वालों से जबरन निष्ठा की प्रतिज्ञा लेने के बाद उमर और उनके साथी एक बार फिर हज़रत अली (अ) के घर गए और घर के दरवाजे में आग भी लगा दी। दरवाजे में आग लगाने के बाद, उन्होंने दरवाजा तोड़ दिया और जबरदस्ती घर में घुस गए। इस बीच, हज़रत फ़ातिमा (स) दरवाजे और दीवार के बीच घायल हो गईं उमर और क़ुनफ़ुज़ ने आपको प्रताड़ित किया जिसके परिणामस्वरूप आप घायल हुई और इस बीच आपके गर्भ मे पल रहे बच्चे (मोहसिन) का गर्भपात हुआ।[९०] कुछ इतिहासकारों के अनुसार, क़ुनफुज़ ने हज़रत फ़ातिमा (स) को दरवाजे और दीवार के बीच में रख कर[९१] आपके ऊपर दरवाजा गिरा दिया जिससे उसका बाजू घायल हो गया।[९२] यह भी कहा जाता है कि उमर ने आपके पेट पर भी वार किया[९३] इस घटना के पश्चात हज़रत फ़ातिमा (स) बीमार पड़ गईं और इसी बीमारी मे दुनिया से चली गईं।[९४]
अबू-बक्र और उमर से नाराज़्गी
फ़दक और अबू-कब्र की निष्ठा से संबंधित घटना मे अबू-बक्र और उमर के हज़रत फ़ातिमा (स) और हज़रत अली (अ) के साथ कठोर व्यवहार के कारण आप उन दोनों से बहुत नाराज़ हो गईं। ऐतिहासिक साक्ष्यों से पता चलता है कि दूसरे ख़लीफ़ा और उनके साथियों ने हज़रत फ़ातिमा (स) के दरवाजे पर हमला करने और उससे होने वाली अप्रिय घटनाओं के बाद अबू-बक्र और उमर ने आप (स) से माफी माँगने का इरादा किया लेकिन आप (स) ने उन्हें घर मे प्रवेश करने की अनुमति नही दी। अंतः जब अबू-बक्र और उमर हज़रत अली (अ) की मध्यस्थता के माध्यम से फ़ातिमा (स) के घर में प्रवेश करने में सफल हुए तो उन्होंने उन दोनों की ओर पीठ कर ली और उनके अभिवादन (सलाम) का जवाब भी नहीं दिया और उन्हे बिना किसी प्रतिक्रिया के वापस लौटने पर विवश किया। हज़रत फ़ातिमा (स) ने पैगंबर (स) की प्रसिद्ध हदीस जिसमें पैगंबर (स) ने हज़रत फ़ातिमा (स) की खुशी के रूप में अपनी खुशी का वर्णन किया था का हवाला देते हुए दोनो से अपनी नाराज़्गी जाहिर की।[९५] कुछ इतिहासकारों के अनुसार हज़रत फ़ातिमा (स) ने हर नमाज़ के बाद उन दोनों पर लानत भेजने की शपथ खाई।[९६]
शहादत, शवयात्रा, अंतिम संस्कार
- मुख़्य लेख: हज़रत फ़ातिमा (स) की शहादत
पैग़म्बर (स) के स्वर्गवास के बाद हुई दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं में शारीरिक और आध्यात्मिक दोनों तरह से आहत होने और कुछ दिनो बीमार रहने के बाद आप (स) ने आखिरकार वर्ष 11 हिजरी में इस दुनिया को छोड़ दिया।[९७] आपकी शहादत की तारीख] से संबंधित कुछ कथन, चालीस दिन से आठ महीने तक का उल्लेख किया गया है। शियों के यहा सबसे प्रसिद्ध कथन 3 जमादी अल सानी वर्ष 11 हिजरी है।[९८] अर्थात पैगंबर (स) के स्वर्गवास के 95 दिन बाद, इस कथना का प्रमाण इमाम सादिक़ (अ) की एक हदीस है।[९९] दूसर कथनो के अनुसार आपकी शहादत 75 दिनों के बाद, 13 जमादिल अव्वल (नोट), 8 रबी अल सानी[१००], 13 रबीअ अल सानी[१०१] और 3 रमज़ान[१०२] का उल्लेख किया गया है।
इमाम मूसा काज़िम (अ) ने एक रिवायत में आपकी शहादत को निर्दिष्ट किया है।[१०३] इमाम जाफ़र सादिक़ (स) से एक रिवायत मे आपकी शहादत का कारण क़ुनफ़ुज़ का वह हमला है जो उसने तलवार के कवच से किया था जिससे मोहसिन का गर्भपात हुआ और उसके परिणामस्वरूप बीमारी के कारण आपकी शहादत हुई।[१०४]
कुछ शोधकर्ताओं के अनुसार हज़रत फ़ातिमा (स) की गुप्त रूप से दफ़्नाने की इच्छा, खिलाफ़त के खिलाफ़ उनका आखिरी राजनीतिक क़दम था।[१०५]
दफ़्न स्थान
- मुख़्य लेख: हज़रत फ़ातिमा (स) की शव यात्रा और अंतिम संस्कार
शहादत से पहले हज़रत फ़ातिमा (स) ने वसीयत की कि मैं उन लोगों से राज़ी नहीं हूँ जिन्होंने मेरे ऊपर अत्याचार और अन्याय किया और मेरी नाराज़्गी का कारण बने वो मेरी शव यात्रा में भाग न लें और मेरी जनाज़े की नमाज़ न पढ़ें; इस आधार पर आप (स) ने वसीयत की थी कि उन्हें रात के अंधेरे में गुप्त रूप से दफ़नाया जाए और उनकी पवित्र क़ब्र को भी छुपाया जाए।[१०६] इतिहासकारो के अनुसार हज़रत अली (अ) ने अस्मा बिन्ते उमैस की मदद से आपको ग़ुस्ल दिया।[१०७] और आप (अ) ने स्वयं जनाज़े की नमाज़ पढ़ाई।[१०८] इमाम अली (अ) के अलावा कुछ अन्य लोग भी आप (स) के जनाज़े में शामिल हुए, जिनकी संख्या और नाम अलग-अलग हैं। ऐतिहासिक स्रोतों में, इमाम हसन (अ), इमाम हुसैन (अ), अब्बास बिन अब्दुल मुत्तलिब, मिक़्दाद, सलमान, अबू-ज़र, अम्मार, अक़ील, जुबैर, अब्दुल्लाह बिन मसऊद और फ़ज़्ल बिन अब्बास की गिनती उन लोगों में की गई है, जिन्होंने आप (स) के जनाजे की नमाज़ में भाग लिया था।[१०९]
दफ़नाने के बाद हज़रत अली (अ) ने कब्र के निशान को मिटा दिया ताकि कब्र का पता न चले।[११०] ऐतिहासिक और हदीस स्रोतों में निम्नलिखित स्थानों का आप (स) के दफ़्न स्थान के रूप में किया गया है:[१११]
- कुछ ने आपका दफ़्न स्थान पैगंबर (स) के रौज़े मे उल्लेख किया है,
- स्वंय आपका घर- जो बनी उमय्या के शासन काल मे मस्जिद के विस्तार मे मस्जिद का भाग बन गया,[११२]
- मस्जिद अल-नबी मे क़ब्र और पैगंबर (स) के मिंम्बर के बीच मे,
- अक़ील बिन अबी तालिब (अ) के घर मे[११३] बक़ीअ क़ब्रिस्तान के बाज़ू मे अक़ील का एक बड़ा सा घर था।[११४] जो फ़ातिमा बिन्ते असद, अब्बास बिन अब्दुल मुत्तलिब और शियों के इमामों के दफ़्न होने के बाद निवास स्थान से निकल कर सार्वजनिक ज़ियारत के स्थान मे परिवर्तित हो गया।[११५]
फ़ज़ाइल
मन असअदा एलल्लाह ख़ालेसा इबादतेही अहबतल्लाहो अज़्ज़ा व जल्ला ऐलैह अफ़ज़ला मसलेहतेही (अनुवाद: जो कोई भी ईश्वर की ओर अपनी सच्ची (ख़ालिस) इबादत भेजता है, महान ईश्वर उसे सबसे अच्छा लाभ (मसलेहत) भेजेगा।)
शियों और सुन्नियों के हदीसी, तफ़सीरी और ऐतिहासिक स्रोतों में हज़रत ज़हरा (स) के विभिन्न फ़ज़ाइल का उल्लेख किया गया है। इनमें से कुछ सद्गुणों की उत्पत्ति कुरआन की विभिन्न आयतें हैं जैसे आय ए तत्हीर और आय ए मुबाहेला है। इस प्रकार के फ़ज़ाइल मे आयतों की शाने नुज़ूल हज़रत ज़हरा (स) सहित तमाम अहले-बैत के लिए है। आपके कुछ फ़ज़ाइल हदीसों जैसे हदीसे बिज़्आ में आए है, उनमें बिज़्आतुर रसूल (रसूल का टुक्ड़ा) और मुहद्देसा होना हैं।
इस्मत
- मुख़्य लेख: अहले-बैत (अ) की इस्मत
शिया दृष्टिकोण से आय ए तत्हीर जिन लोगो के संबंध मे नाज़िल हुई है फ़ातिमा (स) उनमे से एक होने के कारण इस्मत का स्थान रखती है।[११६] इस आयत के अनुसार अल्लाह तआला ने अहले-बैत (अ) को हर प्रकार की बुराई और अशुद्धता से दूर रखने का इरादा किया है।[११७] शिया और सुन्नी दोनों संप्रदायो से विभिन्न हदीसों के अनुसार, हज़रत फातिमा (स) अहले-बैत मे से हैं।[११८] आपकी इस्मत पर सर्वप्रथम चर्चा करने का मामला पैगंबर (स) के स्वर्गवास पश्चात घटने वाली सबसे अप्रिय घटनाओं में से एक फ़दक की घटना है, जिसमें इमाम अली (अ) ने आपके मासूम होने पर आय ए तत्हीर का हवाला देते हुए अबू-बक्र की कार्रवाई को गलत और फ़दक वापस लेने के हवाले से हज़रत ज़हरा के अनुरोध को उनका पूर्ण अधिकार करार दिया है।[११९] शियों के अलावा, हदीस और सुन्नी ऐतिहासिक स्रोतों में कुछ हदीसों का वर्णन किया गया है कि पैगंबर (स) ने आय ए तत्हीर का हवाला देते हुए अपने अहले-बैत अर्थात फ़ातिमा (स), अली (अ), हसन (अ) और हुसैन (अ) को सभी प्रकार के पापों से मुक्त और पवित्र बताया है।[१२०]
इबादत
हज़रत फातिमा ज़हरा (स) भी अपने पिता पैगंबर (स) की तरह अल्लाह की इबादत से बहुत जुड़ी हुई थीं। इस कारण आप अपने जीवन का एक महत्वपूर्ण भाग इबादत में और परमेश्वर के साथ राज़ो नियाज मे व्यतीत करती थी।[१२१] कुछ स्रोतो मे बयान किय गया है कि जब हज़रत फ़ातिमा (स) क़ुरआन की तिलावत मे व्यस्थ होती थी तो इस बीच दिव्य आवाज़ सुनती थी। उदाहरण स्वरूप: यह उल्लेख किया गया है कि एक दिन सलमान फ़ारसी ने देखा कि हज़रत ज़हरा चक्की के पास क़ुरआन की तिलावत करने में व्यस्त थी और चक्की अपने आप चल रही थी। सलमान ने अचम्भे के साथ इस घटना का पैगंबर (स) से उल्लेख किया तो आप (स) ने फ़रमाया ... अल्लाह तआला ने हज़रत जिब्राईल को हज़रत ज़हरा (स) की चक्की चलाने के लिए भेजा था।[१२२] देर देर तक नमाज़े पढ़ना, रातों में इबादत करना, दूसरो के लिए जैसे पड़ोसीयो के लिए दुआ करना,[१२३] रोज़ा रख़ना, शहीदों की कब्रों की ज़ियारत करना आपके जीवन की प्रमुख दिनचर्या थी कि जिसकी अहले-बैत (अ), कुछ साथियों (सहाबीयो) और अनुयायियों (ताबेईन) ने समर्थन किया है।[१२४] यही कारण है कि दुआ और मुनाजात की किताबों में कुछ नमाज़ो, दुआओ और तस्बीह को आपसे मख़सूस किया गया है।[१२५]
अल्लाह और रसूल की दृष्टि में स्थान और मंज़िलत
शिया और सुन्नी विद्वान इस बात पर सहमत है कि हज़रत ज़हरा (स) के साथ मित्रता और प्रेम को अल्लाह ने मुसलमानों पर फ़र्ज़ क़रार दिया है। विद्वानों ने सूर ए शूरा की आयत संख्या 23, जो आय ए मवद्दत के नाम से प्रसिद्ध है, का हवाला देते हुए हज़रत फ़ातिमा (स) की दोस्ती और मोहब्बत को अनिवार्य और जरूरी माना है। मवद्दत वाली आयत में नबी (स) की नबूवत और रिसालत की उजरत आप (स) के अहले-बैत (अ) से मवद्दत और मोहब्बत करना बताया गया है। हदीसों के प्रकाश में इस आयत में अहले-बैत (अ) फ़ातिमा (स), अली (अ), हसन (अ) और हुसैन (अ) है।[१२६] मवद्दत की आयत के अलावा पैगंबर (स) से कई हदीसें बयान की गई हैं, जिनके अनुसार अल्लाह तआला फ़ातिमा (स) की नाराजगी से नाराज और उनकी खुशी से खुश होता है।[१२७]
जन्नत उल-आसेमा के लेखक ने अपनी किताब में एक रिवायत का हवाला दिया है, जिसमें हज़रत फ़ातिमा (स) की रचना को स्वर्ग के निर्माण का कारण बताया है। इस हदीसे कुद्सी को हदीस लौलाक के नाम से जाना जाता है, जो पैगंबर (स) से नक़ल की गई है, जिसके अनुसार: स्वर्ग का निर्माण पैगंबर (स) की रचना पर निर्भर है, आपकी रचना हज़रत अली (अ) की रचना पर निर्भर है और आप दोनों की रचना हज़रत फ़ातिमा (स) की रचना पर निर्भर है।[१२८] कुछ विद्वान इस हदीस की प्रामाणिकता (सनद) को संदिग्ध मानते हैं, लेकिन इसकी सामग्री को उचित मानते हैं।[१२९]
पैगंबर (स) हज़रत फ़ातिमा (स) को अत्यधिक मानते थे और दूसरो की तुलना मे उनसे अधिक प्यार और सम्मान करते थे। हदीसे बिज़्आ नामक प्रसिद्द हदीस मे पैगंबर (स) ने अपने कलेजे के टुकड़े के रूप में वर्णित करते हुए फ़रमाया: जिसने भी इसे सताया अर्थात उसने मुझे सताया। इस हदीस को शिया विद्वानों में शेख़ मुफ़ीद और सुन्नी विद्वानों में अहमद बिन हनबल जैसे प्रारंभिक मुहद्देसीनो द्वारा अलग-अलग तरीकों से वर्णित किया गया है।[१३०]
महिलाओं की मुखिया
शिया और सुन्नी दोनों संप्रदायो की विभिन्न हदीसों में यह उल्लेख किया गया है कि हज़रत फातिमा (स) स्वर्ग और उम्मत की सभी महिलाओं की नेता हैं।[१३१]
मुबाहला में शामिल होने वाली इकलौती महिला
प्रारम्भिक इस्लाम की मुस्लिम महिलाओं में हज़रत फ़ातिमा (स) एकमात्र ऐसी महिला हैं, जिन्हें पैगंबर (स) ने नजरान के ईसाइयों के साथ होने वाले मुबाहला के लिए चुना था। इस घटना का उल्लेख क़ुरआन की आय ए मुबाहला में मिलता है। व्याख्यात्मक (तफ़सीरी), रिवाई और ऐतिहासिक स्रोतों के आलोक में मुबाहला वाली आयत पैगंबर (स) के अहले-बैत (अ) की फ़ज़ीलत मे नाज़िल हुई है।[१३२] कहा जाता है कि फ़ातिमा (स), इमाम अली (अ), इमाम हसन (अ) और इमाम हुसैन (अ) इस घटना मे पैगंबर (स) के साथ मुबाहला के लिए गए और इनके अलावा पैगंबर (स) ने किसी को भी अपने साथ नहीं लिया।[१३३]
पैगंबर की पीढ़ी की निरंतरता
पैगंबर (स) की पीढ़ी की निरंतरता (तसलसुल) और मासूम इमामो का निर्धारण हज़रत ज़हरा (स) की पीढ़ी से होना आप (स) के गुणो (फ़ज़ीलतो) में गिना जाता है।[१३४] कुछ टीकाकार हज़रत ज़हरा (स) के माध्यम से पैगंबर (स) की पीढ़ी की निरंतरता को सूर ए कौसर उल्लेखित ख़ैरे कसीर का मिस्दाक बताते है।[१३५]
उदारता
हज़रत फ़ातिमा (स) के जीवन में उदारता (सख़ावत) का पक्ष (पहलू) उनके जीवन और चरित्र का प्रमुख पक्ष है। जिस समय आपने हज़रत अली (अ) के साथ अपने विवाहित जीवन का आरम्भ किया, उस समय आपकी आर्थिक स्थिति ठीक थी। उस समय भी आपने साधारण जीवन व्यतीत किया और उस समय भी आपने अल्लाह के मार्ग मे सदैव दान (इंफ़ाक़) किया।[१३६] अपने विवाह के वस्त्र उसी रात ज़रूरतमंद को देना।[१३७] फ़क़ीर को अपना गले का हार दे देना,[१३८] और तीन दिन तक अपना और अपने परिवार का भोजन गरीबों, अनाथों और क़ैदियों को दे देना; यह उदारता के उच्चतम उदाहरणों में से है।[१३९] हदीसी और तफ़सीरी स्रोतों में मौजूद मतालिब के आलोक में जब फ़ातिमा (स), अली (अ) और हसनैन (अ) ने लगातार तीन दिनों तक रोज़ा रखा और इफ़्तार के समय पूरा भोजन जरूरतमंदों को दे दिया। अल्लाह तआला की ओर से सूर ए इंसान की आयत नम्बर 5 से 9 तक नाज़िल हुई जो इतआम की आयतो के नाम से प्रसिध्द है।[१४०]
मुहद्देसा
खुदा के सबसे करीबी फ़रिश्तों की हज़रत फ़ातिमा (स) के साथ बातचीत आपकी विशेषताओ मे से एक है। इसीलिए आप (स) को "मुहद्देसा" कहा गया।[१४१] पैगंबर अकरम (स) के जीवनकाल के दौरान स्वर्गदूतों के साथ आपकी बातचीत[१४२] और पैगंबर के स्वर्गवास पश्चात स्वर्गदूतो का आपको सांत्वना (तसलीयत) देना और पैगंबर (स) की पीढ़ी की निरंतरता आपसे जारी रहने की सूचना देना इसके स्पष्ट संकेत है। भविष्य में घटने वाली घटनाओ को फ़रिश्ते हज़रत फ़ातिमा (स) को सुनाते थे; इमाम अली (अ) उन्हें लिखते थे, जो बाद मे मुस्हफे फ़ातिमा (स) के नाम से जाना जाने लगा।[१४३]
ज़ियारत नामा
कुछ शिया स्रोतों में इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) से हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (स) के लिए ज़ियारत नामा बयान किया गया है।[१४४] इस ज़ियारतनामा के अनुसार, अल्लाह तआला ने जन्म से पहले हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (स) की परीक्षा ली और आपने इस परीक्षा मे धैर्य का सबूत दिया।[१४५]
इस ज़ियारतनामे के अनुसार, हज़रत ज़हरा (स) की विलायत स्वीकार करने का अर्थ सभी नबियों और पैगंबर (स) की विलायत को स्वीकार करना और उनका पालन करना बताया गया है।[१४६] इसी तरह, इस ज़ियारत के अनुसार, जिस किसी ने हज़रत ज़हरा (स) का अनुसरण किया और उस पर दृढ़ रहा, तो वह अशुद्धियों और पापों से मुक्त हो जाएगा।[१४७]
आध्यात्मिक विरासत
हज़रत फ़ातिमा (स) का धार्मिक, राजनीतिक और सामाजिक जीवन और उनकी बातें एक अनमोल आध्यात्मिक विरासत की तरह हैं, जिसे सभी मुसलमान अपने दैनिक जीवन में अपने लिए एक आदर्श मानते हैं और इस्लामी कार्यों में इसका उल्लेख करते हैं। मुस्हफ़े फ़ातिमा, खुत्बा ए फ़दकया, तस्बीहात और हज़रत ज़हरा (स) की नमाज इस आध्यात्मिक विरासत में शामिल हैं।
- हदीसें: आपकी बयान की हुई हदीसें इस आध्यात्मिक विरासत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। ये हदीस सामग्री के मामले में विविध हैं और इसमें धार्मिक, न्यायशास्त्रीय, नैतिक और सामूहिक विषय शामिल हैं। इनमें से कुछ हदीसों का उल्लेख शिया और सुन्नी हदीस स्रोतों में किया गया है, जबकि उनकी अधिकांश हदीसों को मुसनदे फ़ातिमा और अख़बारे फ़ातिमा के नाम से स्थायी पुस्तकों के रूप में प्रकाशित हुई है। इनमें से कुछ मुसनदे समय के साथ लुप्त हो गई और इल्मे रिजाल (रावीयो के हालात से संबंधित ज्ञान) और अनुवाद की पुस्तकों में केवल इन कथाकारों (रावीयो) और लेखकों के केवल नामों का उल्लेख किया गया है।[१४८]
- मुस्हफ़े फ़ातिमा (स): उन बातों पर आधारित हैं जिन्हे हज़रत फ़ातिमा (स) ने स्वर्गदूत से सुना और उन्हे इमाम अली (अ) ने लिखा।[१४९] शियों के अनुसार मुस्हफ़े फ़ातिमा (स) मासूम इमामों द्वारा सुरक्षित रहा, प्रत्येक इमाम ने अपने जीवन के अंत में इसे अपने उत्तराधिकारी (अपने बाद वाले इमाम) को सौंपा।[१५०] और मासूम इमामो (अ) के अलावा कोई अन्य व्यक्ति इस पुस्तक तक नहीं पहुंच सकता। यह पुस्तक वर्तमान में इमाम ज़माना (अ.त.) के पास है।[१५१]
- खुत्बा ए फ़दकया: हज़रत फ़ातिमा (स) के प्रसिद्ध धर्मोपदेशो (खुत्बों) में से एक है, जिसे आप ने सक़ीफ़ा बनी साएदा की घटना और फ़दक वाले बाग के हड़पने के संबंध मे पैगंबर की मस्जिद में सहाबा की भरी सभा में दिया था। इस धर्मोपदेश के अब तक कई व्याख्या (शरह) लिखे जा चुकी हैं, जिनमें से अधिकांश का शीर्षक "हज़रत ज़हरा (स) के खुत्बे की शरह" अथवा "शरह ख़ुत्बा ए लुम्मा" (ख़ुत् ए फ़दकया का दूसरा नाम) है।[१५२]
- तस्बीह हज़रत ज़हरा (स): उस प्रसिद्ध ज़िक्र को संदर्भित करती है जिसे पैगंबर (स) ने हज़रत ज़हरा (स) को सिखाया था[१५३] जिसने हज़रत फ़ातिमा (स) को अत्यधिक प्रसन्न किया।[१५४] शिया और सुन्नी स्रोतों में हज़रत ज़हरा (स) को रसूले अकरम (स) द्वारा शिक्षण देने के संबंध मे विभिन्न मतलबो का उल्लेख किया गया है और कहा जाता है कि इमाम अली (अ) ने इस ज़िक्र को सुनने के बाद इसे कभी नहीं छोड़ा।[१५५]
- नमाज़े हज़रत ज़हरा (स): उन नमाजो को संदर्भित करती है जो हज़रत फ़ातिमा (स) ने पैगंबर (स) या जिब्राईल से पूछा। कुछ हदीसी स्रोतो और दुआओ की किताबे इन नमाज़ो का संकेत मिलता हैं।[१५६]
- हज़रत ज़हरा (स) से मंसूब अश्आर: सूत्रों में कुछ अश्आर का श्रेय हज़रत फ़ातिमा (स) को दिया जाता है, जिनका उल्लेख ऐतिहासिक और हदीस स्रोतों में मिलता है। ऐतिहासिक रूप से, ये कवियाएं पैगंबर (स) के स्वर्गवास से पहले और स्वर्गवास पश्चात की दो अवधियों से संबंधित हैं।[१५७]
शिया संस्कृति और साहित्य में फ़ातिमा ज़हरा (स)
शिया मुसलमान हज़रत फ़ातिमा (स) को अपने लिए आदर्श मानते हैं और उनकी जीवनी शिया संस्कृति और शिया जीवन में जारी है। उनमें से कुछ की ओर इशारा करते हैं:
- मेहरुस-सुन्ना: हदीस के अनुसार इमाम मुहम्मद तक़ी (अ) ने अपनी पत्नी का मेहर हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (स) के मेहेर 500 दिरहम के बराबर क़रार किया।[१५८] मेहर की इस राशि को मेहरुस सुन्ना कहा जात है जोकि अल्लाह के रसूल (स) की जीवन साथीयो और बच्चो का मेहेर था।[१५९]
- फ़ातेमिया : हज़रत फ़ातिमा (स) की शहादत के दिनों को फ़ातेमिया कहते हैं। ईरान सहित दुनिया के सभी देशों में, शिया संप्रदाय 3 जमादि उस-सानी (इस्लामी कैलेंडर का छठा महीना) को आपकी शहादत के सिलसिले में शोक मनाते हुए अज़ादारी करते हैं, और कुछ इस्लामी देशों जैसे ईरान मे इस दिन आधिकारिक अवकाश होता है[१६०] और शिया मराजा ए तक़लीद नंगे पैर अज़ादारी मे भाग लेते हैं।[१६१]
- मदर डे: ईरान में हज़रत फ़ातिमा (स) के जन्म दिवस 20 जमादी उस-सानी को मदर डे (Mother Day) या महिला दिवस के रूप में मनाया जाता है।[१६२] इस दिन ईरान में लोग अपनी मां को तोहफे देते हैं और आपका जन्म दिवस मनाते है।[१६३]
- बेटियों के नाम: शिया अपनी बेटियों का नाम फ़ातिमा रखते हैं या नाम के रूप में हज़रत ज़हरा (स) के उपनामो में से किसी एक उपनाम का चयन करते हैं, और हाल के वर्षों में ईरान में, "फ़ातिमा" और "ज़हरा" नाम का शुमार बेटियों के लिए पहले दस नामो मे होता है।[१६४]
- फ़ातिमा ज़हरा (स) के वंशजों को श्रेय: शियों के बीच ज़ैदीया संप्रदाय का मानना है कि इमामत और नेतृत्व केवल हज़रत फ़ातिमा के वंशजों के लिए आरक्षित हैं। इस आधार पर, ज़ैदीया केवल उस व्यक्ति को अपना इमाम मानते हैं और उसके शासन को स्वीकार करते हैं जो आप (स) के वंशज है।[१६५] इसी प्रकार फ़ातिमी शासकों ने जब मिस्र मे अपनी सरकार स्थापना की तो उन्होने खुद को हज़रत फ़ातिमा (स) के वंशज होने का दावा किया।[१६६]
मोनोग्राफ़
हज़रत फ़ातिमा (स) के बारे में लेखन का रिवाज पहली शताब्दी हिजरी से मुसलमानों, विशेषकर शियों के बीच शुरू हो गया था। इस संबंध में उनके बारे में लिखी गई पुस्तकों को तीन समूहों में विभाजित किया जा सकता है। दस्तावेज़ीकरण, कालक्रम और जीवनी लेखन।[१६७] इस विषय पर शिया विद्वानों द्वारा लिखित मुसनद इस प्रकार हैं:
- मुसनदे फ़ातेमतुज़ ज़हरा, रचनाः अज़ीज़ुल्लाह अत्तारदी
- मुसनदे फ़ातेमा रचनाः महदी जाफ़र[१६८]
- मुसनदे फ़ातेमा ज़हरा रचनाः सय्यद हुसैन शेख़ उल-इस्लामी
- दलाएलुल इमामा लेखकः तबरी इमामी (इस संबंध का सबसे प्राचीन स्रोत है)[१६९]
मनक़बत निगारी मे शिया विद्वानो की रचनाएं इस प्रकार हैः
- मनाक़िबे फ़ातेमा ज़हरा (स) वा वुलदोहा, रचनाः तबरी इमामी[१७०]
- शरह अहक़ाक़ुल हक़ वा इज़्हाक़े बातिल, रचनाः सय्यद शहाबुद्दीन मरअशी नजफी
- फ़ज़ाइले फ़ातिमा ज़हरा (स) अज़ निगाहे दिगरान, रचनाः नासिर मकारिम शिराज़ी
- फ़ातिमा ज़हरा (स) अज़ नज़रे रिवायात अहले-सुन्नत, रचनाः मुहम्मद वासिफ़[१७१]
इस विषय पर अहले सुन्नत विद्वानो द्वारा लिखी गई मुसनदो के नाम इस प्रकार हैः
- अल-सक़ीफ़ा वल फ़दक, रचनाः ज़ोहरी बस्री
- मन रोवेया अन फ़ातिमा मन औलादेहा रचनाः इब्ने उक़्दा जारूदी
- मुसनदे फ़ातिमा, रचनाः दारे क़ुत्नी शा-फ़ई
मनक़बत निगारी के विषय पर अहले-सुन्नत की किताबेः
- अल-सग़ूर उल-बासेमते फ़ी फ़ज़ाइले अल-सय्यद तिल फ़ातिमा, रचनाः जलालुद्दीन सुयूती
- इत्हाफ़ उस-साइल बेमा लेफ़ातेमता मिनल मनाक़िबे वल फ़ज़ाइल, रचनाः मुहम्मद अली मनावी[१७२]
फ़ुटनोट
- ↑ सुदूक़, अल-अमाली, 1417 हिजरी, पेज 74, 187, 688, 691 और 692; कुलैनी, अल-काफ़ी, 1363 शम्सी, भाग 1, पेज 240; मसऊदी, असरार उल-फ़ातेमिया, 1420 हिजरी, पेज 409
- ↑ सुदूक़, अल-अमाली, 1417 हिजरी, पेज 74, 187, 688, 691 और 692; कुलैनी, अल-काफ़ी, 1363 शम्सी, भाग 1, पेज 240; मसऊदी, असरार उल-फ़ातेमिया, 1420 हिजरी, पेज 409; मजलिसी, बिहार उल-अनवार, भाग 43, पेज 16; इब्ने शहर आशोब, मनाक़िब, भाग 3, पेज 132 क़ुमी, बैतुल एहज़ान, पेज 12 और 692
- ↑ इब्ने साद, अल-तबक़ातुल कुबरा, 1410 हिजरी, भाग 8, पेज 14.
- ↑ तिबरी, तारीखे तिबरी, 1378 हिजरी, भाग 2, पेज 410
- ↑ मजलिसी, बिहार उल-अनवार, 1404 हिजरी, भाग 43, पेज 92 .
- ↑ कुलैनी, अल-काफ़ी, 1401 हिजरी, भाग 1, पेज 461.
- ↑ शहीदी, ज़िंदगानी ए हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (स), 1363 शम्सी, पेज 78.
- ↑ मजलिसी, बिहार उल-अनवार, 1404 हिजरी, भाग 44, पेज 201 .
- ↑ महल्लाती, रियाहीन उश-शरिया, दार उल-कुतुब उल-इस्लामीया, भाग 3, पेज 33 .
- ↑ ज़हबी, सैर ए आलामुल नबला, 1413 हिजरी, भाग 3, पेज 500 .
- ↑ मुत्तक़ी हिंदी, कंज़ुल उम्माल, मोअस्सेसा अल-रिसालत, भाग 2, पेज 158 और भाग 3, पेज 767.
- ↑ इब्ने असीर, अल-कामिल फ़ी तारीख़, 1385 हिजरी, भाग 2, पेज 293 .
- ↑ मुफ़ीद, अल-इरशाद, 1413 हिजरी, भाग 1, पेज 189.
- ↑ कुलैनी, भाग 1, पेज 241, हदीस 5, तिबरी इमामी, दलाएलुल इमामा, 1413 हिजरी, पेज 134.
- ↑ देखेः शेख सुदूक़, अल-ख़िसाल, 1403 हिजरी, पेज 404; इब्ने हेशाम, सीरत उन-नबावीया, दार उल-मारफ़ा, भाग 1, पेज 190
- ↑ बतनूनी, अल-रेहलातुल अल-रेहलातुल अल-हिजाज़िया, अल-मकतबातुल सक़ाफ़िया अल-दीनिया, पेज 128
- ↑ जम्ई अज़ मोहक़्क़ेक़ीन, फ़रहंगनामे उलूमे क़ुरआन, 1394 शम्सी, भाग 1, पेज 2443
- ↑ कुलैनी, अल-काफ़ी, 1363 शम्सी, भाग 1, पेज 458; तूसी, मिस्बाहुल मुताहज्जिद, 1411 हिजरी, पेज 793; तिबरी इमामी, दलाएलुल इमामा, 1413 हिजरी, भाग 79, पेज 134; फ़िताल नेशापूरी, रौज़ातुल वाएज़ीन, क़ुम, शरीफ अल-रज़ी, पेज 143; तबरसी, आलाम उल-वरा, 1417 हिजरी, भाग 1, पेज 290; इब्ने शहर आशोब, मनाक़िबे आले अबि तालिब, 1376 हिजरी, भाग 3, पेज 132
- ↑ मुफ़ीद, मसार उश-शरिया फ़ी मुख़्तसर तवारीखे शरिया, 1414 हिजरी, पेज 54 कफ़अमी, अल-मिस्बाह, 1403 हिजरी, पेज 512
- ↑ इब्ने साद, अल-तबक़ात उल-कुबरा, बैरूत, भाग 1, पेज 133, भाग 8, पेज 19; बलाज़्ररी, अनसाब उल-अशराफ़, 1417 हिजरी, भाग 1, पेज 403; इब्ने अब्दुल बिर, अल-इस्तिआब फ़ी मारफ़तिल अस्हाब, 1412 हिजरी, भाग 4, पेज 1899
- ↑ मुफ़ीद, मिसार उश-शरिया, 1414 हिजरी, पेज 54; तूसी, मिस्बाहुल मुताहज्जिद, 1411 हिजरी, पेज 793; तिबरि इमामी, दलाएलुल इमामा, 1413 हिजरी, पेज 134
- ↑ क्या आज की एक मुसलमान महिला हज़रत ज़हरा (स) को रोल मॉडल बना सकती है? पाएगाहे खबरी तहलीली मेहेर ख़ाना, तारीख प्रकाशन 11-02-1392 शम्सी, तारीख वीजीट 17-12-1395 शम्सी
- ↑ इब्ने साद, अल-तबातुल कुबरा, 1410 हिजरी, भाग 1, पेज 163
- ↑ याक़ूबी, तारीखे याक़ूबी, बैरूत, भाग 2, पेज 35
- ↑ अहमद बिन हंबल, मुसनद अहमद बिन हंबल, बैरूत, भाग 1, पेज 368; हाकिम, नैशापूरी, अल-मुस्तदरक अलस सहीहैन, बैरूत, भाग 1, पेज 163
- ↑ मोहक़्क़िक़, सब्ज़वारी, नमूना बय्येनात दर शाने नुज़ूल आयात अज़ नज़र शेख तूसी वा साइरे मुफ़स्सेरीने ख़ास्सा वा आम्मा, 1359 शम्सी, पेज 173-174
- ↑ तबातबाई, इज़देवाजे फ़ातिमा (स), 1393 शम्सी, भाग 1, पेज 128
- ↑ तिबरी, ज़ख़ायरुल उक़्बा, 1428 हिजरी, भाग 1, पेज 167; मुत्तक़ी हिंदी, कंज़ुल उम्माल, 1401 हिजरी, भाग 1, पेज 129
- ↑ कुलैनी, अल-काफ़ी, 1363 शम्सी, भाग 8, पेज 165; मग़रिबी, शरहुल अख़बार, 1414 हिजरी, भाग 3, पेज 29; सहमी, तारीखे जुरजान, 1407 हिजरी, पेज 171
- ↑ तबातबाई, इज़देवाजे फ़ातिमा (स), 1393 शम्सी, भाग 1, पेज 128
- ↑ अरबेली, कश्फ़ुल ग़ुम्मा, 1405 हिजरी, भाग 1, पेज 363; ख़ुवारिज़्मी, अल-मनाक़िब, 1411 हिजरी, पेज 343
- ↑ निसाई, अल-सुनन अल-कुबरा, 1411 हिजरी, भाग 5, पेज 143; हाकिम, नेशापूरी, अल-मुस्तदरक अलस सहीहैन, दार उल-मारफ़ा, भाग 2, पेज 167-168
- ↑ तिबरि इमामी, दलाएलुल इमामा, 1413 हिजरी, पेज 82
- ↑ ख़ुवारिज़्मी, अल-मनाक़िब, 1411 हिजरी, पेज 343
- ↑ इब्ने साद, अल-तबातुल कुबरा, 1410 हिजरी, भाग 8, पेज 11
- ↑ तूसी, मुहम्मद बिन हसन, अल-अमाली, 1414 हिजरी, पेज 39
- ↑ सुदूक़, अल-अमाली, 1417 हिजरी, पेज 653; अरबेली, कश्फ़ुल ग़ुम्मा फ़ी मारफ़ते आइम्मा, 1405 हिजरी, भाग 1, पेज 363
- ↑ मुफ़ीद, अल-इख़्तिसास, 1414 हिजरी, पेज 148
- ↑ मुफ़ीद, अल-इख़्तिसास, 1414 हिजरी, पेज 148
- ↑ तूसी, मुहम्मद बिन हसन, अल-अमाली, 1414 हिजरी, पेज 40
- ↑ तिबरानी, अल-मोजम अल-कबीर, 1415 हिजरी, भाग 10, पेज 156; ख़ुवारिज़्मी, अल-मनाक़िब, 1411 हिजरी, पेज 336
- ↑ इब्ने असीरे जज़्री, असद उल-ग़ाबा फ़ी मारफ़ते सहाबा, इंतेशाराते इस्माईलीयान, भाग 5, पेज 517
- ↑ अरबेली, कश्फ़ुल ग़ुम्मा फ़ी मारफ़ते आइम्मा, 1405 हिजरी, भाग 1, पेज 358
- ↑ तिबरि इमामी, दलाएलुल इमामा, 1413 हिजरी, पेज 88-90; ख़ुवारिज़्मी, अल-मनाक़िब, 1411 हिजरी, पेज 335-338
- ↑ इब्ने हज्र असक़लानी, तहज़ीब उत-तहज़ीब, 1404 हिजरी, भाग 12, पेज; 391 मक़रीज़ी, इम्ताउल अस्मा, 1420 हिजरी, भाग 1, पेज 73 कुलैनी, काफ़ी, 1363 शम्सी, भाग 8, पेज 340
- ↑ 46- तूसी, मुहम्मद बिन हसन, अल-अमाली, 1414 हिजरी, पेज 43; तिबरी, बशारत उल-मुस्तफ़ा लेशीआतिल मुर्तज़ा, 1420 हिजरी, पेज 410
- ↑ इब्ने शहर आशोब, मनाक़िबे आले अबि तालिब (अ), 1376 हिजरी, भाग 3, पेज 171
- ↑ ख़ुवारिज़्मी, अल-मनाक़िब, 1411 हिजरी, पेज 268-271
- ↑ मजलिसी, बिहार उल-अनवार, 1404 हिजरी, भाग 43, पेज 192 और 199; जोहरी बसरी, अल-सक़ीफ़ा वल फ़दक, 1413 हिजरी, भाग 64
- ↑ सुदूक, अल-अमाली, 1417 हिजरी, भाग 552
- ↑ इब्ने साद, अल-तबक़ातुल कुबरा, बैरूत, भाग 8, पेज 25
- ↑ मजलिसी, बिहार उल-अनवार, 1404 हिजरी, भाग 43, पेज 72
- ↑ ख़ुवारिज़्मी, अल-मनाक़िब, 1411 हिजरी, पेज 268
- ↑ हुमैरी क़ुमी, क़ुरब उल-असनाद, 1413 हिजरी, पेज 52
- ↑ तिबरि इमामी, दलाएलुल इमामा, 1413 हिजरी, पेज 140-142
- ↑ अल-अंसारी अल-ज़िनजानी, अल-मोसूआ तुल-कुबरा अन फ़ातिमा तुज़-ज़हरा, 1428 हिजरी, भाग 17, पेज 429
- ↑ 57-इब्ने असाकिर, तारीख़े मदीना ए दमिश्क़, 1415 हिजरी, भाग 13, पेज 163, 173
- ↑ ज़हबी, सैर ए आलामुन नबला, 1413 हिजरी, भाग 3, पेज 280
- ↑ इब्ने साद, अल-तबक़ातुल कुबरा, दार ए सादिर, भाग 8, पेज 465
- ↑ इब्ने असाकिर, तारीख़े मदीना ए दमिश्क़, 1415 हिजरी, भाग 69, पेज 176
- ↑ मुफ़ीद, अल-इरशाद, 1413 हिजरी, भाग 1, पेज 355
- ↑ 62- शहरिस्तानी, अल-मिलल वल निहल, 1422 हिजरी, भाग 1, पेज 57; ज़हबी, सैर ए आलामुन नबला, 1413 हिजरी, भाग 15, पेज 578; मसऊदी, इस्बातुल वसीयते लिल इमाम अली इब्ने अबी तालिब (अ), 1417 हिजरी, पेज 154-155; बलाली आमेरी, किताब सुलैम बिन क़ैस, 1420 हिजरी, पेज 153
- ↑ इब्ने साद, अल-तबक़ातुल कुबरा, बैरूत, भाग 2, पेज 238; कुलैनी, काफ़ी, 1363 शम्सी, भाग 3, पेज 228
- ↑ कुलैनी, काफ़ी, 1363 शम्सी, भाग 1, पेज 241
- ↑ मुफ़ीद, अल-मुक़्नेआ, 1410 हिजरी, पेज 289-290; सय्यद मुर्तज़ा, अल-शाफ़ी फी इमामा, 1410 हिजरी, भाग 4, पेज 101; मजलिसी, बिहार उल-अनवार, दार उर-रज़ा, भाग 29, पेज 124; अर्दबेली, कश्फ़ुल ग़ुम्मा फ़ी मारफ़तिल आइम्मा, 1421 हिजरी, भाग 1, पेज 353-364
- ↑ जोहरी बस्री, अल-सक़ीफ़ा वल फ़दक, 1413 हिजरी, पेज 63; इब्ने अबिल हदीद, शरह नहजुल बलाग़ा, 1378 हिजरी, भाग 2, पेज 47
- ↑ इब्ने अबि शैबा कूफ़ी, अल-मुसन्निफ़ फ़िल अहादीस वल आसार, 1409 हिजरी, भाग 8, पेज 572
- ↑ जोहरी बस्री, अल-सक़ीफ़ा वल फ़दक, 1413 हिजरी, पेज 72-73
- ↑ तबरसी, अल-एहतेजाज, 1386 हिजरी, भाग 1, पेज 109
- ↑ तिबरि इमामी, दलाएलुल इमामा, 1413 हिजरी, पेज 143
- ↑ तूसी, मिस्बाहुल मुताहज्जिद, 1411 हिजरी, पेज 793
- ↑ इब्ने शहर आशोब, मनाक़िबे आले अबी तालिब, 1376 हिजरी, भाग 3, पेज 133
- ↑ तिबरि इमामी, दलाएलुल इमामा, 1413 हिजरी, पेज 143
- ↑ इब्ने कसीर, अल-सीरतुन नबावीया, 1396 हिजरी, भाग 3, पेज 58
- ↑ तबरसी, मजमा उल-बयान फ़ी तफ़सीरे क़ुरआन, 1415 हिजरी, भाग 8, पेज 125-135
- ↑ वाक़ेदी, अल-मग़ाज़ी, 1409 हिजरी, भाग 2, पेज 635
- ↑ फ़रीमंदपूर, सीरा ए सियासी फ़ातिमा, पेज 309-316
- ↑ इब्ने अबिल हदीद, शरह नहजुल बलाग़ा, 1378 हिजरी, भाग 1, पेज 123
- ↑ अमीनी, अल-ग़दीर, भाग 1, पेज 33
- ↑ इब्ने क़तीबा दैनूरी, अल-इमामा वस सियासा, 1380 शम्सी, पेज 28
- ↑ जोहरी बस्री, अल-सक़ीफ़ा वल फ़दक, 1413 हिजरी, पेज 119
- ↑ सुयूती, अल-दुर उल-मंसूर, 1404 हिजरी, भाग 3, पेज 290
- ↑ मुफ़ीद, अल-इख़्तिसास, 1414 हिजरी, पेज 184-185; हल्बी, अल-सीरत उल हल्बिया, 1400 हिजरी, भाग 3, पेज 488
- ↑ तिबरि इमामी, दलाएलुल इमामा, 1413 हिजरी, पेज 111-121
- ↑ इब्ने कसीर, तारीखे इब्ने कसीर, 1351-1358 हिजरी, भाग 5, पेज 246; इब्ने हेशाम, सीरातुन नबावीया ले इब्ने हेशाम, 1375 हिजरी, भाग 4, पेज 338
- ↑ अस्करी, सक़ीफ़ा, बर्रसी नहवे शक्ल गीरी हुकूमत पस अज़ पैगंबर, 1387 शम्सी, पेज 99
- ↑ इब्ने अब्दे रय अंदलूसी, अल-अक़्दुल फ़रीद, 1409 हिजरी, भाग 3, पेज 64
- ↑ 88- याक़ूबी, तारीखे याक़ूबी, दारे सादिर, भाग 2, पेज 105
- ↑ इब्ने अबिल हदीद, शरह नहजुल बलाग़ा, 1378 हिजरी, भाग 2, पेज 21
- ↑ तिबरि इमामी, दलाएलुल इमामा, 1413 हिजरी, पेज 134
- ↑ सुदूक़, मआनीयुल अख़बार, 1379 शम्सी, पेज 206
- ↑ 92- आमोली, रंजहाए हज़रत ज़हरा (स), 1382 शम्सी, भाग 2, पेज 350-351
- ↑ मुफ़ीद, अल-इख़्तिसास, 1414 हिजरी, पेज 185
- ↑ तिबरि इमामी, दलाएलुल इमामा, 1413 हिजरी, पेज 134
- ↑ इब्ने क़तीबा दैनूरी, अल-इमामा वल सियासा, 1413 हिजरी, भाग 1, पेज 131
- ↑ कहाला, आलामुन निसा फ़ी आलामिल अरब वल इस्लाम, 1412 हिजरी, भाग 4, पेज 123-124
- ↑ तूसी, मिस्बाहुल मुताहज्जिद, 1411 हिजरी, पेज 793
- ↑ तूसी, मिस्बाहुल मुताहज्जिद, 1411 हिजरी, पेज 793
- ↑ तिबरि इमामी, दलाएलुल इमामा, 1413 हिजरी, पेज 134
- ↑ इब्ने शहर आशोब, मनाक़िबे आले अबी तालिब, 1376 हिजरी, भाग 3, पेज 132
- ↑ तिबरि इमामी, दलाएलुल इमामा, 1413 हिजरी, पेज 136
- ↑ अर्दबेली, कश्फ़ुल ग़ुम्मा फ़ी मारफ़तिल आइम्मा, 1405 हिजरी, भाग 2, पेज 125
- ↑ कुलैनी, काफ़ी, 1363 शम्सी, भाग 1, पेज 458
- ↑ तिबरि इमामी, दलाएलुल इमामा, 1413 हिजरी, पेज 134
- ↑ फ़रहमंदपूर, सीरा ए सियासी फ़ातिमा, 1393 शम्सी, भाग 2, पेज 315
- ↑ सुदूक, एलालुश शराय, 1385 हिजरी, भाग 1, पजे 185; इब्ने शहर आशोब, मनाक़िबे आले अबी तालिब, 1376 हिजरी, भाग 3, पेज 137
- ↑ बलाज़्ररी, अनसाब उल-अशराफ़, भाग, पेज 34; तिबरी, तारीखुल उमम वल मुलूक, 1403 हिजरी, भाग 2, पेज 473-474
- ↑ अर्दबेली, कश्फ़ुल ग़ुम्मा फ़ी मारफ़तिल आइम्मा, 1421 हिजरी, भाग 2, पेज 125
- ↑ हिलाल आमरी, किताब सुलैम बिन कैस, 1420 हिजरी, पेज 393; तबरसी, आलामुल वरा, 1417 हिजरी, भाग 1, पेज 300; सुदूक, मुहम्मद बिन अली, अल-खिसाल, 1403 हिजरी, पेज 361; तूसी, इख्तियार मारफ़तुर रिजाल, 1404 हिजरी, भाग 1, पजे 33-34
- ↑ मजलिसी, बिहार उल-अनवार, 1403 हिजरी, भाग 43, पेज 193
- ↑ तबरसी, आलामुल वरा, 1417 हिजरी, भाग 1, पेज 300
- ↑ कुलैनी, काफ़ी, 1363 शम्सी, भाग 1, पेज 461; मुफ़ीद, अलइख्तिसास, 1414 हिजरी, पेज 185; सुदूक़, मन ला याहज़ेरोहुल फ़क़ीह, 1404 हिजरी, भाग 1, पेज 229 और भाग 2, पजे 572; तूसी, तहज़ीबुल अहकाम, 1407 हिजरी, भाग 6, पेज 9; नमीरी, तारीख़े मदीना ए मुनव्वरा, 1410 हिजरी, भाग 1, पेज 106-107
- ↑ नमीरी, तारीख़े मदीना ए मुनव्वरा, 1410 हिजरी, भाग 1, पेज 105
- ↑ वाक़ेदी, अलतबक़ातुल कुबरा, 1410 हिजरी, भाग 4, पेज 23
- ↑ समहूदी, वफ़ाउल वफ़ा, 1971 ई, भाग 3, पेज 92-95
- ↑ मुर्तज़ा, अल-शाफ़ी फ़िल इमामा, 1410 हिजरी, भाग 4, पेज 95; इब्ने शहर आशोब, मनाक़िबे आले अबी तालिब, 1376 हिजरी, भाग 3, पेज 112
- ↑ सूरा ए अहज़ाब, आयत नम्बर 33
- ↑ तबरसी, अल-एहतेजाज, 1386 हिजरी, भाग 1, पेज 215; सुयूति, अल दुर उल मंसूर, 1404 हिजरी, भाग 5, पेज 198
- ↑ देखेः तबरसी, अल-एहतेजाज, 1386 हिजरी, भाग 1, पेज 122-123; सुदूक, एलालुश शराय, 1385 हिजरी, भाग 1, पजे 190-192
- ↑ इब्ने मरदूये इस्फ़हानी, मनाक़िब अली इब्ने अबी तालिब, 1424 हिजरी, पेज 305; सुयूति, अल दुर उल मंसूर, 1404 हिजरी, भाग 5, पेज 199; इब्ने कसीर, अल-बिदाया वल-निहाया, 1408 हिजरी, भाग 2, पेज 316
- ↑ तूसी, अल-अमाली, 1414 हिजरी, 528
- ↑ इब्ने शहर आशोब, मनाक़िबे आले अबी तालिब, 1376 हिजरी, भाग 3, पेज 116-117
- ↑ सुदूक, एलालुश शराय, 1385 हिजरी, भाग 1, पजे 182
- ↑ इब्ने शहर आशोब, मनाक़िबे आले अबी तालिब, 1376 हिजरी, भाग 3, पेज 119
- ↑ देखेः इब्ने ताऊस, जमालुल उस्बूअ, 1371 शम्सी, पेज 93; कुलैनी, अल-काफ़ी, 1363 शम्सी, भाग 3, पेज 343
- ↑ अबुल फ़ुतूह राज़ी, रौज़ुल जिनान वा रूहुल जिनान फ़ी तफ़सीर अल-क़ुरआन, 1375 शम्सी, भाग 17, पेज 122; बहरानी, अल-बुरहान फ़ी तफ़सीर उल-क़ुरआन, 1416 हिजरी, भाग 4, पेज 815; सुयूति, अल दुर उल मंसूर, 1404 हिजरी, भाग 6, पेज 7; अबू सऊद, इसशादे अक़्लुस सलीम इला मज़ाया क़ुराआने करीम, दारे एहयाइत तुरास अल-अरबी, भाग 8, पेज 30
- ↑ हाकिम नेशापूरी, अल-मुस्तदरक अलस सहीहैन, बैरूत, भाद 3, पेज 154
- ↑ मीर जहानी, जन्नतुल आसेमा, 1398 हिजरी, पेज 148
- ↑ गुफ्तगू बा आयतुल्लाहिल उज़्मा शुबैरी ज़नजानी, साइट जमारान, तारीखे प्रकाशन 14/1/1393 तारीखे विजीट 29/11/1395
- ↑ मुफ़ीद, अल-अमाली, 1414 हिजरी, पेज 260; तूसी, अल-अमाली, 1414 हिजरी, पेज 24; अहमद इब्ने हबंल, मुसनद अहमद इब्ने हंबल, बैरूत, भाग 4, पेज 5
- ↑ सुदूक, एलालुश शराय, 1385 हिजरी, भाग 2, पजे 182; तिबरि इमामी, दलाएलुल इमामा, 1413 हिजरी, पेज 81; अहमद इब्ने हबंल, मुसनद अहमद इब्ने हंबल, बैरूत, भाग 3, पेज 80; बुख़ारी, मुहम्मद बिन इस्माईल, सही उल-बुख़ारी, बैरूत, भाग 4, पेज 183; मुस्लिम नेशापूरी, सहीह मुस्लिम, बैरूत, भाग 7, पेज 143-144
- ↑ इब्ने कसीर, तफ़सीर उल-क़ुरआन अल-अज़ीम, 1412 हिजरी, भाग 1, पेज 379; बलाग़ी, हज्जातुत तफ़ासीर वा बलाग़ुल अकसीर, 1386 हिजरी, भाग 1, पेज 268; तिरमिज़ी, सुनन तिरमिज़ी, 1403 हिजरी, भाग 4, पेज 293-294
- ↑ देखेः इब्ने कसीर, अल-कामिल फ़ी तारीख, 1385 शम्सी, भाग 2, पेज 293
- ↑ तबातबाई, अल-मीज़ान फ़ी तफसीर अल-क़ुरआन, 1417 हिजरी, भाग 20, पेज 370-371
- ↑ तबातबाई, अल-मीज़ान फ़ी तफसीर अल-क़ुरआन, 1417 हिजरी, भाग 20, पेज 370-371; मकारिम शिराज़ी, तफ़सीरे नमूना, 1374 शम्सी, भाग 27, पेज 371; फ़ख़्रे राज़ी, अल-तफ़सीर उल-कबीर, 1420 हिजरी, भाग 32, पेज 313; बैज़ावी, अनवार उल-तंजील वा इसरारुल तावील, 1418 हिजरी, भाग 5, पेज 342; नेशापूरी, तफ़सीर ग़राएबुल क़ुरआन, 1416 हिजरी, भाग 6, पेज 576
- ↑ तबरसी, मकारेमुल अख़लाक़, 1392 हिजरी, पेज 92-93
- ↑ मरअशी नजफ़ी, शरह एहक़ाक़ उल-हक़, किताब ख़ाना मरअशी नजफी, भाग 19, पेज 114
- ↑ तिबरी, बशारतुल मुस्तफ़ा ले शीअतिल मुर्तज़ा, 1420 हिजरी, पेज 218-219
- ↑ अर्दबेली, कश्फ़ुल ग़ुम्मा फ़ी मारफ़तिल आइम्मा, 1405 हिजरी, भाग 1, पेज 169
- ↑ इब्ने ताऊस, अल-तराइफ़, मतबअतुल ख़य्याम, 1399 हिजरी, पेज 107-109; तूसी, अल-तिबयान फ़ी तफ़सीर अल-क़ुरआन, 1409 हिजरी, भाग 10, पेज 211; ज़मखशरी, अल-कश्शाफ़, 1407 हिजरी, भाग 7, पेज 670; फ़ख़्रे राज़ी, अल-तफ़सीर अल-कबीर, 1420 हिजरी, भाग 30, पेज 746-747
- ↑ सुदूक, एलालुश शराय, 1385 हिजरी, भाग 1, पजे 182
- ↑ इब्ने शहर आशोब, मनाक़िबे आले अबी तालिब, 1376 हिजरी, भाग 3, पेज 116
- ↑ कुलैनी, काफ़ी, 1363 शम्सी, भाग 1, पेज 240-241
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- ↑ शेख हुर्रे आमोली, वसाइल उश-शिया, 1409 हिजरी, भाग 14, पेज 368; आले रसूल, असरारे वजूदी ए हज़रत ज़हरा (स), पेज 167
- ↑ शेख हुर्रे आमोली, वसाइल उश-शिया, 1409 हिजरी, भाग 14, पेज 368; आले रसूल, असरारे वजूदी ए हज़रत ज़हरा (स), पेज 167
- ↑ शेख हुर्रे आमोली, वसाइल उश-शिया, 1409 हिजरी, भाग 14, पेज 368; आले रसूल, असरारे वजूदी ए हज़रत ज़हरा (स), पेज 167
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- ↑ आग़ा बुजुर्ग तेहरानी, अल-ज़रीआ एला तसानीफ अल-शिया, 1403 हिजरी, भाग 8, पेज 93 और भाग 13, पेज 224
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- ↑ मामूरी, किताब शनासी फ़ातेमा, 1393 शम्सी, भाग 2, पेज 564
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- ↑ मामूरी, किताब शनासी फ़ातेमा, 1393 शम्सी, पेज 567
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स्रोत
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- तेहरानी, मुज्तबा, बहसी कोताह पैरामूने ख़ुत्बा ए हज़रत जहरा (स), तेहरान, पयामे आज़ादी, ज़मिस्तान, 1387 शम्सी
- जोहरी बस्री, अहमद बिन अब्दुल अज़ीज़, अल-सक़ीफ़ा वल फ़दक, शोधः मुहम्मद हादी अमीनी, बैरूत, शिरकातुल कत्बी, 1413 हिजरी
- हाकिम नेशापूरी, मुहम्मद बिन अब्दुल्लाह, अल-मुस्तदरक अलस सहीहैन, शोधः यूसूफ मरअशली, बैरूत, दार उल-मारफ़ा
- हबली, अली बिन बुरहान, अल-सीरातुल हल्बिया, बैरूत, दार उल-मारफ़ा 1400 हिजरी
- हुमैरी क़ुमी, अब्दुल्लाह बिन जाफ़र, क़ुर्बुल असनाद, क़ुम, मोअस्सेसा आले अल-बैत लेएहयाइत तुरास, 1413 हिजरी
- ख़ुवारज़मी, मुवफ़्फ़क़ बिन अहमद, अल-मनाक़िब, शोधः मालिक महमूदी, क़ुम, नश्रे इस्लामी, 1411 हिजरी
- दोलाबी, मुहम्मद बिन अहमद, अल-ज़ुर्रियातित ताहेरातिन नबाविया, शोधः सय्यद मुहम्मद जवाद हुसैनी, क़ुम, नश्रे इस्लामी, 1407 हिजरी
- दह नाम नुख़ुस्त बराय दुख़्तरान व पिसरान ए ईरानी, ख़बर गुज़ारी फ़ार्स, तारीख प्रकाशन 15/2/1392 शम्सी, तारीखे विजीट 2/12/1395 शम्सी
- ज़हबी, मुहम्मद बिन अहमद, सैरे आलामुन नबला, शोधः शोऐबुल अरनाऊत, बैरूत, मोअस्सेसा अल-रिसाला, 1413 हिजरी
- रब्बानी गुलपाएगानी, अली, फ़ातेमयान वा क़रामेता, पाएगाहे इत्तेला रसानी हौज़ा, तारीखे प्रकाशन 4/5/1385 शम्सी, तारीखे 6/12/1395 विज़ीट
- रसास, अहमद बिन हसन, मिस्बाहुल उलूम, शोधः मुर्तज़ा बिन ज़ैद महतूरी, मरकज़ अल-बद्री उल-इल्मी वल सक़ाफ़ी, सन्आ, पहला प्रकाशन 1999 ई.
- ज़मख़्शरी, महमूद बिन उमर, अल-कश्शाफ़, बैरूत, दार उल-कुतुब उल-अरबी, 1407 हिजरी
- सह्मी, हम्ज़ा बिन यूसूफ, तारीखे जुर्जान, बैरूत, आलमुल कुतुब, चौथा प्रकाशन, 1407 हिजरी, पेज 171
- सय्यद बिन ताऊस, अली बिन मूसा, जमालुल उस्बूअ, शोधः जवाद क़य्यूमी, मोअस्सेसा अल-आफ़ाह, 1371 शम्सी
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- सुयूती, जलालुद्दीन, अल-दुर उल-मंसूर फ़ी तफ़सीर बिल मासूर, क़ुम, किताब खाना मरअशी नजपी, 1404 हिजरी
- शायरे अहले-बैत ज़काते तब्अश रा मी दहद, पाएगाहे इंटरनेटी शहरिस्ताने अदब, तारीखे प्रकाशन 24/01/1392 शम्सी, तारीखे विजीट 2/12/1395 शम्सी
- शहरिस्तानी, मुहम्मद बिन अब्दुल करीम, अल-मिलल वन नहल, शोधः मुहम्मद सय्यद गीलानी, बैरूत, दार उल मारफ़ा, 1422 हिजरी
- शहीद सानी, जैनुद्दीन बिन अली आमोली, अल-रौज़ातुल बहइया फ़ी शरह अल-लुम्अतिल दमिश्क़िया, शोधः सय्यद मुहम्मद कलांतर, क़ुम, इंतेशाराते दाऊदी, 1410 हिजरी
- शहीदी, सय्यद जाफ़र, ज़िंदगानी हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (स), तेहरान, दफ्तरे नश्रे फ़रहंगे इस्लामी, 1363 शम्सी
- सुदूक, मुहम्मद बिन अली बिन बाबवैह, मआनी उल-अख़बार, संशोधन और शोधः अली अकबर गफ़्फ़ारी, क़ुम, मोअस्सेसा अल-नश्रुल इस्लामी, 1379 शम्सी
- सुदूक, मुहम्मद बिन अली बिन बाबवैह, एलालुश शराए, शोधः मुहम्मद सादिक़ बहरुल उलूम, अल-नजफ अल-अशरफ़, अल-मकतबातुल हैदरिया, 1385 हिजरी
- सूदूक, मुहम्मद बिन अली बिन बाबवैह, अल-अमाली, क़ुम, मोअस्सेसा अल-बेसत, 1417 हिजरी
- सुदूक़, मुहम्मद बिन अली बिन बाबवैह, अल-खिसाल, शोधः अली अकबर गफ़्फ़ारी, क़ुम, नश्रे इस्लामी, 1403 हिजरी
- सुदूक़, मुहम्मद बिन अली बिन बाबवैह, मन ला याहज़ेरोहुल फ़क़ीह, शोधः अली अकबर गफ़्फ़ारी, क़ुम, नश्रे इस्लामी, 1404 हिजरी
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- तबातबाई, सैय्यद मुहम्मद हुसैन, अल-मीज़ान फ़ी तफ़सीर अल-क़ुरान, क़ुम, नश्रे इस्लामी, 1417 हिजरी
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- तबरसी, हसन बिन फ़ज़्ल, मकारेमुल अख़लाक़, क़ुम, अल-शरीफ अल-रज़ी, 1392 हिजरी
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- तबरसी, फ़ज़्ल बिन हसन, मजमा उल-बयान फ़ी तफसीर अल-क़ुरआन, तेहरान, इंतेशारात ख़ुस्रो, 1372 शम्सी
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- आलमी, सय्यद जाफ़र मुर्तज़ा, रंजहाए हज़रत ज़हरा (स), अनुवादः मुहम्मद सपहरी, क़ुम, इंतेशाराते तहज़ीब, 1382 शम्सी
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- कहाला, उमर रज़ा, आलामुन निसा ए फ़ी आलामिल अरब वल इस्लाम, बैरूत, मोअस्सेसा अल-रिसाला, दसवां प्रकाशन, 1412 हिजरी
- कफ़्अमी, इब्राहीम बिन अली, अल-मिस्बाह, बैरूत, मोअस्सेसा अल-आलमी, 1403 हिजरी
- कुलैनी, मुहम्मद बिन याक़ूब, अल-काफ़ी, बैरूत, 1401 हिजरी
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