हज़रत फ़ातिमा (स) का दफ़्न स्थान
- यह लेख हज़रत फ़ातिमा (स) के दफ़न स्थान के बारे में है। संबंधित घटनाओं के बारे में जानकारी के लिए, हज़रत फ़ातिमा (स) की शव यात्रा और अंतिम संस्कार और हज़रत फातिमा (स) की शहादत की प्रविष्टि देखें।
हज़रत फ़ातिमा (स) का दफ़्न स्थान (अरबी:موقع قبر السيدة فاطمة (ع)) एक अज्ञात स्थान है जिसके लिए संभावनाओं पर विचार किया गया है जैसे कि हज़रत फ़ातिमा (स) का घर, रौज़ा अल-नबी, बक़ीअ और अक़ील का घर (बक़ीअ के इमामों का मक़बरा)। फ़ातिमा (स) का घर शिया विद्वानों की प्रसिद्ध राय के अनुसार माना गया है; हालांकि शेख़ तूसी का मानना है कि ज़्यादातर शिया विद्वान रौज़ा अल-नबी में दफ़्नाने के कथन को मज़बूत मानते हैं। अल्लामा मजलिसी के अनुसार, शिया मान्यता के अनुसार, रौज़े में फ़ातिमा (स) का घर भी शामिल है। इसी कारण कुछ शोधकर्ताओं ने रौज़ा के कथन को घर के कथन की पुष्टि माना है।
एक इतिहासकार सय्यद जाफ़र मुर्तज़ा ने हज़रत फ़ातिमा (स) की क़ब्र के स्थान को निश्चित रूप से निर्धारित करना असंभव माना है। शेख़ तूसी और अमीन अल-इस्लाम तबरसी के अनुसार, तीनों स्थानों पर रौज़ा अल नबी, फ़ातिमा (स) का घर और बक़ीअ, हज़रत फ़ातिमा (स) की ज़ियारत करना बेहतर है।
शियों का मानना है कि फ़ातिमा (स) की क़ब्र को न जानने का कारण यह है कि उन्हें गुप्त रूप से दफ़्नाया गया था, जो कि फ़ातिमा की अपनी इच्छा के अनुसार था। उनके अनुसार, इमाम अली (अ) से ख़िलाफ़त छीनने, फ़दक पर क़ब्ज़ा करने और मुसलमानों की सहायता न करने के कारण फ़ातिमा (स) ने उन्हें गुप्त रूप से दफ़्नाने की वसीयत की थी।
अधिकांश सुन्नी विद्वान हज़रत फ़ातिमा (स) की क़ब्र को बक़ीअ क़ब्रिस्तान में आइम्मा के मक़बरे में मानते हैं। कुछ शिया विद्वानों ने इस मत को व्यक्त करने का मक़सद फ़ातिमा की क़ब्र के रहस्य को लेकर शिया अनुयायियों के धार्मिक दबाव को कम करना माना है।
हज़रत फ़ातिमा (स) के दफ़्न स्थान के बारे में कई रचनाएं जैसे कि पुस्तक "मरक़दो सय्यदा अल नेसा फ़ातिमा अल ज़हरा (स) फ़ी अय्ये मकान?" और "ऐना क़ब्रो फ़ातिमा (स)" लिखी गई हैं।
दफ़्न स्थल का महत्व
हज़रत फ़ातिमा (स) के दफ़्न स्थान का विषय शिया धार्मिक पुस्तकों में प्रस्तुत किया गया है और इसकी गोपनीयता का उपयोग पहले ख़लीफ़ा अबू बक्र की निंदा करने के लिए किया गया है।[१] शिया हज़रत फ़ातिमा (स) के दफ़्न स्थान के गुप्त होने का कारण अबू बक्र और उमर के प्रति फ़ातिमा (स) की नाराज़गी और ख़िलाफ़त और फ़दक को हड़पने का विरोध, मानते हैं।[२] सय्यद मोहम्मद हुसैन जलाली (मृत्यु 1399 शम्सी) के अनुसार, फ़ातिमा (स) ने स्वयं को गुप्त रूप से दफ़्नाने की वसीयत की थी ताकि उनकी शहादत के कारकों को इतिहास में भुलाया नहीं जा सकेगा।[३]
संभावित स्थान
शिया विद्वानों ने हज़रत फ़ातिमा (स) के दफ़्नाने के स्थान के बारे में संभावनाएँ दी हैं।[४] शिया विद्वानों के बीच लोकप्रिय राय यह है कि फ़ातिमा (स) को उनके घर में दफ़्नाया गया था;[५] हालाँकि शिया विद्वान शेख़ तूसी के अनुसार, अधिकांश शिया विद्वानों का मानना है कि फ़ातिमा (स) को रौज़ा अल-नबी में दफ़नाया गया था।[६] शिया स्रोतों में अन्य संभावनाएं भी सुझाई गई हैं, जिनमें बक़ीअ क़ब्रिस्तान[७] और अक़ील का घर (बक़ीअ में इमामों का मक़बरा') शामिल हैं।[८]
शिया इतिहासकार सय्यद जाफ़र मुर्तज़ा आमोली ने हज़रत फ़ातिमा (स) के क़ब्र का स्थान निर्धारित करना असंभव माना है।[९] शेख़ तूसी[१०] और अमीन अल-इस्लाम तबरसी[११] के अनुसार, तीनों स्थानों पर रौज़ा अल नबी, फ़ातिमा (स) का घर और बक़ीअ, हज़रत फ़ातिमा (स) की ज़ियारत करना बेहतर है।[१२] मिस्बाह अल-ज़ाएर किताब में सय्यद इब्ने ताऊस ने तीर्थयात्रा (ज़ियारत) का स्थान रौज़ा अल नबी माना है,[१३] लेकिन किताब अल-इक़बाल में, यह (ज़ियारत का स्थान) पैग़म्बर (स) का कमरा है।[१४]
हज़रत फ़ातिमा (स) का घर
- यह भी देखें: हज़रत फ़ातिमा (स) का घर
शिया विद्वानों के बीच लोकप्रिय मत यह है कि फ़ातिमा (स) को उनके घर में दफ़्नाया गया था।[१५] शेख़ सदूक़,[१६] इब्ने इदरीस हिल्ली,[१७] इब्ने ताऊस,[१८] अल्लामा मजलिसी[१९] और सय्यद मोहसिन अमीन[२०] ने भी इस संभावना को अन्य संभावनाओं से अधिक मज़बूत माना है। वे इमाम रज़ा (अ) की एक हदीस[२१] का उल्लेख करते हैं, जिसके अनुसार फ़ातिमा (स) को उनके घर में दफ़्नाया गया था और जो बनी उम्मया द्वारा मस्जिद अल नबी के विकास के कारण मस्जिद के अंदर आ गया।[२२]
कुछ शिया विद्वानों के अनुसार, वह वर्णन जिसमें इमाम अली (अ) ने फ़ातिमा (स) को "पैग़म्बर (स) के बगल में दफ़्नाया गया" के रूप में पेश किया था[२३] उन्हें घर में दफ़्नाए जाने की संभावना की पुष्टि करता है; क्योंकि पैग़म्बर के दफ़्न स्थान के सबसे क़रीब फ़ातिमा (स) का घर था।[२४] पैग़म्बर (स) की क़ब्र के बगल में दफ़्न होने का सम्मान, इस संभावना की एक और पुष्टि माना जाता है, क्योंकि इमाम हसन (अ) ने भी वसीयत की थी यदि संभव हो तो मुझे पैग़म्बर (स) की क़ब्र के बगल में दफ़्नाया जाए।[२५]
कुछ शिया विद्वानों ने घर में दफ़्नाए जाने की संभावना को उन हदीसों के साथ असंगत माना है कि इमाम अली (अ) फ़ातिमा (स) के शरीर को दफ़्नाने के लिए घर से बाहर ले गए थे।[२६] उत्तर में, जो संभावना दी गई वह वास्तविक अंत्येष्टि नहीं, बल्कि अंत्येष्टि का स्वरूप था,[२७] या फिर कब्रों को बनाने और मूल क़ब्र स्थल की पहचान न करने के लिए अंतिम संस्कार किया गया है।[२८] शिया शोधकर्ताओं में से एक का मानना है कि अंतिम संस्कार (तशीई), अली (अ) और फ़ातिमा (स) के दूसरे घर से, जो बक़ीअ के पास स्थित था, फ़ातिमा (स) के दूसरे घर तक हुआ था।[२९] उनके अनुसार, पैग़म्बर (स) की वफ़ात के बाद की घटनाएं, जिसमें फ़ातिमा (स) के घर पर हमला भी शामिल है बक़ीअ के पास वाले घर में हुई थी।[३०]
रौज़ा अल नबी
- यह भी देखें: रौज़ा अल नबी
शेख़ मुफ़ीद ने अपनी पुस्तक अल-मुक़नअ में फ़ातिमा (स) को रौज़ा अल-नबी में दफ़्नाए जाने की संभावना को सही माना है[३१] और शिया विद्वान शेख़ तूसी ने अधिकांश शिया विद्वानों की मान्यता को कि फ़ातिमा (स) को रौज़ा अल नबी में दफ़्नाने के कथन को सही माना है।[३२] रौज़ा अल नबी, मस्जिद अल नबी में मिम्बर और पैग़म्बर (स) की क़ब्र के बीच की दूरी है, जिसे पैग़म्बर ने स्वर्ग के रौज़ों (अनुवादित: हरी भरी ज़मीन[३३]) में से एक रौज़ा कहा था।[३४] मआनी अल-अख़्बार किताब में एक हदीस के अनुसार, पैग़म्बर (स) ने कहा कि इस जगह के तीर्थस्थल (रौज़ा) होने का कारण यह है कि फ़ातिमा (स) को वहां दफ़्नाया जाएगा।[३५]
6वीं शताब्दी हिजरी के टिप्पणीकार और धर्मशास्त्री अमीन अल-इस्लाम तबरीसी,[३६] और 6वीं शताब्दी हिजरी के टिप्पणीकार और हदीस इब्ने शहर आशोब,[३७] ने घर और रौज़ा की दो संभावनाओं को सच्चाई के करीब माना है। शेख़ तूसी ने इन दोनों संभावनाओं को एक-दूसरे के क़रीब माना है[३८] और अल्लामा मजलिसी ने उन्हें योगात्मक माना है; क्योंकि शिया मान्यता के अनुसार, रौज़ा में फ़ातिमा (स) का घर भी शामिल है।[३९] इसी कारण से कुछ विद्वानों ने रौज़ा के कथन को घर के कथन की पुष्टि माना है।[४०]
बक़ीअ क़ब्रिस्तान
- यह भी देखें: बक़ीअ
7वीं शताब्दी हिजरी के शिया इतिहासकार बहाउद्दीन एरबेली के अनुसार, लोगों और इतिहासकारों के बीच यह प्रसिद्ध है कि फ़ातिमा (स) को बक़ीअ में दफ़्नाया गया था। इस संभावना की पुष्टि के लिए उन्होंने एक हदीस का भी उल्लेख किया है। उन्होंने बक़ीअ क़ब्रिस्तान में विशिष्ट स्थान निर्दिष्ट नहीं किया है।[४१]
शेख़ तूसी[४२] और अमीन अल इस्लाम तबरसी[४३] ने इस संभावना को असंभाव्य माना है।[४४] अल-काफ़ी किताब की एक हदीस के अनुसार, फ़ातिमा (स) को बक़ीअ में नहीं दफ़्नाया गया था।[46] इस हदीस के अनुसार, इमाम हसन (अ) ने इमाम हुसैन (अ) को वसीयत की थी: "शहादत के बाद, मुझे पैग़म्बर (स) की क़ब्र पर ले जाना ताकि मैं उनके साथ अपनी वचन को नवीनीकृत कर सकूं। फिर मुझे मेरी मां की क़ब्र पर ले जाना और वहां से बक़ीअ ले जाना।[४५]
अक़ील का घर (बक़ीअ में इमामों का मक़बरा)
- यह भी देखें: बक़ीअ में मक़बरा और शिया इमामों की कब्रें
अल्लामा मजलिसी ने मिस्बाह अल अनवार किताब से एक हदीस का उल्लेख किया है कि फ़ातिमा (स) को अक़ील बिन अबी तालिब के घर में दफ़्नाया गया था।[४६] अक़ील का घर बक़ीअ कब्रिस्तान के बाहर और उसके पास स्थित था[४७] और अब्बास बिन अब्दुल मुत्तलिब और चार इमामों के दफ़्न के बाद यह एक आवासीय अवस्था से एक सार्वजनिक रौज़े में बदल गया था[४८] और बक़ीअ के विस्तार के साथ यह बक़ीअ में शामिल हो गया।[४९]
1302 और 1303 हिजरी के बीच अपने यात्रा वृतांत में, क़ाचार काल के कवि और लेखक मोहम्मद हुसैन फ़रहानी ने बक़ीअ क़ब्रिस्तान में इमामों के मक़बरे के अस्तित्व के बारे में बताया है कि जिसका श्रेय हज़रत फ़ातिमा (स) को दिया जाता था। और शिया और सुन्नी उस स्थान की ज़ियारत करते थे।[५०]
सुन्नी विद्वानों के बीच लोकप्रिय मत यह है कि हज़रत फ़ातिमा (स) की क़ब्र बक़ीअ क़ब्रिस्तान में इमामों के मक़बरे में स्थित है।[५१] उनका एक तर्क इमाम हसन (अ) की वसीयत है कि उन्हें उनकी मां हज़रत फ़ातिमा (स) के बग़ल में दफ़्नाया जाए।[५२] दूसरी ओर, एक हदीस के आधार पर,[५३] शियों का मानना है कि बक़ीअ में दफ़्न फ़ातिमा इमाम अली (अ) की मां फ़ातिमा बिन्ते असद हैं।[५४] शिया विद्वान मोहम्मद सादिक़ नजमी का मानना है कि सुन्नी लेखकों ने फ़ातिमा (स) की क़ब्र की गोपनीयता के बारे में शिया अनुयायियों के धार्मिक दबाव को कम करने के लिए बक़ीअ में इमामों के मक़बरे के अंदर फ़ातिमा (स) की क़ब्र को स्थापित करने की कोशिश की है।[५५]
सुन्नी स्रोतों में, हज़रत फ़ातिमा (स) के दफ़्न स्थान के लिए अन्य संभावनाओं का उल्लेख किया गया है। उनमें से कुछ इस प्रकार हैं: उनका घर,[५६] रौज़ा अल-नबी,[५७] अक़ील बिन अबी तालिब के घर का बाहरी कोना[५८] और बैत उल अहज़ान।[५९]
क़ब्र क्यों छिपाई गई है?
शिया विद्वानों ने फ़ातिमा (स) की क़ब्र के गुप्त होने का कारण उनकी अपनी वसीयत के अनुसार उन्हें गुप्त रूप से दफ़्नाया जाना माना है।[६०] शिया सूत्रों के अनुसार फ़ातिमा (स) की इस वसीयत का कारण अली (अ) से खिलाफ़त का छीनना, फ़दक को हड़पना और मुसलमानों द्वारा सहायता न करना माना है।[६१] किताब दलाएल अल इमामा[६२] के लेखक शेख़ मुफ़ीद[६३] के अनुसार, हज़रत फ़ातिमा (स) स्वंय वसीयत की कि उनकी क़ब्र गुप्त रहे।
इमाम अली (अ) ने फ़ातिमा (स) को रात में गुप्त रूप से दफ़्नाया[६४] और दफ़्नाने के बाद, उन्होंने उसकी क़ब्र के निशानों को नष्ट कर दिया।[६५] उसके बाद, चालीस क़ब्रें बनाई[६६] और दूसरे कथन में, सात क़ब्रें बनाई।[६७] इसे इसलिए बनाया ताकि फ़ातिमा (स) की क़ब्र की पहचान न की जा सके। कुछ शिया स्रोतों में, यह कहा गया है कि उमर बिन ख़त्ताब ने क़ब्र को खोदने और फ़ातिमा (स) पर नमाज़ पढ़ने का इरादा किया; लेकिन इमाम अली (अ) की धमकी के बाद उन्होंने अपना इरादा बदल दिया।[६८]
ऐसा कहा गया है कि किसी भी विशिष्ट क़ब्र को निश्चित रूप से फ़ातिमा (स) की क़ब्र के रुप में प्रस्तुत नहीं किया गया है।[६९] शिया विद्वानों में से, क़ाज़ी नूरुल्लाह शुश्त्री[७०] और सय्यद मोहम्मद शिराज़ी[७१] ने इमाम महदी (अ) के ज़ुहूर के बाद और उनके द्वारा फ़ातिमा (स) की क़ब्र के रहस्योद्घाटन (ज़ाहिर होने) का समय माना है; हालांकि, उन्होंने इस दावे का कोई कारण नहीं बताया है।
अली बिन अब्दुल्लाह समहूदी, एक सुन्नी इतिहासकार (मृत्यु 911 हिजरी), ने हज़रत फ़ातिमा (स) की क़ब्र के गुप्त होने का एक कारण यह माना कि इस्लाम के आरम्भ में क़ब्रों को प्लास्टर और ईंटों से मज़बूत करना आम बात नहीं थी।[७२] इस कारण की आलोचना की गई है; क्योंकि पैग़म्बर (स) के कई सहाबा और अन्य जनजातियों की कब्रें ज्ञात हैं।[७३]
मोनोग्राफ़ी
हज़रत फ़ातिमा (स) के दफ़न स्थान के विषय पर लिखी गई कुछ रचनाएं इस प्रकार हैं:
- मरक़दो सय्यदा अल नेसा फ़ातिमा अल शहीदा अल ज़हरा (स) फ़ी अय्ये मकान?! सय्यद हाशिम नाजी मूसवी अल-जज़ायरी द्वारा लिखित: इस कार्य में, फ़ातिमा (स) की क़ब्र को गुप्त रखने के कारण और दफ़न स्थान की संभावनाओं के बारे में शिया हदीसों को एकत्र किया गया है।[७४] दानिश प्रकाशन ने इस पुस्तक को 1395 शम्सी में क़ुम में प्रकाशित किया था।[७५]
- ऐना क़ब्रो फ़ातिमा (स) हुसैन राज़ी द्वारा लिखित: इस कार्य में, हज़रत फ़ातिमा (स) के दफ़न स्थान की संभावनाओं का उल्लेख किया गया है और सही संभावना उनका घर माना गया है।[७६] दार अल-मोहजा अल-बैज़ा ने इस पुस्तक को 1432 हिजरी में बेरूत में प्रकाशित किया था।[७७]
इसके अलावा, "क़ब्रे मादरम कुजा अस्त? दर जुस्तजू ए मज़ारे बी निशान मादरम ज़हरा (स) एम.एम अल मोहसिन द्वारा लिखित।[७८] "राज़े सदफ़: क़ब्रे मख़्फ़ी हज़रते फ़ातिमा (स) अज़ मंज़रे सेयासी व इरफ़ानी मेहरदाद वैस कर्मी द्वारा लिखित, नामक किताबें भी इसी विषय पर प्रकाशित हुई हैं।[७९]
फ़ुटनोट
- ↑ उदाहरण के लिए देखें, अल्लामा हिल्ली, कशफ़ अल-मुराद, 1413 हिजरी, पृष्ठ 373।
- ↑ उदाहरण के लिए देखें, तबरेज़ी, सिरा उस्ताद अल-फ़ोक़हा वा अल-मुजतहेदीन मिर्ज़ा जवाद तबरेज़ी, दार अल-सिद्दीक़ा अल-शहीदा, पृष्ठ 89; मज़ाहेरी, अंदीशेहाए नाब, 1390 शम्सी, पृष्ठ 65।
- ↑ हुसैनी जलाली, फ़ेहरिस अल तोरास, 1436 हिजरी, पृष्ठ 71।
- ↑ तबरसी, आलाम अल वरा, 1417 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 301।
- ↑ हुसैनी शिराज़ी, अल-दुआ व अल-ज़ियारा, 1414 हिजरी, पृष्ठ 588; अंसारी ज़ंजानी, अल मौसूआ अल कुबरा अन फ़ातिमा अल-ज़हरा, दलीलोना, खंड 16, पृष्ठ 113, अल-तारीख़ वा अल-सीरा (पांडुलिपि) से उद्धृत, पृष्ठ 30।
- ↑ शेख़ तूसी, मिस्बाह अल-मुतहज्जद, 1411 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 711।
- ↑ इरबली, कशफ़ अल-गुम्मा, 1381 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 501।
- ↑ मजलिसी, बिहार अल-अनवार, 1403 हिजरी, खंड 79, पृष्ठ 27।
- ↑ आमोली, मअसात अल ज़हरा (स), 1418 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 252 और 253।
- ↑ शेख़ तूसी, मिस्बाह अल-मुतहज्जद, 1411 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 711।
- ↑ तबरसी, ताज अल-मवालीद, 1422 हिजरी, पृष्ठ 80।
- ↑ शेख़ तूसी, मिस्बाह अल-मुतहज्जद, 1411 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 711।
- ↑ इब्ने ताऊस, मिस्बाह अल-ज़ाएर, आल-अल-बैत (अ) फाउंडेशन, ले एहिया अल-तोरास, पृष्ठ 52।
- ↑ इब्ने ताऊस, अल-इक़बाल बिल आमाल, 1376 शम्सी, खंड 3, पृष्ठ 161।
- ↑ हुसैनी शिराज़ी, अल-दुआ व अल-ज़ियारा, 1414 हिजरी, पृष्ठ 588; अंसारी ज़ंजानी, अल मौसूआ अल कुबरा अन फ़ातिमा अल ज़हरा, दलीलोना, खंड 16, पृष्ठ 113, अल-तारीख़ वा अल-सीरा (पांडुलिपि) से उद्धृत, पृष्ठ 30।
- ↑ शेख़ सदूक़, मन ला यहज़रोहुल फ़क़ीह, 1413 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 572।
- ↑ इब्ने इदरीस हिल्ली, अल सराएर अल हावी ले तहरीर अल फ़तावा, 1410 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 652।
- ↑ इब्ने ताऊस, अल-इक़बाल, 1376 शम्सी, खंड 3, पृष्ठ 163।
- ↑ अल्लामा मजलिसी, मिरआतुल उक़ूल, 1404 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 349।
- ↑ अमीन, आयान अल-शिया, 1403 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 322।
- ↑ शेख़ सदूक़, मआनी अल-अख़्बार, 1403 हिजरी, पृष्ठ 268।
- ↑ उदाहरण के लिए देखें, शेख़ सदूक़, मन ला यहज़रोहुल फ़क़ीह, 1413 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 572।
- ↑ नहज अल-बलाग़ा, सुब्ही सालेह द्वारा सुधार, 1414 हिजरी, खुत्बा 202, पृष्ठ 319; इब्ने शहर आशोब, मनाक़िब, 1379 हिजरी, खंड 3, पृष्ठ 364।
- ↑ उदाहरण के लिए देखें, माज़ंदरानी, शरह अल-काफ़ी, 1384 शम्सी, खंड 7, पृष्ठ 208; हसनज़ादेह आमोली, हज़ार व एक नोकते, 1376 शम्सी, खंड 3, पृष्ठ 446।
- ↑ नजमी, तारीख़े हरम आइम्मा बक़ीअ व आसार दीगर दर मदीना मुनव्वरा, 1386 शम्सी, पृष्ठ 122।
- ↑ हमूद, अब्ही अल-मदाद, 1423 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 547।
- ↑ हुसैनी शिराज़ी, अल-दुआ व अल-ज़ियारा, 1414 हिजरी, पृष्ठ 588।
- ↑ तुराबी, "जसारती दर चेगूनगी व मकाने दफ़न हज़रत फ़ातिमा (स) दर मनाबे नख़ुस्तीन", पृष्ठ 131।
- ↑ नजमी, तारीख़े हरम आइम्मा बक़ीअ व आसार दीगर दर मदीना मुनव्वरा, 1386 शम्सी 166।
- ↑ नजमी, तारीख़े हरम आइम्मा बक़ीअ व आसार दीगर दर मदीना मुनव्वरा, 1386 शम्सी 163।
- ↑ शेख़ मुफ़ीद, अल-मुक़नआ, 1413 हिजरी, पृष्ठ 459।
- ↑ शेख़ तूसी, मिस्बाह अल-मुतहज्जद, 1411 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 711।
- ↑ इब्ने सय्यदा, अल-मुहकम व अल-मुहीत अल-आज़म, 1421 हिजरी, खंड 8, पृष्ठ 245, रौज़ शब्द के तहत।
- ↑ कुलैनी, अल-काफ़ी, 1429 हिजरी, खंड 9, पृष्ठ 257।
- ↑ शेख़ सदूक़, मआनी अल-अख़्बार, 1366 शम्सी, पृष्ठ 267।
- ↑ तबरसी, ताज अल-मवालीद, 1422 हिजरी, पृष्ठ 80।
- ↑ इब्ने शहर आशोब, मनाक़िब, 1379 शम्सी, खंड 3, पृष्ठ 365।
- ↑ शेख़ तूसी, तहज़ीब अल-अहकाम, 1407 हिजरी, खंड 6, पृष्ठ 9।
- ↑ मजलिसी, बिहार अल-अनवार, 1403 हिजरी, खंड 97, पृष्ठ 193; मजलिसी, मिरआतुल उक़ूल, 1404 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 349।
- ↑ क़ायदान, तारीख़ व आसारे इस्लामी मक्का मुकर्रमा व मदीना मुनव्वरा, 1386 शम्सी, पृष्ठ 210।
- ↑ इरबली, कशफ़ अल-गुम्मा, 1381 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 501।
- ↑ शेख़ तूसी, तहज़ीब अल-अहकाम, 1407 हिजरी, खंड 6, पृष्ठ 9।
- ↑ तबरसी, आलाम अल वरा, 1417 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 301।
- ↑ अंसारी ज़ंजानी, अल मौसूआ अल कुबरा अन फ़ातिमा ज़हरा, दलीलोना, खंड 16, पृष्ठ 51।
- ↑ कुलैनी, अल-काफ़ी, 1429 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 43।
- ↑ मजलिसी, बिहार अल-अनवार, 1403 हिजरी, खंड 79, पृष्ठ 27।
- ↑ क़ायदान, तारीख़ व आसारे इस्लामी मक्का मुकर्रमा व मदीना मुनव्वरा, 1386 शम्सी, पृष्ठ 208।
- ↑ नजमी, तारीख़े हरम आइम्मा बक़ीअ व आसार दीगर दर मदीना मुनव्वरा, 1386 शम्सी, पृष्ठ 127।
- ↑ नजमी, तारीख़े हरम आइम्मा बक़ीअ व आसार दीगर दर मदीना मुनव्वरा, 1386 शम्सी पृष्ठ 81।
- ↑ फ़रहानी, सफ़रनामे मिर्ज़ा मोहम्मद हुसैन फ़रहानी, 1362 शम्सी, पृष्ठ 229।
- ↑ उदाहरण के लिए देखें, सम्हूदी, वफ़ा अल-वफ़ा, 1419 हिजरी, खंड 3, पृष्ठ 93; इब्ने नज्जार, अल-दुरा अल-समीना फ़ी अख़्बार अल-मदीना, शिरका दार अल-अरक़म, पृष्ठ 166; क़ायदान, क़ायदान, तारीख़ व आसारे इस्लामी मक्का मुकर्रमा व मदीना मुनव्वरा, 1386 शम्सी, पृष्ठ 209 भी देखें।
- ↑ मोहेबुद्दीन तबरी, ज़ख़ाएर अल उक़्बा, 1356 हिजरी, पृष्ठ 54 और 141।
- ↑ शेख़ मुफ़ीद, अल-इरशाद, 1413 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 17।
- ↑ उदाहरण के लिए देखें, कुमी, अल-अनवार अल-बहिया, अल-जमाअत अल-मुदर्रेसीन बे क़ुम अल-मुशर्रफ़ा, अल-नशार अल-इस्लामी संस्थान, पृष्ठ 174; कायदान, क़ायदान, तारीख़ व आसारे इस्लामी मक्का मुकर्रमा व मदीना मुनव्वरा, 1386 शम्सी, पृष्ठ 209।
- ↑ नजमी, तारीख़े हरम आइम्मा बक़ीअ व आसार दीगर दर मदीना मुनव्वरा, 1386 शम्सी पृष्ठ 128।
- ↑ इब्ने जौज़ी, मुसीर अल-ग़राम, 1415 हिजरी, पृष्ठ 464।
- ↑ सिब्ते इब्ने जौज़ी, मिरआत अल-ज़मान फ़ी तवारीख़ अल-आयान, 1434 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 60।
- ↑ इब्ने शबह, तारीख़ अल-मदीना, 1399 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 105।
- ↑ दियार बकरी, तारीख़ अल-खमीस, दार सद्र, खंड 2, पृष्ठ 176।
- ↑ उदाहरण के लिए देखें, तबरसी, ताज अल-मवालीद, 1422 हिजरी, पृष्ठ 80; नाजी जज़ाएरी, मरक़द सय्यदा अल नेसा फ़ातिमा अल शहीदा अल ज़हरा (स) फ़ी अय्ये मकान?!, 1395 शम्सी, पृष्ठ 16।
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- "किताब शनासी क़ब्रे मादरम कुजा अस्त?", इस्लामिक गणराज्य ईरान के रिकॉर्ड्स और राष्ट्रीय पुस्तकालय का संगठन, देखने की तारीख: 9 शाहरिवर 1400 शम्सी।
- "किताब शनासी राज़ सदफ़", दस्तावेज़ संगठन और ईरान इस्लामी गणराज्य की राष्ट्रीय पुस्तकालय, देखने की तारीख: 9 शाहरिवर 1400 शम्सी।
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