हज़रत फ़ातिमा (स) की शहादत

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यह लेख हज़रत फ़ातिमा (स) की शहादत के बारे में है। संबंधित घटनाओं के बारे में जानकारी के लिए, हज़रत फ़ातिमा (स) के घर पर हमले की घटना और हज़रत फ़ातिमा (स) के अंतिम संस्कार और दफ़न की प्रविष्टि देखें।

हज़रत फ़ातिमा (स) की शहादत (अरबी: شهادة السيدة فاطمة (ع)) शियों के बीच प्रमुख और लंबे समय से चली आ रही मान्यताओं में से एक है, जिसके अनुसार, इस्लाम के पैग़म्बर (स) की बेटी हज़रत फ़ातिमा (स) की स्वाभाविक मृत्यु नहीं हुई, बल्कि, पैग़म्बर के कुछ सहाबा द्वारा पहुंचाई गई चोटों के परिणामस्वरूप उनकी शहादत हुई। सुन्नियों ने उनकी मृत्यु को पैग़म्बर (स) की मृत्यु के दुःख के कारण माना है। लेकिन शिया उमर बिन खत्ताब को उनकी शहादत का मुख्य कारण मानते हैं, और अय्यामे फ़ातमिया में हज़रत फ़ातिमा (स) के लिए शोक मनाते हैं।

शियों ने हज़रत ज़हरा (स) की शहादत के लिए कुछ मामलों का हवाला दिया है; उनमें से, इमाम काज़िम (अ) की रिवायत के अनुसार, फ़ातिमा (स) के लिए सिद्दीक़ा शहीदा शीर्षक का प्रयोग किया गया है। इसके अलावा, तीसरी शताब्दी हिजरी के इमामी धर्मशास्त्री, मुहम्मद बिन जरीर तबरी ने अपनी पुस्तक दलाएल अल इमामा में, इमाम सादिक़ (अ) से एक हदीस का उल्लेख किया है, जिसमें फ़ातिमा (स) की शहादत का कारण उनको दी गई पीड़ा से हुए गर्भपात को माना गया है।

शिया और सुन्नी स्रोतों ने हज़रत फ़ातिमा (स) की मृत्यु से जुड़ी घटनाओं के विवरण का उल्लेख किया है; जिसमें फ़ातिमा (स) और इमाम अली (अ) के घर पर हमला, उसका गर्भपात (मोहसिन) और उन्हें थप्पड़ मारना और कोड़े मारना भी शामिल है। इस संबंध में शियों द्वारा उद्धृत सबसे पुराना स्रोत सुलैम बिन क़ैस हेलाली की पुस्तक है, जो हिजरी की पहली शताब्दी में लिखी गई थी। शियों ने फ़ातिमा (स) की शहादत को उन रवायतों से प्रलेखित माना है जो सुन्नी स्रोतों में भी पाए जाते हैं। इस संबंध में, पुस्तक "अल-हुजूम अला बैते फ़ातिमा" में सुन्नी स्रोतों से 84 हदीसों का वर्णन किया गया है।

हज़रत ज़हरा (स) की शहादत पर विश्वास करने पर संदेह का सामना करना पड़ा है और उनके उत्तर भी दिए गए हैं; अन्य बातों के अलावा, इस तथ्य के उत्तर में कि उस समय मदीना में घरों में दरवाज़े नहीं होते थे, एक शिया इतिहासकार सय्यद जाफ़र मुर्तज़ा आमोली (मृत्यु 1441 हिजरी) ने हदीसों का हवाला देते हुए कहा कि मदीना में घरों में दरवाज़े होना आम बात थी। इसके अलावा, इस प्रश्न के उत्तर में कि यदि फ़ातिमा (स) पर हमला किया गया था, तो इमाम अली (अ) और अन्य चुप क्यों रहे और उसका बचाव क्यों नहीं किया, यह बात के अलावा कि पैग़म्बरे इस्लाम (स) के आदेश से अली (अ) को धैर्य रखने और चुप रहने और मुसलमानों के हितों की रक्षा करने का आदेश दिया गया था, यह भी कहा गया है कि सुलैम की किताब के एक उद्धरण के अनुसार, उमर बिन खत्ताब की कार्रवाई के बाद, अली (अ) ने हमला किया और उसे नीचे गिरा दिया, लेकिन उमर ने दूसरों से मदद मांगी और उन्होंने अली (अ) को बंदी बना लिया। सुन्नी लेखकों ने इमाम अली (अ) और हज़रत ज़हरा (अ) के बीच तीन ख़लीफ़ाओं के साथ सकारात्मक संबंधों के मामलों को उनकी शहादत को अस्वीकार करने के सबूत के रूप में माना है; लेकिन शिया लेखकों के अनुसार अली (अ) के साथ ख़लीफ़ाओं का परामर्श उनके साथ उनके सहयोग और सहानुभूति का प्रमाण नहीं है, क्योंकि धर्म के अहकाम के बारे में मार्गदर्शन हर विद्वान के लिए अनिवार्य है। इसके अलावा, ख़लीफ़ाओं ने अली (अ) को अलग-थलग कर दिया था और मुश्किल मामलों में उनसे सलाह लेते थे, ऐसा नहीं था कि वह उनके सलाहकार थे। इसके अलावा, शियों ने इमाम अली (अ) की बेटी उम्मे कुलसुम का उमर इब्ने ख़त्ताब के साथ विवाह के बारे में कहा है कि यह विवाह जबरन कराया गया था और यह इमाम अली (अ) और ख़लीफ़ाओं के बीच घनिष्ठ संबंध का संकेत नहीं हो सकता है।

विषय का महत्व

फ़ातिमा ज़हरा (स) की शहादत से अर्थात पैग़म्बर (स) की बेटी फ़ातिमा की स्वाभाविक मृत्यु, मृत्यु का कारण नहीं, बल्कि पैग़म्बर (स) के कुछ सहाबा द्वारा लगी चोटों के परिणामस्वरूप हुई। फ़ातिमा (स) की शहादत या स्वाभाविक मृत्यु का मुद्दा शियों और सुन्नियों के बीच विवाद के मुद्दों में से एक है।[१] शिया, इस्लाम के पैग़म्बर की मृत्यु के बाद की घटनाओं के वर्णन में कुछ मतभेदों के बावजूद, अक्सर मानते हैं कि फ़ातिमा ज़हरा (स) शहीद हुई और वे इस घटना को उनके पहलू पर आघात और उनके गर्भपात का परिणाम मानते हैं दूसरी ओर, सुन्नियों का मानना है कि ईश्वर के रसूल (स) की मृत्यु के बाद बीमारी और परेशानी के कारण उनकी स्वाभाविक मृत्यु हुई।[२]

हर साल, शिया लोग हज़रत ज़हरा (स) की शहादत पर शोक मनाते हैं, जिन्हें अय्यामे फ़ातमिया के रूप में जाना जाता है।[३] इस अवसर पर, जमादी अल सानी का तीसरा दिन, जो अधिक प्रसिद्ध हदीस के अनुसार फ़ातिमा (स) की शहादत का दिन था[४] ईरान में एक आधिकारिक अवकाश है।[५] और सड़कों पर शोक समूह मौजूद होते हैं।[६] चूंकि शिया फ़ातिमा (स) की शहादत का मुख्य कारण उमर बिन खत्ताब को मानते हैं, इसलिए अपनी शोक सभाओं में उसकी निंदा करते हैं[७] और कुछ लोग उसे शाप (लानत) देते हैं। यह बिंदु शियों और सुन्नियों के बीच असहमति के क्षेत्रों में से एक है।[८] यहां तक कि हज़रत फ़ातिमा (स) के शहादत का विषय कारण बना कि कुछ शिया 9वीं रबीअ अव्वल को एक कथन के अनुसार उमर बिन ख़त्ताब की हत्या का दिन मानते हैं इस दिन को ईदे ज़हरा के रुप में मानते हैं और इस दिन शिया खुशियां भी मनाते हैं।[९]

इतिहास

फ़ातिमा ज़हरा (स) की शहादत या प स्वाभाविक मृत्यु के मुद्दे पर विवाद एक लंबा विवाद है; कुछ शोधकर्ताओं के अनुसार, दूसरी शताब्दी हिजरी के ज़र्रार बिन अम्र द्वारा लिखित पुस्तक "अल-तहरीश" में लिखा है कि शियों का मानना है कि फ़ातिमा (स) की मृत्यु उमर बिन खत्ताब के आघात से हुई थी।[१०] इसके अलावा दूसरी शताब्दी के धर्मशास्त्री अब्दुल्लाह बिन यज़ीद फ़ज़ारी ने "किताब अल-रदूद" में शिया एतेक़ाद का, फ़ातिमा को कुछ सहाबा द्वारा नुकसान और गर्भपात का उल्लेख किया है।[११] मुहम्मद हुसैन काशिफ़ अल ग़ेता (मृत्यु 1373 हिजरी) के अनुसार, दूसरी और तीसरी शताब्दी हिजरी के शिया कवियों जैसे कोमित असदी, सय्यद हिमयरी और देबल खोज़ाई ने फ़ातिमा पर हुए उत्पीड़न को अपने कविता (नज़म) में जगह प्रदान की हैं।[१२]

प्रसिद्ध सुन्नी संप्रदायिक (फ़िरक़ा शनास) अब्दुल करीम शहरिस्तानी (मृत्यु 548 हिजरी) के अनुसार, इब्राहीम बिन सय्यार जिन्हें नज़म मोतज़ेली (मृत्यु 221 हिजरी) के नाम से जाना जाता है, का मानना था कि उमर के आघात के कारण फ़ातिमा (स) के गर्भ में भ्रूण का गर्भपात हो गया था।[१३] शहरिस्तानी के अनुसार, इस विश्वास (अक़ीदे) और मोतज़ेली प्रणाली की कुछ अन्य मान्यताओं ने उन्हें अपने अनुयायियों से दूर कर दिया।[१४] क़ाज़ी अब्दुल जब्बार मोतज़ेली (मृत्यु 415 हिजरी) ने अपनी पुस्तक "तस्बीते दलाएल अल नबूवत" में शियों की इस मान्यता का उल्लेख किया है कि फ़ातिमा को नुक़सान पहुँचाया गया था जिसके कारण उनके भ्रूण का गर्भपात हुआ उन्होंने मिस्र, बग़दाद और सीरिया के कुछ क्षेत्रों में अपने कुछ समकालीन शिया विद्वानों का उल्लेख किया जो फ़ातिमा और उसके बेटे मोहसिन के लिए शोक मनाते हैं और रोते हैं।[१५] सुन्नियों की किताबों में, जो लोग हज़रत ज़हरा (स) की शहादत में विश्वास करते थे, उन्हें राफ़ेज़ी कहा जाता था।[१६]

विवाद की जड़

फ़ातिमा (स) की शहादत के मुद्दे पर विवाद की जड़ यह है कि फ़ातिमा की मृत्यु पैग़म्बर (स) की मृत्यु के तुरंत बाद और पैग़म्बर मुहम्मद (स) के उत्तराधिकार पर संघर्ष के बीच हुई थी। प्रवासियों (मुहाजेरीन) और अंसार के एक समूह ने सकीफ़ा बनी साईदा में अबू बक्र के प्रति निष्ठा की प्रतिज्ञा करने के बाद, सहाबा के एक समूह ने खिलाफ़त और अली इब्ने अबी तालिब के उत्तराधिकार के लिए पैग़म्बर के आदेशों के मद्देनज़र अबू बक्र के प्रति निष्ठा की प्रतिज्ञा करने से इनकार कर दिया। इस कारण से, अबू बक्र के आदेश पर, उमर बिन खत्ताब, कुछ अन्य लोगों के साथ, निष्ठा मांगने के लिए अली के घर के दरवाज़े पर गए, और उमर ने निष्ठा की प्रतिज्ञा नहीं करने पर घर को उसके निवासियों सहित जलाने की धमकी दी।[१७] इसी समय, अबू बक्र के एजेंटों द्वारा फ़दक को ज़ब्त करने के विरोध में, फ़ातिमा (स) ने उनसे फ़दक और एक बैठक की मांग की[१८] और ख़लीफा द्वारा फ़दक को वापस करने से इनकार करने के बाद, उन्होंने मदीना की मस्जिद में विरोध उपदेश दिया।[१९]

शिया सूत्र इस बात पर लगभग एकमत हैं कि मोहसिन फ़ातिमा के भ्रूण का गर्भपात उनके घर पर हमले के कारण हुआ था[२०] और कुछ सुन्नी स्रोतों के अनुसार वह जीवित पैदा हुआ और बचपन में ही मृत्यु हो गई।[२१] हालांकि, इब्ने अबी अल-हदीद मोतज़ेली नहजुल बलाग़ा के टिप्पणीकार (मृत्यु 656 हिजरी), ने अपने शिक्षक अबू जाफ़र नक़ीब के साथ एक बहस में, अली (अ) के प्रति निष्ठा की प्रतिज्ञा के दौरान मोहसिन के गर्भपात का उल्लेख किया है।[२२] इसके अलावा, इस विश्वास (अक़ीदे) का श्रेय इब्राहीम बिन सय्यार को भी दिया है जिन्हें नज़म मोतज़ेली (मृत्यु 221 हिजरी) के नाम से जाना जाता है।[२३]

कई रिपोर्टों के अनुसार, फ़ातिमा (स) को रात में दफ़नाया गया था।[२४] 15वीं शताब्दी के इतिहासकार यूसुफ़ी ग़र्वी के अनुसार, यह रात का दफ़न फ़ातिमा ज़हरा (स) की वसीयत के अनुसार था;[२५] क्योंकि जैसा कि कई हदीसों में कहा गया है,[२६] फ़ातिमा उन्हें यह पसंद नहीं था कि जिन लोगों ने उन पर अत्याचार किया था वे उनके अंतिम संस्कार में शामिल हों।

शहादत को साबित करने के लिए शियों के स्रोत और कारण

शिया इमाम काज़िम (अ) की एक रिवायत का हवाला देकर जिसमें फ़ातिमा ज़हरा (स) को सिद्दीक़ा शहीदा कहा गया है उन्हें शहीद मानते हैं।[२७] दलाएल अल इमामा में तबारी ने भी इमाम सादिक़ (अ) से एक हदीस का उल्लेख किया है कि फ़ातिमा ज़हरा (अ) की शहादत का कारण उन पर हुए आघात (अत्याचार) से भ्रूण के गर्भपात को माना है।[२८] इस हदीस के अनुसार, यह आघात उमर के ग़ुलाम द्वारा उमर के आदेश पर किया गया था।[२९] नहजुल बलाग़ा में वर्णित एक अन्य हदीस के अनुसार, इमाम अली (अ) ने फ़ातिमा पर अत्याचार करने के लिए उम्मत की सभा के बारे में बात की है।[३०]

मिर्ज़ा जवाद तबरेज़ी, पंद्रहवीं शताब्दी हिजरी के शिया मराजे ए तक़लीद में से एक ने, फ़ातिमा (स) को दफ़नाते समय इमाम अली (अ) के शब्द, इमाम काज़िम (अ) की हदीस, इमाम सादिक़ (अ) की हदीस दलाएल अल इमामा में, फ़ातिमा (स) की क़ब्र की गोपनीयता और उन्हें रात में दफ़नाने की वसीयत को शहादत के सबूतों में से एक माना है।[३१]

शिया स्रोत

15वीं शताब्दी हिजरी के लेखक अब्दुल ज़हरा महदी द्वारा लिखित किताब अल हुजूम में 150 से अधिक शिया कथावाचकों और लेखकों के 260 हदीसों और ऐतिहासिक उद्धरण एकत्र किए गए हैं, जिनमें से प्रत्येक में फ़ातिमा ज़हरा (स) की शहादत के कारणों के कुछ हिस्सों का उल्लेख किया गया है। जैसे फ़ातिमा के घर पर हमला करना, उसके भ्रूण का गर्भपात होना, उसे थप्पड़ मारना और कोड़े मारना।[३२] शिया लेखकों द्वारा उद्धृत सबसे पुराना स्रोत सुलैम बिन क़ैस की किताब है, जिनकी मृत्यु 90 हिजरी में हुई थी।[३३] किताब तल्ख़ीस अल शाफ़ी में शेख़ तूसी (मृत्यु 460 हिजरी) के अनुसार, शिया इस बात से असहमत नहीं हैं कि उमर ने फ़ातिमा (स) को पेट पर प्रहार किया, जिससे उसके बच्चे का गर्भपात हो गया[३४] और इस संबंध में शिया की हदीसें मुस्तफ़ीज़ हैं।[३५]

सुन्नी स्रोतों से शियों का उद्धरण

फ़ातिमा ज़हरा (स) की शहादत की कुछ घटनाओं को साबित करने के लिए, शियों ने हदीस और ऐतिहासिक और यहां तक कि सुन्नी न्यायशास्त्र पुस्तकों से कई स्रोतों का हवाला दिया है; उदाहरण के तौर पर, अल हुजूम अला बैते फ़ातिमा पुस्तक में 84 कथावाचकों और लेखकों को सूचीबद्ध करके फ़ातिमा के घर पर हमले के बारे में सुन्नी किताबों में दर्ज रिपोर्टों के संग्रह को संकलित करने का प्रयास किया गया है।[३६] इस सूची में सबसे पुराना स्रोत है मूसा बिन उक़्बा (मृत्यु 141 हिजरी) द्वारा लिखित अल-मग़ाज़ी नामक पुस्तक है।[३७]

हुसैन ग़ैब ग़ुलामी (जन्म 1338 शम्सी) ने भी किताब एहराक़ो बैते फ़ातिमा फ़िल कुतुब अल मोतबर इन्दा अहसिस्सुन्ना में सुन्नी किताबों और कथावाचकों से 20 से अधिक हदीसों को एकत्र किया है।[३८] इस पुस्तक में प्रथम हदीस किताब अल मुसनफ़ इब्ने अबी शैबा (मृत्यु 235 हिजरी)[३९] से और इस पुस्तक की अंतिम हदीस किताब कंज़ुल उम्माल लेखक मुत्तक़ी हिंदी (मृत्यु 977 हिजरी) से ली गई है।[४०] इसके अलावा, "शहादते मादरम ज़हरा अफ़साने नीस्त" नामक पुस्तक में, फ़ातिमा के घर पर हमले की घटना को 18 सुन्नी किताबों से वर्णित किया है।[४१] इन स्रोतों ने इमाम अली से निष्ठा की प्रतिज्ञा लेने की कोशिश करने और निष्ठा की प्रतिज्ञा के दिन उनके घर को जलाने की धमकी देने की घटना को अलग-अलग शब्दों में और कई आख्यानों से वर्णित किया गया है।[४२]

घटना के बारे में कुछ प्रश्न

कई लेखकों और शोधकर्ताओं ने, ऐतिहासिक प्रश्न और समस्याएं उठाकर, इमाम अली (अ) और फ़ातिमा (स) के घर को जलाने की हदीस की सटीकता को नुक़सान पहुंचाया है; उदाहरण के लिए, उस समय मदीना में घरों में दरवाज़े नहीं होते थे, या इस तथ्य पर सवाल उठाया गया है कि अली (अ) और अन्य लोगों ने फ़ातिमा (स) का बचाव नहीं किया, या उन्होंन फ़ातिमा ज़हरा (स) के गर्भपात पर संदेह किया है। इन आपत्तियों के विरुद्ध, इतिहासकारों और शोधकर्ताओं द्वारा उत्तर दिए गए हैं, जिनमें सय्यद जाफ़र मुर्तज़ा आमोली (मृत्यु 1441 हिजरी) भी शामिल हैं।[४३]

क्या मदीना में घर बिना दरवाज़ों के थे?

कुछ लोगों ने कहा है कि मदीना में उस समय घरों में दरवाज़े नहीं होते थे[४४] और निष्कर्ष निकाला है कि इसलिए फ़ातिमा के घर के दरवाज़े को जलाने की घटना सही नहीं हो सकती है। दूसरी ओर, जाफ़र मुर्तज़ा ने अपनी पुस्तक "मासातुज़ ज़हरा" में सूत्रों का उल्लेख किया है जिसके अनुसार घरों में दरवाज़ा होना आम बात थी और फ़ातिमा के घर में भी दरवाज़ा था।[४५]

अली और अन्य लोगों ने बचाव क्यों नहीं किया?

फ़ातिमा (स) के घर पर हमले और उनकी शहादत के बारे में एक सवाल यह है कि बहादुरी (शुजाअत) के लिए जाने जाने वाले अली (स) और उनके अन्य साथी इस कार्य पर चुप क्यों रहे और उन्होंने फ़ातिमा का बचाव क्यों नहीं किया?[४६] सुन्नियों के अलावा, 14वीं शताब्दी हिजरी में मरज ए तक़लीद शिया मुहम्मद हुसैन काशिफ़ अल ग़ेता ने भी ऐसा प्रश्न उठाया है।[४७] इस बिंदु पर शियों का मुख्य उत्तर यह है कि अली (अ) को इस्लाम के पैग़म्बर (स) के आदेश से धैर्य रखने और चुप रहने और इस्लाम के हितों की रक्षा करने का आदेश दिया गया था।[४८] कवियों की कविताओं में, पैग़म्बर के साथ पवित्र पैग़म्बर के वादे और उनके बाद धैर्य रखने के उनके आदेश का उल्लेख किया गया है। सय्यद रज़ा हिंदी ने अपने प्रसिद्ध क़सीदे (क़सीदे राईया) के कुछ बैत में कहा है।

لو لم تُؤمَر بالصبر و کظم

الغیظ ولَیْتَک لم تؤمر

ما نال الامرَ اخوتیم

و لا تناوله منه حبتر

(अनुवाद: यदि आपको धैर्य रखने और क्रोध और ग़ुस्से पर क़ाबू रखने का आदेश नहीं दिया गया होता! और आपको नियुक्त नहीं किया गया होता! अबू तीम (अबू बक्र) लोगों और ख़लीफ़त पर गवर्नरशिप (वेलायत) प्राप्त नहीं कर पाता और उसके बाद हबतर (उमर) भी ख़िलाफ़त प्राप्त नहीं कर पाता।)[४९]

इस तथ्य के अलावा कि सुलैम की किताब (जिसे यूसुफ़ी ग़र्वी इस घटना का सबसे मज़बूत और सबसे पुराना वर्णन मानते हैं), में सलमान फ़ारसी के वर्णन के अनुसार फ़ातिमा पर उमर के हमले के बाद अली (अ) ने उमर पर हमला किया और उसे ज़मीन पर गिरा दिया; मानो वह उसे मार डालना चाहते हों और फिर उन्होंने उससे कहा कि यदि ईश्वर के रसूल का वचन मेरे साथ न होता, तो तुम्हें पता होता कि तुम मेरे घर में प्रवेश नहीं कर सकते थे। इस समय, उमर ने दूसरों से सहायता मांगी और उनके साथी दौड़कर आए, अली (अ) को उससे अलग किया और उन्हें बंदी बना लिया।[५०]

मोहसिन के गर्भपात पर संदेह

सुन्नी लेखकों के एक समूह ने निष्ठा दिवस (रोज़े बैअत) की घटना में मोहसिन बिन अली (अ) के गर्भपात की घटना पर संदेह किया है, उनका मानना है कि उनका जन्म इस दिन से पहले हुआ था और बचपन में ही उनकी मृत्यु हो गई थी।[५१] लेकिन अधिकांश शियों का मानना है कि अली (अ) के घर पर हमले के दौरान उन पर प्रहार के कारण गर्भपात हो गया था[५२] जैसा कि कुछ सुन्नी स्रोतों ने मोहसिन के गर्भपात या गर्भपात के बारे में भी बताया है।[५३] किताब अल मोहसिन अल सिब्त मौलूद अम सिक़्त के लेखक पुस्तक के तीसरे अध्याय में ऐतिहासिक ग्रंथों के तुलनात्मक अध्ययन के माध्यम से, यह निष्कर्ष निकाला है कि मोहसिन बिन अली (अ) का गर्भपात अली के घर पर हमले के दिन हुआ था और फ़ातिमा (स) पर पड़े प्रभाव और दबाव के कारण हुआ था।[५४]

ऐतिहासिक स्रोतों में घर जलाने का कोई उल्लेख नहीं है

हज़रत ज़हरा (स) की शहादत के संबंध में प्रश्नों और अस्पष्टताओं में से एक यह है कि कई सुन्नी ऐतिहासिक और हदीस पुस्तकों में जो उल्लेख किया गया है वह केवल घर को जलाने की धमकी थी और यह निर्दिष्ट नहीं किया गया था कि यह वास्तव में हुआ था।[५५] इस अवस्था में कई संग्रहों के शोधकर्ताओं ने ऐसे स्रोत एकत्र किए हैं जो हमले की घटना को सिद्ध करते हैं; इनमें किताब अल हुजूम अला बैते फ़ातिमा,[५६] और किताब एहराक़ बैते फ़ातिमा शामिल हैं।[५७] इनमें से कुछ स्रोतों में फ़ातिमा (स) को मारने और घर में घुसने और गर्भपात होने के बारे में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है।[५८]

सुन्नी लेखकों के एक समूह ने इन ऐतिहासिक हदीसों की प्रामाणिकता (एसालते सनद) पर संदेह किया है।[५९] हालाँकि, कुछ मामलों में, उनके रूपों में कोई दस्तावेज़ी पहलू नहीं होता है; उदाहरण के लिए, फ़ातिमा बिन्ते अल-नबी के अल-मुदैहश सुन्नी (वहाबी) लेखक, हमले की घटना और गर्भपात की घटना को अस्वीकार करने के लिए, तारीख़े याक़ूबी के वर्णन को इस औचित्य के साथ छोड़ देते हैं कि इसके लेखक राफ़ेज़ी हैं और उनकी किताब का कोई वैज्ञानिक मूल्य नहीं है,[६०] साथ ही, उन्होंने किताब अल-अक़द अल-फ़रीद में इब्ने अब्दे रब्बे के वर्णन को बिना किसी सबूत के एक नकारात्मक वर्णन के रूप में वर्णित किया है, और कहा है कि शायद वह भी शिया है, और इस बिंदु की जांच की जानी चाहिए।[६१] उन्होंने अल-इमामा वा अल-सियासा के वर्णन को भी इस कारण से खारिज कर दिया है कि इस किताब के लेखक इब्ने क़ुतैबा दीनवरी नहीं हैं।[६२] मुदैहश ने इमाम अली (अ) के शब्दों को इंकार करने के लिए नहजुल बलाग़ा को उनकी तरफ़ मंसूब होने से इंकार किया है।[६३] हालाँकि, सुन्नी लेखकों ने धमकियों के बारे में वर्णित कई रवायतों के कारण अली (अ) और फ़ातिमा (स) के घर के सामने धमकियों और इकट्ठा होने की असल से इनकार नहीं किया है।[६४]

प्राचीन स्रोतों में वफ़ात की व्याख्या

फ़ातिमा ज़हरा (स) की शहादत के विरोधियों का एक कारण यह है कि पुराने शिया स्रोतों में उनकी मृत्यु के लिए “वफ़ात” की व्याख्या का उपयोग किया गया है, न कि शहादत की व्याख्या का। शिया लेखकों के एक समूह ने उत्तर दिया है कि अरबी में “वफ़ात” का अर्थ एक सामान्य अवधारणा है जिसमें स्वभाविक मृत्यु और अन्य कारकों के कारण मृत्यु, जैसे दूसरों द्वारा ज़हर दिया जाना, दोनों शामिल हैं। उदाहरण के लिए, लेख "शहादत या वफ़ाते हज़रत ज़हरा (स)" में इनमें से कुछ उपयोगों का उल्लेख किया गया है; उदाहरण के लिए, कुछ सुन्नी ऐतिहासिक स्रोतों ने उमर और उस्मान की मृत्यु का उल्लेख करने के लिए वफ़ात की अभिव्यक्ति का उपयोग किया है, जबकि वे दोनों मारे गए थे।[६५] जैसा कि तबरसी ने इमाम हुसैन (अ) की शहादत को संदर्भित करने के लिए वफ़ात की अभिव्यक्ति का उपयोग किया है।[६६]

इमाम अली (अ) के ख़लीफ़ाओं के साथ अच्छे संबंध

सुन्नियों द्वारा फ़ातिमा ज़हरा (स) की शहादत को नकारने का एक कारण ख़लीफ़ाओं और इमाम अली (अ) और उनके परिवार के बीच घनिष्ठ संबंधों पर भरोसा करना है। विस्तृत पुस्तक "फ़ातिमा बिन्ते अल-नबी" में लेखक ने यह दिखाने की कोशिश की है कि पहले और दूसरे खलीफ़ाओं को फ़ातिमा ज़हरा (स) से बहुत प्यार था,[६७] लेकिन इन सबके बावजूद, लेखक ने निष्कर्ष में कहा है फ़दक की घटना के बाद, फ़ातिमा अबू बक्र ने संचार बंद कर दिया और उसके प्रति निष्ठा की प्रतिज्ञा भी नहीं की।[६८] सुन्नी लेखकों में से एक मुहम्मद नाफ़ेअ ने "रहमा बैनहुम" नामक एक पुस्तक लिखी और इसमें उन्होंने यह दिखाने की कोशिश की कि तीन ख़लीफ़ाओं के अली के साथ अच्छे संबंध थे।[६९] इसके अलावा, फ़सलनामे नेदा ए इस्लाम के एक लेख में, लेखक ने खलीफ़ाओं और इमाम अली (अ) के बीच संबंधों के साथ-साथ उनकी पत्नियों और बेटियों और फ़ातिमा (स) के बीच संबंधों के मामलों का हवाला देकर प्रयास किया है कि यह संबंध फ़ातिमा का अपमान करने और उन पर प्रहार करने के अनुकूल नहीं है।[७०] शिया धर्मशास्त्री सय्यद मुर्तज़ा (मृत्यु 436 हिजरी) के अनुसार, यह तथ्य कि इमाम अली (अ) ने खलीफ़ाओं से परामर्श किया था, उनके साथ उनके सहयोग के आधार के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है, क्योंकि ईश्वरीय आदेशों (अहकामे एलाही) और मुसलमानों की रक्षा के बारे में मार्गदर्शन हर विद्वान के लिए अनिवार्य है।[७१] इसके अलावा, "दानिशनामे रवाबिते सयासी हज़रत अली (अ) बा ख़ोलफ़ा" पुस्तक के लेखक तीन खलीफ़ाओं के साथ इमाम अली (अ) के परामर्श के 107 मामलों की जांच करने के बाद इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि ख़लीफ़ाओं का इमाम अली (अ) से परामर्श करना ख़लीफ़ाओं के साथ उनकी सहानुभूति और सहमति का संकेत नहीं है, क्योंकि इनमें से अधिकांश परामर्श जनता की राय में हुए थे, न कि ख़लीफ़ाओं ने अली (अ) को अपना मंत्री और सलाहकार बनाया था बल्कि, अली राजनीतिक अलगाव में खेती और कुएँ खोदने में लगे हुए थे। इसके अलावा, अगर ख़लीफ़ा कुछ मामलों में अली (अ) से सलाह लेते थे, तो यह आवश्यकता और मुश्किल के समाधान के कारण था।[७२]

दूसरे ख़लीफ़ा के साथ इमाम अली की बेटी उम्मे कुलसुम का विवाह, अहले बैत के लिए उमर की दोस्ती और प्यार को साबित करने के लिए इस्तेमाल किए गए अन्य उदाहरणों में से एक है, जो फ़ातिमा (स) की शहादत में उनकी भागीदारी का खंडन करती है।[७३] कुछ लेखक इस विवाह की घटना से इनकार करते हैं।[७४] सय्यद मुर्तज़ा इसे ज़बरदस्ती और धमकी के तहत मानते हैं,[७५] जो इस मामले में दो लोगों के बीच घनिष्ठ संबंध का संकेत नहीं दे सकता है।[७६] इमाम सादिक़ (अ) की एक रिवायत में भी इस विवाह में ज़बरदस्ती की पुष्टि के लिए "ग़सब" शब्द का प्रयोग किया गया है।[७७]

अहले-बैत के बच्चों का नामकरण ख़ोल्फ़ा के नाम से करना

सुन्नियों का एक समूह इस बात पर ज़ोर देता है कि चूँकि इमाम अली (अ) ने अपने बच्चों को ख़लीफ़ाओं का नाम दिया था, अर्थात उन्हें ख़लीफ़ाओं से प्यार था[७८] और यह हज़रत ज़हरा (स) की शहादत के दावे के अनुरूप नहीं है। इस मामले का उल्लेख "असअला क़ादत शबाब अल-शिया एलल हक़" (शिया युवाओं को सच्चाई की ओर ले जाने वाले प्रश्न) नामक पुस्तिका में भी किया गया है।[७९] क्योंकि ये नाम खलीफ़ाओं से पहले और बाद में प्रचलित थे</ref>

सय्यद अली शहरिस्तानी (जन्म 1337) ने अल तस्मीयात बैना अल तसामोह अल अलवी व अल तौज़ीफ़ अल अमवी नामक पुस्तक में इस्लाम के आरम्भ से लेकर अगली शताब्दियों तक के नामों का विस्तृत विश्लेषण प्रस्तुत किया है, और 29 मुख्य बिंदु बताते हुए उन्होंने निष्कर्ष निकाला है कि इस प्रकार का नामकरण लोगों के बीच अच्छे संबंध का संकेत नहीं दे सकता है, जैसे नामकरण नहीं करना दुश्मनी का संकेत नहीं हो सकता है;[८०] इस लिए की यह नाम ख़ोल्फ़ा से पहले भी प्रचलित थे।[८१] दूसरी ओर, दूसरे ख़लीफ़ा की एक रवायत के अनुसार, इमाम अली (अ) उसे झूठा और गद्दार मानते थे।[८२] या कि अबू बक्र सैद्धांतिक रूप से किसी विशेष व्यक्ति का नाम नहीं है और एक उपाधि है, और कोई भी अपने बच्चे के नाम के रूप में उपाधि नहीं चुनता है।[८३]

प्रसिद्ध सुन्नी विद्वान इब्ने तैमिया हररानी (मृत्यु 728 हिजरी) का भी मानना है कि किसी का नाम किसी के नाम पर रखना उसके प्रति प्रेम का प्रमाण नहीं है; जैसा कि पैग़म्बर (स) और उनके सहाबा काफ़िरों के नामों का इस्तेमाल करते थे।[८४] सय्यद अली शहरिस्तानी के अनुसार, दो अन्य ग्रंथ खलीफ़ाओं के नाम के साथ इमामों के बच्चों के नामकरण के बारे में लिखे गए हैं, एक वहीद बेहबहानी (मृत्यु 1205 हिजरी) द्वारा लिखा गया और दूसरा तुनेकाबुनी (मृत्यु 1302 हिजरी) द्वारा लिखित, क़ेसस अल उल्मा के लेखक हैं।[८५]

इस विषय पर लिखी गई पुस्तकें

हज़रत फ़ातिमा की शहादत के बारे में स्वतंत्र रूप से किताबें लिखी गई हैं, उनमें से कुछ इस प्रकार हैं:

  • मअसातो अल ज़हरा (स), शुबहात व रुदूद, लेखक जाफ़र मुर्तज़ा आमोली (मृत्यु 1441 हिजरी) अरबी भाषा में, इस किताब में लेखक ने फ़ातिमा ज़हरा (स) के दिवंगत जीवन की घटनाओं और उनकी शहादत के बारे में उठाए गए संदेहों का उत्तर देने की कोशिश की है। इस पुस्तक का फ़ारसी में अनुवाद रंजहाए हज़रत ज़हरा (स) शीर्षक के साथ किया गया है।
  • किताब अल हुजूम, अब्दे अल-ज़हरा महदी द्वारा लिखित, 15वीं शताब्दी के लेखक, 150 से अधिक शिया कथावाचकों और लेखकों के 260 हदीसों और ऐतिहासिक कथन एकत्र किए गए हैं, उनमें से प्रत्येक में फ़ातिमा ज़हरा (स) की शहादत के कारणों के एक हिस्से उल्लेख किया गया है।[८७]

इसके अलावा, सुन्नी लेखकों ने खलीफ़ाओं और अहले बैत के बीच संबंध दिखाने और हज़रत फ़ातिमा की शहादत को नकारने के उद्देश्य से किताबें लिखी हैं, जिनमें शामिल हैं:

  • फ़ातिमा अल ज़हरा बिन्ते रसूलल्लाह व उम्मुल हसनैन, अब्दुल सत्तार अल शेख़ द्वारा लिखित, यह पुस्तक, जो मुस्लिम हस्तियों के परिचय के एक बड़े संग्रह में से एक है, हज़रत फ़ातिमा अल-ज़हरा (स) के जीवन को समर्पित है। इस पुस्तक में लेखक ने निष्ठा दिवस (रोज़े बैअत) की प्रतिज्ञा और फ़ातिमा के घर को जलाने की घटनाओं का उल्लेख नहीं किया है। इस पुस्तक में, मीरास अल नबी (स) के शीर्षक के तहत फ़दक की घटना के बारे में विवाद का उल्लेख किया गया है, और लेखक का निष्कर्ष यह है कि फ़ातिमा और अबू बक्र के बीच फ़दक के बारे में कोई विवाद नहीं था[८८] और यहां तक कि इस बात का भी कोई सबूत नहीं है कि फ़ातिमा ज़हरा (स) पहले और दूसरे ख़लीफ़ा से नाराज़ थीं और फातिमा ने अयादत के दिन उनसे बात नहीं की थी, यह कथावाचक की मानसिकता का निर्माण है।[८९] लेखक के अनुसार, यह कहानी शिया विद्वानों द्वारा बनाई गई है।[९०]
  • बैना अल ज़हरा व अल सिद्दीक़ हक़ीक़त व तहक़ीक़, बद्र अल इमरानी द्वार लिखित, यह 2014 में प्रकाशित हुई और इसका विषय अबू बक्र प्रथम ख़लीफ़ा और फ़ातिमा (स) के बीच संबंध है।[९१]
  • देफ़ाअन अनिल आल व अल असहाब, इस पुस्तक का कोई विशिष्ट लेखक नहीं है और इसे बहरैन में वर्ष 1431 हिजरी में जमिअतुल आल वल असहाब द्वारा एक हज़ार से अधिक पृष्ठों में प्रकाशित किया गया था।[९२] इस पुस्तक का विषय पूर्ण रुप से सुन्नियों की मान्यताओं के संबंध में आलोचनाओं और संदेहों का उत्तर है। इस पुस्तक के कुछ भाग हज़रत ज़हरा (स) की शहादत को समर्पित हैं।[९३]

फ़ुटनोट

  1. महदी, अल-हुजूम, 1425 हिजरी, पृष्ठ 14।
  2. अल-मुदैहश, फ़ातिमा बिन्ते अल-नबी, 1440 हिजरी, खंड 3, पृ. 431-550 को देखें।
  3. मज़ाहेरी, फ़र्हनहे सोगे शिया, 1395 शम्सी, पृष्ठ 365।
  4. शुबैरी, "शहादते फ़ातिमा (स)", खंड 1, पृष्ठ 347।
  5. "हज़रत ज़हरा की शहादत दिवस के समापन की कहानी", आफ़ताब न्यूज़ वेबसाइट।
  6. उदाहरण के लिए देखें, "फ़ातेमिया मुक़द्देसा ज़ंजान के शोक समूह का आंदोलन"; फ़ार्स समाचार एजेंसी की वेबसाइट "फ़ातेमिया की उपस्थिति में महान शोक समारोह...", शफ़क़ना समाचार एजेंसी की वेबसाइट।
  7. मज़ाहेरी, फ़र्हनगे शिया, 1395 शम्सी, पृष्ठ 366।
  8. मेहर समाचार एजेंसी की वेबसाइट, "सुन्नियों की पवित्रताओं के अपमान के बारे में मराजे ए तक़लीद की राय"।
  9. मसाएली, 9वीं रबीअ अव्वल, जेहालतहा, ख़सारतहा, 1387 शम्सी, पृष्ठ 117-117।
  10. "क्या हज़रत ज़हरा (स) की शहादत और उत्पीड़न का कोई ऐतिहासिक रिकॉर्ड है?", वली अस्र अनुसंधान वेबसाइट।
  11. सलीमी, Early Ibadi Theology: New Material on Rational Thought in Islam from the Pen of al-Fazārī, page 33।
  12. काशिफ़ अल ग़ेता, जन्नतुल मावा, 1429 हिजरी, पृष्ठ 62।
  13. शहरिस्तानी, अल मेलल व अल-नेहल, 1364 शम्सी, खंड 1, पृष्ठ 71।
  14. शहरिस्तानी, अल मेलल व अल-नेहल, 1364 शम्सी, खंड 1, पृष्ठ 71।
  15. क़ाज़ी अब्दुल जब्बार, तसबीत दलाएल अल-नोबूवा, 2006 ईस्वी, खंड 2, पृष्ठ 595।
  16. देखें सफ़दी, अल-वाफ़ी बिल वफ़ियात, 1420 हिजरी, खंड 6, पृष्ठ 15; ज़हबी, "सैर अल आलाम अल-नबेला", 1405 हिजरी, खंड 15, पृष्ठ 578; इब्ने हजर असक्लानी, लेसान अल-मीज़ान, 2002 ईस्वी, खंड 1, पृष्ठ 609।
  17. तबरी, तारीखे अल उम्म व अल मुलूक, 1387 हिजरी, खंड 3, पृष्ठ 202; इब्ने अब्दे रब्बे, अल-अक़द अल-फ़रीद, 1407 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 13।
  18. बलाज़री, फ़ोतूह अल-बुल्दान, 1956 ईस्वी, पृष्ठ 40 और 41।
  19. शहिदी, ज़िन्देगानी ए फ़ातिमा ज़हरा (स), 1362 शम्सी, पृष्ठ 126-135।
  20. अल्लाह अकबरी, "मोहसिन बिन अली", पृष्ठ 68-72. उदाहरण के लिए देखें, मोक़द्दस अर्दबेली, उसूल दीन, 1387 शम्सी, पृष्ठ 113-114; मुफ़ीद, अल इख़्तेसास, 1413 हिजरी, पृष्ठ 185।
  21. इब्ने क़ुतैबा दीनवरी, अल-मआरिफ़, 1960 ईस्वी, पृष्ठ 211।
  22. इब्ने अबी अल-हदीद, शरहे नहजुल बलाग़ा, 1404 हिजरी, खंड 14, पृष्ठ 192-193।
  23. शहरिस्तानी, अल मेलम व अल नेहल, 1364 शम्सी, खंड 1, पृष्ठ 71।
  24. यूसुफ़ी ग़र्वी, मौसूआ अल-तारीख़ अल-इस्लामी, 1438 हिजरी, खंड 4, पृष्ठ 157-162।
  25. यूसुफ़ी ग़र्वी, मौसूआ अल-तारीख़ अल-इस्लामी, 1438 हिजरी, खंड 4, पृष्ठ 144-147।
  26. उदाहरण के लिए देखें, फ़त्ताल निशापुरी, रौज़ा अल-वाएज़ीन, 1375 शम्सी, खंड 1, पृष्ठ 151।
  27. कुलैनी, अल-काफ़ी, 1407 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 458।
  28. तबरी, दलाएल अल-इमामा, 1413 हिजरी, पृष्ठ 134।
  29. तबरी, दलाएल अल-इमामा, 1413 हिजरी, पृष्ठ 134।
  30. नहजुल बलाग़ा, सुब्ही सालेह द्वारा संपादित, पृष्ठ 319, खुत्बा 202।
  31. तबरेज़ी, सेरात अल-नेजात, 1418 हिजरी, खंड 3, पृष्ठ 440-441।
  32. महदी, अल हुजूम, 1425 हिजरी, पृष्ठ 221-356।
  33. महदी, अल हुजूम, 1425 हिजरी, पृष्ठ 221।
  34. तूसी, तल्ख़ीस अल-शाफ़ी, 1382 शम्सी, खंड 3, पृष्ठ 156।
  35. तूसी, तल्ख़ीस अल-शाफ़ी, 1382 शम्सी, खंड 3, पृष्ठ 156।
  36. महदी, अल हुजूम, 1425 हिजरी, पृष्ठ 154-217।
  37. महदी, अल हुजूम, 1425 हिजरी, पृष्ठ 154-155।
  38. ग़ैब ग़ुलामी, इहराक़ बैते फ़ातिमा, 1375 शम्सी।
  39. ग़ैब ग़ुलामी, इहराक़ बैते फ़ातिमा, 1375 शम्सी, पृष्ठ 79।
  40. ग़ैब ग़ुलामी, इहराक़ बैते फ़ातिमा, 1375 शम्सी, पृष्ठ 192।
  41. लेखकों का एक समूह, शहादते मादरम ज़हरा अफ़साने नीस्त, 1388 शम्सी, पृष्ठ 25-32।
  42. लेखकों का एक समूह, शहादते मादरम ज़हरा अफ़साने नीस्त, 1388 शम्सी, पृष्ठ 25-32।
  43. उदाहरण के लिए, देखें: आमोली, मअसात अल-ज़हरा, 1418 हिजरी, खंड 1, पृ. 266-277, खंड 2, पृ. 229-321।
  44. तबसी, हयात अल-सिद्दिक़ा फ़ातिमा, 1381 शम्सी, पृष्ठ 197। पुस्तक के लेखक इस दावे का श्रेय उन लोगों को देते हैं जो इतिहास से परिचित नहीं हैं।
  45. आमोली, मअसात अल-ज़हरा, 1418 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 229-321।
  46. अल-मुदैहश, फ़ातिमा बिन्ते अल-नबी, 1440 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 68-70 और 83।
  47. काशिफ़ अल ग़ेता, जन्नत अल मावा, 1429 हिजरी, पृष्ठ 64; महदी, अल हुजूम, 1425 हिजरी, पृष्ठ 446।
  48. आमोली, मअसात अल-ज़हरा, 1418 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 266-277; महदी, अल हुजूम, 1425 हिजरी, पृष्ठ 446-449 और 452-458; कौसरानी, 12 शुब्हे हौला अल-ज़हरा, पृष्ठ 15-26।
  49. तेहरानी, सय्यद मोहम्मद हुसैन, मकतूबाते ख़त्ती, जुंग 16, पृष्ठ 109।
  50. यूसुफ़ी ग़र्वी, मौसूआ अल-तारीख़ अल-इस्लामी, 1438 हिजरी, खंड 4, पृष्ठ 112।
  51. मोहसिन के बारे में सुन्नी स्रोतों से पूरी रिपोर्ट के लिए देखें: अल-मुदैहश, फ़ातिमा बिन्ते अल-नबी, 1440 हिजरी, खंड 3, पृष्ठ 411-414; अल-मूसावी अल-खोरसान, अल-मोहसिन अल-सिब्त मौलूद उम सिक़्त, 1430 हिजरी, पृष्ठ 105-111।
  52. तूसी, तल्ख़ीस अल-शाफ़ी, 1382 शम्सी, खंड 3, पृष्ठ 156।
  53. अल-मूसावी अल-खोरसान, अल-मोहसिन अल-सिब्त मौलूद उम सिक़्त, 1430 हिजरी, पृष्ठ 119-128।
  54. अल-मूसावी अल-खोरसान, अल-मोहसिन अल-सिब्त मौलूद उम सिक़्त, 1430 हिजरी, पृष्ठ 207।
  55. महदी, अल हुजूम, 1425 हिजरी, पृष्ठ 467; फ़ज़लुल्लाह, अल-ज़हरा अल-क़दवा, 1421 हिजरी, पृष्ठ 109-110।
  56. महदी, अल हुजूम, 1425 हिजरी, पृष्ठ 154-217।
  57. ग़ैब ग़ुलामी, इहराक़ बैते फ़ातिमा, 1375 शम्सी
  58. सुलैम बिन क़ैस, किताब सुलैम बिन क़ैस, 1420 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 150; मसऊदी, इस्बातुल वसीयत, 1384 शम्सी, पृष्ठ 146; तबरी, दलाएल अल-इमामा, 1413 हिजरी, पृष्ठ 134; अय्याशी, तफ़सीरे अल-अय्याशी, 1380 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 67।
  59. उदाहरण के तौर पर देखें, अल-मुदैहश, फ़ातिमा बिन्ते अल-नबी, 1440 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 21-35।
  60. अल-मुदैहश, फ़ातिमा बिन्ते अल-नबी, 1440 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 80।
  61. अल-मुदैहश, फ़ातिमा बिन्ते अल-नबी, 1440 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 63।
  62. अल-मुदैहश, फ़ातिमा बिन्ते अल-नबी, 1440 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 79-80।
  63. अल-मुदैहश, फ़ातिमा बिन्ते अल-नबी, 1440 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 81।
  64. उदाहरण के तौर पर देखें, अल-मुदैहश, फ़ातिमा बिन्ते अल-नबी, 1440 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 21-35।
  65. मोहसेनी देखें, "हज़रत ज़हरा (स) की शहादत या मृत्यु", रासेख़ून साइट।
  66. तबरसी, अल-इहतेजाज, खंड 2, पृष्ठ 373, मोहसेनी द्वारा उद्धृत, "हज़रत ज़हरा (स) की शहादत या मृत्यु", रासेखून वेबसाइट।
  67. अल-मुदैहश, फ़ातिमा बिन्ते अल-नबी, 1440 हिजरी, खंड 4, पृष्ठ 357, अंत तक, और खंड 5, शुरुआत से पृष्ठ 89 तक देखें।
  68. अल-मुदैहश, फ़ातिमा बिन्ते अल-नबी, 1440 हिजरी, खंड 4, पृष्ठ 521-523 को देखें।
  69. "रहमा बैन्हुम", नील और फ़ोरात साइट।
  70. मरजानी, "अली और फ़ातिमा के साथ तीन खलीफाओं का रिश्ता और प्यार", सुन्नी ऑनलाइन साइट।
  71. सय्यद मुर्तज़ा, अल-शाफ़ेई फ़ी अल-इमामा, 1410 हिजरी, खंड 3, पृष्ठ 251।
  72. लबाफ़, दानिशनामे रवाबित सयासी हज़रत अली (अ) बा ख़ोल्फ़ा, 1388 शम्सी, पृष्ठ 73-76।
  73. अल-मुदैहश, फ़ातिमा बिन्ते अल-नबी, 1440 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 54।
  74. अल्लाह अकबरी देखें, "इज़देवाजे उम्मे कुलसुम बा उमर अज़ निगाहे फ़रीक़ैन", पृष्ठ 11-12।
  75. देखें सय्यद मुर्तज़ा, अल-शाफ़ी फ़ी अल-इमामा, 1410 हिजरी, खंड 3, पृष्ठ 272-273।
  76. अल्लाह अकबरी देखें, "इज़देवाजे उम्मे कुलसुम बा उमर अज़ निगाहे फ़रीक़ैन", पृष्ठ 11-12।
  77. कुलैनी, अल-काफी, 1407 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 346, हदीस 1।
  78. हुसैनी, "मुक़द्दमा मुतरजिम", नामे ख़ोल्फ़ा बर फ़रज़न्दाने इमामान, पृष्ठ 11।
  79. शहरिस्तानी, अल तस्मियात, 1431 हिजरी, पृष्ठ 12।
  80. शहरिस्तानी, अल तस्मियात, 1431 हिजरी, पृष्ठ 477-488।
  81. शहरिस्तानी, अल तस्मियात, 1431 हिजरी, पृष्ठ 98-99।
  82. निशापुरी, अल-मुस्नद अल-सहीह, दारुल एह्या अल-तोरास अल-अरबी, खंड 3, पृष्ठ 1377।
  83. शहरिस्तानी, अल तस्मियात, 1431 हिजरी, पृष्ठ 427-472.
  84. इब्ने तैमिया, मिन्हाज अल सुन्नत, 1406 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 41-42।
  85. शहरिस्तानी, अल तस्मियात, 1431 हिजरी, पृष्ठ 14।
  86. "बैत अल-अहज़ान फ़ी ज़िक्र अहवाल सय्यदा निसा अल-आलमीन", पृष्ठ 62-60 देखें।
  87. महदी, अल हुजूम, 1425 हिजरी, पृष्ठ 221-356।
  88. अल-शेख़, फ़ातिमा अल-ज़हरा, दार अल-क़लम, पृष्ठ 299-318।
  89. अल-शेख़, फ़ातिमा अल-ज़हरा, दार अल-क़लम, पृष्ठ 326-319।
  90. अल-शेख़, फ़ातिमा अल-ज़हरा, दार अल-क़लम, पृष्ठ 327।
  91. "बैन अल ज़हरा व अल सिद्दीक़", अल-कतबी साइट।
  92. "इत्तेलाआते किताब देफ़ाअन अनिल आल वल असहाब", अरबी बुकशॉप वेबसाइट।
  93. "इत्तेलाआते किताब देफ़ाअन अनिल आल व अल रसूल", फैसल नूर वेबसाइट।

स्रोत

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  • इब्ने हजर असक्लानी, अहमद बिन अली, लेसान अल-मीज़ान, बेरूत, दार अल-बशाएर अल-इस्लामी, 2002 ईस्वी।
  • इब्ने अब्दे रब्बे, अहमद इब्ने मुहम्मद, अल-अक़द अल-फ़रीद, मुफ़ीद मुहम्मद क़ोमैहा और अब्दुल मजीद तरहीनी का शोध, बेरूत, दारुल किताब अल-इल्मिया, 1407 हिजरी/1987 ई।
  • इब्ने क़ुतैबा दीनवरी, अब्दुल्ला बिन मुस्लिम, अल-मआरिफ़, सिरवत अक्काशे का अनुसंधान, क़ाहिरा, अल-मिस्रिया अल आम्मा लिल-किताब, 1960 ईस्वी।
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  • लेखकों का एक समूह, शहादते मारदरम ज़हरा अफ़साने नीस्त, बी जा, इंतेशाराते अमीर कलाम, 1388 शम्सी।
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  • हुसैनी, सय्यद हादी, "मुक़द्दमा मुतरजिम", दर किताब नामे ख़ोलफ़ा बर फ़रज़नदाने इमामान, सय्यद अली शहरिस्तानी द्वारा लिखित, क़ुम, इंतेशाराते दलीले मा, 1390 शम्सी।
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  • सय्यद मुर्तज़ा, अली बिन हुसैन, अल-शाफ़ी फ़ी अल-इमामा, सय्यद अब्दुल ज़हरा हुसैनी का शोध, तेहरान, मोअस्सास ए अल-सादिक़, दूसरा संस्करण, 1410 हिजरी।
  • शुबैरी, सय्यद मोहम्मद जवाद, "शहादते फ़ातिमा (स)",दानिशनामे फ़ातमी (स), तेहरान, पजोहिशगाह फ़र्हनग व अंदीशे इस्लामी, पहला संस्करण, 1393 शम्सी।
  • शहरिस्तानी, सय्यद अली, अल-तफ़्मियात बैना अल तसामोह अल अलवी व अल-तौज़ीफ़ अल-उमवी, मशहद, मोअस्सास ए अल-राफ़िद, 1431 हिजरी।
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