फ़दक की घटना

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फ़दक के बाग़ का दृष्य

फ़दक की घटना (अरबी: واقعة فدک) पवित्र पैग़म्बर (स) के स्वर्गवास के बाद हुई घटनाओं में से एक है, जिसमें मुसलमानो के पहले खल़ीफ़ा अबू बक्र के आदेश से फ़दक को हज़रत फातिमा (स) से छीन कर राजकोष मे सम्मिलित किया गया। मुसलमानो के पहले ख़लीफ़ा अबू बक्र ने पैगंबर (स) से एक हदीस (जिसके संबंध मे कहा जाता है कि अबू बक्र के अलावा किसी और ने नहीं सुना) का हवाला देते हुए दावा किया कि अम्बिया किसी भी चीज को धरोहर (विरासत) के रूप मे नही छोड़ते। जिस पर हज़रत फ़ातिमा (स) ने कहा कि पैगंबर (स) ने अपने स्वर्गवास से पहले मुझे बख्श़ दिया था। हज़रत ज़हरा (स) ने इमाम अली (अ) और उम्मे अयमन को अपने दावे को साबित करने के लिए गवाह के रूप में पेश किया। शिया और कुछ सुन्नी विद्वानों के अनुसार पैगंबर (स) ने फ़दक हज़रत ज़हरा (स) को उस बख्श दिया था जब "आय ए ज़ुल-क़ुर्बा" नाज़िल हुई और पैगंबर (स) को आदेश दिया गया कि हकदार को उसका हक़ दिया जाए।

कुछ सूत्रों के अनुसार हज़रत ज़हरा (स) की बातचीत को सुनने के बाद अबू बक्र ने फ़दक पर हज़रत ज़हरा (स) के स्वामित्व को स्वीकार करते हुए एक दस्तावेज़ लिखा। लेकिन दूसरे ख़लीफ़ा उमर ने हज़रत फ़ातिमा (स) से यह दस्तावेज छीन कर फाड़ दिया। एक अन्य कथन के अनुसार अबू बक्र ने हज़रत ज़हरा (स) के गवाहों को खारिज करते हुए फ़दक वापस करने से इनकार कर दिया, इस अवसर पर हज़रत फ़ातिमा (स) ने मस्जिद अल-नबी की ओर रुख किया और वहां एक विस्तृत धर्मोपदेश (ख़ुत्बा) दिया, जो खुतबा ए फ़दक के नाम से प्रसिद्ध है। इस धर्मोपदेश में, खिलाफत के हड़पने का उल्लेख करते हुए, पैंगबरो के धरोहर न छोड़ने पर आधारित अबू बक्र की बात को कुरआन की आयतों के पूर्ण उल्लंघन के रूप वर्णित करते हुए इस मामले पुनरुत्थान के दिन अल्लाह की अदालत पर स्थगित कर दिया। इस घटना के बाद हज़रत ज़हरा (स) अबू बक्र और उमर से नाराज़ हो गईं और नाराज़गी की हालत में इस दुनिया से विदा हो गई।

फ़दक का क्षेत्र खैबर की लड़ाई में यहूदियों के साथ सुलह के परिणामस्वरूप पैगंबर की मिलकियत में आ गया, जो उन्होंने अपनी इकलौती बेटी हज़रत फ़ातिमा को दिया था। लेकिन पैगंबर के स्वर्गवास पश्चात अबू बक्र ने इसे आप से छीन लिया और उसके बाद एक के बाद एक बनी उमय्या और बनी अब्बास के ख़लीफ़ाओ के बीच स्थानांतरित होता रहा। इस बीच उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ और मामून अब्बासी ने फ़दक या उसकी आमदनी को हज़रत फातिमा के वंशजों को दे दिया।

फ़दक का इतिहास

मुख़्य लेख: फ़दक
फ़दक कालक्रम
शाबान 6 हिजरी इमाम अली (अ) का फ़दक पर हमला[१]
सफ़र 7 हिजरी ख़ैबर की विजय[२]
सफ़र या रबीअ अव्वल वर्ष 7 हिजरी यहूदियों द्वारा पैगंबर (स) को फ़दक देना
14 ज़िल-हिज्जा, 7 हिजरी फ़ातिमा ज़हरा (स) को फ़दक देना[३]
रबीअ अव्वल 11 हिजरी अबू बक्र के आदेश से फ़दक का ज़ब्त करना
लगभग 30 हिजरी उस्मान द्वारा फ़दक का मारवान को सौंपना[४]
40 हिजरी के बाद मुआविया द्वारा मारवान,[५] अम्र बिन उस्मान और यज़ीद के बीच फ़दक का विभाजन
लगभग 100 हिजरी उमर इब्ने अब्दुल अज़ीज़ द्वारा हज़रत फ़ातिमा (स) के बच्चों को फ़दक की वापसी
101 हिजरी के बाद यज़ीद बिन अब्दुल मलिक द्वारा फिर से कब्ज़ा
लगभग 132 से 136 तक पहले अब्बासी ख़लीफ़ा सफ़्फ़ाह[६] द्वारा वापसी
लगभग 140 मंसूर अब्बासी[७] द्वारा फिर से क़ब्ज़ा
लगभग 160 मेहदी अब्बासी[८] के आदेश पर वापसी
लगभग 170 हादी अब्बासी के आदेश पर फिर से क़ब्ज़ा
210 हिजरी मामून अब्बासी[९] के आदेश पर वापसी
(232-247) मुतवक्किल अब्बासी[१०] के आदेश पर फिर से क़ब्ज़ा
248 हिजरी मुन्तसिर अब्बासी[११] के आदेश पर वापसी

फ़दक, सऊदी अरब के हिजाज़ नामक शहर में खैबर[१२] के पास और मदीना से 160 किलोमीटर[१३] दूर एक विशाल हरा-भरा क्षेत्र है। इस्लाम के शुरूआती दौर मे यहां यहूदी रहते थे और इस क्षेत्र के भौगोलिक महत्व को देखते हुए उन्होंने इस क्षेत्र के चारों ओर सैन्य किले बनवाए।[१४] ख़ैबर की लड़ाई मे मुसलमानो के हाथो ख़ैबर का क्षेत्र और उससे मिले हुए क़िलो पर विजय प्राप्त हुई तो यहा के यहूदी निवासीयो ने पैगंबर (स) के पास एक डैलीगेशन भेज कर युद्द विराम और सुलह का परामर्श भेजा जिसे पैगंबर (स) ने स्वीकार किया। इस प्रकार यहूदियों के साथ यह निर्णय लिया गया कि वे इस क्षेत्र की आधी भूमि मुसलमानों को एक समझौते के रूप में सौंप देंगे[१५] और पैगंबर (स) जब चाहें उन्हें फ़दक की भूमि से बेदखल कर सकते हैं। इस प्रकार फ़दक बिना किसी लड़ाई के मुसलमानो के कब्ज़े मे आ गया।[१६]

फ़दक हरे-भरे बग़ीचे और खज़ूर के पेड़ो पर आधारित था।[१७] अहले सुन्नत के प्रसिद्ध विदवान इब्ने अबिल हदीद एक शिया विद्वान से इसकी खज़ूरो के मूल्य का आकलन करते हुए कहते हैं: "फ़दक के खज़ूरो का नख़लिस्तान कूफ़ा शहर के नख़लिस्तान के बराबर था।[१८]

पैगंबर (स) की मिल्कियत मे

मुहद्देसीन और इतिहासकार[१९] इस बात से सहमत हैं कि फ़दक पैगंबर (स) के व्यक्तिगत मिल्कियत में से था क्योंकि फ़दक बिना युद्ध के मुसलमानों के हाथों में आया था। और सूर ए हश्र की आयत न 6 और 7 अनुसार [नोट १], वह संपत्ति जो बिना युद्ध के मुसलमानो के हाथो मे आ जाए उन्हे फ़ैय कहा जाता है जिस पर पैगंबर (स) का अधिकार है जिसे चाहे वह अपनी इच्छा से उसे दे सकत है।[२०]

हज़रत फ़ातिमा को फ़दक देना

शिया के सभी मुफ़स्सिर और अहले सुन्नत के कुछ मोहद्देसीन इस बात से सहमत है कि जब आयत (अनुवादः और देखो क़राबतदारो को उसका हक़ दे दो)[२१] नाज़िल हुई तो पैगंबर (स) ने फ़दक हज़रत फ़ातिमा (स) को दे दिया।[२२] अहले सुन्नत के विद्वानो मे से जलालुद्दीन सुयूति ने अपनी तफ़सीर अल-दुर्र उल-मंसूर,[२३] मुत्तक़ी हिंदी ने अपनी किताब कंज़ुल उम्माल,[२४] सअलबी ने तफ़सीर उल-कश्फ़ वल-बयान, हाकिमे हस्कानी ने शवाहिद उत-तंज़ील,[२५] क़ुंदूज़ी ने यनाबी उल-मवद्दत[२६] और बहुत सी दूसरी किताबो मे इस हदीस को बयान किया है।[२७] जब अब्बासी ख़लीफ़ा मामून ने फ़दक को हज़रत फ़ातिमा (स) वंशजो को लौटाने का आदेश पारित किया तो उसने भी इस बात को स्वीकार किया कि इसे हज़रत फ़ातिमा (स) को बख़्शा गया था। और यह पैंगबर के समय मे एक स्पष्ट मामला था।[२८]

फ़दक के साथ इमामत का संबंध

कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि फदक इमामत का प्रतीक है, इस औचित्य के साथ कि जब पैगंबर (स) ने अमीरुल मोमिनीन (अ) को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया, तो वह इमामत के घराने के लिए आय का एक वित्तीय स्रोत चाहते थे, और वो यह भी भली भाती जानते थे यदि वह इसे अली (अ) को देते है तो इसे हड़पना बहुत आसान है इसीलिए पैगंबर ने फ़दक हज़रत ज़हरा (स) को दिया। क्योकि हज़रत ज़हरा (स) पैगंबर (स) की बेटी है, इसको हड़पने के लिए उन्हे लज्जा आएगी और अगर उन्होंने फदक लिया, तो वास्तव में वो अपनी प्रकृति को और अधिक स्पष्ट कर देगें, कि कैसे उन्होंने पैगंबर की यागदार मे जाने की हिम्मत की और उनकी गोपनीयता का सम्मान नहीं किया।[२९] इस दृष्टि से पैगंबर द्वारा अपनी बेटी फातिमा को फदक देना एक नीति थी और लक्ष्य यह था कि अली (अ) और फातिमा (स) के हाथ खाली न हो, और यह परिवार जोकि इमामत का परिवार है वह मोहताज न हो, और यह स्वाभाविक है कि हज़रत ज़हरा (स) इमामों की माँ के रूप में, वे उस स्थिति में थी कि पैगंबर उन्हे फ़दक दे।[३०] इस दृष्टिकोण को अपने दावे की सत्यता के लिए, उन्होंने प्रामाणिक आख्यानों का हवाला दिया है जो इस बात का संकेत देते हैं, जैसे कि हारून अब्बासी का इमाम मूसा बिन जाफ़र (अ) से फ़दक की सीमाओं का निर्धारण करने का अनुरोध और इमाम का इसे स्वीकार करने से इनकार करना क्योंकि वे जानते थे कि अगर उन्होंने इसकी सीमा निर्धारित की तो वह इसे कभी स्वीकार नहीं करेंगा, लेकिन हजरत ने हारून की जिद पर फदक के लिए इस्लामी देश की सीमा तय कर दी। हारून ने इमाम से कहा, तो पता चला कि आप खिलाफ़त चाहते हैं।[३१]

फ़दक और आस-पास के बागों की ज़ब्ती

फ़दक पैगंबर (स) के स्वर्गवास तक हज़रत फ़ातिमा (स) के स्वामित्व (मिल्कियत) में था और आपकी ओर से विभिन्न लोगों ने वकील या मजदूर के रूप में इस भूमि पर काम करते थे।[३२] सक़ीफ़ा बनी साएदा की घटना पश्चात जब अबू बक्र ख़िलाफ़त के पद पर पहुंचा तो उसने घोषणा की कि फ़दक किसी की निजी संपत्ति नहीं है। इसलिए, उसने इसे सरकार के कब्जे में लाने का आदेश जारी किया।[३३] इसी तरह, उमर[३४] और उस्मान[३५] की ख़िलाफ़त मे भी फ़दक अहले-बैत (अ) के स्वामित्व में नहीं आया था।

कहा जाता है कि पहले खलीफा ने फ़दक के अलावा अन्य 7 बागों (अल-हवाएतुस सबआ) को भी हज़रत फ़ातिम (स) से वापस ले लिया। ये बाग एक यहूदी के थे, जिन्होंने इस्लाम कबूल करने के बाद वसीयत की थी कि अगर वह युद्ध में मारा गया तो ये सबी बाग पैगम्बर (स) की निजी संपत्ति होंगे।[३६] वह शख्स ओहोद की लड़ाई में शहीद हुआ। पैगंबर (स) ने इन बागो को भी फिदक के साथ हज़रत ज़हरा (स) को दे दिया था।[३७]

हज़रत फ़ातिमा (स) और मालेकाना हक़ का दावा

सरकार द्वारा फ़दक के हड़पने के बाद हज़रत फ़ातिमा (स) अबू बक्र के पास गई और फ़दक की वापसी की मांग की। इस बातचीत का ऐतिहासिक और हदीसी स्रोतों में संक्षिप्त अंतर के साथ उल्लेख हुआ है। ऐसा कहा जाता है कि जब हज़रत फ़ातिमा (स) ने फ़दक के लिए कहा तो अबू बक्र ने कहा: (إِنّی سَمعتُ رسول الله یَقول: إنا (نحن) مَعاشرَ الأَنبیاء لا نُوَّرِثُ ما ترکناه صدقة इन्नी समेअतो रसूलुल्लाहे यक़ूलोः इन्ना (नहनो) मआशरल अम्बियाए ला नोवर्रेस मा तरकनाहो सदकतन ) अनुवादः मैंने अल्लाह के पैगंबर को यह कहते सुना है: हम अम्बिया कोई तरका (धरोहर) नही छोड़ते बलिक जो कुछ भी हम छोड़ते है वह सद़्क़ा है हैं। [नोट २] [३८] हज़रत फ़ातिमा (स) ने उत्तर दिया: "मेरे पिता ने यह भूमि मुझे दी थी"। अबू बक्र ने हज़रत फ़ातिमा (स) से इस बारे में गवाह तलब किए। इस मौके पर हज़रत फ़ातिमा (स) ने हज़रत अली (अ) और उम्मे अयमन को गवाह के तौर पर पेश किया।

कुछ अन्य कथनो के अनुसार इमाम हसन (अ), इमाम हुसैन (अ), उम्मे कुलसूम[३९] और पैगंबर (स) के एक ग़ुलाम का भी गवाह के रूप में उल्लेख किया गया है।[४०] फिर भी, अबू बक्र ने हज़रत ज़हरा के दावे को स्वीकार कर लिया और एक कागज़ पर दस्तावेज़ के रूप में लिख दिया ताकि बाद में कोई और उस पर कब्ज़ा न कर सके। हज़रत फ़ातिमा (अ) अबू बक्र द्वारा लिखित दस्तावेज़ के साथ सभा से बाहर निकल रही थीं। रास्ते में उमर बिन ख़त्ताब ने उनके हाथ से कागज छीन लिया और उसे फाड़ दिया।[४१] कुछ सुन्नी सूत्रों के अनुसार, अबू बक्र ने हज़रत फ़ातिमा के गवाहों को स्वीकार नहीं किया और दो लोगों को गवाह के रूप में पेश करने के लिए कहा।[४२] इब्ने अबिल हदीद कहते हैं: "मैंने बगदाद के एक प्रसिद्ध शिक्षक इब्ने फ़ारूकी से पूछा, क्या हज़रत फ़ातिमा (स) फ़दक के बारे में सच कह रही थी या नहीं? उस्ताद फ़ारूक़ी ने उत्तर दिया:" आप (स) सच कह रही थी। मैने पूछा: फिर अबू बक्र ने आपकी बात क्यों नहीं मानी? उसने कहा कि अगर उसने ऐसा किया होता, तो उसे कल खिलाफत से हाथ धोना पड़ता, क्योंकि कल को फ़ातिमा (स) ख़िलाफ़त पर अपने पति की हक़्क़ानीयत का दावा पेश करतीं तो, उस समय अबू बक्र उसे अस्वीकार नहीं कर सकता था। ऐसा इसलिए क्योंकि उसने (अबू बक्र ने) बिना किसी गवाह के फ़दक के बारे में जो हज़रत फ़ातिमा (स) ने कहा था उसे स्वीकार कर लिया था।" इब्ने अबिल-हदीद आगे कहते हैं: "हालांकि इब्ने फारूकी मजाक़ मजाक़ में यह बात कह रहा था, लेकिन उसकी बात बिल्कुल सही थी"।[४३]

यद्यपि ऐतिहासिक स्रोतों में मोहसिन बिन अली (अ) के गर्भपात की घटना को हज़रत ज़हरा (स) के दरवाजे के जलने की घटना से संबंधित किया जाता है, लेकिन शेख मुफीद की किताब अल-इख़्तिसास से संबंधित है उमर ने आप से वह कागज़ मांगा तो आप ने नही दिया तो इस पर उमर ने आपके लात मारी। उस समय हज़रत फ़ातिमा गर्भवती थीं और उमर की इस क्रूरता के कारण उनके गर्भ में पल रहे बच्चे (मोहसिन) का गर्भपात हो गया। उसके बाद उमर ने दुसाहस करते हुए आपको थप्पड़ मारा और कागज फाड़ दिया।[४४]

अमीर अल-मोमेनिन (अ) और फ़दक पर मालेकाना हक़ का दावा

वर्णन किया गया है कि खलीफा द्वारा फ़दक पर कब्ज़ा करने के पश्चात इमाम अली (अ) ने मस्जिद मे आकार मुहाजेरीन और अंसार के सामने अबू-बक्र पर आपत्तित व्यक्त करते हुए फ़रमायाः फ़ातिमा (स) को उस चीज़ से क्यो रोकते हो जो पैगंबर (स) उन्हे बख़्श दी थी? जब अबू बक्र ने गवाह के लिए कहा, तो इमाम अली (अ) ने फ़रमाया, "जो चीज किसी के कब्जे में है, उससे गवाह नहीं तलब नही किया जाता, बल्कि गवाह पेश करना उस व्यक्ति की जिम्मेदारी है जो उस चीज़ के स्वामित्व का दावा करता है जबकि यह चीज उसके कब्जे में नहीं है।[४५]

इमाम अली (अ) ने इस स्थान पर आय ए ततहीर पढ़ी और अबू बक्र से इक़रार लिया कि यह आयत इमाम (अ) और उनके परिवार के सम्मान में नाज़िल हुई है। उसके बाद इमाम ने पूछा कि अगर दो व्यक्ति कहे कि फ़ातिमा (स) ने पाप किया है तो क्या करोंगे? इस पर अबू बक्र ने कहा, 'अगर ऐसा हुआ तो मैं फ़ातिमा पर हद (सज़ा) जारी करूंगा। इमाम अली (अ) ने कहा, "यदि आप ऐसा करते हैं, तो आपने अल्लाह की गवाही पर प्राणियों की गवाही को प्राथमिकता दी है, और जो ऐसा करता है वह अविश्वासी (काफ़िर) है।" उस समय लोगों ने शोर मचाया और वहाँ से तितर-बितर हो गए।[४६] इसी तरह यह भी बताया गया है कि इमाम अली (अ) ने अबू-बक्र के नाम एक पत्र लिखा और धमकी भरे शब्दो मे ख़िलाफ़त और फ़दक के हड़पने से संबंधित उसकी आलोचना की।[४७]

अम्बिया के धरोहर न छोड़ने पर तर्क

वर्णित किया गया है कि जब हज़रत फ़ातिमा (स) ने फ़दक पर अपने स्वामित्व का दावा किया तो अबू-बक्र ने कहाः मैने अल्लाह के पैंगबर (स) को कहते हुए सुना है कि हम अम्बिया कोई धरोहर नही छोड़ते जो कुछ भी छोड़ते है वह सदक़ा होता है।[४८] इस अवसर पर हज़रत ज़हरा (स) ने एक ख़ुत्बा (धर्म उपदेश) दिया जिसमे आपने क़ुरआन की विभिन्न आयतो (सूर ए नम्ल, आयत न 6, सूर ए मरियम, आयत न 5 और 6, सूर ए अंफ़ाल, आयत न 75, सूर ए निसा, आयत न 11 और सूर ए बक़रा की आयत न 18) की ओर इशारा किया जिनमे नबीयो के धरोहर छोड़ने का उल्लेख मिलता है इस प्रकार आपने अबू-बक्र की बात को क़ुरआन की आयत का उल्लंघन करार दे दिया।[४९] शिया विद्वान अबू-बक्र की इस बात को सूरा ए मरयम की आयत न 5 और 6[५०] का उल्लंघन बताने के साथ-साथ कहते है कि इस हदीस को अबू-बक्र के अलावा किसी ने भी पैगंबर (स) से नक़ल नही किया है।[५१] अबि-हदीद का भी यही दृष्टिकोण है।[५२]

जब उसमान ख़िलाफ़त पर बैठे तो आयशा और हफ़्सा उनके पास गईं और पहले ख़लीफ़ा के शासन काल से मिलने वाले चीज़े तलब की। इस पर उसमान ने जवाब दिया अल्लाह की सौगंध ऐसी तुम्हे कोई चीज़ नही दूंगा। क्या तुम दोनो वही नही हो जिन्होने अपने पिता के यहा यह गवाही दी थी कि अम्बिया किसी चीज़ को धरोहर के रूप मे नही छोड़ते। एक दिन धरोहर न छोड़ने की गवाही देती हो दूसरे दिन पैगंबर (स) की धरोहर मांगती हो।[५३]

ख़ुत्बा ए फ़दक

मुख़्य लेख: ख़ुत्बा ए फ़दक

जब हज़रत फ़ातिमा (स) को फ़दक के अपने स्वामित्व को साबित करने के लिए चलाए जाने वाले मुकदमे में अबू बक्र से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली, तो वह स्थिति को स्पष्ट करने के लिए मस्जिद अल-नबी मे गई और फ़दक की जब्ती के बारे में साथियों (सहाबीयो) की एक सभा को संबोधित करते हुए एक धर्मोपदेश (ख़ुत्बा) दिया जो खुत्बा ए फिदक के नाम ले प्रसिद्ध है।[५४] इस धर्मोपदेश में, उन्होंने अबू-बक्र के खिलाफत के हड़पने का उल्लेख किया और पैगंबर (स) का धरोहर ना छोड़ने के बारे में अबू बक्र के बयान का खंडन करते हुए फ़रमायाः किस कानून के तहत आप मुझे मेरे पिता की विरासत से वंचित करते हो? क्या क़ुरआन की किसी आयत में ऐसा कहा गया है?! उसके बाद अबू बक्र को क़यामत के दिन अल्लाह के फ़ैसले के लिए स्थगित करते हुए उन्होंने सहाबीयो से पूछा, इतने अत्याचारों के बावजूद आप चुप क्यों रहते हैं? हज़रत फ़ातिमा (स) ने स्पष्ट रूप से कहा कि अबू-बक्र और उनके समर्थकों ने जो किया है वह सरासर अहद व पैमान का पूर्ण उल्लंघन है। धर्मोपदेश के अंत में, उन्होंने इस बुरे काम की पस्ती और ज़िल्लत को शाश्वत (सदैव) और इसके अंत को नरक के रूप में वर्णित किया।[५५]

अबू-बक्र और उमर से फ़ातिमा की नाराजगी

शिया स्रोतों के अलावा[५६] सुन्नी सूत्रों मे भी फ़दक की घटना के बाद अबू-बक्र और उमर के साथ हज़रत ज़हरा की नाराजगी का उल्लेख मिलता है: "फ़ातिमा पैगंबर (स) की बेटी फातिमा क्रोधित हो गई और अबू-बक्र से मुह मोड़ लिया और अपने जीवन के अंतिम समय तक नाराज़ रही।[५७] इसी तरह की अन्य हदीसों को अहले-सुन्नत के स्रोतों में बयान किया गया है।[५८]

अबू-बक्र और उमर उन्हे खुश करने के लिए हज़रत फ़ातिमा (स) से मिलना चाहते थे, जिसे हज़रत फ़ातिमा (स) ने नकार दिया। अंतः उन्होंने इमाम अली (स) को मध्यस्थ के रूप में बुलाया और हज़रत फातिमा (स) से मुलाकात की। इस मुलाक़ात में हज़रत फ़ातेमा ज़हरा (अ) ने पैगंबर (स) की इस हदीस का उल्लेख किया: "फ़ातिमा की खुशी मेरी खुशी है और फ़ातिमा की नाराज़्गी मेरी नाराजगी है। मेरी बेटी को दोस्त रखने वाला ऐसा है अर्थात मुझे दोस्त रखने वाला है जिसने फ़ातिमा को प्रसन्न किया अर्थात उसने मुझे प्रसन्न किया और जिसने फ़ातिमा को क्रोधित किया उसने मुझे क्रोधित किया है। [नोट ३][५९] संक्षेप में हज़रत फातिमा (स) उनसे राज़ी नहीं हुई।[६०]

फ़दक से संबंधित इमाम अली (अ) का दृष्टिकोण

हालांकि इमाम अली (अ) फ़दक पर हज़रत ज़हरा (स) के स्वामित्व को एक मुसल्लेमा हक़ीक़त समझते थे और ख़लीफ़ाओ द्वारा उसको राजकोष मे सम्मिलित करने को एक क्रूरता समझते हुए उसे हज़रत ज़हरा (स) को वापस लौटाने की मांग की, लेकिन जब ख़लीफ़ाओ ने इस मांग को स्वीकार नही किया तो आपने इस मामलो को पुनरुत्थान के दिन खुदा की अदालत तक के लिए स्थगित कर दिया।[६१] अब सवाल यह होता है कि इमाम अली (अ) ने अपने शासन काल मे फ़दक को वापस लेने के लिए कोई कदम क्यो नही उठाया? इस संबंध मे स्वंय इमाम अली (अ) ने एक धर्मोपदेश (ख़ुत्बे)[६२] मे फ़रमाते है कि यदि मै फ़दक को हज़रत फ़ातिमा (स) को वापस लौटा देने का आदेश देता [नोट ४] तो अल्लाह की सौगंध लोग मुझ से दूर हो जाते।[६३] इसी प्रकार एक और हदीस मे वर्णन हुआ है कि इमाम सादिक़ (अ) ने फ़रमायाः इमाम अली (अ) ने इस मामले मे पैगंबर (स) का अनुसरण (पैरवी) किया है। क्योकि पैगंबर (स) मक्का के फत्ह होने पर एक ऐसे घर को जो उससे पहले आप से जबरन अन्यायपूर्ण रूप से छीना गया था, को वापस नही लिया था।[६४]

उस्मान बिन हनीफ़ को लिखे गए एक पत्र मे इमाम अली (अ) फ़दक से संबंधित कहते हैः इस नीले आकाश के नीचे केवल फ़दक हमारे कब्ज़े मे था। कुछ ने इस पर टाल-मटोल की जबकि एक समूह ने दानी रूप से उस से हाथ खड़े कर दिए। बेहतरीन निर्णय करने वाला खुदा ही है हमे फ़दक और फ़दक जैसे बागो से हमे क्या काम जबकि कल को सभी को क़ब्र मे जाना है।[६५]

फ़दक की वापसी

बनी उमय्या और बनी अब्बास के ख़िलाफ़त काल मे भी फ़दक अहले-बैत (अ) के दुश्मनो के हाथो मे रहा केवल उमर बिन अब्दुल अज़ीज,[६६] अबुल अब्बास सफ़्फ़ाह, महदी अब्बासी [नोट ५][६७] और मामून[६८] के ख़िलाफ़त काल मे फ़दक फ़ातिमा (स) के वंशजो को लौटा दिया गया था। मामून के बाद मुतावक्किल अब्बासी ने दोबारा फ़दक पर कब्जा करने का आदेश पारित किया।[६९] अधिकांश इतिहासी स्रोतो मे मुतावक्किल अब्बासी के बाद फ़दक के वाक़ेया का कोई उल्लेख नही मिलता है।[७०]

शिया विद्वानों का विश्लेषण

सय्यद जाफ़र शहीदी का मानना है कि फ़दक की मांग करने से हज़रत ज़हरा का लक्ष्य खजूर के कुछ पेड़ों पर कब्जा करना नही था, बल्कि वह पैगंबर (स) की सुन्नत को जीवित रखना और न्याय बनाए रखना चाहती थी, और साथ ही साथ इस्लामी समाज मे शीर्ष उठाने वाली खतरनाक बीमारियों को रोकना और अज्ञानता के युग मे भाई-भतीजावाद जैसे कुछ रीति-रीवाजो से चिंतित थी।[७१] सय्यद मुहम्मद बाक़िर सद्र का मानना है कि फ़दक की मांग व्यक्तिगत और भौतिक संघर्ष नहीं थी, बल्कि एक दृष्टि से यह कार्य समय के हाकिम का विरोध और सक़ीफ़ा बनी साएदा मे अबू बक्र, उमर और अबू उबैदा जर्राह आदि द्वारा स्थापित सरकार और खिलाफ़त की नींव को नाजायज़ घोषित करना था।[७२] आप फ़दक के मुतालबे को सरकार के खिलाफ और इमामत की प्रतिरक्षा के हवाले से हज़रत ज़हरा (स) के आंदोलन का आरम्भ क़रार देते है।[७३]

नोट

  1. َمَا أَفَاءَ اللَّهُ عَلَیٰ رَ‌سُولِهِ مِنْهُمْ فَمَا أَوْجَفْتُمْ عَلَیهِ مِنْ خَیلٍ وَلَا رِ‌کابٍ وَلَٰکنَّ اللَّهَ یسَلِّطُ رُ‌سُلَهُ عَلَیٰ مَن یشَاءُ ۚ وَاللَّهُ عَلَیٰ کلِّ شَیءٍ قَدِیرٌ‌ ﴿۶﴾ مَّا أَفَاءَ اللَّهُ عَلَیٰ رَ‌سُولِهِ مِنْ أَهْلِ الْقُرَ‌یٰ فَلِلَّهِ وَلِلرَّ‌سُولِ وَلِذِی الْقُرْ‌بَیٰ وَالْیتَامَیٰ وَالْمَسَاکینِ وَابْنِ السَّبِیلِ کی لَا یکونَ دُولَةً بَینَ الْأَغْنِیاءِ مِنکمْ ۚ وَمَا آتَاکمُ الرَّ‌سُولُ فَخُذُوهُ وَمَا نَهَاکمْ عَنْهُ فَانتَهُوا ۚ وَاتَّقُوا اللَّهَ ۖ إِنَّ اللَّهَ شَدِیدُ الْعِقَابِ: वमा अफ़ाअल्लाहो अला रसूलेहि मिन्हुम फमा ओजफ़तुम अलैहे मिन ख़ैलिन वला रेकाबिन वलाकिन्नाल्लाहा यसल्लेतो रोसोलहू अला मय यशाउल्लाहो अला कुल्ले शैइन कदीर (6) मा अफल्लाहो अला रसूलेहि मिन अहलिल क़ुरा फ़लिल्लाहे वा लिर्रसूले वलेज़िलकुर्बा वल यतामा वल मसाकीना वब्नस सबीला कय ला यकूना दोलतन बैनल अग़्निया ए मिन्कुम वमा आताकोमुर रसूलो फ़ख़ज़ूहो वमा नहाकुम अन्हो फ़न्तहू वत्तक़ुल्लाहा इन्नल लाहा शदीदुल एकाब। अनुवादः तुमने घोड़ों और ऊँटों का उपयोग उस संपत्ति और भूमि को प्राप्त करने के लिए नहीं किया जो परमेश्वर ने ग़नीमत के रूप में अपने पैगंबर को लौटा दी थी [और इसलिए पीड़ित नहीं हुए], लेकिन अल्लाह अपने नबियों पर प्रभुत्व और अधिकार रखता है, जिस पर वह चाहता है, और अल्लाह सब कुछ करने में सक्षम है। उन बस्तियों के लोगों [संपत्तियों और भूमि] से भगवान ने अपने नबियों को जो लौटाया, वह अल्लाह, पैगंबर, पैगंबर के परिवार, अनाथों, गरीबों और रास्ते में छूटे गए लोगों के लिए आरक्षित है, ताकि यह तुम्हारे धनवानों के बीच एक हाथ से दूसरे हाथ मे ना जाए। और जो कुछ [संपत्ति, नियम और धार्मिक ज्ञान से] नबी ने तुम्हें दिया है उसे ले लो, और जिस चीज़ से मना किया है उससे दूर रहो, और भगवान से डरो; क्योंकि ईश्वर दंड देने में कठोर है।
  2. «إِنّی سَمعتُ رسول الله یقول: إنا (نحن) مَعاشرَ الأَنبیاء لا نُوَّرِثُ ما ترکناه صدقةً» इन्नी समअते रसूलुल्लाहे यक़ूलोः इन्ना (नहनो) मआशरल अम्बियाए ला नोवर्रेस मा तरकनाहो सदकतन
  3. «رِضَا فَاطِمَةَ مِنْ رِضَای وَ سَخَطُ فَاطِمَةَ مِنْ سَخَطِی وَ مَنْ أَحَبَّ فَاطِمَةَ ابْنَتِی فَقَدْ أَحَبَّنِی وَ مَنْ أَرْضَی فَاطِمَةَ فَقَدْ أَرْضَانِی وَ مَنْ أَسْخَطَ فَاطِمَةَ فَقَدْ أَسْخَطَنِی» रज़ा फ़ातेमता मिर रिज़ाई वा सख्ता फ़ातेमता मिन सखती वा मन अहब्बा फ़ातेमता इब्नती फकद अहब्बनी वा मन अर्ज़ा फ़ातेमता फ़कद अरजत़ानी वा मन असख्ता फ़ातेमता फ़कद असखतानी
  4. इस समय इमाम अली (अ) ने पहले ख़लीफ़ाओं के बिदअतो के 27 मामलों की गिनती की और कहा कि अगर मैं इन बिदअतो को छोड़ने और लोगों को पैगंबर की सुन्नत पर वापस आने का आदेश देता, तो हर कोई मेरे चारों ओर बिखर जाते (मजलिसी, फदक अज़ गज़ब ता तखरीब, 1388 शम्सी, पेज145
  5. कुछ स्रोतों के अनुसार, इमाम काज़िम (अ) ने महदी अब्बासी से फदक की मांग की, लेकिन महदी अब्बासी ने इसे वापस करने से इनकार कर दिया। तूसी, तहज़ीब उल-अहकाम, 1407 हिजरी, भाग 4, पेज 149।

फ़ुटनोट

  1. तिबरी, तारीखुल उमम वल मुलूक, भाग 2, पेज 642
  2. इब्ने हेशाम, अस-सीरातुन नबावीया, भाग 2, पेज 341
  3. मक़रीज़ी, इम्ताउल असमाअ, भाग 13, पेज 149
  4. इब्ने अबिल हदीद, शरह नहजुल बलाग़ा, भाग 16, पेज 216
  5. अल्लामा हिल्ली, नहजुल हक़ वा कश्फुस-सिद्क़, पेज 357
  6. मोहसिन अमीन, आयानुश-शिया, भाग 1, पेज 318
  7. अल्लामा हिल्ली, नहजुल हक़ वा कश्फुस-सिद्क़, पेज 357
  8. बलाज़रि, फ़ुतूहुल बुलदान, भाग 1, पेज 37
  9. बलाज़रि, फ़ुतूहुल बुलदान, भाग 1, पेज 38
  10. इब्ने असीर, अल-कामिल फ़ित-तारीख़, भाग 7, पेज 116
  11. याक़ूते हम्वी, मोजमुल बुलदान, 1995 ई, ज़ेले माद्दा ए फ़िदक, पेज 238
  12. याक़ूते हम्वी, मोजमुल बुलदान, 1995 ई, ज़ेले माद्दा ए फ़दक, पेज 238
  13. याक़ूते हम्वी, मोजमुल बुलदान, 1995 ई, ज़ेले माद्दा ए फ़दक, भाग 4, पेज 238; इब्ने मंज़ूर, लिसानुल अरब, 1410 हिजरी, भाग 10, पेज 473
  14. बलादी, मोजम मआलिमुल हिजाज़, 1431 हिजरी, भाग 2, पेज 205-206 और भाग 7, पेज 23; सुबहानी, हवादिसे साले हफ्तुमे हिजरत, सरगुज़्श्ते फ़दक, पेज 14
  15. मक़रीज़ी, इम्ताउल असमाअ, 1420 हिजरी, भाग 1, पेज 325
  16. तबरी, तारीखुल उमम वल मुलूक, भाग 3, पेज 15
  17. याक़ूते हम्वी, मोजमुल बुलदान, 1995 ई, भाग 4, पेज 238; इब्ने मंज़ूर, लिसानुल अरब, 1410 हिजरी, भाग 10, पेज 437
  18. इब्ने अबिल हदीद, शरह नहजुल बलाग़ा, 1387 हिजरी, भाग 16, पेज 236
  19. उदाहरण के लिए अहले सुन्नत के विद्वानो मेः याक़ूते हम्वी, मोजमुल बुलदान, भाग 4, पेज 238; इब्ने असीर, अल-कामिल फ़ित-तारीख़, भाग 2, पेज 222
  20. सुबहानी, फ़ुरूग़े विलायत, 1380 शम्सी, पेज 218
  21. फ़ख़्रे राज़ी, मिफ्ताहुल ग़ैब, 1420 हिजरी, भाग 29, पेज 506; तबातबाई, अल-मीज़ान, 1417 हिजरी, भाग 19, पेज 203
  22. सूरा ए इस्रा, आयत न 26
  23. सुबहानी, फ़ुरूग़े विलायत, 1380 शम्सी, पेज 219; अज़ मियाने मुफ़स्सिरे शियाः अय्याशी, तफ़सीरे अय्याशी, मकतबतुल इल्मिया, भाग 2, पेज 287; कूफी, तफ़सीरे फ़ुरात, 1410 हिजरी, पेज 239, हदीस 322; तबरसी, मजमाउल बयान, 1372 शम्सी, भाग 8, पेज 478; क़ुमी, तफ़सीरे क़ुमी, 1404 हिजरी, भाग 2, पेज 18; मुहम्मद बाक़िर हुसैनी जलाली दर किताबे फ़दक वल अवाली, पेज 141 ने सभी तफ़सीरो की छान बीन की है।
  24. सुयुती, अद-दुर्रुल मंसूर, बैरूत, भाग 2, पेज 158 और भाग 5, पेज 273
  25. मुत्तक़ी हिंदी, कंज़ुल उम्माल, भाग 2, पेज 185 और भाग 3, पेज 767
  26. हाकिम हस्कानी, शवाहि दुत्तंज़ील, मोअस्सेसा तब वल नश्र, भाग 1, पेज 439-441
  27. क़ंदूज़ी, यनाबीउल मवद्दत, 1422 हिजरी, भाग 1, पेज 138 और 358
  28. हुसैनी जलाली, किताबे फ़दक वल अवाली, 1426 हिजरी, पेज 126-149
  29. मुन्तज़ेरि, ख़ुत्बा ए हज़रत ज़हरा (स) वा माजरा ए फ़दक, भाग 1, पेज 393
  30. मुन्तज़ेरि, ख़ुत्बा ए हज़रत ज़हरा (स) वा माजरा ए फ़दक, भाग 1, पेज 394
  31. मुन्तज़ेरि, ख़ुत्बा ए हज़रत ज़हरा (स) वा माजरा ए फ़दक, भाग 1, पेज 394
  32. शहीदी, जिंदागानी ए हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (स), 1362 शम्सी, पेज 117
  33. इब्ने अबिल हदीद, शरह नहजुल बलाग़ा, 1387 हिजरी, भाग 16, पेज 211
  34. कुलैनी, उसूले काफ़ी, 1369 शम्सी, भाग 1, पेज 543; शेख़ मुफ़ीद, अल-मुक़्नेआ, 1410 हिजरी, पेज 289-290
  35. बलाज़रि, फ़ुतूहुल बुलदान, 1956 ई, भाग 1, पेज 36
  36. इब्ने क़तीबा, अल-मआरिफ़, पेज 84 तारीख़े अबुल फ़िदा, भाग 1, पेज 168; सुनाने बिहक़ी, भाग 6, पेज 301; अल-अक़्दुल फ़रीद, भाग 5, पेज 23 शरह नहजुल बलाग़ा, भाग 1, पेज 198; अल-गदीर, भाग 8, पेज 236-238 बेनक़्ल अज़ः शहीदीः जिंदागानी ए हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (स), 1362 शम्सी, पेज 116
  37. हुसैनी जलाली अपनी किताब फ़दक वल अवाली के पेज 116 मे लिखते है कि यह वसीयत इन आसार मे आई हैः फ़त्हुल बारी, भाग 6, पेज 140 अल-तबक़ातुल कुबरा, भाग 1, पेज 501; तारीखे मदीना ए दमिश्क़, भाग 10, पेज 229; अल-इसाबा, भाग 6, पेज 46 मोजमुल बुलदान, भाग 5, पेज 241 तारीखे तिबरी, भाग 2, पेज 209
  38. हुसैनी जलाली, फ़दक वल अवाली, पेज 37-72 वो किताबे जिनमे इन बागो को देने का उल्लेख हैः शवाहिद अल-तंज़ील, भाग 1, पेज 44 बिहार उल-अनवार, भाग 16, पेज 109; दलाइल उस-सिद्क़, भाग 3, पेज 578; अत-तराइफ़, भाग 1, पेज 247 वसाइल उश-शिया, भाग 19, पेज 199 और अन्य स्रोत
  39. बलाज़रि, फ़ुतूहुल बुलदान, 1956 ई, पेज 40-41
  40. हल्बी, अस-सीरातुल हल्बिया, 1971 ई, भाग 3, पेज 512
  41. फ़ख़्रे राज़ी, मिफ्ताहुल ग़ैब, 1420 हिजरी, भाग 8, पेज 125
  42. कुलैनी, उसूले काफ़ी, 1369 शम्सी, भाग 1, पेज 543; हल्बी, अस-सीरातुल हल्बिया, 1971 ई, भाग 3, पेज 512
  43. बलाज़रि, फ़ुतूहुल बुलदान, 1988 ई, पेज 40
  44. इब्ने अबिल हदीद, शरह नहजुल बलाग़ा, 1404 हिजरी, भाग 16, पेज 284
  45. फ़-लक़ीहा उमर, फ़-क़ाला या बिन्ता मुहम्मद मा हाज़्ल किताब अल्लज़ी माअके फ़-क़ालत किताबुन कता-बा ली अबू-बक्र बेरद्दे फ़दक, हल्मीहे एला, फ़अबत अन तदफ़ऊ इलैहे, फ़रफ़ासाहा बेरिजलेहि वा कानत अलैहेमस सलाम हामेलोहू यब्ना इस्मोहू अल-मोहसिन, फ़सक़तातिल मोहसिनो मिन बतनेहा सुम्मा लतामहा, फ़कअन्नी उनज़ोरो एला क़िरतिन फ़ी उज़्नेहा हीना नक़ाफ़त सुम्मा अख़ज़ल किताब फ़ख़रक़हू .... (शेख़ मुफ़ीद, अल-इख्तेसास, शोधः अली अकबर गफ़्फ़ारी, पेज 185)
  46. मजलिसी, बिहार उल-अनवार, भाग 29, पेज 124
  47. मजलिसी, बिहार उल-अनवार, भाग 29, पेज 124
  48. तबरसी, अल-एहतेजाज, 1403 हिजरी, भाग 1, पेज 95
  49. इन्नी समेअतो रसूलुल्लाह (स) यकूलोः इन्ना (नहनो) मआशेरल अम्बिया ला नोवर्रेसो मा तरकनाओ सदक़तन (बुख़ारी, सहीह, भाग 5, पेज 82 मुस्लिम सहीह, भाग 5, पेज 153 बेनक़ल अज़ः मजलिसी कोपाई, फ़दक अज़ ग़स्ब ता तख़रीब, 1388 शम्सी, पेज 91)
  50. मजलिसी कोपाई, फ़दक अज़ ग़स्ब ता तख़रीब, 1388 शम्सी, पेज 94
  51. जिसमे ज़कर्या अल्लाह तआला से आग्रह करते है कि उसका कोई उत्तराधिकारी बना दे जो ज़कर्या और आले याक़ूब से धरोहर लेने वाला हो।
  52. सुबहानी, फ़ुरूग़े विलायत, 1380 शम्सी, पेज 242
  53. इब्ने अबिल हदीद, शरह नहजुल बलाग़ा, 1404 हिजरी, भाग 4, पेज 82-85; बेनक़ल अज़ः सुबहानी, फ़ुरूग़े विलायत, 1380 शम्सी, पेज 242
  54. तबरी, अलमुसतरशिद, 1415 हिजरी, पेज 597; हल्बी, तक़रीबुल मआरिफ़, 1404 हिजरी, पेज 286
  55. अरबेली, कश्फ़ुल ग़ुम्मा फ़ी मारेफ़तिल आइम्मा, 1421 हिजरी, भाग 1, पेज 353-364
  56. शहीदी, जिंदागानी ए हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (स), 1362 शम्सी, पेज 126-135
  57. ख़ज़्ज़ार राज़ी, किफ़ायतुल असर फ़ी नस्से अला आइम्मते इस्ना अशर, 1401 हिजरी, पेज 65
  58. फ़ग़ज़ेबत फ़ातेमा बिन्ते रसूलिल्लाह (स) फ़हजरत अबा बक्रिन, फ़लम तज़ल मुहाहे रताहू हत्ता तुवफ़्फ़ियत ( बुखारी, सहीहुल बुखारी, 1422 हिजरी, भाग 4, पेज 79)
  59. मुस्लिम, सहीह मुस्लिम, भाग 3, पेज 1380 जोहरी बसरी, अल-सक़ीफ़तो वल फ़दक, पेज 102
  60. रेज़ा फ़ातेमा मिन रेज़ाई वा सख़ोतो फ़ातेमा मिन सख़ाती वा मन अहब्बा फ़ातेमा इब्नती फ़क़द अहब्बनी वा मन अरज़ा फ़ातेमता फ़क़द अरज़ानी वा मन असख़ता फ़ातेमता फ़क़द असख़तनी
  61. इब्ने क़तीबा, अल-इमामा वल सियासा, 1482 हिजरी, भाग 1, पेज 31
  62. उस्तादी, फ़दक, पेज 391-392 इब्ने अबिल हदीद, शरह नहजुल बलाग़ा, 1487 हिजरी, भाग 16, पेज 208
  63. इमाम अली (अ) ने इस ख़ुत्बे मे पूर्व ख़लीफाओ की 27 बिदअतो का उल्लेख करते हुए फ़रमाया कि अगर मे इन बिदअतो को पैगंबर (स) की सुन्नत मे परिवर्तित कर दू तो सभी लोग मुझ से दूर हो जाते। (मजलिसी, फ़दक अज ग़स्ब ता तखरीब 1388 शम्सी, पजे 145)
  64. कुलैनी, अल-काफ़ी, 1429 हिजरी, भाग 15, पेज 154
  65. मजलिसी, बिहार उल-अनवार, 1403 हिजरी, भाग 3, पेज 396
  66. इब्ने अबिल हदीद, शरह नहजुल बलाग़ा, 1387 हिजरी, भाग 16, पेज 208
  67. इब्ने असाकिर, तारीखे मदीना ए दमिश्क़, 1415 हिजरी, भाग 45, पेज 178-179; बलाज़री, फ़ुतूहुल बुलदान, 1956 ई, पेज 41; कातिब बग़दादी, अल-ख़िराज वा सुनाअतुल किताबा, 1481 हिजरी, पेज 259-260
  68. अल्लामा अमीनी, अल-गदीर, भाग 7, पेज 194-197; बेनक़ल अजः मजलिसी, फ़दक अज़ ग़्सब ता तखरीब, 1388 शम्सी, पेज 138
  69. याक़ूते हम्वी, मोजमुल बुलदान, 1995 ई, भाग 4, पेज 240; तिबरी, तारीखुल उमम वल मुलूक, 1939 ई, भाग 7, पेज 156; हुसैन, तारीख़े सियासी ग़ैबते इमामे दवाजदहुम, 1367 शम्सी, पेज 77; बलाज़री, फ़ुतूहुल बुलदान, 1956 ई, भाग 1, पेज 37-38
  70. मजलिसी कोपाई, फ़दक अज़ ग़्सब ता तखरीब, 1388 शम्सी, पेज 139
  71. शहीदी, अली अज़ ज़बाने अली, 1377 शम्सी, पेज 37
  72. सद्र, फ़दक फ़ी अल-तारीख, पेज 63-66
  73. सद्र, फ़दक फ़ी अल-तारीख, पेज 115-117

स्रोत

  • इब्ने अबिल हदीद, शरह नहजुल बलाग़ा, शोधः अबुल फ़ज़्ल इब्राहीम, बैरूत, दार ए एहयाइल कुतुब अल-अरबी
  • इब्ने असी, अल-कामिल फ़ी तारीख, बैरूत, दार उल-सादिर, 1385 शम्सी
  • इब्ने असाकिर, अली बिन हसन, तारीखे मदीना ए दमिश्क़, बैरूत, दार उल फ़िक्र, पहला प्रकाशन, 1415 हिजरी
  • इब्ने क़तीबा, अल-मआरिफ़, सरवते अक्काशा, दार उल कुतुब, 1960 ई
  • इब्ने मंज़ूर, मुहम्मद बिन मुकर्रम, लिसानुल अरब, दारे सादिर, बैरूत, पहला प्रकाशन, 1410 हिजरी
  • इब्ने हेशाम, अस-सीरातुन नबावीया, बैरूत, दार उल मारफ़ा
  • अरबेली, कश्फ़ुल ग़ुम्मा फ़ी मारफतिल आइम्मा, क़ुम, रज़ी, पहला प्रकाशन, 1421 हिजरी
  • उस्तादी, रज़ा, फ़दक, दर दानिश नामा ए इमामे अली (अ) ज़ेरे नज़रः अली अकबर रेशाद, तेहरान, मरकज़े नश्र आसारे पुज़ूहिश गाह फ़रहंग वा अंदीशे ए इस्लामी, 1380 शम्सी
  • अमीन आमोली, सय्यद मोहसिन, आयानुश-शिया, बैरूत, दार उत-तआरुफ,1403 हिजरी
  • बुखारी, मुहम्मद बिन इस्माईल, अल-जामेउल मुस्नद अल-सहीहिल मुख़्तसर मिन उमूरे रसूलिल्लाह वा सुनानेही वा अय्यामेही (सहीह बुखारी), मोहक़्क़िकः अल-नासिर, मुहम्मद अल-ज़ुबैर बिन नासिर, बैरूत, दार तौक़ुन निजात, पहला प्रकाशन, 1422 हिजरी
  • बिलादी, आतिक़ बिन ग़ैस, मोजम मालेमुल हिजाज़, दारे मक्का, मोअस्सेसा अल-रियान, 1431 हिजरी
  • बलाज़री, अहमद बिन याह्या बिन जाबिर, फ़ुतूहुल बुलदान, शोधः सलाहुद्दीन अल-मुंजिद, क़ाहेरा, मकताबा तुन नहजातुन मिस्रिया, 1956 ई
  • जाफ़रयान, रसूल, आसारे इस्लामी मक्का वा मदीना, तेहरान, मशअर, तीसरा प्रकाशन, 1384 शम्सी
  • जोहरी बसरी, अबू-बक्र अहमद बिन अब्दुल अज़ीज़, अल-सक़ीफ़ा वल फ़दक, शोधः मुहम्मद हादी अमीनी, तेहरान, मकतबा तुन नैनवा अल-हदीसा, 1401 हिजरी
  • हाकिम, हस्कानी, उबैदुल्लाह बिन अहमद, शवाहिद उत-तंज़ील, अनुवादः अहमद रूहानी, क़ुम, दार उल-हुदा, 1380 शम्सी
  • हुसैनी जलाली, मुहम्मद बाक़िर, फ़दक वल अवाली अविल हवाएतिस सब्आ फ़िल किताबे वल सुन्नते वल तारीख़े वल अदब, मशहद, दबीर खाना कुंगरे मीरासे इल्मी व मानवी हज़रत ज़हरा (स), 1426 हिजरी
  • हुसैन, जासिम, तारीखे सियासी ग़ैबते इमाम दवाजदहुम, अनुवादः डॉ. सय्यद मुहम्मद तक़ी आयतातुल्लाही, तेहरान, अमीर-कबीर, 1367 शम्सी
  • हल्बी, अबुस सलाह तकी बिन नज्म, तकरीबुल मआरिफ, शोध एंव संशोधनः फ़ारस तबरेज़ियान (अलहसून), क़ुम, अल-हादी, पहला प्रकाशन, 1404 हिजरी
  • हल्बी, अली बिन इब्राहीम, अल-सीरातुल हल्बिया, शोधः अब्दुल्लाह मुहम्मद ख़लीली, बैरूत, दारुल कुतुबुल इल्मिया, 1971 ई
  • ख़ज़्ज़ाज़ राज़ी, अली बिन मुहम्मद, किफायतुल असर फ़िन नस्से अला आइम्मतिल इसना अशर, शोध एंम संशोधन कर्ताः हुसैनी कुह कमरी, अब्दुल लतीफ, क़ुम, बेदार, 1401 हिजरी
  • सुबहानी, हवादिस साले हफ़्तुमे हिजरतः सरगुज़्श्ते फ़दक, मकतबे इस्लाम, साले हीफ्दहुम, क्रमांक 4, फरवरदीन 1385 शम्सी क्रमांक 5, उरदिबहिश्त 1355 शम्सी
  • सुबहानी, फ़ुरूगे विलायत, तारीखे तहलीली जिंदगानी अमीरुल मोमेनान (स), क़ुम, मोअस्सेसा इमामे सादिक (अ), छठा प्रकाशन, 1380 शम्सी
  • सुयूती, जलालुद्दीन, अल-दुर्रूल मंसूर फ़ी तफ़सीरे बिल मासूर, बैरूत, दारुल मारफ़ते लित तबाअते वल नश्र
  • सुयूती, जलालुद्दीन, अल-दुर्रूल मंसूर, जद्दा, पहला प्रकाशन, 1365 हिजरी
  • शहीदी, सय्यद जाफ़र, जिंदगानी ए फ़ातिमा ज़हरा, तेहरान, दफ़्तरे नश्रे फ़रहंगे इस्लामी, 1362 शम्सी
  • शहीदी, सय्यद जाफ़र, अली अज़ ज़बाने अली, तेहरान, दफ़्तरे नश्रे फ़रहंगे इस्लामी, 1377 शम्सी
  • सद्र, मुहम्मद बाकिर, फ़दक फ़ित तारीख, शोधः अब्दुल जब्बार शरारे, मरकज़ुल गदीर लिल दिरासातिल इस्लामीया
  • तबातबाई, मुहम्मद हुसैन, अल-मीज़ान फ़ी तफ़सीरिल क़ुरआन, क़ुम, इंतेशाराते जामे उल-मुदर्रेसीन, 1417 हिजरी
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  • तबरसी, फ़ज़्ल बिन हसन, मजमा उल-बयान फ़ी तफ़सीरिल क़ुरआन, तेहरान, नासिर, ख़ुसरो, 1372 शम्सी
  • तिबरी, मुहम्मद बिन जुरैर बिन रुसतम, अल-मुस्तरशिद फ़ी इमामते अली इब्ने अबी तालिब (अ), शोध और संशोधनः अहमद महमूदी, क़ुम, कोशानपूर, पहला प्रकाशन, 1415 हिजरी
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  • तिबरी, तारीखे उमम वल मुलूक, क़ाहेरा, मतबाउतूल इस्तिकामा, 1939 ई
  • तूसी, मुहम्मद बिन हसन, अल-तिबयान फ़ी तफ़सीर अल-क़ुरआन, बैरूत, दार ए एहयाइत तुरास अल-अरबी
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  • फ़ख़्रे राज़ी, मुहम्मद बिन उमर, मफ़ातीहुल ग़ैब, दारे एहयाइत तुरास अल-अरबी, सेव्वुम, बैरूत, 1420 हिजरी
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  • मजलिसी, मुहम्मद बाकिर, बिहार उल अनवार, शोधः शेख अब्दुज जहरा अलवी, बैरूत, दार उर रज़ा
  • मजलिसी, मुहम्मद बाकिर, बिहार उल अनवार, बैरूत, दार ए एहयाइत तुरास अल-अरबी, दूसरा प्रकाशन, 1403 हिजरी
  • मजलिसी, कूपाई, गुलाम हुसैन, फ़दक अज़ ग्स्ब ता तखरीब, क़ुम, दलीले मा, 1388 शम्सी
  • मुस्लमि बिन हुज्जाज, सहीह मुस्लिम, मशहद, दार उल कुतुब इल्मिया, 1354 शम्सी
  • शेख मुफ़ीद, मुहम्मद बिन मुहम्मद, अल-इख्तिसास, संशोधोनः अली अकबर गफ़्फ़ारी, क़ुम, जामे मुदर्रेसीन हौज़ा ए इल्मिया क़ुम
  • मक़रीज़ी, इम्ताउल अस्मा बेमा लिन-नबी मिनल अहवाले वल अमवाले वल हिफ्दते वल मताअ, बैरूत, दारुल कुतुब उल-इल्मिया, पहला प्रकाशन, 1420 हिजरी
  • याक़ूते हम्वी, याक़ूत बिन अब्दुल्लाह, मोजमुल बुलदान, बैरूत, दारे सादिर, दूसरा प्रकाशन, 1995 ई