सूर ए हश्र

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सूर ए हश्र
सूर ए हश्र
सूरह की संख्या59
भाग28
मक्की / मदनीमदनी
नाज़िल होने का क्रम101
आयात की संख्या24
शब्दो की संख्या445
अक्षरों की संख्या1913


सूर ए हश्र (अरबी: سورة الحشر) 59वां सूरह है और क़ुरआन के मदनी सूरों में से एक है, जो 28वें भाग में स्थित है। इस सूरह का नाम दूसरी आयत से लिया गया है, जो मदीना से यहूदियों के निष्कासन को संदर्भित करता है। सूरह ए हश्र ईश्वर की तस्बीह (महिमा) से शुरू होता है और उसकी तक़्दीस (पवित्रीकरण) के साथ समाप्त होता है। मुसलमानों से बनी नज़ीर यहूदियों की हार, मुसलमानों को युद्ध के बिना मिलने वाली संपत्ति और लूट के बंटवारे के अहकाम, मुनाफ़िकों की फटकार और उनके कार्यों का पर्दाफाश, आप्रवासियों के बलिदानों की प्रशंसा, जैसे मुद्दे इस सूरह में वर्णित हैं।

हदीसों में वर्णित है कि जो कोई सूर ए हश्र पढ़ता है, सभी प्राणी उसे सलाम (दुरूद) और दया (रहमत) भेजते हैं और उसके लिए क्षमा मांगते हैं, और यदि वह पाठ के उसी दिन या रात को मर जाता है, तो उसे शहीद माना जाता है।

परिचय

  • नामकरण

इस सूरह को हश्र कहा जाता है, क्योंकि इसकी दूसरी आयत में हश्र के बारे में बात की गई है, अर्थात बनी नज़ीर के बड़ी संख्या में वचन तोड़ने वाले यहूदियों के विस्थापन की बात कही गई है। इसी कारण इस सूरह का दूसरा नाम "बनी नज़ीर" है।[१]

  • नाज़िल होने का क्रम एवं स्थान

सूर ए हश्र मदनी सूरों में से एक है और यह नाज़िल होने के क्रम में 101वां सूरह है जो पैग़म्बर (स) पर नाज़िल हुआ था। यह सूरह क़ुरआन की वर्तमान व्यवस्था में[२] 59वां सूरह है और 28वें भाग में स्थित है।

  • आयतों की संख्या एवं अन्य विशेषताएँ

सूर ए हश्र में 24 आयतें, 445 शब्द और 1913 अक्षर हैं।[३] यह सूरह मात्रा की दृष्टि से मुफ़स्सलात सूरों (छोटी आयतों के साथ) में से एक है और लगभग आधा हिज़्ब है। इसी तरह सूर ए हश्र मुसब्बेहात सूरों में से एक है, अर्थात यह तस्बीह से शुरू होता है।[४]

इस सूरह को मुम्तहेनात सूरों[५] में भी सूचीबद्ध किया गया है, जिसके बारे में कहा गया है कि इसकी सामग्री सूर ए मुम्तहेना के साथ संगत है।[६]

सामग्री

सूर ए हश्र ईश्वर की तस्बीह (महिमा) और प्रार्थना अर्थात «‌سَبَّحَ لله‌» (सब्बहा लिल्लाहे) से शुरू होता है, और इसकी विशेषता यह है कि अंतिम आयतों में यह ईश्वर के जमाल और जलाल के गुणों और ईश्वर के अस्मा ए हुस्ना और महानता के नामों को संदर्भित करता है। इस सूरह में उठाए गए विषयों में हम निम्नलिखित का उल्लेख कर सकते हैं: बनी नज़ीर यहूदियों की कहानी और मुसलमानों के खिलाफ़ उनकी हार और उनके निर्वासन, मुसलमानों को युद्ध के बिना मिलने वाली संपत्ति और लूट के वितरण के अहकाम, पाखंडियों की फटकार और मुसलमानों के प्रति उनके पाखंडी और विश्वासघाती कार्यों का पर्दाफाश, तथा आप्रवासियों के बलिदानों का वर्णन एवं प्रशंसा। सूर ए हश्र की शुरुआत और समाप्ति के बीच एक विशेष संबंध है; यह सूरह ईश्वर की महिमा (तस्बीह) और अभिषेक (तक़्दीस) से शुरू होता है, «سَبَّحَ لِلَّهِ مَا فِي السَّمَاوَاتِ وَمَا فِي الْأَرْضِ» (सब्बहा लिल्लाहे मा फ़िस्समावाते वमा फ़िल अर्ज़े) और उसी विषय के साथ समाप्त होता है, «يُسَبِّحُ لَهُ مَا فِي السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْ‌ضِ» (युसब्बेहो लहू मा फ़िस्समावाते वल अर्ज़े)।[७]

ऐतिहासिक रिवायात

  • बनी नज़ीर यहूदियों की मुसलमानों से हार और उनका निर्वासन (आयत 2),
  • यहूदियों को पाखंडियों का साथ देने का झूठा वादा (आयत 11-12)।

शाने नुज़ूल: मुसलमानों के खिलाफ़ यहूदी साज़िश

मुख्य लेख: ग़ज़वा ए बनी नज़ीर

जब पैग़म्बर (स) मदीना चले गए, तो उन्होंने वहां के यहूदियों, यानी बनी नज़ीर, बनी क़ुरैज़ा और बनी क़ैनोक़ाअ जनजातियों के साथ एक शांति संधि की; लेकिन उन्होंने साज़िशों से इस समझौते का उल्लंघन किया, जिनमें शामिल हैं: 1. पैग़म्बर (स) को नष्ट करने के लिए कअब बिन अशरफ़ (यहूदियो का बुज़ुर्ग) ने अबू सुफ़ियान के साथ गठबंधन समझौता किया ओहद की लड़ाई के बाद यह ख़बर रहस्योद्घाटन के माध्यम से पैग़म्बर (स) तक पहुंची। 2. बनी नज़ीर जनजाति के यहूदियों की ओर से पैग़म्बर (स) को मारने की अम्र बिन जहाश की साज़िश। 3. पैग़म्बर (स) के ख़िलाफ़ व्यंग्यात्मक और निंदात्मक कविताएँ लिखना।

इन सभी षडयंत्रों के बाद मुसलमानों की एक सेना ने यहूदियों के मज़बूत किले को कई दिनों तक घेरे रखा और किले के चारों ओर के ताड़ के पेड़ों को जलाकर नष्ट कर दिया, कुछ दिनों के बाद उन्होंने यहूदियों को आत्मसमर्पण करने के लिए मजबूर किया और बिना किसी लड़ाई या रक्तपात के जीत हासिल की। इस जीत के बाद और इस्लाम के पैग़म्बर (स) के सुझाव के साथ, यहूदियों ने मदीना छोड़ दिया और अपनी कुछ संपत्ति अपने साथ ले गए और कुछ को नष्ट कर दिया। एक समूह सीरिया में "अज़रआत" गया, कुछ "ख़ैबर" गए और एक समूह "हीरा" गया।[८]

प्रसिद्ध आयतें

अल्लामा तबातबाई ने सूरह की आयत 18 से 24 को आयाते ग़ोरर माना है। उनके अनुसार, इन आयतों में, ईश्वर ने अपने सेवकों को ध्यान (मुराक़ेबा) और गणना (मुहासेबा) के माध्यम से ईश्वर से मिलने की तैयारी करने का निर्देश दिया, और उन्हें दिव्य नामों और गुणों के साथ ईश्वर की महानता की याद दिलाई है।[९] इन आयतों में ज़ोर दिए गए बिंदु इस प्रकार हैं: धर्मपरायणता (तक़्वा), ध्यान , गणना, ईश्वर का जिक्र करना, स्वर्ग के लोगों का जागरूक होना और नर्क के लोगों का ईश्वर को भूल जाना, क़ुरआन की उच्च स्थिति की याद दिलाना, ईश्वर के उन ग्यारह दिव्य नामों का ज़िक्र है जो उनके आधिपत्य, योजना में स्वामित्व, दिव्यता और देवता का हिस्सा हैं।[१०]

फ़ज़ीलत

मुख्य लेख: सूरों के फ़ज़ाइल

पैग़म्बर (स) से वर्णित हुआ है: "जो कोई सूर ए हश्र पढ़ता है, स्वर्ग, नर्क, अर्श, कुर्सी, उसके पर्दे, सातों आसमान, सातों ज़मीन, हवाएं, पक्षी, पेड़, पहाड़, सूर्य, चंद्रमा और फ़रिश्ते सभी उसे शुभकामनाएं (दुरूद) और आशीर्वाद (रहमत) भेजते हैं और उसके लिए क्षमा मांगते हैं और यदि वह सूर ए हश्र का पाठ करने वाले दिन या रात को मर जाता है, तो उसे शहीद माना जाता है।[११] इमाम सादिक़ (अ) को यह कहते हुए भी उद्धृत किया गया है, "जो कोई भी शाम के समय सूर ए रहमान और सूर हश्र का पाठ करता है, तो ईश्वर सुबह तक उसकी देखभाल के लिए एक फ़रिश्ता नियुक्त करेगा"।[१२] कुछ रहस्यवादी (ओरफ़ा) ने सोते समय सूर ए हश्र की आयत لو انزلنا (लौ अंज़लना) से लेकर अंत तक पढ़ने की सिफारिश की है।[१३]

फ़ुटनोट

  1. दानिशनामे क़ुरआन व क़ुरआन पजोही, 1377 शम्सी, खंड 2, पृष्ठ 1255-1254।
  2. मारेफ़त, आमोज़िशे उलूमे क़ुरआन, 1371 शम्सी, खंड 1, पृष्ठ 168।
  3. अबुल फ़ुतूह राज़ी, रौज़ा अल जिनान, 1371 शम्सी, खंड 19, पृष्ठ।
  4. दानिशनामे क़ुरआन व क़ुरआन पजोही, 1377 शम्सी, खंड 2, पृष्ठ 1255-1254।
  5. रामयार, तारीख़े कुरआन, 1362 शम्सी, पृष्ठ 360 और 596।
  6. फ़र्हंगनामे उलूमे क़ुरआन, खंड 1, पृष्ठ 2612
  7. दानिशनामे क़ुरआन व क़ुरआन पजोही, 1377 शम्सी, खंड 2, पृष्ठ 1255-1254।
  8. मकारिम शिराज़ी, बर्गूज़ीदेह तफ़सीर नमूना, 1382 शम्सी, खंड 5, पृष्ठ 132-133।
  9. तबातबाई, अल मीज़ान, प्रकाशन मंशूराते इस्माइलियान, खंड 19, पृष्ठ 201।
  10. तबातबाई, अल मीज़ान, खंड 19, पृष्ठ 201, 217-223।
  11. शेख़ सदूक़, सवाब अल आमाल, 1382 शम्सी, पृष्ठ 117।
  12. तबरसी, मजमा उल बयान, 1406 हिजरी, खंड 9, पृष्ठ 384।
  13. https://hadana.ir/Destorat-Erfani-Allameh-Tahrani-Qebl-Khobs/

स्रोत

  • पवित्र क़ुरआन, मुहम्मद महदी फ़ौलादवंद द्वारा अनुवादित, तेहरान, दार अल कुरआन अल करीम, 1418 हिजरी/1376 शम्सी।
  • अबुल फ़ुतूह राज़ी, हुसैन बिन अली, रौज़ा अल जिनान व रूह अल जनान फ़ी तफ़सीर अल कुरआन, मशहद, आस्ताने कुद्स रज़वी, 1371 शम्सी।
  • रामयार, महमूद, तारीख़े क़ुरआन, तेहरान, इंतेशाराते इल्मी व फ़र्हंगी, 1362 शम्सी।
  • बहरानी, हाशिम बिन सुलेमान, अल बुरहान फ़ी तफ़सीर अल कुरआन, मोअस्सास ए अल बेअसत, क़िस्म अल दरासात अल इस्लामिया, क़ुम, 1389 शम्सी।
  • दानिशनामे क़ुरआन व क़ुरआन पजोही, खंड 2, बहाउद्दीन खुर्रमशाही द्वारा प्रयास, तेहरान, दोस्ताने नाहिद, 1377 शम्सी।
  • शेख़ सदूक़, मुहम्मद बिन अली, सवाब अल आमाल व एक़ाब अल आमाल, मुहम्मद रज़ा अंसारी महल्लाती, क़ुम, नसीम कौसर, 1382 शम्सी।
  • तबरसी, फ़ज़्ल बिन हसन, मजमा उल बयान फ़ी तफ़सीर अल कुरआन, बेरूत, दार अल मारेफ़त, पहला संस्करण, 1406 हिजरी।
  • फ़र्हंगनामे उलूमे क़ुरआन, क़ुम, दफ़्तरे तब्लीग़ाते इस्लामी हौज़ ए इल्मिया क़ुम।
  • मारेफ़त, मुहम्मद हादी, आमोज़िशे उलूमे क़ुरआन, [अप्रकाशित], मरकज़े चाप व नशर साज़माने तब्लीग़ाते इस्लामी, 1, 1371 शम्सी।
  • मकारिम शिराज़ी, नासिर, बर्गूज़ीदेह तफ़सीरे नमूना, दार अल कुतुब अल इस्लामिया, तेहरान, 1382 शम्सी।