सूर ए हदीद (अरबी: سورة الحديد) सत्तावनवाँ सूरह और क़ुरआन के मदनी सूरों में से एक है, जो क़ुरआन के 27वें भाग का हिस्सा है। इस सूरह का नामकरण आयत 25 में हदीद (लोहा) के उल्लेख के कारण है। इस सूरह में एकेश्वरवाद (तौहीद), दैवीय गुण (सिफ़ाते एलाही), क़ुरआन की महानता और क़यामत के दिन विश्वासियों और पाखंडियों की स्थिति जैसे विषयों पर चर्चा की गई है, और अल्लामा तबातबाई के अनुसार, इस सूरह का मुख्य उद्देश्य मुसलमानों को ईश्वर के मार्ग पर दान करने के लिए प्रोत्साहित करना है।
वाक़ेआ सूर ए हदीद मुजादेला | |
सूरह की संख्या | 57 |
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भाग | 27 |
मक्की / मदनी | मदनी |
नाज़िल होने का क्रम | 94 |
आयात की संख्या | 29 |
शब्दो की संख्या | 576 |
अक्षरों की संख्या | 2545 |
सूर ए हदीद में नूह (अ), इब्राहीम (अ) और ईसा (अ) जैसे कुछ पैग़म्बरों की कहानियों पर चर्चा की गई है। छह दिनों में सृष्टि की रचना के बारे में चौथी आयत और क़र्ज़ उल हस्ना की अच्छाई के बारे में 11वीं आयत इस सूरह की प्रसिद्ध आयतों में से हैं।
हदीसों में, नर्क की पीड़ा से मुक्ति और स्वर्ग के आशीर्वाद का आनंद लेना और इमाम ज़माना (अ) से उनकी ज़हूर के समय मिलना इस सूरह को पढ़ने के गुणों और विशेषताओं में से एक है।
परिचय
- नामकरण
इस सूरह को हदीद कहा जाता है; क्योंकि इस शब्द का उल्लेख इसकी पच्चीसवीं आयत में किया गया है।[१] इस आयत में हदीद का अर्थ लोहा है।[२] इमाम अली (अ) से रिवायत में वर्णित हुआ है कि लोहे के नुज़ूल का अर्थ उसकी रचना (ख़िलकत) है। इसके अलावा, एक अन्य कथन में, पैग़म्बर ने लोहे का अर्थ एक हथियार माना है।[३] अल्लामा तबातबाई ने इंज़ाल हदीद (लोहे की रचना) को (लोगों के लिए इसके लाभों के अलावा) लोगों के लिए एक परीक्षा माना है कि वे कैसे सालेह समाज की रक्षा करते हैं और सच्चाई (कलम ए हक़) का प्रचार करते हैं।[४]
- नाज़िल होने का स्थान और क्रम
सूर ए हदीद मदनी सूरों में से एक है और नाज़िल होने के क्रम में यह चौरानवेवाँ सूरह है जो पैग़म्बर (स) पर नाज़िल हुआ था। यह सूरह क़ुरआन की वर्तमान व्यवस्था में सत्तावनवां सूरह है[५] और क़ुरआन के 27वें अध्याय में स्थित है।
- आयतों की संख्या एवं अन्य विशेषताएँ
यह सूरह सात मुसब्बेहात सूरों में से एक है, जो ईश्वर की महिमा (तस्बीह) से शुरू होता है।[६] सूर ए हदीद में 29 आयतें, 576 शब्द और 2545 अक्षर हैं, और यह क़ुरआन के मुफ़स्सलात सूरों (छोटी आयतों के साथ) में से एक है।[७]
सामग्री
तफ़सीर अल मीज़ान में अल्लामा तबातबाई के अनुसार, इस सूरह का मुख्य उद्देश्य लोगों को ईश्वर के मार्ग में दान (इंफ़ाक़) करने को प्रोत्साहित करना है, जिसका उल्लेख सूरह में कई स्थानों पर किया गया है और इसे ईश्वर के पैग़म्बर (स) में विश्वास (ईमान) के स्रोत के रूप में जाना जाता है।[८]
तफ़सीर नमूना के अनुसार, सूरह की सामग्री को सात भागों में विभाजित किया जा सकता है:[९]
- एकेश्वरवाद (तौहीद) और बीस दिव्य गुणों (सिफ़ाते एलाही) का उल्लेख;
- क़ुरआन की महानता;
- पुनरुत्थान के दिन विश्वासियों और पाखंडियों की स्थिति;
- ईमान का आह्वान और अतीत के अविश्वासी (काफ़िर) लोगों का इतिहास;
- दान (इंफ़ाक़) के लिए प्रोत्साहित करना, विशेष रूप से ईश्वर के रास्ते में जिहाद और सांसारिक संपत्ति की व्यर्थता;
- सामाजिक न्याय;
- रोहबानियत (मोनेस्टिज़्म) और सामाजिक अलगाव की अस्वीकृति।
ऐतिहासिक कहानियाँ और आख्यान
पैग़म्बरों का आह्वान: नूह (अ), इब्राहीम (अ) और पैग़म्बरों का एकेश्वरवाद के लिए बुलाना, अन्य पैग़म्बरों को भेजना, मरियम के पुत्र ईसा की नबूवत और उन पर इंजील का रहस्योद्घाटन (नुज़ूल) (आयत 26 ले 27 तक)।
प्रसिद्ध आयतें
छह दिनों में सृष्टि की रचना के बारे में चौथी आयत और क़र्ज़ उल हस्ना के बारे में 11वीं आयत इस सूरह की प्रसिद्ध आयतों में से हैं।
छह दिनों में सृष्टि की रचना
- ...هُوَ الَّذِي خَلَقَ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضَ فِي سِتَّةِ أَيَّامٍ
(होवल लज़ी ख़लक़स समावाते वल अर्ज़ा फ़ी सित्तते अय्यामिन..) (आयत 4)
अनुवाद: वह वही है जिसने छह दिनों में आसमानों और ज़मीन की रचना की।
छह दिनों में सृष्टि की रचना के मुद्दे का क़ुरआन में सात बार उल्लेख किया गया है, पहली बार सूर ए आराफ़ की आयत 54 में और अंतिम बार इसी आयत में उल्लेख किया गया है। इन आयतों में "दिन" का अर्थ कोई साधारण दिन नहीं है; बल्कि, इसका अर्थ है "अवधि" है; चाहे यह अवधि छोटी हो या लंबी, भले ही यह लाखों वर्षों तक चलती हो।[१०]
आय ए क़र्ज़ उल हस्ना
- मुख्य लेख: आय ए क़र्ज़ उल हस्ना
- مَن ذَا الَّذِي يُقْرِضُ اللَّـهَ قَرْضًا حَسَنًا فَيُضَاعِفَهُ لَهُ وَلَهُ أَجْرٌ كَرِيمٌ
(मन ज़ल्लज़ी युक़रेज़ुल्लाहा क़र्ज़न हसनन फ़योज़ाएफ़हु लहु व लहु अजरुन करीम) (आयत 11)
अनुवाद: वह कौन है जो ईश्वर को अच्छा कर्ज़ देता है ताकि (उसका परिणाम) उसके लिए दोगुना हो जाए और उसे अच्छा इनाम मिले?
इस आयत में, "ईश्वर को उधार देना" अभिव्यक्ति का उपयोग दान (इंफ़ाक़) को प्रोत्साहित करने के लिए किया गया है। "प्रभु को उधार देना" का अर्थ उसके मार्ग में दिया जाने वाला कोई भी दान (इंफ़ाक़) है इसका एक महत्वपूर्ण उदाहरण पैग़म्बर (स) और इमाम की सहायता करना है ताकि इस्लामी सरकार के प्रशासन के लिए आवश्यक खर्चों में इसका इस्तेमाल किया जा सके।[११] इमाम अली (अ) के शब्दों में कहा गया है कि ईश्वर ने अपनी कमी की भरपाई के लिए आपसे सहायत नहीं मांगी है या आपसे क़र्ज़ नहीं मांगा है।[१२] इमाम सादिक़ (अ) के एक कथन में वर्णित हुआ है कि स्वर्ग के द्वार पर लिखा है कि कर्ज़ का सवाब (इनाम) अट्ठारह गुना और सदक़ा का सवाब दस गुना है, क्योंकि कर्ज़ सच्चे ज़रूरतमंद तक पहुँचता है, लेकिन सदक़ा किसी तक पहुँच सकता है जो वास्तव में जरूरतमंद नहीं है।[१३]
जीवन की पांच अवस्थाओं की आयत
- اعْلَمُوا أَنَّمَا الْحَيَاةُ الدُّنْيَا لَعِبٌ وَلَهْوٌ وَزِينَةٌ وَتَفَاخُرٌ بَيْنَكُمْ وَتَكَاثُرٌ فِي الْأَمْوَالِ وَالْأَوْلَادِ
(एअलमू अन्नमल हयातुद दुनिया लएबुन व लहवुन वज़ीनतुन व तफ़ाख़ोरुन बैनकुम व तकासोरुन फ़िल अम्वाले वल औलादे) (आयत 20)
अनुवाद: जान लो कि इस संसार का जीवन केवल खेल-कूद और मनोरंजन है, और विलासिता की पूजा करना, तुम्हारे बीच डींगें हांकना, और सम्पत्ति और सन्तान में अधिक की खोज करना है।
और शेख़ बहाई (रहमतुल्लाह) से वर्णित है कि आयत में वर्णित ये पांच लक्षण एक व्यक्ति के जीवन की उम्र और उसके जीवन के चरणों के संदर्भ में एक दूसरे से संबंधित हैं, क्योंकि जब वह बच्चा होता है और अभी युवावस्था (बुलूग़) तक नहीं पहुंचा होता है तो वह खेल का लालची होता है। और जैसे ही वह युवावस्था में पहुंचता है और उसकी हड्डियां मज़बूत हो जाती हैं तो उसकी रूचि मौज-मस्ती और मनोरंजन में होती है। और जब उसकी युवावस्था (बुलूग़) सीमा तक पहुँच जाती है, तो वह स्वयं और अपने जीवन को बनाना (सजाना) शुरू कर देता है और वह हमेशा फैंसी कपड़े खरीदने, एक सुंदर और शानदार सवारी की सवारी करने, एक सुंदर घर बनाने के बारे में सोचता रहता है। और हमेशा अपनी सुंदरता और स्वयं को सजने सवारने में लगा रहता है, और जब वह इस उम्र के बाद बुढ़ापे में आ जाता है तो वह ऐसे मामलों पर ध्यान नहीं देता है, और यह उसके लिए आश्वस्त करने वाला नहीं होता है। बल्कि वह अपने वंश (हसब और नसब) के अनुसार शेखी बघारने के बारे में अधिक सोचता है और जब बूढ़ा हो जाता है तो उसका सारा प्रयास धन और संतान को बढ़ाने में ही खर्च हो जाता है।[१४]
गुण और विशेषताएँ
- मुख्य लेख: सूरों के फ़ज़ाइल
पैग़म्बर (स) से वर्णित हुआ है कि जो कोई भी सूर ए हदीद का पाठ करता है, भगवान नर्क की सज़ा से उसे बचाएगा और स्वर्ग में उसे आशीर्वाद (नेअमत) प्रदान करेगा। और यदि कोई इस सूरह का पाठ हमेशा करता रहेगा, अगर वह कारागार में होगा, हालांकि उसने कई अपराध किए होंगे तो भी वह आज़ाद हो जाएगा।[१५] यह भी पैग़म्बर (स) से वर्णित हुआ है कि जो कोई भी सूर ए हदीद को पढ़ेगा, वह भगवान और उसके पैग़म्बर पर विश्वास (ईमान) करने वालों में गिना जाएगा।[१६] इस के अलावा इमाम बाक़िर (अ) से वर्णित है कि जो व्यक्ति सोने से पहले मुसब्बेहात «مُسَبِّحات» पढ़ता है उसकी मृत्यु तब तक नहीं होगी जब तक कि वह इमाम ज़माना (अ) को न देख ले, और यदि उसकी मृत्यु हो जाती है तो वह ईश्वर के पैग़म्बर (स) के निकट होगा।[१७]
फ़ुटनोट
- ↑ ख़ुर्रमशाही, दानिशनामे क़ुरआन व क़ुरआन पजोही, 1377 शम्सी, खंड 2, पृष्ठ 1254।
- ↑ पवित्र क़ुरआन, मुहम्मद महदी फ़ौलादवंद द्वारा अनुवादित।
- ↑ होवैज़ी, तफ़सीर नूर अल सक़लैन, 1415 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 250।
- ↑ तबातबाई, अल मीज़ान, खंड 19, पृष्ठ 171।
- ↑ मारेफ़त, आमोज़िशे उलूमे क़ुरआन, 1371 शम्सी, खंड 2, पृष्ठ 168।
- ↑ मारेफ़त, अल तम्हीद फ़ी उलूम अल कुरआन, 1388 शम्सी, खंड 5, पृष्ठ 230।
- ↑ खुर्रमशाही, दानिशनामे क़ुरआन व क़ुरआन पजोही, 1377 शम्सी, खंड 2, पृष्ठ 1254।
- ↑ तबातबाई, अल मीज़ान, 1974 ईस्वी, खंड 19, पृष्ठ 143।
- ↑ मकारिम शिराज़ी, बर्गुज़ीदेह तफ़सीर नमूना, 1382 शम्सी, खंड 5, पृष्ठ 91।
- ↑ मकारिम शिराज़ी, बर्गुज़ीदेह तफ़सीर नमूना, 1382 शम्सी, खंड 5, पृष्ठ 94।
- ↑ मकारिम शिराज़ी, बर्गुज़ीदेह तफ़सीर नमूना, 1382 शम्सी, खंड 5, पृष्ठ 98।
- ↑ नहज उल बलाग़ा, ख़ुत्बा 183।
- ↑ अल अरुसी अल होवैज़ी, शेख अब्दुल अली, तफ़सीर नूर अल सक़लैन, 1415 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 239।
- ↑ मूसवी हमदानी, तफ़सीर अल मीज़ान का अनुवाद, खंड 19, पृष्ठ 289। तबातबाई, अल मीज़ान, 1394 हिजरी, खंड 19, पृष्ठ 164।
- ↑ बहरानी, अल बुरहान फ़ी तफ़सीर अल कुरआन, 1389 शम्सी, खंड 5, पृष्ठ 277।
- ↑ तबरसी, मजमा उल बयान, 1406 हिजरी, खंड 9, पृष्ठ 345।
- ↑ मकारिम शिराज़ी, बर्गुज़ीदेह तफ़सीर नमूना, 1382 शम्सी, खंड 5, पृष्ठ 92।
स्रोत
- पवित्र कुरआन, मुहम्मद महदी फ़ौलादवंद, तेहरान द्वारा अनुवादित, दार अल कुरआन अल करीम, 1418 हिजरी, 1376 शम्सी।
- बहरानी, हाशिम बिन सुलेमान, अल बुरहान फ़ी तफ़सीर अल कुरआन, क़ुम, मोअस्सास ए अल बेअसत, क़िस्म अल दरासात अल इस्लामिया, 1389 शम्सी।
- होवैज़ी, अब्दे अली बिन जुमा, तफ़सीर नूर अल सक़लैन, क़ुम, इस्माइलियान, 1415 हिजरी।
- खुर्रमशाही, बहाउद्दीन, दानिशनामे क़ुरआन व क़ुरआन पजोही, तेहरान, दोस्तन नाहिद प्रकाशन, 1377 शण्सी।
- तबातबाई, सय्यद मुहम्मद हुसैन, अल मीज़ान फ़ी तफ़सीर अल कुरआन, बेरूत, मोअस्सास ए अल आलमी लिल मतबूआत, दूसरा संस्करण, 1974 ईस्वी।
- तबरसी, फ़ज़्ल बिन हसन, मजमा उल बयान फ़ी तफ़सीर अल कुरआन, बेरूत, दार उल मारेफ़त, पहला संस्करण, 1406 हिजरी।
- मारेफ़त, मुहम्मद हादी, आमोज़िशे उलूमे क़ुरआन, अबु मुहम्मद वकीली द्वारा अनुवादित, मरकज़े चाप व नशर साज़माने तब्लीग़ाते इस्लामी, 1371 शम्सी।
- मारेफ़त, मुहम्मद हादी, अल तम्हीद फ़ी उलूम अल कुरआन, क़ुम, मोअस्सास ए फ़र्हंगी इंतेशाराती अल तम्हीद, 1388 शम्सी।
- मकारिम शिराज़ी, नासिर, बर्गुज़ीदेह तफ़सीर नमूना, अहमद अली बाबाई के प्रयासों से, तेहरान, दार अल किताब अल इस्लामिया, 1382 शम्सी।