सामग्री पर जाएँ

सूर ए मुहम्मद

wikishia से
इस लेख पर कार्य जारी है।
सूर ए मुहम्मद
सूर ए मुहम्मद
सूरह की संख्या47
भाग26
मक्की / मदनीमदनी
नाज़िल होने का क्रम95
आयात की संख्या38
शब्दो की संख्या542
अक्षरों की संख्या2424


सूर ए मुहम्मद (अरबी: سورة محمد) 47वां सूरह है और क़ुरआन के मदनी सूरों में से एक है, जो अध्याय 26 में स्थित है। दूसरी आयत में मुहम्मद (स) के नाम के उल्लेख के कारण इस सूरह को इस नाम से जाना जाता है।

इसका मुख्य विषय मोमिनों और काफ़िरों की विशेषताएं और आख़िरत में उनका भाग्य है। सूर ए मुहम्मद की सातवीं आयत, जो बताती है कि दैवीय सहायता (नुसरते एलाही) कैसे प्राप्त की जाए, इस सूरह की सबसे प्रसिद्ध आयतों में से एक है। और इस सूरह की चौथी आयत युद्धबंदियों को मारने और उन्हें मुफ्त में या फ़िदया लेने के बदले में मुक्त करने के निषेध के संबंध में है, और इसे आयात उल अहकाम में से एक माना गया है।

ग़रीबी से सुरक्षित रहना और स्वर्गीय झरनों से पानी पाना सूर ए मुहम्मद को पढ़ने के पुरस्कारों में से एक है।

सूरह का परिचय

नामकरण

दूसरी आयत में मुहम्मद (स) के नाम के उल्लेख के कारण, इस सूरह को मुहम्मद के नाम से जाना जाता है। इस सूरह का दूसरा नाम क़ेताल है; क्योंकि इसकी अधिकांश आयतें जिहाद के मुद्दे से संबंधित हैं।[] इस सूरह को "अल लज़ीना कफ़रू" भी कहा जाता है; क्योंकि इसकी शुरुआत इसी वाक्यांश से होती है।[]

नाज़िल होने का स्थान और क्रम

सूर ए मुहम्मद मदनी सूरों में से एक है और नाज़िल होने के क्रम में यह 95वां सूरह है जो पैग़म्बर (स) पर नाज़िल हुआ था। यह सूरह क़ुरआन की वर्तमान व्यवस्था में 47वाँ सूरह है, और यह क़ुरआन के भाग 26 में है।[] अल इतक़ान में जलालुद्दीन सियूती ने नस्फ़ी (उमर बिन मुहम्मद बिन अहमद नस्फ़ी समरकंदी हन्फ़ी 461-537 हिजरी) से उद्धृत किया है कि सूर ए मुहम्मद मक्की है, और निश्चित रूप से सियूती ने इस कहावत को अजीब (ग़ैर प्रसिद्ध) माना है।[]

आयतों की संख्या एवं अन्य विशेषताएँ

सूर ए मुहम्मद में 38 आयतें, 542 शब्द और 2424 अक्षर हैं, और मात्रा के संदर्भ में, यह मसानी सूरों में से एक है और एक हिज़्ब से कम है।[]

सामग्री

सूर ए मुहम्मद का मुख्य ध्यान मोमिनों के अच्छे गुणों और कार्यों और काफ़िरों के बुरे गुणों और कार्यों की गणना करना और क़यामत और जिहाद के मुद्दे में दोनों संप्रदायों के कार्यों के अंत और परिणामों की तुलना करना है।[] इस सूरह के नाज़िल होने का समय और ओहद की लड़ाई का समय समान था इसी कारण इसकी अधिकतर आयतों में युद्ध से सम्बंधित मुद्दों का उल्लेख किया गया है।[]

इस सूरह में मोमिनों के कार्यों को बर्बाद करने और लाभ न पहुंचाने के अर्थ में दो शब्दों ``इज़्लाल और `एह्बात का लगातार उपयोग क़ुरआन के प्रति काफ़िरों के कुफ़्र और नफ़रत से जोड़ा गया है।[]

इस सूरह की सामग्री को इस प्रकार संक्षेप में प्रस्तुत किया जा सकता है:

  1. ईमान और कुफ़्र और इस दुनिया और दूसरी दुनिया में मोमिनों और काफ़िरों की स्थिति की तुलना;
  2. शत्रुओं से जिहाद तथा युद्धबंदियों की स्थिति के बारे में आदेश;
  3. इन आयतों के नुज़ूल के समय मदीना में विनाशकारी गतिविधियों में लगे हुए पाखंडियों की जीवनी;
  4. "ज़मीन पर चलने" और सबक़ (सीखने) के लिए पिछली क़ौमों के भाग्य की जांच (बर्रसी) करने की सलाह देना;
  5. दैवीय परीक्षण (आज़माइशे एलाही) का मुद्दा युद्ध के मुद्दे के सन्दर्भ में;
  6. दान (इंफ़ाक़) पर चर्चा करना और इसकी व्याख्या एक प्रकार के जिहाद के रूप में करना।[]
हज़रत मुहम्मद (स):

पैग़म्बर (स), ने एक व्यक्ति के प्रश्न के उत्तर में कहा जिसने पूछा था कि: वह कौन सी कौम है जो कंजूस नहीं है? (يَسْتَبْدِلْ قَوْمًا غَيْرَكُمْ ثُمَّ لَا يَكُونُوا أَمْثَالَكُمْ यस्तब्दिल क़ौमन ग़ैरकुम सुम्मा ला यकूनू अम्सालकुम) उन्होंने सलमान के कंधे पर हाथ रखा और कहा: उनका मतलब सलमान की कौम (ईरान के लोग) है, उसकी क़सम जिसके हाथ में मेरी जान है, अगर ईमान सोरय्या से जुड़ा होता तो भी फारसियों का एक समूह उस पर कब्ज़ा कर लेता।

स्रोत: होवैज़ी, तफ़सीर नूर अल सक़लैन, खंड 5, पृष्ठ 46।

गुण और विशेषताएं

मुख्य लेख: सूरों के फ़ज़ाइल

पैग़म्बर (स) से वर्णित हुआ है कि यदि कोई सूर ए मुहम्मद का पाठ करता है, तो जब वह क़ब्र में उठेगा और जिधर भी देखेगा उसे ईश्वर के पैग़म्बर (स) दिखाई देंगे और पैग़म्बर उसे स्वर्ग के झरनों से सैराब करेंगे।[१०] धर्म में संदेह न करना, ग़रीबी में न फंसना और ईश्वर और पैग़म्बर द्वारा संरक्षित होना सूरह मुहम्मद का पाठ करने के पुरस्कारों में से एक है, जिसका उल्लेख इमाम सादिक़ (अ) की एक हदीस में किया गया है।[११]

आयात उल अहकाम

सूर ए मुहम्मद की चौथी आयत को आयात उल अहकाम में से एक माना गया है, जो युद्ध की समाप्ति के बाद युद्धबंदियों को सज़ा देने से संबंधित है।[१२] इस आयत में युद्धबंदियों की हत्या को प्रतिबंधित किया गया है और मुसलमानों के नेता (रहबर) को फ़िदया लेकर उन्हें आज़ाद करने या किसी मआवज़ा प्राप्त किए बिना आज़ाद करने का इख्तियार दिया गया है।[१३]

फ़ुटनोट

  1. अल सियूती, अल इत्क़ान फ़ी उलूम अल कुरआन, 1394 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 194। सफ़वी, "सूर ए मुहम्मद", पृष्ठ 805।
  2. खुर्रमशाही, "सूर ए मुहम्मद", पृष्ठ 1251।
  3. मारेफ़त, आमोज़िशे उलूमे क़ुरआन, 1371 शम्सी, खंड 2, पृष्ठ 168।
  4. सियूती, अल इत्क़ान फ़ी उलूम अल कुरआन, 1416 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 43।
  5. खुर्रमशाही, "सूर ए मुहम्मद", पृष्ठ 1251।
  6. तबातबाई, अल मीज़ान, 1390 हिजरी, खंड 18, पृष्ठ 222।
  7. मकारिम शिराज़ी, तफ़सीर नमूना, 1371 शम्सी, खंड 21, पृष्ठ 388।
  8. मुग़्निया, अल काशिफ, 1424 हिजरी, खंड 7, पृष्ठ 66।
  9. मकारिम शिराज़ी, तफ़सीर नमूना, 1371 शम्सी, खंड 21, पृष्ठ 388।
  10. बहरानी, अल बुरहान, 1389 शम्सी, खंड 5, पृष्ठ 53; सालबी, अल कश्फ़ व अल बयान, 1422 हिजरी, खंड 9, पृष्ठ 28।
  11. सदूक़, सवाब उल आमाल व एक़ाब उल आमाल, 1382 शम्सी, पृष्ठ 223।
  12. मकारिम शिराज़ी, तफ़सीर नमूना, 1371 शम्सी, खंड 21, पृष्ठ 400।
  13. मकारिम शिराज़ी, तफ़सीर नमूना, 1371 शम्सी, खंड 21, पृष्ठ 400।
  1. मकारिम शिराज़ी, तफ़सीर नमूना, 1371 शम्सी, खंड 21, पृष्ठ 425।
  2. तबातबाई, अल मीज़ान, 1393 हिजरी, खंड 18, पृष्ठ 229।
  3. नहज उस बलाग़ा, उपदेश 183।
  4. हुसैनी तेहरानी, इमाम शनासी, खंड 1, पृष्ठ 184-187।
  5. मजलिसी, बिहार उल अनवार, 1403 हिजरी, खंड 100, पृष्ठ 227 और 228, इब्ने क़ूलवैह क़ुमी, कामिल अल ज़ियारात, 1417 हिजरी, खंड 44।
  6. तबातबाई, अल मीज़ान, अल नाशिर मंशूरात इस्माईलियान, खंड 18, पृष्ठ 249।
  7. अल मुल्ला सद्रा, तफ़सीर अल कुरआन अल करीम, 1366 शम्सी, खंड 2, पृष्ठ 82।
  8. अल मुल्ला सद्रा, तफ़सीर अल कुरआन अल करीम, 1366 शम्सी, खंड 4, पृष्ठ 95।

स्रोत

  • पवित्र क़ुरआन, मुहम्मद महदी फ़ौलादवंद द्वारा अनुवादित, तेहरान: दार उल कुरआन अल करीम, 1376 शम्सी।
  • बहरानी, हाशिम बिन सुलेमान, अल बुरहान फ़ी तफ़सीर अल कुरआन, क़ुम, मोअस्सास ए अल बेअसत, क़िस्म अल दरासात अल इस्लामिया, 1389 शम्सी।
  • ख़ुर्रमशाही, क़ेवामुद्दीन, "सूर ए मुहम्मद", तेहरान, दोस्तन प्रकाशन, तेहरान, 1377 शम्सी।
  • सियूती, जलालुद्दीन, अल इत्क़ान फ़ी उलूम अल कुरआन, शोध: सईद अल मंदूब, लेबनान, दार उल फ़िक्र, पहला संस्करण, 1416 हिजरी।
  • सदूक़, मुहम्मद बिन अली, सवाब उल आमाल व एक़ाब उल आमाल, क़ुम, दार अल शरीफ अल रज़ी, 1406 हिजरी।
  • सफ़वी, सलमान, "सूर ए मुहम्मद", दानिशनामे मआसिर क़ुरआन करीम, क़ुम, सलमान आज़ादेह प्रकाशन, 1396 शम्सी।
  • तबातबाई, सय्यद मुहम्मद हुसैन, अल मीज़ान फ़ी तफ़सीर अल कुरआन, बेरूत, मोअस्सास ए अल आलमी लिल मतबूआत, 1390 हिजरी।
  • क़ुमी, अली इब्ने इब्राहीम, तफ़सीर अल क़ुमी, दार उल किताब, क़ुम 1363 शम्सी।
  • मारेफ़त, मुहम्मद हादी, आमोज़िशे उलूमे क़ुरआन, अबू मुहम्मद वकीली द्वारा अनुवादित, मरकज़े चाप व नशर साज़माने तब्लीग़ाते इस्लामी, 1371 शम्सी।
  • मुग़्निया, मुहम्मद जवाद, तफ़सीर अल काशिफ़, क़ुम, दार उल किताब अल इस्लामिया, 1424 हिजरी।
  • मकारिम शिराज़ी, नासिर, तफ़सीर नमूना, तेहरान, दार उल कुतुब अल इस्लामिया, 1371 शम्सी।
  • अल मुल्ला सद्रा, तफ़सीर अल कुरआन अल करीम, मुहम्मद इब्ने इब्राहीम, क़ुम, प्रकाशक: बीदार, दूसरा संस्करण, 1366 शम्सी।
  • वाहेदी, अली इब्ने अहमद, असबाबे नुज़ूल अल क़ुरआन, बेरूत, दार उल कुतुब अल इल्मिया, 1411 हिजरी।