बनी इसराइल का नदी पार करना
बनी इसराइल का नदी पार करना (अरबी:اجتياز بني إسرائيل البحر) बनी इसराइल को बचाने के लिए यह एक चमत्कार था जो तब हुआ जब नदी में रास्ता बन गया और वे पानी से होकर गुज़रे और फ़िरौन और उसके सैनिक डूब गए। मूसा (अ) ने ईश्वर के आदेश से रात में बनी इसराइल को मिस्र से बाहर निकाला। फ़िरौन ने अपनी सेना समेत उनका पीछा किया। जब फ़िरौन की सेना बनी इसराइल के पास पहुंची, तो बनी इसराइल ने अपने आप को नदी और फ़िरौन की सेना से घिरा हुआ पाया।
परमेश्वर ने मूसा (अ) पर वही की कि अपनी लाठी नदी पर मारे। मूसा (अ) ने लाठी को पानी में मारा और नदी में रास्ता बन गया। मूसा (अ) ने बनी इसराइल के साथ नदी में प्रवेश किया, जबकि ज़मीन सूखी थी और पानी ने उन्हें दोनों ओर से घेर लिया था। आख़िरकार मूसा और उनके साथ के सभी लोग पानी से गुज़रे। फ़िरौन और उसकी सेना, जो बनी इसराइल का पीछा करने के लिए नदी में उतरे, सभी डूब गए और उनके शव पानी पर रह गए।
कई टीकाकारों का मानना है कि जिस नदी में फ़िरौन डूबा था उसे अब लाल सागर कहा जाता है। कुछ टिप्पणीकारों, जैसे कि मजला उल बयान में तबरसी, ने इसे नील नदी माना है।
बनी इसराइल का मिस्र से भागना और नदी तक पहुँचना
क़ुरआन की व्याख्या के स्रोतों के आधार पर, बनी इसराइल को फ़िरौन के उत्पीड़न से बचाने के लिए, ईश्वर ने मूसा (अ) को बनी इसराइल के साथ रात में मिस्र छोड़ने का आदेश दिया।[१] बनी इसराइल के प्रस्थान के बारे में जानने के बाद, फ़िरौन ने सेना इकट्ठा करने के लिए लोगों को शहरों में भेजा।[२] जनमत प्रदान करने और लोगों को मनोवैज्ञानिक रूप से तैयार करने के लिए,[३] फ़िरौन ने अपने सैनिकों को एक तैयार समूह कहा और बनी इसराइल को एक छोटे समूह के रुप में प्रस्तुत किया जो उनके क्रोध का कारण बना है।[४]
अन्त में फ़िरौन बनी इसराइल को वापस लाने के लिये अपनी सेना के साथ उनके पीछे गया।[५] वे सूर्योदय के समय बनी इसराइल के पास पहुँचे। बनी इसराइल ने अपने आप को घिरा हुआ पाया: एक तरफ नदी थी और दूसरी ओर फ़िरौन की सेना थी। इस कारण से, वे डर गए और अपने आप को फँसा हुआ बताया।[६] क़ुरआन की व्याख्या के अनुसार, मूसा (अ) ने कहा: "ऐसा नहीं है; क्योंकि मेरा प्रभु मेरे साथ है और शीघ्र ही मेरा मार्गदर्शन करेगा।”[७] इस व्याख्या का अर्थ यह बताया गया है कि ईश्वर ने मूसा को विजय और शांति का वादा किया था।[८]
नदी में रास्ता बनने का चमत्कार
बनी इसराइल को बचाने और फ़िरौन के नदी में डूबने की कहानी का उल्लेख क़ुरआन की कई सूरों में किया गया है, जिनमें सूर ए आराफ़ आयत 136, सूर ए अंफ़ाल आयत 54, सूर ए इस्रा आयत 103, सूर ए शोअरा आयत 63-66 और सूर ए ज़खरुफ़ आयत 55 शामिल हैं।[९] सूर ए शोअरा की आयत 63 के अनुसार, ईश्वर ने मूसा (अ) को वही की कि वह अपनी लाठी को नदी पर मारे[१०] ताकि नदी के बीच में एक सूखा रास्ता खुल जाए और उसमें से डूबने और फ़िरौन की सेना द्वारा पीछा किये जाने के डर के बिना गुज़रना संभव हो सके।[११]
जब मूसा (अ) ने पानी में अपनी लाठी मारी, तो नदी का पानी अलग हो गया।[१२] इस नदी से अलग हुआ प्रत्येक हिस्सा पहाड़ के एक बड़े टुकड़े की तरह था।[१३] मूसा, बनी इसराइल के साथ नदी में प्रवेश कर गए।[१४] जबकि ज़मीन सूखी थी, और पानी ने उन्हें दोनों ओर से घेर लिया था।[१५] अन्त में मूसा और उनके संग के सब लोग पानी को पार कर गए।[१६] परन्तु फ़िरौन और उसकी सेना, जो बनी इसराइल का पीछा करने के लिए नदी में उतरे थे, सब[१७] डूब गए।[१८]
छठी शताब्दी के शिया टिप्पणीकार फ़ज़्ल बिन हसन तबरसी सहित कुछ टिप्पणीकारों ने कहा है कि नदी पर लाठी से मारने के बाद, पानी के बीच बारह रास्ते खुल गए थे और बनी इसराइल के बारह जनजातियों में से प्रत्येक के लिए एक रास्ता बनाया गया था।[१९]
कुछ विद्वानों ने नदी के पानी के खुलने की प्राकृतिक संभावनाओं का उल्लेख किया है: शिया टिप्पणीकार मकारिम शिराज़ी का मानना है कि चमत्कार के मुद्दे को स्वीकार करने बाद, ऐसे प्राकृतिक औचित्य की कोई आवश्यकता नहीं है। उनका मानना है कि इसमें कोई बाधा नहीं है कि ईश्वर की आज्ञा से पानी एक विशेष आकर्षण के कारण संघनित हो जाये और कुछ समय बाद यह आकर्षण निष्प्रभावी हो जाये।[२०]
क़ुरआन:"जब दोनों समूहों ने एक दूसरे को देखा तो मूसा के साथियों ने कहाः हम तो अवश्य फँस गये। (सूर ए शोअरा, आयत 61)
तौरेत:"उन्होंने मोशेह (मूसा) से कहा: क्या मिस्र में कोई क़ब्र नहीं है कि तुम हमें इस रेगिस्तान में मरने के लिए ले आए?" तुम ने हमारे साथ ये क्या किया, कि हम को मिस्र से निकाल ले आए? क्या यह वही बात नहीं है जो हमने मिस्र में तुम से कही थी? हमें हमारे हाल पर छोड़ दो ताकि हम मिस्रवासियों की गुलामी करें; क्योंकि मिस्रियों की ग़ुलामी हमारे लिये सेहरा में मरने से अच्छी है। (तौरेत, खुरूज, 14:11-12)
फ़िरौन और उसकी सेना का डूबना
जब नदी फट गई और बनी इसराइल उसमें से होकर चले गए, तब फ़िरौन और उसकी सेना भी उनका पीछा करने के लिये नदी में घुस गई; लेकिन नदी अपनी सामान्य स्थिति में आ गई और फ़िरौन और उसके साथी डूब गए।[२१] फ़िरौन के सैनिकों के शव पानी के ऊपर आ गए और बनी इसराइल ने उन्हें देखा।[२२] क़ुरआन ने सूर ए बक़रा में इस घटना का वर्णन इस प्रकार किया है: "और जब हमने तुम्हारे लिए नदी को दो भागों में बाँट दिया और तुम्हें बचा लिया और फिरऔनियों को तुम्हारे देखते देखते डुबो दिया।"[२३]
सूर ए यूनुस की आयत 92 में, अभिव्यक्ति «نُنَجِّیکَ بِبَدَنِکَ» "नोनज्जीका बे बदनेका" (अनुवाद: हम तुम्हारे शरीर को बचाएंगे) का प्रयोग फ़िरौन के लिए किया गया है।[२४] प्रसिद्ध टीकाकारों ने इस अभिव्यक्ति का अर्थ फ़िरौन का निर्जीव शरीर माना है।[२५] ईश्वर की आदेश से फ़िरौन का शरीर पानी से बाहर आया[२६] ताकि अन्य उसके शरीर को देख सके।[२७] कुछ लोगों ने शरीर का अर्थ कवच माना है, जिसे ईश्वर ने अपने विशेष कवच से फ़िरौन को पानी से बाहर निकाला है।[२८] क़ुरआन फ़िरौन के निर्जीव शरीर को बचाने को दूसरों के लिए एक संकेत और सबक मानता है। कुछ टिप्पणीकारों ने इसे बनी इसराइल के लिए एक सबक माना है, जिन्होंने फ़िरौन की मृत्यु की खबर को स्वीकार नहीं किया था।[२९]
नील या लाल सागर?
क़ुरआन में उस पानी का जो बनी इसराइल के लिए खोला गया था उसका दो अभिव्यक्तियों «یَم» "यम"[३०] जिसका अर्थ है नदी[३१] और «بحر» "बह्र"[३२] जिसका अर्थ है समुद्र और विशाल पानी[३३] के साथ उल्लेख किया है। शिया टिप्पणीकार मुहम्मद जवाद मुग़्निया का मानना है कि कई टिप्पणीकारों का मानना है कि जो नदी बनी इसराइल के लिए खोली गई थी और फ़िरौन उसमें डूब गए थे, वही नदी थी जिसे आज लाल सागर कहा जाता है।[३४] कुछ टिप्पणीकारों, जैसे कि मजला उल बयान में तबरसी, ने इसे नील नदी माना है।[३५]
क़ुरआन में, «یَم» "यम" शब्द का प्रयोग उस पानी के लिए भी किया गया है जिसमें मूसा (अ) को बचपन में रखा गया था, जिसे नील नदी माना गया है।[३६]
फ़ुटनोट
- ↑ मुग़्निया, तफ़सीर अल काशिफ़, 1424 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 498।
- ↑ मुग़्निया, तफ़सीर अल काशिफ़, 1424 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 498।
- ↑ मकारिम शिराज़ी, तफ़सीर नमूना, 1374 शम्सी, खंड 15, पृष्ठ 237।
- ↑ सूर ए शोअरा, आयत 54-56।
- ↑ मुग़्निया, तफ़सीर अल काशिफ़, 1424 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 498।
- ↑ तबातबाई, अल मीज़ान, 1417 हिजरी, खंड 15, पृष्ठ 277।
- ↑ सूर ए शोअरा, आयत 62।
- ↑ तबातबाई, अल मीज़ान, 1417 हिजरी, खंड 15, पृष्ठ 277।
- ↑ मकारिम शिराज़ी, तफ़सीर नमूना, 1374 शम्सी, खंड 1, पृष्ठ 250।
- ↑ सूर ए शोअरा, आयत 63।
- ↑ मकारिम शिराज़ी, तफ़सीर नमूना, 1374 शम्सी, खंड 13, पृष्ठ 257।
- ↑ तबातबाई, अल मीज़ान, खंड 15, पृष्ठ 277-278।
- ↑ फ़ज़्लुल्लाह, तफ़सीर मिन वही अल कुरआन, 1419 हिजरी, खंड 17, पृष्ठ 119।
- ↑ तबातबाई, अल मीज़ान, खंड 15, पृष्ठ 278।
- ↑ फ़ज़्लुल्लाह, तफ़सीर मिन वही अल कुरआन, 1419 हिजरी, खंड 17, पृष्ठ।
- ↑ तफ़सीर अल साफ़ी, खंड 4, पृष्ठ 37।
- ↑ सूर ए इस्रा, आयत 103।
- ↑ हुसैनी हमदानी, अनवारे दरख्शां, 1404 हिजरी, खंड 8, पृष्ठ 293।
- ↑ तबरसी, मजमा उल बयान, 1372 शम्सी, खंड 1, पृष्ठ 229।
- ↑ मकारिम शिराज़ी, तफ़सीर नमूना, 1374 शम्सी, खंड 15, पृष्ठ 250।
- ↑ हुसैनी हमदानी, अनवारे दरख्शां, 1404 हिजरी, खंड 8, पृष्ठ 293।
- ↑ मकारिम शिराज़ी, तफ़सीर नमूना, 1374 शम्सी, खंड 1, पृष्ठ 252।
- ↑ सूर ए बक़रा, आयत 50।
- ↑ सूर ए यूनुस, आयत 92।
- ↑ मकारिम शिराज़ी, तफ़सीर नमूना, 1374 शम्सी, खंड 8, पृष्ठ 377।
- ↑ हुसैनी शिराज़ी, तबईन अल कुरआन, 1423 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 231।
- ↑ फ़ैज़ काशानी, तफ़सीर अल साफ़ी, 1415 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 417।
- ↑ मकारिम शिराज़ी, तफ़सीर नमूना, 1374 शम्सी, खंड 8, पृष्ठ 377।
- ↑ क़ुमी, तफ़सीर अल क़ुमी, 1404 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 316।
- ↑ सूर ए आराफ़, आयत 136।
- ↑ इब्ने मंज़ूर, लेसान अल अरब, 1414 हिजरी, खंड 12, पृष्ठ 647; फ़यूमी, अल मिस्बाह अल मुनीर, क़ुम, खंड 2, पृष्ठ 681।
- ↑ सूर ए आराफ़, आयत 138; सूर ए शोअरा, आयत 63।
- ↑ क़ुरैशी, क़ामूसे कुरआन, 1371 शम्सी, खंड 1, पृष्ठ 162।
- ↑ मुग़्निया, तफ़सीर अल काशिफ़, 1424 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 100।
- ↑ तबरसी, मजमा उल बयान, 1372 शम्सी, खंड 4, पृष्ठ 726।
- ↑ शेख़ तूसी, अल तिब्यान, बेरूत, खंड 131।
स्रोत
- इब्ने मंज़ूर, मुहम्मद बिन मुकर्रम, लेसान अल अरब, बेरूत, दार सादिर, तीसरा संस्करण, 1414 हिजरी।
- हुसैनी शिराज़ी, सय्यद मुहम्मद, तब्ईन अल कुरआन, बेरूत, दार उल उलूम, दूसरा संस्करण, 1423 हिजरी।
- हुसैनी हमदानी, सय्यद मुहम्मद हुसैन, अनवारे दरख्शां, शोध: मुहम्मद बाक़िर बेहबूदी, तेहरान, लुत्फ़ी बुकस्टोर, पहला संस्करण, 1404 हिजरी।
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- क़ुमी, अली बिन इब्राहीम, तफ़सीर अल क़ुमी, अनुसंधान और सुधार: सय्यद तय्यब मूसवी जज़ायरी, क़ुम, दार अल कुतुब, तीसरा संस्करण, 1404 हिजरी।
- मुग़्निया, मुहम्मद जवाद, तफ़सीर अल काशिफ़, तेहरान, दार उल कुतुब अल इस्लामिया, पहला संस्करण, 1424 हिजरी।
- मकारिम शिराज़ी, नासिर, तफ़सीर नमूना, तेहरान, दार उल कुतुब अल इस्लामिया, पहला संस्करण, 1374 शम्सी।