अहकाम वाली आयतें

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यह लेख "अहकाम वाली आयतों" की अवधारणा के बारे में है। क़ुरआन की फ़िक़्ही आयतो की सूची देखने के लिए अहकाम वाली आयतों की सूची वाले लेख को देखें।

अहकाम वाली आयतें (अरबी: آيات الأحكام) या फ़िक्हुल क़ुरआन, क़ुरआन की वो आयतें जो शरई अहकाम को व्यक्त करती हैं या जिनसे शरई अहकाम को समझा जाता है; शरई अहकाम का अर्थ है अहकाम को व्यवहारिक बनाना जैसेः नमाज़, ज़कात और जिहाद हैं, न कि एतेक़ादी और नैतिक अहकाम कुरान की पाँच सौ आयतें अहकाम वाली आयतों के नाम से प्रसिद्ध हैं।

क़ुरआन न्यायशास्त्र का पहला स्रोत है। रिवायतो के अनुसार, धर्म के व्यावहारिक अहकाम को प्राप्त करने के लिए कुरान की ओर रजूअ करना पैग़ंबर (स) के समय से सहाबीयो के बीच प्रथागत रहा है। कुछ मामलों में, इमाम क़ुरआन की आयतों का हवाला देकर लोगों को शरई अहकाम व्यक्त करते थे। अहकाम वाली आयतो पर इमाम मुहम्मद बाक़िर (अ) और इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) के सहाबी मुहम्मद बिन साएब कल्बी (मृत्यु 146 हिजरी) ने पहली किताब लिखी थी।

फ़िक्हुल क़ुरआन के बारे में कई किताबें लिखी गई हैं, जिनमें से कई को "आयात अल-अहकाम" कहा जाता है। इन कार्यों के लेखकों ने अहकाम वाली अयतो की विशेषताओं के अनुसार आयतो को कई श्रेणियों में रखा है; उदाहरण के लिए, वो आयतो जिनमे कई हुक्म बयान किए गए है उनको एक श्रेणी मे और जिनमे एक हुक्म बयान हुआ है उनको दूसरी श्रेणी मे रखा है। और कुछ अहकाम वाली आयते रद्द हो गई है और उनके स्थान पर नया हुक्म आया है। जैसे कानाफूसी वाली आयत

परिभाषा

क़ुरआन की वो आयतें जो शरई अहकाम से संबंधित हैं या जिनसे कोई शरई हुक्म प्राप्त किया जाता, उन्हें आयात अल-अहकाम (अहकाम वाली आयतो)[१] और दूसरे शब्दों में फ़िक़्हुल-क़ुरआन[२] कहा जाता है। शरई अहकाम का अर्थ है अहकाम को व्यवहारिक बनाना जैसे कि नमाज़, रोज़ा, जिहाद और ज़कात, नैतिक या एतेक़ादी अहकाम नहीं।[३] उल्लेखनीय है कि "आयातुल-अहकाम" शब्द कई किताबों का शीर्षक है जिनमे मुसलमानों के व्यावहारिक अहकाम से संबंधित चर्चा की गई हैं।[४] [नोट १]

कुरआन अहकाम का पहला स्रोत

कुरआन इस्लामी फ़िक्ह के लिए पहला और सबसे बुनियादी स्रोत है।[५] ऐसी कई आयतें और रिवयतें हैं जो कुरआन को धर्म के ज्ञान के स्रोत के रूप में पेश करती हैं और एक ऐसी किताब है जो हराम और हलाल को परिचित कराती हैं।[६] कुछ शिया जिन्हें अख़बारी कहा जाता है, उनका मानना है कि शरई अहकाम प्राप्त करने का एकमात्र स्रोत अखबार और हदीस हैं, और क़ुरआन को हदीस के माध्यम से पहचाना जाना चाहिए, और क़ुरआन का डाइरेक्ट अहले-बैत (अ) की व्याख्या के बिना उसका उपयोग निषिद्ध है।[७]

क़ुरआन में शरई अहकाम के सभी भागो का विवरण नहीं मिलता हैं। क़ुरआन में जो उल्लेख किया गया है वह शरीयत के सामान्य अहकाम (कुल्ली अहकाम) और शरीयत के कानून हैं, जिनका विवरण मासूमीन (अ) की हदीसो से प्राप्त किया जा सकता है;[८] उदाहरण के लिए, नमाज़ के वाजिब होने का हुक्म कुरआन की आयतों से लिया जा सकता है; लेकिन कितनी रकअत है और उसमें कौन-कौन से अरकान हैं और उसमें कौन-कौन से ज़िक्र पढ़ने चाहिए, इसका वर्णन हदीसों में किया गया है।

यह भी देखेः चार तर्क (अदिल्ला ए अरबआ)

इतिहास

वर्णित हदीसों के अनुसार,[९] कुरान की ओर रजूअ करना और उसकी आयतो अहकाम प्राप्त करना पैगंबर (स) और कुरआन के नाज़िल होने के समय से शुरू हुआ, और यह सहाबीयो और इमामो के साथीयो के बीच प्रचलित था। कुछ मामलों में, इमाम कुरान की आयतों का हवाला देकर लोगों को शरई अहकाम व्यक्त करते थे।; उदाहरण के लिए यह वर्णन किया गया है कि अब्दुल आला ने इमाम सादिक़ (अ) से अर्ज़ किया कि मैं गिर गया और मेरे पैर के अंगूठे का नाखून फट गया और मुझे इसे बंद करना पड़ा, अब मुझे वुज़ू के लिए क्या करना चाहिए। इमाम (अ) ने फ़रमाया: इसका और इसके समान मामले का [हुक्म] इस आयत से समझा जा सकता है: "[अल्लाह] ने धर्म में आपके लिए इतना कठिन नहीं बनाया है";[१०] इसी (बंद घाव) के ऊपर मसा करो।[११]

शिया फ़ुक़्हा ने हमेशा शरई अहकाम को प्राप्त करने के लिए कुरआन और उसकी फ़िक़्ही आयतो का उल्लेख किया है। लेकिन अहकाम वाली आयतो के क्षेत्र में मुस्तक़िल कार्यों को इकट्ठा करने और लिखने की पृष्ठभूमि दूसरी शताब्दी हिजरी की ओर पलटती है। ऐसा कहा जाता है कि इस विषय पर पहली किताब इमाम बाक़िर (अ) और इमाम सादिक़ (अ) के सहाबी मुहम्मद बिन साएब कल्बी (मृत्यु 146 हिजरी) द्वारा लिखी गई थी।[१२]

संख्या और विषय

अहकाम वाली आयतो की संख्या के बारे में अलग-अलग मत हैं। कुछ रिवायतो में है कि कुरआन का एक चौथाई भाग शरई अहकाम से संबंधित है[१३] और कुछ दूसरी रिवायतो में है कि एक तिहाई आयतें शरई अहकाम को बयान करती है।[१४] शिया फ़ुक़्हा के बीच प्रसिद्ध है कि अहकाम वाली आयतो की संख्या पांच सौ हैं। साथ ही कहा गया है कि इस संबंध में कोई निश्चित संख्या नहीं बताई जा सकती है; क्योंकि एक फ़क़ीह के लिए यह संभव है कि वह एक आयत से हुक्म प्राप्त करे और दूसरा फ़क़ीह उस आयत से हुक्म प्राप्त न करे।[१५] यह संभव है कि पाँच सौ की संख्या बताने वाला पहला व्यक्ति मुक़ातिल इब्न सुलेमान (मृत्यु 150 हिजरी) हो।[१६] अहकाम वाली आयतो मे सबसे बड़ी आयत जोकि कुरआन की सबसे बड़ी आयत भी है, जो सूरा ए बकरह की आयत न 282 है, जो दैन वाली आयत के नाम से मशहूर है।

अहकाम वाली आयतो के विषयों के बारे में भी कहा गया है, अहकाम वाली आयतो और फ़िक़्हुल कुरआन की किताबों में उठाए गए विषयों पर सरसरी नज़र डालने से पता चलता है कि यह वही विषय और अध्याय है जिनकी चर्चा न्यायशास्त्र की पुस्तकों मे की जाती हैं; तहारत, नमाज़, रोज़ा, ख़ुम्स, ज़कात, निकाह और विरासत जैसे विषय है। (देखें: फ़िक़्ह के अध्याय)।[१७]

स्पष्ट उदाहरण

मुख्य लेख: अहकाम वाली आयतो की सूची

आयतो के वो उदाहरण जिनमें स्पष्ठ रूप से प्रसिद्ध शरई अहकाम बयान हुए है:

  • वुज़ू वाली आयत: "हे ईमान लाने वाले, जब तुम नमाज़ के लिए खड़े हों, तो अपना चेहरा और हाथ कोहनियों तक धोओ, और अपने सिर और पैरों को टखनो तक मसा करो।"[१८]
  • तयम्मुम वाली आयत: "और यदि तुम बीमार हो या यात्रा पर हो, या तुम में से किसी को मलत्याग हुआ, या तुमने महिलाओं के साथ शारीरिक संबंध बनाए और पानी नही मिला; तो पाक साफ मिट्टी से तयम्मुम करो और इसे अपने चेहरे और हाथों पर मसह करो। अल्लाह आप पर सख्ती नहीं करना चाहता, बल्कि आपको शुद्ध करना चाहता हैं।"[१९]
  • ख़ुम्स वाली आयत: "जान लो कि जो भी ग़नीमत (जंग मे जो माल मिलता है) तुम्हे मिले, उसका खुम्स खुदा, पैगंबर, ज़िल क़ुर्बा, अनाथो, गरीबो और रास्ते में परेशान हाल (अर्थात जिस व्यक्ति के पास सफर मे पैस खत्म हो गया हो) लोगों के लिए है ..."[२०]
  • रोज़े वाली आयत: "हे वो लोग जो ईमान लाए, तुम्हारे ऊपर रोज़ा वाजिब किया गया है; जैसा कि तुम से पहले वालों के लिए वाजिब किया गया था। ताकि तुम मुत्तक़क़ी बन सको"।[२१]

आयतो का विभाजन

शिया फ़ुक़्हा ने अहकाम वाली आयतो को विशेषताओं के अनुसार उन्हें कई श्रेणियों में रखा है; उदाहरण के लिए, इन आयतों को हुक्म के आधार पर चार समूहों में विभाजित किया गया है:

  1. वो आयते जो किसी विशेष हुक्म को व्यक्त करती हैं;
  2. वो आयते जो सामान्य हुक्म व्यक्त करती हैं;
  3. वो आयते जिनसे फ़िक्ही नियम लिया जाता है;
  4. वो आयते जिनसे उसूली नियम निकाला निकाला जाता है।[२२][नोट २]

हुक्म के आधार पर एक और विभाजन प्रस्तुत किया गया है:

  1. वो आयतो जो किसी एक विशेष हुक्म को स्पष्ट रूप से बयान करती हैं।
  2. वो आयतें जो निंदा, धमकी या वादा को किसी मुखातब को हुक्म समझाती है।
  3. वो आयतें जो अम्र (आदेश) और नही (मना) करती है।
  4. ऐसी आयतें जो ख़बर देती है और किसी हुक्म की हिकायत करती है।[२३] [नोट ३] इसी तरह वो आयते जो शाने नज़ूल –अर्थात आयत के नाज़िल होने का कारण- रखती है या नही अथवा एक हुक्म बयान करती है या कई हुक्म बयान करती है।[२४]

कुछ आयतो का मंसूख़ हो जाना

मुख्य लेख: नासिख़ और मंसूख

शिया विद्वानों का मानना है कि कुरआन की कुछ आयते मंसूख (अर्थात निरस्तीकरण) हुई है, हालांकि वे किस आयत का निरस्तीकरण हुआ है इसमे मतभेद पाया जाता हैं। निरस्तीकरण का अर्थ है नए हुक्म के आगमन के साथ पहले वाला हुक्म हटाना, इस प्रकार कि यदि दूसरा हुक्म न आए, तो पहला हुक्म क़ियामत के दिन तक बना रहे। क़ुरआन ने खुद दो आयतों (सूरा ए बकरा की आयत न 106 और सूरा ए नहल की आयत न 101) में हुक्म के निरस्तीकरण की बात कही है।[२५] शिया विद्वान आयत के निरस्तीकरण को दूसरी आयत के माध्यम से स्वीकार करते है, लेकिन कुरआन की आयत के निरस्तीकरण को रिवायत के माध्यम से कम लोगो ने स्वीकार किया है।[२६] जिन आयतो के निरस्तीकरण की बात कही गई है वह सूरा ए अंफ़ाल की आयत न 65 काफ़िरो के खिलाफ जिहाद के बारे है, प्रत्येक इस्लाम के मुजाहिदीन दस लोगों के साथ विरोध करने और बराबर होने के हकदार हैं और फिर अगली आयत में इसे छूट दी गई है और कहा गया है कि हर किसी को दो लोगों के बराबर होना चाहिए; सूरा ए बकरा की आयत न 144 में क़िबला बदलने का उल्लेख है, और इसी प्रकार नजवा वाली आयत मे पैगंबर (स) के साथ नजवा करने के लिए सदक़ा अनिवार्य किया गया था, और फिर इस हुक्म को हटा दिया गया था।[२७]

मोनोग्राफ़ी

मुख्य लेख: अहकाम वाली आयतो की किताबों की सूची

अहकाम वाली आयतो के बारे में कई किताबें लिखी गई हैं, जिनमें से कई का शीर्षक "आयतुल-अहकाम" या "अहकामुल-क़ुरआन" है। कुरआन और कुरआन के अध्ययन के विश्वकोष में शिया और सुन्नी लेखकों से इस क्षेत्र में 108 पुस्तक शीर्षकों का उल्लेख है।[२८] ऐसा कहा जाता है कि अहकाम वाली आयतो के बारे में दूसरी शताब्दी हिजरी का लिखने वाला पहला व्यक्ति इमाम बाक़िर और इमाम सादिक़ (अ) का सहाबी मुहम्मद बिन साएब कल्बी (मृत्यु 146 हिजरी) था।[२९] तफ़सीरे ख़म्सामेआ आयतुन फ़िल अहकाम नामक किताब के लेखक मक़ातिल बिन सुलेमान (मृत्यु 150 हिजरी) का उल्लेख है, जो उसी काल में लिखी गई।[३०] कुतुबुद्दीन रवांदी (मृत्यु 573 हिजरी) द्वारा लिखित "फ़िक़्हुल-क़ुरान", फ़ाज़िले मिक़्दाद (मृत्यु 826 हिजरी) द्वारा लिखित "कंज़ुल-इरफ़ान फ़ि फ़िक़्हिल-कुरान" और मुक़द्दसे अर्दाबेली (मृत्यु 993 हिजरी) द्वारा लिखित "जुब्दातुल-बयान" सम्मिलित हैं।[३१]

नोट

  1. क़ुरआन की आयतों का एक उदाहरण, जिसे वुज़ू वाली आयत के नाम से जाना जाता है: "हे ईमान लाने वाले, जब तुम नमाज़ के लिए खड़े हों, तो अपना चेहरा और हाथ कोहनियों तक धोओ, और अपने सिर और पैरों को टखनो तक मसा करो।" یا أَیهَا الَّذینَ آمَنُوا إِذا قُمْتُمْ إِلَی الصَّلاةِ فَاغْسِلُوا وُجُوهَكُمْ وَ أَیدِیكُمْ إِلَی الْمَرافِقِ وَ امْسَحُوا بِرُؤُسِكُمْ وَ أَرْجُلَكُمْ إِلَی الْكَعْبَین...» या अय्योहल लज़ीना आमनू इज़ा क़ुमतुम लिस सलाते फ़ग़्सिलू वूजूहकुम वा एयदीयाकुम इलल मराफ़िक़े वमसहू बेरोऊसेकुम वा अर्जोलकुम इलल काअबैन ..." (सूरा ए माएदा, आयतन न 6))
  2. पहले मामले के लिए उदाहरण: "अल्लाह के हुक्म से, हज और उस घर की तीर्थयात्रा लोगों के लिए अनिवार्य है, जो वहां तक पहुंचने की क्षमता रखते है" (सूरा ए आले इमरान, आयत न 97)। यह आयत केवल हज की बाध्यता और उसके करने में सक्षम होने की शर्त के बारे में है। 2. दूसरे मामले के लिए उदाहरण: "आपको दान और नेकूकारी में एक दूसरे की मदद करनी चाहिए" (सूरा ए माएदा, आयत न 2)। यह आयत एक सामान्य नियम को व्यक्त करती है जिसमें खोई हुई वस्तुओं को उनके मालिकों को लौटाना शामिल है। 3. तीसरे मामले के लिए उदाहरण: "अल्लाह ने आपके लिए हुक्म को आसान बनाया है और कार्य को कठिन नहीं बनाया है" (सूरा ए बकरा, आयत न 185)। यह आयत कठिनाई और हर्ज के निषेध पर दलालत करती है, जिसका प्रयोग पूरे न्यायशास्त्र और इसके विभिन्न अध्यायों में किया जाता है। 4. चौथे मामले के लिए उदाहरण: "हे तुम जो मोमिनो जब एक दुष्ट और कप्टी व्यक्ति तुम्हारे पास कोई खबर लाए, तो जांच करो, कहीं ऐसा न हो कि तुम अज्ञानता से लोगों को पीड़ित कर दो, और वे अपने कर्मों पर पछताएं" (सूरा ए हुजरात, आयत न 6) या जैसे नफ़र की आयत (सूरा ए तौबा, आयतन न 123)।
  3. पहले मामले के लिए उदाहरण: "हे मोमिनो, काफ़िरो को दोस्त मत बनाओ और विश्वासियों को छोड़ दो! क्या आप (अजाब, अविश्वास और विद्रोह) के विरुद्ध परमेश्वर के लिए एक स्पष्ट प्रमाण देना चाहते हैं? (सूरा ए निसा, आयत न 144)। 2. दूसरे मामले के लिए एक उदाहरण: "जो पहले विश्वास करते थे और फिर अविश्वास करते थे, फिर विश्वास करते थे और फिर से अविश्वासी बन जाते थे, इसलिए उन्होंने अपने अविश्वास में वृद्धि की, अल्लाह उन्हें माफ नहीं करेगा और उन्हें एक मार्ग पर मार्गदर्शन नहीं करेगा। मुनाफ़िक़ों को ख़ुशख़बरी दे दो कि उनके लिए दर्दनाक अज़ाब होगा" (सूरा ए निसा, आयत न 138 और 139)। 3. "और यतीमों का माल उनको बालिग होने के बाद दे दो, और अपने घटिया माल को अच्छे माल में मत बदलो, और उनके माल को अपने माल में न बढ़ाओ, क्योंकि यह बहुत बड़ा पार है। (सूरा ए निसा, आयत न 2)। 4. "जो लोग अनाथों की संपत्ति को अत्याचार से खाते हैं, वास्तव में, वे नरक की आग को अपने पेट में भर रहे हैं और जल्द ही वे जलती हुई आग में गिरेंगे" (सूरा ए निसा, आयत न 10)।

फ़ुटनोट

  1. मोईनी, आयातुल अहकाम, पेज 1
  2. फ़ाकिर मयबदी, दर आमदी बर आयातुल अहकाम, पेज 41
  3. फ़ख़्अली, जस्तारी दर तारीखे तफ़सीरे आयातुल अहकाम, पेज 348
  4. देखेः आक़ा बुज़ुर्ग तेहरानी, अल-ज़रीआ, दार उल अज़्वा, भाग 1, पेज 42-44
  5. इस्लामी, मदख़ल इल्म ए फ़िक़्ह, पेज 81
  6. सादेक़ी फ़दकी, पंज दीदगाह मतराह दरबारा ए ताअदादे आयतुल अहकाम क़ुरान अल-करीम, पेज 37
  7. इस्लामी, मदख़ल इल्म ए फ़िक़्ह, पेज 81
  8. देखेः तबातबाई, शिया दर इस्लाम, पेज 108
  9. मुत्तक़ी हिंदी, कंज़ुल उम्माल, 1409 हिजरी, भाग 16, पेज 537, हदीस 45796 हुर्रे आमोली, वसाइल उश शिया, 1412 हिजरी, बाब 23 अज़ अबवाबे वुज़ू, हदीस 1 और बाब 39, हदीस 5
  10. مَا جَعَلَ عَلَيْكُمْ فِي الدِّينِ مِنْ حَرَ‌جٍ सूरा ए हज, आयत न 78
  11. इस्लामी, मदख़ल इल्म ए फ़िक़्ह, पेज 92
  12. आक़ा बुज़ुर्ग तेहरानी, अल-ज़रीआ, दार उल अज़्वा, भाग 1, पेज 41
  13. نَزَلَ الْقُرْآنُ أَرْبَعَةَ أَرْبَاعٍ رُبُعٌ فِينَا وَ رُبُعٌ فِي عَدُوِّنَا وَ رُبُعٌ سُنَنٌ وَ أَمْثَالٌ وَ رُبُعٌ فَرَائِضُ وَ أَحْكَام‏ नज़्ज़ा लल क़ुरआनो अरबअता अरबाइन रोबोउन फ़ीना वा रोबोउन फ़ी अदुव्वेना वा रोबोउन सुनानुन वा अमसालुन वा रोबोउन फ़राएज़ुन व अहकाम (कुलैनी, अल-काफ़ी, 1407 हिजरी, भाग 2, पेज 628)
  14. نَزَلَ الْقُرْآنُ أَثْلَاثاً ثُلُثٌ فِينَا وَ فِي عَدُوِّنَا وَ ثُلُثٌ سُنَنٌ وَ أَمْثَالٌ وَ ثُلُثٌ فَرَائِضُ وَ أَحْكَام नज़्ज़ाल लल कुरआनो असुलासन सुल्सुन फ़ीना वा फ़ी अदुव्वेना वा सुल्सुन सुनानुन वा अमसालुन वा सुल्सुन फ़राज़ुन वा अहकाम (कुलैनी, अल-काफ़ी, 1407 हिजरी, भाग 2,पेज 628)
  15. एरवानी, दुरूसे तमहीदीया फ़ी तफसीरे आयातुल अहकाम, भाग 1, पेज 19
  16. सादेक़ी फ़दकी, पंज दीदगाह मतराह दरबारा ए तअदादे आयतुल अहकाम क़ुरान अल-करीम, पेज 40
  17. फ़ाकिर मयबदी, दर आमदी बर आयातुल अहकाम, पेज 49
  18. सूरा ए माएदा, आयत न 6
  19. सूरा ए माएदा, आयत न 6
  20. सूरा ए अंफ़ाल, आयत न 41
  21. सूरा ए बकरा, आयत न 183
  22. फ़ाकिर मयबदी, दर आमदी बर आयातुल अहकाम, पेज 42-43
  23. मोईनी, आयातुल अहकाम, पेज 2-3
  24. फ़ाकिर मयबदी, दर आमदी बर आयातुल अहकाम, पेज 42-43
  25. इस्लामी, मदख़ल इल्म ए फ़िक़्ह, पेज 97-98
  26. फ़ाकिर मयबदी, बररसी ए नुसख़ वा अक़सामे आन दर आयाते क़ुरआन, पेज 49
  27. देखेः क़ुरआन ए करीम, तरजुमा, तोज़ीहात वा वाज़ेह नामे अज़ ख़ुर्रमशाही, पेज 17
  28. देखेः दानिश नामे क़ुरआन वा क़ुरआन पुज़ूशी, भाग 2, पेज 1795-1801
  29. आक़ा बुज़ुर्ग तेहरानी, अल-ज़रीआ, दार उल अज़्वा, भाग 1, पेज 41
  30. देखेः फ़ाज़िल, मसालिक अल-अफ़हाम एला आयातिल अहकाम, भाग 1, पेज 7, मुकद्दमा
  31. देखेः इस्लामी, मदख़ल इल्म ए फ़िक़्ह, पेज 101


स्रोत

  • आक़ा बुज़ुर्ग तेहरानी, मुहम्मद मोहसिन, अल-ज़रीआ एला तसानीफ अल-शरीया, गिर्दआवरंदेः अहमद बिन मुहम्ममद हुसैनी, दार उल अज़्वा, बैरूत, लबनान
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  • हुर्रे आमोली, मुहम्मद बिन हसन, वासइल उश शिया, क़ुम, मोअस्सेसा आले अल-बैत, पहला संस्करण, 1412 हिजरी
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  • फ़ख़अली, जस्तारी दर तारीख तफ़सीर आयातुल अहकाम, मुतालेआत इस्लामी, क्रमांक 49-50, दानिशगाहे फ़िरदोसी मशहद, पाईज़ और ज़मिस्तान, 1379 शम्सी
  • क़ुरआन करीम, अनुवाद, तोज़ीहात वा वाज़े नामा अज़ बहाउद्दीन ख़ुर्रमशाही, तेहरान, जामी, नीलोफ़र, 1376 शम्सी
  • कुलैनी, मुहम्मद बिन याक़ूब, अल-काफ़ी, तहक़ीक और तसहीह अली अकबर गफ़्फ़ारी और मुहम्मद आखुंदी, तेहरान, दार उल किताब अल-इस्लामीया 1407 हिजरी
  • मुत्तक़ी हिंदी, अली, कंज़ुल उम्माल फ़ी सुननिल अक़वाल वल अफ़्आल, बैरूत, मोअस्सेसा अल-रिसालत, 1409 हिजरी
  • मोईदी, मोहसिन, आयातुल अहकाम, तहक़ीक़ाते इस्लामी, बारहवां साल, क्रमांक 1-2, तेहरान, बहार और ताबिस्तान 1376