वाजिब सज्दो वाले सूरह

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यह लेख क़ुरआन के वाजिब सज्दो वाले सूरह के बारे में है। सज्दे के नियमों (अहकाम) को जानने के लिए, तिलावत का सज्दा वाला लेख देखें।

वाजिब सज्दो वाले सूरह अर्थात अज़ाइम या अज़ाइम अल-सुजूद, (अरबीःآيات السجدة) क़ुरआन के वो सूरह है जिनमे विशेष आयतो का पाठ करने या सुनने से सज़्दा वाजिब हो जाता है। उनकी सख्या चार है जोकि सूर ए सज्दा, सूर ए फ़ुस्सेलत, सूर ए नज्म और सूर ए अलक़ है, इन सूरतो के विशेष नियम (अहकाम) मुजनिब और हाइज़ (मासिक धर्म वाली महिला) पर इन सूरतो का पाठ (तिलावत) करना हराम है और वाज़िब नमाज़ो मे नही पढ़ा जाना चाहिए।

हालाकि क़ुरआन के वाजिब सज्दो के लिए विशेष क़ौल बयान हुए है, लेकिन इन सज्दो के लिए वुज़ू, ग़ुस्ल और कि़बले की ओर चेहरा करना, और इन सज्दो के विशेष ज़िक्र का पढ़ना आवश्यक नही है। हालाकि सज्दे की स्थिति मे माथे को ऐसी चीज़ पर रखना आवश्यक है जिस पर सज्दा करना सहीह हो।

नामकरण

``अज़ाइम या ``अज़ाइम अल-सुजूद क़ुरआन के उन चार सूरहो को कहा जाता है जिनकी विशेष आयात का पाठ करने या सुनने से सज़्दा वाजिब हो जाता है। उन सूरहो मे सूर ए सजदा, सूर ए फ़ुस्सेलत, सूर ए नज्म और सूर ए अलक़ शामिल है।[१] कुछ स्रोत मे सूर ए फ़ुस्सेलत के स्थान पर सूर ए लुक़मान का नाम लिया गया है।[२] अज़इम अज़ीमा का बहुवचन रूप है और शब्दकोष मे किसी काम के करने की गंभीर इच्छा को कहा जाता है।[३] इसी कारण परमेश्वर की ओर से अनिवार्य कर्तव्यों को भी अज़ाइम कहा जाता है;[४] इसलिए उल्लिखित सूरह जिनमें सज्दे वाली आयात है उनको भी अज़ाइम कहा जाता है।[५]

सज्दे वाली आयतें

शिया न्यायविदों के अनुसार, सूर ए सज्दा की आयत न 15, सूर ए फ़ुस्सेलत की आयन न 37, सूर ए नज्म की आयत न 62 और सूर ए अलक़ की आयत न 19 वाजिद सज्दो वाली आयतें है।[६] इसके अलावा साहिब जवाहर के अनुसार क़ुरआन के 10 सूरहो में 11 आयतो मे मुस्तहब सज्दे वाली आयतें है।[७] मुस्तहब सज्दे वाली आयतें इस प्रकार हैः सूर ए आराफ़ आयत न 206, सूर ए रअद आयत न 15, सूर ए नहल आयत न 49 और 50, सूर ए इस्रा आयत न 109, सूर ए मरयम आयत न 58, सूर ए हज आयत न 18 और 77, सूर ए फ़ुरक़ान आयत न 60, सूर ए नम्ल आयत न 26, सूर ए साद आयत न 24 और सूर ए इंशेक़ाक़ आयतन 21।[८] जिस सूरह मे सज्दा शब्द आया हो वह भी मुस्तहब सज्दे की हामिल है इस बात का श्रय शेख सदूक़ को दिया जाता है।[९]

शिया न्यायविद इमाम सादिक (अ) के एक कथन का हवाला देते हुए मानते हैं कि केवल चार उल्लिखित सूरहों में सज्दा वाजिब है।[१०] शाफ़ई, हंबली और हनफ़ी सुन्नी न्यायविद क़ुरआन में वाजिब और मुस्तहब सज्दे के बीच अंतर किए बिना सज्दे वाली आयतो की संख्या बढ़ाकर 14 जबकि मलेकी न्यायविद इनकी संख्या 15 मानते हैं।[११]

सम्बंधित नियम

मुख्य लेख: तिलावत का सज्दा
क़ुरआन के वाजिब सज्दे का ज़िक्र

"لا اِلهَ اِلَّا اللهُ حَقًّا حَقًّا، لا اِلهَ اِلَّا اللهُ ایماناً وَ تَصْدیقاً، لا اِلهَ اِلَّا اللهُ وَ عُبُودِیةً، وَرِقّاً سَجَدْتُ لَک یا رَبِّ تَعَبَّداً وَرِقّاً، لا مُسْتَنْکفاً وَ لا مُسْتَکبِراً، بَلْ اَنَا عَبْدٌ ذَلیلٌ ضَعیفٌ خائفٌ مُسْتَجیرٌ

ला इलाहा इल्लल्लाहो हक़्क़न हक़्क़ा, ला इलाहा इल्लल्लाहो ईमानन व तसदीक़ा, ला इलाहा इल्लल्लाहो व उबूदियतन, व रिक़्क़न सज्दतो लका या रब्बा तअब्बदा अवरेक़ा, ला मुस्तंकेफ़न वला मुस्तकबेरा, बल अना अब्दुन ज़लीलुन ज़ईफ़ुन ख़ाऐफ़ुन मुस्तज़ीर[१२]

यज़्दी, उरवा अल वुस्क़ा, 1419 हिजरी, भाग 2, पेज 584

न्यायशास्त्र की पुस्तको मे वाजिब सज्दो वाले सूरहो से संबंधित नियम (अहकाम) तहारत[१३] और नमाज़[१४] के अध्याय मे चर्चा की जाती है। न्यायविदो के अनुसार इन सूरहो के विशेष अहकाम निम्नलिखित हैः

  • मुज्निब व्यक्ति[१५] और मासिक धर्म वाली महिला[१६] पर इनका पढ़ना हराम है। क्या केवल सज्दे वाली आयतें पढ़ना मना है, या क्या पूरा सूरह पढ़ना मना है इस बात पर न्यायविदो के बीच मतभेद है।[१७] अल्लामा हिल्ली ने कहा कि इन सूरहों का एक अक्षर भी पढ़ना उनके लिए हराम है।[१८] अगर मुज्निब व्यकति या मासिक धर्म वाली महिला वाज़िद सज्दे वाली आयतो को सुने तो उस पर सज्दा करना वाजिब हो जाता है।[१९]
  • शिया न्यायविदों के फ़तवे के अनुसार, वाजिब नमाज़ो मे वाज़िब सज्दे वाले सूरहो का झान बूझ कर पढ़ना नमाज के बातिल होने का कारण होता है।[२०] यदि कोई नमाज़ में ग़लती से इनमें से एक सूरह पढ़ता है, अगर उसे सज्दे की आयत या सूरह के आधे हिस्से तक पहुंचने से पहले इसका एहसास हो जाए तो उसे चाहिए कि वह सज्देवाले सूरह को छोड़कर कोई दूसरा सूरह पढ़े और अगर सज्दे वाली आयत के बाद या आधा सूरह पढ़ने के बाद याद आए तो नमाज़ के बीच मे वाज़िब सज्दा कैसे अंजाम दे इस बात मे मराजे तक़लीद मे मतभेद है।[२१] इमाम ख़ुमैनी के फतवे के अनुसार, इस मामले मे इशारे से सज्दा करे और सज्दे वाले सूरह पढ़ने को पर्याप्त समझे।[२२] इसके अलावा आयतुल्लाह सिस्तानी और सय्यद मूसा शुबैरी ज़ंजानी के फतवे के अनुसार यदि वह वाजिब सज्दा नहीं करता है उसकी नमाज़ सहीह है लेकिन उसने पाप किया है।[२३]
  • क़ुरआन का वाजिब सज्दा तत्काल दायित्व (वुजूब फौरी) है। इसलिए, वाजिब सज्दे वाले सूरहो की सज्दे वाली आयात के पढ़ने या सुनने के तुरंत पश्चात सज्दा वाजिब हो जाता है।[२४]
  • क़ुरआन के वाजिब सजदे में, वुज़ू, ग़ुस्ल, क़िबले की ओर चेहरे का होना और विशेष ज़िक्र का पढ़ना वाजिब नहीं हैं, लेकिन माथे को किसी ऐसी चीज़ पर रखा जाना चाहिए जिस पर सज्दा सही हो।[२५] हालाँकि, वाजिब सज्दे के लिए विशेष ज़िक्र का उल्लेख किया गया है।[२६]

फ़ुटनोट

  1. तुरैही, मजमा अल बहरैन, 1415 हिजरी, भाग 6, पेज 114 (अज़म शब्द के अंर्तगत)
  2. तूसी, अल ख़िलाफ़, 1407 हिजरी, भाग 1, पेज 100
  3. फ़ीरोज़ाबादी, अल क़ामूस अल मोहीत, 1415 हिजरी, भाग 4, पेज 112 (अज़म शब्द के अंर्तगत); तुरैही, मजमा अल बहरैन, 1415 हिजरी, भाग 6, पेज 114 (अज़म शब्द के अंर्तगत)
  4. फ़ीरोज़ाबादी, अल क़ामूस अल मोहीत, 1415 हिजरी, भाग 4, पेज 112 (अज़म शब्द के अंर्तगत); तुरैही, मजमा अल बहरैन, 1415 हिजरी, भाग 6, पेज 114 (अज़म शब्द के अंर्तगत)
  5. तुरैही, मजमा अल बहरैन, 1415 हिजरी, भाग 6, पेज 114 (अज़म शब्द के अंर्तगत)
  6. तबातबाई यज़्दी, अल उरवा अल वुस्क़ा, 1419 हिजरी, भाग 2, पेज 577
  7. नजफ़ी, जवाहिर अल कलाम, 1362 शम्सी, भाग 10, पेज 217
  8. तबातबाई यज़्दी, अल उरवा अल वुस्क़ा, 1419 हिजरी, भाग 2, पेज 577-578
  9. नजफ़ी, जवाहिर अल कलाम, 1362 शम्सी, भाग 10, पेज 217
  10. देखेः तूसी, तहज़ीब अल अहकाम, 1407 हिजरी, भाग 2, पेज 291, हदीस 26-27
  11. जज़ीरी, अल फ़िक़्ह अल अल मज़ाहिब अल अरबआ, 1424 हिजरी, भाग 1, पेज 425
  12. तबातबाई यज़्दी, अल उरवा अल वुस्क़ा, 1419 हिजरी, भाग 2, पेज 584
  13. देखेः तबातबाई यज़्दी, अल उरवा अल वुस्क़ा, 1419 हिजरी, भाग 1, पेज 510 और पेज 603
  14. देखेः तबातबाई यज़्दी, अल उरवा अल वुस्क़ा, 1419 हिजरी, भाग 2, पेज 587
  15. तबातबाई यज़्दी, अल उरवा अल वुस्क़ा, 1419 हिजरी, भाग 1, पेज 510
  16. तबातबाई यज़्दी, अल उरवा अल वुस्क़ा, 1419 हिजरी, भाग 1, पेज 603
  17. तबातबाई यज़्दी, अल उरवा अल वुस्क़ा, 1419 हिजरी, भाग 1, पेज 603; बनी हाशमी, तौज़ीह अल मसाइल मराजेअ, 1378 शम्सी, मस्ला 355, भाग 1, पेज 225-227, मस्ला 450, भाग 1, पेज 276
  18. अल्लामा हिल्ली, मुखतलफ़ अल शिया, 1413 हिजरी, भाग 1, पेज 333
  19. तबातबाई यज़्दी, अल उरवा अल वुस्क़ा, 1419 हिजरी, भाग 2, पेज 583
  20. तबातबाई यज़्दी, अल उरवा अल वुस्क़ा, 1419 हिजरी, भाग 2, पेज 580; इमाम ख़ुमैनी, तौज़ीह अल मसाइल (महश्शी), 1424 हिजरी, भाग 1, पेज 545, मस्ला 983
  21. इमाम ख़ुमैनी, तौज़ीह अल मसाइल (महश्शी), 1424 हिजरी, भाग 1, पेज 545-546, हवाशी मस्ला 984
  22. इमाम ख़ुमैनी, तौज़ीह अल मसाइल (महश्शी), 1424 हिजरी, भाग 1, पेज 545, मस्ला 984
  23. इमाम ख़ुमैनी, तौज़ीह अल मसाइल (महश्शी), 1424 हिजरी, भाग 1, पेज 546, हवाशी मस्ला 984
  24. तबातबाई यज़्दी, अल उरवा अल वुस्क़ा, 1419 हिजरी, भाग 2, पेज 587
  25. तबातबाई यज़्दी, अल उरवा अल वुस्क़ा, 1419 हिजरी, भाग 2, पेज 582-583
  26. तबातबाई यज़्दी, अल उरवा अल वुस्क़ा, 1419 हिजरी, भाग 2, पेज 584


स्रोत

  • इमाम ख़ुमैनी, सय्यद रूहुल्लाह, तौज़ीह अल मसाइल (महश्शी), संशोधन सय्यद मुहम्मद हुसैन बनी हाशमी ख़ुमैनी, क़ुम, दफ़तरे इंतेशाराते इस्लामी वाबस्ता बे जामेअ मुदर्रैसीन हौज़ा ए इल्मीया क़ुम, 1424 हिजरी
  • बनी हाशमी ख़ुमैनी, सय्यद मुहम्मद हसन, तौज़ीह अल मसाइल मराजेअ, क़ुम, दफ्तरे नशर इस्लामी, 1378 शम्सी
  • जज़ीरी, अब्दुर रहमान बिन मुहम्मद एवज़, अल फ़िक्ह अला अल मज़ाहिब अल अरबआ, बैरूत, दार अल कुतुब अल इल्मीया, 1424 हिजरी
  • अल्लामा हिल्ली, हसन बिन युसुफ़, मुखतलफ़ अल शिया फ़ी अहकाम अल शरीया, क़ुम, दफ्तर इंतेशारात इस्लामी वा बस्ता बेह जामेअ मुदर्रेसीन हौज़ा ए इल्मीया क़ुम, 1413 हिजरी
  • तबातबाई यज्दी, सय्यद मुहम्मद काज़िम, अल उरवा अल वुस्क़ा, मोअस्सेसा अल नश्र अल इस्लामी, 1419 हिजरी
  • तुरैही, फ़ख्रुद्दीन, मजमा अल बहरैन, शोधः सय्यद अहमद हुसैनी, तेहरान, किताब फ़रोशी मुरर्तजवी, 1416 हिजरी
  • तूसी, मुहम्मद बिन हसन, तहज़ीब अल अहकाम, शोधः हसन ख़ुरासान मूसवी, तेहरान, दार अल कुतुब अल इल्मीया, 1407 हिजरी
  • तूसी, मुहम्मद बिन हसन, अल ख़िलाफ़, संशोधनः अली ख़ुरासानी व दिगरान, क़ुम, दफ़तर इंतेशारात इस्लामी वाबस्ता बेह हौज़ा ए इल्मीया कुम, 1407 हिजरी
  • फ़िरोज़ाबादी, मुहम्मद बिन याक़ूब, अल क़ामूस अल मोहीत, बैरूत, दार अल कुतुब अल इल्मीया मंशूरात मुहम्मद अली बैज़ून, 1415 हिजरी
  • नजफ़ी, मुहम्मद हसन, जवाहिर अल कलाम फ़ी शरह शरा ए अल इस्लाम, शोधः अब्बास कूचानी, बैरुत, दार एहया अल तुरास अरबी, 1362 शम्सी