उस्मानी मुस्हफ़
उस्मानी मुस्हफ़ (अरबीःالمصحف العثماني) क़ुरआन करीम की वह प्रति है जिसे उस्मान बिन अफ़्फ़ान के आदेश से संकलित किया गया। उस्मानी क़ुरआन की कुछ प्रतियो को इमाम का मुस्हफ़ भी कहा जाता है। इस मुस्हफ़ (क़ुरआन) को संकलित करने का कारण मुसलमानों के बीच क़ुरआन के विभिन्न संस्करणों का अस्तित्व और उनके बीच मतभेद था। उस्मानी मुस्हफ़ तैयार करने के बाद, उन्होंने उस्मान के आदेश से अन्य मुस्हफ़ को नष्ट कर दिया गया। प्रसिद्ध मत के अनुसार, उस्मानी मुस्हफ़ के संकलनकर्ता ज़ैद बिन साबित, अब्दुल्लाह बिन ज़ुबैर, सईद बिन आस और अब्दुर रहमान बिन हारिस नाम के चार लोग थे।
सहाबी और शिया आइम्मा (अ) ने उस्मानी मुस्हफ़ के एकरूपीकरण का विरोध नहीं किया; लेकिन मुस्हफ़ (क़ुरआन) के संपादन के तरीके और उसके कुछ शब्दों को लेकर उनकी आलोचनाएँ हुईं। क़ुरआनी विज्ञान (उलूम क़ुरआन) के शोधकर्ताओं के अनुसार, इमले की गलतियाँ उस्मानी मुस्हफ़ मे रह गई हैं। निःसंदेह, उनके अनुसार यह मामला क़ुरआन के विरूपण (क़ुरआन की तहरीफ) का प्रमाण नहीं है; क्योंकि क़ुरआन के शब्दो को सुरक्षित रखा गया हैं।
उस्मानी मुस्हफ़ की संख्या चार से नौ प्रतियों तक बताई गई है। उस्मानी मुस्हफ़ की प्रतियो मे से मुस्हफ़ की एक प्रति इस्लामी दुनिया के महत्वपूर्ण शहरों में भेजी गई ताकि यह प्रति क़ुरआन पढ़ने का आधार बने। आज उन पांडुलिपियों का कोई निशान नहीं है; लेकिन उनसे बहुत-सी प्रतियाँ लिखी गईं और जो क़ुरआन आज मुसलमानों के हाथ में है, वह उस्मानी मुस्हफ़ से ही छपा हुआ है।
मुस्हफ़ का गठन
- यह भी देखें: मुस्हफ़ और क़ुरआन का लेखन
मुस्हफ़ क़ुरआन का एक नाम है, जिसे ऐतिहासिक स्रोतों के अनुसार, अबू बक्र के समय से क़ुरआन के लिए उपयोग हो रहा है।[१] क़ुरआन के विशेषज्ञो के अनुसार, क़ुरआन को एक प्रति मे संकलन का कार्य पैगंबर (स) द्वारा नहीं किया गया। क़ुरआन की आयतो और सूरतो के नाम पैगंबर द्वारा निर्धारित किए गए थे; हालाँकि, क़ुरआन का एक स्वतंत्र लेखन में संकलन और सूरतो की व्यवस्था उनके बाद साथियों (सहाबा) की राय से की गई थी;[२] इस तरह से पैगंबर (स) के स्वर्गवास के बाद, प्रत्येक उनके साथियों ने क़ुरआन की सूरतो को इकट्ठा करना शुरू कर दिया।[३] इस प्रकार बहुत से मुस्हफ़ अस्तित्व मे आ गए[४] मुस्हफ़े अली, मुस्हफ़े अब्दुल्लाह बिन मसऊद, मुस्हफ़े उबैय बिन कआब, मुस्हफ़े अबू मूसा अश्अरी और मुस्हफ़े मिक़्दाद इब्न असवद सबसे प्रसिद्ध मुस्हफ़ हैं।[५]
उस्मानी मुस्हफ़ को संकलित करने का कारण
इस तथ्य के कारण कि सहाबा द्वारा लिखे गए मुस्हफ़ सूरो और पाठ (क़ेराअत) के क्रम में भिन्न थे, क़ुरआन के क्षेत्र में मुसलमानों के बीच कई मतभेद पैदा हुए। उनमें से प्रत्येक समूह अपने पास मुस्हफ़ और कुरआन पढ़ने के अपने तरीक़े को सही और दूसरे के मुस्हफ़ और क़ुरआन पढ़ने के तरीक़े को गलत मानता था।[६] कुरआन विज्ञान (उलूम क़ुरआन) के शोधकर्ता सय्यद मुहम्मद बाकिर हुज्जती ने तबरी से उद्धृत किया है कि मुसलमानों के बीच मतभेद इस सीमा तक पहुंच गया था कि कभी कभी एक दूसरे पर काफ़िर होने का भी आरोप लगाते थे।[७]
इस समस्या को हल करने के लिए, उस्मान बिन अफ़्फ़ान ने चार लोगों के एक समूह को क़ुरआन की उपलब्ध प्रतियों में से एक संस्करण संकलित करने का काम सौंपा।[८] उन्होंने यह भी आदेश दिया कि विभिन्न इस्लामी क्षेत्रों में सभी मौजूदा कुरआनों को एकत्र किया जाए और उन्हे नष्ट कर दिया जाए।[९]
संकलन का समय
उस्मानी मुस्हफ़ की पांडुलिपियों के संकलन के समय के संबंध में मतभेद है। 8वीं और 9वीं शताब्दी के शाफ़ई मुहद्दिस इब्न हजर असकलानी ने इसे 25वीं हिजरी में माना;[१०] लेकिन 6ठी और 7वीं शताब्दी के इतिहासकार इब्न असीर के अनुसार, यह 30वीं हिजरी में हुआ।[११] कुरआन विज्ञान (उलूम क़ुरआन) के कुछ शोधकर्ताओं ने कुछ सबूतों का हवाला देते हुए, चंद्र कैलेंडर के वर्ष 30 में मुस्हफ़ के संकलन को गलत माना है।[१२] उन सबूतों में से एक यह कि उस्मानी मुस्हफ़ के संकलन समूह के सदस्य सईद बिन आस चंद्र कैलेंडर 30 से 34वें वर्ष तक मदीना में मौजूद नहीं थे।[१३]
उनके अनुसार क़ुरआन के संकलन की शुरुआत का वर्ष 25[१४] या 24 के अंत और 25 की शुरुआत[१५] है। इसका अंत 30 हिजरी माना जाता है।[१६]
संकलनकर्ता
उस्मानी मुस्हफ़ के संकलन के लिए ज़िम्मेदार व्यक्ति या व्यक्तियों के बारे में अलग-अलग रिपोर्टें हैं। कुछ ने इस कार्य के लिए केवल ज़ैद बिन साबित को जिम्मेदार माना है, कुछ ने ज़ैद के साथ-साथ सईद बिन आस को भी शामिल किया है, कुछ ने इन दोनों के साथ उबैय बिन कआब को जोड़ा है,[१७] कुछ ने पाँच लोगों के एक समूह का नाम लिया है और कुछ ने कुरैश और अंसार मे से बारह लोगों को इसका निष्पादक माना है।[१८]
कुछ लोग उमर बिन खत्ताब के मुक्त गुलाम अनस बिन मालिक और असलम द्वारा सुनाई गई रिपोर्ट को सबसे विश्वसनीय मानते हैं, जोकि उस्मानी मुस्हफ़ के संपादन समूह के साथ सहयोग कर रहे थे।[१९] इस रिपोर्ट के आधार पर, मुस्हफ़ का संकलन चार-व्यक्तियो का एक समूह जिसमें ज़ैद बिन साबित, अब्दुल्लाह बिन ज़ुबैर, सईद बिन आस और अब्दुर्रहमान बिन हारिस शामिल थे।[२०] क़ुरआन विज्ञान (उलूम क़ुरआन) के शोधकर्ता और अल-तम्हीद फ़ी उलूम अल-क़ुरआन पुस्तक के लेखक मुहम्मद हादी मारफ़त ने बारह लोगों के कथन के अस्तित्व का कारण बताते हुए लिखा: जब इन चार लोगो से काम नहीं अंजाम नही पाया तो ये लोग अब्दुल्लाह बिन अब्बास और अनस बिन मालिक जैसे अन्य लोगों की भी मदद लेते थे।[२१]
ज़ैद बिन साबित समूह का प्रभारी था।[२२] वह अंसार में से एक था और उस्मान के विश्वासपात्रों में से एक था और बैतुल माल का प्रभारी था।[२३] समूह के अन्य तीन सदस्य सभी कुरैश और उस्मान के दामाद थे।[२४] अब्दुल्लाह बिन मसऊद पैगंबर (स) के प्रतिष्ठित साथी ने इन लोगों के चयन पर कड़ी आपत्ति जताई। ज़ैद बिन साबित की अध्यक्षता की आलोचना करते हुए, उन्होंने समूह से कहा: क़ुरआन का संकलन ऐसे व्यक्ति को सौंपा गया है जो मेरे इस्लाम साने के समय पैदा भी नही हुआ था।[२५]
संकलन का तरीक़ा
ऐतिहासिक रिपोर्टों के आधार पर, उस्मानी मुस्हफ़ अबू बक्र की ख़िलाफत के दौरान लिखे गए मुस्हफ़ के आधार पर संकलित किया गया था। इसके अलावा, पैगंबर (स) के समय में लिखे गए कुरआन के सूरो के संस्करणों और मुस्हफ़े उबैय पर भी पर भी ध्यान दिया जाता था।[२६]] उस्मान ने इस चार व्यक्तियो के समूह से सिफ़ारिश की थी कि अगर किसी स्थान पर किसी शब्द मे कोई मतभेद मिले तो इस संबंध मे कुरैश की बोली (लहजा) को प्राथमिता दी जाए क्योंकि क़ुरआन कुरैश के लहज़े में नाज़िल हुआ है।[२७]
तारीख क़ुरआन पुस्तक के लेखक महमूद रामयार के अनुसार, उस्मानी मुस्हफ़ का संपादन बहुत सावधानी से किया गया था।[२८]] उन्होंने मालिक बिन अबी आमिर के हवाले से कहा कि जब भी संपादकों को राय में मतभेद मिलता तो उस शब्द के स्थान को उस समय तक रिक्त छोड़ देते थे जबतक कोई ऐसा व्यत्ति न मिल जाए जिसने पैगंबर (अ) से खुद क़ुरआन सुना हो और उस शब्द के सही उच्चारण पर विश्वास न हो जाए।[२९] फ्रांसीसी प्राच्यविद् और फ्रेंच में क़ुरआन के अनुवादक, रेगी ब्लैशर ने लिखा: निस्संदेह, उस्मानी मुस्हफ़ के संकलनकर्ताओं ने जिम्मेदारी की एक बड़ी भावना महसूस की और इसे बहुत सावधानी और सटीकता के साथ लिखा।[३०]
आलोचनाएँ
मुहम्मद हादी मारफ़त ने मुस्हफ़ को संकलित करने के तरीके की आलोचना की है। उनके अनुसार, इस काम में बहुत सटीकता से काम नही लिया गया है इसलिए उस्मानी मुस्हफ़ में कई इमलाई गलतियाँ रह गई है।[३१] इसके अलावा, उन मुस्हफ़ की एक-दूसरे से तुलना नहीं की गई जोकि एक-दूसरे से भिन्न है।[३२] उन्होंने इब्न अबी दाऊद के हवाले से कहा है कि सीरिया वाले और बसरा के लोग अपने मुस्हफ़ को कूफ़ा के मुस्हफ़ से अधिक सही मानते थे; क्योंकि कूफ़ा मे मुस्हफ़ को बिना किसी तुलना और सुधार के इस शहर के लोगों के पास भेजा गया था।[३३] उन्होंने इब्न अबी दाऊद से भी एक रिवायत उद्धृत की और कहा कि उस्मान ने उस्मानी मुस्हफ़ मे गलतियाँ देखने के बाद कहा अगर इमला करने वाला बनी हुज़ैल और लिखने वाला सकीफ़ जनजाति से होता तो यह गलतिया न होती।[३४]
विशेषाएँ
मुहम्मद हादी मारफ़त के अनुसार, उस्मानी मुस्हफ़ में, इसके पहले साथियों द्वारा लिखे गए दूसरे मुस्हफ़ो की तरह बड़े सूरो को छोटे सूरो के क्रम मे व्यवस्थित किया गया था। बेशक, इस क्षेत्र में कुछ अंतर भी था। उदाहरण के लिए, सहाबा द्वारा लिखे गए मुस्हफो में, सूर ए यूनुस बड़े सूरहों में से एक था, इसलिए इसे सातवें या आठवें सूरह के रूप में रखा गया था। लेकिन उस्मानी मुस्हफ़ में, इस सूरे के बजाय सूर ए अनफ़ाल और सूर ए तौबा मौजूद है; क्योंकि उस्मान इन दोनों सूरो को एक सूरा मानता था इसलिए उन्हें सूर ए यूनुस से अधिक लंबा मानता था।[३५] ऐसा कहा गया है कि इब्न अब्बास ने इस काम के कारण उस्मान पर आपत्ति जताई।[३६]
उस्मानी मुस्हफ़ की एक और विशेषता यह थी कि अरबी लिपि की आदिमता के कारण, मुस्हफ़ के अक्षरों में बिंदी नहीं होती थी[३७] यानी "बा", "ता", "या", "सा अक्षर सभी बिना बिंदी के एक जैसे लिखे जाते थे। इसी तरह "जीम" और "हा" और "ख़ा" बिना बिंदु के लिखे जाते थे[३८] और इस प्रकार शब्दो पर मात्राए भी नही होती थी।[३९] इसलिए "योअल्लेमोहू" (उसे सिखाता है) और "नोअल्लेमोहू" (हम उसे जानते हैं) दोनो एक ही तरह से लिखे जाते थे।[४०] इसलिए उस समय क़ुरआन को सीखने के लिए उसे क़ुर्रा ए सब्आ (पढ़ने वालों) से सुनना भी पढ़ता था।[४१] अल-तमहीद किताब के अनुसार क़ेराअत सब्आ के अस्तित्व मे आने का सबसे महत्वपूर्ण तर्क उस समय के सहीफ़ो मे बिंदी और मात्राओ का ना होना हैं।[४२]
इमले की कई गलतियों की उपस्थिति को उस्मानी मुस्हफ की अन्य विशेषताओं में सूचीबद्ध किया गया है।[४३] मुहम्मद हादी माफ़त के अनुसार, इसमें सात हजार से अधिक इमला की गलतियाँ थी।[४४] हालांकि, उन्होंने इस बात का विवरण दिया है कि इस मुद्दे से कुरान की गरिमा पर कोई असर नहीं पड़ता क्योंकि क़ुरआन की हक़ीक़त उसका उच्चारण अर्थात वह चीज़ जिसे पढ़ा जाता है, नाकि लिखावट और लेखन और क़ुरआन का उच्चारण सही रूप मे अभी भी बाकी है और इसी तरह पढ़ा और पाठ किया जाता है।[४५]
उस्मानी मुस्हफ़ की संख्या
चंद्र कैलेंडर की नौवीं और दसवीं शताब्दी के क़ुरआन विज्ञान (उलूम क़ुरआन) के विद्वान जलालुद्दीन सुयूती के अनुसार, उस्मानी मुस्हफ़ के संपादन समूह द्वारा लिखी गई प्रतियों की संख्या के संबंध में अलग-अलग विचार हैं।[४६] अधिकांश विद्वान इस बात को मानते है कि इसकी चार प्रतियां लिखी गई जिन्हे मदीना, कूफा, बसरा और शाम भेजा गया।[४७] जबकि सिवती के अनुसार इस संबंध मे प्रसिद्ध राय के अनुसार इन प्रतियो की संख्या पांच है।[४८] इसके अलावा छह, सात, आठ और नौ प्रतियों के भी समर्थक हैं।[४९]
इब्न अबी दाऊद और याक़ूबी की रिपोर्टों को मिलाकर मुहम्मद हादी मारफ़त ने निष्कर्ष निकाला है कि उस्मानी मुस्हफ की संख्या नौ प्रतियाँ थीं; इस कारण से कि इब्न अबी दाऊद ने सात प्रतियो की बात की जो मक्का, कूफ़ा, बसरा, शाम, बहरीन, यमन और मदीना से संबंधित थे, और याकूबी ने दो अन्य संस्करणों की सूचना दी जो मिस्र और अल-जज़ीरा से संबंधित थे।[५०]
मुस्हफ़ इमाम
क़ुरआन विज्ञान (उलूम क़ुरआन) के कुछ स्रोतों में, उस्मानी मुस्हफ़ो के बीच, मदीना से संबंधित मुस्हफ़ को मुस्हफ़ अल-इमाम कहा गया है;[५१] लेकिन 8वीं और 9वीं के मुहद्दिस और शाफ़ई न्यायविद् इब्न ज़ज्री के अनुसार से, मुस्हफ़ इमाम मदीना मे मौजूद आम मुस्हफ़ के अलावा कोई और मुस्हफ़ था जो स्वंय उस्मान के पास मौजूद था।[५२] चंद्र कैलेंडर की 8वीं शताब्दी के टिप्पणीकार इब्न कसीर फ़ज़ाइल अल-कुरआन पुस्तक में लिखता है सभी उस्मानी मुस्हफ को मुस्हफ इमाम कहा जाता है।[५३] अल-तमहीद किताब के अनुसार दूसरे शहरो मे मौजूद प्रतियो मे मतभेद उत्पन्न होने की स्थिति मे जिस प्रति की ओर रुजूअ किया जाता था उसे मुसहफ इमाम कहा जाता था।[५४]
साथियों और अनुयायियों की प्रतिक़िया
मुस्हफ़ को एकजुट करने के सिद्धांत के संबंध में साथी (सहाबा) उस्मान से सहमत थे।[५५] इसे संकलित करने के तरीक़े के संदर्भ में केवल अब्दुल्लाह बिन मसऊद का विरोध सामने आया है, इस संबंध मे कहा गया है कि उनके और उस्मान के बीच भयंकर मौखिक झगड़ा छिड़ गया। उन्होंने कुरान संग्रह समूह के लोगों को अनुभवहीन माना और उस्मान को अपना मुस्हफ़ देने से इनकार कर दिया।[५६]
इसके अलावा, मुस्हफ़े उस्मान में कुछ शब्दों के संबंध में कुछ साथियों के अलग-अलग विचारों के बारे में भी ऐतिहासिक साक्ष मौजूद हैं।[५७] उदाहरण के लिए, "إنْ هٰذَانِ لَسَاحِرَان इन्ना हाज़ाने लसाहिरान"[५८] वाक्यांश में "हाज़ाने" (ये दो) शब्द, अरबी साहित्य के सामान्य नियमों के अनुसार "हाज़ैने" होना चाहिए।[५९] इसलिए, आयशा और सईद बिन जुबैर जैसे कुछ साथीयो ने इसे गलत समझते हुए इसका उच्चारण "हाज़ैने" करते थे।[६०] मजमा अल-बयान में तबरेसी के लेखन के अनुसार क़ुर्रा सब्आ (क़ुरआन के सात क़ारी) मे से कुछ क़ारी भी "हाज़ैने" उच्चारण करते थे।[६१] कहा जाता है कि उस्मान भी स्वयं इसे गलत समझते थे; लेकिन इसके कारण कोई हलाल हराम या कोई हराम हलाल नही होता इसलिए इसे बदलने नही दिया।[६२]
इमाम अली (अ) से जामेअ अल-बयान में एक रिवायत का हवाला दिया गया है कि वह " طَلْحٍ مَنْضُود तल्हिन मंज़ूद"[६३] (एक केले का पेड़ जिसके फल एक दूसरे के ऊपर गुच्छित होते हैं)[६४] को " طَلْعٍ مَنْضُود तल्इन मंज़ूद" (खज़ूर के घने गुच्छे) समझते थे लेकिन इसके बावज़ूद इसको बदलने की अनुमति नही दी।[६५]
शिया इमामों की राय
मुहम्मद हादी मारफ़त के अनुसार, शियो के इमाम उस्मानी मुस्हफ के विरोधी नहीं थे, और इसलिए सभी शिया आज जो कुरआन हाथ में है, उसे सही और पूर्ण मानते हैं।[६६] सीवती ने इमाम अली (अ) का हवाला देते हुए कहा कि उस्मान ने उस्मानी मुस्हफ़ के संपादन के संबंध मे आप (इमाम अली) से परामर्श किया था और आप इस काम से सहमत थे।[६७] इसके अलावा वसाइल अल-शिया में वर्णित एक रिवायत के अनुसार, इमाम सादिक (अ) ने प्रचलित पाठ (राइज क़ेराअत) के विपरीत कुरान का पाठ (तेलावत) करने वाले व्यक्ति को मना किया था।[६८]
मुस्हफ़ो का अंजाम
ऐतिहासिक स्रोतों के अनुसार, उस्मानी मुस्हफ़ो को मुसलमानों के बीच विशेष पवित्रता मिली और उनकी बहुत सावधानी से देखभाल की गई; हालाँकि, इस तथ्य के बावजूद कि उनकी कई प्रतियाँ लिखी गईं,[६९] स्वयं मुस्हफ़ो के अंजाम के बारे में कोई सटीक जानकारी नहीं है।[७०] उस्मानी मुस्हफ़ो ने शहरों और मस्जिदों को जो सम्मान दिया, उस्मानी मुस्हफ को पाने और उसकी रक्षा करने के लिए सब एक दूसरे से बहुत प्रतिस्पर्धा करते थे।[७१] इसलिए, अतीत से लेकर अब तक, हमेशा ऐसे संस्करण रहे हैं जिनके उस्मानी मुस्हफ होने का दावा किया जाता रहा हैं;[७२] लेकिन शोधकर्ता दावों को झूठा मानते हुए इस बात पर सहमत है कि आज उन मुस्हफो का कोई निशान बाकी नही है।[७३]
उदाहरण के लिए, ताशकंद समरकंद मे मौज़ूद एक प्रति उस्मानी मुस्हफ के नाम से जानी जाती है, जिसके बारे में दावा किया गया था कि यह वही मुस्हफ़ है जिस पर उस्मान को मार दिया गया था और उसके खून के निशान उस पर बाकी है;[७४] लेकिन महमूद रामयार के अनुसार इसके पुराने होने और लिपी का बिंदी से खाली होने के बावजूद इसकी लिपि अरबी लिपि में लिखी गई है, जोकि उस्मान के काल की नहीं है।[७५] इस्तांबूल के एक संग्रहालय में क़ुरआन की एक प्रति भी है, जिसका श्रेय उस्मान को दिया जाता है। लेकिन चूंकि इसमें वर्तनी (इमला के) चिह्न हैं और उस्मान की पांडुलिपियां इन चिह्नों से मुक्त थीं, इसलिए वे इस दावे को सच नहीं मानते हैं।[७६]
उस्मानी मुस्हफ़ पर आधारित कुरान की छपाई
उस्मान ने जिन मुस्हफ़ो को विभिन्न इस्लामी देशों में भेजा, उन्हें मुसलमानों का विशेष ध्यान मिला। उस्मानी मुस्हफ के संकलन के कुछ ही समय बाद, उनकी कॉपी राइटिंग लोकप्रिय हो गई और उनकी कई प्रतियां लिखी गईं।[७७] महमूद रामयार के अनुसार, दूसरी चंद्र शताब्दी से, कुछ लोगों ने खुद को क़ुरआन लिखने के लिए समर्पित कर दिया। उदाहरण के लिए, अबू अम्र शैबानी ने 80 से अधिक प्रतियां लिखीं और उन्हें कूफ़ा की मस्जिद में रख दिया।[७८] क़ुरआन की प्रतियां इतनी अधिक हो गईं कि 403 हिजरी में एक मामले में मिस्र मे फ़ातेमी खलीफ़ा अल-हाकिम बिअमरिल्लाह ने क़ुरआन की 1298 प्रतियां अतीक़ जामा मस्जिद, 814 प्रतियां तूलवनी की जामा मस्जिद को दे दी।[७९]
आज जो क़ुरआन मुसलमानों के हाथ में है, वह कुरआन की उन प्रतियों से मुद्रित किया गया था जो उस्मानी मुस्हफो से नकल की गई थीं। यह क़ुरआन पहली बार 950 हिजरी/1543 ईस्वी में इटली में प्रकाशित हुआ था; लेकिन चर्च अधिकारियों के आदेश से इसे नष्ट कर दिया गया। उसके बाद, इसे यूरोप में 1104 हिजरी/1692 ईस्वी में और फिर 1108 हिजरी/1696 ईस्वी में मुद्रित किया गया। मुसलमानों द्वारा क़ुरआन की पहली छपाई 1200 हिजरी में मौला उस्मान द्वारा सेंट पीटर्सबर्ग रूस में की गई थी।[८०]
ईरान क़ुरआन छापने वाला पहला मुस्लिम देश है। इस देश ने 1243 हिजरी और 1248 हिजरी में इससे दो खूबसूरत लिथोग्राफ तैयार किये। उसके बाद, अन्य इस्लामी देशों जैसे तुर्की, मिस्र और इराक ने क़ुरआन के विभिन्न संस्करण तैयार किए।[८१]
फ़ुटनोट
- ↑ हुज्जती, पुज़ूहिशी दर तारीख क़ुरआन करीम, 1368 शम्सी, पेज 426
- ↑ सीवती, अल-इत्क़ान, 1363 शम्सी, भाग 1, पेज 202; मारफ़त, अल-तम्हीद, 1412 हिजरी, भाग 1, पेज 272 से 282 तक
- ↑ मारफ़त, अल-तम्हीद, 1412 हिजरी, भाग 1, पेज 334
- ↑ मारफ़त, अल-तम्हीद, 1412 हिजरी, भाग 1, पेज 334
- ↑ हुज्जती, पुज़ूहिशी दर तारीख क़ुरआन करीम, 1368 शम्सी, पेज 448
- ↑ हुज्जती, पुज़ूहिशी दर तारीख क़ुरआन करीम, 1368 शम्सी, पेज 448
- ↑ हुज्जती, पुज़ूहिशी दर तारीख क़ुरआन करीम, 1368 शम्सी, पेज 448
- ↑ हुज्जती, पुज़ूहिशी दर तारीख क़ुरआन करीम, 1368 शम्सी, पेज 439-440; मारफ़त, अल-तम्हीद, 1412 हिजरी, भाग 1, पेज 338-339
- ↑ मारफ़त, अल-तम्हीद, 1412 हिजरी, भाग 1, पेज 364; हुज्जती, पुज़ूहिशी दर तारीख क़ुरआन करीम, 1368 शम्सी, पेज 440
- ↑ मारफ़त, अल-तम्हीद, 1412 हिजरी, भाग 1, पेज 343
- ↑ रामयार, तारीख़ क़ुरआन, 1369 शम्सी, पेज 433; मारफ़त, अल-तम्हीद, 1412 हिजरी, भाग 1, पेज 443
- ↑ रामयार, तारीख़ क़ुरआन, 1369 शम्सी, पेज 433; मारफ़त, अल-तम्हीद, 1412 हिजरी, भाग 1, पेज 344-345
- ↑ मारफ़त, अल-तम्हीद, 1412 हिजरी, भाग 1, पेज 344-345; रामयार, तारीख़ क़ुरआन, 1369 शम्सी, पेज 433
- ↑ मारफ़त, अल-तम्हीद, 1412 हिजरी, भाग 1, पेज 345
- ↑ रामयार, तारीख़ क़ुरआन, 1369 शम्सी, पेज 433-435
- ↑ रामयार, तारीख़ क़ुरआन, 1369 शम्सी, पेज 435
- ↑ रामयार, तारीख़ क़ुरआन, 1369 शम्सी, पेज 417
- ↑ रामयार, तारीख़ क़ुरआन, 1369 शम्सी, पेज 419
- ↑ देखेः रामयार, तारीख़ क़ुरआन, 1369 शम्सी, पेज 417
- ↑ मारफ़त, अल-तम्हीद, 1412 हिजरी, भाग 1, पेज 339; हुज्जती, पुज़ूहिशी दर तारीख क़ुरआन करीम, 1368 शम्सी, पेज 439-440; रामयार, तारीख़ क़ुरआन, 1369 शम्सी, पेज 417
- ↑ मारफ़त, अल-तम्हीद, 1412 हिजरी, भाग 1, पेज 339-340
- ↑ हुज्जती, पुज़ूहिशी दर तारीख क़ुरआन करीम, 1368 शम्सी, पेज 440; मारफ़त, अल-तम्हीद, 1412 हिजरी, भाग 1, पेज 339
- ↑ रामयार, तारीख़ क़ुरआन, 1369 शम्सी, पेज 418
- ↑ रामयार, तारीख़ क़ुरआन, 1369 शम्सी, पेज 419
- ↑ मारफ़त, अल-तम्हीद, 1412 हिजरी, भाग 1, पेज 339
- ↑ रामयार, तारीख़ क़ुरआन, 1369 शम्सी, पेज 421-422
- ↑ रामयार, तारीख़ क़ुरआन, 1369 शम्सी, पेज 421-422
- ↑ रामयार, तारीख़ क़ुरआन, 1369 शम्सी, पेज 426
- ↑ रामयार, तारीख़ क़ुरआन, 1369 शम्सी, पेज 426
- ↑ रामयार, तारीख़ क़ुरआन, 1369 शम्सी, पेज 430
- ↑ मारफ़त, अल-तम्हीद, 1412 हिजरी, भाग 1, पेज 348
- ↑ मारफ़त, अल-तम्हीद, 1412 हिजरी, भाग 1, पेज 348
- ↑ मारफ़त, अल-तम्हीद, 1412 हिजरी, भाग 1, पेज 348-349
- ↑ मारफ़त, अल-तम्हीद, 1412 हिजरी, भाग 1, पेज 349
- ↑ मारफ़त, अल-तम्हीद, 1412 हिजरी, भाग 1, पेज 354-355
- ↑ मारफ़त, अल-तम्हीद, 1412 हिजरी, भाग 1, पेज 355
- ↑ मारफ़त, अल-तम्हीद, 1412 हिजरी, भाग 1, पेज 355
- ↑ मारफ़त, अल-तम्हीद, 1412 हिजरी, भाग 1, पेज 355
- ↑ मारफ़त, अल-तम्हीद, 1412 हिजरी, भाग 1, पेज 355
- ↑ मारफ़त, अल-तम्हीद, 1412 हिजरी, भाग 1, पेज 355
- ↑ मारफ़त, अल-तम्हीद, 1412 हिजरी, भाग 1, पेज 355-356
- ↑ मारफ़त, अल-तम्हीद, 1412 हिजरी, भाग 1, पेज 355
- ↑ मारफ़त, अल-तम्हीद, 1412 हिजरी, भाग 1, पेज 366
- ↑ मारफ़त, अल-तम्हीद, 1412 हिजरी, भाग 1, पेज 386
- ↑ मारफ़त, अल-तम्हीद, 1412 हिजरी, भाग 1, पेज 368
- ↑ सीवती, अल-इत्क़ान, 1363 शम्सी, पेज 460
- ↑ रामयार, तारीख़ क़ुरआन, 1369 शम्सी, पेज 460
- ↑ देखेः सीवती, अल-इत्क़ान, 1363 शम्सी, भाग 1, पेज 211
- ↑ रामयार, तारीख़ क़ुरआन, 1369 शम्सी, पेज 462
- ↑ देखेः मारफ़त, अल-तम्हीद, 1412 हिजरी, भाग 1, पेज 349-350
- ↑ मारफ़त, अल-तम्हीद, 1412 हिजरी, भाग 1, पेज 350
- ↑ रामयार, तारीख़ क़ुरआन, 1369 शम्सी, पेज 462
- ↑ हुज्जती, पुज़ूहिशी दर तारीख क़ुरआन करीम, 1368 शम्सी, पेज 461
- ↑ मारफ़त, अल-तम्हीद, 1412 हिजरी, भाग 1, पेज 350
- ↑ मारफ़त, अल-तम्हीद, 1412 हिजरी, भाग 1, पेज 339
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- ↑ मारफ़त, अल-तम्हीद, 1412 हिजरी, भाग 1, पेज 369 से 373 तक
- ↑ सूर ए ताहा, आयत न 63
- ↑ मारफ़त, अल-तम्हीद, 1412 हिजरी, भाग 1, पेज 369
- ↑ सअलबी, अल कश्फ़ वल बयान, 1422 हिजरी, भाग 6, पेज 250
- ↑ तबरेसी, मजमा अल बयान, 1372 शम्सी, भाग 7, पेज 24-25
- ↑ सअलबी, अल कश्फ़ वल बयान, 1422 हिजरी, भाग 6, पेज 250
- ↑ सूर ए वाक़ेया, आयत न 29
- ↑ बर गिरफ्ते अज़ तरजुमा फ़ौलादमंद
- ↑ तबरी, जामे अल बयान, 1412 हिजरी, भाग 27, पेज 104
- ↑ मारफ़त, अल-तम्हीद, 1412 हिजरी, भाग 1, पेज 342
- ↑ मारफ़त, अल-तम्हीद, 1412 हिजरी, भाग 1, पेज 341
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- ↑ रामयार, तारीख़ क़ुरआन, 1369 शम्सी, पेज 471
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- ↑ देखेः हुज्जती, पुज़ूहिशी दर तारीख क़ुरआन करीम, 1368 शम्सी, पेज 460; रामयार, तारीख़ क़ुरआन, 1369 शम्सी, पेज 465-466
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- ↑ रामयार, तारीख़ क़ुरआन, 1369 शम्सी, पेज 467
- ↑ देखेः हुज्जती, पुज़ूहिशी दर तारीख क़ुरआन करीम, 1368 शम्सी, पेज 460
- ↑ रामयार, तारीख़ क़ुरआन, 1369 शम्सी, पेज 471
- ↑ रामयार, तारीख़ क़ुरआन, 1369 शम्सी, पेज 472
- ↑ रामयार, तारीख़ क़ुरआन, 1369 शम्सी, पेज 472
- ↑ मारफ़त, पीशीना चाप क़ुरआन करीम, साइट दानिश नामा मोज़ूई क़ुरआन
- ↑ मारफ़त, पीशीना चाप क़ुरआन करीम, साइट दानिश नामा मोज़ूई क़ुरआन
स्रोत
- क़ुरआन करीम, तरजुमा मुहम्मद महदी फ़ौलादमंद
- सअलबी नेशाबूरी, अहमद बिन मुहम्मद, अल कश्फ वल बयान अन तफसीर अल क़ुरआ, बैरुत, दार एहया अल तुरास अल अरबी, पहला संस्करण 1422 हिजरी
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- तबरेसी, फ़ज़्ल बिन हसन, मजमा अल बयान फ़ी तफसीर अल क़ुरआन, तेहरान, इंतेशारत नासिर खुसरू, तीसरा संस्करण, 1372 शम्सी
- तबरी, मुहम्मद बिन जुरैर, जामे अल बयान फ़ी तफसीर अल क़ुरआन, बैरूत, दार अल मारफ़ा, पहला संस्करण, 1412 हिजरी
- मारफ़त, पीशीना चाप क़ुरआन करीम, साइट दानिशनामा मौज़ूई क़ुरआन
- मारफ़त, मुहम्मद हादी, अल तमहीद फ़ी उलूम अल क़ुरआन, क़ुम, मोअस्सेसा अल नश्र अल इस्लामी, पहला संस्करण, 1412 हिजरी