सूर ए इंसान
कयामत सूर ए इंसान मुरसलात | |
सूरह की संख्या | 76 |
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भाग | 29 |
मक्की / मदनी | मदनी |
नाज़िल होने का क्रम | 98 |
आयात की संख्या | 31 |
शब्दो की संख्या | 243 |
अक्षरों की संख्या | 1089 |
सूरा ए इंसान (अरबी: سورة الإنسان) या हल अता या दहर छिहत्तरवां सूरा है जोकि क़ुरआन के मदनी सूरो में से एक है, जो 29वें सिपारे में है। सूरा ए इंसान मनुष्य की रचना और मार्गदर्शन, धर्मी लोगो के सिफ़ात और अल्लाह की नेमतो के साथ-साथ क़ुरआन के महत्व और अल्लाह की बातो के बारे में है।
शिया और कुछ सुन्नी टीकाकारो (मुफ़स्सेरीन) के अनुसार, इस सूरा की आठवीं आयत, जोकि आय ए इतआम से प्रसिद्ध है, हज़रत अली (अ), फ़ातिमा ज़हरा (स), इमाम हसन (अ) व इमाम हुसैन (अ) और उनकी दासी फ़िज़्ज़ा के सम्मान में नाज़िल हुई है। उन्होंने लगातार तीन दिनों तक अपने रोज़े की मन्नत पूरी की और भूखे रहकर भी उन्होंने गरीबों, अनाथों और बंदियों को अपनी इफ़तारी दे दी।
इस सूरे को पढ़ने के का सवाब आख़ेरत मे पैगंबर (स) के साथ संगति है।
परिचय
नामकरण
इस सूरे इन्सान, हलअता और दहर के नाम से जाना जाता है।[१] यह नामकरण इसलिए भी है क्योंकि ये तीनो शब्द पहली आयत में आए हैं।[२] इस सूरे को अबरार (नेक लोग) भी कहा जाता है; क्योंकि यह शब्द पाँचवीं आयत में आया है और इस सूरे का आधे से अधिक हिस्सा इन लोगों के शरह हाल से संबंधित है।[३]
स्थान और नाज़िल होने का क्रम
सूरा ए इंसान पैगंबर (स) पर नाज़िल होने के हिसाब से 98 वां सूरा है।[४] यह सूरा क़ुरआन की वर्तमान व्यवस्था में छिहत्तरवां सूरा है जोकि क़ुरआन के 29 सिपारे में है।[५]
इस सूरे के मक्की और मदनी होने मे मतभेद है। शिया मुफ़स्सिर नासिर मकारिम शिराज़ी के अनुसार, शिया टीकाकार (मुफ़स्सेरीन) इस बात से सहमत हैं कि यह पूरा सूरा या कम से कम वो आयते जो अबरार की स्थिति और उनके धार्मिक कार्यों के बारे में है वो मदीने मे नाज़िल हुई है।[६] सातवीं शताब्दी के सुन्नी मुफ़स्सिर कुरतुबी का कहना है कि प्रसिद्ध सुन्नी विद्वानों ने इस सूरे को मदनी माना है।[७] हालांकि, कुछ सुन्नी मुफ़स्सिरो ने इसे मक्की कहा[८] और सूरे की पहली कुछ आयतो को मक्की और आठवीं आयत से आख़िर तक मदनी मानते है।[९]
आयतो की संख्या और दूसरी विशेषताएँ
सूरा ए इंसान में 31 आयतें, 243 शब्द और 1089 अक्षर हैं। आकार के हिसाब से यह सूरा विस्तृत सूरो (छोटी आयतो वाले) और अपेक्षाकृत छोटे सूरो में से एक है।[१०] यह सूरा उन आयतो और सूरहों में से एक है जो पूरी तरह से हजरत अब्बास की ज़रीह पर उकेरे गए हैं।[११]
कंटेंट
तफ़सीरे नमूना ने सूरा ए इंसान की सामग्री को पांच मतलब और सामान्य कंटेंट में विभाजित किया है:
- पहलाः मनुष्य की रचना, शुक्राणु से उसकी रचना, मार्गदर्शन और उसके इरादे की स्वतंत्रता;
- दूसराः अबरार और नेक लोगों के सवाब (जोकि अहले-बैत (अ) के संबंध मे है) ;
- तीसराः अच्छे लोगों के लक्षण जो उन्हें दैवीय पुरस्कार प्राप्त करने के योग्य बनाते हैं;
- चौथाः कुरान का महत्व, उसके आदेशों को लागू करने का तरीका और आत्म-सुधार के उतार-चढ़ाव;
- पांचवाः अल्लाह की मशीयत और इच्छा की संप्रभुता।[१२]
- छठाः बहिश्ती नेमते, सुन्नी मुफ़स्सिर आलूसी ने दूसरो [स्रोत की आवश्यकता] को यह कहते हुए नकल किया है: क्योंकि यह सूरा पैगंबर के परिवार के पांच सदस्यों के सम्मान में उतरा है, जिनमें से एक हज़रत फ़ातिमा (स) है जन्नती महिलाओ (हूर उल-ईन) का नाम उनके सम्मान मे नहीं लिया गया है। (رَعايَةً لِحُرْمَةِ البَتُول وَ قُرَّةِ عَينِ الرَّسُول रआयातन लेहुरमतिल बतूल वा क़ुर्राते ऐनिर रसूल)[१३] अल्लामा तबातबाई ने अल-मिज़ान में इस बात की व्याख्या की है कि सूरा ए इंसान बहिश्त (स्वर्ग) की सबसे मोहिम नेमतो में से एक नहीं है, और इससे यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि अबरार के बीच यह आयत उनकी गरिमा में नाज़िल हुई थी, और वे महिलाओं में से थी।[१४]
अच्छे लोगों के विशेषताएँ
सूरा ए इंसान (आयत 7-11) में नेक (अबरार) लोगो के वर्णन में पांच विशेषताओं का वर्णन किया गया है:
- वे अपनी नजर को वफ़ा करते हैं।
- वे उस दिन से डरते हैं जिस दिन उसकी यातना और प्रकोप हर तरफ़ फैल जाएगा।
- इसके बावजूद कि उन्हें भोजन की आवश्यकता होती है, फिर भी वे इसे गरीबों, अनाथों और बंदियों को दे देते हैं।
- वे केवल अल्लाह को खुश करने के लिए ऐसा करते हैं और किसी से इनाम या धन्यवाद की उम्मीद नहीं करते हैं।
- पुनरुत्थान के दिन वे अपने अल्लाह से डरते हैं।[१५]
मशहूर आयते
आय ए इत्आम
(وَيُطْعِمُونَ الطَّعَامَ عَلَىٰ حُبِّهِ مِسْكِينًا وَيَتِيمًا وَأَسِيرًا वा युतऐमुनत तआमा अला हुब्बेहि मिस्कीनव वा यतीमव वा असीरा, आयत न. 8) अनुवादः और वे (अपना) भोजन भले ही वे इसमें रुचि रखते हों (और इसकी आवश्यकता होती है) "गरीब","अनाथ" और "बंदी" को दे देते हैं।
सूरह इंसान की आठवीं आयत (इसके पहले और बाद की आयतों के साथ) आय ए इत्आम के नाम से मशहूर है।[१६] आयतुल्लाह मकारिम शिराज़ी के अनुसार, शिया विद्वान इस बात से सहमत हैं कि यह आयत और दूसरी आयतो के साथ (इस सूरी की अठारह आयते या पूरा सूरा) इमाम अली (अ), फ़ातिमा (स), इमाम हसन (अ) व इमाम हुसैन (अ) और फ़िज़्ज़ा के तीन दिन रोज़ा रखने के बारे मे नाज़िल हुई है।[१७] यह वर्णन किया गया है कि इन लोगों ने भूखे होने के बावजूद गरीबों, अनाथों और बंदियों के अनुरोध पर अपनी इफ्तारी उनको दे दी।[१८] बहुत सारी रिवायते इस शाने नुज़ूल को बयान करती है।[१९] आयतुल्लाह मकारिम शिराज़ी ने अहले-बैत (अ) की गरिमा और सदाचार के बारे में इब्ने अब्बास के कथन का जिक्र जोकि 34 सुन्नी रावीयो के बयान जिन्हे अल्लामा अमीनी ने अल-ग़दीर किताब मे लिखा है,[२०] उन्होंने इस कथन को सुन्नियों के बीच प्रसिद्ध, बल्कि मुतावातिर माना है।[२१]
आय ए शराबे तहूर
(وَ سَقَاهُمْ رَبُّهُمْ شَرَابًا طَهُورًا वा सक़ाहुम शराबन तहूरा, आयत न.21) अनुवादः उनका रब उन्हे शराबे तहूर पीने को देता है।
अल-मिज़ान के लेखक अल्लामा तबातबाई ने शराबे तहूर को एक ऐसी शराब माना है जो सभी प्रकार की गंदगी और अशुद्धता को दूर करती है, उनमें से लापरवाही और अभाव की गंदगी और अल्लाह ताला की ओर ध्यान देने से दूर रहना और इस विशेष शराब को पीने से अच्छे लोगो और उनके अल्लाह के बीच कोई पर्दा बाकी नही रहेगा और वो अल्लाह को इबादत और प्रशंसा के योग्य पाएंगे जैसा कि सूरा यूनुस की आयत न. 10 में उनके बारे में कहा है: (وَ آخِرُ دَعْوَاهُمْ أَنِ الْحَمْدُ لِله رَبِّ الْعَالَمِينَ वा आख़ेरो दावाहुम अनिल हम्दो लिल्लाहे रब्बिल आलमीन) उनके (जन्नत मे अबरार लोगो की) आखिरी शब्द यह है कि "आलमीन के अल्लाह की हम्द है!" अल्लामा तबातबाई इसी तरह अल-मिज़ान में लिखते हैं कि (وَ سَقَاهُمْ رَبُّهُمْ شَرَابًا طَهُورًا वा सक़ाहुम रब्बोहुम शराबन तहूरा) वाक्य मे वास्तो (बिचौलियों) को हटा दिया है और इन स्वर्गीय प्राणियों को सिराब करना सीधे खुद को जिम्मेदार ठहराया है, और यह सबसे अच्छी नेमत है जो स्वर्गीय प्राणी को दी गई है। उन्होंने सम्भावना जताई है कि यह स्वर्गीय उपहार "मज़ीद" शब्द (मज़ीद नेमते जो अल्लाह के पास हैं) का एक उदाहरण सूरा क़ाफ़ की आयत 35 में है: (لَهُمْ مَا يَشَاءُونَ فِيهَا وَلَدَيْنَا مَزِيدٌ लहुम मा यशाऊना फ़ीहा वा लदैना मज़ीदुन) अनुवाद: वहा उनके लिए हर वह चीज़ है जो वो चाहते हैं और हमारे पास नेमते इतनी अधिक है। (जो किसी के विचार में नहीं आ सकती)।[२२]
अहकाम वाली आयते
सूरा ए इंसान की सातवीं आयत को अहकाम वाली आयतों में सूचीबद्ध किया गया है।[२३] इस आयत के बारे में, जिसमें कहा गया है कि अपनी मन्नतों का पालन करना (नज़र को वफ़ा करना) अच्छे लोगों की सिफ़तो में शुमार किया गया है,[२४] कहा जाता है कि यह किसी की नज़्र को वफ़ा करने के लिए जायज़ बल्कि वाजिब है।[२५]
फज़ाइल
- देखेः सूरो के फ़ज़ाइल
हदीसों में सूरा ए इंसान पढ़ने का सवाब जन्नत और जन्नत की हूरें[२६] और पैगंबर (स) का साथ बताया गया है।[२७] कहा गया है कि इमाम रज़ा (अ) सोमवार और गुरूवार की सुबह की नमाज की पहली रकअत में सूरा ए अल-हम्द और सूरा ए इंसान और दूसरी रकअत मे अल-हम्द के बाद सूरा ए ग़ाशिया पढ़ते थे और फ़रमाते थे जो कोई ऐसा करेगा अल्लाह इन दो दिनो मे उसे बुराई से बचाएगा।[२८]
इस सूरा को पढ़ने के कुछ ख़ासयते भी बताई गई हैं, जैसे कि अगर कोई सूरा ए इंसान पढ़ता रहता है, अगर उसकी आत्मा (रूह) कमजोर होगी तो उसकी आत्मा शक्तिशाली हो जाएगी।[२९] इस सूरह को पढ़ना नसों को मजबूत करने और चिंता से बचने के लिए उपयोगी है।[३०]
मोनोग्राफ़ी
तफ़सीरी किताबो मे इस सूरा की तफ़सीर बयान होने के अलावा, इस सूरे की तफ़सीर मे मुस्तक़िल किताबे भी लिखी गई हैं:
- सैय्यद जाफ़र मुर्तज़ा आमोली, तफ़सीर सूरा ए हलअता, बेरूत, अल-मरकज़ुल इस्लामी, 1424 हिजरी
- सैय्यद अब्बास करीमी हुसैनी, औजे इंसानीयतः तफ़सीर सूरा ए इंसान, क़ुम दार उल-हुदा, 1383 शम्सी
फ़ुटनोट
- ↑ मकारिम शिराज़ी, तफ़सीरे नमूना, 1371 शम्सी, भाग 25, पेज 327
- ↑ मकारिम शिराज़ी, तफ़सीरे नमूना, 1371 शम्सी, भाग 25, पेज 327
- ↑ ख़ुर्रमशाही, दानिश नामा क़ुरआन वा क़ुरआन पुज़ूही, 1377 शम्सी, भाग 2, पेज 1260
- ↑ मारफ़त, आमूज़िशे इल्मे क़ुरआन, 1371 शम्सी, भाग 1, पजे 168
- ↑ ख़ुर्रमशाही, दानिश नामा क़ुरआन वा क़ुरआन पुज़ूही, 1377 शम्सी, भाग 2, पेज 1260
- ↑ मकारिम शिराज़ी, तफ़सीरे नमूना, 1371 शम्सी, भाग 25, पेज 328
- ↑ क़र्तबी, अल-जामे उल-अहकाम उल-क़ुरआन, 1364 शम्सी, भाग 19, पेज 117
- ↑ सालबी, अल-कश्फ़ वल-बयान, 1422 हिजरी, भाग 10, पेज 92 फ़ख़्रे राज़ी, अल-तफ़सीर उल-कबीर, 1420 हिजरी, भाग 30, पेज 739
- ↑ तिबरानी, अल-तफ़सीर उल-कबीर, तफ़सीर उल-क़ुरआन उल-अज़ीम, 2008 ई, भाग 6,पेज 398
- ↑ ख़ुर्रमशाही, दानिश नामा क़ुरआन वा क़ुरआन पुज़ूही, 1377 शम्सी, भाग 2, पेज 1260
- ↑ इमशब क़ुर्से क़मर दर कर्बला ताअने बे ख़ुर्शीद मी ज़नद, साइट खबरी फ़रदा, तारीखे वीजीट 21 शहरीवर 1395 शम्सी
- ↑ मकारिम शिराज़ी, तफ़सीरे नमूना, 1371 शम्सी, भाग 25, पेज 327
- ↑ अल-आलूसी, शहाबुद्दीन, तफ़सीर रूहुल मआनी, भाग 15, पेज 170-174
- ↑ तबातबाई, अल-मीज़ान, भाग 20, पेज 131
- ↑ मकारिम शिराज़ी, तफ़सीरे नमूना, 1371 शम्सी, भाग 25, पेज 351-355
- ↑ देखेः रूहानी निया, फ़ुरूग़े ग़दीर, 1386 शम्सी, पेज 146 अंसारी, अहलुलबैत (अ), मज्माउल फ़िक्र, पेज 173; मज़ाहेरी, जिंदागानी ए चहारदा मासूम (अ) 1378 शम्सी, पेज 56; दैलमी, इरशाद उल क़ुलूब, तेहरान, भाग 2, पेज 136; बश्वी, जाएगाहे अहलेबैत (अ) दर सूरा ए दहर अज़ मंज़रे फ़रीकैन, पेज 68; इमाम अली (अ) दर पुरसिश हाए क़ुरआनी, पेज 108
- ↑ मकारिम शिराज़ी, तफ़सीरे नमूना, 1371 शम्सी, भाग 25, पेज 345
- ↑ ज़मख़शरी, अल-कश्शाफ़, 1415 हिजरी, भाग 4, पेज 670; फ़ख़्रे राज़ी, अल-तफ़सीर उल-कबीर, 1420 हिजरी, भाग 30, पेज 746; तबरसी, मजमा उल-बयान, 1372 शम्सी, भाग 10, पेज 612; मकारिम शिराज़ी, तफ़सीरे नमूना, 1371 शम्सी, भाग 25, पेज 345
- ↑ देखेः तबरसी, मजमा उल-बयान, 1372 शम्सी, भाग 10, पजे 611-612
- ↑ देखेः अमीनी, अल-ग़दीर, 1416 हिजरी, भाग 3, पेज 155-161
- ↑ देखेः मकारिम शिराज़ी, तफ़सीरे नमूना, 1371 शम्सी, भाग 25, पेज 345
- ↑ तबातबाई, अल-मीज़ान, 1394 हिजरी, भाग 20, पेज 130-131
- ↑ एरवानी, दरूस उत-तमहीदया,1423 हिजरी, भाग 1, पेज 451
- ↑ मकारिम शिराज़ी, तफ़सीरे नमूना, 1371 शम्सी, भाग 25, पेज 351
- ↑ एरवानी, दरूस उत-तमहीदया,1423 हिजरी, भाग 1, पेज 451
- ↑ तबरसी, मजमा उल-बयान, 1372 शम्सी, भाग 10, पजे 206
- ↑ शेख सुदूक़, सवाब उल-आमाल वा एक़ाब उल-आमाल, 1406 हिजरी, पेज 121
- ↑ शेख सुदूक़, मन ला याहजेरोहुल फ़क़ीह, इंतेशाराते जामे मुदर्रेसीन, भाग 1, पेज 307-308
- ↑ बहरानी, अल-बुरहान, 1416 हिजरी, भाग 5, पेज 543
- ↑ बहरानी, अल-बुरहान, 1416 हिजरी, भाग 5, पेज 543
- ख़ामेगर, मुहम्मद, साख्तारे सूरेहाए क़ुरआने करीम, तहय्या मोअस्सेसा ए फ़रहंगी क़ुरआन वा इतरत नूरूस सक़लैन, क़ुम, नश्रे नश्रा, पहला प्रकाशन, 1392 शम्सी
स्रोत
- अंसारी, मुहम्मद अली (खलीफ़ा शुस्तरी), अहलुलबैत (अ) इमामतोहुम हयातोहुम, क़ुम, मजमा उल-फ़िक्र उल-इस्लामी
- इमाम अली (अ) दर पुरसिश हाए क़ुरआनी, मजल्ले फ़रहंगे कौसर, क्रमांक 48, इस्फ़ंद 1379 शम्सी
- एरवानी, बाक़िर, दरुस उत-तमहीदया फ़ी तफ़सीरे आयातिल अहकाम, क़ुम, दार उल फ़िक्ह, 1423 हिजरी
- क़ुरआने करीम, अनुवाद मुहम्मद महदी फ़ौलादवंद, तेहरान, दार उल-क़ुरआन अल-करीम, 1418 हिजरी
- क़ुरआने करीम, अनुवाद, तौज़ीहात वा वाज़ेह नामेः बहाउद्दीन ख़ुर्रमशाही, तेहरान, जामी, नीलोफ़र, 1376 शम्सी
- क़ुर्तुबी, मुहम्मद बिन मुहम्मद, अल-जामे उल-अहकाम उल-क़ुरआन, तेहरान, नासिर खुस्रो, पहला प्रकाशन, 1364 शम्सी
- ख़र्रमशाही, बहाउद्दीन, दानश नामे क़ुरआन वा क़ुरआन पुज़ूही, तेहरान, दोस्तान-नाहीद, 1377 शम्सी
- ख़ामेगर, मुहम्मद, साख्तारे सूरेहाए क़ुरआने करीम, तहय्या मोअस्सेसा ए फ़रहंगी क़ुरआन वा इतरत नूरूस सक़लैन, क़ुम, नश्रे नश्रा, पहला प्रकाशन, 1392 शम्सी
- जमख़शरी, जारूल्लाह, अल-कश्शाफ़ अन हक़ाइक़े ग़वामेज़ित्तंज़ील वा ओयूनिल अक़ावील फ़ी वुजूहित्तावील, क़ुम, नशरुल बलाग़ा, 1415 हिजरी
- तबरसी, फ़ज़्ल बिन हसन, मजमा उल-बयान फ़ी तफ़सीर अल-क़ुरआन, शोध व प्रस्तावना मुहम्मद जवाद बलाग़ी, तेहरान, इंतेशाराते नासिर खुस्रो, तीसरा प्रकाशन, 1372 शम्सी
- तिबरानी, सुलेमान बिन अहमद, अल-तफसीर उल-कबीर, तफ़सीर उल-क़ुरआन उल-अतज़ीम, जार्डन-अरबड, दार उल किताब अल-सक़ाफी, पहला प्रकाशन, 2008 ई
- दैलमी, हुसैन बिन मुहम्मद, इरशाद उल-क़ुलूब, मुकद्दमा अज़ शहाबुद्दीन मरअशी, अनुवादः हिदायतुल्लाह मुस्तरहमी, तेहरान, किताब फ़रोशी बूज़र जमहूरे मुस्तफ़वी
- फ़ख़्रे राज़ी, मुहम्मद बिन उमर, अल-तफसीर उल-कबीर (मफ़ातीहुल ग़ैब), बैरूत, दार ए एहयाइत तुरास अल-अरबी, तीसरा प्रकाशन, 1420 हिजरी
- बश्वी, मुहम्मद याक़ूब, जाएगाहे अहलेबैत (अ) दर सूरा ए दहर अज़ मंज़रे फ़रीक़ैन, मजल्ला पुज़ूहिशनामे हिकमत वा फ़लसफ़ा ए इस्लामी, क्रमांक 19, पाईज़ 1385 शम्सी
- बहरानी, सय्यद हाशिम, अल-बुरहान फ़ी तफ़सीर अल-क़ुरआन, शोधः क़िस्म उद दरासात अल-इस्लामीया मोआस्सेसातुल बेसत क़ुम, तेहरान, बुनयादे बेसत, पहला प्रकाशन, 1416 हिजरी
- मकारिम शिराज़ी, नासिर, तफ़सरी ए नमूना, तेहरान, दार उल कुतुब उल इस्लामीया, दसवां प्रकाशन, 1371 शम्सी
- मज़ाहेरी, हुसैन, जिंदगानी ए चहारदा मासूम (अ), बा तालीक़े वली फ़ातेमी, तेहरान, पयामे आज़ादी, 1378 शम्सी
- मारफ़त, मुहम्मद हादी, आमूज़िशे उलूमे क़ुरआन, क़ुम, मरकज़े चाप व नश्रे साज़माने तबलीग़ाते इस्लामी, पहला प्रकाशन, 1371 शम्सी
- रूहानी निया, अब्दुल करीम, फ़ुरूग़े ग़दीर, कुम, मशहूर, 1386 शम्सी
- शेख सुदूक़, मुहम्मद बिन अली, सवाब उल-आमाल वा एक़ाब उल-आमाल, क़ुम, दारुश शरीफ़ अल-रज़ी, दूसरा प्रकाशन, 1406 हिजरी
- शेख सूदूक़, मुहम्मद बिन अली, मन ला याह ज़ेरोहुल फ़क़ीह, क़ुम, इंतेशाराते जामे मुदर्रेसीन, दूसरा प्रकाशन
- सालबी, अहमद बिन मुहम्मद, अल-कश्फ वल बयान (तफसीर सालबी), बैरूत, दार ए एहयाइत तुरास अल-अरबी, पहला प्रकाशन, 1422 हिजरी