हदीस रय्यान बिन शबीब
हदीस रय्यान बिन शबीब | |
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विषय | इमाम हुसैन (अ) पर रोना, इमाम हुसैन (अ) की अज़ादारी |
किस से नक़्ल हुई | इमाम रज़ा (अ) |
मुख्य वक्ता | रय्यान बिन शबीब |
कथावाचक | मुहम्मद बिन अली माजीलवैह, अली बिन इब्राहीम क़ुम्मी, इब्राहीम बिन हाशिम |
दस्तावेज़ की वैधता | हसन या सहीह |
शिया स्रोत | उयून अख़्बार अल रज़ा (अ), अल अमाली शेख़ सदूक़ |
हदीस रय्यान बिन शबीब (अरबी: حديث ريان بن شبيب) इमाम रज़ा (अ) की एक हदीस जो रय्यान बिन शबीब द्वारा मुहर्रम के महीने और इमाम हुसैन (अ) के लिए रोने और शोक के बारे में वर्णित हुई है।
इस हदीस में मुहर्रम के पहले दिन के आमाल, इमाम हुसैन (अ) की शहादत से मुहर्रम की पवित्रता (हुरमत) का पामाल होना, इमाम हुसैन (अ) के लिए रोने और उनकी ज़ियारत करने का आदेश, इमाम हुसैन (अ) के हत्यारों का श्राप (लअनत) और अहले बैत (अ) की ख़ुशी में ख़ुश होना और उनके दुख में दुखी होना और उनकी विलायत स्वीकार करने का उल्लेख किया गया है।
हदीस के एक भाग में इमाम रज़ा (अ) रय्यान को आदेश देते हैं कि अगर तुम्हें किसी चीज़ के लिए रोना है तो हुसैन बिन अली (अ) के लिए रोओ जिन्हें भेड़ की तरह क़त्ल कर दिया गया। इस हदीस में पापों की क्षमा, इमाम हुसैन (अ) पर रोने का सवाब और उनकी ज़ियारत का उल्लेख किया गया है।
यह हदीस उयून अख़्बार अल रज़ा (अ) और शेख़ सदूक़ द्वारा लिखित अल अमाली में वर्णित हुई है, और अन्य पुस्तकों जैसे अल इक़बाल, वसाएल अल शिया और बिहार अल अनवार ने इन दो पुस्तकों से उद्धृत किया है।
मुहम्मद तक़ी मजलिसी, साहिब हदाएक़, सय्यद मुहम्मद सईद हकीम और हुसैन वहीद ख़ोरासानी जैसे शिया विद्वानों ने इस हदीस को हसन या सहीह माना है।
आशूरा साहित्य में हदीस का स्थान
रय्यान बिन शबीब की हदीस को शोक के बारे में सबसे प्रसिद्ध हदीसों में से एक के रूप में जाना जाता है।[१] यह हदीस मुहर्रम के महीने, कर्बला की घटना और हुसैन बिन अली (अ) के लिए रोने और शोक के इनाम के बारे में है। वक्ता और स्तुतिकर्ता आमतौर पर हुसैन (अ) पर रोने के महत्व को इंगित करने के लिए इस हदीस या इसके कुछ हिस्सों को पढ़ते हैं। इसके अलावा, इस हदीस के कुछ हिस्सों का उपयोग मुहर्रम शोक से संबंधित शिलालेखों और कपड़ा लेखन की सामग्री के लिए किया जाता है।[उद्धरण वांछित] इस हदीस का उपयोग आशूरा कविताओं में भी किया गया है।
يَا ابْنَ شَبِيبٍ إِنْ كُنْتَ بَاكِياً لِشَيْءٍ فَابْكِ لِلْحُسَيْنِ بْنِ عَلِيِّ بْنِ أَبِي طَالِبٍ فَإِنَّهُ ذُبِحَ كَمَا يُذْبَحُ الْكَبْشُ (यब्ना शबीब इन कुन्ता बाकियन ले शैइन फ़ब्के लिल हुसैन इब्ने अली बिन अबी तालिब फ़इन्नहू ज़ोबेहा कमा युज़्बहो अल कब्शो) ऐ शबीब के बेटे! रोना है तो हुसैन बिन अली (अ) पर रोओ; सचमुच, उन्हें भेड़ की तरह क़त्ल किया गया।
रय्यान की हदीस को अहले बैत (अ) की संरक्षकता (विलायत) में विश्वासियों के लिए आशा का स्रोत माना गया है और इसे आंशिक कृत्यों और पूजा (आमाल व इबादाते जुज़ई) के बदले पुरस्कार और इनाम के उपहार के कारण शियों और अहले बैत (अ) के प्रेमियों के प्रति भगवान के अनुग्रह (लुत्फ़) का संकेत माना है।[२]
हदीस की सामग्री
रय्यान बिन शबीब[३] की हदीस में वर्णित विषय इस प्रकार हैं:
- मुहर्रम के पहले दिन के आमाल: इस हदीस में मुहर्रम के पहले दिन रोज़ा रखने और इस दिन इस्तिजाबते दुआ जैसे ज़करिया (अ) की दुआ का उत्तर देने के बारे में उल्लेख किया गया है।[४] सय्यद इब्ने ताऊस ने इस हदीस और अन्य हदीसों का हवाला देते हुए रोज़ा रखने को मुहर्रम के पहले दिन के आमाल में से एक माना है, और इस दिन को दुआओं का जवाब देने (इस्तिजाबते दुआ) के दिनों में से एक माना है।[५]
- मुहर्रम के महीने की पवित्रता को तोड़ना: इस हदीस में कहा गया है कि उन्होंने पैग़म्बर (स) की पवित्रता (हुरमत) को संरक्षित नहीं किया, उन्होंने उनके वंशजों की हत्या कर डाली और उनकी महिलाओं को बंदी बना लिया, जबकि जाहेलीयत काल के दौरान, उन्होंने मुहर्रम के महीने की पवित्रता बनाए रखी और उत्पीड़न और युद्ध से परहेज़ किया।[६]
- इमाम हुसैन (अ) के लिए रोने का हुक्म: हदीस के एक हिस्से में रय्यान को संबोधित करते हुए कहा गया है कि अगर किसी चीज़ के लिए रोना है तो हुसैन बिन अली (अ) के लिए रोओ जिन्हें भेड़ की तरह क़त्ल कर दिया गया। यह भी कहा गया है कि उनकी शहादत पर आसमान और ज़मीन रो पड़े और आसमान से ख़ून और लाल मिट्टी की बारिश हुई।[७]
- इमाम हुसैन (अ) के लिए रोने का गुण: इस हदीस में सभी पापों की क्षमा, रोने का इनाम और इमाम हुसैन (अ) के शोक में गालों पर बहने वाले आंसुओं का उल्लेख किया गया है।[८]
- इमाम हुसैन (अ) की ज़ियारत का आदेश: इमाम रज़ा (अ) ने रय्यान को आदेश दिया कि यदि वह ईश्वर से पाक और पाप रहित मिलना चाहता है तो वह इमाम हुसैन (अ) के रौज़े की ज़ियारत के लिए जाए।[९]
- इमाम हुसैन (अ) के हत्यारों पर लानत: हदीस में कहा गया है कि हे शबीब के बेटे! यदि तुम स्वर्ग के घरों में पैग़म्बर (स) के साथ रहना चाहते हैं, तो हुसैन (अ) के हत्यारों पर लानत करो।[१०]
- चार हज़ार फ़रिश्तों का सहायता के लिए आना: हदीस के अनुसार, चार हज़ार फ़रिश्ते इमाम हुसैन (अ) की सहायता के लिए धरती पर आए, लेकिन उन्हें इजाज़त नहीं दी गई, इसलिए वे भ्रमित और धूल-धूसरित हालत में इमाम ज़मान (अ.ज) के क़याम तक इमाम हुसैन (अ) की क़ब्र के पास रहेंगे और वे या लसारातिल हुसैन के नारों के साथ उनके सहायकों में से होंगे।[११]
- अहले बैत (अ) की ख़ुशी में खुश और दुख़ में दुख़ी होने का आदेश: हदीस के अंतिम भाग में, यह वर्णन किया गया है कि हे शबीब की बेटे! यदि आप स्वर्ग के उच्चतम स्तर पर अहले बैत (अ) के साथ रहना चाहते हैं, तो हमारे दुःख में दुखी रहें, और हमारी खुशी में खुश रहें और हमारी संरक्षकता (विलायत) स्वीकार करें; क्योंकि क़यामत के दिन, जो कोई पत्थर से प्यार करेगा वह उसी के साथ महशूर होगा।[१२]
يَا ابْنَ شَبِيبٍ إِنْ سَرَّكَ أَنْ يَكُونَ لَكَ مِنَ الثَّوَابِ مِثْلَ مَا لِمَنِ اسْتُشْهِدَ مَعَ الْحُسَيْنِ بْنِ عَلِيٍّ فَقُلْ مَتَى ذَكَرْتَهُ يا لَيْتَنِي كُنْتُ مَعَهُمْ فَأَفُوزَ فَوْزاً عَظِيماً (यब्ना शबीब इन सर्रका अन यकूना लका मिनस सवाब मिस्ला मा लेमनिस्तुशहेदा मअल हुसैन बिन अली फ़क़ुल मता ज़करतहू या लैतनी कुन्तो मअहुम फ़अफ़ूज़ा फ़ौज़न अज़ीमा) ऐ शबीब के बेटे! यदि आप हुसैन बिन अली (अ) के साथ शहीद हुए लोगों के इनाम जैसा इनाम पाना चाहते हैं, तो जब भी आप उन्हें याद करें, तो कहें: "काश मैं उनके साथ होता और मुझे एक बड़ा इनाम मिलता।"
स्रोत और वैधता
शेख़ सदूक़ ने इस हदीस को किताब उयून अख़्बार अल रज़ा (अ)[१३] और अल अमाली[१४] में मुहम्मद बिन अली माजीलवैह से, अली बिन इब्राहीम क़ुमी से, अपने पिता इब्राहीम बिन हाशिम से, रय्यान बिन शबीब से, इमाम रज़ा (अ) से वर्णित किया है। अन्य पुस्तकों जैसे सय्यद इब्ने ताऊस द्वारा अल इक़बाल,[१५] शेख़ हुर्रे आमोली द्वारा वसाएल अल शिया,[१६] अल्लामा मजलिसी द्वारा बिहार अल अनवार[१७] और अब्दुल्लाह बहरानी इस्फ़हानी द्वारा अवालिम अल उलूम वा अल मआरिफ़ (मृत्यु 1148 हिजरी)[१८] में यह हदीस उयून और अल अमाली से वर्णित हुई है।
मुहम्मद तक़ी मजलिसी[१९] ने इस हदीस को हसन और साहिब हदाएक़ और सय्यद मुहम्मद सईद हकीम जैसे विद्वानों ने इसे सहीह माना है।[२०] इस हदीस के दस्तावेज़ को किताब मौसूआ अहादीस अहल अल बैत में भी प्रमाणित माना गया है।[२१] हुसैन वहीद ख़ोरासानी[२२] और कुछ शोधकर्ताओं[२३] ने हदीस के वर्णनकर्ताओं को भरोसेमंद (सेक़ा) और इमामी शिया माना है, और इसलिए, उन्होंने हदीस को प्रामाणिक माना है। इस हदीस की वैधता का एक अन्य कारण इब्राहीम इब्ने हाशिम द्वारा लिखित अल नवादिर की किताब में इसका अस्तित्व है।[२४]
मोनोग्राफ़ी
- किताब "फ़ब्के लिल हुसैन: रय्यान बिन शबीब को इमाम रज़ा (अ) के आदेशों का एक संक्षिप्त विश्लेषण" इसे सय्यद मुहम्मद बाक़िर हाशमी शाहरूदी द्वारा वर्ष 2018 में अहले अल बैत (अ) फ़िक़्ह और मआरिफ़ फाउंडेशन के प्रकाशनों में प्रकाशित किया गया था।
- किताब "पेरीशानमोई व ख़ाकआलूद" मुहम्मद अली फ़त्ताहज़ादेह द्वारा रय्यान बिन शबीब की हदीस पर एक टिप्पणी है, जिसे मारेफ़त लाइब्रेरी द्वारा प्रकाशित किया गया था।
हदीस का पाठ
हदीस का हिंदी उच्चारण | अनुवाद | हदीस का अरबी उच्चारण |
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हद्दसना मुहम्मद बिन अली माजीलवैह रज़ेयल्लाहो अन्हो क़ाला हद्दसना अली बिन इब्राहीम बिन हाशिम अन अबीहे अन अल रय्यान बिन शबीब क़ाला: दख़ल्तो अला अल रज़ा फ़ी अव्वले यौमिन मिनल मुहर्रम फ़क़ाला यब्ना शबीब अ साएमुन अन्ता क़ुल्तो ला | मुहम्मद बिन अली माजीलवैह ने अली बिन इब्राहीम बिन हाशिम से उन्होंने अपने पिता से और उन्होंने रय्यान बिन शबीब से रिवायत की है कि रय्यान बिन शबीब ने कहा: मुहर्रम के पहले दिन, मैं इमाम रज़ा (अ) के पास गया और उन्होंने कहा: क्या आप उपवास कर रहे हैं? मैंने कहा नहीं।[२५] | حَدَّثَنَا مُحَمَّدُ بْنُ عَلِيٍّ مَاجِيلَوَيْهِ رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُ قَالَ حَدَّثَنَا عَلِيُّ بْنُ إِبْرَاهِيمَ بْنِ هَاشِمٍ عَنْ أَبِيهِ عَنِ الرَّيَّانِ بْنِ شَبِيبٍ قَالَ: دَخَلْتُ عَلَى الرِّضَا فِي أَوَّلِ يَوْمٍ مِنَ الْمُحَرَّمِ فَقَالَ يَا ابْنَ شَبِيبٍ أَ صَائِمٌ أَنْتَ قُلْتُ لَا [२६] |
फ़क़ाला इन्ना हाज़ल यौम होवल यौमुल लज़ी दआ फ़ीहे ज़करिय्या रब्बहू अज़्ज़ा व जल्ला फ़क़ाला रब्बे हब ली मिन लदुन्का ज़ुर्रियतन तय्येबतन इन्नका समीउद्दुआ फ़स्तजाबल्लाहो लहू व अमरल मलाएकता फ़नादत ज़करिय्या व होवा क़ाएमुन योसल्ली फ़िल मेहराबे अनल्लाहा योबश्शेरोका बेयह्या फ़मन सामा हाज़ल यौमा सुम्मा दअल्लाहा अज़्ज़ा व जल्ला इस्तजाबल्लाहो लहू कमस्तजाबल्लाहो ले ज़करिय्या | उन्होंने कहा: आज वह दिन है जब ज़करिय्या ने अपने भगवान को पुकारा और कहा: "हे भगवान! मुझे पवित्र बच्चा अता कर, वास्तव में, तुम बन्दों की दुआ सुनते हो" (सूर ए आले इमरान, आयत 38), और ईश्वर ने उनकी दुआ का उत्तर दिया और स्वर्गदूतों को आदेश दिया कि वे ज़करिय्या को - जो मेहराब में नमाज़ पढ़ रहे थे - बताएं कि ईश्वर तुम्हें यह्या की ख़ुशख़बरी देता है। इसलिए जो कोई इस दिन उपवास करेगा और फिर दुआ करेगा, भगवान उसकी दुआ का उत्तर वैसे ही देगा जैसे उसने ज़करिय्या की दुआ का उत्तर दिया था। | فَقَالَ إِنَّ هَذَا الْيَوْمَ هُوَ الْيَوْمُ الَّذِي دَعَا فِيهِ زَكَرِيَّا رَبَّهُ عَزَّ وَ جَلَّ فَقَالَ رَبِّ هَبْ لِي مِنْ لَدُنْكَ ذُرِّيَّةً طَيِّبَةً إِنَّكَ سَمِيعُ الدُّعاءِ فَاسْتَجَابَ اللَّهُ لَهُ وَ أَمَرَ الْمَلَائِكَةَ فَنَادَتْ زَكَرِيَّا وَ هُوَ قائِمٌ يُصَلِّي فِي الْمِحْرابِ أَنَّ اللَّهَ يُبَشِّرُكَ بِيَحْيى فَمَنْ صَامَ هَذَا الْيَوْمَ ثُمَّ دَعَا اللَّهَ عَزَّ وَ جَلَّ اسْتَجَابَ اللَّهُ لَهُ كَمَا اسْتَجَابَ اللَّهُ لِزَكَرِيَّا |
सुम्मा क़ाला यब्ना शबीब इन्नल मुहर्रम होवा अल शहरुल्लज़ी काना अहलुल जाहेलीयत योहर्रेमूना फ़ीहे अल ज़ुल्म वल क़ेताला ले हुरमतेही फ़मा अरफ़त हाज़ेहिल उम्मतो हुरमता शहरेहा वला हुरमता नबीयेहा लक़द क़तलू फ़ी हाज़श्शहरे ज़ुर्रीयतोहू व सबव नेसाअहू वन्तहबू सक़लहू फ़ला ग़फ़रल्लाहो लहुम ज़ालेका अबदन | फिर उन्होंने कहा: हे इब्ने शबीब! मुहर्रम वह महीना है जिसके सम्मान में जाहेलियत काल के लोगों ने ज़ुल्म और युद्ध को हराम किया था, लेकिन इस उम्मत ने इसका सम्मान नहीं किया और अपने पैग़म्बर (स) का सम्मान नहीं किया, इस महीने में उन्होंने उनके वंशजों को मार डाला, उनकी महिलाओं को बंदी बना लिया और उनकी संपत्ति लूट ली। भगवान उन्हें कभी माफ़ न करे! | ثُمَّ قَالَ يَا ابْنَ شَبِيبٍ إِنَّ الْمُحَرَّمَ هُوَ الشَّهْرُ الَّذِي كَانَ أَهْلُ الْجَاهِلِيَّةِ يُحَرِّمُونَ فِيهِ الظُّلْمَ وَ الْقِتَالَ لِحُرْمَتِهِ فَمَا عَرَفَتْ هَذِهِ الْأُمَّةُ حُرْمَةَ شَهْرِهَا وَ لَا حُرْمَةَ نَبِيِّهَا لَقَدْ قَتَلُوا فِي هَذَا الشَّهْرِ ذُرِّيَّتَهُ وَ سَبَوْا نِسَاءَهُ وَ انْتَهَبُوا ثَقَلَهُ فَلَا غَفَرَ اللَّهُ لَهُمْ ذَلِكَ أَبَداً |
यब्ना शबीब इन कुन्ता बाकियन ले शयईन फ़ब्के लिल हुसैन बिन अली बिन अबी तालिब फ़इन्नहू ज़ोबेहा कमा युज़बहुल कब्शो व क़ुतेला मअहू मिन अहले बैतेही समानेयता अशरा रजोलन मालहुम फ़िल अर्ज़े शबीहूना | हे शबीब के बेटे! यदि तुम रोना चाहते हो, तो हुसैन इब्ने अली इब्ने अबी तालिब पर रोओ; क्योंकि उन्हें भेड़ की तरह क़त्ल कर दिया गया और उनके साथ उनके अठारह रिश्तेदार भी शहीद हो गये, जिनकी तरह इस धरती पर कोई नहीं था। | يَا ابْنَ شَبِيبٍ إِنْ كُنْتَ بَاكِياً لِشَيْءٍ فَابْكِ لِلْحُسَيْنِ بْنِ عَلِيِّ بْنِ أَبِي طَالِبٍ فَإِنَّهُ ذُبِحَ كَمَا يُذْبَحُ الْكَبْشُ وَ قُتِلَ مَعَهُ مِنْ أَهْلِ بَيْتِهِ ثَمَانِيَةَ عَشَرَ رَجُلًا مَا لَهُمْ فِي الْأَرْضِ شَبِيهُونَ |
व लक़द बकतिस्समावातो अल सब्ओ वल अरज़ूना ले क़त्लेही व लक़द नज़ल एलल अर्ज़े मिनल मलाएकते अर्बअतुन आलाफ़िन ले नसरेही फ़लम यूज़न लहुम फ़हुम इन्दा क़ब्रेही शोअसुन ग़ुब्रुन एला अन यक़ूमल क़ाएमो फ़यकूना मिन अन्सारेही व शेआरोहुम या लसारातिल हुसैन | उनकी शहादत पर सातों आसमान और ज़मीन रोए और चार हज़ार फ़रिश्ते उनकी मदद के लिए ज़मीन पर आए, लेकिन यह ईश्वर की नियति नहीं थी, और क़ाएम (अ) के क़याम तक, वे उनकी क़ब्र के पास अस्त-व्यस्त अवस्था में रहे और क़ाएम के मददगारों में से हैं उनका नारा है "या लसारातिल हुसैन" है। | وَ لَقَدْ بَكَتِ السَّمَاوَاتُ السَّبْعُ وَ الْأَرَضُونَ لِقَتْلِهِ وَ لَقَدْ نَزَلَ إِلَى الْأَرْضِ مِنَ الْمَلَائِكَةِ أَرْبَعَةُ آلَافٍ لِنَصْرِهِ فَلَمْ يُؤْذَنْ لَهُمْ فَهُمْ عِنْدَ قَبْرِهِ شُعْثٌ غُبْرٌ إِلَى أَنْ يَقُومَ الْقَائِمُ فَيَكُونُونَ مِنْ أَنْصَارِهِ وَ شِعَارُهُمْ يَا لَثَارَاتِ الْحُسَيْنِ |
यब्ना शबीब लक़द हद्दसनी अबी अन अबीहे अन जद्देही अन्नहू लम्मा क़ोतेला जद्दीयल हुसैनो अमतरतिस्समाओ दमन व तोराबन अहमर | हे शबीब के बेटे! मेरे पिता ने मुझे अपने पिता से और उन्होंने अपने दादा से बताया कि जब मेरे दादा हुसैन शहीद हुए तो आसमान से खून और लाल मिट्टी की बारिश हुई। | يَا ابْنَ شَبِيبٍ لَقَدْ حَدَّثَنِي أَبِي عَنْ أَبِيهِ عَنْ جَدِّهِ أَنَّهُ لَمَّا قُتِلَ جَدِّيَ الْحُسَيْنُ أَمْطَرَتِ السَّمَاءُ دَماً وَ تُرَاباً أَحْمَرَ |
यब्ना शबीब इन बकैता अलल हुसैन हत्ता तसीरा दोमूओका अला ख़द्दैका ग़फ़रल्लाहो लका कुल्ला ज़म्बिन अज़्नबतहू सग़ीरन काना अव कबीरन क़लीलन काना और कसीरन | हे शबीब के बेटे! अगर तुम हुसैन के लिए इस तरह रोओगे कि तुम्हारे आंसू तुम्हारे गालों पर बह जाएंगे, तो भगवान तुम्हारे हर पाप को क्षमा कर देगा – बड़ा हो या छोटा, ज़्यादा हो या कम। | يَا ابْنَ شَبِيبٍ إِنْ بَكَيْتَ عَلَى الْحُسَيْنِ حَتَّى تَصِيرَ دُمُوعُكَ عَلَى خَدَّيْكَ غَفَرَ اللَّهُ لَكَ كُلَّ ذَنْبٍ أَذْنَبْتَهُ صَغِيراً كَانَ أَوْ كَبِيراً قَلِيلًا كَانَ أَوْ كَثِيراً |
यब्ना शबीब इन सर्रका अन तल्क़ल्लाहो अज़्ज़ा व जल्ला वला ज़म्बा अलैका फ़ज़ोरिल हुसैन | हे शबीब के बेटे! यदि तुम पाक और पाप रहित ईश्वर से मिलना चाहते हो, तो हुसैन (अ) की ज़ियारत पर जाओ। | يَا ابْنَ شَبِيبٍ إِنْ سَرَّكَ أَنْ تَلْقَى اللَّهَ عَزَّ وَ جَلَّ وَ لَا ذَنْبَ عَلَيْكَ فَزُرِ الْحُسَيْنَ |
यब्ना शबीब इन सर्रका अन तस्कोनल ग़ोरफ़ल मब्नियता फ़िल जन्नते मअन नबी फ़लअन क़तलतल हुसैन | हे शबीब के बेटे! यदि तुम स्वर्ग के घरों में पैग़म्बर (स) के साथ रहना चाहते हो, तो हुसैन के हत्यारों पर लानत करो। | يَا ابْنَ شَبِيبٍ إِنْ سَرَّكَ أَنْ تَسْكُنَ الْغُرَفَ الْمَبْنِيَّةَ فِي الْجَنَّةِ مَعَ النَّبِيِّ فَالْعَنْ قَتَلَةَ الْحُسَيْنِ |
यब्ना शबीब इन सर्रका अन यकूना लका मिनस सवाबे मिस्ला मा लेमनिस्तुशहेदा मअल हुसैन बिन अली फ़क़ुल मता ज़करतहू या लैतनी कुन्तो मअहुम फ़अफ़ूज़ा फ़ौज़न अज़ीमा | हे शबीब के बेटे! यदि तुम हुसैन बिन अली के साथ शहीद हुए लोगों के इनाम जैसा इनाम पाना चाहते हो, तो जब भी तुम उन्हें याद करो, तो कहो: "काश मैं उनके साथ होता और मुझे एक बड़ी जीत हासिल होती।" | يَا ابْنَ شَبِيبٍ إِنْ سَرَّكَ أَنْ يَكُونَ لَكَ مِنَ الثَّوَابِ مِثْلَ مَا لِمَنِ اسْتُشْهِدَ مَعَ الْحُسَيْنِ بْنِ عَلِيٍّ فَقُلْ مَتَى ذَكَرْتَهُ يا لَيْتَنِي كُنْتُ مَعَهُمْ فَأَفُوزَ فَوْزاً عَظِيماً |
यब्ना शबीब इन सर्रका अन तकूना मअना फ़िद्दराजातिल ओला मिनल जेनान फ़हज़न ले हुज़नेना वफ़रह ले फ़राहेना व अलैका बे वेलायतेना फ़लौ अन्ना रजोलन अहब्बा हजरन लहशरहुल्लाहो अज़्ज़ा व जल्ला मअहू यौमल क़यामते | हे शबीब के बेटे! यदि तुम हमारे साथ स्वर्ग के उच्चतम स्तर पर रहना चाहते हो, तो हमारे दुख में दुखी हो और हमारे सुख में प्रसन्न रहो, और हमारी विलायत तुम्हारे ऊपर रहे; क्योंकि यदि कोई किसी पत्थर से प्रेम करेगा तो क़यामत के दिन ईश्वर उसे उसी पत्थर के साथ महशूर करेगा। | يَا ابْنَ شَبِيبٍ إِنْ سَرَّكَ أَنْ تَكُونَ مَعَنَا فِي الدَّرَجَاتِ الْعُلَى مِنَ الْجِنَانِ فَاحْزَنْ لِحُزْنِنَا وَ افْرَحْ لِفَرَحِنَا وَ عَلَيْكَ بِوَلَايَتِنَا فَلَوْ أَنَّ رَجُلًا أَحَبَّ حَجَراً لَحَشَرَهُ اللَّهُ عَزَّ وَ جَلَّ مَعَهُ يَوْمَ الْقِيَامَةِ |
फ़ुटनोट
- ↑ ओमरानी, "बर्रसी ए सनदी व दलाली ए हदीस रय्यान बिन शबीब पीरामूने अज़ादारी", पृष्ठ 95।
- ↑ मीर जहानी तबातबाई, अल बोकाओ लिल हुसैन अलैहिस सलाम, पृष्ठ 72।
- ↑ देखें: "बयाने जामेअ इमाम रज़ा (अ) दर गरामी दाश्त अय्यामे मुहर्रम, अज़ादारी, सवाबे गिरया बर इमाम हुसैन (अ)", मोअस्सास ए तहक़ीक़ाती हज़रत वली अस्र की वेबसाइट।
- ↑ सय्यद इब्ने ताऊस, इक़बाल अल आमाल, 1409 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 553।
- ↑ सय्यद इब्ने ताऊस, इक़बाल अल आमाल, 1409 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 553।
- ↑ शेख़ सदूक़, उयून अख़्बार अल रज़ा अलैहिस सलाम, 1378 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 299।
- ↑ शेख़ सदूक़, उयून अख़्बार अल रज़ा अलैहिस सलाम, 1378 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 299-300।
- ↑ शेख़ सदूक़, उयून अख़्बार अल रज़ा अलैहिस सलाम, 1378 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 300।
- ↑ शेख़ सदूक़, उयून अख़्बार अल रज़ा अलैहिस सलाम, 1378 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 300।
- ↑ शेख़ सदूक़, उयून अख़्बार अल रज़ा अलैहिस सलाम, 1378 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 300।
- ↑ शेख़ सदूक़, उयून अख़्बार अल रज़ा अलैहिस सलाम, 1378 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 299।
- ↑ शेख़ सदूक़, उयून अख़्बार अल रज़ा अलैहिस सलाम, 1378 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 300।
- ↑ शेख़ सदूक़, उयून अख़्बार अल रज़ा अलैहिस सलाम, 1378 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 299 और 300।
- ↑ शेख़ सदूक़, अल अमाली, 1376 शम्सी, पृष्ठ 129 और 130।
- ↑ सय्यद इब्ने ताऊस, इक़बाल अल आमाल, 1409 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 545।
- ↑ हुर्रे आमोली, वसाएल अल शिया, 1409 हिजरी, खंड 10, पृष्ठ 469, खंड 14, पृष्ठ 502।
- ↑ मजलिसी, बिहार अल अनवार, 1403 हिजरी, खंड 44, पृष्ठ 285 और खंड 98, पृष्ठ 102।
- ↑ बहरानी इस्फ़हानी, अल हदाएक़ अल नाज़ेरा, 1413 हिजरी, खंड 17, पृष्ठ 538।
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स्रोत
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